Wednesday, March 23, 2022

ਧਿਆਨ ਤੇ ਰੇਲ ਗੱਡੀ

ਧਿਆਨ ( Meditation) ਇੱਕ ਰੇਲ ਗੱਡੀ ਹੈ ਜੋ ਮੋਕਸ਼ ਦੀ ਉਪਲਬਧੀ (ਪੂਰਤੀ ) ਸਟੇਸ਼ਨ ਤੇ ਪਹੁੰਚਣ ਤੇ ਛੱਡ ਦੇਣੀ ਹੈ। 
ਕਈ ਲੋਕ ਨਹੀਂ ਵੀ ਫਡ਼ਦੇ ਰੇਲ, ਪੈਦਲ ਚੱਲਦੇ, ਪਰ ਜਿਸ ਚ ਪਿਆਸ ਹੈ ਉਹ ਪਾਣੀ ਲੱਭ ਹੀ ਲੈਂਦਾ।

ਬਾਕੀ ਕਈ ਵਡਭਾਗੀ ਨੇ ਸਵਾਮੀ ਰਾਮਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਪਰਮਹੰਸ ਵਾਂਗ ਜਿਹਨਾਂ ਤਿੰਨਾਂ ਮਾਰਗਾਂ ਰਾਹੀਂ ਰੱਬ ਨੂੰ ਪਾਇਆ, ਗਿਆਨ, ਭਗਤੀ ਤੇ ਯੋਗ ਰਾਹੀਂ। 
ਹੁਣ ਮਨ ਤਾਂ ਬਾਂਦਰ ਹੈ ਜੇ ਇਹਨੂੰ ਆਹਰੇ ਨਾ ਲਾਇਆ ਤਾਂ ਵੀ ਖਰਾਬੀ ਹੈ।

ਗੁਰਬਾਣੀ ਚ ਦਰਜ ਹੈ, ਉਸ ਪਰਮ ਪਿਤਾ ਦੇ ਆਸ਼ੀਰਵਾਦ ਬਿਨਾਂ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਇਹ ਯਾਤਰਾ।

ਬਾਕੀ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਗੋਪਾਲਦਾਸ ਨੀਰਜ ਕਹਿੰਦੇ

ਹਮ ਤੇਰੀ ਚਾਹ ਮੇਂ ਐ ਯਾਰ ਵਂਹਾ ਤਕ ਪਹੁੰਚੇ
ਹਮੇਂ ਖੁਦ ਖਬਰ ਨਹੀਂ ਹਮ ਕਹਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚੇ

ਨਾ ਵੋ ਗਿਆਨੀ, ਨਾ ਵੋ ਧਿਆਨੀ, ਨਾ ਹੀ ਵਿਰਹ ਮਨ 
ਵੋ ਕੋਈ ਔਰ ਹੀ ਥੇ ਜੋ ਤੇਰੇ ਮਕਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚੇ

ਧੰਨੇ ਭਗਤ ਨੂੰ ਪੱਥਰ ਚ ਮਿਲ ਗਿਆ ਰੱਬ।
ਜੁੰਗ ਕਹਿੰਦਾ
There is only one golden rule in life that there is no golden rule.

ਨੁਸਰਤ ਜੀ ਕਹਿੰਦੇ, ਤੁਮ ਇੱਕ ਗੋਰਖਧੰਦਾ ਹੋ।

ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਮੋਹਣ ਸਿੰਘ ਕਹਿੰਦੇ, 

ਰੱਬ ਇੱਕ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਬੁਝਾਰਤ
ਰੱਬ ਇੱਕ ਗੋਰਖਧੰਦਾ
ਖੋਲਣ ਲੱਗਿਆ ਪੇਚ ਇਸਦੇ 
ਕਾਫਿਰ ਹੋ ਜਾਏ ਬੰਦਾ

ਕਬੀਰ ਜੀ ਦਾ ਇਹ ਭਜਨ ਵਧੀਆ ਹੈ, 
ਜਦ ਗਿਆਨ ਨਾਲ ਸਿਰ ਵੱਡਾ ਹੋਣ ਲੱਗੇ ਤਾਂ ਇਹ ਸੁਣਕੇ ਨੱਚ ਲੈਂਦਾ ਹਾਂ

मोको कहां ढूंढे रे बंदे,
मैं तो तेरे पास में ।

ना तीरथ में ना मूरत में,
ना एकांत निवास में ।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में,
ना काबे कैलाश में
ना मैं जप में, ना मैं तप में,
ना मैं व्रत उपवास में ।
ना मैं क्रिया क्रम में रहता,
ना ही योग संन्यास में ।


नहीं प्राण में नहीं पिंड में,
ना ब्रह्माण्ड आकाश में ।
ना मैं त्रिकुटी भवर में,
सब स्वांसो के स्वास में ।


खोजी होए तुरंत मिल जाऊं,
एक पल की ही तलाश में ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
मैं तो हूँ विश्वास में ।


मोको कहां ढूंढे रे बंदे,
मैं तो तेरे पास में ।





ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ

(Tajinderpal Singh ਦੀ ਧਿਆਨ ਦੀ ਇੱਕ ਪੋਸਟ ਤੇ ਲਿਖਿਆ ਉੱਤਰ)
#meditation
#kabir_bhajan
#bhajan

Tuesday, March 22, 2022

प्रदुमन कुमार जैन का दूसरा नावल "आस्थाओं के स्वर्ग नर्क"

संसार से भागे फिरते हो
भगवान को तुम क्या पाओगे 
इस लोक को भी अपना ना सके
उस लोक में भी पछताओगे 

