आज रविवार है तो साइकिलिंग दोस्त,किस्से, कहानियां। सुबह साईकिल उठाई और निकल लिया। रास्ते में लोगों को देखता हुआ जा रहा था। चाय के अड्डे पर पहुंचा तो वहां पर शिवशांत पहले से मेरा इंतजार कर रहा था। फिर राजेश जी और पंकज भी आ गये।
फिर बातचीत होने लगी क्या मनुष्य में धरती पर आकर हर चीज़ को अपने ढंग से तरोड़- मरोड़ लिया है और पर्यावरण को बिगाड़ दिया है। विज्ञानी कहते हैं इसकी हरकतों को देखकर लगता है कि जैसे ये किसी और धरती का प्राणी हो। क्योंकि इसको ना इस धरती से प्यार है,ना ही खुद से। तभी तो इतनी सरहदें और हथियार बनाकर बैठा है। कहते हैं अगर किसी भी कारण आदमी इस धरती से विदा हो जाए तो कुछ साल के अंदर यह पूरा इकोलॉजी सिस्टम है ठीक हो जाएगा , यह चीज़ हमने 1 महीने के कोरोना लाकडाऊन के दौरान देख भी ली है। इस दुनिया में जितनी भी गड़बड़ है वो सिर्फ और सिर्फ आदमी की पैदा की हुई है।
साहिर लुधियानवी का, धूल का फूल फिल्म का एक गीत है
तू हिंदू बनेगा, ना मुस्लमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया
हमने उसे हिंदू या मुस्लमान बनाया
कुदरत ने तो बख्शी थी हमें एक ही धरती
हमने कँही भारत कँही ईरान बनाया
जो तोड़ दे हर बंद वो तूफान बनेगा
तू हिंदू बनेगा, ना मुस्लमान बनेगा
ये गीत मैनें छठी कक्षा में आज से 33 साल पहले अपने स्कूल के वार्षिक उत्सव पर गाया था। ये गीत आदमी की कई पर्तों पर रोशनी करता हैं।
गीत का युटिऊब लिंक
https://youtu.be/fgNa41wNxyw
जे क्रिष्नामूर्ति तो यँहा तक कहते हैं, हम जब कहते हैं मैं भारतीय, मैं फलाने धर्म का तो ये भी एक हिंसा है। हम अपने आप को पूरे विश्व का एक मनुष्य कहें।
यह बातें करते-करते मुझे अपने एक कहानी चींटी की आवाज याद आ गयी, चींटी कहती है कि आदमी ने धरती पर कब्जा कर रखा है हलांकि इस धरती पर आदमी का उतना हक है जितना कि चींटी का। पर आदमी की सोच लिया है पूरी धरती उसकी निज्जी संपत्ति है।
डार्विन ने कहा है, Survival of the fittest. मतलब कि जो पर्यावरण से लड़ सकता है , अपने अंदर की क्षमता है वही जीवित रहेगा बाकी लोग यहां से विदा हो जाएंगे जैसे डायनासोर। पर खुद जीवित रखने के लिए आदमी ने इतने हथियार बना लिए हैं कि क्या कहें?
कहते हैं जो आदमी खुद डरा हुआ होता है वो ही दूसरों को डराने में उत्सुक होता है। जैसे कहते हैं , चोर को सारी दुनिया चोर ही नज़र आती है।
ओशो बताते हैं, हमारे खेत खलियानों में एक
" डरना" होता है , वो लकडी के डंडो से क्रास बनाकर ऊपर उल्टा घडा रखकर उसे आदमी जैसा बनाया जाता है। उसके कपडे भी होते हैं।
किसी ने उससे पूछा तुझे क्या मिलता है, तो वो कहता है जब मुझे देखकर पंछी डरते हैं तो मुझे उनकी आँखों मे डर देखकर मज़ा आता है। यही हालत है उश देशों की जो हथियार बनाकर बेचते हैं, दो देशों को युद्ध के लिए उकसाते हैं। जब युद्ध होता है तो उनके महंगे -महंगे हथियार बिकते हैं।
उनको मजा आता है दुनिया में युद्ध करवा कर।
यह देख कर मुझे एक कहानी याद आई है जो हम सब ने बचपन में पढी है। दो बिल्लियां को एक रोटी खाने को मिल जाती है। वो उसको आधा आधा करने के लिए झगड़ा करने लगती है। तो उधर से एक बंदर आता है , वो कहता है मैं तुम्हारा झगड़ा निपटा देता हूं। वो एक तकड़ी लेता है और रोटी के दो हिस्से कर देता है और जानबूझकर एक तरफ ज्यादा और एक तरफ कम रोटी रखता है। तो जो ज्यादा रोटी होती है उसमें से थोड़ी सी खा लेता है। फिर उस तरफ कम हो जाती है वो दूसरे तरफ की रोटी खा लेता है। इस तरीके से वह दोनों की पूरी की पूरी रोटी खा जाता है।
इसी तरह दुनिया में हथियार बनाने वाले देश कर रहे है।
इसके बाद बातें होने लगी सरहदों के बारे में। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद युरोपियन देशों ने जान लिया कि दूसरे देशों को डराने के लिए जो सरहदों पर ज्यादा हथियार ही तबाही का कारण बनते हैं। अगर हम उन देशों की सरहदों को देखें तो वो सारे नामात्र सैनिकों और हथियारों से जुड़े हुए हैं।
