Sunday, December 6, 2020
Chain Smoking, why
Saturday, November 28, 2020
Sunday Cycle with Budha Story
ਦਿੱਲੀ ਹਰ ਬਾਰ ਭੁੱਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਸਾਡੀ ਕੁਰਬਾਨੀ
ਪੰਜਾਬੀ ਕੌਮ ਦਾ ਕਿਸਾਨੀ ਅੰਦੋਲਨ
Friday, November 27, 2020
ਵੇਖਲੈ ਦਿੱਲੀਏ
Monday, November 16, 2020
Jiddu Krishnamurthy on education
Monday, November 9, 2020
ਇੰਟਰਨੈਟ ,ਕਿਤਾਬਾਂ ਤੇ ਅਸੀਂ
ਇਕ ਲੇਖਕ ਇਕ ਅੱਗ ਵਾਂਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਉਸਦੀ ਕਿਤਾਬ ਇਕ ਦੀਵੇ ਵਾਂਙ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਦੀਵੇ ਤੇ ਹਨੇਰ੍ਹੇ ਦੀ ਜੰਗ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਹਨੇਰ੍ਹਾ ਹਮੇਸ਼ਾ ਹਾਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇੱਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਦੀਵਾ ਸੰਘਣੇ ਤੋਂ ਸੰਘਣੇ ਹਨੇਰ੍ਹੇ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਇੱਕ ਦੀਵੇ ਤੋਂ ਸੈਂਕੜੇ ਦੀਵੇ ਬਲ ਸਕਦੇ ਨੇ ਤੇ ਓਹਨਾ ਸੈਂਕੜੇ ਦੀਵਿਆਂ ਤੋਂ ਲੱਖਾਂ ਦੀਵੇ ਬਲ ਸਕਦੇ ਨੇ।
ਮੈਂ ਇਹ ਪੋਸਟ ਓਹਨਾ ਲੇਖਕਾਂ ਤੇ ਪਬਲਿਸ਼ਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਜੋ ਇੰਟਰਨੇਟ ਦੀ ਹਨੇਰ੍ਹੀ ਚ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ਲੈਕੇ ਤੁਰੇ ਹੋਏ ਨੇ।
ਆਪਣੇ ਹੀ ਇਕ ਸ਼ੇਅਰ ਨਾਲ ਗੱਲ ਖਤਮ ਕਰਦਾ ਹਾਂ
ਗ਼ਮ ਸੀਨੇ ਮੈ ਛੁਪਾ ਰਖੇ ਹੈਂ
ਔਰ ਖ਼ੁਸ਼ੀਯੋਂ ਕਿ ਦੁਕਾਨ ਸਜਾ ਰਖੀ ਹੈ
ਜਿਸ ਸ਼ਹਿਰ ਮੈਂ ਕੋਈ ਕਿਤਾਬ ਨਹੀਂ ਪੜਤਾ
ਵਹਾਂ ਹਮਨੇ ਇਕ ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀ ਬਣਾ ਰਖੀ ਹੈ
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Monday, November 2, 2020
ਕੁੜੀ ਤੋਂ ਔਰਤ ਬਣਨ ਤੱਕ ਦਾ ਸਫਰ
Sunday, November 1, 2020
लड़की से औरत बनने तक का सफ़र
Saturday, October 31, 2020
बड़े होकर क्या होना चाहोगे?
ਰਮੇਸ਼ ਹਲਵਾਈ
Thursday, October 29, 2020
"ਵੱਡੇ ਹੋਕੇ ਕੀ ਹੋਣਾ ਚਾਹੋਗੇ?"
Friday, October 23, 2020
बुक हीलिंग (किताबों द्वारा इलाज)
Thursday, October 22, 2020
ਕਿਤਾਬਾਂ ਰਾਹੀਂ ਇਲਾਜ (ਬੁੱਕ ਹੀਲਿੰਗ)
Wednesday, October 14, 2020
Journey to Ramgarh Uttrakhand
#journey_to_ramgarh_uttrakhand_part_1
#incredible_uttrakhand
इस साल 1 जनवरी 2020 को घूमने का प्लान बनाया।एक ड्राइवर अमित को बुलाया। वह सुबह पहुंच गया, काला कुर्ता पजामा , मूछों वाला आदमी ।हम तैयार होके अपना सामान लेकर बैठे गाड़ी में और निकल दिए सफर पर। वैसे तो मैं बहुत बातूनी हूं पर रास्ते में चलते हुए लोगों से को सुनता ज्यादा हूँ । जैसे कि दलाई लामा ने कहा है कि जब आप बोलते हो तो आप पुरानी जिंदगी को दोहराते हो, पर जब आप किसी को सुनते हो तो कुछ नया सीखने को मिलता है।
गाड़ी से नैनीताल रोड पर हल्द्वानी की तरफ चल पड़े और अमित ने अपनी बातें शुरू की। रास्ते में टाडा जंगल आता है तो वहां पर एक पकोड़े की दुकान है वही पुराना छप्पर है वहां पर लोग चाय के साथ पकौड़ी खाने जाते हैं। पर हम वहां से आगे निकल दिए क्योंकि हमें कहीं सफर पर जाना था। सफर कुछ ऐसा नहीं था कि कहां जाना है, सिर्फ रामगढ़ तक जाना था कहीं रास्ते में बर्फ मिल जाए वही रूक जाना था। अमित ने अपनी बातें शुरू कीं। वो पाँच भाई और तीन बहने थी। मां और बाप छोटे होते ही चल बसे। बड़े भाई ने उसको तरावड़ी में एक मिल में काम करने को कहा। फिर कुछ ऐसा हुआ कि बड़े भाई ने बोला तुम्हारा मेरा रिश्ता खत्म हो और वहां से वह दिल्ली आ गया। फिर वहां पर आकर मेहनत की और पीतमपुरा के पास छप्पर बनाकर रहने लगा। वहां पर भी एक बार किसी सीवरेज़ का खड्डा खोद रहे थे तो वहां ऊपर की बिजली की तारें थी, जिसके कारण करंट लग और फिर वहां से उसको जगह छोड़नी पड़ी। फिर वह निकल गया रुद्रपुर की तरफ क्योंकि उसको पहाड़ देखने का बहुत शौक था। फिर उस इनकी टैक्सी चलानी शुरू की और किसी को पैसे जमा कराने शुरू कर दिए ।जब थोड़े पैसे जमा हो गए तो जिनको वह पैसे दे रहा था किसी ने कहा कि घर में चोरी हो गई है सारे पैसे चोरी हो गए हैं।( वह अपनी कहानी सुनाता जा रहा था और गाड़ी हल्द्वानी की तरह बढ़ती जा रही थी।)
