#People_have_No_hobbies
किसी कारण से हस्पताल में जाना हुआ। एक औरत अपने पति के बारे में बता रही उसके पति रिटायर हो गए है उन्हें कोई शौक नहीं है, बस सिगरेट पीने के इलावा। सारा दिन सिगरेट ही सिगरेट। सारे घर में धुँआ ही धुँआ। उस औरत को भी एलर्जी हो गई। पहले आठ साल सिगरेट छोड़ दी, पर अब वो दोबारा पीने लगे। कई दिन से शराब भी पी रहे थे। अब एक दिन लगभग एक घंटा लगातार खांसी हुई तो वो कहने लगा मुझे बचा लो। तो वो उसे हस्पताल ले आए। बच्चे कहने लगे, कुछ देर और रहने दो पिता जी को। वो औरत कहने लगी, समाज में रहना है और वह मेरे पति हैं।
जो लोग बिना किसी शौक के जिंदगी जीते हैं वो ऐसे ही करते हैं और जीवन खोे देते हैं।
मैं ऐसे कई लोगोँ को जानता हूँ जिन्हें ये नही जानते कि उन्हें क्या शौक है?
कुछ दिनों पहले छह बार एवरेस्ट विजेता #lovraj जी से हुई वो बता रहे थे कि एवरेस्ट चढ़ते हुए एक अंग्रेज को सिगरेट की तलब लगी कहने लगा कि नीचे वापिस जाकर सिगरेट ले आता हूँ। तब लवराज सिंह ने कहा यही परीक्षा है अब अगर रूके तो संकल्प बनेगा। वो पीछे नहीं मुड़ा। अगले साल उसने बताया वो सिगरेट छोड़ चुका है।
ओशो कहते हैं सिगरेट पीने पर जो उसके धुएँ से मुंह में जीभ के ऊपर तालुए में गर्मी मिलती है वो बिल्कुल वैसी ही है जैसे बचपन में मां के दूध से मिलती थी, वो सुख की अनुभूति आदमी ऐसे ढूंढने में जीवन खो देता है।
जो बच्चे अपनी माँ का दूध नहीं पीते वो सिगरेट बहुत पीते हैं। यही कारण है पश्चिम में सिगरेट का बहुत चलन है।
अब तो लड़कियों में भी सिगरेट का शौक पैदा हो गया है, क्योंकि वो भी आदमी की बराबरी की दौड़ में ये सब शुरू कर रही हैं। शहरों में अकेलापन मिटाने के लिए डिस्को में ये सब हो रहा है।
#Rajneesh Jass
Rudrapur
Uttrakhand
Saturday, December 7, 2019
#people_have_no_hobby
Tuesday, November 26, 2019
मौजूदा समाज में एल्डस हक्सले के नावल ब्रेव निऊ वल्ड की प्रसांगिकता
कुछ दिनों पहले गली में तौलिये में बेचने के लिए एक आदमी आया। वो तौलिए के 80 रुपये दाम बता यहा था और लोगों ने 50 तक खरीद लिए । अगर यही तौलिया शोरूम को बिके तो बहुत महंगा होगा। कई लोगों ने 40 में भी खरीदा। ये तौलिए गांव की महिलाएँ हाथ से बनाती हैं और कुछ लोग शहर में आते हैं और इसे बेचते हैं।
यह सब देखकर, मुझे फिल्म "मटरु की बिजली का मंडोला" का डायलॉग याद आ गया।
खाली ज़मीन को देखकर एक मंत्री किसी उद्योगव्यक्ति से बात करता है, वहाँ बहुत बड़े कारखाने लाए जा सकते हैं। उद्योगव्यक्ति बोला, तब तो लोग इसमें काम करके अमीर बन जाएँगे। तो मंत्री हंस कर कहता है, नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। हम पास में एक बिग बाजार बनाएंगे, शराब के ठेके , पिज्जा हट , डिस्को बार खोलेंगे। वो काम करने के बाद अपने मनोरंजन के लिए वहां पर जाएंगे और सारे पैसे वहीं पर खर्च देंगे।
जो कि काम करने वालों लगेगा वो कमा रहे हैं, पर वो पैसे को हमारी जेब में दोबारा लौट आएगा।
यही है, आजकल टैक्सी हम मोबाइल पर बुक करते हैं, अब हम ऑनलाइन बुक करते हैं और घर आर्डर करते हैं। सब कुछ बैठे बिठाए होने लगा है। पैसा आम आदमी के पास आने की बजाय पूंजीपतियों के हाथ में जा रहा है
धीरे-धीरे हम मशीन से इतने अधिक मोहग्रस्त हो गए हैं कि इसके बिना जीना बहुत मुश्किल हो गया है।
मुझे याद है कि मैंने ऐल्डस हक्सले के उपन्यास "द ब्रेव न्यू वर्ल्ड" टेंथ क्लास में पढ़ा था, मैं बहुत प्रभावित हुआ और कई दिनों तक मैं एक अजीब सोच में डूबा रहा।
यह उपन्यास आजकल सही साबित हो रहा है। इस उपन्यास में बच्चे, एक लेबारट्री की टेस्ट ट्यूब पर पैदा किए जा रहे थे। एक व्यक्ति यह सब देखता है। टेस्ट टिऊब में पैदा होने वाले लोग खुश रहने के लिए सोमा नाम की एक दवा खाते हैं। एक श्रमिक वर्ग है, एक प्रबंधक है। अगर प्रबंधक किसी कार्यकर्ता को थप्पड़ भी मारता तो वह विरोध नहीं करता।
वो विद्रोही व्यक्ति कहता है कि यह सही नहीं है डॉक्टर कहता है इससे शहर में शांति बनी रहेगी। वह सभी डॉक्टरों के साथ बहस करता है।
अंत में, विद्रोही आदमी की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है।
तब यह कहा जाता है कि अब एक नया संसार पैदा हो गया है जिसका नाम है ब्रेव न्यू वर्ल्ड ।क्योंकि लगभग सारे लोग मशीनों जैसे हो गए है जिनके दिल में कोई भावना ही नहीं है।
यह उपन्यास लगभग 1910 में लिखा गया था लेकिन यह आज भी प्रासंगिक है।
मेरा कहना है, हम मशीनों का उपयोग ज़रूर करें , पर मशीनों को अपना मालिक ना बनने दें। क्योंकि अगर मशीन हमारी मालिक बन गईं तो हम सारा जगत भावनाविहीन हो जाएगा।
यहां पर यह बताना जरूरी होगा कि एल्डस हक्सले ने सिनेमा के आने पर यह कहा था कि आदमी की सोच को खत्म करने वाला पहला यंत्र आ गया है। रेडियो की खोज और टीवी कोड पर भी उसने यही कहा था।
अगर देखा जाए मानव और मशीन में यही फर्क है तो मशीन कुछ महसूस नहीं करती, वह सिर्फ एक निर्देश का पालन करती है। ओशो कहते हैं आदमी में बहुत सारी संभावनाएं हैं। हर बच्चा एक बुद्ध बनने की संभावना लेकर पैदा होता है। उसको अगर सही राह मिले तो वह बुद्ध बन सकता है। पर मशीन में ऐसा कुछ भी नहीं है, वो मशीन है और मशीन ही रहेगी।
मैं निराश नहीं हूं मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि जब भी कोई रेहडी वाला या हस्तशिल्प अपना समान बेचे, तो हम उन्हें उचित मूल्य दें।
हम बिग बाजार में ब्रांडेड सामान खरीदने के लिए जाते हैं, वँहा एक भी रूपया कम नहीं होता,पर हम 5 या 10 रूपये के लिए रिक्शा वाले से बहस करने लग जाते हैं।
मैं अपने आस-पास के लोगों, पति-पत्नी दोनों को संघर्ष करते हुए देखता हूं। मकान की किश्तों और बच्चों की पढाई में एक मध्यम वर्गीय परिवार 20 साल तक कर्ज़ में डूब जाता है। उसे जीवन जानने का,इसकी खूबसूरती का, इसके सौंदर्य का पता ही नहीं चलता।
भारत जैसे देश में 99% ऊर्जा सिर्फ और सिर्फ जीवन की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में ही निकल जाती है।
मध्यवर्गी लोगों के हाथ पैसा आता तो है, लेकिन फिर घूम फिरकर पूंजीपति के हाथ में चला जाता है।
फिर भी, मैं बेहतर भविष्य की कामना करता हूं।
रवींद्रनाथ टैगोर कहते हैं,
"हर नवजात शिशु भगवान के आशावान होने का प्रतीक है।"
इसलिए हम एक अच्छे भविष्य की आशा करते हैं।
एक गीत की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं
इन काली सदियों के सर से
जब रात का आंचल ढलकेगा
जब अंबर झूम के नाचेगा
जब धरती नग्मे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
# रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड
#rajneesh_jass
27.11.2019

यह सब देखकर, मुझे फिल्म "मटरु की बिजली का मंडोला" का डायलॉग याद आ गया।
खाली ज़मीन को देखकर एक मंत्री किसी उद्योगव्यक्ति से बात करता है, वहाँ बहुत बड़े कारखाने लाए जा सकते हैं। उद्योगव्यक्ति बोला, तब तो लोग इसमें काम करके अमीर बन जाएँगे। तो मंत्री हंस कर कहता है, नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। हम पास में एक बिग बाजार बनाएंगे, शराब के ठेके , पिज्जा हट , डिस्को बार खोलेंगे। वो काम करने के बाद अपने मनोरंजन के लिए वहां पर जाएंगे और सारे पैसे वहीं पर खर्च देंगे।
जो कि काम करने वालों लगेगा वो कमा रहे हैं, पर वो पैसे को हमारी जेब में दोबारा लौट आएगा।
यही है, आजकल टैक्सी हम मोबाइल पर बुक करते हैं, अब हम ऑनलाइन बुक करते हैं और घर आर्डर करते हैं। सब कुछ बैठे बिठाए होने लगा है। पैसा आम आदमी के पास आने की बजाय पूंजीपतियों के हाथ में जा रहा है
धीरे-धीरे हम मशीन से इतने अधिक मोहग्रस्त हो गए हैं कि इसके बिना जीना बहुत मुश्किल हो गया है।
मुझे याद है कि मैंने ऐल्डस हक्सले के उपन्यास "द ब्रेव न्यू वर्ल्ड" टेंथ क्लास में पढ़ा था, मैं बहुत प्रभावित हुआ और कई दिनों तक मैं एक अजीब सोच में डूबा रहा।
यह उपन्यास आजकल सही साबित हो रहा है। इस उपन्यास में बच्चे, एक लेबारट्री की टेस्ट ट्यूब पर पैदा किए जा रहे थे। एक व्यक्ति यह सब देखता है। टेस्ट टिऊब में पैदा होने वाले लोग खुश रहने के लिए सोमा नाम की एक दवा खाते हैं। एक श्रमिक वर्ग है, एक प्रबंधक है। अगर प्रबंधक किसी कार्यकर्ता को थप्पड़ भी मारता तो वह विरोध नहीं करता।
वो विद्रोही व्यक्ति कहता है कि यह सही नहीं है डॉक्टर कहता है इससे शहर में शांति बनी रहेगी। वह सभी डॉक्टरों के साथ बहस करता है।
अंत में, विद्रोही आदमी की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है।
तब यह कहा जाता है कि अब एक नया संसार पैदा हो गया है जिसका नाम है ब्रेव न्यू वर्ल्ड ।क्योंकि लगभग सारे लोग मशीनों जैसे हो गए है जिनके दिल में कोई भावना ही नहीं है।
यह उपन्यास लगभग 1910 में लिखा गया था लेकिन यह आज भी प्रासंगिक है।
मेरा कहना है, हम मशीनों का उपयोग ज़रूर करें , पर मशीनों को अपना मालिक ना बनने दें। क्योंकि अगर मशीन हमारी मालिक बन गईं तो हम सारा जगत भावनाविहीन हो जाएगा।
यहां पर यह बताना जरूरी होगा कि एल्डस हक्सले ने सिनेमा के आने पर यह कहा था कि आदमी की सोच को खत्म करने वाला पहला यंत्र आ गया है। रेडियो की खोज और टीवी कोड पर भी उसने यही कहा था।
अगर देखा जाए मानव और मशीन में यही फर्क है तो मशीन कुछ महसूस नहीं करती, वह सिर्फ एक निर्देश का पालन करती है। ओशो कहते हैं आदमी में बहुत सारी संभावनाएं हैं। हर बच्चा एक बुद्ध बनने की संभावना लेकर पैदा होता है। उसको अगर सही राह मिले तो वह बुद्ध बन सकता है। पर मशीन में ऐसा कुछ भी नहीं है, वो मशीन है और मशीन ही रहेगी।
मैं निराश नहीं हूं मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि जब भी कोई रेहडी वाला या हस्तशिल्प अपना समान बेचे, तो हम उन्हें उचित मूल्य दें।
हम बिग बाजार में ब्रांडेड सामान खरीदने के लिए जाते हैं, वँहा एक भी रूपया कम नहीं होता,पर हम 5 या 10 रूपये के लिए रिक्शा वाले से बहस करने लग जाते हैं।
मैं अपने आस-पास के लोगों, पति-पत्नी दोनों को संघर्ष करते हुए देखता हूं। मकान की किश्तों और बच्चों की पढाई में एक मध्यम वर्गीय परिवार 20 साल तक कर्ज़ में डूब जाता है। उसे जीवन जानने का,इसकी खूबसूरती का, इसके सौंदर्य का पता ही नहीं चलता।
भारत जैसे देश में 99% ऊर्जा सिर्फ और सिर्फ जीवन की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में ही निकल जाती है।
मध्यवर्गी लोगों के हाथ पैसा आता तो है, लेकिन फिर घूम फिरकर पूंजीपति के हाथ में चला जाता है।
फिर भी, मैं बेहतर भविष्य की कामना करता हूं।
रवींद्रनाथ टैगोर कहते हैं,
"हर नवजात शिशु भगवान के आशावान होने का प्रतीक है।"
इसलिए हम एक अच्छे भविष्य की आशा करते हैं।
एक गीत की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं
इन काली सदियों के सर से
जब रात का आंचल ढलकेगा
जब अंबर झूम के नाचेगा
जब धरती नग्मे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
# रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड
#rajneesh_jass
27.11.2019

Saturday, October 26, 2019
पुस्तकें और बिग बाजार कल्चर
सृजनात्मक पुस्तकें समाज को एक दिशा देने का काम करती हैं। बिग बाजार सिर्फ और सिर्फ उपभोक्तावादी समाज को बढ़ावा दे रहा है। अगर हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां खुश और शांत चित्त रहें, तो हर बिग बाजार में कम से कम एक किताबों की एक दुकान जरूर होनी चाहिए अन्यथा समाज केवल मशीन रूपी इन्सानों से भर जाएगा।
मुझे अपने पिता के एक दोस्त, राजकुमार, जो ओशो के सन्यासी हो गए। उन्होंने घर छोड़ दिया और जबलपुर, ओशो में आश्रम में ओशो साहित्य बेचना शुरू कर दिया। जब वह अपने गाँव आए, तो उनके पिता ने मेरे पिता से कहा कि आप उन्हें समझाएं कि यह दुकान पर बैठे जो कि इसे जीवन के बारे में कुछ पता चले। तब राजकुमार ने कहा कि आप जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते, जो कि आप ओशो, चैखोव, टॉलस्टॉय के बारे में कुछ नहीं जानते हैं।
उनके पिता ने कहा, जस जी मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि ये किसी आदमी का नाम ले रहा है या किसी ओर का?