मैं एक किताब, "असीं वी वेखी दुनिया" , जो Major Mangat ने लिखी है, उसमें वो लिखते हैं जब कनाडा से अमेरिका जाते हैं तो वँहा एक पुल पर कनाडा के बहुत कम सैनिक हैं। वो देश अपने खजाने का बहुत कम बजट हथियारों पर लगाता है। यही कारण है कनाडा में दुनिया भर के लोग रहने जा रहे हैं। वो ज़मीन से टिऊबवैल आदि लगाकर पानी नहीं खींचते बल्कि बारिश के पानी को उपयोग करते हैं और गंदे पानी को साफ करने के उपरांत। कनाडा में हर आदमी के पीछे 8900 पेड़ हैं, जबकि भारत मेएक आदमी के पीछे सिर्फ 7 पेड़ हैं, 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक। कनाडा और युरोप के लोग 80-90 साल की उम्र में भी जोगिंग कर रहे हैं। वँहा हर आदमी के पास पानी की बोतल रहती है, वो फल ज्यादा खाते हैं। और भारत में 50 साल के बाद घुटनों की समस्या आम बात है।
मैं ये नहीं कह रहा कि भारत बुरा है पर हमें अगर अच्छे तरीके से जीना है तो उन देशों से सीखना होगा। ये बात भी सत्य है कि बुद्ध, महावीर, गुरू नानक देव जी भारत में हुए हैं, पर टैक्नालोजी के बदलाव को स्वीकारना होगा। जैसे कि ओशो ने कहा ज़ोर्बा दी बुद्धा। मतलब ओशो कहते हैं कि उनका सन्यासी पैसा भी कमाए और ध्यान भी करे। क्योकि दो पंखों के बिना कोई उडान नहीं हो सकती। हमें पश्चिम से पैसा कमाना सीखना है और उन्हें ध्यान सीखाना है।
इस से उलट जब लेखक अमेरिका में जा रहा है तो कई स्थानों पर रात के अंधेरे में, मैट्रो ट्रेन में उसे सावधान रहना पड़ रहा है कि कंही कोई वारदात ना हो जाए क्योंकि वँहा पर बंदूक आम ही मिल जाती है। अब कोई मानसिक रोगी या नफ़रत से भरा आदमी कभी भी कँही भी गोलियाँ चला सकता है।
हमारे देश में अस्पतालों की, शिक्षा व्यवस्था की बहुत ही बुरी हालत है क्योकिं हम अपने बजट का बहुत सारा हिस्सा हथियारों पर लगाते हैं।
अभी देश में बहुत सारी समस्याएं हैं जैसे बेरोज़गारी, किसानों की, शिक्षा की, सेहत की पर मीडिया ने पूरे देश को और ही मस्लों में उलझा रखा है और लोग भी दिनरात उसी में उलझे हुए हैं। मूलभूत समस्यायों पर जब तक लोग इक्ट्ठे होकर बात नहीं करते तब तक कोई हल नहीं है।
मुझे अपनी ही कभी कविता याद आ जाती है
बहुत आसान होता है
अपने बैडरूम में बैठे
चाय का कप पीते हुए
कह देना कि युद्ध होना चाहिए
कविता का युटिऊब लिंक।
https://youtu.be/X4f93Ualu9k
मैनें कुछ तस्वीरें खींची। एक पत्ता नया - नया उगा था शाख़ पर। उसकी चमक और ताज़गी देखकर लगा कि कुदरत बिना किसी क्रीम , पाऊडर के इसे ये दे रही हैं और कँहा आदमी इतनी सुख सुविधा भोगकर भी दुखी है, दीनहीन है।
मुझे Swami Sarabjeet की एक कविता याद आ गयी
"ये जो धार्मिक स्थलों के बाहर
हाथ जोड़कर खडे लोग हैं
ये भगवान के भग्तनहीं
बल्कि डरे हुए लोग हैं"
तो श्रद्धा से ,धन्यवाद देने जाने वाले, आनंदित लोग ही समाज को बदल सकते हैं, डर से तो सिर्फ युद्ध पैदा होते हैं।
महात्मा बुद्ध के समय मे कुछ व्योपारी जंगल से गुज़र रहे थे तो उनको डाकुओं ने लूट लिया। उनकी हिफाज़त करने के लिए सैनिक नहीं आए। ये बात जब राजा तक पहुंची, तो राजा ने पूछा सैनिकों ने क्यों नहीं बचाया? तो उन्होंने कहा आपके राज्य के बहुत सारे सैनिक बुद्ध की शरण में चले गए हैं जो हथियार नहीं उठा रहे हैं। तो
राजा ने बुद्ध से इसका हल करने को कहा। तो
बुद्ध ने यह नियम बनाया के जो सैनिक हैं उनको भिक्षु नहीं बनाया जाएगा।
समय बीतने लगा। जब बुद्ध के भिक्षुयों को मारा गया तो उन्होनें आत्म रक्षा के लिए बहुत सारे रास्ते चुनें जैसे मारशल आर्ट,जुडो कराटे इत्यादि।
(ऐसा मेरा सोचना है, मैं इस बात की पुष्टी नहीं कर रहा हूँ) उसी से निकल कर आई है हमने किसी का बुरा नहीं करना पर स्वयं की रक्षा भी तो करनी है।
काफी बातें हुई व्यवस्था को लेकर।
फिर हम लौट आए अपने अपने घौंसलों की तरफ।
फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां,
जिला होशियारपुर
पंजाब
27.09.2020
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