फिर धीरे-धीरे उसने मेहनत करके एक कार खरीदी। अब वह लगभग हर रोज एक चक्कर दिल्ली का लगाता है। उसके तीन बच्चे हैं, पत्नी है। घर में छोटा कुत्ता है। घर से फोन आया था उन्होंने बताया कि कुत्ते को ठंड लग गई है तो उसने कुछ उसका इलाज बता रहा था। हल्द्वानी पहुंचे तो वहां पर रास्ते में चलते हुए एक भी एक रेहडी देखें उस पर बहुत बड़े-बड़े अमरूद थे। एक किलो अमरूद लिए तो सिर्फ दो ही आए। हमने रेहडी वाले से कटवा के नमक लगवा लिया। उसने बीज बहुत कम थे एक हिस्सा अमित को दिया खुद खाया।हमारी कर काठगोदाम की तरफ बढ़ गई । काठगोदाम का रेलवे स्टेशन बहुत खूबसूरत है। ये यँहा का आखिरी रेलवे स्टेशन है। चलते चलते उसने रामायण, महाभारत के सारे लोगों के बारे में बताया। जैसे मुझसे पूछने लगा कि रावण की ससुराल कहां है? तो मैंने कहा, कहीं पता नहीं। तो बोला नोएडा।
अमित बता रहा था कि आज भी जब कभी वो तरावडी (हरियाणा) जाता है तो उसी चावल की फैक्ट्री में जाकर लोगों से बातें करता है, यँहा बचपन में उसने मेजदूरी की थी।
खेलों के बारे में और वह सारी चीजों के बारे में बात करता रहा और गाड़ी हमारी भीमताल की तरफ बढ़ने लगी। भीमताल खूबसूरत जगह है। हम पहले भी वहां पर गए हैं। भीमताल की झील के ऊपर सामने कोठी है यहां पर एक फिल्म की शूटिंग हुई थी, कोई मिल गया।
पहाड़ियों के घुमावदार रास्तों से होते हुए गाड़ी आगे बढ़ रहे थे । अमित एक अच्छा ड्राइवर है उसने हमें महसूस ही नहीं होने दिया कि हम पहाड़ी इलाके पर हैं । पिछली बार हम एक बार अल्मोड़ा गए तो एक कंबख्त ड्राइवर मिला वो पहाडी मोड़ पर इतनी तेजी से गाड़ी घुमाता था कि बच्चों को चक्कर आ गए। हम इस बार डर रहे थे कि बच्चे सही रहें। अच्छे ड्राइवर की यही पहचान होती है शायद उसने भांप लिया था कि यह डर रहे हैं, उसने अपनी बातों में लगाकर उसने सफर को ओर रोचक बना दिया था । इर्द-गिर्द चीड़ के पेड़ों पेड़ों से गुजरती हुई कार रास्ते में उसने एक जगह पर दिखाया के सामने नैनीताल दिखाई दे रहा था। ये बहुत ही खूबसूरत नजारा था । रास्ते में एक रेस्टोरेंट देखा जिसमें अलग अलग रंग के कमरे बने हुए थे।
यह देख कर मुझे डॉक्टर लोक राज की फेसबुक पर लोड की हुई वेनिस शहर की तस्वीर में याद आ गई। वेनिस शहर पूरा अलग-अलग रंगों के घरों के लिए मशहूर है। यह शहर पूरा एक नदी से जुड़ा हुआ है । घरों का रंग अलग-अलग इसलिए किया जाता था कि शाम को जब मछुआरे अपने घर वापस आए तो उनके अपने घरों की पहचान हो जाए। ये रंग भी बहुत चटकीले होते हैं।
रास्ते में एक दुकान पर रुके और वहां पर चाय पी। स्टील के गिलास में चाय पी कर मजा आ गया । स्टील के गिलास का एक फायदा ये भी रहता है कि चाय जल्दी ठंडी नहीं होती और आप हाथ ताप लेते हो। ये वही दुकान थी यँहा पिछले साल जिस दुकान पर रुक कर हम चाय पी कर गए थे।
गाड़ी रामगढ़ पहुंच गई । रामगढ़ नैनीताल डिस्ट्रिक्ट में 1518 मीटर की ऊंचाई पर है । यहां पर रविंद्र नाथ टैगोर ने अपना आश्रम बनाया हुआ है। जब मौसम साफ हो तो यहां से हिमालय का दृश्य बहुत ही अच्छा दिखाई देता है।
हमने देखा पहाड़ों पर बर्फ जम हुई थी। हमारी मुराद पूरी हो गई । फिर फिर हम आगे अरविंदो आश्रम के लिए निकल गये। मैं चाहता था कि बच्चों को उसके बारे में बताया जाए। पिछले साल मैं अपने दोस्तों के इसी रास्ते से आया था।
मेरे एक घुमक्कड़ गुरु है रूबी बडियाल। वह पति पत्नी कनाडा में रहे और उन्होंने पूरा उत्तराखंड राज्य और हिमाचल टेंटो पर घूमा और लगभग पूरा भारत ही घूम चुके हैं ।वह कहते हैं कि साल में दो टूर लगाने चाहिए, एक अपने परिवार के साथ और एक अपने दोस्तों के साथ। दोनों आपको आंतरिक खुशी देते है। वो बहुत दिलचस्प आदमी हैं, कभी अलग से उनके बारे में लिखूँगा।
गूगल बाबा का सहयोग से स्वामी ओरविंदो आश्रम की डेस्टिनेशन डाल दी। घुमावदार रास्तों से होते हुए रामगढ़ से लिंक रोड पर निकले । मेरे एक घुमक्कड़ गुरु है रूबी बाजार वह पति पत्नी कनाडा में रहे और उन्होंने पूरा उत्तराखंड राज्य और हिमाचल टेंट पर घुमा और लगभग पूरा भारत ही घूम चुके हैं वह कहते हैं कि साल में दूर-दूर लगाने चाहिए कंपनी परिवार के साथ और एक अपने दोस्तों के साथ ।