मेरे पास एक कुलीग राजु विश्वकर्मा है जो मैकेनिकल डिग्री करने के लिए बुंदेलखंड गया था। उनकी रुचि साहित्य में थी। उन्होंने पुस्तकालय से अमृता प्रीतम की आत्मकथा रसीदी टिकट लेकर पढा।लिया। किसी कारण से वह बठिंडा आ डिग्री कालेज आ गया। पर वहाँ के पुस्तकालय में साहित्य की एक भी पुस्तक नहीं मिली, हालाँकि, बठिंडा साहित्यिक रूप से बहुत धनी शहर है।
पाश ने एक बात कही है, उनकी कविता
"मैं विदा लेता हूंँ मेरी दोस्त" में ,
, "प्यार करने और जीना उन्हें कभी ना आएगा जिन्हें जिंदगी ने बनिया बना दिया ।"
इसका मतलब यह नहीं है कि पाश एक जाति के बारे में बात कर रहा है, वह बात कर रहा है कि सिर्फ पैसा बनाने से खुशी नहीं मिलती , प्यार और जीवन इससे बहुत आगे की बात है।
जंग बहादुर गोयल ने अपनी पुस्तक विश्व साहित्य के शाहकार नावल में लिखा है कि वे एक तकनीकी विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में गए और पाया कि वँहा लगभग 50,000 किताबें थीं। उन्होंने स्वाभाविक रूप से पूछा, यहां गोर्की, टॉल्स्टॉय या मुंशी प्रेमचंद की किताबें हैं?
फिर यह पता चला कि यँहा ऐसी कोई किताब नहीं थी। तो सवाल उठता है कि हम किस तरह के इंजीनियरों का पैदा कर रहे हैं?
कलकत्ता छह नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साथ दुनिया का सबसे बड़ा नोबेल पुरस्कार विजेता शहर बन गया है। बंगाल में एक खास बात है, चाहे वँहा इंजीनियर हो या डॉक्टर, एक विषय कला की आवश्यकता है। यही कारण है कि वे कला से प्यार करते हैं।वँहा चाय के खोखे में एक लेखक की तस्वीर ज़रूर होगी।
मैं यह नहीं कहता कि हम बिल्कुल कोरे हैं, लेकिन अगर हम अपनी जड़ों से जुडे रहना है तो किताबों से जुड़ना होगा।
इसलिए बच्चों के सामने बैठकर किताबें पढ़ें, ताकि वे भी सीख सकें। अगर हम चाहते हैं हमारे बच्चे पैसा बनाने की मशीन न बने, बल्कि इंसान बनें तो उन्हें ये सिखाना होगा, कि जीने के लिए पैसा कमाना है, ना कि पैसा कमाने के लिए जीना है। ये एक बहुत बडा बुनियादी भेद है।
मैं भी जब कभी मैं मोबाइल में खो जाता हूं, तो किताबों का जादू मुझे बाहर खींच लाता है।
आपका धन्यवाद
रजनीश जस
26.10.2019
मुझे अपने पिता के एक दोस्त, राजकुमार, जो ओशो के सन्यासी हो गए। उन्होंने घर छोड़ दिया और जबलपुर, ओशो में आश्रम में ओशो साहित्य बेचना शुरू कर दिया। जब वह अपने गाँव आए, तो उनके पिता ने मेरे पिता से कहा कि आप उन्हें समझाएं कि यह दुकान पर बैठे जो कि इसे जीवन के बारे में कुछ पता चले। तब राजकुमार ने कहा कि आप जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते, जो कि आप ओशो, चैखोव, टॉलस्टॉय के बारे में कुछ नहीं जानते हैं।
उनके पिता ने कहा, जस जी मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि ये किसी आदमी का नाम ले रहा है या किसी ओर का?
मेरे पास एक कुलीग राजु विश्वकर्मा है जो मैकेनिकल डिग्री करने के लिए बुंदेलखंड गया था। उनकी रुचि साहित्य में थी। उन्होंने पुस्तकालय से अमृता प्रीतम की आत्मकथा रसीदी टिकट लेकर पढा।लिया। किसी कारण से वह बठिंडा आ डिग्री कालेज आ गया। पर वहाँ के पुस्तकालय में साहित्य की एक भी पुस्तक नहीं मिली, हालाँकि, बठिंडा साहित्यिक रूप से बहुत धनी शहर है।
पाश ने एक बात कही है, उनकी कविता
"मैं विदा लेता हूंँ मेरी दोस्त" में ,
, "प्यार करने और जीना उन्हें कभी ना आएगा जिन्हें जिंदगी ने बनिया बना दिया ।"
इसका मतलब यह नहीं है कि पाश एक जाति के बारे में बात कर रहा है, वह बात कर रहा है कि सिर्फ पैसा बनाने से खुशी नहीं मिलती , प्यार और जीवन इससे बहुत आगे की बात है।
जंग बहादुर गोयल ने अपनी पुस्तक विश्व साहित्य के शाहकार नावल में लिखा है कि वे एक तकनीकी विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में गए और पाया कि वँहा लगभग 50,000 किताबें थीं। उन्होंने स्वाभाविक रूप से पूछा, यहां गोर्की, टॉल्स्टॉय या मुंशी प्रेमचंद की किताबें हैं?
फिर यह पता चला कि यँहा ऐसी कोई किताब नहीं थी। तो सवाल उठता है कि हम किस तरह के इंजीनियरों का पैदा कर रहे हैं?
कलकत्ता छह नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साथ दुनिया का सबसे बड़ा नोबेल पुरस्कार विजेता शहर बन गया है। बंगाल में एक खास बात है, चाहे वँहा इंजीनियर हो या डॉक्टर, एक विषय कला की आवश्यकता है। यही कारण है कि वे कला से प्यार करते हैं।वँहा चाय के खोखे में एक लेखक की तस्वीर ज़रूर होगी।
मैं यह नहीं कहता कि हम बिल्कुल कोरे हैं, लेकिन अगर हम अपनी जड़ों से जुडे रहना है तो किताबों से जुड़ना होगा।
इसलिए बच्चों के सामने बैठकर किताबें पढ़ें, ताकि वे भी सीख सकें। अगर हम चाहते हैं हमारे बच्चे पैसा बनाने की मशीन न बने, बल्कि इंसान बनें तो उन्हें ये सिखाना होगा, कि जीने के लिए पैसा कमाना है, ना कि पैसा कमाने के लिए जीना है। ये एक बहुत बडा बुनियादी भेद है।
मैं भी जब कभी मैं मोबाइल में खो जाता हूं, तो किताबों का जादू मुझे बाहर खींच लाता है।
आपका धन्यवाद
रजनीश जस
26.10.2019
ਕਿਤਾਬਾਂ ਤੇ ਬਿਗ ਬਜ਼ਾਰ ਸੱਭਿਅਤਾ
ਉਸਾਰੂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਸੇਧ ਦਿੰਦਿਆਂ ਨੇ। ਬਿਗ ਬਜ਼ਾਰ ਸਿਰਫ ਤੇ ਸਿਰਫ, ਖਪਤਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਵਧਾਵਾ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਜੇ ਅਸੀਂ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਾਂ ਆਉਣ ਵਾਲਿਆਂ ਪੀੜੀਆਂ ਦਾ ਮਨ ਖੁਸ਼ੀ ਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਰਹੇ ਤਾਂ ਹਰ ਬਿਗ ਬਾਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਇਕ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਹੋਣੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ। ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਸਮਾਜ ਸਿਰਫ ਮਸ਼ੀਨ ਰੂਪੀ ਇਨਸਾਨ ਨਾਲ ਭਰ ਜਾਵੇਗਾ ।
ਮੈਨੂੰ ਯਾਦ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਇਕ ਮਿੱਤਰ ਰਾਜਕੁਮਾਰ, ਓਸ਼ੋ ਦਾ ਸੰਨਿਆਸੀ ਹੋ ਗਿਆ। ਉਹ ਘਰਬਾਰ ਛੱਡਕੇ ਓਸ਼ੋ ਦੇ ਜਬਲਪੁਰ ਵਾਲੇ ਆਸ਼ਰਮ ਵਿਚ ਰਹਿਕੇ ਓਸ਼ੋ ਸਾਹਿਤ ਵੇਚਣ ਲੱਗਾ । ਜਦ ਉਹ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਆਇਆ ਤਾ ਉਸਦੇ ਪਿਤਾ ਨੇ ਮੇਰੇ ਬਾਪੂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਇਸਨੂੰ ਸਮਝਾਓ ਕਿ ਇਹ ਹੱਟੀ ਤੇ ਬੈਠੇ ਤਾਂ ਜੋ ਇਸਨੂੰ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਾਰੇ ਕੁਝ ਪਤਾ ਲੱਗੇ। ਤਾਂ ਅੱਗੋਂ ਰਾਜਕੁਮਾਰ ਨੇ ਕਿਹਾ ਤੁਹਾਨੂੰ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਾਰੇ ਕਿ ਪਤਾ ਹੋਵੇਗਾ ਤੁਸੀਂ , ਓਸ਼ੋ, ਚੈਖ਼ੋਵ,ਟਾਲਸਟਾਏ ਬਾਰੇ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦੇ।
ਉਸਦੇ ਪਿਤਾ ਨੇ ਕਿਹਾ, ਜੱਸ ਸਾਬ ਮੈਨੂੰ ਤਾਂ ਇਹ ਸਮਝ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ ਕੇ ਇਹ ਕਿਸੇ ਆਦਮੀ ਦਾ ਨਾਮ ਲੈ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਕਿਤਾਬ ਦਾ ?
ਮੇਰਾ ਇਕ ਕੁਲੀਗ ਹੈ ਰਾਜੂ ਵਿਸ਼ਵਕਰਮਾ ਜੋ ਮਕੈਨੀਕਲ ਵਿਚ ਡਿਗਰੀ ਕਰਨ ਬੁੰਦੇਲਖੰਡ ਗਿਆ। ਉਸਨੂੰ ਸਾਹਿਤ ਵਿਚ ਰੁਚੀ ਸੀ। ਉਸਨੇ ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀ ਵਿਚੋਂ ਅਮ੍ਰਿਤਾ ਪ੍ਰੀਤਮ ਦੀ ਸਵੈ ਜੀਵਨੀ ਰਸੀਦੀ ਟਿਕਟ ਲੈਕੇ ਪੜ੍ਹਿਆ।ਫਿਰ ਕਿਸੇ ਕਾਰਨ ਕਰਕੇ ਉਹ ਬਠਿੰਡੇ ਆਕੇ ਡਿਗਰੀ ਕਾਲਜ ਆ ਗਿਆ। ਉੱਥੇ ਦੀ ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀ ਵਿਚ ਇੱਕ ਵੀ ਸਾਹਿਤ ਦੀ ਕਿਤਾਬ ਨਹੀਂ ਮਿਲੀ। ਹਲਾਂਕਿ ਬਠਿੰਡਾ ਸਾਹਿਤਿਕ ਪੱਖੋਂ ਬਹੁਤ ਧਨੀ ਹੈ।
ਪਾਸ਼ ਨੇ ਇਕ ਗੱਲ ਕਹੀ ਹੈ, ਆਪਣੀ ਕਵਿਤਾ
" ਮੈਂ ਵਿਦਾ ਲੈਂਦਾ ਹਾਂ ਮੇਰੀ ਦੋਸਤ " ਉਸ ਵਿਚ ਇਕ ਬਹੁਤ ਗਹਿਰੀ ਗੱਲ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ
," ਪਿਆਰ ਕਰਨਾ ਤੇ ਜਿਉਣਾ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕਦੇ ਵੀ ਨਾ ਆਏਗਾ, ਜਿਹਨਾਂ ਨੂੰ ਜਿੰਦਗੀ ਬਾਨੀਆ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ।"
ਇਸਦਾ ਮਤਲਬ ਇਹ ਨਹੀਂ ਕਿ ਪਾਸ਼ ਕਿਸੇ ਜਾਤੀ ਬਾਰੇ ਕਹਿ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਉਹ ਗੱਲ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਸਿਰਫ਼ ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਣ ਨਾਲ ਸੁਖ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ, ਪਿਆਰ ਕਰਨ ਤੇ ਜਿਉਣਾ ਉਸ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਅਲੱਗ ਹੈ।
ਜੰਗ ਬਹਾਦੁਰ ਗੋਇਲ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ਵਿਸ਼ਵ ਸਾਹਿਤ ਦੇ ਸ਼ਾਹਕਾਰ ਨਾਵਲ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਕਿਸੇ ਟੈਕਨੀਕਲ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੀ ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀ ਵਿਚ ਗਏ ਤਾਂ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਉੱਥੇ ਲਗਭਗ 50 ਹਜਾਰ ਕਿਤਾਬਾਂ ਨੇ।
ਓਹਨਾ ਨੇ ਸੁਭਾਵਿਕ ਹੀ ਪੁੱਛ ਲਿਆ ਇਥੇ ਗੋਰਕੀ, ਤਾਲਸਤਾਏ ਜਾਂ ਮੁਨਸ਼ੀ ਪ੍ਰੇਮਚੰਦ ਦੀਆ ਕਿਤਾਬਾਂ ਨੇ?
ਤਾ ਅੱਗੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਉਥੇ ਅਜਿਹੀ ਇਕ ਵੀ ਕਿਤਾਬ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਤਾਂ ਇਹ ਸਵਾਲ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਅਸੀਂ ਕਿਸ ਤਰਾਂ ਦੇ ਇੰਜੀਨੀਅਰ ਪੈਦਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹਾਂ ?
ਕਲਕੱਤਾ ਦੁਨੀਆਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਨੋਬਲ ਪੁਰਸਕਾਰ ਜਿੱਤਾਂ ਵਾਲਾ ਸ਼ਹਿਰ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ ਜਿਥੇ 6 ਨੋਬਲ ਪੁਰਸਕਾਰ ਵਿਜੇਤਾ ਹੋਏ ਨੇ। ਬੰਗਾਲ ਵਿਚ ਇਕ ਗੱਲ ਹੈ ਕੇ ਚਾਹੇ ਕੋਈ ਇੰਜੀਨੀਅਰ ਬਣੇ ਜਾਂ ਕੋਈ ਡਾਕਟਰ ਉੱਥੇ ਇਕ ਵਿਸ਼ਾ ਆਰਟ ਦਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ।ਇਹੀ ਕਾਰਣ ਹੈ ਓਹਨਾ ਵਿਚ ਕਲਾ ਲਈ ਮੁਹੱਬਤ ਦਾ। ਉਥੇ ਇੱਕ ਚਾਹ ਵਾਲੇ ਖੋਖੇ ਵਿਚ ਵੀ ਕਿਸੇ ਸਾਹਿਤਕਾਰ ਦੀ ਤਸਵੀਰ ਮਿਲ ਜਾਏਗੀ।
ਮੇਰਾ ਅਜਿਹਾ ਕਹਿਣਾ ਨਹੀਂ ਕਿ ਅਸੀਂ ਬਿਲਕੁਲ ਕੋਰੇ ਹਾਂ ਪਰ ਜੇ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀਆਂ ਜਡ਼ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਰਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿਤਾਬਾਂ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਨੇ।
ਸੋ ਕਿਤਾਬਾਂ ਪੜ੍ਹੋ , ਬੱਚਿਆਂ ਸਾਮਣੇ ਤਾਂ ਜੋ ਉਹ ਵੀ ਸਿੱਖਣ। ਅਸੀਂ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਇਨਸਾਨ ਬਣਾਉਣਾ ਹੈ, ਜੋ ਕਿ ਜਿਉਣ ਲਈ ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਣ, ਨਾ ਕਿ ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਜੀਣ।
ਮੈਂ ਵੀ ਕਈ ਵਾਰ ਜਦ ਮੋਬਾਈਲ ਵਿਚ ਗੁਆਚ ਜਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ ਤਾਂ ਫਿਰ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦਾ ਜਾਦੂ ਮੈਨੂੰ ਬਾਹਰ ਕੱਢ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।
ਧਨੰਵਾਦ
ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਮੈਨੂੰ ਯਾਦ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਇਕ ਮਿੱਤਰ ਰਾਜਕੁਮਾਰ, ਓਸ਼ੋ ਦਾ ਸੰਨਿਆਸੀ ਹੋ ਗਿਆ। ਉਹ ਘਰਬਾਰ ਛੱਡਕੇ ਓਸ਼ੋ ਦੇ ਜਬਲਪੁਰ ਵਾਲੇ ਆਸ਼ਰਮ ਵਿਚ ਰਹਿਕੇ ਓਸ਼ੋ ਸਾਹਿਤ ਵੇਚਣ ਲੱਗਾ । ਜਦ ਉਹ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਆਇਆ ਤਾ ਉਸਦੇ ਪਿਤਾ ਨੇ ਮੇਰੇ ਬਾਪੂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਇਸਨੂੰ ਸਮਝਾਓ ਕਿ ਇਹ ਹੱਟੀ ਤੇ ਬੈਠੇ ਤਾਂ ਜੋ ਇਸਨੂੰ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਾਰੇ ਕੁਝ ਪਤਾ ਲੱਗੇ। ਤਾਂ ਅੱਗੋਂ ਰਾਜਕੁਮਾਰ ਨੇ ਕਿਹਾ ਤੁਹਾਨੂੰ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਾਰੇ ਕਿ ਪਤਾ ਹੋਵੇਗਾ ਤੁਸੀਂ , ਓਸ਼ੋ, ਚੈਖ਼ੋਵ,ਟਾਲਸਟਾਏ ਬਾਰੇ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦੇ।
ਉਸਦੇ ਪਿਤਾ ਨੇ ਕਿਹਾ, ਜੱਸ ਸਾਬ ਮੈਨੂੰ ਤਾਂ ਇਹ ਸਮਝ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ ਕੇ ਇਹ ਕਿਸੇ ਆਦਮੀ ਦਾ ਨਾਮ ਲੈ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਕਿਤਾਬ ਦਾ ?
