Tuesday, November 30, 2021

ਜਗਤ ਚੇਤਨਾ ਹੂੰ ਅਨਾਦਿ ਅਨੰਤਾ, ਜਨਮਦਿਨ ਬਾਰੇ

ਜਗਤ ਚੇਤਨਾ ਹੂੰ ਅਨਾਦਿ ਅਨੰਤਾ 

ਅੱਜ ਸਵੇਰੇ ਇਹ ਗੀਤ ਸੁਣ ਰਿਹਾ ਸੀ ਤਾਂ ਸੋਚਿਆ ਕਿੰਨਾ ਕਮਾਲ ਦਾ ਗੀਤ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਤੇ ਗਿਆ ਹੈ , ਕੈਲਾਸ਼ ਖੇਰ ਨੇ।

ਕੱਲ ਮੇਰਾ ਜਨਮਦਿਨ ਸੀ ਦੋਸਤਾਂ ਤੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਨੇ ਵਧਾਈਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਿਸ ਲਈ ਮੈਂ ਤਹਿ ਦਿਲੋਂ ਮੈਂ ਸਭ ਦਾ ਧੰਨਵਾਦ ਕਰਦਾ ਹਾਂ।

ਜਨਮਦਿਨ ਬਾਰੇ ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸੀ ਤਾਂ ਵਿਚਾਰ ਆਇਆ ਚੇਤਨਾ ਬਾਰੇ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਨਾ ਉਹ ਜਨਮਦੀ ਹੈ ਤੇ ਨਾ ਉਸਦੀ ਮੌਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। 

ਗੀਤ ਚ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ, "ਨਾ ਆਤਮਾ ਨੂੰ ਤਲਵਾਰ ਨਾਲ ਕੱਟ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਅਗਨੀ ਉਸਨੂੰ ਜਲਾ ਪਾਉਂਦੀ ਹੈ।"
ਗੁਰਬਾਣੀ ਚ ਲਿਖਿਆ ਹੈ
"ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ 
ਅਜੂਨੀ "

ਮਤਲਬ ਨਾ ਉਸਦੀ ਕੋਈ ਮੌਤ  ਨਹੀਂ 
ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਜੂਨ ਚ ਉਹ ਹੈ।

ਬਾਪੂ ਗੁਰਬਖਸ਼ ਜੱਸ ਦੀ ਕਵਿਤਾ ਵੀ ਹੈ

"ਨਾ ਜਨਮ ਖੁਸ਼ੀ ਦੀ ਗੱਲ
ਨਾ ਮੌਤ ਗਮ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ
ਜੀਵਨ ਤਾਂ ਇਹਨਾਂ ਦੋਹਾਂ ਤੋਂ ਪਾਰ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ"

ਸੋ ਇੱਕ ਚੇਤਨਾ ਜਾਂ ਊਰਜਾ ਹੈ ਜੋ ਸਫਰ ਕਰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ , ਰੂਪ ਬਦਲਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ।
ਜਦ ਉਹ ਪੰਜ ਤੱਤ ਚ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਤੇ ਮਨ ਦਾ ਜਨਮ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਬੰਦਾ ਹੈ। 
ਜੇ ਮਨ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਉਹ ਜਾਨਵਰ ਕਿਓਂਕਿ ਮਨ ਦੇ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਅਸੀਂ ਮਨੁੱਖ ਹਾਂ ( ਓਸ਼ੋ ਦੇ ਇਕ ਪ੍ਰਵਚਨ ਚੋਂ)  
ਜਦ ਇਹ ਚੇਤਨਾ ਪੰਜ ਤੱਤਾਂ ਚ ਮਿਲਕੇ ਬੱਚੇ ਦਾ ਰੂਪ ਧਰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਦਿਨ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਜਨਮਦਿਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਾਂ।
ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਚ ਮਨੁੱਖ ਆਕੇ ਮਾਇਆ ਚ ਗੁਆਚ ਜਾਂਦੇ ਨੇ। ਜੇ ਇਹ ਮਾਇਆ ਨਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਬੱਚੇ ਨਹੀਂ ਜੰਮਣੇ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦਾ ਵਰਤਾਰਾ ਅੱਗੇ ਨਹੀਂ ਵਧਣਾ। ਇਹ ਰੰਗ ਰੂਪ ਪਿਆਰ ਨਫਰਤ ...ਸਭ ਉਸਦਾ ਪਸਾਰਾ ਹੈ। 
ਇਸ ਵਿਚ ਹਰ ਬੰਦਾ ਜੰਮਦਾ ਹੈ ਆਪਣਾ ਗੁਣਧਰਮ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਲਈ। ਪਰ ਕੁਝ ਲੋਕ ਹੀ ਆਪਣਾ ਗੁਣਧਰਮ ਜਾਣ ਪਾਉਂਦੇ ਨੇ ਉਹ ਜੀਵਨ ਜੀਉ ਕੇ ਵਿਦਾ ਹੁੰਦੇ ਨੇ ਤੇ ਜਾਂ ਵੇਲੇ ਕੋਈ ਦੁੱਖ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਓਹਨਾ ਨੂੰ।

ਇਸ ਬਾਰ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਜਦ Jung Bahadur Goyal  ਹੋਰਾਂ ਦੇ ਘਰ ਬੈਠਾ ਸੀ ਤਾਂ ਓਹਨਾ ਕੁਝ ਬਹੁਤ ਸੂਝਵਾਨ ਗੱਲਾਂ ਕੀਤੀਆਂ।
ਇਕ ਗੱਲ ਉਹਨਾਂ ਕਹੀ,  ਕਿ ਜਦ ਅਸੀਂ ਕੋਈ ਵਧੀਆ ਕਿਤਾਬ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹਾਂ ਤਾ ਸਾਨੂੰ ਇਕ ਆਤਮਿਕ ਖੁਸ਼ੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਤਾ ਗੱਲ ਪੂਰੀ ਹੋ ਗਈ। 
ਪਰ ਜੇ ਅਸੀਂ ਇਸ ਖੋਜ ਚ ਲੱਗ ਜਾਈਏ ਕਿ ਇਸਦਾ ਲੇਖਕ ਤਾਂ ਮਹਾਂ ਸ਼ਰਾਬੀ ਸੀ, ਇਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਕੀ ਕੀ ਗ਼ਲਤੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਨੇ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਸਮਝੋ ਮਾਇਆ ਚ ਗੁਆਚ ਗਏ। ਗੱਲ ਤਾਂ ਉਥੇ ਹੀ ਮੁੱਕ ਗਈ ਸੀ ਅਸੀਂ ਆਤਮਿਕ  ਆਨੰਦ ਅਨੁਭਵ ਕੀਤਾ ਉਸ ਕੋਲੋਂ ਤੇ ਦੂਜਾ ਅਸੀਂ ਵਿਰਾਸਤ ਚ ਕਿ ਦੇ ਕੇ ਗਏ ਇਸ ਧਰਤੀ ਤੋਂ ਵਿਦਾ ਹੋਣ ਵੇਲੇ?
ਇਹ ਇੱਕ ਹੀ ਮੂਲ ਸਵਾਲ ਹੈ, ਕੀ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਜੀਵਣ ਨੂੰ ਭਰਪੂਰ ਜਿਵਿਆ ਜਾਂ ਨਹੀਂ?
ਜਾਂ ਅਸੀਂ ਇਸ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਪੜਚੋਲ ਕਰਨ ਚ ਗੁਆ ਦਿੱਤਾ?
ਇੱਕ ਬੋਧ ਕਥਾ ਹੈ। 
ਇੱਕ ਬੰਦਾ ਪਿੰਡ ਦੇ ਬਾਹਰ ਇੱਕ ਦਰਖ਼ਤ ਹੇਠਾਂ ਬੈਠ ਜਾਂਦਾ ਜਦ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕ ਗਾਵਾਂ ਮੱਝਾਂ ਲੈਕੇ ਉਹਨਾ ਨੂੰ ਚਰਾਉਣ ਜਾਂਦੇ ਤਾਂ ਵੀ ਉਹ ਗਿਣਤੀ ਕਰਦਾ, ਜਦ ਉਹ ਸ਼ਾਮਾਂ ਨੂੰ ਵਾਪਿਸ ਆਉਂਦੇ  ਤਾਂ ਵੀ ਮੱਝਾਂ ਗਾਵਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਕਰਦਾ।
ਇਕ ਦਿਨ ਬੁੱਧ ਉਸ ਪਿੰਡ ਚ ਆਏ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ, ਤੂੰ ਸਾਰੀ ਉਮਰ ਇੱਕ ਹੀ ਕੰਮ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ਬੱਸ ਗਿਣਤੀ , ਕੀ ਤੈਂਨੂੰ ਦੁੱਧ ਮਿਲਿਆ?
ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ, ਨਹੀਂ।
ਤਾਂ ਬੁੱਧ ਕਹਿੰਦੇ, ਦੂਜਿਆਂ ਦੀਆਂ ਮੱਝਾਂ ਗਿਣਨ ਨਾਲ ਤੁਹਾਨੂੰ ਦੁੱਧ ਨਹੀਂ ਮਿਲਣਾ। 
ਸੋ ਤੂੰ ਆਪਣੀ ਮੱਝ ਪਾਲ। ਆਪਣਾ ਕਰਮ ਕਰ।
 
ਹੁਣ ਆਪਣੇ ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਇਹ ਨਿਊਜ਼ ਚੈਨਲ, ਅਖਬਾਰਾਂ ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ..... ਇਹ ਸਭ ਦੂਜਿਆਂ ਦੀਆਂ ਮੱਝਾਂ ਹੀ ਗਿਣਨ ਰਹੇ ਨੇ।

 
ਅਸੀਂ ਜੰਮਦੇ ਕਿਉਂ ਹਾਂ?
ਜੇ ਇਹ ਸਵਾਲ ਦੀ ਖੋਜ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਈਏ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਹੀ ਜਵਾਬ ਮਿਲੇਗਾ। 
ਜਿਵੇ ਕੋਈ ਵਧੀਆ ਸੰਗੀਤਕਾਰ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਬੁੱਤਘੜ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਲੇਖਕ, ਕਵਿ, ਕਿਸਾਨ, ਮੋਚੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ।
ਪਰ ਜਦ ਆਦਮੀ ਜੋ ਉਹ ਹੋ ਸਕਦਾ ਉਹ ਛੱਡਕੇ  ਕੁਝ ਹੋਰ ਹੋਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਦੁਖੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਦੁੱਖ ਦਾ ਬਦਲਾ ਉਹ ਦੁਨੀਆਂ ਨਾਲ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।

ਅੱਜ ਮਨੁੱਖ ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਕੱਲ ਕੀ ਹੋਣਾ ਕੌਣ ਜਾਣਦਾ?
ਗੀਤ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਸਤਰ੍ਹਾਂ

मैं पुण्य ना पाप सुख दुःख से विलग हूँ
ना मंत्र ना ज्ञान ना तीर्थ और यज्ञ हूँ

ना भोग हूँ ना भोजन ना अनुभव ना भोक्ता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता
ना भोग हूँ ना भोजन ना अनुभव ना भोक्ता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता

ना मृत्यु का भय है ना मत भेद जाना
ना मेरा पिता माता मैं हूँ अजन्मा

निराकार साकार शिव सिद्ध संता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
निराकार साकार शिव सिद्ध संता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता

मैं निरलिप्त निरविकल्प सूक्ष्म जगत हूँ
हूँ चैतन्य रूप और सर्वत्र व्याप्त हूँ

मैं हूँ भी नहीं और कण कण रमता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
मैं हूँ भी नहीं और कण कण रमता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता

ये भौतिक चराचर ये जगमग अँधेरा
ये उसका ये इसका ये तेरा ये मेरा
ये आना ये जाना लगाना है फेरा
ये नाश्वर जगत थोड़े दिन का है डेरा

ਇਹ ਗੀਤ ਸਾਨੂੰ ਅਨੰਤ ਦੇ ਸਫਰ ਦੀ ਇੱਕ ਝਲਕ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਕੈਲਾਸ਼ ਖੇਰ ਦੀ ਅਵਾਜ਼ ਕਮਾਲ ਹੈ। ਇਸਦੇ ਕਈ ਗੀਤਾਂ ਤੇ ਮੈਂ ਨੱਚਦਾ ਵੀ ਹਾਂ। 
ਭੁੱਲ ਜਾਦਾ ਹਾਂ ਇਹ ਸਭ ਮੋਹ ਮਾਇਆ!

ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
01.12.2021

मेरी पुरहीरां की यात्रा

#मेरी_पुरहीरां_की_यात्रा
#my_journey_to_punjab_part_1
#purhiran
इस रविवार साइकिलिंग नहीं पर आपको पंजाब की यात्रा पर ले कर जा रहा हूँ। पंजाबी में कहा जाता है, कंध ओहले  परदेस,  इसका मतलब है दीवार के उस तरफ परदेस है। 
 हालांकि मुझे यहां रुद्रपुर आए हुए कई साल हो गए पर अपनी मिट्टी की चाहत दिल में हर वक्त बनी रहती है। 

27.11.2019 की शाम हम घर से निकले रामपुर। वहां पर रेलवे स्टेशन को नया रूप दिया जा रहा है। सफेदी की जा रही है प्लेटफार्म की टाइल का फर्श तोड़कर नया रूप दिया जा रहा है । वहां पर मैंने ठेला  खींचते हुए एक मजदूर को देखा, तो मुझे अपने दोस्त davinder bedi की बात याद आई , वो कहता  दुनिया में दो ही किस्म के लोग हैं एक अमीर और एक गरीब। सदियों से इनके बीच में एक संघर्ष और खींचातानी चली आ रही है । कुछ लोग पढ़ लिखकर मध्यवर्गीय परिवार बन गए और फिर उनमें से कुछ लोग आईएएस ऑफिसर बने । वह अप्पर क्लास में चले तो  गए पर फिर भी अपनी मिट्टी से जुड़े ही रहते हैं।

 ट्रेन आ गई और हम बैठ गए । मैं मेरी पत्नी सिमरन , मेरा बेटा रोहन और वंश । रात को सो गए और सुबह 3:00 बजे ट्रेन के अंबाला पहुंचने का समय था पर वह अपने समय से 2 घंटे लेट हुई और हम वहां 5:00 बजे पहुंचे।
 वहां उतरे तो देखा के गरमा गरम ब्रेड बन रहे थे और उसकी खुशबू ने हमें रोक लिया । सिमरन ने कहा कि ब्रेड खाने हैं। हम ब्रड  खाने लग गएऔर  उस लड़के से बात हुई । लड़के का नाम दीपू है ।उसने कहा कि हम सुबह को आलू वाले ब्रेड बनाते हैं । फिर जब आलू खत्म हो जाते हैं तो उसके बिना ही बनाते हैं।  पर उसके बनाने में स्वाद था कि हम 6 खा गए। मैं उस लड़के से बात करने लगा,  उस लड़के का नाम दीपू था। आज ओ डबल शिफ्ट में था मतलब  24 घंटे के लिए रुका था । मैंने पूछा,  रात को सो लेते हो ने कहा नहीं,  बस लगातार काम ही चलता है । पर वह अपने काम में मस्त था,  खुश था।

 वहां से विदा ली और फिर हम बस पकड़ डेराबस्सी आए और फ्रेश होकर होशियारपुर के लिए निकल लिए। चंडीगढ़ के  इर्द गिर्द बहुत सारी  बिल्डिंगे बन रही हैं।
 43 में पहुंचे और वहां से बस पकड़ कर अपने गाँव की तरफ चल दिए। खेतों खलियानों के मध्य बनी हुई सड़क पर दौड़ती हुई बस। खेतों में गन्ना और  आलू लगे हुए थे।
 लगभग साढे 3 घंटे के बाद अपने घर पहुंच गए। माता और पिता जी बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। बैठे चाय पानी पिया फिर शिव अंक्ल आ गए । बातें होने लगी,  यह बातें अक्सर एक गोष्ठी का ही रूप ले लेती हैं। जैसे उन्होंने बताया कि उनको आदत है जब भी वो किसी दफ्तर में जाते हैं तो  आदमी से जरूर बात करते क्हैं।  अगर पगड़ी अच्छी बांध रखी है तो पगड़ी की तारीफ करते हैं। उसका सुख दुख भी।  मैंने उनसे ये बात सीखी है तभी तो आज ये लिख रहा हूँ। जब शुरु-शुरु में मोबाइल आए, तो मैंने कहा मोबाइल की किरणों के दुष्परिणाम हो सकते हैं। तो वह इतने सकारात्मक हैं, कि वो बोले, कि हो सकता है मोबाइल से पेट में रखने से पेट की पथरी के टूट जाए।  मुश्किल से मुश्किल हालात में कोई उम्मीद की किरण हमेशा उनके पास मिल ही जाती है। बचपन से लेकर उनके साथ रहा, नाटक खेले।वो  भी जब मैं पांचवी कक्षा में पढ़ता था।

 जिंदगी के मुश्किल दौर में हम सब के पास एक  मेंटर होना चाहिए जिससे हम अपने दिल की सारी बात कर सकें। पेड़ लगाने की आदत मैनें उन्होंने  से सीखी है। पेड़ लगाने की बात पर उन्होनें बताया वह किसी के घर गए तो बहुत बड़ा नीम का पेड़ था । उन्होंने कहा है बहुत घना है। तो घर वालों ने बताया कि ये पेड़ आपका ही लगा हुआ है। वो बहुत हैरान हुए। उनको आदत है शुरू से ही, कि वो जब भी किसी के पास जाते थे तो कोई ना कोई पेड़ लगा देते थे।  पिताजी के साथ स्वास्थ्य पर बातें हुई है, माता जी से बात हुई। बच्चे अपनी दादी को साथ लेकर बाहर घूमे। फिर मैनें अपने बेटे के हाथों का लगाया हुआ पेड़ देखा वो  आज बहुत बड़ा हो चुका था।  रात का खाना वाना खाया ।

 बच्चों ने छत्त पर पडी सूखी लकडी इक्ट्ठा की और  आग लगाई।  दादा के साथ आग ताप ली।

 रात को सो गए। सुबह का खाना खा कर गुरु मां के घर गए। उनसे बातें होने  लगी। वो  कृष्ण जी के ठाकुर रूप बहुत मानते हैं। घर पर कृष्ण जी का मंदिर है। कोई भी खाना बनता है तो ठाकुर जी को भोग लगाकर ही खाया जाता है । उन्होनें बहुत अच्छी बात बताई कि अगर मां अपने बेटे को खाना खिलाती है तो इसका भाव से खिलाए कि वह भी भगवान का एक रूप है। अपने पति को खाना खिलाते हुए थे वही भाव  दिखाएं तो पति-पत्नी में अलग किस्म का संसार होगा। तो इस तरह से सँसार में होते हुए उनकी साधना हो जाएगी। वो भी मेरी एक मेंटर है। जिंदगी के उतार-चढ़ाव के वक्त उनको मिलकर एक नई ऊर्जा मिलती है।

कुछ ओर बातें हुईं। फिर हम घर आए । घर में कुछ काम थे  वो निपटाए। 

आज के लिए अलविदा।
फिर मिलेंगे या किस्से के साथ।

आपका 
रजनीश जस 
रुद्रपुर 
उत्तराखंड
01.12.2019

Saturday, November 27, 2021

साईकिलिंग और थोडा सा रूमानी हो जाँए, फिल्म के किस्से

सुबह साइकिलिंग पर पहुंचा तो कोई दोस्त नहीं आया था। शायद ठंड बढ़ने से कंबल ने पकड़ मजबूत कर ली। साईकिल से चक्कर लगाया पंछियों की आवाज़ सुनीं। कुदरत का संगीत लगातार चल रहा है, हमें सिर्फ रूक कर सुशना ही है, रूकना सिर्फ शरीर का नहीं, मन का रूकना भी जरूरी है।

 रास्ते में देखा लड़के क्रिकेट खेल रहे थे और लड़कियां कबड्डी। कोरोना खत्म हुआ है तो ज़िन्दगी बहाल होने लगी है।
       फूलों पर ओस की बूँदें हीरे से कम नहीं

 भीम दा के चाय के अड्डे पर पहुँचा तो देखा आग जल चुकी है इसका मतलब सर्दी का आगमन का बिगुल बज चुका है। एक लेमन की और ब्रेड का आर्डर देकर मैं आग के पास बैठ गया।
आज सुबह ही फिल्म की याद आ गई नाना पाटेकर की फिल्म है, आमोल पालेकर के निर्देशन में, फिल्म का नाम है ," थोड़ा सा रूमानी हो जाएँ" ।

एक लड़का जिसको ऊंचाई से डर लगता है, एक लड़की है जो कि साँवली है वह सोचती है मेरी शादी नहीं हो सकती। उसका भाई है जो कि सोचता है बारिश नहीं होगी तो फसल नहीं होगी। नाना पाटेकर का आना होता है और फिल्म दिलचस्प मोड़ लेती है।
पहले नाना पाटेकर के दिलचस्प डायलाग और पूरी फिल्म का लिंक शेयर कर रहा हूँ
https://youtu.be/fwOKxgpLuS8

पूरी फिल्म का लिंक

https://youtu.be/-Tq2U8ze_8o

अब आते हैं साईकिलिंग की तरफ 
कभी सुना आपने साइकिल का जन्मदिन मनाना। नहीं सुना ,तो सुनाता हूं।
 इसका से हमारे एक जानकार मिलें। उन्होंने बताया छोटे थे तो उन्होंने चौथी क्लास में पढ़ते थे और उनको बड़ा शौक था कि साईकिल चलाएँ।  उनके बड़े भाई साहब पढ़ने चले गए और उनके दादाजी का साइकिल जो घर पर था उसने अपने पिता जी को कहा कि इसे सही करवा दो तो पिता जी उसकी चेन वगैरह सही करवा कर लाए। वह  चौथी क्लास में अपने स्कूल में ले जाने लगे। स्कूल से छुट्टी की जल्दी रहती कि साईकिल चलाना है।  फिर पाँचवी कक्षा में हो गए हैं तो अपने पिता को कहा नयी साईकिल लेनी है। पर पिता ने शर्त रखी अगर तुम अच्छे नंबर लेकर आए तो तुम्हें मैं साइकल दिलवा लूंगा। तो उनकी फर्स्ट डिविज़न आई ।  उधर  सफेदे के पेड़ काटे गये थे तो आमदनी हुई तो पैसे आए थे। तो उसके पिता ने उन्हें हीरो रेंजर साइकिल दिलवा दी।  ल सुबह और शाम अपना साइकिल की  सफाई करते। स्कूल में दीवार से सटाकर खड़ा करते कि कि गिरने के चांस ना हो। किसी और को उसके पास साइकिल खड़ा करने नहीं देते थे।  साइकिल की सीट के पीछे  तारीख लिखी होती थी जिस तारीख को वो खरीदा होता था। तो फिर जब उसको खरीदे एक साल पूरा हो गया तो अपने दोस्तों के साथ पार्टी की और साईकिल का जन्मदिन मनाया। उन दिनों अमरूद और कच्चे आम काटकर नमक लगाकर पार्टी की। उन्होनें बताया कोई अपनी मर्सीडीज़ कार को भी इतना संभालकर नहीं रखता होगा जितना वो अपने साईकिल को रखते थे।

फिर  मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।

आपका अपना 
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
28.11.2021
#rudarpur_cycling_club

Tuesday, November 23, 2021

साईकिलिंग 24.11.2019

रविवार आते ही मन में उल्लास भर जाता है, दोस्तों से मिलना जो होता है साइकिलिंग के बहाने । रविवार है तो  घर से निकला साइकिल लेकर । आज 7 बजे के बाद ही निकला, थोडी देर  हो गई थी ।
सर्दियों की शुरुआत हो चुकी है,  सड़क पर कोहरा था। कोहरे में बहुत ध्यान से चलना पड़ता है । चाय के अड्डे पर पहुंचा तो पंकज वंही था। आग जलाकर ताप रहे थे। हमने चाय  और ब्रेड का कहा। चाय पीकर हटे तो  थोड़ी ही देर में शिव शांत और प्रेम भी आ गए।

 शिव ने एक दिलचस्प बात बताई कि वो कहीं भी जाता है तो वहां पर उसको ठहरने के लिए होटल नहीं लेने पड़ता क्योकिं उसके हर जगह पर दोस्त हैं। दुनिया भर में ऐसे बहुत सारे घुमक्कड़ है जो कि घूमते रहते हैं बिना पैसे के। अब हाल ही में एक किताब आई है एक बार आदमी ने पूरा भारत घूमा है वह भी बिना पैसे के,वो भी  ट्रक ड्राइवरों से लिफ्ट ले लेकर । उसने यह भी लिखा है कि हम ट्रक ड्राइवरों को बहुत बुरा मानते हैं ,पर जब उनके साथ सफर करते हैं उनकी कठिनाइयों और  उनके जीवन की समस्याओं का पता चलता है।भारत भ्रमण करते हुए भारत में अच्छे लोगों और अलग-अलग तरह की सभ्यता का पता चलता  है । 
फिर थोड़ी देर में राजेश सर आ गए ।