तल्लीताल कहा जाता है, जो नीचे है, मल्लीताल का मतलब होता है ऊपर वाला हिस्सा। तल्लीताल रामगढ़ से होते हुए फिर आगे एक गांव में पहुंचे और वहां पर स्वामी अरविंदो के आश्रम में तस्वीरें खींची । यहां पर लोग मेडिटेशन करते हैं। वहां पर कुछ देर के लिए बैठे ।
इस बार में दोबारा बता देता हूं कि स्वामी अरविंदो को उनके के पिताजी ने छोटे होते इंग्लैंड भिजवा दिया और उनको कहा गया कि उन्हें ये ना बताया जाए उनका धर्म, देश या जाति क्या है ? उनकी शिक्षा दीक्षा वँही हुई। पीछे से उनके पिताजी की मृत्यु हो गई , पर उन्होने मना किया कि जब तक उसकी शिक्षा-दीक्षा पूरी हो जाती कि ओरविंदो को ना बताया जाए।
वो भारत में वापस आए तो एक अध्यात्मिक गुरू बनकर। उन्होंने अपना आश्रम पांडिचेरी में बनाया। यहां पर आज 21 देशों के लगभग 5000 लोग रहते हैं और बिना पैसे के काम करते हैं । वह एक अलग से ही शहर है। यहां पर 11 लोग उसको चलाते हैं ।लोग काम करते हैं, मेडिटेशन करते हैं ।वहां पर कोई मूर्ति नहीं है। ये वो भारत है जिसके बारे में हमें जानना चाहिए। उस आश्रम की शांति को दिल में समेट कर वापस आ गए मल्लीताल रामगढ़।समय हो चुका था दोपहर का और फिर भूख लग गई थी। ढाबे पर बैठे । उसने ताजी ताजी रोटी खिलाई, शाही पनीर दाल मखनी, चावल जैसे खाना खाकर बाहर को निकले तो देखा कि मौसम में बिल्कुल बदलाव आ गया । बादल घिर आए और बिल्कुल हल्की हल्की बारिश की बूंदे गिरने लगी। वो बारिश नहीं थी , बर्फ की बूँदें थी । पर वह एक-दो मिनट ही पड़ी और बंद हो गई । सामने एक दुकान से तो टोपी और मफ्लर खरीदे। फिर हम पहाड़ी पर निकल गए यहां पर बर्फ पड़ी हुई थी। पिछले साल भी हम यहीं रुकेथे। ये एक प्राइवेट प्रॉपर्टी एरीया है उन्होंने बोला के जाने से पहले बताएं कि कहां जाना है ? तो हमने उसको पता मैं पंकज बता को फोन लगाने लग गया। तो मैं पंकज बत्ता चाचा ही के यहां पर मकान है। स्किओरिटी वाला स्मार् टथा। उसे फोन पर डायल नंबर देखा और बोला आप जाइए। उसने गेट खोल दिया और हम पहाड़ी की चढाउ पर चल पड़े। तो जैसे ही हम आगे पहुंचे तो बच्चे बर्फ देखकर चिल्लाने लगे । मुझे रोजा फिल्म का गाना याद आ गया यह हसीं वादियां
ये खुला आसमां
आ गए हम कहां
बच्चे बर्फ में खेलने लगे। हम भी बच्चों के साथ बच्चे भी बन गए। बर्फ के साथ खेले, फोटो खींची। मैं देख रहा था एक सफेद रंग के घर, और इर्द गिर्द बर्फ, युँ लग रहा था कि जैसे संगमरमर के ताजमहल को बर्फ ने ढक लिया हो। छोटा बेटा वँश बर्फ पर फिसल रहा था उसे देखकर मैं भी फिसललने लगा। फिर वापस चल पडे क्योंकि सर्दियों के कारण छोटे दिन हो जाते हैं और अंधेरा भी जल्दी हो जाता है। फिर पहाड़ी रास्तों वापस होते हुए हम एक जगह पर पहुंचे। उसने बोला कि यहां पर आप स्क्वैश, आचार वगैरा खरीद सकते हैं। वहां से बुरांश का शरबत, आलूबुखारा की चटनी और मिक्स आचार खरीदा। बुरांश का शर्बत हार्ट के लिए बहुत अच्छा होता है और पेट की बीमारियों के लिए भी।उत्तराखंड के लोग इसका बहुत इस्तेमाल करते हैं।ये पहाड़ी फूल है औरर बहुत ही खूबसूरत होता है। वँहा लकडी की आग तापकर हम चल दिए भीमताल। वँहा ऑटो को काटकर बहुत अच्छी सीटें बना रखी थी। साथ में डीजे लगा हुआ था , आग जल रही थी। यहां चाय पी और मैगी खाई। कुछ और लोग भी आए हुए थे। कुछ देर के लिए डांस किया। पत्नी सिमरन ने वहां से ढोल बजाया।
मुझे गीत याद आ गया
ढोल जगीरो दा
वहां से फिर हम चल दिए नीचे भीमताल। रास्ते में अमित ने हमें खीरे का रायता दिलवाया।वो खीरे का बना हुआ था और उसे राई का तड़का लगा हुआ था। अमित ने बताया कि ये खाकर आँख, नाक से पानी आने लगतख है क्योंकि राई बहुत तीखीहोती है।
ऐसे नया साल इतनी यादें देकर चला गया।
फिर मिलूंगा एक है किस्से के साथ ।तब तक के लिए विदा ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
01.01.2020
Tuesday, October 13, 2020
जीना इसी का नाम है
Sunday, October 11, 2020
Osho said not to underline book with pencil
Osho said not to underline book with pen or pencil because he want to say that one will mark iimportant line. When other person will read same book then he will read underline carefully. In this way one person thinking go to another and he will not use his thinking.