ਮੇਰਾ ਇਕ ਕੁਲੀਗ ਹੈ ਰਾਜੂ ਵਿਸ਼ਵਕਰਮਾ ਜੋ ਮਕੈਨੀਕਲ ਵਿਚ ਡਿਗਰੀ ਕਰਨ ਬੁੰਦੇਲਖੰਡ ਗਿਆ। ਉਸਨੂੰ ਸਾਹਿਤ ਵਿਚ ਰੁਚੀ ਸੀ। ਉਸਨੇ ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀ ਵਿਚੋਂ ਅਮ੍ਰਿਤਾ ਪ੍ਰੀਤਮ ਦੀ ਸਵੈ ਜੀਵਨੀ ਰਸੀਦੀ ਟਿਕਟ ਲੈਕੇ ਪੜ੍ਹਿਆ।ਫਿਰ ਕਿਸੇ ਕਾਰਨ ਕਰਕੇ ਉਹ ਬਠਿੰਡੇ ਆਕੇ ਡਿਗਰੀ ਕਾਲਜ ਆ ਗਿਆ। ਉੱਥੇ ਦੀ ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀ ਵਿਚ ਇੱਕ ਵੀ ਸਾਹਿਤ ਦੀ ਕਿਤਾਬ ਨਹੀਂ ਮਿਲੀ। ਹਲਾਂਕਿ ਬਠਿੰਡਾ ਸਾਹਿਤਿਕ ਪੱਖੋਂ ਬਹੁਤ ਧਨੀ ਹੈ।
ਪਾਸ਼ ਨੇ ਇਕ ਗੱਲ ਕਹੀ ਹੈ, ਆਪਣੀ ਕਵਿਤਾ
" ਮੈਂ ਵਿਦਾ ਲੈਂਦਾ ਹਾਂ ਮੇਰੀ ਦੋਸਤ " ਉਸ ਵਿਚ ਇਕ ਬਹੁਤ ਗਹਿਰੀ ਗੱਲ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ
," ਪਿਆਰ ਕਰਨਾ ਤੇ ਜਿਉਣਾ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕਦੇ ਵੀ ਨਾ ਆਏਗਾ, ਜਿਹਨਾਂ ਨੂੰ ਜਿੰਦਗੀ ਬਾਨੀਆ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ।"
ਇਸਦਾ ਮਤਲਬ ਇਹ ਨਹੀਂ ਕਿ ਪਾਸ਼ ਕਿਸੇ ਜਾਤੀ ਬਾਰੇ ਕਹਿ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਉਹ ਗੱਲ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਸਿਰਫ਼ ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਣ ਨਾਲ ਸੁਖ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ, ਪਿਆਰ ਕਰਨ ਤੇ ਜਿਉਣਾ ਉਸ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਅਲੱਗ ਹੈ।
ਜੰਗ ਬਹਾਦੁਰ ਗੋਇਲ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ਵਿਸ਼ਵ ਸਾਹਿਤ ਦੇ ਸ਼ਾਹਕਾਰ ਨਾਵਲ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਕਿਸੇ ਟੈਕਨੀਕਲ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੀ ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀ ਵਿਚ ਗਏ ਤਾਂ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਉੱਥੇ ਲਗਭਗ 50 ਹਜਾਰ ਕਿਤਾਬਾਂ ਨੇ।
ਓਹਨਾ ਨੇ ਸੁਭਾਵਿਕ ਹੀ ਪੁੱਛ ਲਿਆ ਇਥੇ ਗੋਰਕੀ, ਤਾਲਸਤਾਏ ਜਾਂ ਮੁਨਸ਼ੀ ਪ੍ਰੇਮਚੰਦ ਦੀਆ ਕਿਤਾਬਾਂ ਨੇ?
ਤਾ ਅੱਗੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਉਥੇ ਅਜਿਹੀ ਇਕ ਵੀ ਕਿਤਾਬ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਤਾਂ ਇਹ ਸਵਾਲ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਅਸੀਂ ਕਿਸ ਤਰਾਂ ਦੇ ਇੰਜੀਨੀਅਰ ਪੈਦਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹਾਂ ?
ਕਲਕੱਤਾ ਦੁਨੀਆਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਨੋਬਲ ਪੁਰਸਕਾਰ ਜਿੱਤਾਂ ਵਾਲਾ ਸ਼ਹਿਰ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ ਜਿਥੇ 6 ਨੋਬਲ ਪੁਰਸਕਾਰ ਵਿਜੇਤਾ ਹੋਏ ਨੇ। ਬੰਗਾਲ ਵਿਚ ਇਕ ਗੱਲ ਹੈ ਕੇ ਚਾਹੇ ਕੋਈ ਇੰਜੀਨੀਅਰ ਬਣੇ ਜਾਂ ਕੋਈ ਡਾਕਟਰ ਉੱਥੇ ਇਕ ਵਿਸ਼ਾ ਆਰਟ ਦਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ।ਇਹੀ ਕਾਰਣ ਹੈ ਓਹਨਾ ਵਿਚ ਕਲਾ ਲਈ ਮੁਹੱਬਤ ਦਾ। ਉਥੇ ਇੱਕ ਚਾਹ ਵਾਲੇ ਖੋਖੇ ਵਿਚ ਵੀ ਕਿਸੇ ਸਾਹਿਤਕਾਰ ਦੀ ਤਸਵੀਰ ਮਿਲ ਜਾਏਗੀ।
ਮੇਰਾ ਅਜਿਹਾ ਕਹਿਣਾ ਨਹੀਂ ਕਿ ਅਸੀਂ ਬਿਲਕੁਲ ਕੋਰੇ ਹਾਂ ਪਰ ਜੇ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀਆਂ ਜਡ਼ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਰਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿਤਾਬਾਂ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਨੇ।
ਸੋ ਕਿਤਾਬਾਂ ਪੜ੍ਹੋ , ਬੱਚਿਆਂ ਸਾਮਣੇ ਤਾਂ ਜੋ ਉਹ ਵੀ ਸਿੱਖਣ। ਅਸੀਂ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਇਨਸਾਨ ਬਣਾਉਣਾ ਹੈ, ਜੋ ਕਿ ਜਿਉਣ ਲਈ ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਣ, ਨਾ ਕਿ ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਜੀਣ।
ਮੈਂ ਵੀ ਕਈ ਵਾਰ ਜਦ ਮੋਬਾਈਲ ਵਿਚ ਗੁਆਚ ਜਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ ਤਾਂ ਫਿਰ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦਾ ਜਾਦੂ ਮੈਨੂੰ ਬਾਹਰ ਕੱਢ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।
ਧਨੰਵਾਦ
ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
26.10.2019
Sunday, September 29, 2019
Cycling with tea 29.09.2019
आज सुबह साइकिलिंग के लिए तैयार हो रहा था तो शिवशांत आ गया। उसके साथ निकला। इस साल अच्छी बारिश होने से हर तरफ हरे पेड़ दिखाई दे रहे हैं । जैसे ही हम मेन रोड पर आए तो हमने देखा कि एक मैराथन हो रही है।लोग सफेद टी शर्ट पहनकर दौड़ रहे थे। साथ में मीडिया वाले फोटोग्राफी कर रहे थे। जैसे ही हम आगे गए तो संजीव जी मिल गए। वह पैदल आ रहे थे। पैदल सैर कर रहे थे , राजेश सर स्टेडियम में थे । आज जब हम फोटोग्राफी कर रहे तो एक चिड़िया चहक रही थी, उसकी वीडियो बनाई । फिर हम तीनों ने मिलकर आँखें बंद करके उस चिड़िया की और झींगुर की आवाज़ का आनंद लिया।
फिर राजेश सर को साथ मिलकर चाय के अड्डे पर पहुंच गए। चाय के अड्डे पर वहां बैठकर बातें शुरू हुईं, पर्यावरण को लेकर ।
बात हुई एक अमला रोया नाम की एक औरत की , जिनको पानी माता (वाटर मदर) के नाम से जाना जाता है। उन्होने राजस्थान के 100 गांव में 200 से ज्यादा चेक डैम बनाए हैं जिसके कारण वहां के लोगों को रोजगार मिला है, वह खेती करने लगे हैं, उन्होने पशु पालन भी शुरू किया है। चेक डैम बारिश के पानी को रोककर बनाए जाने वाले छोटे छोटे डैम हैं। गांव में खेती होने के कारण लोगों ने अच्छे जीवन शैली को अपनाया है।
लड़कियों ने स्कूल में जाना शुरु किया है क्योंकि उनको अपने मां-बाप के साथ काम नहीं करना पड़ रहा है।
डैम बनाने के लिए 30% ऐसा वहां के लोग और 70% उनकी एनजीओ देती है,जिसका नाम आकार चेरीटेबल ट्रस्ट है।
आकार एनजीओ मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश , उड़ीसा ओर बहुत सारे राज्य में काम कर रही है। अमला रूईया और उनकी टीम को इस काम के लिए बहुत-बहुत बधाई। वो केबीसी कार्यक्रम में भी आई थी।
जब भी बारिश होती है पेड़ ना होने के कारण जो पानी होता है बहकर नदी नालों में चला जाता है। अगर पेड़ होंगे तो उनकी जड़ से पानी रुकेगा , मिट्टी का कटाव भी रूकेगा। रुका हुआ पानी ज़मीन के अंदर जाएगा और वाटर लेवल ऊपर आएगा फिर उस पानी से खेती हो सकती है और वो पीने के काम आ सकता है l
सुरजीत सर ने एक वीडियो शेयर की थी जिसमें एक आश्रम दिखाया गया था ओरविल्ले। यह स्वामी अरविंदो का आश्रम है , पांडिचिरी में । इसमें 42 देशों के , 2500 लोग रहते हैं । यहां पर बिना पैसे के काम होता है। पूजा के लिए कोई मूर्ति नहीं है बल्कि एक मंदिर है , वहां पर सभी लोग मौन रहते हैं।
स्वामी अरविंदो के बारे में बताना चाहूंगा कि स्वामी अरविंदो को उसके पिताजी ने बचपन मे ही बाहर इंग्लैंड में भेज दिया था। उनको ये नहीं बताया गया उनका देश , धर्म और जाति क्या है? उनकी अध्यात्मिक परवरिश वहां से प्रारंभ हुई। इसके दौरान उसके पिताजी की भारत में मृत्यु हो गई पर उनके पिताजी ने यह भी कहा कि ये बात अरविंदो को मत बताना। फिर वह भारत लौटे और पांडिचेरी में उन्होंने एक आश्रम बनाया ।
जो लोग वहां पर रह रहे हैं इस बात का प्रतीक है कि मन की शांति के लिए कोई आदमी क्या क्या कर सकता है? उन्होंने अपना मुल्क छोड़ दिया और वो भारत में अपना जीवन यापन कर रहे हैं । वह एक बुद्ध पुरुष थे जिनके आश्रम भारत और बाहर के मुल्कों में भी हैं। लोग उनको बहुत पढ़ते हैं, ध्यान करते हैं। उत्तराखंड रामगढ़ के पास भी उनका एक आश्रम है यहाँ का जिक्र मेरी एक यात्रा में है।
अगर हम चाहते हैं इस विश्व में शांति हो तो इस में तो पहले हमें खुद शांत होना होगा , सहज होना होगा ।
फिर आबादी को लेकर चर्चा हुई कि जितने हमारे जंगल कट रहे हैं , सड़कें चौड़ी हो रही हैं, वो बढ़ती हुई अबादी के कारण हो रहा है। इस क्षेत्र में लोगों को ही कुछ ठोस कदम उठाने होंगे, वर्ना राजनीतिक पार्टियों के लिए तो आम आदमी सिर्फ एक वोट ही है और इससे ज्यादा कुछ नहीं।
सुरजीत सर आज किसी खास काम की वजह से नहीं आ पाए।
बातें करते करते हमने चाय पी।
फिर मिलेंगे कि नहीं किस्से के साथ ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
Thursday, September 26, 2019
Journey Kainchi Dham Mandir,Bhawali, Uttrakhand
सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां
जिंदगी गर रही तो ये जवानी फिर कहां
#ख्वाजा_मीर
#यात्रा_कैंची_धाम
#journey_to_kainchidham_uttarakhand
24.06.2018
सुबह 7:30 बजे रुद्रपुर से हम चलें बस से हल्द्वानी पहुंचे|| वहां से टैक्सी ली कैंची धाम की| हमारा ड्राइवर था विक्की,जो कि एक बॉडी बिल्डर है जिसने पोनीटेल बना रखी थी|
Alto में दो और सवारियां भी थी एक तो पहाड़ से एक औरत जिसने साड़ी पहन रखी थी और एक आदमी| तो चल दिए हम कैंची धाम मंदिर के लिए अल्मोड़ा रोड पर|| जैसे ही काठगोदाम आया सामने पहाड़ दिखने लगे। काठगोदाम बहुत ही खूबसूरत जगह है यहां का रेलवे स्टेशन अंग्रेजों के समय का बना हुआ है और यह पहाड़ी रास्ते पर आखरी ही रेलवे स्टेशन है| फिर हुई चढ़ाई शुरू और हम पहाड़ों की तरफ यात्रा करने लगे| हमारी कार का ड्राइवर विक्की जब भी कोई मंदिर आता तो कार के आगे उसके बिल्कुल हाथ के पास एक घंटी थी उसे जरूर बजाता तो टन्न की आवाज आती| फिर बातें होने लगी राजनीति पर मैंने वह विषय को मोड़कर किसी और तरफ बदला|
विक्की अपनी शादी का किस्सा सुनाने लग गया| जब उसकी शादी की उम्र हुई तो उसकी मां ने पूछा, बेटे कोई पसंद है? उसने मुस्कुराकर कहा मां तू ही पसंद है| मां बोली नहीं, मैं शादी के लिए कह रही हूं| तो विकी ने कहा हां एक लड़की पसंद है, पर उसकी जाति कोई और है| फिर वह पिताजी के साथ लड़की वालों के घर गया| उसके पिता ने कहा पर लड़की वाले शादी के लिए नहीं मान रहे थे| पिता फ़ौज में थे तो उन्होंने बोला मेरे बेटे को तुम्हारी बेटी पसंद है तुम शादी नहीं करोगे तो भगा के ले जाएगा| उसके पिता जी ने कहा, मेरी दो बेटियाँ हैं, ये आ जाएगी तो तीसरी हो जाएगी। बस फिर क्या शादी तय हो ही गई|
हम थोड़ी ऊंचाई पर आ गए थे हवा भी पहले से साफ और ठंडी हो गई थी| इर्द गिर्द पेड़ों का झुरमुट और एक तरफ बहती हुई कोसी नदी| पहले भीमताल पहुंचे वहां पर झील के किनारे होते हुए फिर हम भवाली पहुंचे| भवाली भी बहुत खूबसूरत और आनंदित जगह है| वहां से एक तरफ को घोड़ाखाल की तरफ सड़क मुड़ती है। वहां पर गोलू देव का मंदिर भी है यहां पर लोग अपने मन की मुरादें पूरी करने के लिए जाते हैं| जिसकी मुराद पूरी हो जाए वहां पर घंटी चढ़ाता है| उस मंदिर में लगभग लाख के करीब घंटियाँ होगी, छोटी घंटे से लेकर बड़ी घंटी। आगे सांप की तरह बलखाती हुई सड़क पर चलते हुए फिर हम कैंची धाम मंदिर पहुंच ही गए| हम कार से उतरे किराया दिया और झटपट पैर धोकर वहां मंदिर में माथा टेकने चले गए| मंदिर में प्रवेश करते ही इतनी शांति महसूस हुई के शायद शब्दों में वह बयां की ही नहीं जा सकती| सुबह के भूखे थे चाय पी के घर से निकले थे तो फिर बाहर आकर नाश्ता किया चाय पी| यहां पर मूंगी की दाल के पकोड़े बहुत ही मशहूर है पर हमारी किस्मत में नहीं थे तो वह पहले ही खत्म हो चुके थे| हमने बेसन के पकौड़े से काम चलाया| फिर चले गए अंदर और फिर बैठ गए मंदिर में| मेरे साथ था Chiranjeev Pathak| वह भी तफरी मारने वाला मस्त आदमी है|वहां पर शुरू हुआ कीर्तन जो कि लगभग 2 घंटे तक चला| सामने पहाड़ी पर पल-पल करवट बदलते बादल चीड़ के पेड़ कभी धूप कभी छांव| फिर बादल आए तो बारिश होने लग गई| हम भी मस्त हैं बैठे कीर्तन का आनंद लेते रहे| मन की गति कुछ देर के लिए रूके गई, बस ये सबसे बड़ी उपलब्धि रही यात्रा की।
मंदिर के अंदर फोटोग्राफी बंद है पर फिर भी हम भारतीय लोग अनुशासन तोड़ने में सबसे आगे जो है तो लोग बार-बार वीडियो बना रहे थे पर पुलिस वाले हैं उन्हें आकर मना कर रहे थे|
इस मंदिर की बहुत ही मान्यता है एप्पल कंपनी के मालिक स्टीव जॉब्स यहां आते थे, फेसबुक वाले मार्क ज़ुकेरबर्ग, हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स और बहुत नामी गिरामी बंदे यहां आते हैं|
कैंची धाम मंदिर
मैं पिछली बार जब यहां आया तो एक अंग्रेज आरती कर रहा था वह व्हीलचेयर पर था शायद बीमार होगा मैंने पूछा कहां से हो तो उसने फ्रांस बताया| मैंने पूछा डू यू लव इंडिया? उसने मुस्कुराकर दिल पर हाथ रख और बोला आई लव इंडिया वेरी मच|
यहां हर साल 15 जून को बहुत बड़ा मेला लगता है| जिसमें देश और देशों से बहुत सारे लोग आते हैं| नीम करोरी बाबा जिनकी तस्वीर हर एक कार में जरूर मिल जाएगी जब हम उत्तराखंड में पहाड़ पर जाते हैं तो|
चिरंजीवी बहुत हैरान हुआ उसने यह तस्वीर बहुत बार देखी वह जानता नहीं था यह कौन है? फिर से हम निकले बारिश हो रही थी कुछ तस्वीरें खींची सफर की याद ताजा रखने के लिए| बाहर आकर मसाला शिकंजवी पी | फिर बस का इंतजार करने लगे क्योंकि टैक्सी तो वापस जाने के लिए मिलने नहीं थी| पहाड़ सारी टैक्सी भरी हुई यहां ही आती है नीचे| बारिश के मौसम से हवा में ठंडी हो गई थी| फिर बस आई और हम बैठ गए तो आगे पहुंचे तो इसके कारण कोहरा छाया हुआ था। मुझे तो टीशर्ट में ठंड लग रही थी| आगे जाकर बस पंचर हो गई हमें ढाबे पर चाय पी| चाय में थोड़ा सा पानी डाल लिया था क्योंकि बस में चक्कर आने के कारण जी थोड़ा मचला रहा था|
