जिंदा को जो मार डाले ये दुनिया वो है
हम जिंदा हैं तो जीने का हुनर रखते हैं
#कवि_नामालूम
आज साइकिल के लिए निकला । मौसम में हल्की सी ठंडक आ गई है, अक्तूबर जो आ गया है । स्टेडियम के आगे जाकर एक चक्कर लगाया । वापस आ रहा था तो शिवशांत मिल गया। मैंने देखा दो लड़के भी व्हील चेयर पर स्पोर्ट टीशर्ट पहने हमारे चाय वाले अड्डे की तरफ ही जा रहे थे । मैनें रुक कर उनसे बातचीत करनी शुरू की। एक का नाम मनोज है, वो हरिद्वार से और दूसरे का नाम धनवीर वो ऋषिकेश से थे । यहां वो क्रिकेट का ट्रायल देने आए थे। धनवीर का एक्सीडेंट हो गया तो 8 साल तक अपने घर से नहीं निकला , क्योंकि वह मुझे दूसरे लोगों को दोनों टांगों पर चलते हुए देखता था और अंदर से हीन भावना से भर जाता था।
एक्सीडेंट से पहले उसने एथलैटिक्स में गोल्ड मेडल जीता था। उसने दोबारा हिम्मत की और फिर से दोबारा खेलना शुरू किया। उसको फिर अवार्ड मिला और अखबार में तस्वीर आई। फिर उसका मनोबल बढ़ा, वो ओर जोश से खेलने लगा।
एक बार वो पिंगलवाड़ा, अमृतसर गया। उसने पूछा यह क्या है? तो किसी ने बताया कि आप 3 दिन रहोगे तो आपको खुद ही पता चल जाएगा। वो वँहा पहुंचा तो उसको रात हो चुकी थी । वो कमरे में लेट गया। उसको भूख लगी थी पर वह थक गया और सो गया। उसे सुबह फिर भूख लगी और फिर जब वो उठा उसने देखा यँहा बहुत ज्यादा शोर था। उसने सोचा शायद ये हॉस्पिटल है। एक जगह खाना खिलाया जा रहा था , वो लंगर था। वह फटाफट उनके साथ बैठ गया और खाना खाने लग गया। जैसे उसने एक दो रोटी खाई और उसका पेट भरा तो उसने एक नजर देखा तो वँहा अजीब किस्म के लोग थे। उनमें से कुछ पागल , कुछ लंगड़े लूले थे । उसने वहां पर से खाना खाया और भागकर अपने कमरे में आ गया। उने एक घंटा अपनी छाती पर हाथ रखा और परमात्मा का शुक्रिया के वह उसे बहुत बेहतर स्थिति में है।
यहां पर यह बताना जरूरी है कि पिंगलवाड़ा भगत पूरन सिंह ने लूले- लंगड़े ,पागल लोगों के लिए बनाया था जो आज भी चल रहा है। वहां पर 1000 के लगभग मरीज़ हैं । वहां लगभग लाख रुपया रोजाना खर्चा है ।भगत पूरण सिंह ने पर्यावरण के ऊपर भी बहुत कुछ काम किया और बहुत कुछ लिखा है। वहां दीवारों पर फूल, पेड़ बने हुए हैं और कुदरती नजारे हैं। भगत पुराण सिंह के जीवन पर एक फिल्म भी बनी है, " एह जन्म तुम्हारे लेखे।"
हम बातें कर रहे थे और आज हमारा चाय वाला भी नहीं आया था तो हम दूसरे चाय के अड्डे पर गए। चाय पीते- पीते हमने ओर बातें करनी शुरू की। मैंने दूसरे लड़के से भी बात की। उसको वसीम बरेलवी जी का शेर सुनाया
उसूलों पर आंच आए तो टकराना ज़रूरी है
जिंदा हो तो , जिंदा नज़र आना ज़रूरी है
मैंने कहा यह आपको देखकर महसूस होता है कि आप इस दौर से गुज़र रहे हो और फिर भी आप इतने प्रसन्न हो। ये शेर उन दोनों के जज्बे पर था।वह लड़का रात को हरिद्वार से ट्रेन में आया उसको शेव कर रखी हुई।वो बड़ा स्मारट लग रहा था। उसने वसीम जी का शेर अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर तुरंत अपडेट किया ।
फिर धमवीर से बातचीत शुरू हुई। तो मैंने पूछा कि जब तुम सफर करते हो तो व्हील चेयर को कैसे ट्रेन पर चढ़ाते हो? तो उसने बहुत ही खूबसूरत जवाब दिया,हमें अच्छे इंसान हर जगह मिल जाते हैं क्योंकि ये दुनिया अच्छे इँसानों से भरी हुई है। मैनें कहा जिन लोगों के हाथ पैर सलामत हैं, जो लोग चल फिर रहे हैं , पर वो फिर भी बहुत दुखी है। वो किसी ना किसी को कोसते रहते हैं , कि सिस्टम खराब है , यहां पर दुनिया खराब और पर वो खुद कुछ नहीं करते।
धमवीर ने बताया कि उसने बहुत सारे डिप्रेशन वाले लोगों से बातचीत करके उनको निराशा से बाहर निकाला है। उसने एक निष्कर्ष निकाला है कि जो लोग खुश रहते हैं तो उनको ये दुनिया खुश नज़र आती है और जो लोग डिप्रेशन में है उनको लगता है कि यह दुनिया बहुत बुरी है।
मैंने धमवीर से बात की, कि एक किताब है रांडा बर्न की "द सीक्रेट"। मैं जब भी कभी निराशा से घिरा तो उस किताब ने मेरा बहुत साथ दिया है, तो वो मुस्कुरा दिया, उसने बताया मैनें भी यही किताब पढी है।
हमने उनको दोनों को अपने मोबाइल नंबर का आदान प्रदान किया फेसबुक पर फ्रेंड लिस्ट में ऐड किया और उनसे विदा ली।
फिर मिलेंगे इक नए किस्से के साथ।
धन्यवाद
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
13.10.2018
Surjit Singh Grover, Priye Shiv Shant, Pankaj Sharma, Rajesh Mandhan
No comments:
Post a Comment