He said when we read a book we should read from brain not with heart. As if a holy book of Hindu read by a Muslim he read from brain, but when a Hindu read it , he will read from heart.
A muslim will get good information if he read from brain.
Sunday diaries 11.10.2020
रविवार है तो साइकिलिंग, दोस्त, किस्से कहानियां।
सुबह निकला साईकलिंग को। सूरज देवता निकल चुके थे, मौसम में थोड़ी ठंडक हो गयी है।
साइकिलिंग करने पहुंचा था राजेश सर स्टेडियम के आगे मिले । फिर हमने पैदल एक लंबा चक्कर लगाया, पंछियों की आवाजें सुनीं। चाय के अड्डे पर पहुंचें। शिवशांत पहले से हमारा इंतज़ार कर रहा था। फिर संजीव जी भी गए मिल गए तो हो गई बातें शुरू।
फिर बातें होने लगी मैंनें संजीव जी से कहा कि चींटी के बारे में कुछ ओर जानकारी दें। तो उन्होंने बताया, कि उन्होनें एक प्रोजेक्ट चंडीगढ़ में किया था। उदाहरण के तौर पर जैसे एक आदमी ने हल्लोमाजरा से मनीमाजरा जाना है तो वो सबसे छोटा रास्ता कैसे चुनेगा? उन्होनें कंप्यूटर पर नकली (Virtual) चींटियाँ बनाईं। वो हल्लोमाजरा से मणिमाजरा तक अलग-अलग रूट गईं। अब क्योंकि जिस रास्ते से जा रही थी वह फेरोमोन छोड़ते हुए जा रही थीं। कुछ चींटियाँ गलत दिशा में गई और आगे जाकर रुक गईं । उस डेड प्वाइंट कहा गया। उसके बाद चींटियों का अलग अलग मार्ग था। फिर वो सबसे छोटे से वापिस आईं।
इस तरह उन्होंने सबसे छोटा रास्ता निकाला।
मैंनें पूछा कि मोबाईल को कैसे पता चलता है ये तस्वीर कँहा खींची थी? क्योकिं एक बार मैं चैल,हिमाचल प्रदेश गया था। जब मैंने वँहा तस्वीर खींचीं फोटो फेसबुक पर फोटो डाली तो फेसबुक ने बता दिया किये फोटो चैल की है। उन्होनें बताया फेसबुक से गूगल हमारी लोकेशन लेकर उस तस्वीर का स्थान सेव कर लेता है।
मैंने पूछा, जब हम गूगल पर नेविगेशन डालते हैं रुद्रपुर से दिल्ली जा रहे थे तो वह हमें कैसे बताता है कि इस राह पर कितने घंटे लगेंगे? गूगल हमारे फेसबुक से हमारी लोकेशन ले लेता है। जब भी मोबाइल पर एक ऑप्शन ऑन करते हैं , फेसबुक पर डू यू वांट टू लोकेट युअर लोकेशन तो हम हां लिखते हैं, तो वो हमे हर वक्त लोकेट करता रहता है। उस रोड पर जितने लोग जा रहे हैं उसकी स्पीड से वह आपको बता देता है क्या आपको इतने घंटे लगेंगे। उस रोड पर होने वाले मोबाइलों से आपको यह बताया जाता है कि इस रोड पर इतना स्पीड है।
इस चीज़ को काटने के लिए एक आदमी ने एक ट्राली में 500 मोबाइल डालें और उसको धीरे-धीरे चलने लगा। तो गूगल ने बाकी लोगों को बताया इस रोड पर बहुत भीड़ है। हलांकि वो उस सड़क पर अकेला ही आदमी था। उस आदमी ने इसकी वीडियो बनाई और गूगल को भी भेजी।
संजीव जी ने बताया कि अभी यह डिजिटल फोटोग्राफी है तो डिजिटल फोटोग्राफी 3 रंग से बनती है, रेड, ग्रीन और ब्लू। इसी से सारे रंग बनते हैं।
जब हम स्कैन करते हैं तो कंप्युटर पूछता है, 3 तरीके से आप सेव कर सकते हो, तो वो पूछता ब्लैक एंड वाइट, ग्रे स्केल या कलरड। अब अगर ब्लैक एंड वाइट है तो वह अगर 16 बिट की है तो मतलब 16 अलग-अलग खाने हैं 4 X4 के। तो उसमें एक वाइट कलर का कोड होता है एक ब्लैक। ये दोनों कोड से वो पिक्चर स्टोर करता है। अगर ग्रेस्केल में होती है 2 की पावर 8 मतलब 256 मेगापिक्सल देखकर में बनते हैं। यह वाइट से लेकर ब्लैक तक की रेंज है और उसमें बाकी कलर रंग आते हैं। अगर 112 दिन का है और दूसरा और इस तरीके से रिकॉर्डिंग करके पिक्चर को सेव करता है। यही अगर रंगदार पिक्चर होती हो तो उसमें यह 3 रंग से वह कोडिंग करता है वह भी जीरो से लेकर 256 तक के अलग-अलग कोड हैं। तीनों के अलग-अलग कोड होंगे । उन्होनें दिलचस्प जानकारी दी।