मेरा एक दोस्त है Nishant Arya वह हमेशा कहता है कि पेट्रोल की गाड़ी में ही सफर करो जब भी पहाड़ से जाना हो बस में अक्सर हालत खराब हो ही जाती है|
मैं सब यह बातें लिखता रहता हूं क्योंकि चाहता हूं कि जिंदगी की खूबसूरती का आनंद दूसरे लोग भी मनाएं| क्योंकि कहा गया है कलाकार किसी दुख हो या सुख को बहुत ही शिद्दत से जीता है| उसकी जिंदगी में छोटी-छोटी बातों का भी बहुत महत्व होता है|
फिर बस से पहुंचे हम हल्द्वानी मैदानी इलाके में आ चुके थे मौसम की गर्मी भी अपना रंग दिखा रही थी| फिर पहुंचे हल्द्वानी में लगे हुए बुक फेयर पर| वहां हमारी टीम का नाटक था पीटी हुई गोट।
वह नाटक देखा फोटोग्राफी की|
हल्द्वानी में कुल्हड़ वाली आइसक्रीम खाई। कुल्हड़ में आइसक्रीम खाने का अलग ही मजा है| फिर बस पकड़ी तो लगभग 9:30 बजे हम रुद्रपुर वापस पहुंचे| फिर मिलेंगे एक नई यात्रा इतने ही रंग में एक नए रंग ढंग में मैं आपका रजनीश विदा लेता हूं अब|
#rajneesh_jass
Rudrapur
Uttarakhand
जिंदगी गर रही तो ये जवानी फिर कहां
#ख्वाजा_मीर
#यात्रा_कैंची_धाम
#journey_to_kainchidham_uttarakhand
24.06.2018
सुबह 7:30 बजे रुद्रपुर से हम चलें बस से हल्द्वानी पहुंचे|| वहां से टैक्सी ली कैंची धाम की| हमारा ड्राइवर था विक्की,जो कि एक बॉडी बिल्डर है जिसने पोनीटेल बना रखी थी|
Alto में दो और सवारियां भी थी एक तो पहाड़ से एक औरत जिसने साड़ी पहन रखी थी और एक आदमी| तो चल दिए हम कैंची धाम मंदिर के लिए अल्मोड़ा रोड पर|| जैसे ही काठगोदाम आया सामने पहाड़ दिखने लगे। काठगोदाम बहुत ही खूबसूरत जगह है यहां का रेलवे स्टेशन अंग्रेजों के समय का बना हुआ है और यह पहाड़ी रास्ते पर आखरी ही रेलवे स्टेशन है| फिर हुई चढ़ाई शुरू और हम पहाड़ों की तरफ यात्रा करने लगे| हमारी कार का ड्राइवर विक्की जब भी कोई मंदिर आता तो कार के आगे उसके बिल्कुल हाथ के पास एक घंटी थी उसे जरूर बजाता तो टन्न की आवाज आती| फिर बातें होने लगी राजनीति पर मैंने वह विषय को मोड़कर किसी और तरफ बदला|
विक्की अपनी शादी का किस्सा सुनाने लग गया| जब उसकी शादी की उम्र हुई तो उसकी मां ने पूछा, बेटे कोई पसंद है? उसने मुस्कुराकर कहा मां तू ही पसंद है| मां बोली नहीं, मैं शादी के लिए कह रही हूं| तो विकी ने कहा हां एक लड़की पसंद है, पर उसकी जाति कोई और है| फिर वह पिताजी के साथ लड़की वालों के घर गया| उसके पिता ने कहा पर लड़की वाले शादी के लिए नहीं मान रहे थे| पिता फ़ौज में थे तो उन्होंने बोला मेरे बेटे को तुम्हारी बेटी पसंद है तुम शादी नहीं करोगे तो भगा के ले जाएगा| उसके पिता जी ने कहा, मेरी दो बेटियाँ हैं, ये आ जाएगी तो तीसरी हो जाएगी। बस फिर क्या शादी तय हो ही गई|
हम थोड़ी ऊंचाई पर आ गए थे हवा भी पहले से साफ और ठंडी हो गई थी| इर्द गिर्द पेड़ों का झुरमुट और एक तरफ बहती हुई कोसी नदी| पहले भीमताल पहुंचे वहां पर झील के किनारे होते हुए फिर हम भवाली पहुंचे| भवाली भी बहुत खूबसूरत और आनंदित जगह है| वहां से एक तरफ को घोड़ाखाल की तरफ सड़क मुड़ती है। वहां पर गोलू देव का मंदिर भी है यहां पर लोग अपने मन की मुरादें पूरी करने के लिए जाते हैं| जिसकी मुराद पूरी हो जाए वहां पर घंटी चढ़ाता है| उस मंदिर में लगभग लाख के करीब घंटियाँ होगी, छोटी घंटे से लेकर बड़ी घंटी। आगे सांप की तरह बलखाती हुई सड़क पर चलते हुए फिर हम कैंची धाम मंदिर पहुंच ही गए| हम कार से उतरे किराया दिया और झटपट पैर धोकर वहां मंदिर में माथा टेकने चले गए| मंदिर में प्रवेश करते ही इतनी शांति महसूस हुई के शायद शब्दों में वह बयां की ही नहीं जा सकती| सुबह के भूखे थे चाय पी के घर से निकले थे तो फिर बाहर आकर नाश्ता किया चाय पी| यहां पर मूंगी की दाल के पकोड़े बहुत ही मशहूर है पर हमारी किस्मत में नहीं थे तो वह पहले ही खत्म हो चुके थे| हमने बेसन के पकौड़े से काम चलाया| फिर चले गए अंदर और फिर बैठ गए मंदिर में| मेरे साथ था Chiranjeev Pathak| वह भी तफरी मारने वाला मस्त आदमी है|वहां पर शुरू हुआ कीर्तन जो कि लगभग 2 घंटे तक चला| सामने पहाड़ी पर पल-पल करवट बदलते बादल चीड़ के पेड़ कभी धूप कभी छांव| फिर बादल आए तो बारिश होने लग गई| हम भी मस्त हैं बैठे कीर्तन का आनंद लेते रहे| मन की गति कुछ देर के लिए रूके गई, बस ये सबसे बड़ी उपलब्धि रही यात्रा की।
मंदिर के अंदर फोटोग्राफी बंद है पर फिर भी हम भारतीय लोग अनुशासन तोड़ने में सबसे आगे जो है तो लोग बार-बार वीडियो बना रहे थे पर पुलिस वाले हैं उन्हें आकर मना कर रहे थे|
इस मंदिर की बहुत ही मान्यता है एप्पल कंपनी के मालिक स्टीव जॉब्स यहां आते थे, फेसबुक वाले मार्क ज़ुकेरबर्ग, हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स और बहुत नामी गिरामी बंदे यहां आते हैं|
बारिश की बूंदें , चाय की दुकान पर
मैं पिछली बार जब यहां आया तो एक अंग्रेज आरती कर रहा था वह व्हीलचेयर पर था शायद बीमार होगा मैंने पूछा कहां से हो तो उसने फ्रांस बताया| मैंने पूछा डू यू लव इंडिया? उसने मुस्कुराकर दिल पर हाथ रख और बोला आई लव इंडिया वेरी मच|
यहां हर साल 15 जून को बहुत बड़ा मेला लगता है| जिसमें देश और देशों से बहुत सारे लोग आते हैं| नीम करोरी बाबा जिनकी तस्वीर हर एक कार में जरूर मिल जाएगी जब हम उत्तराखंड में पहाड़ पर जाते हैं तो|
चिरंजीवी बहुत हैरान हुआ उसने यह तस्वीर बहुत बार देखी वह जानता नहीं था यह कौन है? फिर से हम निकले बारिश हो रही थी कुछ तस्वीरें खींची सफर की याद ताजा रखने के लिए| बाहर आकर मसाला शिकंजवी पी | फिर बस का इंतजार करने लगे क्योंकि टैक्सी तो वापस जाने के लिए मिलने नहीं थी| पहाड़ सारी टैक्सी भरी हुई यहां ही आती है नीचे| बारिश के मौसम से हवा में ठंडी हो गई थी| फिर बस आई और हम बैठ गए तो आगे पहुंचे तो इसके कारण कोहरा छाया हुआ था। मुझे तो टीशर्ट में ठंड लग रही थी| आगे जाकर बस पंचर हो गई हमें ढाबे पर चाय पी| चाय में थोड़ा सा पानी डाल लिया था क्योंकि बस में चक्कर आने के कारण जी थोड़ा मचला रहा था|
मेरा एक दोस्त है Nishant Arya वह हमेशा कहता है कि पेट्रोल की गाड़ी में ही सफर करो जब भी पहाड़ से जाना हो बस में अक्सर हालत खराब हो ही जाती है|
मैं सब यह बातें लिखता रहता हूं क्योंकि चाहता हूं कि जिंदगी की खूबसूरती का आनंद दूसरे लोग भी मनाएं| क्योंकि कहा गया है कलाकार किसी दुख हो या सुख को बहुत ही शिद्दत से जीता है| उसकी जिंदगी में छोटी-छोटी बातों का भी बहुत महत्व होता है|
फिर बस से पहुंचे हम हल्द्वानी मैदानी इलाके में आ चुके थे मौसम की गर्मी भी अपना रंग दिखा रही थी| फिर पहुंचे हल्द्वानी में लगे हुए बुक फेयर पर| वहां हमारी टीम का नाटक था पीटी हुई गोट।
वह नाटक देखा फोटोग्राफी की|
हल्द्वानी में कुल्हड़ वाली आइसक्रीम खाई। कुल्हड़ में आइसक्रीम खाने का अलग ही मजा है| फिर बस पकड़ी तो लगभग 9:30 बजे हम रुद्रपुर वापस पहुंचे| फिर मिलेंगे एक नई यात्रा इतने ही रंग में एक नए रंग ढंग में मैं आपका रजनीश विदा लेता हूं अब|
#rajneesh_jass
Rudrapur
Uttarakhand
Tuesday, September 24, 2019
The Book Tree, Book with Coffee, Rudrapur, Uttrakhand
कोई भी सामाजिक क्रांति हो या अध्यात्मिक क्रांति उसकी शुरुआत सबसे पहले विचारों की क्रांति होती है विचारों में क्रांति, किताबों से, परिचर्चा से ,ध्यान से होती है। तो किताबें वाकई बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, किसी क्रांति के लिए क्योंकि वो विचारों को सहेज कर रखती है। आज अगर हमारे बीच में लिओ टाल्सटाय, मैक्सिम गोर्की, मुंशी प्रेमचंद , राहुल संक्रतायन शारीरिक रुप में नहीं है पर वो अपनी किताबों के ज़रिए , कहानियों के ज़रिए हमारे दरमियां हमेशा ही रहेंगे।
रुद्रपुर में एक दुकान है
"द बुक ट्री, बुक्स विद कॉफी"। आप वहां बैठकर किताब पढ़ सकते हैं, कॉफी पी सकते हैं, चाय कर पी सकते हैं बैठकर परिचर्चा कर सकते हैं । किताबें यँहा किराये पर भी मिलती हैं। ऐसी शुरुआत के लिए उनके नवीन चिलाना जी को बहुत-बहुत बधाई देता हूंँ।
मंटो, अंतन चोखोव , गोर्की , टाल्सटाय, राहुल संकतायन, बच्चों की कहानियों की किताबें यँहा मिलती हैं।
बुक ट्री रुद्रपुर में भगत सिंह चौक के पास ,डी 79, पुराना अलाहाबाद बैंक वाली गली, मेन मार्केट में स्थित है।
अगर हम चाहते हैं हमारी आने वाली पीढियाँ ये जाने कि इतिहास में सिर्फ युद्ध ही नहीं हुए, बल्कि लिओ टाल्सटाय जैसे महान लेखक भी हुए हैं, जिन्होनें अपने पात्र के साथ बहस की,काफी पी। अन्ना केरेनिना , नावल लिखने के बाद जब उनकी नावल की पात्र अन्ना केरेनिना रेलवे पुल से कूदकर जान दे देती है तो टाल्सटाय वँहा जाकर अफसोस करते हैं।
युद्ध और शांति , नावल उन्होने लगभग दस बार लिखने के बाद फाईनल किया।
तो खुद जाँए, अपने बच्चों को साथ लेकर जाएँ
उनको किताबों से रुबरू करवाएँ।
ऐसे ऐसे बुक शहर शहर में होने चाहिए।
धन्यवाद।
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
ये किताबें आप पढ़ सकते हैं।
वो कोना यँहा बैठकर आप किताब पढ़ सकते है।
रुद्रपुर में एक दुकान है
"द बुक ट्री, बुक्स विद कॉफी"। आप वहां बैठकर किताब पढ़ सकते हैं, कॉफी पी सकते हैं, चाय कर पी सकते हैं बैठकर परिचर्चा कर सकते हैं । किताबें यँहा किराये पर भी मिलती हैं। ऐसी शुरुआत के लिए उनके नवीन चिलाना जी को बहुत-बहुत बधाई देता हूंँ।
मंटो, अंतन चोखोव , गोर्की , टाल्सटाय, राहुल संकतायन, बच्चों की कहानियों की किताबें यँहा मिलती हैं।
बुक ट्री रुद्रपुर में भगत सिंह चौक के पास ,डी 79, पुराना अलाहाबाद बैंक वाली गली, मेन मार्केट में स्थित है।
अगर हम चाहते हैं हमारी आने वाली पीढियाँ ये जाने कि इतिहास में सिर्फ युद्ध ही नहीं हुए, बल्कि लिओ टाल्सटाय जैसे महान लेखक भी हुए हैं, जिन्होनें अपने पात्र के साथ बहस की,काफी पी। अन्ना केरेनिना , नावल लिखने के बाद जब उनकी नावल की पात्र अन्ना केरेनिना रेलवे पुल से कूदकर जान दे देती है तो टाल्सटाय वँहा जाकर अफसोस करते हैं।
युद्ध और शांति , नावल उन्होने लगभग दस बार लिखने के बाद फाईनल किया।
तो खुद जाँए, अपने बच्चों को साथ लेकर जाएँ
उनको किताबों से रुबरू करवाएँ।
ऐसे ऐसे बुक शहर शहर में होने चाहिए।
धन्यवाद।
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
ये किताबें आप पढ़ सकते हैं।
वो कोना यँहा बैठकर आप किताब पढ़ सकते है।
Sunday, September 22, 2019
Journey to Railway Meuseum Delhi
May. 2017
मई का महीना और दिल्ली जाना, तोबा तोबा। पर हमने ये तोबा करने की ठानी, और निकले दिल्ली को।
हम लोग रुद्रपुर से चले। ट्रेन में बैठने वाली सीटें थी। मैं,मेरी पत्नी सिमरन,दोनों बच्चे रोहन और वंश। मई का महीना था तो गर्मी पूरी जवानी पर थी। पानी की दो बोतलें भी खत्म हो गई। मिनरल वाटर की बोतल खरीदी। एक बार तो बिना पानी के ऐसे हो गए थे, कि क्या कहें? ट्रेन रामपुर, मुरादाबाद, गाजियाबाद होते हुए दिल्ली पहुंची।
वँहा से हमने मेट्रो ट्रेन पकड़ी और राजीव चौक पहुंचे। वहां देखा एक नवविवाहित जोडा था। नवविवाहिता ट्रेन में पहले चढ़ी और ट्रेन चल दी। उसका पति नीचे रह गया। वो ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई प्रेमी प्रेमिका बिछड़ गये हों।
ट्रेन के पीछे शीशे पारदर्शक थे तो लग रहा था कि जैसे औरत कह रही हो कि ट्रेन रुक जाए और मैं अपने पति के साथ मिल लूँ।
स्टेशन पर एक औरत उसके पति को समझा रही थी, कि अगली ट्रेन आ दो मिनट में आ जाएगी , घबराओ मत।
हमने अपनी ट्रेन पकडी और तिलक नगर पहुंचे। वहां पर सबसे पहले नींबू पानी पिया। यह सारा इलाका पंजाबियों का है। घरों में गमले,गली में गुरुद्वारा है, घरों के बाहर बजाज चेतक स्कूटर खड़े हैं पुराने।
चाचा के घर पहुंचे तो खूब सारी बातें हुईं। रात का खाना सब खा कर हम सो गए और सुबह उठे। तैयार होकर निकल लिए, नेशनल रेल म्यूजियम के लिए। हमने ओनलाईन टैक्सी बुक की। टैक्सी वाले से बातचीत होने लगी, तो उसने बताया कि टैक्सी के प्रॉफिट का काफी हिस्सा प्राइवेट कंपनी वाले ले जाते हैं। मैं यह सोच रहा था मैं जितना भी सिस्टम है सब आम आदमी को निचोड़ने के लिए ही शायद बना है क्या?
