Sunday, September 13, 2020

Sunday Diaries 13.09.2020

रविवार है तो साइकिलिंग, दोस्त, किस्से कहानियाँ। सुबह उठा, सेब खाया और निकल लिया साईकलिंग पर। चाय की अड्डे के आगे से निकला था तो वँहा खूब रौनक थी। स्टेडियम के आगे से होता हुआ एक बड़ा गोल चक्कर घूम कर साइकिल चलाते हुए पार किया। वहां पर लड़के लड़कियां एक्सरसाईज़ कर रहे थे और  सेल्फी खींच रहे थे, छोटे बच्चे साइकिल चला रहे थे। मैनें फोटोग्राफी की और वापस चाय के अड्डे पर आ गया। 


वहां पर डॉ प्रदीप जायसवाल मिले अपने एक ओर डाक्टर के साथ। हम बातें करने लगे।  एक लड़का ओर आ गया वह एक आर्ट टीचर है।  महात्मा बुद्ध के बारे में बातें हुई तो प्रदीप जी ने बताया कि यहां पर महात्मा बुद्ध ने आखिरी सांस ली थी कुशीनगर में  वो उनके घर के पास है।

 मैं सुना रहा था कि महात्मा बुद्ध को किसी गरीब आदमी ने अपने घर पर खाने के लिए बुलाया। कुछ और ना मिला तो वो जंगल से  कुकरमुत्ता (मशरूम) तोड़ कर लाया और खाना बुद्ध को परोसा। जैसे ही बुद्ध ने भोजन चखा उनको पता चला है यह ज़हरीला है। पर वह आदमी इतनी प्यार और श्रद्धा से खाना खिला रहा था कि बुद्ध में वह खाना खा लिया। उनके शरीर में जहर फैलने लगा। वो अपने आश्रम में आए और उन्होंने कहा कि आज से 3 दिन बाद मैं  ये शरीर त्याग दूंगा।  मेरे लिए वह दोनों लोग पूजनीय है जिसने मुझे पहला खाना खिलाया और इसमें मुझे अंतिम। क्योंकि वह जानते थे कि जब उनके भिक्षुओं को पता चलेगा इस आदमी ने ज़हरीला  कुकरमुत्ता खिलाया है तो  भिक्षु उसको पीट-पीटकर मार देंगे । इसलिए बुद्ध ने कहा कि जिसने मुझे अंतिम खाना खिलाया है वह भी मेरे लिए पूजनीय है।

 इसके बाद जैसवाल जी ने बताया उनकी सारी परवरिश बेंगलुरु में ही हुई है। एलकेजी से लेकर डेंटिस्ट बनने तक का सफर उन्होनें  वहीं पर किया । फिर उनके भाई की नौकरी रुद्रपुर लग गई ।  वह लोग  2007 में यहां आ गए । यहां आने के बाद उन्होंने देखा कि यँहा हल्द्वानी से पहाड़ शुरू हो जाते हैं और उत्तराखंड बहुत खूबसूरत और हरा भरा है। उनको लगा कि यँही रह जाऊं तब से यहीं रुक गए। जब कभी कुछ कमी महसूस होती है तो वो हल्द्वानी के पास हेड़ा खान चले जाते हैं। मैं कभी गया तो नहीं पर उसकी जगह के बारे में बहुत सुना है। नदी के किनारे लोग पत्थर से चुल्हा बनाकर  चावल बना लेते हैं , कुछ लोग चिकन लेकर जाते हैं कुछ लोग ड्रिंक लेकर जाते हैं और वहां पर पिकनिक मनाने मनाते हैं ।
वो बता रहे थे जब वहां गए तो बहुत सारे ड्रिंक पीने को मिले जैसे जिंजर ड्रिंक, लेमन ड्रिंक वो भी  कुनकुना पानी में।
  मैंने उनको भी दिखाया जिसकी तस्वीर में शेयर भी कर रहा हूं मैंने कहा एक पत्ता ऐसा है जैसे कि कुदरत है नाक्काशी की है,  एक पत्ता सूख गया है वह बूढ़ा हो गया है और वह दोनों मिट्टी पर बैठे हैं। मतलब की मिट्टी से पैदा हुए हैं और से और फिर मिट्टी में ही मिल जाएंगे । ऐसा ही आदमी का एक सफर है वो 5 तत्व से बनता है, बच्चा बनकर पैदा होता है,जवान होता है, जीवन के सुख दुख की धूप छाया  भोगता है, बुढ्ढा होता है, फिर 5 तत्व  में लीन हो जाता है। सारी चीजें वर्तुल में घूमती हैं।