फिर बातें होने लगी सेहत पर। जैसे किसी को पीलिया होता है तो वह किसी पान वाले के पास जाता है तो वो केले में चूना लगा कर देता है तो खाने से ठीक हो जाता है।
कई लोग झाड़-फूंक से ठीक हो जाते हैं तो सवाल उठा वो कैसे? तुम मुझे इमाइल कुए की एक बात याद आई जो ओशो कहते थे। कोई जब बहुत ज्यादा बिमार हो जाता और वैध थक जाते थे दवाई दे देकर तो वो कहते तू इमाइल कुए के पास जा। तो इमाइल कुए उसके कान में एक मंत्र फूकता और कहता था यह मंत्र तुमने किसी को बताना नहीं है नहीं तो इसका असर खत्म हो जाएगा। इमाइल कुए उसके कान में कहते थे कि तुम्हें एक बात निरंतर अपने मन में दोहराओ, कि खाते-पीते, उठते बैठते यही दोहराना है मैं तो स्वस्थ हूं और, ओर स्वस्थ हो रहा हूंँ। इस से
जो सबकॉन्शियस माइंड है जो कि 90% है धीरे-धीरे उसमें यह बात चली जाती थी तो वहां से जब यह चीज़ आती थी कि मैं स्वस्थ हूं। फिर वो जल्दी स्वस्थ हो जाते थे। ये मंत्र झाड़ फूक में भी चलता है, उसके मंत्र से हम अपने सबकॉन्शियस माइंड में निशचित हो जाते हैं कि हम ठीक हो जाएंगे तो हम ठीक हो जाते हैं।
बिमार शरीर से पहले मन में आती है क्योंकि बीमारी पहले हमें मानसिक रूप से पकड़ते हैं। रूस में तो आदमी की ऐसी फोटोग्राफी भी है कि वह आपकी फोटो खींचकर आपको बता सकते हैं आपको कौन सी बिमारी अगले आने वाले म हीनों में हो सकती है। इसीलिए तो बुद्ध कहते हैं कि जैसे तुम सोचते हो वैसे बन जाते हो।
एक बात अच्छी बात हुई थी हमारा कोई ऐसा दोस्त होना चाहिए जिससे हम खुलकर बात कर सकें बिना किसी मुखोटे के। युं हम हर वक्त एक मुखौटा पहनकर रखते हैं, अपनी पत्नी के सामने पति होने का, बच्चों के सामने पिता होने का और बाहर काम करते हुए बॉस होने का। जब कभी अपने सच्चे दोस्त से कहीं मिलते हैं तो वही हमारा असली रूप होता है, उस वक्त हम बिना किसी मुखौटे के होते हैं।
जिंदगी के कई विषयों पर बातें हुईं। फिर हम चल दिये घर को।
फिर मिलेंगे एक नया किस्सा लेकर।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
11.10.2020
#rudarpur_cycling_club
#rudarpur
#purhiran
#rajneesh_jass
Friday, October 9, 2020
Stress Free Life Part 2 (Hindi)
कल मैं अपने दोस्त की फेसबुक वॉल देख रहा था तो एक विचार देखा जो कि मेरे दिल को भा गया।
" मेरे ख्याल में स्कूल में अनिवार्य विषय होना चाहिए जिसमें डिप्रेशन,उदासी ,सिजोफ्रेनिया, गलत खाने के शरीर पर दुष्प्रभाव इत्यादि बीमारियों के बारे में बताया जाना चाहिए।
बच्चों में दूसरे के गुणों को देखकर उनको गुणों को अपने जीवन में उतारने और खुद की मदद करने की क्षमता पैदा करनी चाहिए।"
अमेरिका में हर तीसरा आदमी मानसिक रोगी है और हर 11 मिनट का दुनिया में एक आत्महत्या का केस आगे आ रहा है, जोकि बहुत दुखद है।
आईए निराशा में आशा का दीप जलाती एक जीवन गाथा देखें।
हमारे देश के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जब साउथ से यहां पर देहरादून में एनडीए की परीक्षा देने आए तो उसने वह पास नहीं हो सके। ऋषिकेश में गंगा के किनारे बड़े उदासीन घूम रहे थे। उस वक्त एक संत ने उनको देखा और पूछा बैठे क्यों उदास हो? तो उन्होंने बताया कि मैं अपनी भुआ के गहने गिरवी रखकर या एनडीए की परीक्षा में आया था। मुझे पूरी उम्मीद थी कि उसके पास हो जाऊंगा पर अब में फेल हो गया हूं। अब मुझे जीवन में आगे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा।
तो उन संत ने कहा, बेटा अगर तुम एनडीए की
परीक्षा पास नहीं हुए तो हो सकता है कि तुम तुम्हारा जीवन किसी और बड़े लक्ष्य के लिए पैदा हुआ हो। वो कलाम जी को अपने आश्रम में लेकर गए, खाना खिलाया और रात को ठहराया। ट्रेन की टिकट बुक कराई और फिर वापस भेजा।अब हम सब जानते हैं कलाम जी कितनी ऊंचाई तक पहुंचे?