म्यूजियम वहां पहुंचकर हमने टिकटें खरीदी।
नेशनल रेल म्यूजियम चाणक्यपुरी दिल्ली में है। ये 10 एकड़ जगह में बना हुआ है। इसमें तरह-तरह के इंजन रखे हुए हैं । 1977 में बनकर तैयार हो गया था। सोमवार को छोड़कर बाकी दिन खुला रहता है।
हर रोज लगभग 2.3 करोड़ लोग भारतीय रेल में सफर करते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा चौथा रेलवे का सिस्टम है। नई दिल्ली के रेलवे स्टेशन का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में है, रूट रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम ।
यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज में 4 ट्रेनों को दिया गया नाम दिया गया है दार्जिलिंग ,मुंबई सीएसटी ,नीलगिरी और कालका शिमला को।121,407 भारतीय रेलवे ट्रैक की टोटल लंबाई है। 60.14 बिलियन डालर की कमाई 1 साल की है। 2000 पैसेंजर ट्रेन हर रोज़ चलती हैं।
अंदर वहां एंट्री करते ही महात्मा गांधी जी का बुत बना हुआ है,
वँहा पर लिखा हुआ है,आईँसटाइन का विचार, "आने वाली नस्लों को यकीन करना मुश्किल होगा कि महात्मा गांधी जैसे कोई इंसान इस धरती पर हुआ है।"
हम आगे गए तो देखा कि वहां एक ऐयर कंडिशनर बिल्डिंग थी, अंदर गए तो बड़ी राहत महसूस हुई ।अंदर अलग-अलग तरह की मॉडल की रेल गाडी और इंजन के मॉडल थे। मैं कई जगह एलईडी स्क्रीन लगी हुई थी, जिसमें पुराने समय की रेलवे की ब्लैक एंड वाईट वीडियो चल रही थी। उसमें रेलवे का ट्रैक बदलना, रेलवे का बहुत सारी जानकारी थी। एक मॉडल था जिसमें पहाड़ के बीच में ट्रेन दिखाई गई थी।
भारत का नक्शा था, जिसमें अलग अलग रेलवे स्टेशन के स्विच लगे हुए थे। एक क्विज़ थी, वँहा से आवाज़ आती तो कुछ सेकिंड में भारत के नक्शे पर उस स्टेशन को ढूंढकर स्विच दबाना होता था। हमने वह गेम खेली। फिर बाहर निकले। एक छोटी ट्रेन थी उसमें बैठकर एक लंबा चक्कर लगाया । इसके चलती हुई टवाय ट्रेन से बहुत सारे पुराने असली इंजन रास्ते में देखने को मिले, जो मिऊजियम ने संभाल कर रखे हुए हैं।
फिर हम लोग एक रेस्टोरेंट में गए वँहा भी एक बच्चों की छोटी सी ट्रेन थी, जो कि टेबल के साथ से गुज़र रही थी।
अशोक कुमार का गाया हुआ गाना,
" रेलगाड़ी रेलगाड़ी
छुक छुक करती रेलगाड़ी"
याद आ गया।
हमने वहां कुछ खाया पीया और फिर बाहर निकले। पानी की बोतलें भरी। बहुत से लोग घूमने आए हुए थे। रेलवे के इंजन पास से जाकर देखा, वँहा ऊपर चढ़ना मना था। उस पर स्टिकर लगा हुआ था कि हर बार गल्ती करने पर एक आदमी का ₹500 जुर्माना है। वो भारतीय लोगों को जानते हैं कि कंहु 10 लोग मिलकर 50-50 रूपये इक्ट्ठे करके ये हर्जाना भर सकते हैं। यहां पर यह बताना मैं जरूरी समझूंगा कि मुझे इस म्यूजियम का पता फिल्म, "की एंड का" से लगा ।उस फिल्म में एक गीत की शूटिंग यहां हुई थी। उस फिल्म में भी टॉय ट्रेन है जिसमें की रसोई से जो खाना है डाईनिंग टेबल तक की ट्रेन में ही से ही आता है।
फिर ट्रेन का इक डिब्बा देखा कि जिसमें लोग घूम सकते थे। अंदर जाकर देखा तो महात्मा गांधी का बुत बना हुआ है। उनके साथ जाकर फोटो खिंचवाई । वहां एक लैंडलाइन फोन भी है जिसमें महात्मा गांधी जी का एक संदेश है। हमने वह भी सुना। यह बहुत पुरानी रिकॉर्डिंग है ।सामने दीवार पर एक एलईडी स्क्रीन है इसमें महात्मा गांधी जी के संघर्ष की कहानी दिखाई जा रही थी।
वहां पर एक लड़का पियूष मिला जिसने कि हमें वँहा के बारे में बताया। वो वहीं पर नौकरी करता है । नीचे उतरकर हमने देखा वँहा फीडबैक बुक थी। उसमें कुछ पोस्ट कार्ड रखे हुए थे, साथ अलग अलग रंग के स्कैच पैन थे। हमने उसमें, बहुत बढ़िया लिखा और वो पोस्ट कार्ड डिब्बे में डाल दिया । कुछ साबुन जो आयुर्वेदिक ढंग से बने हुए थे वो भी वँहा सेल के लिए रखे हुए थे। हमन पीयुष से पूछा कि फिल्म की एंड का शूटिंग कहां हुई थी, तो उसने बताया कि वो हरे रंग वाले शेड के नीचे। वो हफ्ते में एक बार ही खुलता है। पर आज वह आज बंद था,शायद हमारी किसमत में नहीं था देखना।
हमने ट्रेन का डिब्बा देखा जिसमें जानवरों को एक जगह से दूसरी लिजाने के लिए बनाया हुआ था, उसमें हवादार खिड़कियां बनी हुई थी। अंदर लकड़ी के जानवर के बुत भी बने हुए थे।
गुलमोहर के पेड़ पर फूल से गर्मी के कारण पूरे खिले हुए थे । लड़के लड़कियां घूम रहे थे,फोटो खींच रहे थे ।
तभी मुझे याद आया मैनें ₹500 टिकटों के लिए दिए थे, पर बकाया वापिस लेना भूल गया हूँ । तो फिर मैं वापस वहां पहुंचा। हमारी टिकट देखकर, अपना कैश चैक करके उन्होने बकाया वापस कर दिया ।
वहां पर ओर घूमे और फिर वापस आने के लिए टैक्सी की। फिर वापस घर को आ गए। रात का खाना खाया फिर हम सो गए।
फिर वापसी के लिए दिल्ली से रुद्रपुर की ट्रेन पकड़ी। रास्ते में हमें एक लड़का मिला जो कि ट्रेन में पढ़ रहा था। मेरे बड़े बेटे का पेपर थे। उस लड़के से खाली दो पेज लिए और कुछ सवाल हल किए। लड़का सीए की तैयारी कर रहा था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था तो उसने मेरी वाइफ से बात की। वो मैथ की टीचर है तो उसमें उसको कुछ टिप्स बताएं। मेरी छोटी बेटे को बहुत भूख लगी थी, तो उसने कहा मुझे भूख लगी है । तो लड़कों ने बताया कि एक सब्जी रोटी लाए हुए हैं। तो उन्होंने आलू की सब्जी बनाई हुई थी, उन्होंने रोटी सब्जी मेरे बेटे को दी। मेरे बेटे ने रोटी खाई। उसका पेट भर गया। फिर भी मेरे कान में कहा, पापा इनका धन्यवाद करो। मैंने वही शब्द दोहरा दिए। वही शब्द अपनी मम्मी के कान में जाकर दोहराए कि उन लड़कों का धन्यवाद करें। आज मुझे अपने गांव का लंगर याद आ गया, कि गुरुद्वारे में जब हम भूखे को खाना खिलाते हैं तो वह कैसी दुआएं देते होंगे ?
