Monday, September 14, 2020

#journey_to_chail_himachal_pardesh

#journey_to_chail_himachal_pardesh

रविवार है तो साईकलिंग, दोस्त, किस्से, कहानियाँ। आज साईकलिंग पर नहीं गया पर आपको एक यात्रा पर लेकर चलता हूँ, यात्रा है कुफरी और चायल जो शिमला के पास हिमाचल प्रदेश मे है। 

रुद्रपुर से रामपुर पहुँचा। रामपुर से ट्रेन पकड़ी। ट्रेन में साइड वाला अप्पर बर्थ मिला। 

एक आदमी अपनी सीट ढूँढ रहा था, वो अपनी टिकट की फोटो खींचकर लाया था, जिस पर नंबर साफ नहीं दिखाई दे रहा था।मेरे सामने वाली सीट पर एक आदमी था उसका मोबाईल लेकर उसकी मदद कर रहा था।
  किसी कारण वो डिब्बा नहीं था जो उस तस्वीर में दिखाई दे रहा था। उसकी जगह उसकी सीट दूसरे डिब्बे में शिफ्ट हो गयी थी। मुशकिल से उसे सीट मिली। वो उस आदमी का शुक्रिया अदा करके चला गया।
मैं ये सब देख रहा था तो मैंने उस मदद करने वाले से  बात की। उसका नाम शेरखान था और उसका कलकत्ता में ट्रांसपोर्ट का काम था।
 फिर मैं सो गया।  फिर अंबाला आ गया। अंबाला से मैंने दो नंबर प्लेटफार्म से पुराने वाली दुकान से ब्रेड पकौडा खाया। फिर अपने ससुराल डेराबस्सी सुबह 4 बजे पहुँचा। वँहा जाकर आराम किया  नहाया धोया और निकल लिया चंडीगढ़ की तरफ। मेरा एक दोस्त बाहर से आया हुआ था हम हर साल Get Together करते हैं। जिसमें दो रात  होटल में रहते हैं, पुरानी कालेज की बातें करते है, खूब हँसते हैं, मस्ती करते हैं।
हम सभी 1993 - 96 में सरकारी पालीटैक्निक कालेज बठिंडा में इक्ट्ठे पढे हैं।
उनहोने  मुझे 10:30 बजे गोपाल स्वीटस पर मिलने को कहा।  तब तक मैं भी पंजाब युनीवर्सिटी चंडीगढ़ चला गया क्योंकि मेरी पहली पंजाबी कहानियों की किताब " अन्जान टापू" रिलीज होनी थी। उस किताब के इस समारोह में में  मुझे देरी हो गई, उधर से विवेक पाठक के फोन पर फोन आ रहे थे। ये किताब पंजाबी के जाने माने लेखक जंग बहादुर गोयल जी के हाथों हुआ।
मैनें अपने बाहर से आए दोस्त के लिए एक किताब खरीदी और अपने लिए कुछ किताबें भी।
 दोस्तों के बाद फोन आए, मैं गोयल जी के साथ ही वँहा से निकला। मैं जैसे ही वापस आया  मेरा दोस्त जो बाहरले मुल्क से आया हुआ था उसे ज़रूरी काम आ गया के वहीं से लौट गया। हमारा दिल उदास हो गया। अब हम कुछ दोस्त विवेक पाठक, जगमीत, जगविंदर, प्रशांत शर्मा  निकल लिए शिमला की तरफ। रास्ते में  थोड़ी भूख लग गई। तो प्रशांत शर्मा  अपने घर से मक्की की रोटी, सरसों का साग और आम का अचार लाया हुआ था। हमने वही सड़क पर एक तरफ गाड़ियां लगाई और वहां खाना शुरु कर दिया। फिर वहां से पिंजोर पहुंचे। पिंजोर से एक तरफ को बाईपास निकलता है क्योंकि कालका जी ने सड़क बहुत टाइट होने के कारण जाम लग जा रहा था तभी  सरकार ने  बाईपास बना दिया था। वहां से शिमला की तरफ रूख कर लिया। रास्ते में खाते पीते गए । कभी छोले भटूरे, कभी संतरे। हमने एक दुकान में चाय पी, वो दो सिख भाईयों की थी। उन्होनें बहुत बडा कुत्ता पाला हुआ था।

 रास्ते में सोलन आया वहां पर" सोलन नंबर वन" के मशहूर स्काच व्हिस्की बनाई जाती है। इसे अंग्रेजी राज में 1842 मे एडवर्ड अब्राहम डायर ने बनाया था। वो जलियांवाला बाग में 1913 के गोली चलाने वाले जनरल अडवायर के पिता थे। ये ब्रांड बहुत मशहूर है। अब ये फैक्ट्री मोहन मेकन के नाम से चल रही है।

