रविवार है तो साइकिल। आज घर से निकला स्टेडियम से आगे मंडी हाउस के पास संजीव अपने बेटे ओजस के साथ मिल गए। मैंने एक पेड़ देखा जिसको पंजाबी में सिंमल का पेड़ कहते हैं, तो मुझे गुरबाणी की याद आ गयी
सिंमल रुख सराया
अति दीरघ अति मच
ओ जे आवे आस कर
जाए निरास कति
फल फिक्के, फुल बकबके
कम्म ना आवे पत्त
मिठत नीवीं नानका
गुण चंगिआईयां तत्त
इसका मतलब है कि सिंमल का पेड़ इतना ऊंचा है कि उसके फल फीके, फूल बकबके। उसकी कोई छाया नहीं है, अगर पंछी आता है तो वो निराश हो जाता है। हमें ऐसा पेड़ नहीं बनना चाहिए। हमें मीठे और छोटे बनना चाहिए, जो कि किसी के काम आ सकें।
तो बचपन की बातें होने लगी संजीव जी बता रहे थे कि बच्चों को हमें समझना चाहिए , सुनना चाहिए। जैसे कि कोई बच्चा पेपर देने जा रहा है तो उसे खुद को पूछना चाहिए कि उसने कितनी इमानदारी से तैयारी की है ? वह खुद से पहले पूछे उसके बाद उसके कितने नंबर आते हैं ये बात इतनी मायने नहीं रखती। भेड़चाल चली हुई है ज्यादा नंबर लेने की, इससे बच्चे निराशा में चले जाते हैं । मुझे रविंद्र नाथ टैगोर के एक बात याद आ गई थी, हमारी सारी पढ़ाई ,शिक्षा दीक्षा का एक ही नतीजा होना चाहिए कि हम आनंदित हो रहा हैं या नहीं?
राजेश सर ने कहा हम जैसे छोटे बच्चों को पेंटिंग का शौक होता है और साथ में जो पढ़ाई भी करते हैं । हमें पेंटिंग के साथ-साथ उनको यह भी बताना चाहिए कि पढ़ना भी जरूरी है । जब बच्चे बारह तेरा साल क्रॉस कर जाते हैं या नहीं थे 10th में हो जाते हैं तो तब सही से पता चलता है कि बच्चे को किस दिशा में भेजना चाहिए?
तब मुझे एक किताब की बात याद आ गई अलेक्जेंडर की है, पंजाबी में,जदों डैडी छोटा हुंदा सी,मतलब जब पापा छोटे होते थे। एक बार में उसका बच्चा बीमार हो जाता है तो उसको उसके पिता अपने बचपन की छोटी-छोटी कहानियां सुनाता है जो कि बहुत हंसी मजाक वाली है ।
संजीव जी ने बताया कि उनका बेटा भी एक बुक सीरीज़ पढ़ रहा है, Diary of a Wimpy Kid जो कि अमेरिका के एक लेखक Jeff Kinney की है। उसकी 14 सीरीज़ आ चुके हैं ।उनके बेटे के पास यह सारी सीरीज़ है।
हमें अपने बच्चों को व्यस्त रखना चाहिए पर व्यस्त रखने का मतलब यह नहीं है उनको मोबाईल देकर व्हाट्सएप, फेसबुक और यूट्यूब मे उलझा दें। उनको किताबें पढ़ने के लिए समय देना चाहिए।
संजीव बता रहे थे कि जब कभी वह छत पर अकेले होते हैं तो वह दो-तीन घंटे में कुछ ना कुछ जरूर लिखते हैं। ऐसी कुछ कविता लिखना, पेंटिंग करना, यह भी एक ध्यान करना है। ये हमें संसार से कुछ समय के लिए तोड़ता है, अपने से जोड़ता है। तभी कोई ना कोई रचना पैदा होती है।
वँहा बात चली किसी की, कि उसे जब उसे गुस्सा आता था तो वो कई कई घंटे गुस्सा में रहता था। ऐसा होने के कारण उसे हाई बल्ड प्रैशर की दिक्कत आ गई थी । फिर उसने स्वभाव में बदलाव किया, कि जब गुस्सा आए तो तुरंत अपना ध्यान दूसरी जगह लगा दिया, जिसके कारण गुस्सा विदा होने लगा। उसने कोई दवाई भी नहीं ली, जिसके कारण अब उनका बल्ड प्रैशर बिल्कुल ठीक है। मैनें ये बात सीखी कि,जब भी हमें गुस्सा आए तो हमें अपना ध्यान इधर ऊधर लगाना चाहिए।
पंछियों की आवाजें आ रही थी, चिड़िया चहक रही थी, मौसम भी बढ़िया हो रहा है। साथ में चाय पी, ब्रेड खाई। कुछ ओर मुद्दों पर भी बातचीत हुई, जैसे कि आदमी को बैठकर की पेशाब करना चाहिए, इससे उसको प्रॉस्टेट ग्लैंड के कैंसर का खतरा बहुत कम हो जाता है। याद आया हमारे बुजुर्ग भी बैठकर भी पेशाब करते हैं। ये बीबीसी पर भी है।
मैं ओशो का प्रवचन सुना था तो उसमें उन्होंने कहानी सुनाई एक अजीब सा झगड़ा लेकर दो दोस्त अदालत में आए। जज ने कहा, क्या बात हुई? तो एक ने सुनाया कि इसकी भैंस मेरे खेत में घुस आई और मेरी सारी फसल बर्बाद कर दी। फिर जब दूसरे से बात हुई तो उसने कहा कि हम दोनों बैठे बातें कर रहे थे, तो एक बोला कि मैं सोच रहा हूं कि दो भैंस खरीद लूँ। दूसरे ने कहा, सोच रहा हूँ, कि खेत खरीद लूं। पहले ने कहा हो सकता है मेरी भैंस तेरी खेत को खा जाए। तो पहले ने ज़मीन पर एक लकीर खीची और कहा ये हैं मेरा खेत। एक ने वँही लकीर खींचकर कहा , ये मेरी दो भैंस। खेत वाले ने कहा देख अपनी भैंस को संभाल ये मेरे खेत में घुस आईं है। बस वँही झगडा बढ़ गया और हम आ गये आपके पास। ओशो कहते हैं, दुनिया के सारे झगडे ऐसी ही कल्पना से पैदा हो रहे हैं। ये सिर्फ हमारी सोच की उपज है।
आज के लिए विदा लेता हूँ , फिर मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
01.03.2020
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#rudarpur_cycling_club
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