घुमक्कड़
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धरती मापने निकले घुमक्कड़
अपने छोटे-छोटे पैरों के साथ
दिल में लिए
बुलंद हौसलें
इनकी दिलों में ख्वाहिश है
उन राहों पर जाने की
यहां सिर्फ और सिर्फ कुदरत है
अपने पूरे यौवन पर
यह बनाते हैं अपनी राह खुद
जैसे रॉबर्ट फ्रॉस्ट की कविता है
" द रोड नॉट टेकन"
मतलब जिस राह पर कोई नहीं चला
कभी पैदल
कभी बिना तैयारी के
पर अब तो तरक्की हो गई है
आ गए हैं टेंट,मैट,
स्लीपिंग बैग और
पोर्टेबल चुल्हे
जेब में चाहे पैसे कम हैं
पर वह भरी हुई जज्बात से
मोहब्बत से
वो मोहब्बत किसी एक
मनुष्य या जगह के लिए नहीं
बल्कि इसमें समाई हुई है पूरी सृष्टि
चींटी, गिलहरी, मधुमक्खी,साँप, हाथी,
शेर, चीता, फूल , पहाड़, दरिया, ब्लैक होल, गैलेक्सी
इनको राह दिखाने वाले हैं
आज से पहले हुए घुमक्कड़
राहुल संक्रतायन, हिऊन साँघ, इब्नेबतूता
आंखें बंद कर यह
अपने अंदर की भी
यात्रा तय करते हैं
जैसी यात्रा की है
बाबा नानक ,महात्मा बुद्ध और कबीर ने
जो कि कहते हैं
"जो ब्राह्मंडे सो ही पिंडे"
इनकी आंख में हैरानी
जैसे देखता है नया पैदा हुआ बच्चा
हर शै को बहुत गौर से
इनको किसी से ज्यादा लगाव नहीं होता
ना ही होता बैराग
घूमना इनकी ज़ात है
घूमना इनका धर्म है
घूमना ही इनका कर्म है
नदियां, पहाड़, मरुस्थल
सब तय कर जाते हैं
कोई पैदल
कोई साइकिल से
कोई स्कूटर पर
कोई मोटरसाइकिल पर
और पहुंच जाते हैं
लेह लद्दाख, कश्मीर, हिमाचल,
उत्तराखंड, गोवा, सिक्कम, गुजरात
कई तो सरहद के पार घूम आते हैं
और पहुंचा देते हैं मोहब्बत का पैगाम
वापस ले ले कर आते हैं
दिलदार लोगों की
मेहमान नवाज़ी के किस्से
खींचते हैं तस्वीरें
बनाते हैं वीडियो
जो कि लोग भी आनंद ले सकें
धरती के सुंदरता का
चढ़ता डूबता सूरज, चांद सितारे
सब कुछ समा लेते हैं अपने ज़हन में
कुछ लिखते हैं किताबें
और उन किताबों को पढ़कर
आम लोगों के ख्वाबों को भी
पंख लग जाते
और वह घर के चारदीवारी को
तोड़कर बाहर निकलने की
उम्मीद से भर जाते
घुमक्कड़ जानते हैं
इस धरती पर यह मानव देह
मिली है
कुछ समय घूमने के लिए
घूमना है तो कुछ जोड़ते नहीं
किसी का दिल तोड़ते नहीं
रखते नहीं दिल में कोई मलाल
कि "यह" नहीं किया
"वह" रह गया
ज़िन्दगी को भरपूर जीते हैं
जिन पांच तत्वों से शरीर बना है
हवा,अग्नि,जल,वायु,आकाश
जानते हैं इसी में
एक दिन समा जाना है
तो नहीं करते इसको मैला
जैसे कि कबीर कहते हैं
"ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया"
धरती पर सिर्फ आदमी ने
अलग- अलग धर्म बनाए हैं
सरहद, फौज, हथियार
पर घुमक्कड़ लोगों के लिए
सारी धरती ही एक है
इनके लिए तो हर एक आदमी
अलग सभ्यता है
इसलिए तो निकलते हैं
घरों से जानने को
अलग-अलग सभ्यताओं को
मैं भी नहीं जानता था
घुमक्कड़ और सैलानी होने में
फर्क है
सैलानी घर से निकलकर
किसी मशहूर जगह पर
सीधा होटल में जाता है
वह भी पूरी तैयारी के साथ
एक निश्चित समय में
देखकर घर वापस आ जाता है
पर वह नहीं खाता
वहां के आम लोगों का खाना
ना ही मिलता आम लोगों
ना जान पाता नयी - नयी राहें
ना जान पाता नयी - नयी बातें
पर अब पता चला
कि घुमक्कड़ निकलते हैं घर से
उनको यह भी नहीं पता होता
कहां जाना है, कैसे जाना है
बस इस दिल में घूमने का ख्याल रहता है
यह पार करते हैं
नदियां, पहाड़, झरने, समुद्
अपना खाना आप बनाते हैं
कई बार तो दो पत्थर जोड़ कर
उन पर हांडी रखकर
जंगल से लकड़ियां बीनकर
उससे आग जलाते
खाना बनाते
रात बिताते जंगली जानवरों के बीच
नज़ारा लेते चांदनी रात का
सुनते झींगुर की आवाज़
दरिया का शोर
अमावस की रात में
चीड़ के पेड़ों से गुज़रती हुई हवा की
सां- सां की आवाज़
सफर के दौरान बनते
दिलकश किस्से
कुछ लोग इन को घर बुलाकर
खाना खिलाते
कोई ठंड से बचने के लिए
दस्ताने खरीद कर देता
और नहीं लेता कोई पैसे
कोई पेट्रोल खत्म होने पर
लाकर देता पेट्रोल
कोई साइकिल या मोटरसाइकिल
पंचर होने पर पहुंचा देता
अपनी गाड़ी में लादकर
इनको टायरों की दुकान पर
भूले से अगर कोई सामान
किसी दुकान पर रह जाए
तो दुकानदार,
मार्किट बंद होने पर भी
अपनी दुकान के बाहर बैठा
इंतज़ार करता रहता घुमक्कड़ लोगों का
जो कि वापस कर सके
उनकी अमानत
फिर होता मोबाइल नंबरों का लेनदेन
और दोबारा मिलने से
ऐसे गहरे रिश्ते बन जाते
जो कि अपने सगे भाइयों बहनों के
साथ भी नहीं होते
घुमक्कड़ लोग मिलते हैं
आम लोगों को
सुनते उनका सुख-दुख
उन आम लोगों को
बना देते हो खास
उनकी तस्वीर खींचकर
अपनी मुस्कान उनको देकर
उनका दुख पोंछ देते
जैसे कि मधुमक्खियां, तितलियाँ
फूलों का परिवार बढा देती हैं
उनके पराग कणों से
उसी तरह घुमक्कड़ भी
लोगों के दिलों में शांति
और सुकून भर देते हैं
जो कि इस समय की
सबसे बड़ी ज़रूरत है
फिर निकलते आगे को
नए सफर पर
कुछ नया देखने
कुछ नया सीखने
धरती को मापने निकले
घुमक्कड़
अपने छोटे छोटे पैरों से
दिल में लिए हुए
बुलंद हौंसले
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चलता
©रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां
जिला होशियारपुर , पंजाब
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