अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम
दास मलूक कह गये, सबके दाता राम
# संत मलूक
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रविवार की साइकिलिंग।
मौसम ने करवट ले ली है, कोयल की कू कू शुरू हो गई है, टटिहरी की टैं टैं भी
सुबह साइकिल का निकला। आज नये रास्ते से गया। फिर स्टेडियम के आगे से एक चक्कर लगाया। अब सड़क नयी बन गयी है तो साइकिल चलाने में अच्छा लग रहा है। रास्ते में सुंदर फूल देखकर लगा कि कुदरत कितने गीत गा रही है, पर हम अपनी व्यसतता के कारण यह महसूस नहीं कर पा रहे।
वापस आया तो देखा भीम दा अभी पहाड़ से वापिस नहीं आए, चाय का अड्डा बंद था।
एक नयी दुकान पर बैठा। शिव शांत आया। चाय पी। वँहा कुछ और लोग आए। एक ने कहा ,आप एक कुर्सी दे। मैनें देखा, मैं दो कुर्सियों पर बैठा था। मैनें कहा , जी कुर्सी है ही ऐसी चीज़, जिसे मिले बैठ जाता है। ।😀😀
मैनें तो यह भी गौर ना किया यह दो हैं
मैंने सोचा आज कुछ अलग करते हैं। पिछले
रविवार राजेश, टाडा जंगल गये थे, तो सोचा आज उस तरफ चलते हैं।
मैंने कहा, चलो हम भी थोड़ी दूर तक घूम कर आते हैं। बस फिर क्या निकल लिए, हल्द्वानी रोड पर। यहां से हल्द्वानी जाते रास्ते में टाडा जंगल आता है। यह जंगल वन विभाग के संरक्षण में आता है। इस सड़क पर चलते हुए लोगों को अक्सर हाथी, कई बार रात को चीता भी दिखाई दे जाता है। हम भी आगे को निकले रास्ते में पहले फल की रेहडियाँ आती है मैं जब भी हल्द्वानी के ऊपर काठगोदाम को जाता हूं तो कुछ फल खरीद लेता हूँ। उन फल वालों को बंदर बहुत परेशान करते हैं। आगे पहुंचे तो सिम्मल के पेड़ से पत्ते गिर रहे थे तो मैंने कहा वाह क्या बात है! शिवशांत बोला गौर से देखो , बंदर के बच्चे इसके फूल खा रहे हैं, वही इसे नीचे फैंक रहे हैं।
शिवशांत ने बताया है कि यह सब्जी बनाने के काम भी आते हैं। हम फिर आगे बढ़े। आगे जाते हुए पेड़ों के बीच में से गुज़रती हुई हवा कुछ ज्यादा ही ठंडी लग रही थी।
उधर को जाते हुए हल्की चढ़ाई है। लगभग 12 किलो किलोमीटर है यहां से। पहले एक रेलवे फाटक पार किया फिर दूसरा। रास्ते में तस्वीरें खींचते हुए चलते रहे। दूसरे फाटक के पास एक पकोड़े वाला है उसके पकोड़े बहुत मशहूर हैं। यँहा पर लोग उसे पकौडी कहते हैं। कई लोग रुद्रपुर से सिर्फ चाय पकौड़े खाने आते हैं। मैं भी दो बार अपने परिवार के साथ वहां बैठे चाय पकोड़े खाने आ चुका हूँ। उस दुकान वाले से बात हुई उसने बताया कि लगभग 18 साल हो गए उसको यँहा। रोज उसके लगभग 5 किलो प्याज और 10 किलो आलू लगते हैं। हमने वँहा
पकोड़े खाए,चाए पी और वापिस चल दिए।
आते हुए हमने देखा था कि रास्ते में एक गांव है वहां पर मिट्टी के घर बने हुए हैं। वहां पर रुके। वहां पर गया तो एक बज़ुर्ग औरत खड़ी थी। मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं आपकी तस्वीर खींच सकता हूँ ? उसने पूछा, मेरी तस्वीर लेकर क्या करोगे ? मैंने कहा, आप हमारे बज़ुर्ग है , मेरी माँ के सामान। एक दिन हम भी आपके जैसे ही हो जाएंगे और आपसे इत्तेफाक रखना चाहिए। पास ही बच्चे थे तो मैंने कहा एक दिन यह बच्चे हमारी जगह होंगे और हम आपकी जगह।
उस औरत को यह बात बहुत अच्छी लगी और वक्ह मुस्कुरा दी, मैंने तुरंत एक फोटो खींच ली। उनके चेहरे पर एक मुस्कान देख कर ही लगा कि उनका मन कितना ठहरा हुआ है, वह सहज हैं। क्योंकि जिसका मन अंदर से ठहरा होता है उसके बाहर चेहरे पर शांति दिखाई देती है। आपने देखा होगा आप कुछ लोगों को मिलते हैं जो हमेशा जल्दबाजी में रहते हैं। आप उनके चेहरे को देखेंगे थोड़ी देर में आपको लगेगा कि आपके मन में भी कुछ बेचैनी या कुछ हलचल सी हो गई है। पर कुछ लोग होते हैं उनको मिलकर या देखकर भी सुकून महसूस होता है। उनको आप अपने दिल का दर्द और खुशियां बताते हैं तो आपको बहुत तसल्ली होती है।
तहज़ीब हाफी का शेर है
बिछड़ कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा
वो थक जाएगा मेरे गले आ लगेगा
मैं मुशकिल में तुम्हारे काम आऊँ ना आऊँ
मुझे आवाज़ दे ले लेना तुम्हें अच्छा लगेगा
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उसके बाद हमारा एक आदमी से मिले, जिसका नाम शेर सिंह थापा था।
मैंने उनसे पूछा वह कब से हैं यहां पर?
उसने बताया, क्योंकि दो पुश्तें बीत चुकी हैं , अब उनकी तीसरी पुश्त है। वह नेपाल से आए हुए हैं। मैं पूछा, काम क्या करते हो?
उसने बताया, हम दिहाड़ी करते हैं रुद्रपुर या हल्द्वानी।
मैंने पूछा , यहां बच्चों की पढ़ाई का क्या
उसने बताया, यहां पर आंगनवाडी है और एनजीओ वाली मैडम बच्चों को पढ़ाती हैं।
मैंने कहा, बच्चों को आप ज़रूर पढ़ाना क्योंकि आप जो दिहाड़ी करते हो तो आपके बच्चे अच्छे पढ़ लिख कर बढिया जगह पहुंचेंगे।
फिर हम चले गए वापस।
कोई भी जगह हो वँहा के लोगों से बिना बात किए अगर हम गुज़र जाते हैं तो ऐसा लगता है हम कोई कार या ट्रक हैं।
फिर मिलूंगा।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
#rudarpur_cycling_club
21.03.2021
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