जापान के बारे में बात हुई ।  दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका ने हिरोशिमा नागासाकी के ऊपर बम फेंक दिया तो उसके शहर पूरी तरह तबाह कर दिए  थे । तो उसके बहुत साल बाद जब जापान ने बहुत तरक्की की।  तो किसी पत्रकार ने किसी के जापानी से पूछा तो आपने अमेरिका से कैसे बदला  लिया?  तो उसने सहजता से जवाब दिया   अगर आप अमेरिका के राष्ट्रपति के दफ्तर में एलईडी देखोगे या कुछ और साधन देखो में सब जापान के ही तो है। बदला लेने क्या यह ढंग भी अनोखा है।
 बुद्ध की देशना चीन, जापान ,भूटान और यहां यहां भी पहुंची है उन देशों की तरक्की आज  देखने लायक है । बुद्ध कहते हैं क्रोध को करुणा से ही जीता जा सकता है। यही बात जापान ने सिद्ध की है।

 किस्से कहानियों का दौर चलता रहा। ठंड होने के कारण तितलियाँ   दिखाई नहीं दे रही थी। प्रेम ने एक बात बताई के एक लड़का भारत से रशिया घूमने गया। वहां उसे वहां की लड़की मिली। उस लड़की से जब जान पहचान हुई तो उसको भारत को जानने की उत्सुकता पैदा हुई। वह लड़की फिर भारत घूमने आई।
 राजेश सर  चले गए और हम निकल लिए पैदल आगे सैर करने के लिए। बातें होने लगी के आदमी की हरकतें देख कर ऐसा लगता है कि वह शायद इस धरती का प्राणी नहीं है। क्योकिं इसको इतने लाख साल हो गए धरती पर आए हुए, और इतने सालों में अब तक इसने  तरक्की की है इसने  इतने हथियार बना लिए हैं कि धरती को 20 बार नष्ट किया जा सकता है। इससे पता चलता है कि बुद्धि का विकास हुआ है,  पर साथ में विवेक का विकास नहीं हुआ । वो इस धरती को तबाह  करने पर तुला हुआ है। कई वैज्ञानिक तो यहां तक कहते हैं कि अगर आदमी धरती पर ना हो तो इकोसिस्टम बिल्कुल सही तरीके से चल सकता है। धरती आदमी के बगैर  चल सकती है ,  पर अगर  पेड़ पौधे ,पंछी सब नष्ट हो जाए तो फिर धरती नहीं चल पाएगी।
 रास्ते में  प्रेम बेरी की झाडियों से बेर तोड़ रहा था  मुझे वह सौदागर फिल्म का गीत याद आ गया।  इमली का बूटा 
बेरी का पेड़
चल घर जल्दी 
हो गई देर 

अलग-अलग विषयों पर बात हुई कि जैसे इंसान की जरूरत है तो कम है पर बेवजह की दौड़ ने उसे पागल बना रखा है । जैसे कि आदमी सुख सुविधायों  के लिए पैसा कमाता है पर वो पैसा कमाने में ही इतना व्यस्त हो जाता है को सुख सुविधा को भूल ही जाता है।  जैसे हमें एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए किसी ना किसी साधन की जरूरत होती है।वो कुछ भी हो सकती है , स्कूटर बस कुछ भी हो सकता है । अभी आदमी के पास कार है। जिस दिन वह  नई कार खरीद कर लाता है उसी दिन वो सोच लेता है कि 2 साल बाद मुझे यय बेचकर दूसरी कार लेनी है। पर यह नहीं सोचता कि दो साल में उसको जिंदगी जीनी है या नहीं?
 इसी पर एक शेर याद आ गया कि
 बस यही दौड़ है इस दौर के इंसानों की
 तेरी दीवार से ऊँची मेरी दीवार बने

 प्रेम बात कर रहा था कि दिल्ली प्रदूषण की समस्या के कारण वँहा एक दुकान खुली है यहां पर शुद्ध ऑक्सीजन के लिए 15 मिनट दिए जाते हैं और उसके 350 रूपये  तक  लगते हैं। पंकज ने बताया कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी की कार्बन फिल्म इसी विषय पर आई है। बातें करते-करते हम फिर दोबारा चाय केअड्डे पर आ गए। पंकज ने अपना मोटरसाइकिल उठाया और फिर हमने साइकिल।फिर चल दिए घुमक्कड़  अपने घर को ।
फिर मिलेंगे  एक नए  किस्से के साथ।आज इतना ही।
 तब तक के लिए अलविदा।
आपका अपना
 रजनीश जस
रूद्रपुर उत्तराखंड
24.11.2019

Monday, November 22, 2021

साईकिलिंग और किसानी आंदोलन में जीत 20.11.2021

रविवार को दोस्तों के साथ फुर्सत में चाय पीना, बातें करना ज़िन्दगी का एक हिस्सा ही हो गया है। 
आज सुबह साइकिलिंग करने चाय के अड्डे पर पहुंचा तो वहां पर एक गीत लगा हुआ था,  

ज़िन्दगी की यही रीत है
हार के बाद ही जीत है
थोड़े आँसू हैं, थोड़ी हँसी
आज ग़म है, तो कल है ख़ुशी
ज़िन्दगी की यही रीत...

ज़िन्दगी रात भी है, सवेरा भी है ज़िन्दगी
ज़िन्दगी है सफ़र और बसेरा भी है ज़िन्दगी
एक पल दर्द का गाँव है, दूसरा सुख भरी छाँव है
हर नए पल नया गीत है
ज़िन्दगी की यही रीत...

ग़म का बादल जो छाए, तो हम मुस्कराते रहें
अपनी आँखों में आशाओं के दीप जलाते रहें
आज बिगड़े तो कल फिर बने, आज रूठे तो कल फिर मने
वक़्त भी जैसे इक मीत है
ज़िन्दगी की यही रीत...

मिस्टर इंडिया का यह गीत जावेद अख्तर ने लिखा और किशोर कुमार ने गाया है। 
एफ एम पर गाने सुनने का अलग ही मज़ा है रेडियो दोबारा फिर से पॉपुलर हो रहा है
                धूप छाँव का खेल

शिवशांत, पंकज शर्मा , हरिनंदन और राजेश जी तो आए बातें हुईं।
किसान आंदोलन में जीत हुई। लोगों ने शांतिपूर्वक अपनी मांगों को मनवाने के लिए संघर्ष किया। वह एक जन आंदोलन बन गया।लोगों ने गुरु नानक देव जी, गुरु गोविंद सिंह , हरि सिंह नलवा और लंगर के बारे में जाना। पूरे विश्व से मदद मिली। हलांकि इसी दौरान कोरोना, डेंगू भी फैले। पर हौंसलें से लोग डटे रहे। आखिर जीत गये। 

हर रविवार हम यहां बैठते हैं, एक दूसरे से बातें करते हैं। यह बातें दिल को बहुत सुकून देती हैं। 

 लेमन टी पीने का अलग ही स्वाद है। उस में  काली मिर्च, नींबू और ढेर सारा प्रेम डालते हैं भीम दा, जिस से चाय बहुत स्वादिष्ट हो जाती है। 

फिर  मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।

आपका अपना 
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
20.11.2021
#rudarpur_cycling_club

साईकिलिंग 22.11.2020

रविवार है तो फुर्सत ,साइकिलिंग, दोस्त, किस्से कहानियां। सुबह साइकिलिंग के लिए निकला तो टोपी वगैरह लगाकर क्योंकि मौसम में ठंडक बढ़ चुकी है। लेह लद्दाख में बर्फ पड़ गई है, मैदानों में बारिश हो चुकी है, ऊपर उत्तराखंड में केदारनाथ के कपाट बंद हो चुके हैं बर्फबारी के कारण।

 हम भी साइकिल उठाकर चल दिए। शिव शांत चाय के अड्डे पर इंतज़ार कर रहा था। पर अभी भी भीम दा पहाड़ से वापिस नहीं आए हैं तो फिर हम साइकिलिंग करने आगे निकले। सुबह-सुबह पंछियों की आवाज सुनी, फोटोग्राफी की।

 फिर वापिस आ गए, आज पास ही एक चाय की दुकान पर डेरा जमाया। फिर हरिनंदन भी आ गया।
 फिर बातचीत शुरू हुई  थियोसोफिकल सोसाइटी बनाने वाली लेखिका ब्लॉटबसकी के बारे में। हरिनंदन बता रहा था कि जब वह उसने कहा है कि जब वह किताब लिखती थी तो वह कहती थी कि "वह खुद नहीं लिख रही कोई ना कोई शक्ति उससे यह लिखवा रही है।"
क्या कमाल की बात है, कि कुदरत ने हमसे जो काम लेना होता है हमारी बुद्धि को वैसा ही हो बना देती है। शिवशांत भी बता रहा था कि जब वह कोई शायरी करता है तो वह पता नहीं कैसे हो जाती है अपने आप? पर जब वह कोशिश करके लिखता है तो कुछ लिखा नहीं जाता। ओशो ने भी कहा है कि कवि, आम आदमी और संत के बीच की अवस्था होती है कभी-कभी उसको झलक मिलती है परमात्मा के संसार की।
 थोड़ी देर में चाय आ गई। ब्रेड खाए।
 हरिनंदन ने अपने अनुभव बताए ध्यान के बारे में।

 मुझे एक फिल्म की कहानी याद आ गई शॉर्ट मूवी मुंबई वाराणसी एक्सप्रेस, 
जो Dee Pa मैडम ने भेजी थी।

एक आदमी जिस को कैंसर हो गया डॉक्टर ने बोल दिया कि अब तुम्हारी मृत्यु निश्चित है। वह मुंबई से काशीकी ट्रेन पकड़ता है।  हिंदु धर्म में ये मान्यता है कि जिसकी मृत्यु काशी में होती है उसको मोक्ष प्राप्त होता है। जब वह जब ट्रेन में बैठता है तो एक गुजराती आदमी उसके सामने बैठा है। वो गुजराती उसे खाने के लिए कुछ देता है पर वह अभी खाता नहीं तो उसके पेट में अल्सर है।
 गुजराती खाने पीने के बहुत शौकीन है। वो गुजराती उसको बताता है कि सूरत रेल्वे स्टेशन के सामने एक ढाबा है यहां पर खाना बहुत टेस्टी होता है।  फिर वह काशी आता है तो वहां रिक्शा वाला जो उसे छोड़ने आता है तो वह कहता है कि जब आप अपनी मर्ज़ी  से काशी में  मरकर मोक्ष के लिए आए हैं  जब आप मर जाओगे तो आप का कार्यक्रम बड़े धूमधाम से करूंगा। वँहा पर वह कमरा किराए में लेता है तो फिर मैं रिक्शा वाले के साथ दोस्ती हो जाती है। रिक्शावाला उसे एक अखाड़े में लेकर जाता है। वो वँहा पर मरघट पर हर रोज़ मुर्दे जलते देखता है । वँहा एक बच्चे से दोस्ती हो जातीहै। यह करते करते करते हुए और ठीक हो जाता है। डाक्टर ने जो समय दिया होता है उससे बहुत समय ऊपर हो जाता है, अब वह खुश है, सेहतमंद हो गया है। यहतो करिश्मा ही है।

एक दिन वो जलेबी समोसे खा रहा होता है तो जिस अखबार में वो पैक हुए होते हैं वो उसमें  देखता है कि ख़बर आई कि  उसके बेटे का बिज़नेस में बहुत दिक्कत आ गई है। तो पुत्र का मोह जाग जाता है।  तो वह  मुंबई वापिस जाना चाहता है तो वह रिक्शा वाले के साथ उसका खूब झगडा  होता है। पर फिर भी वह वापिस मुंबई की ट्रेन पकड़ लेता है।जब ट्रेन सूरत में  रुकती है तो उसको वँहा के ढाबे की याद आ जाती है। तो जैसे वो ढाबे पर खाना खाने जाता है तो फिर रास्ते में टक्कर होती है तो उसकी भी मृत्यु हो जाती है।

 फिल्म की कहानी लिखने वाले ने बड़ा कमाल का लिखा है कि जब हम मृत्यु को स्वीकार कर लेते हैं तब वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ती पर जब हम जीवन के मोह में ग्रस्त होकर जीवन को पकड़ने की कोशिश करते हैं तो मृत्यु आकर हमें पकड़ लेती है। इस फिल्म का लिंक नीचे भेज देख रहा हूं ।

https://youtu.be/N1R6Fyf5V6M

आप भी देखें।

 फिर बहुत सारे विषयों पर बातचीत हुई जैसे कि ध्यान के बारे में हरिनंदन से बातें हो रही थी तो मैंने कहा ध्यान को  किसी गुरु के देखरेख में ही करना चाहिए।