ये पाप है क्या 
ये पुण्य है क्या 
रीतों पर धर्म की मोहरें है 
हर युग में बदलते धर्मों को
कैसे आदर्श बनाओगे 
# फिल्म चित्रलेखा का यादगार गीत 
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प्रदुमन कुमार जैन का दूसरा नावल 
"आस्थाओं के स्वर्ग नर्क"
 आदमी औरत के संबंधों के ऊपर बहुत ही बड़ी अपूर्व खोज है। उनके पास एक ही कापी थी जो उन्होंने मुझे पढ़ने को दी ,  शायद मेरी प्यास देखकर।
तो चलिए नावल की प्रष्ठभूमी पर।
एक लड़का जिसे एक लड़की चाहती है पूजती है और एक दूसरी लड़की है जो उसे चाहती है पर "भाई "कहती है। उसके भाई कहने के पीछे समाज के बंधन मन के डर छिपे हुए हैं। अक्सर ऐसा होता है किसी लड़के को कोई लड़की अच्छी लगे वह उसे प्यार का इज़हार नहीं कर पाता तो बहन या कोई रिश्ता बनाकर उस से बात जरूर करना चाहता है। 
अनूप जो इस कहानी का मुख्य पात्र है एक अध्यापक है जो कि एक शिकारी है पर वह मांसाहारी नहीं। शिकारी के बारे में उसने बड़ी अच्छी बात कही है, यह धार्मिक लोग यह नेता सब आम लोगों का शिकार करते हैं जो कि वह उनके पीछे लग जाए। 
एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा पढ़ने को मिला की मादा केकड़ा अपने प्यार का इजहार नर  केकड़े से करती है। उसे रिझाती है, जो कि वो उस से प्रेम कीड़ा करे।  जब उस नर केकड़े से उसके बच्चे पैदा हो जाते हैं तो वह नर केकड़े को मारकर खा जाती है। 
अनूप का नीलिमा से प्रेम, शहर में एक धार्मिक गुरु को हराना, नीलिमा के पिता को फिर से बचाना, बहुत कुछ ऐसा होता है जो कि अनूप को उस गांव में बहुत प्रसिद्धि दिलवाता है। नीलिमा उसे चाहती है और उन दोनों के बीच में प्रेम कीड़ा भी होती है। फिर किसी ट्रेनिंग के लिए उस अध्यापक को जाना पड़ता है 6 महीने के लिए। वहां उसकी मुलाकात एक रमेश नाम के लड़के से होती है जो की बहुत आवारा किस्म का है। उसकी शादी हो चुकी है दो बच्चे हैं पर फिर भी वह लड़कियों के साथ संबंध बनाने से बाज़ नहीं आता। पर वह सच्चा है और इसको अपना कर्म मानता है। पीछे से नीलिमा गर्भवती होती है और उसके माता पिता को वह गांव छोड़कर जाना पड़ता है।
 अनूप का वापस आना और दोनों लड़कियों से मिलना उसके मन में अंतर्द्वंद बहुत ही लाजवाब है। आदमी और औरत के संबंधों पर बहुत ही बेबाकी से लिखा गया है। नर और मादा दोनों की शारीरिक,  मानसिक जरूरतें हैं, जिसके लिए वह दोनों इसके लिए एक दूसरे से बंधे हुए हैं। पर वो ही सब कुछ नहीं है।
हमें जिस में आस्था है वो हमारे लिए पुण्य है, जिसमें आस्था नहीं,  वो नर्क। पर प्रकृ्ति में ऐसा कुछ भी नहीं है,  वो अपने ढंग से चलती है। जिसमें अंगुलीमाल जैसे पापी, एक ही झटके में बुद्ध बनने जाते हैं, पर कंही हिटलर जैसे लोग लाखों लोगों को मार देते हैं। पर हिटलर को लगता है यह पुण्य है। 
तो ये किताब भी मुझे समय के पार ले गई,  यँहा मैंने बहुत सारे आयाम देखे सिर्फ एक द्रष्टा बनकर। मुझे तो इस नावल से अपने भीतर झांकने का मौका मिला। 
#rajneesh_jass
22.03.2018

साईकिलिंग 23.03.2020 ( कुलवंत सिँह विर्क जी की आशावादी बात)

रविवार है, पर आज साइकिलिंग नहीं, क्योंकि आज पूरा भारत बंद है। पर साइकिलिंग वाले दोस्तों के लिए, घुमक्कड़ दोस्तों के लिए  लिख रहा हूं क्योंकि रविवार को उनको मेरी पोस्ट का इंतजार रहता है।
 पिछले हफ्ते मैंने लिखा था कि मैंने बचपन में कैसी कैसी घुमक्कड़ हरकतें की।
 कुछ ओर बातें लेकर आया हूं, कि जैसे जब हम मैं छोटा होता था शायद 6ठीं कक्षा में पढ़ता था। तब हमारे गाँव पुरहीरां, (होशियारपुर,पंजाब) में महावीर स्पिनिंग मिल्ल में काम करने वाली मेहनतकश लोग, जो कि  यूपी और बिहार से आए हुए थे हमारे और इर्द गिर्द के गाँव में रहते थे।

  वो लोग शनिवार रात को वीसीआर  लगा कर   पूरी रात  हिंदी फिल्में देखते थे। मैं भी जब रात के 9:00 बजे तक  घर पर नहीं आता था तो मेरे घरवाले पडोसियों से पूछते थे कि आज वीसीआर कहां लगा है? वो पता करके वँहा पहुँचते तो मैं सबसे आगे बैठा होता था।  बस फिर क्या वहां से पिटते  हुए  आता था।
  होशियारपुर से हमारा ननिहाल का गांव, बस्सी गुलाम हुस्सैन जो  होशियारपुर से लगभग 8 किलोमीटर है, पुराने समय में हम होशियारपुर से बस्सी पैदल ही जाते थे । रास्ते में चो आता है (चो वो होता है कि जिस में पहाड़ का पानी आता है और रेता होती है ) उसके इर्द-गिर्द काफी ऊंची ऊंची झाडियाँ  होती थी। हम लोग दोपहर के बाद में चलते और उस चो को पार करते। पार करने पर एक राहत होती कि चलो वहां पेड़ मिलेंगे और पेड़ के नीचे बैठेंगे। रास्ते में लगाठ और किन्नू का बाग था। उनके पेड़ों पर लगाठ लगे होते, तो उन्हें तोड़ने का मन होता, और डरत के मारे नहीं तोड़ते क्योकिं हमें पता था वँहा रखवाली के लिए कुत्ते भी हैं। एक छोटी सी सड़क,  सड़क के दोनों तरफ खेत खलियान। 
पैदल चलते चलते प्यास लगती तो  नलका गेड़कर  पानी पी लेते। 
 रास्ते में अगर साइकिल वाला मिल जाता तो लिफ्ट मिल जाती थी, अगर भूले भटके स्कूटर वाला मिलता तो हमारी लॉटरी लग जाती।
 ननिहाल में एक बार बहुत ज्यादा बारिश हो रही थी। मुझे बाहर घूमने जाना था । मैंने चप्पल उठाई और बारिश के मारने लगा, मैं उसको धमकी दे रहा था कि तुम बंद होती है या नहीं?
ये बात आज भी  मेरी मामी मुझे सुनाती है तो खूब हंसी आती है।😀😀

आज जनता कर्फिऊ है,मैं घर की बालकानी में बैठा हूँ, सामने पार्क में चिडिया, गलिहरी की आवाज़ से मन को सकून मिल रहा है ।

  कोरोना  के चक्कर में मुझे ओशो की सुनाई एक कहानी याद आ रही है। एक गुरु ने अपने शिष्य को कहा, सब 
कुछ परमात्मा है। शिष्य को ये बात बहुत जची। 
उसने पूछा,क्या आप मे भी परमात्मा है?
गुरू ने जवाब दिया, हाँ।
उसने पूछा,क्या मुझमें भी परमात्मा है ?
 गुरू ने जवाब दिया, हाँ , बेशक।
शिष्य ने पूछा, इन पेड़, फूल, पंछी, नदिया, पहाड,,,सभी में परमात्मा है?
गुरू ने मुस्कुराकर कहा, हाँ, वत्स।

वो शिष्य बड़ी खुशी खुशी मे गुरू की झोंपडी से बाहर  निकला। जंगल में  एक हाथी मस्त गया था। एक महावत को उसने पटक के नीचे फेंक दिया था । महावत जोर जोर से चिल्ला रहा था, हाथी मस्त है,  इससे बच जाओ। शिष्य ने  सोचा कि सब कुछ परमात्मा ही है।वो उसी तरफ चल दिया। सामने से हाथी आ गया, नीचे फेंक दिया। उसकी हड्डी पसली टूट गई। एक दो महीने  वो शिष्य बिस्तर पर रहा। जैसे ही वो ठीक हुआ जाकर गुरु को पकड़ लिया और बोला तुम तो कह रहे थे सब परमात्मा है, और हाथी ने मेरे को सूंड में पकड़ कर नीचे फैंक  दिया  और मेरी हड्डी टूट गई ।गुरु ने पूरी बात सुनी और फिर मुस्कुरा कर कहा, तुम्हें हाथी में परमात्मा दिखाई दिया पर  महावत में नहीं , जो तुम्हें चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि इससे बच जाओ ।

तो जो डाक्टर को महावत मानें और तंदरूस्त रहें। वो चिल्ला चिल्लाकर कह रहा है, घर पर रहें, परहेज़ करें। 

