आज नीम करोली बाबा मंदिर , कैंची धाम गया. मंदिर के अंदर जाते ही मन बिल्कु शांत हो गया। ऐसे लगा मन से सारा बोझ उत्तर गयाI वहां आरती हो रही थीI आरती में डफली के साथ ढोलकी पर भजन, क्या बात... आज तो समझदारी कहीं दूर बिखर गयीI एक अंग्रेज जो व्हील चेयर पर थाI
मैंने उस व्हील चेयर वाले से पुछा "आप कहाँ से है? "
तो वो बोला, "फ्रांस से'
मैंने पुछा " क्या आप भारत से प्यार करते हैं?
तो वो बोला " बहुत ज़्यादा" I पर ये कहते जो ख़ुशी उसके चेहरे पर थी वो मैं अभी शब्दो में नहीं बता सकता I
वो और बहुत सरे अंग्रेज जो भारतीय भेष भूषा में थे वो सब मस्ती में डूबे हुए थे I
जैसे चुम्बक लोहे को खींच लेता है वैसे ही मेरे साथ हुआ I उसका जादू और उसके नाश अभी भी मेरे मन पर छाया हुआ है I दोबारा जाने का मन है।
आबिदा प्रवीन जो एक सूफी गायक है, उनकी एक बात याद आ गई, " यंहा से अक्ल और समझ खत्म होती है, वंहा से इश्क शुरू होता है। " वो आज देख भी लिया।
# रजनीश जस,
रुद्रपुर, उत्तराखंड
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