Friday, October 23, 2020

बुक हीलिंग (किताबों द्वारा इलाज)

 
बुक हीलिंग
बुक हीलिंग मैंने यह शब्द इज़ाद किया है , हो सकता है इस से पहले भी किसी ने इसका उपयोग किया हो पर वो मेरा विषय नहीं है

 मैंने ये इसलिए लिखा कि अच्छे साहित्य में (किताबों में) इतनी ताकत होती है कि वह हमारा बिमारी में भी इलाज करने की क्षमता रखती हैं।
मुझे जब कभी भी निराशा ने घेरा, तब किताबों ने  बाहर निकाला है।
वह किताबें हैं
1- महात्मा बुद्ध की एस धम्मो सनंतानो ( बुद्ध के प्रवचनों की ओशो द्वारा व्याख्या)
2- रांडा बर्न की किता रहस्य
3- हरमन हैस का नावल सिद्धार्थ
4- एक ओंकार सतनाम (जपुजी साहिब की ओशो द्वारा व्याख्या)

 किताब महज़ सफेद कागज़ पर  काले अक्षर नहीं होतीं, बल्कि वो जुगनू होते हैं जो हमें तब रोशनी देते हैं जब हम घोर निराशा के जंगल में कहीं खो जाते हैं।कई बार तो किताबों में इतनी ताकत देती है कि जब हम अज्ञानता के दलदल में धसे होते हैं तो हमें बाज़ु पकड़ कर बाहर निकाल देती हैं। 

मैं ये बात जंग बहादुर गोयल जी से कर रहा था तो ये बात उन्हें बहु अच्छी लगी।

उनसे ये बात भी हुई कि एक बार वो बहुत बिमार हुए तो चलने फिरने में  बहुत मुश्किल महसूस करने लगे। उन्होनें कई जगह इलाज कराया पर कोई फर्क नहीं पड़ा। फिर उनके भतीजे ने उनको दिखाई दी और वह तंदुरुस्त हो गये।  उनको किताबों ने भी अंदर से  इलाज में मदद की। फिर उन्होंने पश्चिम के नावलों से हमें अवगत करवाया। जैसे कि दशरथ माझी ने हथौड़ी छैनी से पूरा पहाड़ तोड़ दिया उसी तरह  कलम और कागज़  हमें पश्चिम के रोशनी से अवगत करवाया। 

 इंग्लैंड में रह रहे मनोविज्ञानी डाक्टर लोक राज ने अपनी किताबों के द्वारा बहुत सारे मानसिक रोगियों का इलाज किया है। इसी से सिद्ध होता है कि किताबें हमें तंदुरुस्त करने में ताकत देती हैं।

किताब वो झरना होती है  जो रूह की प्यास बुझाती हैं, शर्त है कि हमें प्यास कितनी गहरी लगी है ?

ओशो ने एक किस्सा सुनाया कि भयंकर गर्मी में वो ट्रेन में सफर कर रहे थे तो एक  पानी बेचने वाला आया। वो चिल्ला रहा था, पानी, पानी, पानी।  एक आदमी ने पूछा कितने पैसे की बोतल? पानी बेचने वाले ने उसको अनदेखा कर  आगे बढ़ गया। ओशो यह सब देख रहे थे उन्होनें  कहा कि अगर असल में ही उस आदमी को प्यास लगी होती तो वो पानी की कीमत पूछने की बजाए पैसे देता और बोतल खरीद लेता।

 मैंने कई लोग देखें हैं जिनके पास कार होगी, लाखों रुपए की आमदनी होगी पर वह किताब उधार मांग कर पढ़तेहैं। अगर प्यास ही नहीं है तो वह किताब उसके जीवन में क्या बदलाव लेकर आएगी?

पंजाबी के मैग्जीन प्रीत लडी में पढ़ा था कि कोट चाहे पुराना पहनो पर किताब हमेशा नई खरीदें।

 जंग बहादुर गोयल बता रहे थे कि मैंने जितने भी नावलों के बारे में लिखा है वो मैंने सारे खरीदे थे बस एक ही नावल मैंने लाईब्रेरी से निकलवाया वो भी  मार्केट में नहीं मिला था।

 जब कभी मुझे बुरे विचार आते हैं तो मुझे बुद्ध की वह बात याद आती है जो कि अपने विचारों के प्रति सावधान नहीं होगा एक बुरा विचार आपके अंदर जाकर जड़ जमा से लेगा और उससे बहुत सारे विकार पैदा हो जाएंगे। हमें अपने विचारों के बारे में वैसे ही जागरूक रहना चाहिए जैसे कि एक सिपाही राजा  की सुरक्षा के लिए नंगी तलवार लेकर उसके महल के बाहर खड़ा रहता है कि कोई दुश्मन अंदर ना जा सके। हमारा होश  हमें बुरे विचारों से बचाता है।

 मुझे बुद्ध का एक प्रसंग याद आ रहा है कि एक औरत उसके पास है उसके ऊपर की चमड़ी का रोग हो गया था। औरत खूबसूरत ना होने के कारण समाज से दुरकार दी जाती है। वह फिर बुद्ध की शरण में आई। बुद्ध अपने भिक्षुयों के साथ जंगल में ठहरे थे। वो बरसात के दिनों में सफर नहीं करते थे। बुद्ध ने औरत को कहा कि तुम छप्पर बनाने का काम करो। वो औरत पूरी शिद्दत से छप्पर बनाने जुट गई। ये काम करते उसको कई महीने हो गए। एक दिन वो बुद्ध को मिलने आई। बुद्ध ने कहा , आईने में अपना चेहरा देखो। उसने कई महीने तक शीशा नहीं देखा था । जब उसने अपना चेहरा देखा तो हैरान हो गई वो पहले से भी ज्यादा सुंदर हो गई थी।  उसका चमड़ी का रोग विदा हो गया था। तो उसने पूछा , भंते ये कैसा चमत्कार? तो तथागत ने जवाब दिया तुमने अपनी सारी ऊर्जा को छप्पर बनाने में लगा दिया और तुम भूल ही गई कि तूम बिमार हो। और ऊर्जा का एक ही दिशा में लगना तुम्हारे रोग को ठीक कर गया। कुदरत की असीम शक्ति ने तुम्हें बिमारी से बाहर निकाल दिया।
इसी तरह जब हम घोर निराशा में या डर में कोई अच्छी किताब पढ़ते हैं वो हमें कब उस निराशा या डर से बाहर निकाल लेती है हमें पता ही नहीं चलता।