कल ही मेरी अपने एक दोस्त से इटली बात हुई  वो बता रहा था कि हालात ठीक नहीं है। तुम लोग भी पूरा परहेज़ करो।

मुझे, कुलवंत सिंह विर्क जी की लिखी एक बात याद आ रही है, ( पंजाबी के महान लेखक जिनकी दो कहानियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं,
धरती के नीचे का बैल 
और दूध का तालाब)

" भविष्य को लेकर मैं  केवल आशावादी नहीं बल्कि चार गुना उत्सुक हूं जिस तरह एक किसान फसल बीजने के समय में होता है। मेरी पत्नी कहती है, भविष्य की सोच  को लेकर तुम,  मेले में जाने वाले बच्चे की तरह बिगड़ जाते हो। मुझे हर वक्त यह ख्याल आता है कि बहुत कुछ होने वाला है । मुझे नये बमों के साथ दुनिया खत्म होने का कोई डर नहीं लगता। भारत में दुनिया को हाईड्रोजन बम से बचाने के लिएओर  देशों से ज्यादा बातें होती है। ये सब  बूढ़े लोगों की बातें हैं जो केवल खतरा बताकर अपनी बात मनवाना जानते हैं  लाखों-करोड़ों लोग मौत के किनारे जीवन बिताते हैं, पर फिर भी  जिंदा रहते हैं।"   

गुरबाणी भी कहती है
 चिंता ताके कीजिए
 जो अनहोनी होए।

 एक जगह और लिखा है
 हुक्मै अंदर सब कुछ
 हुक्मै बाहर ना कोए

 इसका मतलब है कि चिंता क्यों करनी है, जबकि अनहोनी हो ही नहीं सकती। जो कुछ भी हो वो उस परमात्मा के हुक्म में हो रहा है। 

 इसी उम्मीद में कि जल्दी दिन अच्छे होंगे फिर से जिंदगी खुशहाल हो जाएगी। आज के लिए विदा लेता हूँ। फिर एक नया किस्सा लेकर मिलूंगा, तब तक के लिए विदा लेता हूँ।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर 
उत्तराखंड
22.03.2020
#rudarpur_cycling_club
#sunday_diaries

Sunday, March 20, 2022

प्रदुमन कुमार जैन जी किताब, "ये व्यथा के अमर जीवी"

किताबें करती हैं बातें 
बीते ज़मानों की 
बमों की इंसानों की 
क्या तुम सुनना नहीं चाहोगे? 
किताबें कुछ कहना चाहती हैं 
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं 
#सफदर_हाशमी 
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1990 में छपी ये किताब मुझे प्रदुमन कुमार जैन उर्फ नारंग ने लिखी है। मुझे हैरानी है ये किताब कैसे चर्चा में नहीं आई। 
मेरा सौभाग्य है कि मैं इसके लेखक,  कवि से मिला हूँ क्योंकि वो रुद्रपुर में रहते हैं। 
वो 90 साल की उम्र में भी मुस्कुराते रहते हैं,  मेरे साथ मन की उलझन,  जीवन के गंभीर विषयों पर चर्चा करते रहते हैं। हम उनके स्वास्थ्य की मंगल कामना करते हैं। 
 कुछ किताबें कालजई होती हैं। ऐसी ही एक किताब है ये व्यथा के अमर जीवी।  इस किताब में चार पात्र लिए हैं जिनकी अपनी अपनी व्यथा है। 
पहला पात्र है राजुल भाभी। जो शादी वाले दिन ही  वैरागन हो गई क्योंकि उसके होने वाले पति भी वैरागी हो गए थे । एक गुफा में वह एक दिन वह नहा रही थी,तो  उसके अपूर्व सौंदर्य को देखकर उसका ही देवर जो कि वहां पर तपस्वी था उस पर मोहित हो गया। बोला, भाभी तुम मेरे साथ विवाह कर लो।
तो उसकी भाभी उसे ज्ञान देती है। कि तुम इतने बड़े तपस्वी होकर कहां नारी के शरीर पर मोहित होकर अपना जीवन बर्बाद करोगे। 
दूसरी कहानी है महिला पात्र अमरपाली जो कि बुद्ध के समय में नगरवधू थी। बुद्ध के समय में नगर की सबसे सुंदर लड़की को नगरवधू बना दिया जाता था। जो कि उसको पाने की ललक में नगर में झगड़े ना हो। आम्रपाली अपने जीवन से तंग आकर मुक्ति की राह पर चलना चाहती है तो वह बुद्ध की शरण में चली जाती है। 
तीसरी कहानी है त्रिशंकु। त्रिशंकु एक ऐसा पात्र है जो पैदा तो धरती पर होता है पर बिना किसी विधि के ही वह स्वर्ग के रास्ते स्वर्ग पर पहुंच जाता है। वहां देवता उसे अंदर आने नहीं देते। फिर लौट कर धरती पर आना चाहता है पर धरती वाले उसे स्वीकार नहीं करते ।वो फिर हवा में लटक जाता है और त्रिशंकु कहलाता है। 
 चौथा पात्र है  ईडीपस।  जिसे जन्म देने वाली मां बाप उसे जंगल में छोड़ कर चले जाते हैं उसे कोई और ही पालता है। फिर वह पालने वाली मां बाप को भी छोड़ कर असली मां बाप की खोज में निकल जाता है। पर विधि का विधान कुछ ऐसा होता है उसकी शादी किसी से हो जाती है। फिर वह 4 बच्चों का बाप बनता है। एक दिन उसे अचानक पता चलता है जिससे उसकी शादी हुई है वह उसकी अपनी ही सगी मां है। वो दुख में अपनी आंखें फोड़ लेता है फिर मां और पुत्र दोनों आत्महत्या कर लेते हैं। 

इन चारों पात्रों की कथा और कविता के जरिए प्रदुमन कुमार जैन जी ने जो नक्शा खींचा है वह लाजवाब है। ईडिपस पर तो फरायड ने भी ईडिपस कंप्लेक्स के बारे में  बताया है।
मानव ने जबसे इस धरती पर जन्म लिया है,  वो एक यात्री की तरह है जो कि उसे मोक्ष कहो, परमात्मा की खोज कहें।कुछ यात्री मंजिल तक पहुंच जाते हैं और कुछ राह में भटकते रहते हैं। तो आएँ पढ़ें, मथे इस किताब को। उतारें जीवन मेंऔर निकलें स्वंय की खोज पर। चलें व्यथा के पार।
#rajneesh_jass 
Rudrapur 
Distt Udham Singh  Nagar 
Uttarakhand 
India