हम पहाड़ियों का नजारा लेते हुए चैल की तरफ बढ़ रहे थे। धीरे धीरे सूरज महाराज नीचे आने लगे और अंधेरा बढ़ने लगा। हम रास्ते में एक खाई में गाडियां लेकर उतरे,  वहां पर पानी बह रहा था। पानी में लकड़ी की कुर्सियाँ टेबल  लगे हुए थे।  सामने लकडी और स्लेट की हट बनी हुई थी। हमने वहां पर पकौडे बनवाकर खाए। और आगे बढ़  दिये। अंधेरा बहुत हो चुका था । हमने होटल वालों को फोन कर दिया। हमारा बाहर वाला दोस्त नहीं आया था तो प्रोग्राम में कुछ चेंज हो गया था । 

 चायल के बारे में एक और दिलचस्प जानकारी है कि वहां पर दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान है, ये महाराजा पटियाला ने बनाया था। यहां पर उनका एक महल भी है जिसको अजायबघर में तब्दील कर दिया गया है इसको लोग टिकट खरीद कर देखने जाते हैं।

जैसे ही हम वँहा चायल होटल पहुँचे हमारा स्वागत किया गया। पहाड़ी टोपी डाली, गले में हार डाले गये। वँहा पर ढोल वाला आया हुआ था,उसने ढोल बजाया और हमने डाँस किया। 
 हमने अपने एक दोस्त को कह दिया कि तुम कहना मैं बाहरले देश से  आया हुआ हूँ,बस फिर क्या जो वहां पहुंचे जैसे ही कोई वेटर आया करे वह 100 और 500 का नोट निकाल कर उसको टिप दे देता।

फिर हमने होटल में चैक इन किया। हमने बाहर ही उसको बोन फायर और संगीत लाने को कहा। बाहर तापमान 2 डिग्री था । सामने पहाड़ियों पर घर जुगनू की तरह चमक रहे थे। फरवरी में वैसे भी उत्तर भारत में बहुत ठंड होती है। खुले आकाश का अलग ही नजारा था। हमने वहां पर खाना खाया फिर हम सो गए। फिर हम सुबह उठे और सुबह का नाश्ता खाया और गाड़ियों से निकल गए हम कुफरी की तरफ। रास्ते में पहाड़ियों पर बर्फ गिरी हुई थी, हम उसका आनंद लेते हुए जा रहे थे।
 मुझे रोजा फिल्म का गाना याद आ गया

 ये हसीं वादियां
 ये खुला आसमा
 आ गए हम कहां

हम कुफरी पहुँच गये। वँहा कपडा  मार्केट में रूके। वँहा पर बर्फ ही बर्फ जमी हुई थी। चलने पर फिसल रहे थे। हमने वँहा चाय पी। कुछ दोस्तों ने एक दूसरे पर बर्फ डालकर शरारतें कीं। साथ में चिड़ियाघर था। हमने टिकटें खरीदी और अंदर चले गए । वँहा पेडों पर बर्फ ही बर्फ थी और नीचे भी। चलते हुए कई बार हमारे पैर बर्फ में घुस गए। अंदर बहुत सारे जानवर थे  जैसे हिरण, बारहसिंघा और चीता। रास्ते में बर्फ हटाकर रास्ता साफ करते हुए हमें मज़दूर भाई बहन मिलें। मैंने उनसे बातें की और उनकी फोटोग्राफ खींची। मैंने उनका शुक्रिया अदा भी किया क्योंकि वह बर्फ को बेलचे से एक तरफ हटाकर हमें फिसलने से बचाने का काम कर रहे थे।  हम आगे गए तो एक पिंजरे में एक चीता दिखाई दिया। पता चला कि वह काफी साल पहले यँहा लाया गया था जब वो छोटा सा बच्चा था। जानवरों को पिंजरे में देखकर मुझे ये महसूस हो रहा था कि हम अपनी मनोरंजन  की खातिर कितने सारे जानवरों को पकड़कर उनकी आजादी खत्म कर दे रहे हैं। अगर इससे उल्ट हो, कि अगर हम पिंजरे में हों और वो जानवर बाहर हो तो जैसे कि कोरोना काल में हमने देखा ही है।
वँहा से वापिस निकले हम चायल के लिए। 

चायल का भी अपना एक इतिहास है। महाराजा पटियाला ने बनवाया हुआ ये कस्बा है क्योंकि शिमला के माल रोड पर अंग्रेजों ने  लिखकर लगा रखा था, भारतीय लोग इस पर नहीं आ सकते। ये बात उन्हें खल गयी और इस जगह को बसाया गया।

 कुफरी से आते हुए हम होटल नहीं बल्कि पहाड़ की चोटी पर बना काली माता का मंदिर माथा टेकने गये। यह मंदिर सफेद  संगमरमर  से बना हुआ है। वह फर्श इतना ठंडा था कि नंगे पैर ठंड से जमने को हो रहे थे। हमने वहां पर माथा टेका वापिस होटल आ गये।

