रविवार है तो साइकिलिंग, दोस्त, किस्से कहानियां।
सुबह निकला साईकलिंग को। सूरज देवता निकल चुके थे, मौसम में थोड़ी ठंडक हो गयी है।
साइकिलिंग करने पहुंचा था राजेश सर स्टेडियम के आगे मिले । फिर हमने पैदल एक लंबा चक्कर लगाया, पंछियों की आवाजें सुनीं। चाय के अड्डे पर पहुंचें। शिवशांत पहले से हमारा इंतज़ार कर रहा था। फिर संजीव जी भी गए मिल गए तो हो गई बातें शुरू।
फिर बातें होने लगी मैंनें संजीव जी से कहा कि चींटी के बारे में कुछ ओर जानकारी दें। तो उन्होंने बताया, कि उन्होनें एक प्रोजेक्ट चंडीगढ़ में किया था। उदाहरण के तौर पर जैसे एक आदमी ने हल्लोमाजरा से मनीमाजरा जाना है तो वो सबसे छोटा रास्ता कैसे चुनेगा? उन्होनें कंप्यूटर पर नकली (Virtual) चींटियाँ बनाईं। वो हल्लोमाजरा से मणिमाजरा तक अलग-अलग रूट गईं। अब क्योंकि जिस रास्ते से जा रही थी वह फेरोमोन छोड़ते हुए जा रही थीं। कुछ चींटियाँ गलत दिशा में गई और आगे जाकर रुक गईं । उस डेड प्वाइंट कहा गया। उसके बाद चींटियों का अलग अलग मार्ग था। फिर वो सबसे छोटे से वापिस आईं।
इस तरह उन्होंने सबसे छोटा रास्ता निकाला।
मैंनें पूछा कि मोबाईल को कैसे पता चलता है ये तस्वीर कँहा खींची थी? क्योकिं एक बार मैं चैल,हिमाचल प्रदेश गया था। जब मैंने वँहा तस्वीर खींचीं फोटो फेसबुक पर फोटो डाली तो फेसबुक ने बता दिया किये फोटो चैल की है। उन्होनें बताया फेसबुक से गूगल हमारी लोकेशन लेकर उस तस्वीर का स्थान सेव कर लेता है।
मैंने पूछा, जब हम गूगल पर नेविगेशन डालते हैं रुद्रपुर से दिल्ली जा रहे थे तो वह हमें कैसे बताता है कि इस राह पर कितने घंटे लगेंगे? गूगल हमारे फेसबुक से हमारी लोकेशन ले लेता है। जब भी मोबाइल पर एक ऑप्शन ऑन करते हैं , फेसबुक पर डू यू वांट टू लोकेट युअर लोकेशन तो हम हां लिखते हैं, तो वो हमे हर वक्त लोकेट करता रहता है। उस रोड पर जितने लोग जा रहे हैं उसकी स्पीड से वह आपको बता देता है क्या आपको इतने घंटे लगेंगे। उस रोड पर होने वाले मोबाइलों से आपको यह बताया जाता है कि इस रोड पर इतना स्पीड है।
इस चीज़ को काटने के लिए एक आदमी ने एक ट्राली में 500 मोबाइल डालें और उसको धीरे-धीरे चलने लगा। तो गूगल ने बाकी लोगों को बताया इस रोड पर बहुत भीड़ है। हलांकि वो उस सड़क पर अकेला ही आदमी था। उस आदमी ने इसकी वीडियो बनाई और गूगल को भी भेजी।
संजीव जी ने बताया कि अभी यह डिजिटल फोटोग्राफी है तो डिजिटल फोटोग्राफी 3 रंग से बनती है, रेड, ग्रीन और ब्लू। इसी से सारे रंग बनते हैं।
