Saturday, October 31, 2020

बड़े होकर क्या होना चाहोगे?


"बड़े होकर क्या होना चाहोगे?"
"खुश होना चाहूंगा।"
"नहीं ,तुम मेरा सवाल नहीं समझे?
"आप मेरा जवाब नहीं समझे।"

 जॉन  लेनन की किताब
 अध्यापक और विद्यार्थी की बातचीत
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आकाशदीप ने ये विचार फेसबुक पर लिखा तो  मैंने सोचा ये तो इतना सुंदर विचार है कि ये 
दुनिया के हर स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी 
के मेन गेट पर लिखा होना चाहिए।क्योंकि जब बच्चा पैदा होता है तो लगता है 
वो एक ऐसे संसार से आया है यहाँ मोहब्बत
 ही मोहब्बत है पर जैसे ही वो बच्चा बड़ा होता
 है तो हम ऐसा क्या सीखा देते हैं के वो दुखी
 हृदय वाला और हिंसक बन जाता है?

 समाज का ताना बाना ऐसा है के वो कहता
 है कि तू कुछ बन , नहीं तो पीछे रह जायेगा 
बहुत कॉम्पिटिशन है।इस शब्द ने दुनिया में जितनी टेंशन  पैदा की है 
इतनी शायद और किसी ने नहीं।

 हमारे से पहले हमारे बज़ुर्ग ये दौड़ दौड़े, फिर
 हम और हम अपने बच्चों को भी इस चूहा 
दौड़ में शामिल कर रहे हैं । ना तो हमारे बज़ुर्गों ने 
इस दौड़ से कुछ पाया, न हमने पर हम बच्चों 
से भी उनकी मुस्कान छीनने पर  लगे हैं।

मेरे पिता जी गुरबख्श जस अक्सर ये शे'र 
कहते हैं
 सोचते थे इल्म से कुछ जानेंगे
 जाना तो ये के ना जाना कुछ भी

एक बात और कहनी चाहूंगा के मैं शायर 
का नाम भूल गया पर शेयर याद रहा इस से ये 
पता तो चलता है कि कवि से ज्यादा लंबी उम्र की कविता होती है। 

अब आप अपने इर्द गिर्द निगाह मारो लोग
कितने अहंकार में डूबे हैं,इसमें कवि,लेखक , प्रोफेसर,मंत्री ,शंत्री सब हैं।हर कोई अपने आप को फन्ने खां समझे बैठा है।

 हलांकि हर रोज़ अरबों लोग भगवान् का नाम ले 
रहे हैं फिर भी क्यों इतना अहंकार है?

मैं अपने मोहल्ले में एक ऐसे आदमी को जानता 
हूँ वो हर रोज़ , बिना नागा धार्मिक स्थान पर 
जाता है। 
एक दिन पार्क में मिस्त्री लगे तो वो ज़मीन पर
लेट गया कि पहले मेरे घर के आगे सड़क 
बनाओ।
सब ने बहुत समझाया की ये सरकार का काम
 है वो क्या बनाती है क्या नहीं? पर वो नहीं माना।उसने बहुत ड्रामे किये।

दुनिया ऐसे पागलों से भरी हुई है। इससे ये सिद्ध होता है धार्मिक स्थान पर जाकर भी 
लोग मोहब्बत करना नहीं सीख पाए।

 एक प्रसंग याद आ रहा है।
 महात्मा बुद्ध को एक बार एक तपस्वी मिला वो 
कई साल से भगवान् का नाम जप रहा था 
पर कोई क्रांति घटित नहीं हो रही थी।
बुद्ध ने पुछा अगर तुमने ये नदी पार करनी हो तो कैसे  करोगे?
उसने जवाब दिया अगर पानी काम है तो 
पैदल नहीं तो तैर कर। अगर पानी का बहाव ज़्यादा है तो कश्ती से।

तो बुद्ध ने पुछा, अगर तुम इस तट पर 
बैठकर उस तट को पुकारते रहो तो क्या
वो तट इधर आ जायेगा?
तपस्वी बोला नहीं।

तो बुद्ध ने कहा तो तुम इस तरफ से भगवान 
को पुकार रहे रहो तो कैसे उसके घर तक 
पहुंचोगे? तुम्हे अगर परमात्मा को पाना है 
तो उसके घर तक तो जाना पडेगा।
इतना सुनकर उस तपस्वी ने बुद्ध के शरण में 
आ गया और उनका भिक्षु बन गया।

इसीलिए भगवान् का इतना नाम लेने पर भी
दुनिया में कोई क्रांति नहीं हो रही क्योंकि लोग 
बदलना नहीं चाहते।

वैसे जितनी हिंसा भगवान् या धर्म के नाम
पर हुई है उतनी हिंसा और किसी नाम 
पर नहीं हुई।
बच्चों को हम ज़बरदस्ती पैसे कमाने 
वाली मशीन बना रहे हैं।