 हम वहां बैठे थे तो हम में से एक का मोबाइल नीचे गिर गया था , वहीं पर दर्द का तेल बेचने वाले ने बता दिया।
वँहा पर  एक पागल आदमी भी घूम रहा था।  चाय वाले उसको चाय पीने को दी। यह दोनों बातें  इंसानियत है। मैं ये सोच रहा था कि दुनिया में पागल है, भुखमरी है तो कहीं ना कहीं हम सब भी इसके जिम्मेवार हैं। भारत का जब 1947 में बटवारा हुआ था तो लगभग 50 करोड़ की आबादी थी जो कि 70 साल में 130 करोड़ हो चुकी है। इतनी आबादी है जिसके कारण देश में में देश में भुखमरी, बेरोजगारी इत्यादी बढ़ रहे हैं।

 हम जब कुछ सोचते हैं तो वो  हमारे शरीर से वाइब्रेशन बनकर निकलती हैं जब वो वाइब्रेशन के दूसरे वाले में से मिलती है तो वोआपकी तरफ खिंचा चला आता है। जैसे आप बस में बैठे हैं , कँही सफर कर रहे हैं तो आपके शौक वाला आदमी अचानक आपके पास आ जाता है और सफर सुखद हो जाता है।
 और बहुत सारी बातें हुई  जैसे कि रविंद्र नाथ टैगोर और आइंस्टाइन का  पत्र व्यवहार चलता था। वह आपस में मिलते भी थे। इसमें क्या है कि जब साइंस और कला जब  मिलती है तो ही समाज का उत्थान होता है। अगर अकेली साइंस तरक्की करती रहेगी तो वो बम बना कर दुनिया को तबाह कर देगी। पर  अगर वहीं  कला के साथ मिल जाती है तू कोमल हो जाती है।
 यह यँही हो रहा था अभी डेंटिस्ट मेरे जैसा ही कवि,पंकज जैसा इंजीनियर और वो आर्ट टीचर।
हम सबका मिलना  सुखद हो, यही दुआ है।

 आइए छोटे बच्चों को परवरिश  बात करते हैं। हमारे बच्चे जब साथ में आठवीं कक्षा में हो जाते हैं तो उनके अंदर एक ऊर्जा का विस्फोट होता है। उस ऊर्जा को अगर सही दिशा में लगा दिया जाए कमाल हो सकता है। जैसे कि बच्चे टीनेजर उसमें कक्षा तक पहुंचे तो उन्हें चाय बनाना, चावल बनाना, सब्जी काटना आना चाहिए, घर में झाड़ू पोछा करना भी।  इससे क्या रहेगा, जब भी वह कहीं आगे कॉलेज में हॉस्टल में जिंदगी जीने के लिए जाएंगे  तो परेशान नहीं होंगे।अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो क्या हो गया हो सकता है  उसका भी पता कर लेते हैं। जब भी कभी मां बीमार होगी तो बच्चे भूखे रहेंगे या होटल से खाना मंगवा लेंगे।

 आखिर में जेन कहानी स्टोरी । एक बार  दो फकीर पहाड़ी के रास्ते चले जा रहे थे। बहुत ज्यादा बारिश थी। एक लड़की ने कहा वो कीचड़ वाला रास्ता  पार नहीं कर सकती। तो एक भिक्षु ने उसे बाहों में उठा लिया और वह जगह पार करा दिया। कीचड़ पार करवाने के बाद भिक्षु ने उसे वहां पर उतार दिया और वो दोनों भिक्षु अपनी राह पर चल दिए। आगे चलकर दूसरे ने पहले भिक्षु कहा,  तुम्हें पता है कि लड़की को हम भिक्षु छू नहीं सकते तुमने लड़की गोदी में क्यों उठाया? पहले भिक्षु ने जवाब दिया मैंने तो उसको कीचड़ पार करके वंही उतार दिया था पर तुम  मानसिक तौर पर उसको अभी भी ढो रहे हो।

जिंदगी में जो पीछे बीत चुका है उसका रोना रोने से अच्छा है जो अभी हो रहा है उसको जिए।

आज के लिए इतना ही। फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर। 
आपका अपना 
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड 
निवासी पुरहीरां
 होशियारपुर
 पंजाब
13.09.2020
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