 हमारा होटल पहाड़ी के ढलान पर था। उसमें खिड़की की जगह पूरा शीशा लगा हुआ था, सामने बहुत खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा था।
हमने सुबह का उगता सूरज देखा, रात को पहाड़ पर लाईटें। हमारे देश में बहुत सारी जगह अच्छी जगह है वँहा घूमने के बजाए हम  बाहर के देशों को भागते हैं।

 हमने फिर रात को खाना खाया और देर रात तक खूब गप्पे मारी। होस्टल के दिनों के पुराने नाम लेकर खूब को याद किया।
 सुबह 4 बजे हम निकलें।
गूगल मैप से रास्ता देखने लगे, पर हम गल्त रास्ते पर आ गये। वँहा बिल्कुल अंधेरा था। फिर एक जगह बस वाले से रास्ता पूछा। जब हम राह पर आ रहे थे तो रास्ते में तीतर और कई खूबसूरत पंछी दिखाई दिए। राह में एक पैदल मुसाफिर मिला। हमने उस से रास्ता पूछा और उसे कार में लिफ्ट लेने को कहा पर उसने मना कर दिया। वो अपनी मस्ती में चल रहा था।
रास्ते में सूखे पेड़ दिखाई दे रहे थे। ये सेब के पेड़ थे, ये मुझे रामगढ़, उत्तराखंड जाते हुए बातूनी ड्राईवर ने बताया था।

सेब के बारे में दिलचस्प जानकारी

करीब 111 साल पहले 1905 में अमेरिका से एक युवक हिमाचल आया। सैम्युल इवांस स्टोक्स ने शिमला के लोगों को बीमारी और रोजी-रोटी से जूझते देखा तो यहीं बसकर उनकी सेवा करने का निर्णय लिया। वे स्थानीय युवती से शादी कर आर्य समाजी बन गए।

अपना नाम सत्यानंद स्टोक्स रख लिया। इस क्षेत्र में नकदी फसलें नहीं होने से लोग काफी गरीब थे। इसी बीच, इस युवक ने साल 1916 में अमेरिका से पौध लाकर कोटगढ़ की थानाधार पंचायत के बारूबाग में सेब का पहला बगीचा तैयार किया।
लोगों को सेब उगाकर दिखाया और उन्हें भी प्रेरित किया। सौ साल बाद आज हिमाचल एप्पल स्टेट बन चुका है। यहां के बागवान करोड़पति बन चुके हैं। प्रदेश के लाखों परिवार दूसरा काम धंधा छोड़कर सेब बागवानी से मोटी कमाई कर रहे हैं।

शिमला, कुल्लू, किन्नौर, मंडी समेत 12 में से 8-9 जिलों में सेब उत्पादन हो रहा है। आज उनकी लगाई रॉयल वैरायटी का सेब विदेशी किस्मों को भी मात दे रहा है। मौजूदा समय में हिमाचल में सेब का सालाना 3 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है।

गौरतलब है कि सत्यानंद स्टोक्स ने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ भी रहे। वे खादी पहनते थे। उनकी बहू विद्या स्टोक्स मौजूदा समय में हिमाचल सरकार में बागवानी मंत्री हैं। 

कुल बागवानी क्षेत्र : 2,28,000 हेक्टेयर
सेब के तहत क्षेत्र : 1,09,553 हेक्टेयर
सालाना पैदावार : पांच से आठ लाख मीट्रिक टन
बागवानों की संख्या : करीब 9 लाख।
फलों से प्रति व्यक्ति आय (2014-2015) : 5525 रुपये

प्रदेश में प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्र
शिमला जिले के कोटगढ़, कोटखाई, रोहडू़, चौपाल, कुल्लू जिला, किन्नौर जिला, लाहौल स्पीति, चंबा, मंडी जिले के कुछ इलाके, सिरमौर जिले के नौहराधार, हरिपुरधार क्षेत्र, कांगड़ा के बड़ा भंगाल, छोटा भंगाल क्षेत्र। 40 डिग्री तापमान में उगने वाला सेब बिलासपुर जैसे कुछ अन्य जिलों में उगाया जा रहा है।

 यहां पहली बार सेब पौधे लाए थे। आज अगर हिमाचल सेब राज्य है तो पहला पौधा उनका ही लगाया हुआ है। 
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 रास्ते में हमने एक जगह कभी मैगी खाई। पहाड़ी रास्तों से मैगी खाने का लगी मजा ही कुछ और होता है। उसके बाद एक दुकान पर रुक कर बाँस का आचार खरीदा  और फिर हम चंडीगढ़ आ गए।
आज के लिए इतना ही। फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां 
होशियारपुर
पंजाब
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#kufri
Feb.2020

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