उस लड़की ने बताया वो वैब डिजायनिंग का काम करता है।दिल्ली से नोएडा जाता है ।एक मकान के पाँचवे मारले पर एक कमरे में वो 3 लोग रहते हैं जो कि गर्मी में बहुत ज्यादा तप जाता है। मैंने उसके कहा कि बोरी को गीली करके खिड़की पर टांग लिया करो। उसने कहा ऐसा करने से मकान मालिक घर से बाहर निकाल देगा।
वो सुबह 6 से 10 पढ़ने जाता है और 11:00 से 4:00 नौकरी करता है।
पूरे 1 साल बाद अपने घर बिहार जा रहा था। मैंने उससे पूछा कि बिहार में सबसे ज्यादा आईएएस ऑफिसर हैं। तो उसने कहा कि हाँ। पर वहां पर जातिवाद बहुत है, जिसके कारण बिहार बहुत पिछड़ा हुआ है।
मैं देख रहा था वो लड़का एक कली की भांति है, और वो पूरी तरह खिलने की तैयारी कर रहा है। रोटी की तलाश उसको घर से कितनी दूर ले आई है, जैसे कि मैं भी अपने घर से दूर पंजाब के दूर रूद्रपुर में हूँ। मेरे गांव के दोस्त इटली और कनाडा जाकर जिंदगी का संघर्ष कर रहे हैं।
उसने बताया कि उसके घर वाले इसको आगे नहीं पढ़ा रहे थे तो कह थे कि पंजाब में जाकर कोई काम करो। घर वालों से लड़कर वो दिल्ली भाग आया था। मैंने देखा ऐसे कितने ही लोग हैं, जो घरों से पलायन करते हैं बड़े शहरों में जाकर रहते करते हैं, उनमें से चुनिंदा लोग बहुत कामयाब हो जाते हैं, फिर सुर्खियों में आ जाते हैं। बाकी लोग ऐसे ही जीवन बिता देते हैं।
आज मुझे दूरदर्शन पर 28 साल पहले आने वाला एक धारावाहिक याद आ गया,
A tryst with People of India के डायरेक्टर सईद मिर्जा का डायलॉग याद आ गया, जिसमें वो कहते हैं, देश को चलाने वाले नेता नहीं होते,बल्कि देश को चलाने वाले वो लोग हैं जो सुबह घर से निकलते हैं, बसों में ,साइकिल पर फैक्ट्रियों के लिए, काम करते हैं, उनका जिक्र इतिहास के पन्नों पर कहीं भी नहीं आता।
ये सीरियल यूट्यूब पर देखने को मिल सकता है।
आज इतना ही।
फिर मिलेंगे इक किस्से के साथ।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड
Saturday, September 14, 2019
#journey_to_poona_part_3
#journey_to_poona_part_3
#rajneesh_jass
27.09.2018 to 29.09.2018
आज मैं अपनी पुणे यात्रा का तीसरा और अंतिम पार्ट लेकर आया हूं । विक्रम ने मुझे बजाज के गेट पर छोड़ा। फिर वहां पूरे दिन में एक मीटिंग चली एक कंपटीशन हुआ जिसमें में फर्स्ट आया।
वँहा मुझे अमित महाजन मिलें। पहले वो रुद्रपुर के बजाज ऑटो में ही थे। फिर उनकी ट्रांसफर हो गई थी पुणे ।उन्होंने मुझे लंच करवाया । हमने पंजाबी में खूब बातें की ।अपनी मां बोली में बोलने का अलग ही मज़ा होता है।उन्होंने मुझे एक दिलचस्प बात बताई यहां पुणे में 22 से लेकर 26 डिग्री तक तापमान रहता है जिसके कारण लोगों को पसीना नहीं आता । तो लोग पसीने के लिए पुणे में लोग मिर्च बहुत ज्यादा खाते हैं ।
शाम को मैं पुणे के लिए वापस निकला। फिर SV Raju सर मिले। वो एक कंपनी में
Vice president हैं। वह रुद्रपुर में हमारे साइकिलिंग क्लब में साइकिलिंग करने आते थे । उन्होंने 35 साल बाद हमारे साथ साईकिलिंग की थी।
फिर ट्रांसफर हो गया पुणे तो वो यंहा आ गए थे। मैं जैसे ही कार में बैठा तो मैंने देखा उन्होंने गले में कॉलर लगा रखा था । सर्वाईक्लक का दर्द था उन्हें। बातें शुरू हुई तो मैंने उनको इसके बारे में बताया कि ये अक्युप्रैशर से ठीक हो सकता है ।फिर उन्हें मैंने एक्यूप्रेशर के पॉइंट बताएं । अपनी एक कविता सुनाई।वो बहुत खुश हुए।उन्होंने मुझे निमंत्रण दिया कि अगली बार जब भी पूना आओ तो उनकी कंपनी में एक मोटिवेशन का लेक्चर देना। मैंने पहले भी उनकी कंपनी में रुद्रपुर में मोटिवेशन के ऊपर 1 घंटे का लैक्चर दिया था। फिर होटल आ गया खाना खा कर सो गया ।सुबह 4:00 बजे की ट्रेन थी। मैं 3:00 बजे की रेलवे स्टेशन पहुंच गया ट्रेन आई तो चल दिए मुसाफिर। सामने वाली सीट पर एक लड़का था फौजी ।वो लेह जा रहा था। साइड वाली सीट पर दो एक औरत अपनी बेटी के साथ थी । वह कहीं घूम कर वापस जा रही थी ।फिर 2 लोग और आ गए हम बातें करने लगे। बीच बीच में मैं देख रहा था कि वह औरतें आपस में बातें करती रहीं पहली हंसती रही, फिर वो रोने लगी। पुरानी सहेलियां थी अपने दुख सुख का आदान प्रदान कर रही थी। पुणे से दिल्ली 22 घंटे का सफर है ट्रेन में खाना पीना खाते रहे ।फिर सो गए जब दिल्ली पहुंचने वाला थे तो औरतों से हमारी बातचीत शुरू हुई। वो 5 औरतें थी जो अपने बच्चों के साथ मुंबई , नासिक, शिरडी घूम कर वापस जा रही थी दिल्ली।वह दिल्ली पुलिस में थी और हरियाणा से थी। फिर उन्होंने बताया वह हर साल अपनी कंही घूमने जाती है।
( मुझे भी अपने कॉलेज के गेट टुगेदर याद आ गई)
एक औरत अपने पति से बहुत दुखी थी। वह दूसरे को कह रही थी 30 साल हो गए उसे झेलते झेलते। उसकी सहेली का बेटा जवान हो रहा था ,तो उसने बोला मेरे को भगा के लेजा । मजाक कर रही थे, तेरी मां जाने नहीं देगी।
हम कहते हैं औरतें भावुक होती है, रोती हैं पर ना रोने वाले दिल तो पत्थर ही हो जाते हैं ,जैसे आदमी है। कुछ दिनों पहले पता पड़ी द बुक ऑफ मैन बाय ओशो याद आ गई। उसमें एक आदमी कहता है कि मुझे कभी कभी रोना आता है, तो ओशो ने बड़ी खूबसूरती से जवाब दिया, रोना अच्छी बात है। वैसे भी आदमी 40 % औरत ही है और 60% आदमी। जब भी हम करुणा , प्रेम से भरते हैं तो हम औरत हो जाते हैं। रोने से हमारे मन के कई दुख, चिंताएँ कम हो जाती हैं। परमात्मा ने औरत और आदमी में टीयर गलैंड बराबर बनाएं हैं, उसका कुछ तो उपयोग होगा? रोने के कारण औरतें बहुत कम पागल होती हैं, आदमी से औसत 5 साल ज्यादा उम्र जीती हैं, उनमें आदमी से ज्यादा सहनशीलता होती है।
औरतों की तरफ देखकर सोच रहा था कि हम आदमी भी कितने खुदगर्ज होते हैं कि जो खुद तो अकेले घूम लेते हैं और अपनी पत्नियों कोत् अपनी सहेलियों के साथ घूमने नहीं देते ।उनको भी मन की भावनाएं व्यक्त करने के लिए दूसरे से बातें करने का हक है।
दिल्ली पहुंचे दिल्ली से फिर बस पकड़ी और फिर मैं रुद्रपुर आ गया। फिर आप को लेकर चलूंगा एक नयी यात्रा पर। तब तक अलविदा।
#rajneesh_jass
27.09.2018 to 29.09.2018
आज मैं अपनी पुणे यात्रा का तीसरा और अंतिम पार्ट लेकर आया हूं । विक्रम ने मुझे बजाज के गेट पर छोड़ा। फिर वहां पूरे दिन में एक मीटिंग चली एक कंपटीशन हुआ जिसमें में फर्स्ट आया।
वँहा मुझे अमित महाजन मिलें। पहले वो रुद्रपुर के बजाज ऑटो में ही थे। फिर उनकी ट्रांसफर हो गई थी पुणे ।उन्होंने मुझे लंच करवाया । हमने पंजाबी में खूब बातें की ।अपनी मां बोली में बोलने का अलग ही मज़ा होता है।उन्होंने मुझे एक दिलचस्प बात बताई यहां पुणे में 22 से लेकर 26 डिग्री तक तापमान रहता है जिसके कारण लोगों को पसीना नहीं आता । तो लोग पसीने के लिए पुणे में लोग मिर्च बहुत ज्यादा खाते हैं ।
शाम को मैं पुणे के लिए वापस निकला। फिर SV Raju सर मिले। वो एक कंपनी में
Vice president हैं। वह रुद्रपुर में हमारे साइकिलिंग क्लब में साइकिलिंग करने आते थे । उन्होंने 35 साल बाद हमारे साथ साईकिलिंग की थी।
फिर ट्रांसफर हो गया पुणे तो वो यंहा आ गए थे। मैं जैसे ही कार में बैठा तो मैंने देखा उन्होंने गले में कॉलर लगा रखा था । सर्वाईक्लक का दर्द था उन्हें। बातें शुरू हुई तो मैंने उनको इसके बारे में बताया कि ये अक्युप्रैशर से ठीक हो सकता है ।फिर उन्हें मैंने एक्यूप्रेशर के पॉइंट बताएं । अपनी एक कविता सुनाई।वो बहुत खुश हुए।उन्होंने मुझे निमंत्रण दिया कि अगली बार जब भी पूना आओ तो उनकी कंपनी में एक मोटिवेशन का लेक्चर देना। मैंने पहले भी उनकी कंपनी में रुद्रपुर में मोटिवेशन के ऊपर 1 घंटे का लैक्चर दिया था। फिर होटल आ गया खाना खा कर सो गया ।सुबह 4:00 बजे की ट्रेन थी। मैं 3:00 बजे की रेलवे स्टेशन पहुंच गया ट्रेन आई तो चल दिए मुसाफिर। सामने वाली सीट पर एक लड़का था फौजी ।वो लेह जा रहा था। साइड वाली सीट पर दो एक औरत अपनी बेटी के साथ थी । वह कहीं घूम कर वापस जा रही थी ।फिर 2 लोग और आ गए हम बातें करने लगे। बीच बीच में मैं देख रहा था कि वह औरतें आपस में बातें करती रहीं पहली हंसती रही, फिर वो रोने लगी। पुरानी सहेलियां थी अपने दुख सुख का आदान प्रदान कर रही थी। पुणे से दिल्ली 22 घंटे का सफर है ट्रेन में खाना पीना खाते रहे ।फिर सो गए जब दिल्ली पहुंचने वाला थे तो औरतों से हमारी बातचीत शुरू हुई। वो 5 औरतें थी जो अपने बच्चों के साथ मुंबई , नासिक, शिरडी घूम कर वापस जा रही थी दिल्ली।वह दिल्ली पुलिस में थी और हरियाणा से थी। फिर उन्होंने बताया वह हर साल अपनी कंही घूमने जाती है।
( मुझे भी अपने कॉलेज के गेट टुगेदर याद आ गई)
एक औरत अपने पति से बहुत दुखी थी। वह दूसरे को कह रही थी 30 साल हो गए उसे झेलते झेलते। उसकी सहेली का बेटा जवान हो रहा था ,तो उसने बोला मेरे को भगा के लेजा । मजाक कर रही थे, तेरी मां जाने नहीं देगी।
हम कहते हैं औरतें भावुक होती है, रोती हैं पर ना रोने वाले दिल तो पत्थर ही हो जाते हैं ,जैसे आदमी है। कुछ दिनों पहले पता पड़ी द बुक ऑफ मैन बाय ओशो याद आ गई। उसमें एक आदमी कहता है कि मुझे कभी कभी रोना आता है, तो ओशो ने बड़ी खूबसूरती से जवाब दिया, रोना अच्छी बात है। वैसे भी आदमी 40 % औरत ही है और 60% आदमी। जब भी हम करुणा , प्रेम से भरते हैं तो हम औरत हो जाते हैं। रोने से हमारे मन के कई दुख, चिंताएँ कम हो जाती हैं। परमात्मा ने औरत और आदमी में टीयर गलैंड बराबर बनाएं हैं, उसका कुछ तो उपयोग होगा? रोने के कारण औरतें बहुत कम पागल होती हैं, आदमी से औसत 5 साल ज्यादा उम्र जीती हैं, उनमें आदमी से ज्यादा सहनशीलता होती है।
औरतों की तरफ देखकर सोच रहा था कि हम आदमी भी कितने खुदगर्ज होते हैं कि जो खुद तो अकेले घूम लेते हैं और अपनी पत्नियों कोत् अपनी सहेलियों के साथ घूमने नहीं देते ।उनको भी मन की भावनाएं व्यक्त करने के लिए दूसरे से बातें करने का हक है।
दिल्ली पहुंचे दिल्ली से फिर बस पकड़ी और फिर मैं रुद्रपुर आ गया। फिर आप को लेकर चलूंगा एक नयी यात्रा पर। तब तक अलविदा।
#journey_to_poona_part_2
#journey_to_poona_part_2
#story_of_success
#common_man_struggle
27.09.2018
सुबह उठा तो तैयार होकर बजाज जाने के लिए निकल पड़ा ।एक ऑटो किया उससे बातचीत शुरू हुई तो वह भी दिलचस्पी से बातें करने लगा। उसका नाम Vikram Chandrakant Motkar था, छोटा नाम विकी ।साउथ इंडियन टाइप मछें , स्मार्ट सा लड़का। वो अपनी कहानी सुनाने लगा। 7 साल की उम्र में उसके फादर उसे हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए थे। उसकी जिंदगी का संघर्ष वहीं से शुरू हो गया। उसने टाटा की कंपनी ज्वाइन करी जिसमें वह सफाई का करने लगा। उसके साथ के पढ़े हुए लड़के लड़कियां उसी ऑफिस में अफसर थे। वो उसको देख कर बहुत दुखी होते ,पर विक्की अपने काम में खुश रहता। सुबह सुबह दफ्तर में अपना सफाई करके और सब की पानी की बोतल में पानी भरकर एक जगह पर बैठ जाता ।
एक दिन उस से एक काँच का गिलास टूट गया। गिलास टूटने का मतलब कि उसको फाइन होना था। HR से फोन आया तो वहां डरता डरता पहुंचा। वो बोला, मुझे जुर्माना कर दीजिए कि मुझसे गिलास टूट गया है। पर वो बोले, तुम यह बताओ कि जब तुम को दफ्तर में काम करने के बाद अलग से बैठकर क्या लिखते हो? हमने सीसीटीवी में देखा है विक्की ने जवाब दिया, कि मेरी माँ कहती है, कि अकेला मन शैतान का घर होता है तो उसको किसी काम पर लगा कर रखो। तो मैं एक कापी पर राम राम का नाम लिखता हूँ ।
उन्होंने कहा तुम्हें कल इस काम पर आने की जरूरत नहीं है ।विक्की घबरा गया, क्योंकि ये नौकरी उसके लिए बेहद ज़रूरी थी।
उन्होने कहा, कल से तुम दफ्तर का एक दूसरा काम करोगे। कोरियर बांटना, फोटो स्टेट करने और ऐसे ओर सारे काम। तुम्हारी सैलरी बढ़ गई है ।यह काम करने के लिए तुम्हें एक मोटरसाइकिल भी दी जाती है। वह बहुत खुश हो गया ।
फिर उसको एक लड़की से प्यार हो गया जो कि उससे ज्यादा पढ़ी लिखी थी। लड़की के पिता को वह लड़का पसंद नहीं था। विकी ने अपने दफ्तर में बात की तो सारा स्टाफ उसका लड़की के घर पर पहुंच गया ।लड़की के पिता बड़े हैरान हो गए कि सभी लोग कारों में उसके घर पर पहुंचे थे ।जब उन्होंने विकी के बारे में उनको बताया तो वह बहुत भावुक हो गए थे। वहां की एक प्रथा है जमाई राजा के पैर लड़की की माँ पानी से पैर धोती है जो पहली बार घर आते हैं । फिर उसकी शादी हो गई उसकी बीवी ने उसको बहुत प्रेरित किया और आगे पढ़ने के लिए उसकी मदद की। कुछ महीने बाद उसके ससुर की एक जगह डेथ हो गई है ।वह मुझसे पूछ रहा था कि मुझे एक सवाल का जवाब चाहिए ,अगर कहीं परमात्मा है तो वह उससे वह हर प्यारी चीज क्यों छीन लेता है जो उसको अच्छी लगती है?
मेरे पास भी इस बात का कोई जवाब नहीं था।
वो पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी का बांसरी वादन भी सुनता है।
फिर वह बताने लगा कि उसके पास तीन-तीन माँ है ,एक अपनी मां, एक मौसी और सासु माँ। मौसी का बेटा, जिसके पास बहुत पैसा है पर अपनी मांँ को वह देखता नहीं है, उसकी देखभाल भी विक्री ही कर रहा है।
विक्की का एक सपना है कि उसका एक मकान हो उसको बहुत बड़ा मकान नहीं चाहिए। हम सबके भी कुछ ऐसे ही कुछ सपने हैं ।
मैंने दिल से दुआ की, परमात्मा इसका सपना जल्दी पुरा कर।
वह बातें करता करता है बता रहा था कि सर जब जैसे - जैसे ही मंजिल करीब आ रही है तो मैं सोच रहा हूं कि आप थोड़ी देर में मेरे से जुदा हो जाओगे , जो कि उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है।
फिर उसने रास्ते में मुझे नारियल पानी पिलाया। मैं पैसे देने लगा वह बोला ,अतिथि देवोभवः। वो Dog Breeding का काम करता है, फिर पार्ट टाइम आटो , Fruit Business और साथ में नौकरी।
"13 साल कम्प्लिट इन टाटा....
ऑफिस बॉय हाऊस किपिंग से स्टार्ट किया आज कस्टमर सर्व्हिस सिनियर एक्सिकेटीव्ह..."