हम अपने बच्चों को कई बार इतना मजबूर करते हैं कि देखो पडोसियों का बच्चा 95% नंबर लाया है तुम 96% लेकर आओ। कई बार हम उनको बुरा भला भी कहते हैं। कई बार उनके मन में कसक बैठ जाती है, फिर वो बडे होकर मां बाप और समाज से बदला लेते हैं।
अगर किसी आदमी को लगातार उदासी रहती है तो होम्योपैथिक दवाई का सेवन करके उसे बाहर आ सकता है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत में बांसुरी वादन, सितार वादन, संतूर वादन सुनकर मानसिक रोगों से मुक्ति मिल सकती है।
अक्युप्रैशर भी एक अच्छा साधन है ,इससे निजात दिलाने के लिए।
आधुनिक होने की दौड़ में हमारी नींद भी कम हो गयी है। पहले वो 8 से 9 घंटे होती है उसके से घटकर 6 से 7 घंटे हो गई है। जिसके कारण भी आदमी मानसिक तौर पर परेशान करने लग गया है ।
जैसे कि कहा जाता है कि कुदरत ने हमें यह शरीर दिया है जो एक कार की तरह है जिसमें पांच गियर हैं। पर हम इसमें पहले गियर का ही इस्तेमाल करते हैं जिसमें रोटी कपड़ा और मकान आता है। बस इसी में हमारा जीवन समाप्त हो जाता है। हम जीवन के और पहलू तो देख ही नहीं पाते।
मैं एक आदमी को जानता हूं जो के एक सरकारी टीचर था। नौकरी करते करते उसने एक प्राइवेट कंपनी में फाइनेंस का काम करना शुरू किया। अपने बेटे और बेटी को अच्छा पढ़ाया लिखाया । सरकारी टूर बनाकर वो स्कूल से फरार रहता। उसने खूब कमाई की। बेटा और बेटी दोनों की शादियां की। फिर दोनों का तलाक हो गया। फिर दोबारा उन दोनों की शादियां करवाई। अब वह बुढ़ापे में है और मानसिक रोगी बन चुके हैं।
उन्होनें पूरा जीवन तैयारी में ही लगा दिया जिया तो है ही नहीं। रेत मुट्ठी से गिर गई।
आप भी अपने इर्द-गिर्द ऐसे बहुत सारे लोगों को देख सकते हैं। जो लोग बूढ़े होते हैं जब उनको दिखाई देने लग जाता है इसे मौत बहुत करीब आ गई हो तो ओशो कहते हैं कि वह सारे लोग सिर्फ मंदिर और मस्जिदों में जाना शुरू कर देते हैं। ये लोग इसलिए मंदिर नहीं जाते ये आस्तिक हैं बल्कि लोग डर के कारण मंदिर जाते हैं ।
पिताजी गुरबख्श जस के एक दोस्त हैं शिवजिंदर केदार वो आजकल ऑस्ट्रेलिया में हैं। 70 साल की उम्र में भी अभी पेड़ लगा रहे हो, जिंदगी को भरपूर जी रहे हैं ।जब मैं कभी निराश होता तो मुझे हौंसला देते हैं।
होमोपैथी भी उन्हीं से सीखा हूँ और पेड़ लगाने का शौक है मेरे को उन्हीं मिला है।
जो लोग हमको छोड़कर चले गए उनके लिए पूरी उम्र रोना भी कोई सही नहीं है। आइंस्टाइन कहते हैं कि हम सब एक ऊर्जा हैं और ऊर्जा ना कभी पैदा होती है ना आप उसको खत्म कर सकते हो बस उसका एक से दूसरा रूप बदलता रहता है।गीता में भी यही लिखा है कि ना तो आत्मा मरती है ना जन्मती की है वह हमेशा रहती है। उसमें रूप बदलते रहते हैं, जो लोग चले गए वह किसी न किसी रूप में संसार में हमेशा बने रहते हैं।
हमने भी अपना एक दिन यह रूप बदल लेना है। पता नहीं कुदरत कौन से रूप में डालें ।
जीवन में कभी ना कामयाब हो जाएं तो हौंसला करके दोबारा को शुरुआत करें और सोचें कि मैं अपने आपको आगे लेकर ही जाएगा।
हरिवंशराय बच्चन कहते हैं
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
फिर मिलूंगा एक नहये किस्से के साथ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
#stress_free_life
#stress_free_life_part_2
#stressfree
Thursday, October 8, 2020
Stress free life part 2
ਕਲ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਇਕ ਦੋਸਤ ਦੀ ਫੇਸਬੁੱਕ ਵਾਲ ਦੇਖ ਰਿਹਾ ਸੀ ਤਾਂ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਦਿਲ ਨੂੰ ਟੁੰਬ ਗਿਆ।