 फिर कुछ फिल्मों का जिक्र हुआ। उसने अघोरी की एक फिल्म के बारे में जिक्र किया।
फिर  महात्मा बुद्ध के बारे में बातें हुई। उनके ऊपर एक सीरियल बना था जो ज़ी टीवी पर आया था। उस सीरियल को बनाने के लिए उसके डायरैक्टर ने  श्रीलंका, जापान और जहां जहां भी  बुद्ध का प्रसार हुआ वो खुद वँहा गए।वहां पर जाकर उनकी लिखी हुई किताबें और उनके सन्यासियों  से करके ही उस सीरियल
को  बनाया।
 फिर बैठे-बैठे ठंड लगने लग गई।हम धूप में आकर खड़े हो गए। बातें करते करते हैं 9:00 बज गए ।
फिर हम भी वापस निकल लिए अपने अपने घरों को।
फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर।

आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
निवासी पूरहीरां
होशियारपुर, पंजाब
#rudarpur_cycling_club
#rudarpur
22.11.2020

Friday, November 19, 2021

ਯਾਦਾਂ ਬਾਪੂ ਦੀਆਂ

ਸਤਿੰਦਰ ਸਰਤਾਜ ਦਾ ਗੀਤ ਹੈ 

"ਔਖੇ ਸੌਖੇ ਹੋ ਕੇ ਜਦੋਂ 
ਭੇਜਿਆ ਸੀ ਮਾਪਿਆਂ ਨੇ
ਸੁਫਨੇ ਉਹ ਪੂਰੇ ਦੱਸੀਂ ਹੋਏ ਕਿ ਨਹੀਂ,
ਜੀ, ਥੋਡੇ ਬਾਪੂ ਜੀ ਵੀ ਪੁੱਛਦੇ ਸੀ 
ਪੁੱਤ ਸਾਡੇ ਪੈਰਾਂ ਤੇ ਖਲੋਏ ਕੇ ਨਹੀਂ 
ਥੋਡੇ ਬਾਪੂ ਜੀ ਵੀ ਪੁੱਛਦੇ ਸੀ

ਮੈਥੋਂ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਵੇਖ ਹੋਏ 
ਹੱਥ ਜੋੜੇ ਓਹਨਾਂ ਦੇ ਵੀ 
ਥੱਕੀ ਟੁੱਟੀ ਆਸ ਨਾਲ ਹਾਲ ਪੁੱਛਿਆ ਨੀ
ਮੈਨੂੰ ਆਇਆ ਨਹੀਂ ਜਵਾਬ ਉਦੋਂ 
ਸੀਨੇ ਨਾਲ ਲਾਉਣ ਦਾ ਸੁਆਦ ਪੁੱਛਿਆ "

ਰੋਟੀ ਤੇ ਵਧੀਆ ਜੀਵਨ ਜਿਊਣ ਦੀ ਚਾਹਤ ਸਾਨੂੰ ਪ੍ਰਦੇਸਾਂ ਦੇ ਧੱਕੇ ਖਾਣ ਤੇ ਮਜਬੂਰ ਕਰਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਗੀਤ ਉਸ ਦੁਖਾਂਤ ਨੂੰ ਦਰਸਾਉਂਦਾ ਹੈ।

ਮੈਂ ਵੀ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਪੁਰਹੀਰਾਂ , ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਤੋਂ ਪੰਜ ਸੌ ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਦੂਰ ਰੁਦਰਪੁਰ, ਉਤਰਾਖੰਡ ਚ ਹਾਂ। ਬਾਪੂ ਗੁਰਬਖ਼ਸ਼ ਜੱਸ ਨਾਲ ਪਿਉ ਪੁੱਤ ਵਾਲਾ ਰਿਸ਼ਤਾ ਤਾਂ ਹੈ ਪਰ ਨਾਲ ਦੇ ਨਾਲ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੀ ਸਾਂਝ ਵੀ ਰਹੀ।
ਜਦ ਵੀ ਮਿਲਣਾ ਇੰਝ ਗੱਲ੍ਹਾਂ ਹੋਣੀਆਂ ਜਿਵੇਂ ਬਹੁਤ ਪੁਰਾਣੇ ਮਿੱਤਰ ਮਿਲੇ ਹੋਣ। 
ਪਹਿਲਾਂ ਬਾਪੂ ਜੀ ਕਾਮਰੇਡ ਰਹੇ, ਸਰਦਲ ਦੀ ਸੰਪਾਦਕੀ ਕੀਤੀ,  ਘਰ ਚ ਪਲਸ ਮੰਚ ਦੀਆਂ ਮੀਟਿੰਗਾਂ ਹੋਣੀਆਂ, ਨਾਟਕਾਂ ਦੀ ਰਿਹਰਸਲ ਹੋਣੀ। 
ਫਿਰ ਉਹ ਓਸ਼ੋ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨ ਲੱਗੇ ਤਾਂ ਸਾਰੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਨੇ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ ਇਹ ਤਾਂ ਸੈਕਸ ਗੁਰੂ ਹੈ। ਓਹਨਾਂ ਵਿਰੋਧ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਚ ਮੈਂ ਵੀ ਸਾਂ। ਪਰ ਮੈਂ ਓਸ਼ੋ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨ ਲੱਗਾ ਤਾਂ ਵੇਖਿਆ ਉਹ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ?
"ਓਸ਼ੋ ਇੱਕ ਚਿੰਗਾਰੀ ਪੈਦਾ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਸਾਡੀਆਂ ਮਾਣਤਾਵਾਂ ਤੇ ਸੰਸਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਜਲਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਅਸੀਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਬਿਨਾ ਕਿਸੇ ਚਸ਼ਮੇ ਤੋਂ ਵੇਖੀਏ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਉਹ ਅਸਲ ਚ ਨੇ। ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਗੱਲ ਓਸ਼ੋ ਕਹਿੰਦਾ ਕੇ ਉਸ ਤੇ ਵੀ ਅੱਖਾਂ ਬੰਦ ਕਰਕੇ ਭਰੋਸਾ ਨਾ ਕਰੋ।" 

ਫਿਰ ਦੋਹਾਂ ਦੀ ਓਸ਼ੋ ਸੰਨਿਆਸ ਦੀ ਦੀਕਸ਼ਾ ਲਈ ਸੁੰਦਰਨਗਰ ਹਿਮਾਚਲ ਚ। ਘਰ ਚ ਇਕੱਠਿਆਂ ਨੇ ਧਿਆਨ ਕਰਨਾ।

ਬਾਪੂ ਜੀ ਨੇ ਪ੍ਰਾਣਾਯਾਮ ਕਰਨਾ ਹਰ ਸੇਵਰ।

ਮੈਂ ਬਾਰ੍ਹਵੀਂ ਜਮਾਤ ਚ ਫੇਲ ਹੋ ਗਿਆ ਮਾੜੀ ਸੰਗਤ ਕਰਕੇ। ਫਿਰ ਬਠਿੰਡਾ ਪਲੀਟੈਕਨਿਕ ਚ ਦਾਖਲਾ ਲਿਆ ਉਸ ਪਿੱਛੋਂ ਵੀ ਨੌਕਰੀ ਟਿਕ ਕੇ ਨਾ ਕਰਨੀ, ਮੈਨੇਜਰ ਨਾਲ ਲਡ਼ ਪੈਣਾ, ਖੂਨ ਚ ਕਾਮਰੇਡੀ ਜੋ ਸੀ। ਫਿਰ  ਮਿੱਤਰ ਪੰਕਜ ਬੱਤਾ ਨੇ ਕਿਹਾ, ਹਰ ਮੈਨੇਜਰ ਤਾਂ ਮਾੜਾ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਤੂੰ ਆਪਣੇ ਵੱਲ ਵੀ ਗੌਰ ਕਰ। ਹੋ ਸਕਦਾ ਤੂੰ ਵੀ ਗਲਤ ਹੋਵੇਂ। ਫਿਰ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਅਸੀਂ ਪੂਰਾ ਸਿਸਟਮ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਬਦਲ ਸਕਦੇ ਪਰ ਆਪਣਾ ਕੰਮ ਇਮਾਨਦਾਰੀ ਨਾਲ ਕਰੀਏ ਤੇ ਜੋ ਨਤੀਜਾ ਮੈਨਜਮੈਂਟ ਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਉਹ ਦਈਏ ਤਾਂ ਹੀ ਤਨਖਾਹ ਮਿਲੇਗੀ ਤੇ ਨੌਕਰੀ ਚਲੱਗੀ। ਪਰ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਮਨੁੱਖੀ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖੀਏ।
 
ਜੀਵਨ ਚ ਕਈ ਕੰਮ ਕੀਤੇ, ਕਾਮਯਾਬ ਨਾ ਹੋਇਆ ਪਰ ਬਾਪੂ ਜੀ ਨੇ ਕਦੇ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨ ਨਹੀਂ ਹੋਏ। ਓਹਨਾਂ ਕਦੇ ਕੁੱਟਿਆਂ ਨਹੀਂ, ਇਹ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ, ਤੂੰ ਇਹ ਕੀ ਕੀਤਾ?
 
ਬਸ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਸੁਪਨਾ ਸੀ ਕਿ ਮੈਂ ਬਾਹਰਲੇ ਮੁਲਕ ਜਾਕੇ ਸੈੱਟ ਹੋ ਜਾਵਾਂ। ਉਸ ਲਈ ਕੁਝ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ , ਫ਼੍ਰੈਂਚ ਭਾਸ਼ਾ ਸਿੱਖੀ ਪਰ ਬਾਹਰ ਜਾਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਤਿਆਗ ਦਿੱਤਾ ਕਿਉਕਿਂ ਸ਼ੁਰੂ ਤੋਂ ਹੀ ਮੈਨੂੰ ਗੱਲਾਂ ਕਰਨ ਦਾ ਸ਼ੌਂਕ ਹੈ। ਮੈਂ ਸੋਚਿਆ ਬਾਹਰਲੇ ਮੁਲਕ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਕੋਲ ਆਪਣੇ ਲਈ ਵੀ ਸਮਾਂ ਹੀ ਨਹੀਂ , ਉਹ ਤੇਰੇ ਨਾਲ ਕੀ ਗਲ੍ਹਾਂ ਕਰਨਗੇ। ਸੋਚਿਆ ਮੈਂ ਤਾਂ ਉੱਥੇ ਜਾ ਕੇ ਅੱਧਾ ਕੁ ਉੰਝ ਹੀ ਮਰ ਹੀ ਜਾਵਾਂਗਾ।

ਬਾਪੂ ਜੀ ਆਪਣੀਆਂ ਕਿਤਾਬ ਤੇ ਸਾਹਿਤ ਦੇ ਸੰਸਾਰ ਚ ਹਮੇਸ਼ਾ ਗੁਆਚੇ ਰਹਿੰਦੇ। ਮੈਂ ਘਰੋਂ ਬਾਹਰ ਹੀ ਰਿਹਾ। ਜਦ ਘਰ ਜਾਣਾ ਤਾ ਬੇਬੇ ਨੇ ਕਹਿਣਾ, ਫਲਾਣੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰ ਕੋਲ ਜਾਕੇ ਆ।  ਮੈਂ ਬਾਪੂ ਦੇ ਦੋਸਤ ਰਾਕਸ਼ਪਾਲ ਹੋਰਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਜਾਣਾ ਆ ਕਿਤੇ ਹੋਰ ਤਾਂ ਬਾਪੂ ਜੀ ਨੇ ਕਹਿਣਾ ਤੂੰ ਘੁੱਮਣ ਜਾ, ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਕੋਲ ਮੈਂ ਆਪੇ ਹੀ ਜਾ ਆਊਂਗਾ।  
ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਮੇਰੇ ਤੇ ਬਾਪੂ ਦੇ ਦੋਸਤ ਬਹੁਤ ਨੇ।
 
ਹੁਣ ਉੱਤਰਾਖੰਡ ਚ ਹਾਂ।
ਜਦ ਬਾਪੂ ਦੀ ਤਬਿਅਤ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋਣੀ ਤਾ ਭੱਜੇ ਭੱਜੇ ਪੰਜਾਬ ਜਾਣਾ। ਕਈ ਬਾਰ ਲੱਗਣਾ ਕੇ ਬਾਪੂ ਕੋਲ ਜਿਆਦਾ ਚਿਰ ਰਹਿ ਨਹੀਂ ਪਾਉਂਦਾ ਪਰ ਇਹ ਸੋਚਦਾ ਜੇ ਕੈਨੇਡਾ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਕਿਥੋਂ ਆ ਹੋਣਾ ਸੀ? 