जंग बहादुर गोयल जी की कविता

मशीन ने आदमी को मशीन बना दिया है 
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आज कोई आँख किसी के दर्द में आँसू नहीं बहाती 
आज कोई होंठ किसी के प्यार में नग्में नहीं गाता 
लगता है सब आँसू, आहें,  मुस्कानें और चुंबन 
सभी कुछ मशीन की भेंट हो चुका है 
और आज ये शहर लोहे का, 
यंहा क्या आप जीवन की तलाश करेंगे?  
ये बस्ती है मुर्दों की 
यंहा कंहा आप कविता की खोज करेंगे? 
मैं ये मानने के लिए तैयार हूँ कि हमारे पूर्वज़ों के पास रहने के लिए अच्छे मकान नहीं थे 
परंतु उन्हें आराम करने के लिए रेस्तरां नहीं जाना पड़ता था 
नींद लेने के लिए नींद की गोलियां नहीं लेनी पड़ती थी 
पत्थर की छोटी सी मूर्ति उनका हर दुख सपंज की तरह सोख लेती थी 
परंतु आज सुख साधन की सभी सुविधाएं होने के बावजूद 
कौन सी ऐसी चिंता है 
जिसके कारण ना दिन में चैन है ना रात में नींद 
बस हर समय चिता रूपी चिंता बनी रहती है 
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ये कविता  Jung Bahadur Goyal जी की है,  जो उन्होंने बहुत साल पहले बनारस हिंदू विश्वविद्यालय मह कविता पढ़ी तो डा मुरली मनोहर जोशी ने उन्हें गले लगा लिया।  यंहा ये बताना जरूरी है कि जंग बहादुर गोयल जी रिटायर्ड IAS officer है।  उन्होंने पंजाबी साहित्य में विश्व के शाहकार नावल नाम की किताबें लिखी हैं जिसमें लेखक और नावल के बारे में बहुमूल्य योगदान दिया है। अभी  वो चंडीगढ़ में रहते हैं।  उनकी एक इंटरव्यू मैनें की थी जो पंजाबी की अखबार,  नवां जमाना में छपी थी।
तस्वीर @ गूगल बाबा के सौजन्य से
#books_i_have_loved

साईकिलिंग और टाडा जंगल का गाँव 21.03.2021

अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम 
दास मलूक कह गये,  सबके दाता राम
# संत  मलूक 
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रविवार की साइकिलिंग।
मौसम ने करवट ले ली है,  कोयल की कू कू शुरू हो गई है, टटिहरी की टैं टैं भी

सुबह साइकिल का निकला। आज नये रास्ते से गया। फिर स्टेडियम के आगे से एक चक्कर लगाया।  अब सड़क नयी बन गयी है तो साइकिल चलाने में अच्छा लग रहा है। रास्ते में सुंदर फूल देखकर लगा कि कुदरत कितने गीत गा रही है,  पर हम अपनी व्यसतता के कारण यह महसूस नहीं कर पा रहे।
                     सिम्मल के फूल

वापस  आया तो देखा भीम दा अभी पहाड़ से वापिस नहीं आए, चाय का अड्डा बंद था। 
एक नयी दुकान पर बैठा। शिव शांत आया।  चाय पी। वँहा कुछ और लोग आए। एक ने कहा ,आप एक कुर्सी दे। मैनें देखा, मैं दो कुर्सियों पर बैठा था। मैनें कहा , जी कुर्सी है ही ऐसी चीज़, जिसे मिले बैठ जाता है। ।😀😀

मैनें तो यह भी गौर ना किया यह दो हैं

मैंने सोचा आज कुछ अलग करते हैं। पिछले
रविवार राजेश, टाडा जंगल गये थे, तो सोचा आज उस तरफ चलते हैं।
 मैंने कहा, चलो हम भी थोड़ी दूर तक घूम कर आते हैं। बस फिर क्या निकल लिए, हल्द्वानी रोड  पर। यहां से हल्द्वानी जाते रास्ते में टाडा जंगल आता है। यह जंगल वन विभाग के संरक्षण में आता है। इस सड़क पर चलते हुए लोगों को अक्सर हाथी, कई बार रात को चीता भी दिखाई दे जाता है। हम भी आगे को निकले रास्ते में पहले  फल की रेहडियाँ आती है मैं जब भी  हल्द्वानी के ऊपर काठगोदाम को जाता हूं तो कुछ फल  खरीद लेता हूँ।  उन फल वालों को बंदर बहुत परेशान करते हैं। आगे पहुंचे तो सिम्मल के पेड़ से पत्ते गिर रहे थे तो मैंने कहा वाह क्या बात है!  शिवशांत बोला गौर से देखो , बंदर के बच्चे इसके फूल खा रहे हैं, वही इसे नीचे फैंक रहे हैं।

शिवशांत ने बताया है कि यह सब्जी बनाने के काम भी आते हैं। हम फिर आगे बढ़े। आगे जाते हुए पेड़ों के बीच में से गुज़रती हुई हवा कुछ ज्यादा ही ठंडी लग रही थी।
 उधर को जाते हुए हल्की चढ़ाई है। लगभग 12 किलो किलोमीटर है यहां से। पहले एक रेलवे फाटक पार किया फिर दूसरा।  रास्ते में तस्वीरें खींचते हुए चलते रहे। दूसरे फाटक के पास एक पकोड़े वाला है उसके पकोड़े बहुत मशहूर हैं। यँहा पर लोग उसे पकौडी कहते हैं।  कई लोग रुद्रपुर से सिर्फ चाय पकौड़े खाने आते हैं। मैं भी दो बार अपने परिवार के साथ वहां बैठे चाय पकोड़े खाने आ चुका हूँ। उस दुकान वाले से बात हुई उसने बताया कि लगभग 18 साल हो गए उसको यँहा।  रोज उसके लगभग 5 किलो प्याज और 10 किलो आलू  लगते हैं। हमने वँहा 
पकोड़े खाए,चाए पी और वापिस चल दिए।
  आते हुए हमने  देखा था कि रास्ते में एक गांव है वहां पर मिट्टी के घर बने हुए हैं। वहां पर रुके। वहां पर गया तो एक  बज़ुर्ग औरत खड़ी थी।  मैंने उनसे पूछा कि  क्या मैं आपकी तस्वीर खींच सकता हूँ ?  उसने पूछा, मेरी तस्वीर लेकर क्या करोगे ? मैंने कहा,  आप हमारे बज़ुर्ग है , मेरी माँ के सामान। एक दिन हम भी आपके जैसे ही हो जाएंगे और आपसे इत्तेफाक रखना चाहिए।  पास ही बच्चे थे तो मैंने कहा एक दिन यह बच्चे हमारी जगह होंगे और हम आपकी जगह।
  उस औरत को यह बात बहुत अच्छी लगी  और वक्ह  मुस्कुरा दी,  मैंने तुरंत एक फोटो खींच ली। उनके चेहरे पर एक  मुस्कान देख कर ही लगा कि उनका मन कितना ठहरा हुआ है, वह सहज हैं।  क्योंकि जिसका मन अंदर से ठहरा  होता है उसके बाहर चेहरे पर शांति दिखाई देती है। आपने देखा होगा आप कुछ लोगों को मिलते हैं जो हमेशा जल्दबाजी में रहते  हैं। आप उनके चेहरे को देखेंगे थोड़ी देर में आपको लगेगा कि आपके मन में भी कुछ बेचैनी या कुछ हलचल सी हो गई है। पर कुछ लोग होते हैं उनको मिलकर या देखकर भी सुकून महसूस होता है। उनको आप अपने दिल का दर्द और खुशियां बताते हैं तो आपको बहुत तसल्ली होती है।

 तहज़ीब हाफी का शेर है 

बिछड़ कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा
वो थक जाएगा मेरे  गले आ लगेगा

मैं मुशकिल में  तुम्हारे काम आऊँ ना आऊँ
मुझे आवाज़ दे ले लेना तुम्हें अच्छा लगेगा
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उसके बाद हमारा एक आदमी से मिले, जिसका नाम शेर सिंह थापा था।
मैंने उनसे पूछा वह कब से  हैं यहां पर?
उसने बताया, क्योंकि दो पुश्तें बीत चुकी हैं , अब उनकी तीसरी पुश्त है। वह नेपाल से आए हुए हैं।  मैं पूछा, काम क्या करते हो?
 उसने बताया, हम दिहाड़ी करते हैं रुद्रपुर या हल्द्वानी।
 मैंने पूछा , यहां बच्चों की पढ़ाई का क्या
उसने बताया, यहां पर आंगनवाडी है और एनजीओ वाली मैडम  बच्चों को पढ़ाती हैं।
 मैंने कहा, बच्चों को आप  ज़रूर पढ़ाना  क्योंकि आप जो दिहाड़ी करते हो तो आपके बच्चे अच्छे पढ़ लिख कर बढिया जगह  पहुंचेंगे।

