Tuesday, March 22, 2022

प्रदुमन कुमार जैन का दूसरा नावल "आस्थाओं के स्वर्ग नर्क"

संसार से भागे फिरते हो
भगवान को तुम क्या पाओगे 
इस लोक को भी अपना ना सके
उस लोक में भी पछताओगे 

ये पाप है क्या 
ये पुण्य है क्या 
रीतों पर धर्म की मोहरें है 
हर युग में बदलते धर्मों को
कैसे आदर्श बनाओगे 
# फिल्म चित्रलेखा का यादगार गीत 
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प्रदुमन कुमार जैन का दूसरा नावल 
"आस्थाओं के स्वर्ग नर्क"
 आदमी औरत के संबंधों के ऊपर बहुत ही बड़ी अपूर्व खोज है। उनके पास एक ही कापी थी जो उन्होंने मुझे पढ़ने को दी ,  शायद मेरी प्यास देखकर।
तो चलिए नावल की प्रष्ठभूमी पर।
एक लड़का जिसे एक लड़की चाहती है पूजती है और एक दूसरी लड़की है जो उसे चाहती है पर "भाई "कहती है। उसके भाई कहने के पीछे समाज के बंधन मन के डर छिपे हुए हैं। अक्सर ऐसा होता है किसी लड़के को कोई लड़की अच्छी लगे वह उसे प्यार का इज़हार नहीं कर पाता तो बहन या कोई रिश्ता बनाकर उस से बात जरूर करना चाहता है। 
अनूप जो इस कहानी का मुख्य पात्र है एक अध्यापक है जो कि एक शिकारी है पर वह मांसाहारी नहीं। शिकारी के बारे में उसने बड़ी अच्छी बात कही है, यह धार्मिक लोग यह नेता सब आम लोगों का शिकार करते हैं जो कि वह उनके पीछे लग जाए। 
एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा पढ़ने को मिला की मादा केकड़ा अपने प्यार का इजहार नर  केकड़े से करती है। उसे रिझाती है, जो कि वो उस से प्रेम कीड़ा करे।  जब उस नर केकड़े से उसके बच्चे पैदा हो जाते हैं तो वह नर केकड़े को मारकर खा जाती है। 
अनूप का नीलिमा से प्रेम, शहर में एक धार्मिक गुरु को हराना, नीलिमा के पिता को फिर से बचाना, बहुत कुछ ऐसा होता है जो कि अनूप को उस गांव में बहुत प्रसिद्धि दिलवाता है। नीलिमा उसे चाहती है और उन दोनों के बीच में प्रेम कीड़ा भी होती है। फिर किसी ट्रेनिंग के लिए उस अध्यापक को जाना पड़ता है 6 महीने के लिए। वहां उसकी मुलाकात एक रमेश नाम के लड़के से होती है जो की बहुत आवारा किस्म का है। उसकी शादी हो चुकी है दो बच्चे हैं पर फिर भी वह लड़कियों के साथ संबंध बनाने से बाज़ नहीं आता। पर वह सच्चा है और इसको अपना कर्म मानता है। पीछे से नीलिमा गर्भवती होती है और उसके माता पिता को वह गांव छोड़कर जाना पड़ता है।
 अनूप का वापस आना और दोनों लड़कियों से मिलना उसके मन में अंतर्द्वंद बहुत ही लाजवाब है। आदमी और औरत के संबंधों पर बहुत ही बेबाकी से लिखा गया है। नर और मादा दोनों की शारीरिक,  मानसिक जरूरतें हैं, जिसके लिए वह दोनों इसके लिए एक दूसरे से बंधे हुए हैं। पर वो ही सब कुछ नहीं है।
हमें जिस में आस्था है वो हमारे लिए पुण्य है, जिसमें आस्था नहीं,  वो नर्क। पर प्रकृ्ति में ऐसा कुछ भी नहीं है,  वो अपने ढंग से चलती है। जिसमें अंगुलीमाल जैसे पापी, एक ही झटके में बुद्ध बनने जाते हैं, पर कंही हिटलर जैसे लोग लाखों लोगों को मार देते हैं। पर हिटलर को लगता है यह पुण्य है। 
तो ये किताब भी मुझे समय के पार ले गई,  यँहा मैंने बहुत सारे आयाम देखे सिर्फ एक द्रष्टा बनकर। मुझे तो इस नावल से अपने भीतर झांकने का मौका मिला। 
#rajneesh_jass
22.03.2018

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