ਬਜ਼ੁਰਗ ਪੰਜਾਬ ਛੱਡਕੇ ਨਹੀਂ ਜਾ ਰਹੇ। ਬਾਪੂ ਜੀ ਦੇ ਇਕ ਮਿੱਤਰ ਕਾਲੀਆ ਮਾਸਟਰ ਜੀ ਜੋ ਸਾਨੂੰ ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲ ਘੰਟਾਘਰ, ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਚ ਪੜਾਉਂਦੇ ਸੀ। ਜਦ ਉਹ ਰਿਟਾਇਰ ਹੋ ਗਏ ਤਾਂ ਇੱਕ ਦਿਨ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਬਾਇਪਾਸ ਤੇ ਮਿਲੇ ਉਹ ਕਹਿੰਦੇ " ਸਾਰੀ ਉਮਰ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਹੀ ਕੱਟੀ ਹੁਣ ਬਾਹਰ ਜਾਕੇ ਬੱਚਿਆਂ ਕੋਲ ਰਹਿਣਾ ਔਖਾ ਲੱਗਦਾ।"
ਮੈਂ ਵੀ ਬਾਹਰਕੇ ਮੁਲਕ ਇਸ ਕਰਕੇ ਵੀ ਨਹੀਂ ਗਿਆ ਕਿ ਸੋਚਣਾ ਖਾਣੀਆਂ ਤਾਂ  ਰੋਟੀਆਂ ਹੀ ਨੇ ਸੋਨਾ ਤਾਂ ਖਾ ਨਹੀਂ ਲੈਣਾ। ਇੱਥੇ ਸਮਾਂ ਤਾਂ ਹੈ ਆਪਣੇ ਲਈ।

ਇਹੀ ਗੱਲ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਇਕ ਮਿੱਤਰ ਨਾਲ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਬਿਜ਼ਨਸ ਚ ਲੱਖਾਂ ਦਾ ਘਾਟਾ ਪਿਆ ਤਾਂ ਉਸਨੇ ਕਿਹਾ , "ਤੂੰ ਇਹ ਗੱਲ ਪਹਿਲਾਂ ਜਾਣ ਗਿਆ, ਕਿ ਖਾਣੀਆਂ ਤਾਂ ਰੋਟੀਆਂ ਹੀ ਸੋਨਾ ਖਾ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਲੈਣਾ। ਮੈਂ ਇਹ ਗੱਲ ਘਾਟਾ ਖਾਕੇ ਸਿੱਖੀ। ਜਦ ਬਹੁਤ ਕੰਮ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਤਾਂ ਸਾਰੀ ਦਿਹਾੜੀ ਫੋਨ ਵੱਜਦਾ ਰਹਿਣਾ। ਜਦ ਪਹਿਲਾਂ ਪਹਿਲ ਬਾਹਰਲੇ ਮੁਲਕ ਆਇਆ ਤਾਂ ਦੋ ਸੌ ਡਾਲਰ ਦਾ ਚਲਾਨ ਹੋਇਆ। ਲੱਗਾ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ। ਫਿਰ ਜਦ ਕੰਮ ਵੱਧ ਗਿਆ ਤਾਂ ਦੋ ਹਜ਼ਾਰ ਦਾ ਵੀ ਚਲਾਨ ਹੋਇਆ ਪਰ ਉਦੋਂ ਮਹਿਸੂਸ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਕਿਉਂਕਿ ਕੰਮ ਬਹੁਤ ਜਿਆਦਾ ਸੀ ਤੇ ਕਮਾਈ ਵੀ। ਪਰ ਜਦ ਕੰਮ ਚ ਘਾਟਾ ਪਿਆ ਤਾਂ ਪਤਾ ਲੱਗਾ,ਖਾਣੀਆਂ  ਤਾਂ ਕਣਕ ਦੀਆਂ ਰੋਟੀਆਂ ਨੇ, ਸੋਨਾ ਤਾਂ ਖਾ ਨਹੀਂ ਲੈਣਾ।" 
ਇਹ ਗੱਲ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਉਦੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਦੀ ਜਦ ਉਹ ਮੌਤ ਕੰਡੇ ਪਾਏ ਹੁੰਦੇ ਨੇ ਬਹੁਤਿਆਂ ਨੂੰ ਤਾਂ ਮੌਤ ਤਕ ਵੀ ਇਹ ਸੱਚ ਪਤਾ ਨਾ ਚੱਲਦਾ ਉਹ ਮਾਇਆ ਚ ਭਟਕਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਨੇ। 

 ਇੱਥੇ ਭਾਰਤ ਚ ਸਾਂ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਕੋਲ ਜਦ ਬਾਪੂ ਜੀ ਮੇਰੇ ਹੀ ਹੱਥਾਂ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਤੋਂ ਵਿਦਾ ਹੋਏ ਪਰ  ਜੇ ਮੈਂ  ਬਾਹਰਲੇ ਮੁਲਕ ਚ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਕੋਲ ਨਾ ਹੁੰਦਾ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਮਲਾਲ ਸਾਰੀ ਉਮਰ ਰਹਿਣਾ  ਸੀ।

 
ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਚ ਮੇਰੇ ਮਿੱਤਰ ਨੇ, ਸਾਹਿਤ ਹੈ, ਸੋਚ ਹੈ...... ਮੈਂ ਇਹ ਸੋਚਦਾ ਇਹ ਸਭ ਬਾਪੂ ਦੇ ਸਾਹਿਤ ਕਰਕੇ ਸੰਭਵ ਹੋ ਸਕਿਆ। 

ਹੁਣ ਬਾਪੂ ਸਰੀਰਿਕ ਰੂਪ ਚ ਨਹੀਂ ਪਰ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਮੈਂ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਪਾਉਂਦਾ ਹਾਂ। 

ਤਸਵੀਰ ਇਸੇ ਸਾਲ ਜਦੋਂ Jasvir Begampuri ਹੋਰੀਂ ਸਾਡੇ ਘਰ ਮਿਲਣ ਆਏ।

ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਪੁਰਹੀਰਾਂ,ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ
ਪੰਜਾਬ

ਅੱਜਕੱਲ ਰੋਟੀ ਤੇ ਵਧੀਆ ਜੀਵਨ ਲਈ
ਰੁਦਰਪੁਰ, ਉਤਰਾਖੰਡ

Sunday, November 14, 2021

साईकिलिंग 11.11.2020

रविवार है तो फुर्सत, दोस्त, साइकिलिंग, किस्से, कहानियां। सुबह साइकिल के लिए निकला तो माथे को ठंड लगी, अब मौसम में ठंडक बढ़ गई है। अब लग रहा है अगले रविवार टोपी पहन कर जाना पड़ेगा।
चाय के अड्डे पर पहुंचा तो दुकान बंद, भीम दा अपने गांव दिवाली मनाने गए होंगे। मैं वहां से आगे निकल गया तो फिर शिवशांत का फोन आया तो वो वँहा चाय के अड्डे  पर था तो मैं वापिस आया। थोड़ी देर में हरिनंदन भी आ गया। फिर हम तीनों निकल लिए सैर को। रास्ते में पेड़ पर कुछ चिड़िया चहचहा रही थी।  वो मधुर आवाज़ सुनी और उसकी वीडियो बनाई। हम आगे बढ़ते हैं  तो देखते हैं आसमान में तरह-तरह के बादल हम  हैरान हो रहे थे। सुबह-सुबह अलग अलग तरह के पंछी देखने को मिलते हैं। मौसम में बदलाव आने के कारण तितलियां दिखाई नहीं पड़ रहीं। हम खड़े थे तो ललित भाई साइकिल पर दिखाई दिये मैनें आवाज़ लगाई तो उन्होंने कहा मैं वापस आता हूँ, पर वो रूके नहीं।

 इत्तेफाक पर अच्छी बात याद आई।
ओशो एक किस्सा सुनाते हैं।
 फ्रांस के स्टेशन पर ट्रेन रूकी। एक लड़का और एक लड़की उतरे। लड़की उसके बाद बहुत सारा सामान था। लड़के ने कहा, क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ? लड़की ने हां कहा और दोनों स्टेशन से बाहर की तरफ चल दिए। वह दोनों वहां पर घूमने आए हुए थे। उन्होंने कहा टैक्सी दो क्यों एक ही कर लेते हैं। आधे घंटे का रास्ता था। उनमें खूब बातचीत  हुई । जब कार होटल पर पहुंची उन्होनें तैय किया, कमरे दो क्यों एकही ले लेते हैं। उन्क्होनें एक ही कमरा लिया। उनमें प्यार हो गया, शादी हो गई फिर वह बच्चा पैदा हुआ। तो वो बच्चा लेखक बना,  उसने लिखा कि कमबख्त उस दिन कुली नहीं था स्टेशन पर तो बात यहां तक पहुंच गई?😃😃

हररिनंदन ने बताया कि जे कृष्णमूर्ति के स्कूल की वीडियो देखी जिसमें उसने स्कूल के बच्चे  देखें जिसमें हो भोजन नीचे बैठकर कर रहे हैं। वो वहां बैठे खाना खा रहे थे,  इस स्कूल में कोई भी क्लास नहीं है टीचर भी आसपास हैं। उनको कोई मुश्किल आती है तो वो टीचर से पूछ लेते हैं। हरिनंदन कह रहा था अगर उसे भी उस स्कूल में पढ़ने का मौका मिलता है तो  कुछ और ही बात  होती। ओशो भी कहते हैं 26 साल की उम्र तक जो हम बच्चों को सिखाते हैं वह 16 साल तक की उम्र तक सीख सकते हैं। हमारे सिखाने की चेष्ठा और उनके विरोध के कारण 10 साल ज्यादा लग जाते हैं।

 फिर बात हुई तिब्बत के लोगों के बारे में। जैसे दलाई लामा तिब्बत से यहां पर आए तो कहते हैं हम उस वक्त इतने  घने बादल छा गए कि चीन के सिपाहियों को दिखाई भी नहीं पडा। नहीं तो वो पता नहीं क्या व्यवहार करते दलाई लामा के साथ?
यह भी हो सकता है कि कुदरत ने उन को बचाना था। दलाई लामा के साथ एक ऐसी परंपरा भारत में आई जो कि रहस्य से भरी हुई है। वह तिब्बत से खच्चरों पर बहुत सारी किताबें और बहुत सारा सोना लेकर आए जो कि आजकल धर्मशाला में रह रहे हैं ।
 साथ बात भी हुई मिलरेपा के बारे में। मिलरेपा एक भिक्षु हुए है जो कि बचपन में उनके चाचा चाची ने उसके मां-बाप की संपत्ति हड़प ली। उसके पिता  की मृत्यु बचपन में हो गई थी। उसके बाद फिर दोनों ने अपने चाचा चाची को जिंदा जला दिया। फिर वो पश्चाताप की आग में जलने लगे। फिर मिलरेपा ने कठिन तपस्या की और बुद्धत्व को उपलब्ध हुए। एक किताब भी 100 सांग्स आफ मिलरेपा। एक फिल्म भी बनी है। 

 घुमक्कड़ होने का एक किस्सा। हरिनंदन हल्द्वानी पढ़ने जाता था। एक दिन वह टिऊशन पर लेट हो गया तो उसने उसके मन में आया कि कैंची धाम मंदिर जाए। पर उसकी जेब में पैसे नहीं थे। उन दिनों कोई ऐसा एक ऐप आया था जिससे कि बैंक से पैसे आ सकते थे । तो उसने पैसे निकलवाए और बस पकड़ कर वहां पहुंचा। वँहा आधा घंटा ध्यान में बैठने से उसे शांति का अनुभव हुआ। उसने वापिस आना था उसको पता नहीं था कैसे? वँहा पर एक आदम था उसने कहा कि तुम्हारी श्रद्धा देखकर मैं हैरान हूं। तो उसने उसको कहा कि उसने किच्छा जाना है तो उसने उसको रुद्रपुर तक लिफ्ट दे दी। तो क ई बार ऐसा भी होता है।

हम धूप में हम आनंद ले रहे थे उधर से ललित भाई निकले। मैंने आवाज़ दी और वह बोले कि मैं बाद में आता हूं। अगले चक्कर में भी वहीं पर खड़े हुए थे ललित भाई साईकलिंग करते हुए बोले, तुम साइकिलिंग भी करोगे या खड़े गप्पे मारते रहोगे?😊😊

और बहुत सारे विषयों पर बातें हुई। बातें करते करते हम चाय के अड्डे पर आए तो 9:30 बज चुके थे। वहां से  फिर  हम घर को वापिस लौट आए। 

फिर मिलेंगे।

आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर 
पंजाब
15.11.2020
#rudarpur_cycling_club
#rudarpur

ਪੀਪਲਜ਼ ਫਾਰਮ ਦੀ ਡਾਇਰੀ ਤੇ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਆਂ ਦੀਆਂ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਦਾ ਪੰਜਾਬੀ ਰੁਪਾਂਤਰ ਪਵਨ ਨਾਦ ਦੁਆਰਾ

ਬੈਕਨ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਾਕ ਹੈ ਕੁਝ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦਾ ਸਵਾਦ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਕੁਝ ਨੂੰ ਨਿਗਲ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਕੁਝ ਨੂੰ ਚਬਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। 
ਕੁਝ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਵੀ, ਕੁਝ ਕਿਤਾਬਾਂ ਮੇਰੇ ਖੂਨ, ਮੇਰੀਆਂ ਹੱਡੀਆਂ ਤੇ ਰੂਹ ਚ ਉਤਰ ਜਾਂਦੀਆਂ ਨੇ। 
 