फिर हम चले गए वापस। 
कोई भी जगह हो वँहा के लोगों से बिना बात किए अगर हम गुज़र जाते हैं तो ऐसा लगता है हम कोई कार या ट्रक हैं।

फिर मिलूंगा।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
#rudarpur_cycling_club
21.03.2021

Thursday, March 17, 2022

ਮੇਰੀ ਜੇਬ ਚੋਂ ਸਿਗਰਟ ਨਿਕਲਣ ਦਾ ਕਿੱਸਾ ਤੇ ਬਾਪੂ

ਬਾਪੂ ਗੁਰਬਖਸ਼ ਜੱਸ ਜੀ ਨੂੰ ਸਰੀਰਿਕ ਰੂਪ ਚੋਂ ਵਿਦਾ ਹੋਇਆਂ ਸਾਢੇ ਚਾਰ ਮਹੀਨੇ ਹੋ ਗਏ ਤੇ ਪਿਛਲੇ ਮਹੀਨੇ ਸਹੁਰਾ ਸਾਹਿਬ ਵੀ ਇਸ ਫਾਨੀ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਵਿਦਾ ਕਹਿ ਗਏ।

ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਭਾਵਨਾਤਮਕ ਪਰਿਸਥਿਤਿਆਂ ਚੋਂ ਗੁਜ਼ਰਿਆ। ਗੁਰਬਾਣੀ , ਭਜਨ ਤੇ ਓਸ਼ੋ ਦੇ ਪ੍ਰਵਚਨ ਸੁਣਦਿਆਂ ਇਹ ਸਮਾਂ ਸਹਿਜਤਾ ਨਾਲ ਬੀਤਿਆ ਹਲਾਂਕਿ ਕੁਝ ਸਮਾਂ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਇਕਲਾਪਾ ਵੀ ਮਹਿਸੂਸ ਕੀਤਾ।

ਮੇਰੇ ਅਮਰੀਕਾ ਵੱਸਦੇ ਰੂਹ ਵਾਲੇ ਮਿੱਤਰ Davinder Bedi   ਨੇ ਕਿਹਾ," ਤੇਰੇ ਬਾਪੂ ਜੀ ਕਿਧਰੇ ਗਏ ਨਹੀਂ ਉਹ ਤਾਂ ਅਸੀਮ ਹੋ ਗਏ ਨੇ, ਫੈਲ ਗਏ ਨੇ ਸਾਰੇ ਬ੍ਰਹਿਮੰਡ ਚ। ਉਹ ਹੁਣ ਹਰ ਵੇਲੇ ਤੇਰੇ ਕੋਲ ਨੇ, ਤੇਰੇ ਰੌਂਏ ਰੌਏਂ ਚ ਨੇ।" 
ਇਸ ਗੱਲ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਬਹੁਤ ਢਾਰਸ ਦਿੱਤੀ, ਹੁਣ ਜਦ ਉਹ ਯਾਦ ਆਉਂਦੇ ਤਾਂ ਅੱਖਾਂ ਬੰਦ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਬਾਹਰ ਬਾਪੂ ਜੀ ਦੀ ਮੌਜੂਦਗੀ ਨੂੰ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹਾਂ।
ਫਿਰ ਕੁਝ ਪੁਰਾਣੀਆਂ ਗੱਲ੍ਹਾਂ ਯਾਦ ਆ ਗਈਆਂ।

ਇੱਕ ਵਾਰ ਮੇਰੀ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇ ਤੇ ਬਾਪੂ ਹੋਰਾਂ ਨਾਲ ਬਹਿਸ ਹੀ ਗਈ। ਜਦ ਵੀ ਉਹ ਗੱਲ ਹੁੰਦੀ ਤਾਂ ਉਹ ਬਹਿਸ ਛਿਡ਼ ਜਾਂਦੀ। 
ਮੇਰੇ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਮਿੱਤਰ ਸ਼ਿਬਜਿੰਦਰ ਕੇਦਾਰ ਹੋਰਾਂ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ,"ਦੇਖ ਬੇਟਾ ਤੇਰੇ ਬਾਪੂ ਹੁਣ ਉਮਰ ਦੀ ਢਲਾਣ ਤੇ ਨੇ, ਤੂੰ ਬਹਿਸ ਨਾ ਕਰਿਆ ਕਰ ਫਿਰ ਬਾਅਦ ਚ ਤੂੰ ਪਛਤਾਏਂਗਾ।"

ਮੈਂ ਵੀ ਸੋਚਿਆ ਵਿਚਾਰਾਂ ਚ ਮਤਭੇਦ ਹੋਣ ਨਾਲ ਬੰਦਾ ਬੁਰਾ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ, ਮੁਹੱਬਤ ਮਰ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਜਾਂਦੀ। 
ਫਿਰ ਮੈਂ ਉਹਨਾਂ ਨਾਲ ਬਹਿਸ ਕਰਨੀ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤੀ। 

ਉਂਝ ਤਾਂ ਬਾਪੂ ਨਾਲ ਦੋਸਤਾਂ ਵਰਗੀ ਮੁਹੱਬਤ ਰਹੀ।

ਇਕ ਵਾਰ ਸਾਡੇ ਘਰ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਕੱਪੜੇ ਧੋ ਰਹੀ ਸੀ। ਮੇਰੀ ਜੇਬ ਚੋਂ ਇੱਕ ਸਿਗਰਟ ਨਿਕਲੀ ਤੇ ਉਸਨੇ ਸਾਡੇ ਸਾਮਣੇ ਲਿਆ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤੀ।
ਹੁਣ ਬਾਪੂ ਜੀ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਪੀਂਦੇ ਸਨ ਸਿਗਰੇਟ, 
ਓਹਨਾ ਮੈਨੂੰ ਕਿਹਾ," ਵੇਖ ਮੈਂ ਹਰ ਵੇਲੇ ਤੇਰੀ ਰਖਵਾਲੀ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੁਣ ਤੂੰ ਸਿਆਣਾ ਹੈ ਆਪਣਾ ਫੈਸਲਾ ਖੁਦ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈਂ। ਹੁਣ ਤੂੰ ਇਹ ਤੈਅ ਕਰ ਕਿ ਤੇਰੀ ਸਿਹਤ ਲਈ ਇਹ ਸਿਗਰਟ ਲਾਹੇਵੰਦ ਹੈ ਜਾਂ ਨੁਕਸਾਨਦਾਇਕ?

