रविवार है तो साइकिलिंग, दोस्त, किस्से कहानियां। सुबह उठा, निकल लिया साइकिलिंग को। मोड़ पर जाकर याद आया मास्क तो लगाया नहीं। फिर वापस लौटा मास्क लगाया,और चल दिया। रास्ते में एक लड़का मिला। वो मास्क लगाकर साईकलिंग कर रहा था। मैंने कहा अगर अकेले हो तो मास्क भी नीचे कर सकते हो। वो बोला, उसे मिट्टी से अलर्जी है। मैंने उसको कहा कि वह रूद्रपुर में बिसाखा सिंह चेरीटेबल हॉस्पिटल में चला जाए वँहा पर डा जिबनेश दास हैं, उनसे कह देना रजनीश ने भेजा है। फिर मैंने उससे पूछा, कि वो तुलसी खाता है? उसने कहा हाँ। वह लड़का 17 साल का था और पंतनगर यूनिवर्सिटी से से ट्यूशन पढ़ने आता है। जो कि रूद्रपुर से 14 किलोमीटर है।
चाय के अड्डे पर पहुँचा तो शिवशांत के साथ वँहा और मित्र भी मौजूद थे। वहां पर बैठे हो बातें होने लगी अभी देशभर में किसान विरोध कर रहे हैं। बातें हो रही थी पूंजीवाद जब चरम सीमा पर पहुंचता है और मजदूरों का बहुत शोषण होता है। फिर वो मज़दूर जब उसका विरोध करते हैं, फिर तख्त पलटी होता है और समाजवाद का उदय होता है। पर फिर जो लोग सत्ता में आते हैं फिर भी उन लोगों का शोषण करते हैं क्योंकि वह भी पूंजीवाद शिकार हो जाते हैं।
तब तक संजीव,पंकज और राजेश सर भी आ गये।हम निकल लिए सैर करने। रास्ते में जब हम जा रहे थे तो तितलियाँ उड़ रही थीं, पेड़ से पत्ते गिर रहे थे, पंछियों की चहचहाट हो रही थी। कोरोना काल ने हमारे जीवन पर क्या क्या असर किया है उसका क्या फर्क पडा है,उस विषय पर लंबी बातचीत हुई।
हमारा जीवन ऐसा हो गया है कि हम लोन लेकर जीवन गुज़ार रहे हैं। राजेश सर ने अच्छी बात सुनाई कि लोन मतलब "लो ना"। लोन नहीं लेना चाहिए।
संजीव जी ने चींटी के बारे में दिलचस्प बातें बताईं। वो आई आईटी रूड़की से पासड आऊट हैं और उन्होनें इस पर अपने थीसस में लिखा भी है।
उन्होंने कहा कि यदि सबसे समझदार जानवर देखा जाए तो वो चींटी को माना गया है, और दिलचस्प बात ये उसे दिखाई नहीं देता। इन पर रिसर्च की गई जिसको Swarm Intelligence स्वार्म इंटेलिजेंस कहा जाता है।इसका मतलब है वो सारी चींटियाँ अपना अपना काम पूरी इमानदारी और पारदर्शिता से करती हैं,उन्हें किसी हांकने या कमांड देने वाले की ज़रूरत नहीं होती। उन्हें खाना लेकर अपने घर तक लौटने में सबसे कम रास्ता तैय करना आता है।
उन पर एक विज्ञानी ने खोज की। उसने बाइनरी ब्रिज सिस्टम बनाया। मतलब दो पुल बनाए। बीच में खाई रखी और दूसरी तरफ उनका खाना।
उसमें एक पुल की दूरी ज्यादा थी और एक की कम।
चींटियों ने पुल पार किया। जब चींटीयां चलती हैं तो वो एक स्त्राव छोड़ती हैं, जिसको फेरोमोनज़ (Pheromones) छोड़ती हैं।
अब जब वो खाना की खुशबू से खाना ढूंढने निकली तो उन्होने दोनों पुल का उपयोग किया। जब वो खाना लेकर वापिस लौट रही थीं तो थोडी देर को उस जगह रूकी यँहा से रास्ते अलग अलग होते थे। उन्होनें अपने फैरोमोनज़ को सूंघा।