ਅੱਜ ਤੋਂ ਦੱਸ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਪੀਪਲਜ਼ ਫੋਰਮ ਬਰਗਾੜੀ ਨੇ ਡਾਇਰੀ ਛਾਪੀ ਜੀ ਜੋ ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਕੋਲ ਸੀ ਉਸ ਵਿਚ ਕਈ ਸਾਰੀਆਂ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਤੇ ਸ਼ਾਇਰ ਨੇ। ਉਹ ਮੈਨੂੰ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਲੱਗੀ ਤੇ ਮੈਂ ਇਸ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਪਰ ਇਸ ਤੋਂ ਸਿਖਿਆ ਬਹੁਤ ਕੁਝ।
 
ਹੁਣ ਖੁਸ਼ਵੰਤ ਬਰਗਾੜੀ ਹੋਰਾਂ ਨਾਲ ਫੇਸਬੁੱਕ ਤੇ ਮਿਲਿਆ  ਤਾਂ ਓਹਨਾ ਕੋਲੋਂ ਕੁਝ ਕਿਤਾਬਾਂ ਮੰਗਵਾਈਆਂ । ਓਹਨਾ ਚ ਇਕ ਕਿਤਾਬ "ਕਵਿਤਾ ਦੇ ਵਿਹੜੇ" ਦਾ ਟਾਈਟਲ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਲੱਗਾ,  ਇਕ ਦਰਵਾਜ਼ਾ ਉੱਤੇ ਫੁਲ ਬੂਟੇ ਵੇਖਕੇ ਖਲੀਲ ਜ਼ਿਬਰਾਨ ਦਾ ਲਿਖਿਆ ਯਾਦ ਆ ਗਿਆ ਕਿ ਸਾਡੇ ਘਰ ਦੂਰ ਦੂਰ ਹੋਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਨੇ ਤੇ ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਇਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਘਰ ਨੂੰ ਜਾਈਏ ਤਾਂ ਰਾਹ ਚ ਅੰਗੂਰ ਦੀਆਂ ਵੇਲਾਂ ਹੋਣ ਫੁਲ ਹੋਣ , ਅਸੀਂ ਅੰਗੂਰ ਖਾਂਦੇ ਜਾਈਏ।
ਵਾਕਈ ਜੇ ਅਸੀਂ ਕਵਿਤਾ ਦੇ ਵਿਹੜੇ ਜਾਈਏ ਤਾਂ ਯਕੀਨਨ ਉਹ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਹੋਵੇਗਾ।

ਕਿਤਾਬ ਹੈ ਹਿੰਦੀ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਵੀਆਂ ਦੀਆਂ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਦਾ ਪੰਜਾਬੀ ਰੂਪਾਂਤਰਣ।
 
ਕੁਝ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਤਾਂ ਸਿੱਧੀਆਂ ਦਿਲ ਚ ਉਤਾਰ ਗਈਆਂ 
ਜਿਵੇਂ 
ਦੇਵਤਾਓ ਤੁਸੀਂ ਹੁਣ 
ਜਾਓ ਹੁਣ ਉਹ ਆ ਗਈ ਹੈ 
-------
ਇਕ ਕਵਿਤਾ 

ਤੁਸੀਂ ਯਕੀਨ ਕਰੋ 
ਹਰ ਰੋਜ਼ 
ਆਉਂਦੇ ਜਾਂਦੇ
ਕਈ ਵਾਰ ਤਾਂ 
ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਨੇੜ ਤੇੜ
 ਉਦੋਂ ਮੈਂ ਸੱਚਮੁੱਚ ਬੋਲਕੇ ਜ਼ੋਰ ਨਾਲ ਕਹਿੰਦਾ ਹਾਂ ਨਮਸਕਾਰ ਜਨਾਬ ਹੋਰ ਸੁਣਾਓ 
ਯਕੀਨ ਕਰਿਓ 
ਉਦੋਂ ਉਹ ਆਪਣਾ 
ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਹੱਥ
ਮੇਰੇ ਵੱਲ ਹਿਲਾਉਂਦਾ ਹੈ 

ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਆਮ ਆਦਮੀ ਦੇ ਦਰਦ ਨੂੰ ਬਿਆਨ ਕਰਦੀਆਂ ਕਈ ਨਵੇਂ ਸੁਪਨੇ ਬੁਣਦੀ ਹੈ। ਚੋਣਵੀਂ ਸਮਕਾਲੀ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਰਵੈਸ਼੍ਵਰ ਦਿਆਲ ਸਕਸੈਨਾ, ਕੁੰਵਰ ਨਾਰਾਇਣ ,ਚੰਦਰਕਾਂਤ ਦੇਵਤਾਲੇ , ਭਾਗਵਤ ਰਾਵਤ ,ਅਸ਼ੋਕ ਵਾਜਪਾਈ, ਮੈ
ਮੰਗਲੇਸ਼ ਡਬਰਾਲ , ਵਿਸ਼ਨੂੰ ਨਾਗਰ, ਉਦੈ ਪ੍ਰਕਾਸ਼, ਕੁਮਾਰ ਅੰਬੁਜ,ਗਗਨ ਗਿੱਲ,ਬਾਬੁਸ਼ਾ ਕੋਹਲੀ।  
 
ਕਿਤਾਬ ਚ ਇਕ ਕਵਿਤਾ ਪੜ੍ਹਦੇ ਇਕ ਅੱਖਰ ਤੇ ਮੈਨੂੰ ਸਮਝ ਨਹੀਂ ਆਇਆ ਤਾਂ ਪਵਨ ਨਾਦ ਹੋਰਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕੀਤੀ। ਕਵਿਤਾ ਹੈ "ਉਭਰਨ ਚ ਡੁੱਬੀ ਔਰਤ" , ਸ਼ਬਦ ਹੈ ਪੂਜਦੀ ਹੈ ਘੱਟ ਨੈਣ੍ਹਦੀ ਹੈ ਵੱਧ 
ਤਾਂ ਪਵਨ ਜੀ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਨੈਣ੍ਹਦੀ ਦਾ ਮਤਲਬ ਹੈ ਮੇਹਣਾ ਮਾਰਨਾ ਕਿ ਔਰਤ ਪੂਜਾ ਘੱਟ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ ਤੇ ਰੱਬ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਇਹ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ।
 
ਪਵਨ ਜੀ ਵੀ ਆਪਣੀ ਕਵਿਤਾ ਦੀ ਕਿਤਾਬ ਵਾਂਙ ਸ਼ਰਮਾਕਲ ਜਿਹੇ ਤੇ ਪਿਆਰੇ ਇਨਸਾਨ ਲੱਗੇ। 
ਬਠਿੰਡੇ ਦੇ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਮੈਨੂੰ ਹੋਰ ਵਧੀਆ ਲੱਗੇ ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਉਥੇ ਸਰਕਾਰੀ ਬਹੁਤਕਨੀਕੀ ਚ ਤਿੰਨ ਸਾਲ ਪੜ੍ਹਿਆ ਹਾਂ। ਉਹ ਵੀ ਬੂਟੇ ਲਾਉਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਯਤਨਸ਼ੀਲ ਨੇ। ਉਹਨਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਇੱਕ ਵਾਰ ਕਿਸੇ ਵਧੀਆ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਦਾ ਅਨੁਵਾਦ ਪੰਜਾਬੀ ਚ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਫੇਸਬੁੱਕ ਤੇ ਪਾਈ। ਦੋਸਤਾਂ ਨੇ ਹੱਲਾਸ਼ੇਰੀ ਦਿੱਤੀ। ਉੱਥੋਂ ਹੋਰ ਉਤਸ਼ਾਹ ਮਿਲਿਆ ਤਾਂ 21 ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਹੋ ਗਈਆਂ ਤੇ ਫਿਰ ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਦਾ ਰੂਪ ਬਣ ਗਿਆ। 
ਉਹ ਵੀ ਕਈ ਵੇਰਾਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੇ ਸਫੇ ਮੋਡ਼ ਕੇ ਸੋਚਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸੀ।

ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਦੁਆਵਾਂ ਨੇ ਤੇ ਪਿਆਰ।
ਕਿਤਾਬ ਪੀਪਲਜ਼ ਫੋਰਮ ਨੇ ਛਾਪੀ ਹੈ। ਕੀਮਤ 150 ਰੁਪਏ, 168 ਪੰਨੇ ਨੇ। 

ਫਿਰ ਮਿਲਾਂਗਾ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਕਿਤਾਬ ਲੈਕੇ।

ਆਪਦਾ ਆਪਣਾ
ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ, ਉਤਰਾਖੰਡ
ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰਹੀਰਾਂ,
ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ
6.11.2020

वंश गया साईकिलिंग करने और ब्रेड खाने 15.11.2021

कल किसी कारण रविवार को मैं साईकिलिंग पर नहीं जा पाया।फिर शाम को अपने साईकिलिंग वाले एक मित्र के साथ गपशप मारी, चहलकदमी की तो अच्छा लगा। 
आज  सुबह-सुबह छोटा बेटा आया बोला पापा, ब्रेड पीस खाने जाना है( वह भी वही जाने को कह रहा था यँहा हम जाते हैं) 
मैनें 20 रुपये दिए तो बोला, "10 रुपये और दे दो मेरा एक दोस्त है वह भी पैसे नहीं लाया है।"

 मुझे अपने पिताजी की बात याद आ गयी, वह कहते, "बेटा, केवल पैसे के पीछे मत भागना, अच्छे दोस्त बनाना। "
यह दोस्ती की नींव रखी जा रही है।

हालांकि आज उसका  स्कूल वह गया नहीं । बोला घर पर ही ऑनलाइन क्लास लगा लूंगा।  फिर अपने पिता की याद आ गए,उन्होंने छुट्टी करनी। मैंने कहना पिताजी आज छुट्टी क्यों करनी है?
कहते , "किताब पढ़नी है।"
मैं हैरान हो जाता। तब शायद इतनी समझ नहीं थी, अब बातें समझ में आ रही हैं।
हम भी बठिंडा पोलीटेक्निक में बंक मारकर सूए ( छोटी नहर) में नहाने जाते थे। 

शायद रतन टाटा ने कहा है, जो लोग बैक बैंचर्ज़ होते हैं वह ज़िन्दगी को जीते हैं, कुछ ना कुछ नया करने की क्षमता रखते हैं। 

 मुझे कहानी याद आ गई तो पहले भी कहीं सुनाई होगी।
 फिलास्फी का एक प्रोफेसर खाली जार लेकर अपनी क्लास में आया। उसमें उसने टेनिस की 4 बॉल में डाल दी। 
फिर उसने बच्चों को पूछा, जार  भर गया?
 बच्चों ने कहा, हाँ।
 मैं उससे कुछ कंचे डाल दिये और फिर बच्चों को पूछा, जार  भर गया?
बच्चों ने कहा फिर  हाँ कहा।
 फिर उसने फिर उसने उसमें दो कप कॉफी के डालें और पूछा, जार भर गया?
बच्चों ने फिर हाँ में सिर हिलाया।
फिर उसने बच्चों को समझाया कि यह टेनिस की 4 बॉल्स आपकी सेहत, आपका परिवार,आपके दोस्त हैं।  इसमें छोटी-छोटी टेनिस की बाल आपकी नौकरी, घर और कार  है।
अगर  सबसे पहले छोटे-छोटे कंचों से जार को भर लोगे तो उसके टेनिस की बॉल उसमें नहीं आएगी। मतलब अगर उसमें सिर्फ नौकरी , मकान और अआर से भर लोगे तो आपकी सेहत , परिवार और दोस्तों के लिए कोई जगह नहीं रह जाएगी।

उसमें एक बच्चे ने पूछा,यह  जो काफी के दो कप हैं वह क्या है?
प्रोफेसर ने कहा यह सही प्रशन है,मैं सोच ही रहा था।
"चाहे आपकी ज़िन्दगी जितनी मर्ज़ी व्यस्त हो देखोपर इतनी फुर्सत हमेशा रखो कि दोस्तों के साथ बैठकर दो कप चाय पी सको।" 
 कपिल शर्मा शो में सलमान खान के पिता ने एक बात कही थी, "दोस्ती उस से करो जिसके दोस्त और नौकर बहुत पुराने हों।"

फिर  मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।

आपका अपना 
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
15.11.2021
#rudarpur_cycling_club