ਜਦ ਅਸੀਂ ਛੋਟੇ ਹੁੰਦੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਕਈ ਬਾਰ ਇਹੋ ਜਿਹੀਆਂ ਸ਼ਰਾਰਤਾਂ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਹਾਂ ਸਾਡੇ ਮਾਂ ਬਾਪ ਸਾਨੂੰ ਝਿੜਕ ਮਾਰ ਦਿੰਦੇ ਨੇ ਹਲਾਂਕਿ ਉਹ ਗਲਤੀ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਪਰ ਜਦ ਸਾਡੇ ਉਹੀ ਮਾਂ ਬਾਪ ਬੁੱਢੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਨੇ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਉਹ ਗੱਲਾਂ ਭੁੱਲ ਜਾਂਦੇ ਹਾਂ।
ਜੇ ਕਦੇ ਉਹ ਕੋਈ ਉਹ ਕੌੜਾ ਸ਼ਬਦ ਬੋਲ ਦੇਣ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣਾ ਬਚਪਨ ਦੀ ਭੁੱਲ ਸਮਝ ਕੇ ਭੁੱਲ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਜੇ ਅਸੀਂ ਬਹਿਸ ਕਰਾਂਗੇ ਤਾਂ ਉਹ ਆਪਣੇ ਦਿਲ ਤੇ ਬੋਝ ਲੈਕੇ ਵਿਦਾ ਹੋਣਗੇ ਤੇ ਓਹਨਾ ਦੇ ਜਾਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਸਿਰਫ ਤੇ ਸਿਰਫ ਪਛਤਾਵਾ ਹੀ ਰਹਿ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਪਰ ਫਿਰ ਉਦੋਂ ਉਸ ਪਛਤਾਵੇ ਦਾ ਵੀ ਕੋਈ ਫਾਇਦਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ। 

ਜਿਵੇਂ ਓਸ਼ੋ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਜਦ ਮੈਂ ਮਰ ਜਾਵਾਂਗਾ ਮੇਰੇ ਇੱਕਠ ਤੇ ਤੁਸੀਂ ਮੇਰੇ ਸਾਰੇ ਗੁਨਾਹਾਂ ਨੂੰ ਮਾਫ ਕਰ ਦੇਵੋਗੇ। ਪਰ ਉਸ ਵੇਲੇ ਮੈਂ ਸਰੀਰਿਕ ਰੂਪ ਚ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਹੋਵਾਂਗਾ, ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਸੁਨਣ ਲਈ। ਪਰ ਜੇ ਤੁਸੀਂ ਮੈਨੂੰ ਜਿਉਂਦੇ ਜੀ ਮਾਫ ਕਰ ਦੇਵੋਗੇ ਤਾਂ ਮੇਰੀ ਰੂਹ ਨੂੰ ਵੀ ਸਕੂਨ ਹੋਵੇਗਾ ਤੇ ਤੁਹਾਡੇ ਦਿਲ ਤੇ ਵੀ ਬੋਝ ਨਹੀਂ ਰਹੇਗਾ।

ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
17.03.2022

Friday, March 4, 2022

ਅੰਗੂਰ ਵਾਲਾ ਮੁੰਡਾ ( ਅਣਜਾਣ ਚਿਹਰੇ)

ਕਈ ਬਾਰ ਰਾਹ ਚ ਚਲਦਿਆਂ ਕੁਝ ਚਿਹਰੇ ਅਜਿਹੇ  ਮਿਲਦੇ ਨੇ ਜੋ ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵੱਲ ਮੱਲੋ ਜੋਰੀ ਖਿੱਚ ਲੈਂਦੇ ਨੇ।
ਅੱਜ ਫੈਕਟਰੀ ਤੋਂ ਵਾਪਿਸ ਆਉਂਦਿਆਂ ਇਕ ਮੁੰਡਾ ਰੇਹੜੀ ਲਾ ਕੇ ਖੜਾ ਸੀ ਉਹ ਵੀ ਉਸ ਥਾਂ ਤੇ ਜਿੱਥੇ ਕੋਈ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਰੇਹੜੀ ਲਾਉਂਦਾ। 
ਮੈਂ ਅਗਾਂਹ ਨਿਕਲ ਗਿਆ ਸੀ ਫਿਰ ਵਾਪਸ ਆਇਆ। ਕਿਉਕਿਂ ਮੈਨੂੰ ਲੱਗਾ ਉਹ ਮੈਨੂੰ ਖਿੱਚ ਰਿਹਾ।

ਆਨੰਦ ਫਿਲਮ ਚ ਰਾਜੇਸ਼ ਖੰਨਾ ਰਾਹ ਚ ਚਲਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਣਜਾਣ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਰੋਕ ਕੇ ਕਹਿੰਦਾ, ਕਿਆ ਹਾਲ ਹੈ ਮੁਰਾਰੀ ਲਾਲ? ਯਾਦ ਹੈ ਕੁਤਬ ਮੀਨਾਰ ਪੇ 4 ਪੈੱਗ ਪਿਲਾਕਰ ਆਊਟ ਕਰ ਦੀਆ ਥਾ।
ਜਦ ਬੰਦਾ ਅੱਗੋਂ ਜਵਾਬ ਦਿੰਦਾ ਤਾਂ ਉਹ ਮੁਸਕੁਰਾ ਕੇ ਮਾਫੀ ਮੰਗ ਲੈਂਦਾ।
ਅਮਿਤਾਭ ਬਚਨ ਪੁੱਛਦਾ, "ਤੂੰ ਇੰਝ ਰਾਹ ਜਾਂਦੇ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਬੁਲਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ! ਹਲਾਂਕਿ ਤੂੰ ਉਸਨੂੰ ਜਾਣਦਾ ਨਹੀਂ।
ਰਾਜੇਸ਼ ਖੰਨਾ ਅੱਗੋਂ ਜਵਾਬ ਦਿੰਦਾ," ਕੋਈ ਬੰਦਾ ਤੁਹਾਨੂੰ ਚੰਗਾ ਲੱਗਾ, ਉਸ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰਨ ਨੂੰ ਦਿਲ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਤੁਸੀਂ ਉਸਨੂੰ ਬੁਲਾਇਆ ਗੱਲ ਕੀਤੀ, ਕਿੰਨਾ ਖੂਬਸੂਰਤ ਹੈ ਇਹ ਰਿਸ਼ਤਾ!"

ਮੈਂ ਉਸ ਮੁੰਡੇ ਨੂੰ ਵੀ ਇੰਝ ਹੀ ਮਿਲਿਆ, ਗੱਲ ਕਰਨ ਦਾ ਦਿਲ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਰੁਕ ਗਿਆ। 
ਉਸ ਕੋਲੋਂ ਅੰਗੂਰ ਦਾ ਭਾਅ ਪੁੱਛਿਆ ਤੇ ਉਸਨੇ ਅੱਧਾ ਕਿਲੋ ਤੋਲ ਤੋਲਣ ਲਈ ਕਿਹਾ। 
ਉਸਨੇ ਸਿਰਫ ਇਕ ਕਮੀਜ਼ ਪਾਈ ਹੋਈ ਸੀ।
ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਤੂੰ ਜਿਸ ਥਾਂ ਤੇ ਇਹ ਰੇਹੜੀ  ਲੈ ਹੈ ਇਹ ਥਾਂ ਬਿਲਕੁਲ ਅਲੱਗ ਹੈ।
ਉਹ ਬੋਲਿਆ ਹਾਂ ਜੀ,  ਅੱਜ ਮੈਂ ਪਹਿਲੀ ਬਾਰ ਰੇਹੜੀ ਲਾਈ ਹੈ।
ਮੈਂ ਕਿਹਾ, ਠੰਡ ਹੋ ਗਈ ਹੈ ਸ਼ਾਮ ਦਾ ਸਮਾਂ ਹੈ ਤੂੰ ਸਿਰਫ ਕਮੀਜ਼ ਚ ਹੈਂ, ਠੰਡ ਨਾਲ ਤੂੰ ਬਿਮਾਰ ਹੀ ਸਕਦਾ ਹੈਂ। 
ਉਸਨੇ ਜਵਾਬ ਦਿੱਤਾ ਉਹ ਦੁਪਹਿਰ ਨੂੰ ਆਇਆ ਸੀ ਤਾਂ ਠੰਡ ਨਹੀਂ ਸੀ।
ਉਸਦਾ ਨਾਮ ਦੇਵ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਪੜ੍ਹਾਈ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਉਸਦੇ ਪਿਤਾ ਇਥੇ ਸਿਡਕੁਲ ਚ ਹੀ ਨੌਕਰੀ ਕਰਦੇ ਨੇ। 
ਅਜਿਹੇ ਕਿੰਨੇ ਹੀ ਲੋਕ ਨੇ ਜੋ ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਦੇ ਨੇ।
ਇਹਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਲਾਮ, ਇਹਨਾਂ ਕਰਕੇ ਅਸੀਂ ਰਾਹ ਚ ਚਲਦੇ ਫਲ ਖਰੀਦ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ, ਚਾਹ ਪੀਂਦੇ ਹਾਂ, ਭੁੱਖ ਲੱਗੀ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਖਾਣਾ ਖਾ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ।
ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖਕੇ ਮੈਨੂੰ ਸਈਅਦ ਅਖਤਰ ਮਿਰਜ਼ਾ ਦੀ ਡਾਕੂਮੈਂਟਰੀ ਯਾਦ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਜੋ 1991 ਚ ਦੂਰਦਰਸ਼ਨ ਤੋਂ ਆਈ ਸੀ, A tryst with people of India.  
( ਇਸ ਚ ਉਸਨੇ ਆਪਣੀ ਟੀਮ ਨਾਲ ਪੂਰਾ ਭਾਰਤ ਘੁੰਮਿਆ, ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲਿਆ ਤੇ ਵੇਖਿਆ ਨਹਿਰੂ ਦੇ ਭਾਰਤ ਚ ਆਮ ਆਦਮੀ ਦੀ ਕੀ ਹਾਲਤ ਹੈ ਅਜਾਦੀ ਤੋਂ ਬਾਦ 50 ਸਾਲ ਤੋਂ ਬਾਦ)

