Sunday, March 20, 2022

जंग बहादुर गोयल जी की कविता

मशीन ने आदमी को मशीन बना दिया है 
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आज कोई आँख किसी के दर्द में आँसू नहीं बहाती 
आज कोई होंठ किसी के प्यार में नग्में नहीं गाता 
लगता है सब आँसू, आहें,  मुस्कानें और चुंबन 
सभी कुछ मशीन की भेंट हो चुका है 
और आज ये शहर लोहे का, 
यंहा क्या आप जीवन की तलाश करेंगे?  
ये बस्ती है मुर्दों की 
यंहा कंहा आप कविता की खोज करेंगे? 
मैं ये मानने के लिए तैयार हूँ कि हमारे पूर्वज़ों के पास रहने के लिए अच्छे मकान नहीं थे 
परंतु उन्हें आराम करने के लिए रेस्तरां नहीं जाना पड़ता था 
नींद लेने के लिए नींद की गोलियां नहीं लेनी पड़ती थी 
पत्थर की छोटी सी मूर्ति उनका हर दुख सपंज की तरह सोख लेती थी 
परंतु आज सुख साधन की सभी सुविधाएं होने के बावजूद 
कौन सी ऐसी चिंता है 
जिसके कारण ना दिन में चैन है ना रात में नींद 
बस हर समय चिता रूपी चिंता बनी रहती है 
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ये कविता  Jung Bahadur Goyal जी की है,  जो उन्होंने बहुत साल पहले बनारस हिंदू विश्वविद्यालय मह कविता पढ़ी तो डा मुरली मनोहर जोशी ने उन्हें गले लगा लिया।  यंहा ये बताना जरूरी है कि जंग बहादुर गोयल जी रिटायर्ड IAS officer है।  उन्होंने पंजाबी साहित्य में विश्व के शाहकार नावल नाम की किताबें लिखी हैं जिसमें लेखक और नावल के बारे में बहुमूल्य योगदान दिया है। अभी  वो चंडीगढ़ में रहते हैं।  उनकी एक इंटरव्यू मैनें की थी जो पंजाबी की अखबार,  नवां जमाना में छपी थी।
तस्वीर @ गूगल बाबा के सौजन्य से
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