Thursday, November 4, 2021

ਇਕ ਕੁੜੀ ਦੀ ਗੁਪਤ ਡਾਇਰੀ , ਕਿਤਾਬ

" ਇਕ ਕੁੜੀ ਦੀ ਗੁਪਤ ਡਾਇਰੀ " 
ਸ਼ਸ਼ੀ ਸਮੁੰਦਰਾ ਦੀ ਹੱਡ ਬੀਤੀ ਹੈ। 
ਇਕ ਕੁੜੀ ਜੋ ਆਪਣੇ ਪਿਓ ਦੀ ਬੇਇੰਤਹਾ ਕੁੱਟ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੈ, ਜੋ ਮੁੰਡਿਆਂ ਨਾਲ ਸੂਏ ਤੇ ਨਹਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਸਦੇ ਵੀ ਕਈ ਸੁਪਨੇ ਨੇ ਜੋ ਹਰ ਕੁੜੀ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਨੇ 
ਪਰ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਚ ਉਹ ਕਿਸੇ ਦੀ ਵਾਸਨਾ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਗਈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਉਸਦੇ ਅਚੇਤ ਮਨ ਚ ਉਮਰ ਭਰ ਦਾ ਡਰ ਬੈਠ ਗਿਆ। 

ਅਜਿਹਾ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨਾਲ ਬਚਪਨ ਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਪਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਕੁੜੀਆਂ ਤਾਂ ਇਸ ਡਰ ਕਰਕੇ ਨਹੀਂ ਦੱਸਦੀਆਂ ਕਿ ਗ਼ਲਤੀ ਉਸੇ ਦੀ ਹੀ ਕੱਢੀ ਜਾਵੇਗੀ। 
ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਉਹਨਾਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨੂੰ ਸਮਝਾਉਣ ਲਈ ਵੀ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਸਭ ਉਹ ਜਾਗ੍ਰਿਤ ਰਹਿਣ, ਹੁਸ਼ਿਆਰ ਰਹਿਣ।

ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਈ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਅਸ਼ਲੀਲ ਲੱਗੇ ਪਰ ਮੇਰਾ ਸਵਾਲ ਹੈ ਉਸ ਵੇਲੇ ਅਸ਼ਲੀਲਤਾ ਕਿੱਥੇ ਜਾਂਦੀ  ਹੈ ਜਦੋਂ ਸੰਜੂ ਫਿਲਮ ਚ ਸੰਜੇ ਦੱਤ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਉਸਨੇ 300 ਦੇ ਲੱਗਭਗ ਕੁੜੀਆਂ ਨਾਲ ਸ਼ਰੀਰਿਕ ਸੰਬੰਧ ਬਣਾਏ? ਉਸਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਇੱਜ਼ਤ ਮਿਲ ਰਹੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਆਦਮੀ ਹੈ।
 ਆਦਮੀ ਨੇ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਲਗਭਗ  ਸਾਰੇ ਗਰੰਥ ਲਿਖੇ ਨੇ ਅਤੇ ਉਸਨੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮਹਾਨ ਲਿਖ ਲਿਆ ਹੈ, ਇਸ ਵਿਚ ਕੀ ਮਹਾਨਤਾ ਹੈ? 

ਮੈਂ ਇਕ ਜਗ੍ਹਾ ਪੜ੍ਹ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਆਦਮੀ ਔਰਤ ਤੋਂ ਡਰਦਾ ਹੈ ਉਸੇ ਲਈ ਉਹ ਔਰਤ ਨੂੰ ਦਬਾ ਕੇ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਉਸ ਤੇ ਜੁਲਮ ਕਰਦਾ ਹੈ।
ਔਰਤ ਆਦਮੀ ਤੋਂ ਤਕਰੀਬਨ ਪੰਜ ਸਾਲ ਜ਼ਿਆਦਾ ਉਮਰ ਭੋਗ ਕੇ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਦਿਲ ਦੀ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੈ। 
ਇਸਦੇ ਹੋਰ ਵੀ ਕਈ ਕਾਰਨ ਨੇ ਜਿਵੇਂ ਉਸਦੇ ਚੌਵੀ ਕਰੋਮੋਸੋਮ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਉਹ ਆਦਮੀ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਬੈਲੇਂਸ ਹੈ ਆਦਮੀ ਦੇ ਤੇਈ ਕਰੋਮੋਸੋਮ ਨੇ ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਜ਼ਿਆਦਾ ਦੁਖੀ  ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
ਔਰਤ ਨੂੰ ਹਰ ਮਹੀਨੇ ਮਹਾਂਵਾਰੀ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਉਸਦੇ ਸ਼ਰੀਰ ਦੇ ਕਈ ਵਿਕਾਰ ਨਿਕਲ ਜਾਂਦੇ ਨੇ।
 
ਆਦਮੀ ਦੀ ਦੋਗਲੀ ਸੋਚ ਹੈ।  ਮੰਟੋ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਜੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਮੇਰੀਆਂ ਕਹਾਣੀਆਂ ਅਸ਼ਲੀਲ ਤੇ ਗੰਦੀਆਂ ਲੱਗਦੀਆਂ ਨੇ  ਤਾਂ ਜਿਸ ਸਮਾਜ ਚ ਤੁਸੀਂ ਰਹਿ ਰਹੇ ਹੋ ਤਾਂ ਉਹ ਅਸ਼ਲੀਲ ਤੇ ਗੰਦਾ ਹੈ ।

ਹਰਿਸ਼ੰਕਰ ਪਰਸਾਈ ਲਿਖਦੇ ਨੇ ਇਕ ਕੁੜੀ ਜੋ 
12 ਜਾਂ 13 ਸਾਲ ਦੀ ਹੈ ਉਸਨੂੰ ਲੋਕ ਘੂਰ ਘੂਰ ਕੇ ਜਵਾਨ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਨੇ। 
ਪਰ ਇਹ ਆਦਤ ਕਿਉਂ ਹੈ ਇਸ ਬਾਰੇ ਕਈ ਮਨੋਵਿਗਿਆਨੀ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕਰ ਚੁੱਕੇ ਨੇ।
 
ਓਸ਼ੋ ਨੇ ਕਿਹਾ ਹੈ
ਇਸਤਰੀ ਸੁੰਦਰ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਪ੍ਰੇਮ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਉਹ ਵਾਸਨਾ ਹੈ, 
ਇਸਤਰੀ ਨਾਲ ਪ੍ਰੇਮ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਉਹ ਸੁੰਦਰ ਹੋਈ ਤਾਂ ਯਕੀਨਨ ਉਹ ਪ੍ਰੇਮ ਹੈ। 

ਕਿਤਾਬ ਦਾ ਫੋਂਟ ਵੀ ਅਲੱਗ ਕਿਸਮ ਦਾ ਹੈ ।
ਕਿਤਾਬ ਵਿਚਲੀ ਭਾਸ਼ਾ ਮਾਲਵੇ ਦੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਸੂਆ, ਨਹਿਰ ,ਖੇਤਾਂ ਦਾ ਪੜਕੇ ਪੰਜਾਬ ਬਾਰੇ ਜਾਨਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਮਿਲਦਾ ਹੈ।
ਕਿਤਾਬ ਭਾਸ਼ਾ ਵੀ ਓਹੀ ਹੈ ਜੋ ਆਮ ਬੋਲੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ਉਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਲਾਗ ਲਗਾਵ ਨਹੀਂ  ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਕਿਤਾਬ ਅਲੱਗ ਲੱਗਦੀ ਹੈ। 
ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਉਹ ਚੀਕ ਹੈ ਜੋ ਕੁੜੀ ਮਾਰ ਰਹੀ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਮੂੰਹ ਤੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਠੇਕੇਦਾਰਾਂ ਨੇ ਹੱਥ ਰੱਖਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਕੰਨਾਂ ਵਿਚ ਨਾ ਪੈ ਜਾਵੇ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਝੂਠੀਆਂ ਰਸਮਾਂ ਢਹਿ ਢੇਰੀ ਨਾ ਹੋ ਜਾਣ।

ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਨ ਸੂਰਜਾਂ ਦੇ ਵਾਰਿਸ, 
ਕੀਮਤ 180 ਰੁਪ ਏ
ਸਫੇ 116 

ਫਿਰ ਮਿਲਾਂਗਾ ਨਵੀਂ ਕਿਤਾਬ ਲੈਕੇ।
ਆਪਦਾ ਆਪਣਾ
ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ, ਉਤਰਾਖੰਡ
ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰਹੀਰਾਂ,ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ
ਪੰਜਾਬ
30.10.2020

ਮੈਨੂੰ ਛੁੱਟੀ ਚਾਹੀਦੀ ਐ, ਕਿਤਾਬ

ਅੱਜ ਕਰਵਾਚੌਥ ਹੈ ਤੇ ਔਰਤਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਨੀ ਜ਼ਰੂਰੀ  ਹੈ। "ਮੈਨੂੰ ਛੁੱਟੀ ਚਾਹੀਦੀ ਐ", 
(ਇਕ ਔਰਤ ਦੀ ਡਾਇਰੀ) ਸਪਨਾ ਚਾਮੜੀਆਂ ਦੀ ਕਿਤਾਬ ਹੈ ਜਿਸਦਾ ਪੰਜਾਬੀ ਰੂਪਾਂਤਰਣ ਨੀਤੂ ਅਰੋੜਾ ਨੇ ਕੀਤਾ ਹੈ। 
ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਹਰ ਮੁੰਡੇ, ਜਵਾਨ, ਬੁੱਢੇ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਕਿਓਂਕਿ ਔਰਤ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਲਈ ਇਹ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ। ਇਸ ਵਿਚ ਔਰਤ ਦਾ ਦਰਦ ਹੂਬਹੂ ਲਿਖ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ਜੋ ਸ਼ਾਇਦ ਮਰਦ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਪਸੰਦ ਨਾ ਆਵੇ ਕਿਉਂਕਿ ਔਰਤ ਨੂੰ ਨਰਕ ਦਾ ਦੁਆਰ ਤੇ ਹੋਰ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਕੀ ਕੀ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ? 
ਇਹ ਉਹੀ ਲੋਕ ਨੇ ਜੋ ਸਮਾਜ ਚ ਬਹੁਤ ਮਾਣ ਪਾਉਂਦੇ ਨੇ।
ਮੈਂ ਇੱਕ ਕਿਤਾਬ ਚ ਪਡ੍ਹ ਰਿਹਾ ਸੀ ਇੱਕ ਬਾਬਾ ਜੋ ਔਰਤਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਦੂਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ, ਜੇ ਕੋਈ ਔਰਤ ਗਲਤੀ ਨਾਲ ਉਸਨੂੰ ਛੂਹ ਲਵੇ ਤਾਂ ਉਹ ਕਈ ਦਿਨ ਵਰਤ ਰੱਖਦਾ ਸੀ, ਅਜਿਹੇ ਬਾਬੇ ਨੂੰ ਕੋਈ ਪੁੱਛੇ, ਤੇਰੇ ਅੰਦਰ 40 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਔਰਤ ਹੈ, ਤੂੰ ਔਰਤ ਦੀ ਕੁੱਖ ਚੋਂ ਜੰਮਿਆ ਹੈ। ਤੇਰੇ ਜਿਸਮ ਦਾ ਰੌਆਂ ਰੌਆਂ, ਖੂਨ ਹੱਡੀ ਸਭ ਕੁਝ ਤਾਂ ਔਰਤ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ?