ਇਸੇ ਯਾਤਰਾ ਦੌਰਾਨ ਉਹ ਇੱਕ ਕਿਸਾਨ ਨੁੰ ਮਿਲਦਾ ਜੋ ਹਲ ਵਾਹ ਰਿਹਾ ਹੈ ਖੇਤ ਚ। ਉਹ ਉਸ ਕਿਸਾਨ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰਨੀ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਪਰ ਕਿਸਾਨ ਆਪਣਾ ਹਲ ਵਾਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਉਸਨੂੰ ਜਵਾਬ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਕੋਲ ਰੁਕ ਕੇ ਗੱਲ ਕਰਨ ਦਾ ਸਮਾਂ ਵੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਇਹ ਬਲਦ ਤੇ ਹਲ ਕਿਰਾਏ ਤੇ ਲੈ ਕੇ ਆਇਆ ਹੈ ਤੇ ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਵਾਪਿਸ ਕਰਨਾ ਹੈ।" ਇੰਨਾ ਕਹਿ ਕੇ ਉਹ ਆਪਣਾ ਹਲ ਵਾਹੁੰਦਾ ਰਿਹਾ ਤੇ ਸਇਅਦ ਅਖਤਰ ਮਿਰਜਾ ਅਗਾਂਹ ਤੁਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। 
ਫਿਰ ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ, ਜੋ ਲੋਕ ਮੰਤਰੀ ਹੁੰਦੇ ਉਹ ਕਹਿੰਦੇ ਉਹ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਚਲਾ ਰਹੇ ਨੇ ਪਰ ਅਸਲ ਚ ਦੇਸ਼ ਚਲਾਉਂਦਾ ਹੈ ਆਮ ਆਦਮੀ ਜੋ ਸਵੇਰੇ ਆਪਣੇ ਘਰੋਂ ਸਵੇਰੇ ਕੁਝ ਸੁਪਨੇ ਲੈਕੇ ਨਿਕਲਦਾ ਹੈ ਕੰਮ 'ਤੇ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਭੀੜ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ , ਸ਼ਾਮੀਂ ਥੱਕ ਟੁੱਟ ਕੇ ਘਰ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਪਰ ਇਸਦਾ ਨਾਮ ਕਿਤੇ ਵੀ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ ਅਸਲ ਚ ਹੀ ਆਦਮੀ ਦੇਸ਼ ਚਲਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।

ਇਕ ਗੀਤ ਯਾਦ ਆ ਗਿਆ
"ਯੇ ਜੀਵਨ ਹੈ 
ਇਸ ਜੀਵਨ ਕਾ ਯਹੀ ਹੈ 
ਯਹੀ ਹੈ ਰੰਗ ਰੂਪ 
ਥੋੜੀ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਥੋੜੇ ਗ਼ਮ ਹੈਂ 
ਯਹੀ ਹੈ ਛਾਂਵ ਧੂਪ"
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ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ, ਉਤਰਾਖੰਡ
ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰਹੀਰਾਂ, 
ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ, ਪੰਜਾਬ
#faces

Wednesday, March 2, 2022

Sufi whirling meditation

गोपालदास नीरज जी ने कहा है 

हम तेरी चाह में ए - यार वंहा पहुंचे 
होश ये भी नहीं कि कंहा पहुंचे 
वो ना ज्ञानी,ना वो ध्यानी,ना ही विरह मन
वो कोई और ही थे जो तेरे मकां तक पहुंचे
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Sufi Whirling,  सूफी व्हीरलिंग,  ध्यान की एक गहरी विधि। 
सूफी फ़कीर कई कई घंटे यह ध्यान की विधि करते हैं। यह बहुत गहरी और सूक्ष्म विधि है।
एक बार ऐसा नृत्य करने का मौका मिला।  यूं लगता है हम खड़े हैं और पूरी धरती हमारे इर्द-गिर्द घूम रही है।  
एक बार तो हम नाच रहे थे हमें लगभग एक -डेढ़ घंटा हो गया था।  एक आदमी जो जर्मनी से आया था, वो मुझसे पूछने लगा,  शराब तो पी नहीं है आपने क्योंकि कोई बदबू नहीं,  कोई भांग का नशा करने रखा है क्या?  मैंने कहा,  ये बिना नशे वाला नशा है, तुम्हारी समझ से बाहर है। 
आबिदा प्रवीन ने कहा है  "यहां से अक्ल और समझ खत्म होती है वंहा से इश्क शुरू होता है। "

1997 में सुंदरनगर, हिमाचल प्रदेश में एक ध्यान कैंप था 3 दिन का।
मेरे पास पैसे नहीं थे  , वँहा की फीस। मैनें किसी से पैसे उधार लिए और होशियारपुर से चल दिया अकेला। पिता जी पहले अपने दोस्तों के साथ पहले ही गये थे। मुझे इजाज़त नहीं मिली थी। पर ओशो ने कहा है, जब तक आप कुछ नया या विद्रोही नहीं करते तब तक जीवन को जान नहीं पाते। 
 वँहा पहुँचा तो एक बहुत बड़ा मेडिटेशन हाल था। मैनें अपना रजिस्ट्रेशन करवाया और मेडिटेशन करने पहुँच गया। 
जब मैं ध्यान करने के बाद विश्राम कर रहा था तो पिता जी ने देखा औरहैरान। 
बोले तुम यँहा कैसे?
मैनें मुस्कुराते कहा,आ गया बस।
उनके दोस्तों ने कहा, अब आ गया है तो अच्छा। यह कौन सा बुरी जगह है! आखिर तुम भी आए हो।
फिर मैनें वँहा ध्यान की विधियाँ की।
सूफी व्हरलिंग भी की। कमाल का अनुभव रहा। लगभग आधा घंटा अपना एक हाथ उठाकर देखते हुए घूमना, साथ में संगीत। घूमते घूमते संगीत तेज़ होता है और हमारी गति बढ़ती गयी। ऐसे लगा कि हम खड़े हैं पूरी धरती घूम रही है। पर घूमते हुए अगर हाथ से ध्यान हटा तो चक्कर आकर गिर सकते हैं। उसके बाद धरती पर पेट के बल लेटना है। 