होम्योपैथी कहती है जब हमारे मन की भावनाएं दब जाती हैं तो वो गांठ बन जाती हैं।  कई बार वो गांठें हमारे शरीर पर चमड़ी का रोग बनकर निकलती हैं। जिसको कि वह सोरायसिस या सोरा कहते हैं। जैसा कि आपने कई बार देखा होगा जो बहुत लोग जालिम होते उनके चेहरे विक्रित हो जाते हैं।
मैं  सरदारा सिंह जौहल की जीवनी पढ़ रहा था रंगों की गागर, उन्होंने बताया कि अब्राहिम लिंकन जो पहली बार राष्ट्रपति बने थे किसी ने उनको कहा कि अपनी कमेटी में इस आदमी को रख लो तो उन्होनें यह कहकर मना कर दिया कि उसका चेहरा सही नहीं है। तो उस आदमी ने पूछा कि शारीरिक सुंदरता तो बाहरी ही है हमें तो मन की सुंदरता देखनी चाहिए। तो लिंकन ने जवाब दिया जब आदमी 40 साल का होता है तो उसके मन के विचार उसके चेहरे पर साफ उभर आते हैं जो आदमी अच्छी सोच का होगा उसका चेहरा खिला हुआ होगा, नहीं तो इस आदमी की तरह विक्रित होगा।

 अगर मैं बहुत होम्योपैथी और बुद्ध  के बारे में आपसे बातें कर रहा हूं तो यह सब किताबों के कारण ही संभव हो पाया है। यह किताबें मेरे तक पहुंची मैंने उसको पढ़कर उनका सत निकाला और आपके साथ उसके को शेयर कर रहा हूं।

एक समय आता है जब हमें किताबों का साथ छोड़ना ही पड़ता है। ओशो कहते हैं  जैसे उसे कहते हैं जब आप दिल्ली से मुंबई ट्रेन तक का सफर करते हो तो मुंबई जाकर ट्रेन से उतर जाते हो बल्कि ये नहीं करते कि ट्रेन के कारण मैं यँहा पहुँचा अब तू मेरे साथ ही आगे चल।

 जैसे कि छोटे बच्चों की किताब में लिखा होता है ए फार एप्पल और उसके साथ एप्पल की बहुत बड़ी तस्वीर बनी होती है। पर जब वो बच्चा बड़ा हो जाता है तो कभी नहीं कहता फॉर एप्पल। इस तरह जब हम किताब पढ़ लेते हैं उसके विचारों को तत्वों को जिंदगी में इस्तेमाल करते हैं वह किताब हमारे लिए अब आगे किसी और को  देने की हो जाती है।

 सत से मुझे प्यारा सिंह सहराई याद आ गये।  प्यारा सिंह सहराई जी से कई बार बात करने का मौका मिला है, नये पाठकों को  बता देना चाहता हूं कि जो लोग आरसी मैग्जीन वाले भापा प्रीतम सिंह को जानते हैं सहराई जी के बारे में जरूर जानते होंगे।
 वो जिंदादिल इंसान थे उनकी टांगें  काम नहीं करती थी और वो पीढ़ी पर चलते थे। उनको उनके  दोस्त की बेटी ने अपने घर के पिता की तरह रखा। जब मैं दिल्ली जाता था तो उनके लिए गुड़ लेकर जाता था। एक बार मैं उनसे मिलने रोहिणी, दिल्ली गया तो उन्होनें कहा ," रजनीश मैं तेरे से जो अब बातें कर रहा हूँ , तेरे जाने के बाद इसकी जुगाली करूँगा, फिर से उसका सत निकालकर अपने जीवन में उसका उपयोग करुँगा। "
क्या कमाल की बात है!

उनका खिला चेहरा मुझे आज भी जीने की प्रेरणा देता है। मेरे पिताजी ने उनका नाम आनंद रखा हुआ था। आनंद महात्मा बुद्ध के चाचा का लड़का था तो पूरी उम्र बुद्ध के साये की तरह साथ रहा।

अपने जीवन में किताबें पढ़ते रहें,  
किताबों के जुगनुओं की रोशनी लेते रहें,  
बुक हीलिंग करते रहें।

फिर मिलूंगा एक नया किस्सा  लेकर।

आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, 
होशियारपुर 
पंजाब
23.10.2020

6 comments:

  1. बहुत बढ़िया लेख 👍👍

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  2. खूबसूरत सर जी.....बुक हीलिंग.... किताबें दोस्त होती हैं और जब किताब रूपी दोस्त आप के पास हो तो आप की समस्याओं को हल करने में मददगार हो जाती है...🙏

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    1. Thanks a lot sir. I think u are shashi from Sultanpur

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  3. खूबसूरत सर जी.....बुक हीलिंग.... किताबें दोस्त होती हैं और जब किताब रूपी दोस्त आप के पास हो तो आप की समस्याओं को हल करने में मददगार हो जाती है...🙏

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  4. किताबे बहुत अच्छी होती है पढ़ना ही चाहिए

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