Wednesday, October 14, 2020

Journey to Ramgarh Uttrakhand

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#incredible_uttrakhand

इस साल 1 जनवरी 2020 को घूमने का प्लान बनाया।एक ड्राइवर अमित को बुलाया। वह सुबह पहुंच गया, काला कुर्ता पजामा , मूछों वाला आदमी ।हम तैयार होके अपना सामान लेकर बैठे गाड़ी में और निकल दिए सफर पर। वैसे तो मैं बहुत बातूनी हूं पर रास्ते में चलते हुए लोगों से को सुनता ज्यादा हूँ । जैसे कि दलाई लामा ने कहा है कि जब आप बोलते हो तो आप पुरानी जिंदगी को दोहराते हो, पर जब आप किसी को सुनते हो तो कुछ नया सीखने को मिलता है।

 गाड़ी से नैनीताल रोड पर हल्द्वानी की तरफ चल पड़े और अमित ने अपनी बातें शुरू की। रास्ते में टाडा जंगल आता है तो वहां पर एक पकोड़े की दुकान है वही पुराना छप्पर है वहां पर लोग चाय के साथ पकौड़ी खाने जाते हैं। पर हम वहां से आगे निकल दिए क्योंकि हमें कहीं सफर पर जाना था।  सफर कुछ ऐसा नहीं था कि कहां जाना है, सिर्फ रामगढ़ तक जाना था  कहीं रास्ते में बर्फ मिल जाए वही रूक जाना था। अमित ने अपनी बातें शुरू कीं। वो पाँच भाई और तीन बहने थी। मां और बाप छोटे होते ही चल बसे। बड़े भाई ने उसको तरावड़ी में एक मिल में काम करने को कहा।  फिर कुछ ऐसा हुआ कि बड़े भाई ने बोला तुम्हारा मेरा रिश्ता खत्म हो और वहां से वह दिल्ली आ गया। फिर वहां पर आकर मेहनत की और पीतमपुरा के पास छप्पर बनाकर रहने लगा। वहां पर भी एक बार किसी सीवरेज़ का खड्डा खोद रहे थे तो वहां ऊपर की बिजली की तारें थी, जिसके कारण करंट लग और फिर वहां से उसको जगह छोड़नी पड़ी।  फिर वह निकल गया रुद्रपुर की तरफ क्योंकि उसको पहाड़ देखने का बहुत शौक था। फिर उस इनकी टैक्सी चलानी शुरू की और किसी को पैसे जमा कराने शुरू कर दिए ।जब थोड़े पैसे जमा हो गए तो जिनको वह पैसे दे रहा था किसी ने कहा कि घर में चोरी हो गई है सारे पैसे चोरी हो गए हैं।( वह अपनी कहानी सुनाता जा रहा था और गाड़ी हल्द्वानी की तरह बढ़ती जा रही थी।)

 फिर धीरे-धीरे उसने मेहनत करके एक कार खरीदी।  अब वह लगभग हर रोज एक चक्कर दिल्ली का लगाता है। उसके तीन बच्चे हैं, पत्नी है। घर में छोटा कुत्ता है। घर से फोन आया था उन्होंने बताया कि कुत्ते को ठंड लग गई है तो उसने कुछ उसका इलाज बता रहा था। हल्द्वानी पहुंचे तो वहां पर रास्ते में चलते हुए एक भी एक रेहडी देखें उस पर बहुत बड़े-बड़े  अमरूद  थे। एक  किलो अमरूद लिए तो सिर्फ दो ही आए। हमने रेहडी वाले से कटवा के नमक लगवा लिया। उसने बीज बहुत कम थे एक हिस्सा अमित को दिया खुद खाया।हमारी कर काठगोदाम की तरफ बढ़ गई । काठगोदाम का रेलवे स्टेशन बहुत खूबसूरत है। ये यँहा का आखिरी रेलवे स्टेशन है।    चलते चलते उसने रामायण, महाभारत के सारे लोगों के बारे में बताया। जैसे मुझसे पूछने लगा कि रावण की ससुराल कहां है?  तो मैंने कहा, कहीं पता नहीं। तो बोला नोएडा।


 अमित बता रहा था कि आज भी जब कभी वो तरावडी (हरियाणा) जाता है तो उसी चावल की फैक्ट्री में जाकर लोगों से बातें करता है, यँहा बचपन में उसने मेजदूरी की थी।

 खेलों के बारे में और वह सारी चीजों के बारे में बात करता रहा और गाड़ी हमारी भीमताल की तरफ बढ़ने लगी। भीमताल खूबसूरत जगह है। हम पहले भी वहां पर गए हैं। भीमताल की झील  के ऊपर सामने कोठी है यहां पर एक फिल्म की शूटिंग हुई थी, कोई मिल गया।

