#मेरी_पुरहीरां_की_यात्रा
#my_journey_to_punjab_part_1
#purhiran
इस रविवार साइकिलिंग नहीं पर आपको पंजाब की यात्रा पर ले कर जा रहा हूँ। पंजाबी में कहा जाता है, कंध ओहले परदेस, इसका मतलब है दीवार के उस तरफ परदेस है।
हालांकि मुझे यहां रुद्रपुर आए हुए कई साल हो गए पर अपनी मिट्टी की चाहत दिल में हर वक्त बनी रहती है।
27.11.2019 की शाम हम घर से निकले रामपुर। वहां पर रेलवे स्टेशन को नया रूप दिया जा रहा है। सफेदी की जा रही है प्लेटफार्म की टाइल का फर्श तोड़कर नया रूप दिया जा रहा है । वहां पर मैंने ठेला खींचते हुए एक मजदूर को देखा, तो मुझे अपने दोस्त davinder bedi की बात याद आई , वो कहता दुनिया में दो ही किस्म के लोग हैं एक अमीर और एक गरीब। सदियों से इनके बीच में एक संघर्ष और खींचातानी चली आ रही है । कुछ लोग पढ़ लिखकर मध्यवर्गीय परिवार बन गए और फिर उनमें से कुछ लोग आईएएस ऑफिसर बने । वह अप्पर क्लास में चले तो गए पर फिर भी अपनी मिट्टी से जुड़े ही रहते हैं।
ट्रेन आ गई और हम बैठ गए । मैं मेरी पत्नी सिमरन , मेरा बेटा रोहन और वंश । रात को सो गए और सुबह 3:00 बजे ट्रेन के अंबाला पहुंचने का समय था पर वह अपने समय से 2 घंटे लेट हुई और हम वहां 5:00 बजे पहुंचे।
वहां उतरे तो देखा के गरमा गरम ब्रेड बन रहे थे और उसकी खुशबू ने हमें रोक लिया । सिमरन ने कहा कि ब्रेड खाने हैं। हम ब्रड खाने लग गएऔर उस लड़के से बात हुई । लड़के का नाम दीपू है ।उसने कहा कि हम सुबह को आलू वाले ब्रेड बनाते हैं । फिर जब आलू खत्म हो जाते हैं तो उसके बिना ही बनाते हैं। पर उसके बनाने में स्वाद था कि हम 6 खा गए। मैं उस लड़के से बात करने लगा, उस लड़के का नाम दीपू था। आज ओ डबल शिफ्ट में था मतलब 24 घंटे के लिए रुका था । मैंने पूछा, रात को सो लेते हो ने कहा नहीं, बस लगातार काम ही चलता है । पर वह अपने काम में मस्त था, खुश था।
वहां से विदा ली और फिर हम बस पकड़ डेराबस्सी आए और फ्रेश होकर होशियारपुर के लिए निकल लिए। चंडीगढ़ के इर्द गिर्द बहुत सारी बिल्डिंगे बन रही हैं।
43 में पहुंचे और वहां से बस पकड़ कर अपने गाँव की तरफ चल दिए। खेतों खलियानों के मध्य बनी हुई सड़क पर दौड़ती हुई बस। खेतों में गन्ना और आलू लगे हुए थे।
लगभग साढे 3 घंटे के बाद अपने घर पहुंच गए। माता और पिता जी बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। बैठे चाय पानी पिया फिर शिव अंक्ल आ गए । बातें होने लगी, यह बातें अक्सर एक गोष्ठी का ही रूप ले लेती हैं। जैसे उन्होंने बताया कि उनको आदत है जब भी वो किसी दफ्तर में जाते हैं तो आदमी से जरूर बात करते क्हैं। अगर पगड़ी अच्छी बांध रखी है तो पगड़ी की तारीफ करते हैं। उसका सुख दुख भी। मैंने उनसे ये बात सीखी है तभी तो आज ये लिख रहा हूँ। जब शुरु-शुरु में मोबाइल आए, तो मैंने कहा मोबाइल की किरणों के दुष्परिणाम हो सकते हैं। तो वह इतने सकारात्मक हैं, कि वो बोले, कि हो सकता है मोबाइल से पेट में रखने से पेट की पथरी के टूट जाए। मुश्किल से मुश्किल हालात में कोई उम्मीद की किरण हमेशा उनके पास मिल ही जाती है। बचपन से लेकर उनके साथ रहा, नाटक खेले।वो भी जब मैं पांचवी कक्षा में पढ़ता था।
जिंदगी के मुश्किल दौर में हम सब के पास एक मेंटर होना चाहिए जिससे हम अपने दिल की सारी बात कर सकें। पेड़ लगाने की आदत मैनें उन्होंने से सीखी है। पेड़ लगाने की बात पर उन्होनें बताया वह किसी के घर गए तो बहुत बड़ा नीम का पेड़ था । उन्होंने कहा है बहुत घना है। तो घर वालों ने बताया कि ये पेड़ आपका ही लगा हुआ है। वो बहुत हैरान हुए। उनको आदत है शुरू से ही, कि वो जब भी किसी के पास जाते थे तो कोई ना कोई पेड़ लगा देते थे। पिताजी के साथ स्वास्थ्य पर बातें हुई है, माता जी से बात हुई। बच्चे अपनी दादी को साथ लेकर बाहर घूमे। फिर मैनें अपने बेटे के हाथों का लगाया हुआ पेड़ देखा वो आज बहुत बड़ा हो चुका था। रात का खाना वाना खाया ।
बच्चों ने छत्त पर पडी सूखी लकडी इक्ट्ठा की और आग लगाई। दादा के साथ आग ताप ली।
रात को सो गए। सुबह का खाना खा कर गुरु मां के घर गए। उनसे बातें होने लगी। वो कृष्ण जी के ठाकुर रूप बहुत मानते हैं। घर पर कृष्ण जी का मंदिर है। कोई भी खाना बनता है तो ठाकुर जी को भोग लगाकर ही खाया जाता है । उन्होनें बहुत अच्छी बात बताई कि अगर मां अपने बेटे को खाना खिलाती है तो इसका भाव से खिलाए कि वह भी भगवान का एक रूप है। अपने पति को खाना खिलाते हुए थे वही भाव दिखाएं तो पति-पत्नी में अलग किस्म का संसार होगा। तो इस तरह से सँसार में होते हुए उनकी साधना हो जाएगी। वो भी मेरी एक मेंटर है। जिंदगी के उतार-चढ़ाव के वक्त उनको मिलकर एक नई ऊर्जा मिलती है।
कुछ ओर बातें हुईं। फिर हम घर आए । घर में कुछ काम थे वो निपटाए।
आज के लिए अलविदा।
फिर मिलेंगे या किस्से के साथ।
आपका
रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड
01.12.2019
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