"ਮੇਰੇ ਖ਼ਿਆਲ ਵਿਚ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਮਾਨਸਿਕ ਤੰਦਰੁਸਤੀ ਇਕ ਲਾਜ਼ਮੀ ਵਿਸ਼ਾ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਡਿਪਰੈਸ਼ਨ, ਉਦਾਸੀ ,ਸੀਜ਼ੋਫ਼ਰੇਨੀਆ, ਵੱਧ ਖਾਣ ਨਾਲ ਸ਼ਰੀਰ ਤੇ ਪ੍ਭਾਵ ਬਾਰੇ ਤੇ ਹੋਰ ਦਿਮਾਗੀ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਬੱਚਿਆਂ ਵਿਚ ਦੂਜੇ ਦੇ ਚੰਗੇ ਗੁਨਾਂ ਨੂੰ ਅਪਨਾਉਣ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਤੇ ਆਪਣੀ ਮਦਦ ਕਰਨੀ ਵੀ ਆਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ।"
ਅਮਰੀਕਾ ਚ ਹਰ ਤੀਜਾ ਬੰਦਾ ਡਿਪਰੈਸ਼ਨ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੈ । ਹਰ 11 ਮਿਨਟ ਵਿਚ ਇਕ ਬੰਦਾ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਜੋ ਕਿ ਬਹੁਤ ਦੁਖਦ ਹੈ।
ਸਾਨੂੰ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਇਹ ਵੀ ਸਿਖਾਉਣਾ ਪਵੇਗਾ ਜੇ ਕਿਤੇ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਚ ਕਦੇ ਉਹ ਫੇਲ ਵੀ ਹੋ ਜਾਣ ਤਾਂ ਉਸ ਹਾਰ ਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ , ਫਿਰ ਹਿਮੰਤ ਕਰਕੇ ਦੁਬਾਰਾ ਜੁਟ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਹਰਿੰਵੰਸ਼ਰਾਏ ਬਚਨ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ
ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਨੇ ਵਾਲੋਂ ਕੀ ਕਭੀ ਹਾਰ ਨਹੀਂ ਹੋਤੀ
ਅਬਦੁਲ ਕਲਾਮ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਭੂਤਪੂਰਵ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਜਦੋਂ ਦੇਹਰਾਦੂਨ ਐਨ ਡੀ ਏ ਦਾ ਇਮਤਿਹਾਨ ਲਈ ਗਏ ਤਾਂ ਉਹ ਪਾਸ ਨਾ ਹੋ ਸਕੇ। ਘਰੋਂ ਆਪਣੀ ਭੂਆ ਦੇ ਗਹਿਣੇ ਗਿਰਵੀ ਰੱਖਕੇ ਸਾਊਥ ਤੋਂ ਇਥੇ ਆਏ ਸਨ। ਉਹ ਰਿਸ਼ੀਕੇਸ਼ ਗੰਗਾ ਨਦੀ ਦੇ ਕਿਨਾਰੇ ਬਹੁਤ ਦੁਖੀ ਘੁੰਮ ਰਹੇ ਸਨ। ਇਕ ਆਸ਼ਰਮ ਦੇ ਸੰਤ ਨੇ ਵੇਖਿਆ ਤੇ ਕਿਹਾ ਬੇਟਾ ਕੀ ਗੱਲ? ਤਾਂ ਅਬਦੁਲ ਕਲਾਮ ਨੇ ਸਾਰੀ ਵਿਥਿਆ ਦੱਸੀ। ਤਾਂ ਉਸ ਸੰਤ ਨੇ ਕਿਹਾ ਬੇਟਾ, ਜੇ ਤੇਰਾ ਦਾਖਿਲਾ ਐਨ ਡੀ ਏ ਚ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਤੇਰਾ ਜਨਮ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਵੱਡੇ ਮਿਸ਼ਨ ਕਰਕੇ ਹੋਇਆ ਹੋਵੇ? ਕੀ ਹੋਇਆ ਜੇ ਤੈਂਨੂੰ ਇਥੇ ਦਾਖਲਾ ਨਹੀਂ ਮਿਲਿਆ? ਫਿਰ ਓਹਨਾ ਨੇ ਕਲਾਮ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਆਸ਼ਰਮ ਚ ਲੈ ਗਏ ,ਖਾਣਾ ਖਿਲਾਇਆ ਰਾਤ ਆਪਣੇ ਆਸ਼ਰਮ ਚ ਠਹਿਰਾਇਆ। ਉਸ ਪਿੱਛੋਂ ਓਹਨਾ ਕਲਾਮ ਸਾਬ ਦੀ ਦੀ ਸ਼ਾਇਦ ਟਿਕਟ ਵੀ ਕਰਾਈ ਤੇ ਘਰ ਲਾਈ ਰਵਾਨਾ ਕੀਤਾ।
ਅਸੀਂ ਕਈ ਵਾਰ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਤੇ ਇੰਨਾ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦੇ ਹਾਂ ਤੂੰ 95 % ਨੰਬਰ ਲੈਕੇ ਆ ਉਹ ਡਿਪਰੈਸ਼ਨ ਚ ਚਲੇ ਜਾਂਦੇ ਨੇ ਤੇ ਫਿਰ ਵੱਡੇ ਹੋਕੇ ਉਹ ਆਪਣਾ ਗੁੱਸਾ ਦੁਨੀਆਂ ਤੇ ਕੱਢਦੇ ਨੇ।
ਇਸ ਵਿਸ਼ੇ ਤੇ ਸਾਨੂੰ ਵਿਸਥਾਰ ਚ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਟੈਕਨੋਲੋਜੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਨਾਲ ਇਹ ਡਿਪ੍ਵੀਰੈਸ਼ਨ ਆਮ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਜੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਲਗਾਤਾਰ ਉਦਾਸੀ ਰਹੇ ਤਾਂ ਉਸ ਲਈ ਹੋਮਿਓਪੈਥੀ ਚ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਦਵਾਈਆਂ ਨੇ।
ਭਾਰਤੀ ਕਲਾਸੀਕਲ ਸੰਗੀਤ ਜਿਵੇ ਬਾਂਸੁਰੀ ਵਾਦਨ, ਸਿਤਾਰ, ਸੰਤੂਰ ਆਦਿ ਦੇ ਰਾਗ ਸੁਣਕੇ ਵੀ ਅਸੀਂ ਮਾਨਸਿਕ ਰੋਗਾਂ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਾਂ
ਅਕਉਪ੍ਰੈਸਸ਼ਰ ਰਾਹੀਂ ਵੀ ਅਸੀਂ ਚੰਗੀ ਰਾਹਤ ਪਾ ਸਕਦੇ ਹਾਂ।
ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਨੀਂਦ ਵੀ ਘਟਾ ਲਈ ਹੈ। ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ 8 ਤੋਂ 9 ਘੰਟੇ ਸੀ ਜੋ ਘਟਕੇ 6 ਤੋਂ 7 ਘੰਟੇ ਹੀ ਰਹਿ ਗਈ ਹੈ। ਖਾਣਾ ਜ਼ਿਆਦਾ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ, ਸ਼ਰੀਰਿਕ ਕੰਮ ਬਿਲਕੁਲ ਘੱਟ ਨੇ, ਇਹ ਸਭ ਮਿਲਕੇ ਵੀ ਸਾਨੂ ਨਿਰਾਸ਼ਾ ਵੱਲ ਲੈਕੇ ਜਾਂਦੇ ਨੇ।
ਜਿਵੇਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕੁਦਰਤ ਨੇ ਸਾਨੂੰ ਇਹ ਸ਼ਰੀਰ ਕਿਸੇ ਕਾਰ ਵਾਂਗ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਜਿਸਦੇ 5 ਗਿਅਰ ਨੇ। ਪਰ ਅਸੀਂ ਪਹਿਲੇ ਗਿਅਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਗੱਡੀ ਭਜਾਈ ਫਿਰਦੇ ਹਾਂ , ਉਹ ਹੈ ਜਿਵੇ ਰੋਟੀ, ਕੱਪੜਾ ਤੇ ਮਕਾਨ। ਇਸ ਲਈ ਅਸੀਂ ਸਾਰਾ ਜੀਵਨ ਦਾਅ ਤੇ ਲਾ ਦਿੰਦੇ ਹਾਂ। ਬਾਕੀ ਜੀਵਨ ਦੇ ਕੀ ਰੰਗ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਾਨੂੰ ਪਤਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਲੱਗਦਾ।