  पहाड़ियों के घुमावदार रास्तों से होते हुए गाड़ी आगे बढ़ रहे थे । अमित एक अच्छा ड्राइवर है उसने हमें महसूस ही नहीं होने दिया कि हम पहाड़ी इलाके पर हैं । पिछली बार हम एक बार अल्मोड़ा गए तो एक कंबख्त ड्राइवर  मिला वो पहाडी मोड़  पर इतनी तेजी से गाड़ी घुमाता था कि बच्चों को चक्कर आ गए। हम इस बार डर रहे थे कि बच्चे सही रहें। अच्छे ड्राइवर की यही पहचान होती है शायद उसने भांप लिया था कि यह डर रहे हैं, उसने अपनी बातों में लगाकर उसने सफर को ओर रोचक बना दिया था । इर्द-गिर्द चीड़ के पेड़ों पेड़ों से गुजरती हुई कार रास्ते में उसने एक जगह पर दिखाया के सामने नैनीताल दिखाई दे रहा था। ये बहुत ही खूबसूरत नजारा था । रास्ते में एक रेस्टोरेंट देखा जिसमें अलग अलग रंग के कमरे बने हुए थे।  


 यह देख कर मुझे डॉक्टर लोक राज  की फेसबुक पर लोड की हुई वेनिस शहर की तस्वीर में याद आ गई। वेनिस शहर पूरा अलग-अलग रंगों के घरों के लिए मशहूर है। यह शहर पूरा एक नदी से जुड़ा हुआ है । घरों का रंग अलग-अलग इसलिए किया जाता था कि शाम को जब मछुआरे अपने घर वापस आए तो उनके अपने घरों की पहचान हो जाए। ये रंग भी बहुत चटकीले होते हैं।


 रास्ते में एक दुकान पर रुके और वहां पर चाय पी। स्टील के गिलास में चाय पी कर मजा आ गया । स्टील के गिलास का एक फायदा ये भी रहता है कि चाय जल्दी ठंडी नहीं होती और आप हाथ  ताप लेते हो। ये वही दुकान थी यँहा पिछले साल जिस दुकान पर रुक कर हम चाय पी कर गए थे।


गाड़ी रामगढ़ पहुंच गई । रामगढ़ नैनीताल डिस्ट्रिक्ट में 1518 मीटर की ऊंचाई पर है । यहां पर रविंद्र नाथ टैगोर ने अपना आश्रम बनाया हुआ है। जब मौसम साफ हो तो यहां से हिमालय का दृश्य बहुत ही अच्छा दिखाई देता है।


हमने देखा पहाड़ों पर बर्फ जम हुई थी। हमारी मुराद  पूरी हो गई । फिर फिर हम आगे अरविंदो आश्रम के लिए निकल गये। मैं चाहता था कि बच्चों को उसके बारे में बताया जाए। पिछले साल मैं अपने दोस्तों के  इसी रास्ते से आया था। 


 मेरे एक घुमक्कड़ गुरु है रूबी बडियाल। वह पति पत्नी कनाडा में रहे और उन्होंने पूरा उत्तराखंड राज्य और हिमाचल टेंटो पर घूमा और लगभग पूरा भारत ही घूम चुके हैं ।वह कहते हैं कि साल में दो टूर लगाने चाहिए, एक अपने  परिवार के साथ और एक अपने दोस्तों के साथ। दोनों आपको आंतरिक खुशी देते है। वो बहुत दिलचस्प आदमी हैं, कभी अलग से उनके बारे में लिखूँगा।


  गूगल बाबा का सहयोग से स्वामी ओरविंदो आश्रम की डेस्टिनेशन डाल दी।  घुमावदार रास्तों से होते हुए रामगढ़ से लिंक रोड पर निकले ।   मेरे एक घुमक्कड़ गुरु है रूबी बाजार वह पति पत्नी कनाडा में रहे और उन्होंने पूरा उत्तराखंड राज्य और हिमाचल टेंट पर घुमा और लगभग पूरा भारत ही घूम चुके हैं वह कहते हैं कि साल में दूर-दूर लगाने चाहिए कंपनी परिवार के साथ और एक अपने दोस्तों के साथ ।


तल्लीताल कहा जाता है, जो नीचे है, मल्लीताल का मतलब होता है ऊपर वाला हिस्सा। तल्लीताल  रामगढ़ से होते हुए फिर आगे एक गांव में पहुंचे और वहां पर स्वामी अरविंदो के आश्रम में तस्वीरें खींची । यहां पर लोग मेडिटेशन करते हैं। वहां पर कुछ देर के लिए बैठे ।

इस बार में दोबारा बता देता हूं कि स्वामी अरविंदो को उनके के पिताजी ने छोटे होते इंग्लैंड भिजवा दिया और उनको कहा गया कि उन्हें ये ना बताया जाए उनका धर्म, देश या जाति क्या है ? उनकी शिक्षा दीक्षा वँही हुई। पीछे से उनके पिताजी की मृत्यु हो गई , पर उन्होने  मना किया कि जब तक उसकी शिक्षा-दीक्षा पूरी हो जाती कि ओरविंदो को ना बताया जाए।