उसने मेरी मंजिल पर मुझे छोड़ा और फिर आगे बढ़ गया । उसने मेरा फोन नंबर लिया और फेसबुक पर मेरे को ज्वाइन किया ।शहर में मेट्रो ट्रेन बन रही है जिसके कारण तेरी जगह पर ट्रैफिक जाम भी हो रहा है। अलविदा शाम को भी एक किस्सा हुआ उसको फिर कहीं शेयर करूंगा दोबारा से अपनी यात्रा में।
#rajneesh_jass
Rudrapur
Uttrakhand
#story_of_success
#common_man_struggle
27.09.2018
सुबह उठा तो तैयार होकर बजाज जाने के लिए निकल पड़ा ।एक ऑटो किया उससे बातचीत शुरू हुई तो वह भी दिलचस्पी से बातें करने लगा। उसका नाम Vikram Chandrakant Motkar था, छोटा नाम विकी ।साउथ इंडियन टाइप मछें , स्मार्ट सा लड़का। वो अपनी कहानी सुनाने लगा। 7 साल की उम्र में उसके फादर उसे हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए थे। उसकी जिंदगी का संघर्ष वहीं से शुरू हो गया। उसने टाटा की कंपनी ज्वाइन करी जिसमें वह सफाई का करने लगा। उसके साथ के पढ़े हुए लड़के लड़कियां उसी ऑफिस में अफसर थे। वो उसको देख कर बहुत दुखी होते ,पर विक्की अपने काम में खुश रहता। सुबह सुबह दफ्तर में अपना सफाई करके और सब की पानी की बोतल में पानी भरकर एक जगह पर बैठ जाता ।
एक दिन उस से एक काँच का गिलास टूट गया। गिलास टूटने का मतलब कि उसको फाइन होना था। HR से फोन आया तो वहां डरता डरता पहुंचा। वो बोला, मुझे जुर्माना कर दीजिए कि मुझसे गिलास टूट गया है। पर वो बोले, तुम यह बताओ कि जब तुम को दफ्तर में काम करने के बाद अलग से बैठकर क्या लिखते हो? हमने सीसीटीवी में देखा है विक्की ने जवाब दिया, कि मेरी माँ कहती है, कि अकेला मन शैतान का घर होता है तो उसको किसी काम पर लगा कर रखो। तो मैं एक कापी पर राम राम का नाम लिखता हूँ ।
उन्होंने कहा तुम्हें कल इस काम पर आने की जरूरत नहीं है ।विक्की घबरा गया, क्योंकि ये नौकरी उसके लिए बेहद ज़रूरी थी।
उन्होने कहा, कल से तुम दफ्तर का एक दूसरा काम करोगे। कोरियर बांटना, फोटो स्टेट करने और ऐसे ओर सारे काम। तुम्हारी सैलरी बढ़ गई है ।यह काम करने के लिए तुम्हें एक मोटरसाइकिल भी दी जाती है। वह बहुत खुश हो गया ।
फिर उसको एक लड़की से प्यार हो गया जो कि उससे ज्यादा पढ़ी लिखी थी। लड़की के पिता को वह लड़का पसंद नहीं था। विकी ने अपने दफ्तर में बात की तो सारा स्टाफ उसका लड़की के घर पर पहुंच गया ।लड़की के पिता बड़े हैरान हो गए कि सभी लोग कारों में उसके घर पर पहुंचे थे ।जब उन्होंने विकी के बारे में उनको बताया तो वह बहुत भावुक हो गए थे। वहां की एक प्रथा है जमाई राजा के पैर लड़की की माँ पानी से पैर धोती है जो पहली बार घर आते हैं । फिर उसकी शादी हो गई उसकी बीवी ने उसको बहुत प्रेरित किया और आगे पढ़ने के लिए उसकी मदद की। कुछ महीने बाद उसके ससुर की एक जगह डेथ हो गई है ।वह मुझसे पूछ रहा था कि मुझे एक सवाल का जवाब चाहिए ,अगर कहीं परमात्मा है तो वह उससे वह हर प्यारी चीज क्यों छीन लेता है जो उसको अच्छी लगती है?
मेरे पास भी इस बात का कोई जवाब नहीं था।
वो पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी का बांसरी वादन भी सुनता है।
फिर वह बताने लगा कि उसके पास तीन-तीन माँ है ,एक अपनी मां, एक मौसी और सासु माँ। मौसी का बेटा, जिसके पास बहुत पैसा है पर अपनी मांँ को वह देखता नहीं है, उसकी देखभाल भी विक्री ही कर रहा है।
विक्की का एक सपना है कि उसका एक मकान हो उसको बहुत बड़ा मकान नहीं चाहिए। हम सबके भी कुछ ऐसे ही कुछ सपने हैं ।
मैंने दिल से दुआ की, परमात्मा इसका सपना जल्दी पुरा कर।
वह बातें करता करता है बता रहा था कि सर जब जैसे - जैसे ही मंजिल करीब आ रही है तो मैं सोच रहा हूं कि आप थोड़ी देर में मेरे से जुदा हो जाओगे , जो कि उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है।
फिर उसने रास्ते में मुझे नारियल पानी पिलाया। मैं पैसे देने लगा वह बोला ,अतिथि देवोभवः। वो Dog Breeding का काम करता है, फिर पार्ट टाइम आटो , Fruit Business और साथ में नौकरी।
"13 साल कम्प्लिट इन टाटा....
ऑफिस बॉय हाऊस किपिंग से स्टार्ट किया आज कस्टमर सर्व्हिस सिनियर एक्सिकेटीव्ह..."
उसने मेरी मंजिल पर मुझे छोड़ा और फिर आगे बढ़ गया । उसने मेरा फोन नंबर लिया और फेसबुक पर मेरे को ज्वाइन किया ।शहर में मेट्रो ट्रेन बन रही है जिसके कारण तेरी जगह पर ट्रैफिक जाम भी हो रहा है। अलविदा शाम को भी एक किस्सा हुआ उसको फिर कहीं शेयर करूंगा दोबारा से अपनी यात्रा में।
#rajneesh_jass
Rudrapur
Uttrakhand
#journey_to_poona_part_1
#journey_to_poona_part_1
25.09.2018
आइए चलते हैं एक नई यात्रा पर। मुझे ऑफिशियल टूर पर पूना जाना था। बारिश इतनी हो रही थी, कि पूछो मत ।
दुकान से कुछ बेसिक मेडिसिन खरीद ली। इस बार यात्रा में एक नया एक्सपेरिमेंट किया गया, एक बनियान सिलाई गई जिसको पंजाबी में शायद पतूही कहते हैं ।उसके अंदर एक छिपी हुई जेब होती है, जो कि बहुत गहरी होती है, दो जेब सामने । यह पुराने समय में हमारे बुजुर्ग पहन के सफर करते थे।
बेटा रोकन बारिश में जाकर नमकीन के पैकेट लाया। सिमरन { मेरी धर्म पत्नी } ने सुबह के लिए परांठे पैक किए, साथ गुड़ और सौंफ भी।
जैसे तैसे करके रुद्रपुर रेलवे स्टेशन पहुंचा। ट्रेन रानीखेत एक्सप्रेस पकड़ी। दो-तीन लोग और थे। उन्हें दिल्ली जाना था। वह मजाक करने लगे भाई साहब ,आप उठ गया तो उन्हें जगा देना। अगर हम उठ गए तो हम आपको जगा देंगे। अगर कोई ना जागा, तो जैसलमेर पहुंच जाएंगे वहां घूम आएंगे। फिर सब सो गए रात को। सुबह पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचा।
सुबह 4:00 बजे रेलवे स्टेशन बहुत सुंदर लग रहा था ।उसको लाइटों से ऐसे सजा रखा था, जैसे को दुल्हन ने दूल्हे के इंतजार में श्रंगार कर रखा हो। वहां से मैं नई दिल्ली आ गया। वो स्टेशन भी ऐसे ही सजा हुआ था। फोटो वहां पर खींची ।इंतजार होने लगा अगली ट्रेन का ।ट्रेन अपने निर्धारित समय से एक घंटा लेट थी ।नाश्ता किया । स्टेशन के बाहर थोड़ी देर घुमा फिरा और फिर आकर बैठ गया ।ट्रेन आई तो चल दिए मुसाफिर मंजिल की तरफ । मैं हिंदी में अपने साथियों के साथ बात करने लगा ।वह बोले हम पंजाब से जाकर पूना रहने लगे हैं कोई बैंक एम्पलाई थे फिर तो हम शुरू हो गए भाई पंजाबी में। उसे खूब बातें हुई किस्से कहानियां पॉलिटिक्स बहुत कुछ । रात आई सो गए ।फिर अगले दिन मैं पुणे पहुंचे बहुत थक गया का फ्रेश हुआ नहाया खाना खाया।
नेशनल होटल रेलवे स्टेशन के बिल्कुल पास यह । बहुत पुराना होटल है बहाउल्ला इनके गुरु है जिनके 200 साल ही मना रहे हैं।
शाम हो चुकी थी मैं निकला फिर थोड़ा सा टहलने ।कोरेगांव पार्क गया वह ओशो आश्रम बंद हो चुका था ।उन्होंने बताया कि उसे पार्क खुला हुआ है तुम्हें वही चला गया। वहां बहुत पुरानी पुरानी पेड़ थे ,बांस के और बहुत नायाब किस्म के फूल थे । युगल प्रेमी एक दूसरे के हाथ में हाथ पकड़े घूम रहे थे ।महात्मा बुद्ध की दो मूर्तियाँ
थी, जो कि बेहतरीन नक्काशी गई थी। फिर टहलता हुआ बाहर निकला तो देखा सड़क के किनारे एक साइकिल पड़ा था। यहां पर किराए पर साइकिल मिलते हैं ।उसके बार कोड को मोबाइल से स्कैन करो और आप उसको पैसे पर करो तो ताला खुल जाता है ।यहां तक आपने जाना है जाएं और फिर वहां ताला लगा दें। पूरे शहर भर में ऐसी साइकिल पड़े हुए हैं ।एक अच्छी शुरुआत है ।
तभी बारिश होने लगी और आटो पकड़ के होटल आ गया ।रात का खाना खाया ।तो फिर होटल के मैनेजर से बात होने लगी उन्होंने अपने गुरु बहाउल्ला के बारे में बताया।
यह कॉम पूरे विश्व भर में है 5000000 लोग हैं। यह लोग पूरे विश्व को एक मानते हैं ।
दिल्ली में लोटस टेंपल बनाया है ।उन्होंने मुझे कुछ किताबें पढ़ने के लिए दी। दीवार पर बहुत ही खूबसूरत कलाक्रति थी। उन्होंने उसके बारे में बताया है कि यह भी एक नक्काशी की गई है।
मुझे सुबह उठकर कंपनी के काम जाना था तो फिर मैं आकर सो गया।
आगे है, एक दिलचस्प आदमी के संघर्ष की कहानी।
#rajneesh_jass
Rudrapur
Uttrakhand
India
25.09.2018
आइए चलते हैं एक नई यात्रा पर। मुझे ऑफिशियल टूर पर पूना जाना था। बारिश इतनी हो रही थी, कि पूछो मत ।
दुकान से कुछ बेसिक मेडिसिन खरीद ली। इस बार यात्रा में एक नया एक्सपेरिमेंट किया गया, एक बनियान सिलाई गई जिसको पंजाबी में शायद पतूही कहते हैं ।उसके अंदर एक छिपी हुई जेब होती है, जो कि बहुत गहरी होती है, दो जेब सामने । यह पुराने समय में हमारे बुजुर्ग पहन के सफर करते थे।
बेटा रोकन बारिश में जाकर नमकीन के पैकेट लाया। सिमरन { मेरी धर्म पत्नी } ने सुबह के लिए परांठे पैक किए, साथ गुड़ और सौंफ भी।
जैसे तैसे करके रुद्रपुर रेलवे स्टेशन पहुंचा। ट्रेन रानीखेत एक्सप्रेस पकड़ी। दो-तीन लोग और थे। उन्हें दिल्ली जाना था। वह मजाक करने लगे भाई साहब ,आप उठ गया तो उन्हें जगा देना। अगर हम उठ गए तो हम आपको जगा देंगे। अगर कोई ना जागा, तो जैसलमेर पहुंच जाएंगे वहां घूम आएंगे। फिर सब सो गए रात को। सुबह पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचा।
सुबह 4:00 बजे रेलवे स्टेशन बहुत सुंदर लग रहा था ।उसको लाइटों से ऐसे सजा रखा था, जैसे को दुल्हन ने दूल्हे के इंतजार में श्रंगार कर रखा हो। वहां से मैं नई दिल्ली आ गया। वो स्टेशन भी ऐसे ही सजा हुआ था। फोटो वहां पर खींची ।इंतजार होने लगा अगली ट्रेन का ।ट्रेन अपने निर्धारित समय से एक घंटा लेट थी ।नाश्ता किया । स्टेशन के बाहर थोड़ी देर घुमा फिरा और फिर आकर बैठ गया ।ट्रेन आई तो चल दिए मुसाफिर मंजिल की तरफ । मैं हिंदी में अपने साथियों के साथ बात करने लगा ।वह बोले हम पंजाब से जाकर पूना रहने लगे हैं कोई बैंक एम्पलाई थे फिर तो हम शुरू हो गए भाई पंजाबी में। उसे खूब बातें हुई किस्से कहानियां पॉलिटिक्स बहुत कुछ । रात आई सो गए ।फिर अगले दिन मैं पुणे पहुंचे बहुत थक गया का फ्रेश हुआ नहाया खाना खाया।
नेशनल होटल रेलवे स्टेशन के बिल्कुल पास यह । बहुत पुराना होटल है बहाउल्ला इनके गुरु है जिनके 200 साल ही मना रहे हैं।
शाम हो चुकी थी मैं निकला फिर थोड़ा सा टहलने ।कोरेगांव पार्क गया वह ओशो आश्रम बंद हो चुका था ।उन्होंने बताया कि उसे पार्क खुला हुआ है तुम्हें वही चला गया। वहां बहुत पुरानी पुरानी पेड़ थे ,बांस के और बहुत नायाब किस्म के फूल थे । युगल प्रेमी एक दूसरे के हाथ में हाथ पकड़े घूम रहे थे ।महात्मा बुद्ध की दो मूर्तियाँ
थी, जो कि बेहतरीन नक्काशी गई थी। फिर टहलता हुआ बाहर निकला तो देखा सड़क के किनारे एक साइकिल पड़ा था। यहां पर किराए पर साइकिल मिलते हैं ।उसके बार कोड को मोबाइल से स्कैन करो और आप उसको पैसे पर करो तो ताला खुल जाता है ।यहां तक आपने जाना है जाएं और फिर वहां ताला लगा दें। पूरे शहर भर में ऐसी साइकिल पड़े हुए हैं ।एक अच्छी शुरुआत है ।
तभी बारिश होने लगी और आटो पकड़ के होटल आ गया ।रात का खाना खाया ।तो फिर होटल के मैनेजर से बात होने लगी उन्होंने अपने गुरु बहाउल्ला के बारे में बताया।
यह कॉम पूरे विश्व भर में है 5000000 लोग हैं। यह लोग पूरे विश्व को एक मानते हैं ।
दिल्ली में लोटस टेंपल बनाया है ।उन्होंने मुझे कुछ किताबें पढ़ने के लिए दी। दीवार पर बहुत ही खूबसूरत कलाक्रति थी। उन्होंने उसके बारे में बताया है कि यह भी एक नक्काशी की गई है।
मुझे सुबह उठकर कंपनी के काम जाना था तो फिर मैं आकर सो गया।
आगे है, एक दिलचस्प आदमी के संघर्ष की कहानी।
#rajneesh_jass
Rudrapur
Uttrakhand
India
Tuesday, August 13, 2019
प्रेम की खोज
Love is to accept ourself as it is with good and bad habits.
Love is not to find "Perfect "
It is an art to see
" Imperfect " " Perfectly".
"प्रेम" खुद को अपनी खूबियाँ और कमजोरियों के साथ स्वीकार करना ही " प्रेम" है।
"प्रेम" किसी संपूर्णता की तलाश नहीं
बल्कि ,ये दूसरे इंसान की अपूर्णता के साथ उसे पूरा का पूरा स्वीकार करना ही "प्रेम" है।
मीराबाईं अपने आप में पूर्ण है,
बुद्ध अपने आप में पूर्ण।
मीराबाईं , अगर बुद्ध होने की कोशिश करती, तो ना ही मीराबाईं बन पाती ना बुद्ध।
हम सब भी कुछ ना कुछ होने की कोशिश में रहते हैं, पर अपने जैसे नहीं। यँही सारी गल्ती है।
मैं अपनी बात कर रहा हूँ, बाकी का नहीं कहा जा सकता।
ओशो कहते हैं, हर एक इंसान अनमोल है, अद्वितीय है, ना उसके जैसा इंसान पहले कभी इस धरती पर हुआ है और ना ही कभी होगा। पर हमारा दुख ये है हम पूरा जीवन खो देते हैं, बुद्ध जैसे होने में या मीराबाईं जैसे होने की दौड़ में। हम अपना गुणधर्म लेकर पैदा हुए हैं और उसे ही तराशने पर जीवन सफल होगा।
# रजनीश जस
#rajneesh_jass
Rudrapur
Distt Udham Singh Nagar
Uttrakhand
Love is not to find "Perfect "
It is an art to see
" Imperfect " " Perfectly".