 ਹਾਲਾਂਕਿ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਹੈ, "ਸੋ ਕਿਉਂ ਮੰਦਾ ਆਖੀਐ ਜਿਤ ਜੰਮੇ ਰਾਜਾਨੁ।"

 ਕਿਤਾਬ ਚ ਅਲੱਗ ਅਲੱਗ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਲੈਕੇ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਔਰਤ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾ ਇਕ ਵਰਤਣ ਵਾਲੀ ਵਸਤੂ ਹੀ ਸਮਝਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਉਹ ਦੋ ਡੰਗ ਦੀ ਰੋਟੀ  ਵਿਚ ਸਾਰਾ ਜੀਵਨ ਬਿਤਾ ਦਿੰਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਸਭ ਕਰਦੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਸ਼ਰੀਰ ਨੂੰ ਸੁੰਦਰ ਬਣਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕਰਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਜਾਣਦੀ ਹੈ ਜਦ ਤੱਕ ਉਹ ਸੁੰਦਰ ਹੈ ਤਦ ਤਕ ਉਸਦਾ ਪਤੀ ਉਸ ਵੱਲ ਆਕਰਸ਼ਿਤ ਰਹੇਗਾ।
 ਜਿਵੇਂ ਸਾਹਿਬ ਬੀਵੀ ਔਰ ਗ਼ੁਲਾਮ ਫਿਲਮ ਚ ਇਕ 
ਅਮੀਰ ਘਰ ਦੀ ਔਰਤ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਣ ਲੱਗ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿਓਂਕਿ ਉਸਦਾ ਪਤੀ ਕੋਠੇ ਤੇ ਜਾਂਦਾ ਸੀ। ਉਹ ਚਾਹੁੰਦੀ ਸੀ ਉਹ ਉਸ ਕੋਲ ਰਹੇ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਕੋਠੇ ਵਾਲੀ ਕੋਲ ਹੀ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਕਿਤਾਬ ਵਿਚ ਔਰਤ ਦਾ ਦਿਲ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਦ ਬਾਰਿਸ਼ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਛੱਤ ਤੇ ਜਾਕੇ ਮੀਂਹ ਚ ਭਿੱਜ ਲਵੇ ਪਰ ਉਹ ਕੋਠੇ ਤੇ ਸੁੱਕੇ ਕੱਪੜੇ ਚੁੱਕ ਕੇ ਵਾਪਿਸ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। 
 ਉਹ ਔਰਤਪਣ ਤੋਂ ਮੁਕਤੀ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ ਉਸਦੀ ਭਾਬੀ ਆਪਣੇ ਪਤੀ ਦੀਆਂ ਚੱਪਲਾਂ ਪੈਰ ਚ ਨਾ ਪਾਕੇ ਬਲਕਿ ਹੱਥ ਚ ਚੁੱਕ ਕੇ ਲਿਆਉਂਦੀ ਹੈ ਜੋ ਉਸਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਤੇ ਇਕ ਤਾਲਾ ਹੈ।
ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਕਈ ਸਵਾਲ ਪੁੱਛਦੀ ਹੈ ਪਰ ਇਸਦਾ ਜਵਾਬ ਕਿਸੇ ਕੋਲ ਨਹੀਂ। 
ਇਸ ਕਿਤਾਬ ਬਾਰੇ ਲੇਖਿਕਾ ਨੀਤੂ ਅਰੋੜਾ ਨੇ ਸੱਚੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਤੇ ਲਾਈਵ ਚ ਦੱਸਿਆ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਪੜ੍ਹਕੇ ਉਸਦੇ ਕਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਪਣੇ ਘਰ ਚ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਨਾਲ ਰਸੋਈ ਚ ਕੰਮ ਕਰਾਉਣ ਲੱਗੇ ਜੋ ਕੇ ਇਸ ਕਿਤਾਬ ਦੀ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਉਪਲਬਧੀ ਹੈ।
ਮੈਂ ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਪਡ੍ਹਨ ਬੈਠਾ ਤਾਂ ਇਕ ਵਾਰ ਚ ਹੀ ਮੁਕਾ ਦਿੱਤੀ। 
ਇਹ ਪੜ੍ਹਕੇ ਮੈਨੂੰ ਕਾਫਕਾ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਯਾਦ ਆ ਗਏ ਕਿ ਕਿਤਾਬ ਉਹ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਜੋ ਤੁਹਾਨੂੰ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੇਵੇ ਬਲਕਿ ਕਿਤਾਬ ਉਹ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜੋ ਤੁਹਾਡੇ ਦਿਮਾਗ ਚ ਘਸੁੰਨ ਮਾਰੇ ਵਾਕਈ ਇਸ ਕਿਤਾਬ ਨੇ ਮੇਰੇ ਘਸੁੰਨ ਮਾਰੇ ਨੇ।
 
ਮੈਂ ਲੇਖਕ ਹਾਂ ਕਈ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਿੱਦਤ ਨਾਲ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦਾ ਹਾਂ। ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਵੇਖਦਾ ਹਾਂ।  ਮੈਂ ਵੇਖ ਰਿਹਾ ਸੀ ਇਕ ਬੰਦਾ ਸ਼ਰਾਬ ਬਹੁਤ ਪੀਂਦਾ ਹੈ। ਸ਼ਰਾਬ ਪੀ ਪੀ ਕੇ ਸਾਰੀ ਕਮਾਈ ਉਡਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਉਸਦੀ ਘਰਵਾਲੀ ਕੋਈ ਕੰਮ ਕਰਕੇ ਨਿਆਣੇ ਪਾਲ ਰਹੀ ਹੈ ,ਪਰ ਉਸਦਾ ਘਰਵਾਲਾ ਉਸ ਕੋਲੋਂ ਵੀ ਪੈਸੇ ਭਾਲਦਾ ਹੈ। ਉਹ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ ਕੇ ਉਸ ਕੋਲੋਂ ਅਲੱਗ ਰਹੇ ਕਿਓਂਕਿ ਉਹ ਹੁਣ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨ ਰਹਿਣ ਲੱਗ ਪਈ ਹੈ। ਪਰ ਅੱਜ ਉਸ ਔਰਤ ਨੇ ਉਸ ਸ਼ਰਾਬੀ ਪਤੀ ਲਈ ਵਰਤ ਰੱਖਿਆ ਹੋਣਾ।

ਬੱਚਾ ਖਾਨ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ, ਜੇ ਕੋਈ ਸਮਾਜ ਵੇਖਣਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਵਿਚ ਔਰਤ ਨਾਲ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਵਰਤਾਅ ਨੂੰ ਵੇਖ ਲੈਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। 
ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਘਰ ਝਾੜੂ ਪੋਚੇ ਲਵਾ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ ਰੋਟੀ ਬਣਾ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ , ਜੋ ਕਿ ਮੇਰੀ ਪਤਨੀ ਨੂੰ ਵੀ ਫੁਰਸਤ ਦੇ ਲਮਹੇਂ ਮਿਲਣ।
ਮੈਨੂੰ ਪੂਨਾ, ਮਹਾਰਾਸ਼ਟਰਾ ਤੋਂ ਟ੍ਰੇਨ ਚ ਆਉਂਦਿਆਂ 6 ਕੁ ਔਰਤਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਗ੍ਰੁਪ ਮਿਲਿਆ। ਉਹਨਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲਬਾਤ ਕਰਨ ਤੇ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਆਪਣੇ ਪਤੀਆਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨਾਲ ਸ਼ਿਰਡੀ,
 ਮੁੰਬਈ ਘੁੰਮਕੇ ਆਈਆਂ ਸਨ। ਉਹ ਇਕੱਠੀਆਂ ਪੁਲਸ ਦੀ ਟ੍ਰੇਨਿੰਗ ਕੀਤੀ ਸੀ ਤੇ ਹੁਣ ਦਿੱਲੀ ਪੁਲਸ ਚ ਸਨ। ਉਹ ਹਰ ਸਾਲ ਅਜਿਹੀ ਤਫਰੀ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ। ਇਹ ਵੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦਾ ਇੱਕ ਛਲਾਂਗ ਹੈ। 

ਆਪਣੀ ਇੱਕ ਕਵਿਤਾ ਸ਼ੇਅਰ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹਾਂ, ਜਿਸਦਾ
ਨਾਮ ਹੈ, ਮੈਂ, ਮੇਰੀ ਪਤਨੀ ਤੇ ਕਿਤਾਬਾਂ। ਮੈਂ ਵੀ ਇੱਕ ਦਿਨ ਦੋ ਸਮੇਂ ਦੀ ਰੋਟੀ ਪਾਣੀ ਬਣਾਇਆ ਤੇ ਪਤਨੀ ਨੂੰ ਛੁੱਟੀ ਦਿੱਤੀ। 

https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/rajneesh-jass-main-meri-patni-aur-kitabein

ਕਿਤਾਬ ਪੀਪਲਜ਼ ਫੋਰਮ,ਬਰਗਾੜੀ ਨੇ ਛਾਪੀ ਹੈ। ਕੀਮਤ 100 ਰੁਪਏ, 106 ਪੰਨੇ ਨੇ। 

ਕਿਤਾਬ ਮੰਗਵਾਉਣ ਲਈ
ਵਹਟਸ ਅਪ ਨੰਬਰ 9872989313
9876710809

ਫਿਰ ਮਿਲਾਂਗਾ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਕਿਤਾਬ ਲੈਕੇ।

ਆਪਦਾ ਆਪਣਾ
ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ, ਉਤਰਾਖੰਡ
ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰਹੀਰਾਂ,
ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ
ਪੰਜਾਬ
#books_i_have_loved

अरूण जैमिनी जी से मुलाकात

कल रात रुद्रपुर में कवि सम्मेलन था। हास्य रस के कवि अरुण जैमिनी जी का आगमन हुआ। उनके साथ बहुत पुराना रिश्ता है,  वह एक बार  रूद्रपुर आए थे मैंने उनके साथ एक ही मंच कविता पाठ किया था। उनको लगभग 30 साल पहले ओशो टाइम्ज़ में पढ़ा था, जब ओशो आश्रम पूना में कवि सम्मेलन हुआ था  तो अरूण जैमिनी ने हास्य के  बारे में कुछ कहा था वो उसमें छपा था।

  अरुण जैमिनी जी से बात हुई और मैं उन्हें मिलने होटल पहुंच गया। उनके कमरे में ओर कवि मित्र भी थे। जब वो  मिले चेहरे पर हमेशा की तरह मुस्कुराहट , खुशी के फूल भी खिले हुए थे। 


फिर बातें हुई थी,  मैंने कहा "वाह वाह क्या बात है" कार्यक्रम बंद होने से बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है। वह एक ऐसा कार्यक्रम था  जिसमें कोई ना कोई  संदेश होता था। उसमें दिग्गज कवियों को सुनने का मौका मिलता और नए कवियों को भी एक मंच मिलता था। फूहड़ और दिव्य अर्थ कामेडी से वो कोसों मील दूर था। 
इस बात की हम ही वहां पर बैठे और कभी मित्रों ने भी सहमति जताई। 
मेरी गुजारिश है सोनी सब टीवी और सेलैश लोढा जी से, कि वो कार्यक्रम दोबारा शुरू किया जाए।

 अरुण जैमिनी जी को याद था जो कि कुछ साल पहले यहां पर आए थे तो वह गाड़ी में चिराग जैन जी के साथ हमारी लाइब्रेरी के लिए कुछ किताबें लेकर आए थे । इस बार भी उन्होंने कहा तेरे यहां पर दिल्ली आओ और वँहा से कुछ किताबें ले जाना।

 यँहा पर अरुण जैमिनी जी के बारे में बताना भी जरूरी है कि वह विश्व भर में लगभग 3900  कवि सम्मेलन में हिस्सा ले चुके हैं। जिसमें ऑस्ट्रेलिया ,चाइना, दुबई, कनाडा, सिंगापुर,  थाईलैंड, हांगकांग, नेपाल, तुर्की इत्यादि बहुत सारे देश हैं। उनका हरियाणवी चुटीला अंदाज़ पूरे विश्व भर में मशहूर है। वो काका हाथरसी, गौरव हरियाणा गौरव और बहुत सारे अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं ।

अब बात करते हैं हास्य के बारे में

हम सब के मन में नौ तरह के स्थायी भाव होते हैं। ये भाव हैं : रति, हास, क्रोध, शोक, उत्साह, जुगुप्सा, भय, विस्मय और निर्वेद

  हर रस का अपना एक महत्व है। जब हम खुलकर  हँसते हैं  तो हमारे शरीर में कई किस्म के हार्मोनज़  का स्राव होता है जो कि हमें गहरी नींद, मन में खुशी, जीवन में तालमेल, संबंधों में प्रेम पैदा करता है  स्वयं से प्रेम होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि जब स्वयं से प्रेम होगा तभी हम दूसरे से प्रेम कर पाएँगे।

 जब हम हंसते हैं तो हमारे शरीर में Endorphin नाम का हार्मोन एक्टिवेट होता है जो हमें भय, चिंता और कई असाध्य रोगों से मुक्त करता है । मैनें रांडा बर्न  की किताब  रहस्य (The Secret) बहुत पढी है जिसमें लिखा है , कुछ लोग जो कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रस्त थे जिनको डॉक्टर ने बता दिया था वो कुछ ही दिन के मेहमान हैं ।
 उन लोगों ने भी सोचा कि अब कुछ दिन के मेहमान हैं तो चलो क्यों ना खुलकर हंसा ही जाए? तो उनमें से कई लोगों ने कार्टून देखने शुरू कर दिए , जैसे मिक्की माउस, लारेल हार्डी के।  वो सारा दिन बस हँसते ही थे। ऐसा करने से वो असाध्य रोगों से मुक्त हो गए। 
आज के मौजूदा समाज में हमारा हंसना और नाचना बहुत कम हो गया है। हमें अपने  दोस्तों, परिवार के मैंबरों  के साथ गप्पे मार कर खूब हंसना चाहिए,  बिना कारण हंसना चाहिए । ओशो ने कहा है उत्सव अमार जाति , आनंद अमार गोत्र। जिसका मतलब  है कि उत्सव इनकी जाति है और आनंद इनका  गोत्र।

 अरुण जैमिनी जी के साथ तस्वीर खिंचवाई और मैंने उनसे विदा ली।
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आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
03.11.2019