ਜਿਵੇਂ ਮੈਂ ਇਕ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਜਾਣਦਾ ਹਾਂ ਓਹ ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲ ਚ ਅਧਿਆਪਕ ਸਨ । ਨੌਕਰੀ ਕਰਦੇ ਕਰਦੇ ਉਹ ਇਕ ਪ੍ਰਾਈਵੇਟ ਕੰਪਨੀ ਦਾ ਫਾਇਨਾਂਸ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲੱਗੇ। ਫਿਰ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਆਦਤ ਹੀ ਬਣ ਗਈ। ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲ ਸੀ ਫਰਲੋ ਮਾਰਕੇ ਆ ਸਰਕਾਰੀ ਟੂਰ ਪਾ ਕੇ ਖੂਬ ਪੈਸਾ ਕਮਾਇਆ। ਫਿਰ ਮੁੰਡੇ ਨੂੰ ਵਧੀਆ ਡਿਗਰੀ ਕਾਰਵਾਈ, ਕੁੜੀ ਨੂੰ ਵੀ ਚੰਗਾ ਪਡਾਇਆ। ਫਿਰ ਦੋਹਾਂ ਦਾ ਵਿਆਹ ਕੀਤਾ। ਦੋਹਾਂ ਦਾ ਤਲਾਕ ਹੋ ਗਿਆ, ਫਿਰ ਦੋਹਾਂ ਦਾ ਦੋਬਾਰਾ ਵਿਆਹ ਕੀਤਾ। ਇਹ ਸਭ ਕਰਦੇ ਕਰਦੇ ਉਹ ਡਿਪਰੈਸ਼ਨ ਦੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਗਏ। ਹੁਣ ਰਿਟਾਇਰ ਹੀ ਗਏ ਨੇ ਪਰ ਸਾਰਾ ਜੀਵਨ ਸਾਰਾ ਬੀਤ ਗਿਆ। ਰੇਤ ਵਾਂਗ ਕਿਰ ਗਿਆ ਸਭ।
ਤੁਸੀਂ ਵੀ ਆਪਣੇ ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਅਜਿਹੇ ਇਨਸਾਨ ਵੇਖ ਸਕਦੇ ਹੋ, ਜੋ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਜਿਉਣ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਚ ਲੱਗੇ ਰਹਿੰਦੇ ਨੇ ਤੇ ਸਾਰੀ ਉਮਰ ਤਿਆਰੀ ਚ ਕੱਢ ਦਿੰਦੇ ਨੇ ਤੇ ਆਖਰ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਵਿਦਾ ਕਹਿਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਬੁੱਢੇ ਲੋਕ ਮੌਤ ਦੋ ਡਰ
ਦੇ ਮਾਰੇ ਰੱਬ ਦਾ ਨਾਮ ਜਪਣ ਲੱਗਦੇ ਨੇ। ਓਸ਼ੋ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਇਹ ਨਾਸਤਿਕ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਮੌਤ ਦੇ ਡਰ ਤ ਕਰਕੇ ਮਾਲਾ ਜਪ ਰਹੇ ਨੇ।
ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਗੁਰਬਖਸ਼ ਜੱਸ ਦੇ ਮਿੱਤਰ ਨੇ , ਸ਼ਿਵਜਿੰਦਰ ਕੇਦਾਰ। ਉਹ ਨੇ ਉਹ ਸਾਰੀ ਉਮਰ ਆਨੰਦ ਚ ਰਹੇ ਨੇ। ਮੈਂ ਜਦ ਨਿਰਾਸ਼ ਹੋਣਾ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਮੈਨੂੰ ਹੌਂਸਲਾ ਦੇਣਾ।ਓਹਨਾ ਕੋਲੋਂ ਮੈਂ ਹੋਮਿਓਪੈਥੀ ਸਿਖਿਆ। ਓਹਨਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਅੱਜ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਜਿਓ । ਜੇ ਕਿਸੇ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹੋ ਤਾਂ ਕਰੋ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਫਿਰ ਤੁਹਾਡੇ ਲਈ ਕਾਰਗਾਰ ਹੋਵੇਗੀ ।
ਅੱਜਕਲ ਆਸਟ੍ਰੇਲੀਆ ਨੇ 70 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਚ ਬੂਟੇ ਲੈ ਰਹੇ ਨੇ, ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਜਸ਼ਨ ਮਾਨ ਰਹੇ ਨੇ। ਬੂਟੇ ਲਾਉਣ ਦਾ ਸ਼ੌਕ ਮੈਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਤੋਂ ਪਿਆ ।
ਜੋ ਲੋਕ ਸਾਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਚਲੇ ਗਏ ਨੇ ਓਹਨਾ ਲਈ ਸਰੀ ਉਮਰ ਰੋਣਾ ਵੀ ਦੇਹ ਨੂੰ ਰੋਗ ਲਾਉਣਾ ਹੈ। ਆਇੰਸਟਾਈਨ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਊਰਜਾ ਕਦੇ ਪੈਦਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਤਬਾਹ, ਪਰ ਇਹ ਬੱਸ ਆਪਣਾ ਰੂਪ ਬਦਲਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ। ਗੀਤਾ ਵੀ ਇਹੀ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ ਨਾ ਆਤਮਾ ਜੰਮਦੀ ਹੈ ਨਾ ਮਰਦੀ ਹੈ , ਇਹ ਆਪਣਾ ਰੂਪ ਬਦਲਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ।
ਅਸੀਂ ਵੀ ਇਕ ਦਿਨ ਇਹ ਰੂਪ ਬਦਲ ਲੈਣਾ ਹੈ।
ਸੋ ਜੀਵਨ ਚ ਨਾਕਾਮਯਾਬ ਹੋਵੋ ਤਾਂ ਨਿਰਾਸ਼ ਹੋਕੇ ਬੈਠਣ ਨਾਲੋਂ ਉਸਦਾ ਹੱਲ ਕਰੋ
ਫਿਰ ਮਿਲਾਂਗੇ ਇਕ ਹੋਰ ਕਿੱਸਾ ਲੈਕੇ।
ਆਪਦਾ ਆਪਣਾ
ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ
ਉਤਤਰਾਖੰਡ
ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰਹੀਰਾਂ, ਹਸ਼ਿਆਰਪੁਰ
ਪੰਜਾਬ
08.10.2020
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