दलाई लामा कहते हैं, दुनिया को इस वक़्त
न तो शक्तिशाली, न ही ताकतवर इंसानों 
की ज़रूरत है बल्कि इसको कहानीकार 
कवि और हीलर की सख्त ज़रूरत है जो दुनिया में शांति और मोहब्बत का पैगाम दे सकें।

अब दलाई लामा को भी तिब्बत छोड़ना पड़ा।हलांकि वो कोई युद्ध के लिए हथियार नहीं 
बना रहे थे न ही नफरत बल्कि वो तो 
शांति फैलाने का काम कर रहे हैं।

वो भी ऐसे मुल्क में हुआ यहाँ बुद्ध के चेले 
गए , हाँ बाद में ये मुल्क कम्युनिस्ट बन 
गये जिन्हे उनसे चिढ़ थी।

 ऐसा ही हाल ओशो का अमेरिका में हुआ। 
जब उनके सन्यासियों ने ऑरेगोन पार्क में 
पांच हज़ार एकड़  बंजर ज़मीन को हरे भरे 
बाग में बदल दिया तो अमेरिका की सरकार को खतरा पैदा हो गया के अगर उसके 
लोग साधु बन गए तो वो दुनिया में हथियार बना कर अपना धंधा कैसे चलाएगा?

इसलिए ओशो को शुक्रवार शाम को ग्रिफ्तार 
किया गया। शनिवार और रविवार को कोर्ट 
बंद थी। इन्ही दो दिन में जेल में ओशो को 
थेलियम नाम का ज़हर दे दिया गया जो शरीर 
से तो निकल जाता है पर अपना प्रभाव
छोड़ देता है। जिसके कारण आदमी की उम्र 
कम हो जाती है और वो बीमार भी रहता है।ओशो ने अमेरिका छोड़ा और वो जिस देश
में अपने हवाई जहाज़ से उतरना चाह रहे थे 
अमेरिका के डर से उस देश ने उन्हें शरण
नहीं दी क्योकि अमेरिका ने दुनिया को 
डरा रखा है या कर्ज़ देकर कर्ज़ाई  कर रखा है। 

अभी हमें ये समझना होगा के अगर किसी 
पागल आदमी ने एटम बम के रिमोट का बटन 
दबा दिया तो ये दुनिया तबाह हो जाएगी।

किसी पत्रकार ने ने आइंस्टाइन से पूछा
आपका तीसरे विश्व युद्ध के बारे में क्या 
कहना है?
तो उन्होंने कहा, तीसरे तो नहीं, चौथे विश्व
युद्ध के बारे में बता सकता हूँ।पत्रकार ने पुछा ऐसा क्यों?
तो आइंस्टाइन ने कहा की तीसरे विश्व युद्ध में 
दुनिया सिमट जायेगी चौथा होगा ही नहीं।

मेरी ये बातें इसलिए नहीं है की मैं निराश 
हूँ बस ये सोचने के लिए हैं के हम कब
 संभलेंगे?

मुझे एक शेर अक्सर याद आता है जो 
स्वर्गीय अजायब सिंह कमल का लिखा है

 लाखों सालों में इतिहास बस इतना ही बदला है
 पहले युग पत्थर के थे अब लोग पत्थर के


अगर मैं कभी निराश होता हूँ तो महात्मा बुद्ध की एक बात याद आती है 
कि पूरे विश्व की शान्ति हमारे हृदय से शुरू होती
 है। जब हम शांत चित्त बैठकर खुश होते हैं तो
 जो हमारे शरीर से तरंगे पैदा होंगी  वो पूरे विश्व में फैलेंगी ।
 बुद्ध कहते हैं क्रोध को क्रोध से नहीं बल्कि 
करुणा से जीता जा सकता है।

तो बात खुशी से शुरू हुई और खुशी और शांति 
तक पहुँच गयी।

 मुझे उमैर नज़्मी की एक ग़ज़ल याद आ रही है

हर एक हज़ार में पांच सात हैं हम लोग
निसाबे इश्क़ पर वाजिब ज़कात हैं हम लोग

दबाव में भी  ज़ात कभी नहीं बदली
शुरू दिन से मोहब्बत के साथ हैं हम लोग

किसी को रास्ता दें किसी को पानी
कहीं पे नींद, कहीं पे खैरात हैं हम लोग

ये इंतज़ार भी हमें देखकर बनाया गया
ज़हूरे हिज्र से पहले की बात हैं हम लोग

हमें जलाकर कोई शब् गुज़ार सकता है
सड़क पर बिखरे कागज़ात हैं हम लोग

 फिर मिलूँगा

 आपका अपना
 रजनीश जस
 रूदरपुर
 उत्तराखंड
 निवासी पुरहीरां, 
होशियारपुर पंजाब





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