समाज में एक शब्द बहुत तेजी से फैल रहा है वह है स्टरेस। स्टरेस को निकालने के लिए आदमी शराब, सिगरेट पीता है, मंदिर जाता है, बच्चों और पत्नी को पीटता है।
अभी कॉल ट्रेंड चल गया है कि लोग मोटिवेशनल गुरु के पास जाते हैं या किसी बाबा के पास।मोटिवेशनल गुरु उसको कुछ टिप्स देता है, बाबा उनकी जेब काट लेता है। कई बाबा तो इतने अमीर हैं कि वो करोड़पति बन गये हैं, उनके पास उदयोगपति और नेता लाईन में लगकर स्ट्रेस निकालते हैं। एक और काम भी कर रहे हैं लोग, वो स्विटज़रलैंड जाते हैं, क्रूज़ में सफ़र करते हैं , लाखों की गाडियों में घूमते हैं। पर उनका दिल जानता है कि उनका स्ट्रेस कम नहीं हुआ, अंदर से वो दुखी ही रहते हैं।
पंजाबी में एक कहावत है,
वड्डियां सिरां दीआं वड्डीयां पीडां
मतलब जो जितना अमीर होगा, उसकी सिर खपाई भी उतनी ही होगी।
मोटिवेशनल गुरु पश्चिमी के लेखकों पढ़कर बातें करते हैं आजकल भारत में काफी लेखक पढ़े जा रहे हैं, जैसे रांडा बर्न, राबिन शर्मा, डॉक्टर जोसेफ़ मर्फी। उनकी सारी बातों की डोर भारत में महात्मा बुद्ध से जुडी है।
बुध कहते हैं जैसा आप सोचते हो वैसे आप बन जाते हैं, आपकी सोच आपकानिर्माण करती है।
वह बुद्ध की बातों को ही घुमा फिराकर लिखते हैं और हमें उसको पढ़ कर खुश होते हैं। हमें महात्मा बुद्ध को सीधा पढ़ना चाहिए।
मैं ये नहीं कह रहा कि इनको ना पढो, मैनें भी ये सारे पढे हैं।
बुद्ध की बातों को पचाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि वह हमें हमारे सामने ही नंगा कर देता है। वह परमात्मा की मौजूदगी को नकारता है। वह कहता है अप्प दीपो भव:, मतलब अपने दीपक स्वयं बनो । पर हम ठहरे गुलाम मानसिकता के लोग, हमें हर वक्त कोई ना कोई सहारा चाहिए ।जैसे ओशो कहते हैं कि जब भी आप अंधेरे में चल रहे हो तो आप कुछ गीत गुनगुनाने लगते हो क्यों? क्योंकि आपको अपनी ही आवाज सुनकर लगता है कि कोई ना कोई साथ है, मैं अकेला नहीं हूंँ।
बुद्ध ने यह कहा है कि जो
आदमी अकेला रह सकता है ,
सोच सकता है,
इंतजार कर सकता है,
वही आदमी सत्य के मार्ग पर चल सकता है।
बुद्ध ने तीन आर्य सत्य कहे
जीवन दुख है ,
दुख की कारण इच्छा है,
और इस कारणों से पार जाया जा सकता है।
पर आम इंसान पहले सत्य पर ही रुक जाता है कि जीवन दुख है। वह शराब पीता है, जुआ खेलता है और जीवन को नर्क कहकर इस संसार से विदा हो जाता है। उसकी खोज दूसरे और तीसरे सत्य पर जाती ही नहीं।
मैं अभी-अभी एक आदमी के पास रहता था उसकी तनख्वाह ₹90,000 के लगभग होगी।
पर उसका चेहरा ऐसा था जैसे उसको किसी ने मारा पीटा हो। वह कह रहा था कि इतनी स्ट्रेस है कि दिन भर काम, रात को भी काम के ही सपने आते हैं । तो मैंने पूछा क्या आप मन की शांति के लिए कोई किताब पढ़ते हो, कोई ध्यान करते हो, या कोई शौक है या कोई संगीत सुनते हो ?