वो भारत में वापस आए तो एक अध्यात्मिक गुरू बनकर। उन्होंने अपना आश्रम पांडिचेरी में बनाया। यहां पर आज 21 देशों के लगभग 5000 लोग रहते हैं और बिना पैसे के काम करते हैं । वह एक अलग से ही शहर है। यहां पर 11 लोग उसको चलाते हैं ।लोग काम करते हैं, मेडिटेशन करते हैं ।वहां पर कोई मूर्ति नहीं है। ये वो भारत है जिसके बारे में हमें जानना चाहिए। उस आश्रम की शांति को दिल में समेट कर वापस आ गए मल्लीताल  रामगढ़।समय हो चुका था दोपहर का और फिर भूख लग गई थी।  ढाबे पर बैठे । उसने ताजी ताजी रोटी खिलाई, शाही पनीर दाल मखनी, चावल जैसे खाना खाकर बाहर को निकले तो देखा कि मौसम में बिल्कुल बदलाव आ गया । बादल घिर आए और बिल्कुल हल्की हल्की बारिश की बूंदे गिरने लगी। वो बारिश नहीं थी , बर्फ की  बूँदें थी । पर वह एक-दो मिनट ही पड़ी और बंद हो गई । सामने एक दुकान से तो टोपी और मफ्लर खरीदे। फिर हम पहाड़ी  पर निकल गए यहां पर बर्फ पड़ी हुई थी। पिछले साल भी हम यहीं रुकेथे। ये  एक प्राइवेट प्रॉपर्टी एरीया है उन्होंने बोला के जाने से पहले बताएं कि कहां जाना है ? तो हमने उसको पता मैं पंकज बता को फोन लगाने लग गया।  तो मैं पंकज बत्ता चाचा ही के यहां पर मकान है। स्किओरिटी वाला स्मार् टथा। उसे फोन पर डायल नंबर देखा और बोला  आप जाइए। उसने गेट खोल दिया और हम पहाड़ी की चढाउ पर  चल पड़े। तो जैसे ही हम आगे पहुंचे तो बच्चे बर्फ देखकर चिल्लाने लगे । मुझे रोजा फिल्म का गाना याद आ गया यह हसीं वादियां

 ये खुला आसमां 

आ गए हम कहां 


बच्चे बर्फ में खेलने लगे। हम भी बच्चों के साथ बच्चे भी बन  गए। बर्फ के साथ खेले, फोटो खींची। मैं देख रहा था एक सफेद रंग के घर,   और इर्द गिर्द बर्फ, युँ लग रहा था कि जैसे संगमरमर  के ताजमहल को बर्फ ने ढक  लिया हो।  छोटा  बेटा वँश बर्फ पर फिसल रहा था  उसे देखकर मैं भी फिसललने लगा। फिर  वापस चल पडे  क्योंकि सर्दियों के कारण छोटे दिन हो जाते हैं और अंधेरा भी जल्दी हो जाता है। फिर पहाड़ी रास्तों वापस होते हुए हम एक जगह पर पहुंचे। उसने बोला कि यहां पर आप स्क्वैश, आचार वगैरा खरीद सकते हैं।  वहां से बुरांश का शरबत,  आलूबुखारा की चटनी और मिक्स आचार खरीदा। बुरांश का शर्बत हार्ट के लिए बहुत अच्छा होता है और पेट की बीमारियों के लिए भी।उत्तराखंड के लोग इसका बहुत इस्तेमाल करते हैं।ये पहाड़ी फूल है औरर बहुत ही खूबसूरत  होता है। वँहा लकडी की आग तापकर हम चल दिए भीमताल। वँहा ऑटो को काटकर बहुत अच्छी सीटें बना रखी थी। साथ में डीजे लगा हुआ था , आग जल रही थी। यहां  चाय पी और मैगी खाई। कुछ और लोग भी आए हुए थे। कुछ देर  के लिए डांस किया। पत्नी सिमरन ने वहां से ढोल  बजाया।

मुझे गीत याद आ गया

ढोल जगीरो दा


 वहां से फिर हम चल दिए नीचे भीमताल। रास्ते में अमित ने हमें खीरे का रायता दिलवाया।वो खीरे का बना हुआ था और उसे राई का तड़का लगा हुआ था। अमित ने बताया कि ये खाकर आँख, नाक से पानी आने लगतख है क्योंकि राई बहुत तीखीहोती है।

 ऐसे नया साल इतनी यादें देकर चला गया।

 फिर मिलूंगा एक है किस्से के साथ ।तब तक के लिए विदा ।

आपका अपना 

रजनीश जस

रूद्रपुर

उत्तराखंड

01.01.2020

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