गोपालदास नीरज जी ने कहा है
हम तेरी चाह में ए - यार वंहा पहुंचे
होश ये भी नहीं कि कंहा पहुंचे
वो ना ज्ञानी,ना वो ध्यानी,ना ही विरह मन
वो कोई और ही थे जो तेरे मकां तक पहुंचे
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Sufi Whirling, सूफी व्हीरलिंग, ध्यान की एक गहरी विधि।
सूफी फ़कीर कई कई घंटे यह ध्यान की विधि करते हैं। यह बहुत गहरी और सूक्ष्म विधि है।
एक बार ऐसा नृत्य करने का मौका मिला। यूं लगता है हम खड़े हैं और पूरी धरती हमारे इर्द-गिर्द घूम रही है।
एक बार तो हम नाच रहे थे हमें लगभग एक -डेढ़ घंटा हो गया था। एक आदमी जो जर्मनी से आया था, वो मुझसे पूछने लगा, शराब तो पी नहीं है आपने क्योंकि कोई बदबू नहीं, कोई भांग का नशा करने रखा है क्या? मैंने कहा, ये बिना नशे वाला नशा है, तुम्हारी समझ से बाहर है।
आबिदा प्रवीन ने कहा है "यहां से अक्ल और समझ खत्म होती है वंहा से इश्क शुरू होता है। "
1997 में सुंदरनगर, हिमाचल प्रदेश में एक ध्यान कैंप था 3 दिन का।
मेरे पास पैसे नहीं थे , वँहा की फीस। मैनें किसी से पैसे उधार लिए और होशियारपुर से चल दिया अकेला। पिता जी पहले अपने दोस्तों के साथ पहले ही गये थे। मुझे इजाज़त नहीं मिली थी। पर ओशो ने कहा है, जब तक आप कुछ नया या विद्रोही नहीं करते तब तक जीवन को जान नहीं पाते।
वँहा पहुँचा तो एक बहुत बड़ा मेडिटेशन हाल था। मैनें अपना रजिस्ट्रेशन करवाया और मेडिटेशन करने पहुँच गया।
जब मैं ध्यान करने के बाद विश्राम कर रहा था तो पिता जी ने देखा औरहैरान।
बोले तुम यँहा कैसे?
मैनें मुस्कुराते कहा,आ गया बस।
उनके दोस्तों ने कहा, अब आ गया है तो अच्छा। यह कौन सा बुरी जगह है! आखिर तुम भी आए हो।
फिर मैनें वँहा ध्यान की विधियाँ की।
सूफी व्हरलिंग भी की। कमाल का अनुभव रहा। लगभग आधा घंटा अपना एक हाथ उठाकर देखते हुए घूमना, साथ में संगीत। घूमते घूमते संगीत तेज़ होता है और हमारी गति बढ़ती गयी। ऐसे लगा कि हम खड़े हैं पूरी धरती घूम रही है। पर घूमते हुए अगर हाथ से ध्यान हटा तो चक्कर आकर गिर सकते हैं। उसके बाद धरती पर पेट के बल लेटना है।
नुसरत फतेह अली खान की कव्वालियों पर कई बार नाचने से ऐसा नशा होता जाता है कि शब्दों में बताना नामुमकिन है।
ओशो ने कहा है, "अपने आप को जान लेना ही सबसे बड़ी उपलब्धि है, हम कितना पैसा कमाते हैं, कौन सी उपाधि पाई, ये सब फिज़ूल है।"
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