उसने जवाब दिया, नहीं।
मैंने कहा जब तुम बिमारी की ही जिक्र करते रहोगे , उसके हल के बारे में नहीं सोच सकते तो इस निकलोगे कैसे इस जंजाल से?
महात्मा बुद्ध कहते हैं बार-बार बीमारी की बात करने की बजाय उसके इलाज ढूंढने की बात करो।संसार इसलिए दुख ज्यादा है कि सारे लोग कवि, लेखक सब यही कहते रहते हैं जीवन दुख है , जीवन दुख है।
पर इस दुख से पार कौन लेकर जाएगा, उसकी बात कोई करता ही नहीं। वैसे भी बुद्ध ने कहा है जो आप सोचते हो वैसे बन जाते हो। तो दुख की बात करने से वो ओर सघन होता जाता है।
इसके कुछ और कारण हैं
पहला कारण है कि हम अपने आप को पूरा स्वीकार ही नहीं करते ,जैसे हम हैं। फिर हम अपने आप को प्यार कैसे करेंगे और जब तक हम खुद को प्यार नहीं करते तो दूसरे को प्यार कैसे करेंगे?
तो जीवन की तकलीफ यही से शुरू हो जाती है। तो पहली बात यह है कि अपने आपको अपनी कमियों के साथ स्वीकार करो और प्यार करो। ओशो की एक मेडिटेशन है कि अपने आप को प्यार करना ।
एक बार मैं ये मेडिटेशन कर रहा था तो मेरी आंखें भर आईं। आप भी अपनी आंखें बंद करके अपने आप को देखें कि आपने अपने आप को कितनी बार प्यार किया है?
पर हम अपने आपको इतनी नफरत करते हैं कि हमारा बस चले तो हम अपने कितने टुकड़े ही कर लें।
पर हमको तो परमात्मा ने ही ऐसा बनाया है गुणों और अवगुणों के साथ। पर जब हम अपने आप को स्वीकार करने लग जाएंगे तभी अपने आप को प्यार करने लग जाएंगे।
तो ही हम दूसरे को प्यार करेंगे, तब ही दुनिया में प्यार फैलेगा।
मैंने एक जगह पढा था,
Love is not to find perfect, it is an art to see impetfect perfectly.
प्यार किसी संपूर्णता की तलाश नहीं, बस यह तो किसी की अपूर्णता को पूर्ण मानना ही प्यार
है ।
मैंने कई बार इस कविता का हाइकु कविता का जिक्र किया है (हाईकु कविता तीन लाइनों की होती है जो जापान में जाती है)
परमिंद्र सोढी जी की एक कविता है
आइए अपने ही होने का
जश्न मनाए
कितना खूबसूरत है हमारा होना
ओशो की सारी भर यही कहते रहे कि
उत्सव अमार जाति
आनंद अमार गोत्र
उत्सव मनाना ही हमारी जाति है और आनंद ही हमारा गोत्र है ।
एक और शे'र है कि
आओ सजा ले आज को
कल की ख़बर नहीं
कल की क्या कहें
यँहा पल की ख़बर नहीं
जो आदमी जीवन की क्षणभंगुरता को स्वीकार करता है वह कभी दुखी नहीं होता।
बुद्ध कहते हैं यँहा कुछ भी स्थिर नहीं है हर चीज़ गति में है।
जो हमें आज दुख है कल वो सुख में परिवर्तित हो जाएगा , तो फिर दुख काहे का?
एक वाक्या और याद आ रहा है , किसी ने पूछा
सहजता और तनाव में क्या फर्क है?
जवाब मिला, जो तुम हो उसे स्वीकार करना सहजता है, जो तुम होना चाहते हो वही तनाव है।
आज के लिए इतना ही।
फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां
होशियापुर , पंजाब
बहुत motivational.... जो अकेला रह सकता है जो इंतजार कर सकता है वो ही सत्य के मार्ग पर चल सकता है बुद्ध को सीधा पढ़ो
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्त, आपकी मोहब्बत का।
Delete