जब हम स्कैन करते हैं तो कंप्युटर पूछता है, 3 तरीके से आप सेव कर सकते हो, तो वो पूछता ब्लैक एंड वाइट, ग्रे स्केल या कलरड। अब अगर ब्लैक एंड वाइट है तो वह अगर 16 बिट की है तो मतलब 16 अलग-अलग खाने हैं 4 X4 के। तो उसमें एक वाइट कलर का कोड होता है एक ब्लैक। ये दोनों कोड से वो पिक्चर स्टोर करता है। अगर ग्रेस्केल में होती है 2 की पावर 8 मतलब 256 मेगापिक्सल देखकर में बनते हैं। यह वाइट से लेकर ब्लैक तक की रेंज है और उसमें बाकी कलर रंग आते हैं। अगर 112 दिन का है और दूसरा और इस तरीके से रिकॉर्डिंग करके पिक्चर को सेव करता है। यही अगर रंगदार पिक्चर होती हो तो उसमें यह 3 रंग से वह कोडिंग करता है वह भी जीरो से लेकर 256 तक के अलग-अलग कोड हैं। तीनों के अलग-अलग कोड होंगे । उन्होनें दिलचस्प जानकारी दी।
फिर बातें होने लगी सेहत पर। जैसे किसी को पीलिया होता है तो वह किसी पान वाले के पास जाता है तो वो केले में चूना लगा कर देता है तो खाने से ठीक हो जाता है।
कई लोग झाड़-फूंक से ठीक हो जाते हैं तो सवाल उठा वो कैसे? तुम मुझे इमाइल कुए की एक बात याद आई जो ओशो कहते थे। कोई जब बहुत ज्यादा बिमार हो जाता और वैध थक जाते थे दवाई दे देकर तो वो कहते तू इमाइल कुए के पास जा। तो इमाइल कुए उसके कान में एक मंत्र फूकता और कहता था यह मंत्र तुमने किसी को बताना नहीं है नहीं तो इसका असर खत्म हो जाएगा। इमाइल कुए उसके कान में कहते थे कि तुम्हें एक बात निरंतर अपने मन में दोहराओ, कि खाते-पीते, उठते बैठते यही दोहराना है मैं तो स्वस्थ हूं और, ओर स्वस्थ हो रहा हूंँ। इस से
जो सबकॉन्शियस माइंड है जो कि 90% है धीरे-धीरे उसमें यह बात चली जाती थी तो वहां से जब यह चीज़ आती थी कि मैं स्वस्थ हूं। फिर वो जल्दी स्वस्थ हो जाते थे। ये मंत्र झाड़ फूक में भी चलता है, उसके मंत्र से हम अपने सबकॉन्शियस माइंड में निशचित हो जाते हैं कि हम ठीक हो जाएंगे तो हम ठीक हो जाते हैं।
बिमार शरीर से पहले मन में आती है क्योंकि बीमारी पहले हमें मानसिक रूप से पकड़ते हैं। रूस में तो आदमी की ऐसी फोटोग्राफी भी है कि वह आपकी फोटो खींचकर आपको बता सकते हैं आपको कौन सी बिमारी अगले आने वाले म हीनों में हो सकती है। इसीलिए तो बुद्ध कहते हैं कि जैसे तुम सोचते हो वैसे बन जाते हो।
एक बात अच्छी बात हुई थी हमारा कोई ऐसा दोस्त होना चाहिए जिससे हम खुलकर बात कर सकें बिना किसी मुखोटे के। युं हम हर वक्त एक मुखौटा पहनकर रखते हैं, अपनी पत्नी के सामने पति होने का, बच्चों के सामने पिता होने का और बाहर काम करते हुए बॉस होने का। जब कभी अपने सच्चे दोस्त से कहीं मिलते हैं तो वही हमारा असली रूप होता है, उस वक्त हम बिना किसी मुखौटे के होते हैं।
जिंदगी के कई विषयों पर बातें हुईं। फिर हम चल दिये घर को।
फिर मिलेंगे एक नया किस्सा लेकर।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
11.10.2020
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