Saturday, November 28, 2020

Sunday Cycle with Budha Story




रविवार है तो फुर्सत, दोस्त, साइकिलिंग, किस्से, कहानियां ।
आज घर से निकला साइकिलिंग के लिए ठंड बढ़ गई है । चाय के अड्डे पर पहुंचा तो देखा भीम दा आ गए हैं पहाड़ से वापिस। यँहा पर यह बताना ज़रूरी है उत्तराखंड के पहाड़ में बडे भाई को "दा" कहा जाता है। 
वँहां से आगे बढ़ गया। आज अकेला ही था जो कि जल्दी वापस आना था मुझे कोई काम था। अकेले ही आगे चक्कर लगाया। मैं एक मोड़ से मुड़ा तो सामने से एक लड़का  बहुत तेज़ी से साइकिल पर आया, पर हम दोनों ने साइकिल की ब्रेक मारी तो बचाव हो गया। यही अगर कोई मोटरसाइकिल या बाइक होती तो टक्कर हो जाती। साईकिल का यही फायदा है कि कोई आवाज़ नहीं, टक्कर हो जाए तो चोट नहीं, पंचर हो जाए तो पैदल ले जाओ और सबसे बडा फायदा साईकिल चलाने वाला तंदरूस्त रहता है।

 साइकिलिंग पर एक जोक भी काफी मशहूर हुआ है।
" साइकिल चलाने वाला आदमी देश की अर्थ व्यवस्था में कोई योगदान नहीं देता 
क्योंकि अगर वह कार लेगा 
कार बनाने वाली कंपनी अमीर होगी,  तो इंश्योरेंस करवाएगा,
साइकिल चलाने के कारण उसके शरीर में कभी चर्बी नहीं भरती तो वह डॉक्टर के पास नहीं जाएगा। तो  डॉक्टर की दुकान नहीं चलेगी।

 सड़क पर  कोई दबाव नहीं तो सड़कें टूटेंगी नहीं तो सड़क बनाने वाले ठेकेदार गरीब हो जाएंगे।😀😀

आगे चक्कर लगाकर  रोड पर निकला तो वहां बहुत सारी सूखे पत्ते देखे। इन पत्तों की तस्वीर खींची । तो मुझे  बुद्ध की कथा याद आ गयी। आनंद जो महात्मा बुद्ध का चेला था वह  सारी उम्र बुद्ध के साथ साये की तरह रहा । तो जब बूढ़े हो गए तो आनंद ने कहा, भंते ,मैंने तो पूरा सत्य जान लिया होगा क्योंकि मैं सारी उम्र आपके साथ रहा हूं। बुद्ध जंगल से गुज़र रहे थे । उसमें हर तरफ सूखे पत्ते फैले हुए थे। उन्होंने दो सूखे पत्ते  हाथ में उठाए और मुट्ठी बंद कर ली। 
बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले, आनंद जो त तूने जाना है वह मेरी मुट्ठी में पत्तों के सम्मान है और जो तूने नहीं जाना है वह जंगल में फैले हुए पत्तों के सम्मान है। तो सत्य इतना बड़ा है।
 ओशो की कही एक कथा याद आ गई। एक लड़का बहुत परेशान होता है। वह एक संत के पास जाता है। कहता है,  मैं बहुत अशांत हूं, मुझे शांति चाहिए।
वह संत कुटिया में बैठे थे उन्होंने कहा बेटे मैं तो कभी तेरे पास नहीं आया क्योंकि तू बहुत आशांत है तो मुझे अशांति दे दे। मैं अपने शांत होने में राज़ी हूँ , तू अपने आंत होने में राज़ी हो जा। 
लड़का बोला मैं समझा नहीं।
 संत बोले, चल कोई बात नहीं तू आया है तो तेरी सवाल का हल करते हैं।
वह उसे लेकर  झोंपड़ी से बाहर आ गए। उन्होने उसे एक  बड़ा चीड़ का पेड़  दिखाया और घास की पत्ती। वह बोले, इस छोटी सी घास की पत्ती ने कभी चीड़ के पेड़  से यह नहीं पूछा कि तू इतना बड़ा क्यों है और मैं इतना छोटा क्यों?
अपने छोटे होने में राज़ी है और चीड़ का पेड़ अपने होने में राज़ी है। जिस दिन घास की पत्ती इस चीड़ के पेड़ के साथ अपनी तुलना करने लग गई तो वह तुम्हारी तरह परेशान हो जाएगी।

लड़का बोला , गुरु जी मुझे कुछ समझ में नहीं आया।
तुम संत ने जवाब दिया तो इस चीज़ में ही राज़ी र हो जा कि तुम्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा। तो भी तू शांत हो जाएगा।

एक दोहा है
प्रेम गली अति सांकरी जा में दो ना समाय
जब मैं था तब हरि नाहिं, अब हरि है मैं नाहिं

 अगर हमने सत्य को जानना है तो अपनी " मैं" को हटाकर देखना होगा। जिसे जे क्रिषणामूर्ती कहते हैं, "That which is"

मैं दुनिया को देख रहा हूं,
जो भी यँहा  है वहां खुश नहीं है,
मोटे लोग पतले होना चाहते हैं
पतले लोग मोटे  होना चाहते हैं
काले लोग गोरे होना चाहते हैं
गोरे लोगों अमीर होना चाहते हैं
पैदल आदमी  साइकिल चाहता है 
साइकिल वाला कार करता है
कार वाला हवाई जहाज चाहता है
और हवाई जहाज वाला मंदिर में जाकर मन की शांति माँगता है।
हमारे संत कहते हैं जहां हो वहीं खुश रहो।
तुम जिस स्थिति में हो, तुम उसी वक्त सब कुछ स्वीकार कर लो तो सत्य खुद तुम्हें ढूँढता हुआ आ  जाएगा।

आज के लिए इतना ही। अपने भीतर उतरें, खुद को स्वीकार करें जैसे भी है।

फिर मिलेंगे।

आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर 
पंजाब
29.11.2020
#rudarpur_cycling_club
#rudarpur

No comments:

Post a Comment