नुसरत फतेह अली खान की कव्वालियों पर कई बार नाचने से ऐसा नशा होता जाता है कि शब्दों में बताना नामुमकिन है।  
ओशो ने कहा है,  "अपने आप को जान लेना ही सबसे बड़ी उपलब्धि है,  हम कितना पैसा कमाते हैं,  कौन सी उपाधि पाई,  ये सब फिज़ूल है।"

#Rajneesh_jass
#Sufi_Whirling
#meditation

Tuesday, March 1, 2022

साईकिलिंग और बचपन

रविवार है तो साइकिल। आज घर से निकला स्टेडियम से आगे मंडी हाउस के पास संजीव अपने बेटे ओजस के साथ मिल गए।  मैंने एक पेड़ देखा जिसको पंजाबी में सिंमल का पेड़ कहते हैं,  तो मुझे गुरबाणी की  याद आ गयी

सिंमल रुख सराया
अति दीरघ अति मच
ओ जे आवे आस कर
जाए निरास कति
फल फिक्के, फुल बकबके
कम्म ना आवे पत्त
मिठत नीवीं नानका 
गुण चंगिआईयां तत्त

इसका मतलब है कि सिंमल का पेड़ इतना ऊंचा है कि उसके फल फीके, फूल बकबके। उसकी कोई छाया नहीं है, अगर पंछी आता है तो वो निराश हो जाता है। हमें ऐसा पेड़ नहीं बनना चाहिए। हमें मीठे और छोटे बनना चाहिए, जो कि किसी के काम आ सकें।

  तो बचपन की बातें होने लगी संजीव जी बता रहे थे कि बच्चों को हमें समझना चाहिए , सुनना चाहिए। जैसे कि कोई बच्चा पेपर  देने जा रहा है तो उसे खुद को पूछना चाहिए कि उसने कितनी इमानदारी से तैयारी की है ? वह खुद से पहले पूछे उसके बाद उसके कितने नंबर आते हैं ये बात इतनी मायने नहीं रखती। भेड़चाल चली हुई है ज्यादा नंबर लेने की, इससे बच्चे निराशा में चले जाते हैं । मुझे रविंद्र नाथ टैगोर के एक बात याद आ गई थी, हमारी सारी पढ़ाई ,शिक्षा दीक्षा का एक ही नतीजा होना चाहिए कि हम आनंदित हो रहा हैं या नहीं?
 राजेश सर ने कहा  हम जैसे छोटे बच्चों को पेंटिंग का शौक होता है और साथ में जो पढ़ाई भी करते हैं । हमें पेंटिंग के साथ-साथ उनको यह भी बताना चाहिए कि पढ़ना भी जरूरी है । जब बच्चे बारह तेरा साल क्रॉस कर जाते हैं या नहीं थे 10th में हो जाते हैं तो तब सही से पता चलता है कि बच्चे को किस दिशा में भेजना चाहिए?

 तब मुझे एक किताब की बात याद आ गई  अलेक्जेंडर की है, पंजाबी में,जदों डैडी छोटा हुंदा सी,मतलब जब पापा छोटे होते थे। एक बार में उसका बच्चा बीमार हो जाता है तो उसको  उसके पिता  अपने बचपन की छोटी-छोटी कहानियां सुनाता है जो कि बहुत हंसी मजाक वाली है ।
संजीव जी ने बताया कि उनका बेटा भी एक बुक सीरीज़ पढ़ रहा है, Diary of a Wimpy Kid  जो कि अमेरिका के एक लेखक Jeff Kinney की  है। उसकी 14 सीरीज़ आ चुके हैं ।उनके बेटे के पास यह सारी सीरीज़ है।
 हमें अपने बच्चों को व्यस्त रखना चाहिए पर व्यस्त रखने का मतलब यह नहीं है उनको मोबाईल देकर व्हाट्सएप, फेसबुक और यूट्यूब मे उलझा दें। उनको किताबें पढ़ने के लिए समय देना चाहिए।
संजीव बता रहे थे कि जब कभी वह छत पर अकेले होते हैं तो वह दो-तीन घंटे में कुछ ना कुछ जरूर लिखते हैं। ऐसी  कुछ कविता लिखना, पेंटिंग करना, यह भी एक ध्यान करना है। ये हमें संसार से कुछ समय के लिए तोड़ता है, अपने से जोड़ता है। तभी कोई ना कोई रचना पैदा होती है।
 वँहा बात चली किसी की, कि उसे जब उसे गुस्सा आता था तो वो कई कई घंटे गुस्सा में रहता था। ऐसा होने के कारण उसे हाई बल्ड प्रैशर की दिक्कत आ गई थी । फिर उसने स्वभाव में बदलाव किया, कि जब गुस्सा आए तो तुरंत अपना ध्यान दूसरी जगह लगा दिया, जिसके कारण गुस्सा विदा होने लगा। उसने कोई दवाई भी नहीं ली, जिसके कारण अब उनका बल्ड प्रैशर बिल्कुल ठीक है। मैनें ये बात सीखी कि,जब भी हमें गुस्सा आए तो हमें अपना ध्यान इधर ऊधर लगाना चाहिए।

 पंछियों की आवाजें आ रही थी, चिड़िया चहक रही थी, मौसम भी बढ़िया हो रहा है। साथ में चाय पी, ब्रेड खाई।  कुछ ओर मुद्दों पर भी बातचीत हुई,  जैसे कि आदमी को बैठकर की पेशाब करना चाहिए, इससे उसको प्रॉस्टेट ग्लैंड के कैंसर का खतरा बहुत कम हो जाता है। याद आया हमारे बुजुर्ग भी बैठकर भी पेशाब करते हैं। ये  बीबीसी पर भी है।
 मैं ओशो का प्रवचन सुना था तो उसमें उन्होंने कहानी सुनाई एक अजीब सा झगड़ा लेकर दो दोस्त अदालत में आए। जज ने कहा, क्या बात हुई? तो एक ने सुनाया कि इसकी भैंस  मेरे खेत  में घुस आई और मेरी सारी फसल बर्बाद कर दी। फिर जब दूसरे से बात हुई तो उसने कहा कि हम दोनों बैठे बातें कर रहे थे, तो एक  बोला कि मैं सोच रहा हूं कि दो भैंस खरीद लूँ। दूसरे ने कहा, सोच रहा हूँ, कि खेत खरीद लूं। पहले ने कहा हो सकता है मेरी भैंस तेरी खेत को खा जाए। तो पहले ने ज़मीन पर एक लकीर खीची और कहा ये हैं मेरा खेत। एक ने वँही लकीर खींचकर कहा , ये मेरी दो भैंस। खेत वाले ने कहा देख अपनी भैंस को संभाल ये मेरे खेत में घुस आईं है। बस वँही झगडा बढ़ गया और हम आ गये आपके पास। ओशो कहते हैं, दुनिया के सारे झगडे ऐसी ही कल्पना से पैदा हो रहे हैं। ये  सिर्फ हमारी सोच की उपज है।

आज के लिए विदा लेता हूँ , फिर मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।

आपका अपना 
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
01.03.2020
#sunday_diaries
#rudarpur_cycling_club