अब छोटे रास्ते से ज्यादा फैरोमोनज़ थे। वो छोटे रास्ते से वापिस आ गईं। इसको आप्टीमाईजेशन कहा जाता है, जिसका उपयोग दुनिया भर की व्यवस्थायों में किया जा रहा है।
फिर उसके बाद में एक समस्या आई, जिसको टैक्नीकल भाषा में ट्रैवलिंग सेल्ज़मैन प्राबलम कहा गया। एक था सेल्ज़मैन और उसे 8 शहरों में जाना था जो सारे शहर एक दूसरे से जुड़े हुए थे । तो उस सेल्ज़मैन को सारे शहरों में जाना था पर उसकी समस्या यह थी कि वह चाहता था कि सारे शहरों में जाए और उसको कम से कम
समय लगे कि उसको यात्रा कम तय करनी पड़े।बहुत सारे विज्ञानी बैठे। उन्होने बहुत सिरखपाई की। फिर एक ने चींटियाँ इक्टठी की और उसी तरह का माडल बनाया 8 शहरों जैसा। उन 8 शहर के माडल में चींटियाँ खाना लेने गयी। ये प्रक्रिया 15 से 20 बार दोहराई गयी। इससे सबसे छोटा रास्ता मिला।
संजीव जी ने कहा कि जैसे हम 5 लोग जो अभी बैठे हैं, अगर हमें कोई खेत जोतना हो तो सभी को पूरी तन्मयता और पारदर्शिता रखनी होगी। पर हमारे ऊपर बॉस बिठा दिया जाएगा तो सब मिटटी जाएगा। जैसे कि हम देख रहे हैं नेताओं ने क्या कर रखा है? अगर सभी लोग अपनी ईमानदारी से काम करें नेताओं के पास कोई क्यों जाएगा? जो पैसा भारत में नेताओं की सुरक्षा के लिए लगाया जा रहा है अगर वही पैसा देश की शिक्षा, सेहत, सड़क, रोज़गार व्यवस्था और सुविधायों के ऊपर खर्चा जाए तो यह देश कितना आगे जा सकता है ?
इसके लिए हमें भी भारत स्वार्म इंटेलिजेंस पैदा होगी कि हम अपना कारण पूरी कार्यकुशलता से करें।
संजीव जी बता रहे थे कि पहले हमारे गाँव में लोग होते थे तो स्वार्म इंटेलिजेंस था। वो लोग बाहर किसी की मदद नहीं लेते थे। अगर कोई बारात आती तो पँचायत घर या लोगों के घर ठहराते। उनके लिए बिस्तर गाँव वाले दे देते। फिर धीरे धीरे शहर में जाकर शादी का चलन शुरू हुआ। लोगों ने मैरिज पैलेस बुक करने शुरू किए और बिस्तर किराए पर लेने।
भारत बाहर के देशों से धन लेता है वो अपनी शर्ते लागू करते हैं और आम आदमी पिसता है। एक बहुत बड़ा कॉर्पोरेट सिस्टम काम करता है बैठ कर डिसाइड करता है कि क्या होना चाहिए? कौन से देश से विश्व सुंदरी चुनी जाए जो उसके प्रोडक्ट की ऐड करेगी और उनका सामान बिकेगा।
पुराने समय में एक ही डाक्टर कुछ सरिंजों को उबालकर पूरे गांव का इलाज करता था। मल्टीनेशनल कंपनियों बिमारियां फैला कर डिस्पोजेबल का धंधा फैलाया ,उसके लिए पहले लोगों में डर पैदा किया गया।
लाकडाऊन में बहुत लोगों के कामकाज ठप्प हो गये है। हमारे से जुडे लोग जैसे घरों में सफाई करने वाली बाई या और लोग हैं उन्हें पूरा मेहनतनामा दे, उनका दुख सुख पूछे जो कि समाज में अच्छाई फैल सके। हम सारा संसार नहीं बदल सकते पर उन लोगों की मदद कर सकते हैं जो हमारे इर्द गिर्द हैं।
आज बड़े दिनों के बाद महफिल जुड़ी, अच्छा लगा।
आज के लिए इतना ही। फिर मिलेंगे एक नया किस्सा लेकर ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां
जिला होशियारपुर
पंजाब
20.09.2020
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