"प्रेम" खुद को अपनी खूबियाँ और कमजोरियों के साथ स्वीकार करना ही " प्रेम" है।
"प्रेम" किसी संपूर्णता की तलाश नहीं
बल्कि ,ये दूसरे इंसान की अपूर्णता के साथ उसे पूरा का पूरा स्वीकार करना ही "प्रेम" है।
मीराबाईं अपने आप में पूर्ण है,
बुद्ध अपने आप में पूर्ण।
मीराबाईं , अगर बुद्ध होने की कोशिश करती, तो ना ही मीराबाईं बन पाती ना बुद्ध।
हम सब भी कुछ ना कुछ होने की कोशिश में रहते हैं, पर अपने जैसे नहीं। यँही सारी गल्ती है।
मैं अपनी बात कर रहा हूँ, बाकी का नहीं कहा जा सकता।
ओशो कहते हैं, हर एक इंसान अनमोल है, अद्वितीय है, ना उसके जैसा इंसान पहले कभी इस धरती पर हुआ है और ना ही कभी होगा। पर हमारा दुख ये है हम पूरा जीवन खो देते हैं, बुद्ध जैसे होने में या मीराबाईं जैसे होने की दौड़ में। हम अपना गुणधर्म लेकर पैदा हुए हैं और उसे ही तराशने पर जीवन सफल होगा।
# रजनीश जस
#rajneesh_jass
Rudrapur
Distt Udham Singh Nagar
Uttrakhand
Saturday, June 8, 2019
यात्रा गुरद्वारा नानकमत्ता साहब और पूर्णागिरी माता
गुरद्वारा नानकमत्ता साहब और पूर्णागिरी माता का सफर
04.06.2019
कुछ दिन पहले नानकमत्ता जाना हुआ । घर पर मेहमान आए हुए थे साली शालू, साँढू मिथिलेश और उनका बेटा रिधम । रुद्रपुर से निकले सारे लोग गाड़ी में । पेट्रोल डलवाया, टायरों में हवा चेक करवाई। बेटा वंश और रिधम सीट के पीछे डिग्गी में बैठ गए। मेरी धर्म पत्नी सिमरन, शालू और बेटा रोहन पिछली सीट पर, मैं और मिथिलेश आगे। हम निकले तो अंधेरा हो चुका था। सितारगंज होते हुए हम नानकमत्ता गुरुद्वारा पहुंचे । एक बहुत बड़ा गेट जिससे हम अंदर जाकर देखा दुकानें सजी हुई है ।
वहां पर नानकमत्ता गुरुद्वारा, जंगल में मंगल है। 60 कमरे हैं जिनमें एसी लगे हुए हैं उनका कोई किराया नहीं है। जब भी आप जाएं वहां रह सकते हैं। बिना ऐसी वाले कमरे हैं , एक हॉल है ऐसी श्रद्धा सिर्फ सिखों में ही देखने को मिलती है।
आइए कुछ जानते हैं, सिख समुदाय के बारे में।
नानक देव जी सिखों के पहले गुरू हैं। उन्होंने लंगर की प्रथा की शुरुआत की। उनके पिता मेहता कालू ने उनको ₹20 दिए और कहा, जाओ सच्चा सौदा करो । वह शहर की तरफ निकले तो उन्होंने कुछ साधु देखें जो के भूखे थे। उन्होंने उन को खाना खिलाया और वापस आ गये। पिताजी ने कहा यह कौन सा सच्चा सौदा हुआ? पर तब से लेकर आज तक लंगर की प्रथा चल रही है ।
खालसा एड करके एसोसिएशन ने जो भी पूरे संसार में काम करती है। सीरिया के बीच लड़ाई में उन्होंने जाकर लंगर लगाया , नेपाल में जब भूचाल आया वहां 800 के लगभग टीन के मकान बना कर लोगों को दिए और वहां पर भी लोगों को लंगर खिलाया। जम्मू कश्मीर में , उड़ीसा में, कर्नाटका में जब भी कहीं कोई तूफान या भूचाल आ जाए तो वहां पर बिना किसी के कहे हमारे सिख भाई खुद ही पहुंचकर लोगों की सेवा करते हैं। यही है सिखों का बड़प्पन।
इनका एक और भी रुप है, यह बहुत बहादुर कौम है । पाकिस्तान की लड़ाई में सिख रेजीमेंट ने जंग फतह की थी ।अभी कुछ दिन पहले " केसरी" फिल्म रिलीज हुई है जिसमें एक सच्ची लड़ाई है, कि 21 सिखों से 10 हजार मुसलमानों से युद्ध किया। चाहे वह सारे शहीद हो गए पर वह झुके नहीं। ऐसे ही इसराइल में लड़ाई है यहां पर सिख रेजीमेंट है फतेह किया। महाराजा रंजीत सिंह के समय सिखों का राज्य अफगानिस्तान तक था।
ओशो ने कहा है कि जब कभी , मान लो सारी दुनिया अगर तबाह हो जाए तो अगर एक सिख बचा रहा, तो तुम समझना के तुमने पूरी मनुष्यता को बचा लिया है। शेखर कपूर ने कहा था लड़कियों को कहा जाता है, अगर तुम कहीं मुसीबत में फंस जाओ तो तुम किसी भी सिख के पास पहुंच जाना वह अपनी जान देकर भी तुम्हारी रक्षा करेगा।
गुरु गोविंद सिंह जी के समय पर भाई कन्हैया जी थे जो कि सिखों को मल्हम पट्टी का काम करते थे, पर वो वह मुसलमानों में युद्ध के दौरान मलहम पट्टी कर देते थे ।गुरु गोविंद सिंह जी के पास शिकायत पहुंच भाई कन्हैया मुसलमानों को भी मलमपट्टी कर देते हैं जो हमारे दुश्मन हैं। गुरु गोविंद सिंह जी ने उन्हें बुलाया तो भाई कन्हैया ने कहा, कि मुझे सभी में आप का ही रूप दिखाई देता है , मुझे कोई दुश्मन दिखाई ही नहीं देता। तो गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा तो तुम अपने पास मश्क रखो और सभी को पानी पिलाया करो । भाई कन्हैया जी से अपनी इस काम के लिए हमेशा जाने जाएंगे और हमें अपने बच्चों को इस इतिहास के बारे में बताना चाहिए।
आईए लौटते हैं अपनी यात्रा की तरफ। देर रात होने के कारण गुरद्वारा साहब के दरवाजे बंद थे हमने बाहर से माथा टेका और लंगर खाने चले गए। सारी संगत लंगर खा रहे थी। छोटे-छोटे बच्चे रोटियां बांटे थे जिसको भी पंजाबी में "प्रशादा" कहा जाता है । रोटी, चावल ,सब्जी , दाल और हल्वा ( हल्वा को पंजाबी में कड़ाह प्रशाद कहा जाता है)। लँगर खाने के बाद हमने ठहरने के लिए कमरे का पता किया वहां कोई भी कमरा खाली नहीं था। हम निकल लिए होटल ढूंढने। पर वहां बहुत छोटे से कमरा मिल रहा था, जो सही नहीं लगा। हम वापस गुरुद्वारा आए और उनको रिक्वेस्ट किया। उन्होंने हमें दो गद्दे दिए और हम जाकर लेट गए दूसरे माले पर खुले आसमान के नीचे । सितारों को देखते हुए अलग अनुभव हो रहा था। सुबह 4:30 का अलार्म लगा कर सो गए । पहले तो हवा चलती रही फिर रात गरम भी हो गई। जब सुबह हुई तो फिर हम नहा धो कर माथा टेकने गए। शब्द लगा हुआ था
"किस नाल कीजे दोस्ती
सब जगह चलनहार"
यह शब्द गुरु नानक देव जी की गुरबाणी से लिए हुए हैं। इसका मतलब है, हे परमात्मा मैं किस से दोस्ती करूँ क्योंकि सारा जग तो एक दुनिया से विदा हो जाएगा। कोई ऐसा दोस्त हो जो सदा मेरे साथ रहे।
गुरुद्वारे के पीछे एक सरोवर हैं वहां बहुत सारी मछलियां है। एक तरफ एक नल का है उसका पानी लोग प्रसाद की तरह लेते हैं। फिर एक पीपल का पेड़ है जो कि बहुत पुराना है इसका भी गुरु नानक देव जी के साथ जुड़ाव है।
फिर हमने वहां से प्रशाद लिया और फिर निकल गया पूर्णागिरि के लिए। पूर्णागिरी माता की यँहा पर बहुत मान्यता है। गर्मियों की छुट्टियां हैं लोग डीजे लगाकर नाचते गाते हुए जा रहे थे ।रास्ते में शारदा नदी देखी जिसका बहाव बहुत तेज है। लोगों के घरों में कटहल, आम और लीची के पेड़ लगे हुए हैं। मिट्टी के घर बने हुए थे। हम सुबह 10:00 बजे पूर्णागिरी की चढ़ाई शुरू की । इर्द गिर्द दुकानें लगी हुई थी। धूप होने के कारण पानी की बोतलें हम साथ लेकर चल रहे थे ।पहाड़ी के शिखर पर ये मंदिर है। वहां पर माथा टेका और फिर वापस हो लिए। रास्ते में खाना खाया। फिर चल दिए मुसाफिर।
फिर शारदा नदी में बहाव बहुत तेज था ।बस पानी में पैर डाले । पानी ठंडा था और फिर वहां से हम निकल लिए सिद्ध बाबा मंदिर नेपाल की तरफ। हमें बता दिया गया था कि पैसे पहले ही निकलवा कर लेना ।तो आ एटीएम से पैसे निकलवा लिए । टनकपुर से बिल्कुल साथ में ही हो जगह है वहां पर अपनी गाड़ी पार्क की और वहां से टुकटुक लेकर डैम तक पहुंचे। यह डैम से थोड़ी दूर तक पैदल जाना पड़ता है। फिर वहां पर मोटरसाइकिल पर दोनों सवारीयाँ ले जा कर कुछ दूरी तक छोड़ देते हैं। वहां से फिर सिद्ध बाबा का का मंदिर है। आर्मी वाले वहां पर दोनों तरफ लोगों का सामान चेक करते हैं ।हमें मंदिर में माथा टेका । वहां एक के पीछे एक करके तीन मंदिर हैं। एक पुजारी ने कहा है यह सिद्ध बाबा का मंदिर है यहां पर जो मांगना है मांग लो। मैंने कहा उसने तो बहुत कुछ दे रखा है तो शुक्र करने आए हैं। मेरी तरफ देख रहा था ।
यहां पर पीले रंग के कपड़े के ताबीज की तरह बाँध रखे हैं, जिसकी तस्वीरें खीँची जो कि बहुत ही सुंदर लग रहे थे । पूर्णागिरि में यह लाल धागे होते हैं ,इनको देख कर अलग सी खुशी भी महसूस होती है।
जब हम वापस आने लगे तो वहां पर बादल हो गए। जब हम पैदल डैम तक पहुंचे बारिश होने लगी । हम पुलिस पोस्ट पर रुक गए। भयंकर बारिश हुई और ओले पड़ने लगे । इक टीन की छत्त के नीचे खड़े हो गए पर हम पूरे भीग गए। बच्चों को बहुत डर लगने लगा ,पुलिस वालों को रिक्वेस्ट करके हमने बच्चों को छत के नीचे पुलिस फोर्स वालों के पास भेज दिया। पुलिस वालों ने हमारी बहुत मदद की। हमें बारिश रुकने तक के लिए उन्होंने आगे जाने से मना किया, हम रुक गए। फिर उन्होंने टुकटुक वाले को फोन करके बुलाया और हम वापस आ गए।
आते हुए हमने उन पुलिस वालों का धन्यवाद किया। फिर हम निकल गए वहां से टनकपुर। हम नानकमत्ता जाने की सोचने लगे पर रास्ते में बहुत सारे पेड़ टूटे हुए थे, बिजली गुल थी। फिर बनबसा में एक होटल में हम रुके। भीगे कपड़े बदले। खाना खाया और फिर सो गए। फिर सुबह हम निकलिए रुद्रपुर के लिए।
फिर मिलेंगे एक नयी यात्रा में।
आपका अपना
रजनीश जस
04.06.2019
कुछ दिन पहले नानकमत्ता जाना हुआ । घर पर मेहमान आए हुए थे साली शालू, साँढू मिथिलेश और उनका बेटा रिधम । रुद्रपुर से निकले सारे लोग गाड़ी में । पेट्रोल डलवाया, टायरों में हवा चेक करवाई। बेटा वंश और रिधम सीट के पीछे डिग्गी में बैठ गए। मेरी धर्म पत्नी सिमरन, शालू और बेटा रोहन पिछली सीट पर, मैं और मिथिलेश आगे। हम निकले तो अंधेरा हो चुका था। सितारगंज होते हुए हम नानकमत्ता गुरुद्वारा पहुंचे । एक बहुत बड़ा गेट जिससे हम अंदर जाकर देखा दुकानें सजी हुई है ।
वहां पर नानकमत्ता गुरुद्वारा, जंगल में मंगल है। 60 कमरे हैं जिनमें एसी लगे हुए हैं उनका कोई किराया नहीं है। जब भी आप जाएं वहां रह सकते हैं। बिना ऐसी वाले कमरे हैं , एक हॉल है ऐसी श्रद्धा सिर्फ सिखों में ही देखने को मिलती है।
आइए कुछ जानते हैं, सिख समुदाय के बारे में।
नानक देव जी सिखों के पहले गुरू हैं। उन्होंने लंगर की प्रथा की शुरुआत की। उनके पिता मेहता कालू ने उनको ₹20 दिए और कहा, जाओ सच्चा सौदा करो । वह शहर की तरफ निकले तो उन्होंने कुछ साधु देखें जो के भूखे थे। उन्होंने उन को खाना खिलाया और वापस आ गये। पिताजी ने कहा यह कौन सा सच्चा सौदा हुआ? पर तब से लेकर आज तक लंगर की प्रथा चल रही है ।
खालसा एड करके एसोसिएशन ने जो भी पूरे संसार में काम करती है। सीरिया के बीच लड़ाई में उन्होंने जाकर लंगर लगाया , नेपाल में जब भूचाल आया वहां 800 के लगभग टीन के मकान बना कर लोगों को दिए और वहां पर भी लोगों को लंगर खिलाया। जम्मू कश्मीर में , उड़ीसा में, कर्नाटका में जब भी कहीं कोई तूफान या भूचाल आ जाए तो वहां पर बिना किसी के कहे हमारे सिख भाई खुद ही पहुंचकर लोगों की सेवा करते हैं। यही है सिखों का बड़प्पन।
इनका एक और भी रुप है, यह बहुत बहादुर कौम है । पाकिस्तान की लड़ाई में सिख रेजीमेंट ने जंग फतह की थी ।अभी कुछ दिन पहले " केसरी" फिल्म रिलीज हुई है जिसमें एक सच्ची लड़ाई है, कि 21 सिखों से 10 हजार मुसलमानों से युद्ध किया। चाहे वह सारे शहीद हो गए पर वह झुके नहीं। ऐसे ही इसराइल में लड़ाई है यहां पर सिख रेजीमेंट है फतेह किया। महाराजा रंजीत सिंह के समय सिखों का राज्य अफगानिस्तान तक था।
ओशो ने कहा है कि जब कभी , मान लो सारी दुनिया अगर तबाह हो जाए तो अगर एक सिख बचा रहा, तो तुम समझना के तुमने पूरी मनुष्यता को बचा लिया है। शेखर कपूर ने कहा था लड़कियों को कहा जाता है, अगर तुम कहीं मुसीबत में फंस जाओ तो तुम किसी भी सिख के पास पहुंच जाना वह अपनी जान देकर भी तुम्हारी रक्षा करेगा।
गुरु गोविंद सिंह जी के समय पर भाई कन्हैया जी थे जो कि सिखों को मल्हम पट्टी का काम करते थे, पर वो वह मुसलमानों में युद्ध के दौरान मलहम पट्टी कर देते थे ।गुरु गोविंद सिंह जी के पास शिकायत पहुंच भाई कन्हैया मुसलमानों को भी मलमपट्टी कर देते हैं जो हमारे दुश्मन हैं। गुरु गोविंद सिंह जी ने उन्हें बुलाया तो भाई कन्हैया ने कहा, कि मुझे सभी में आप का ही रूप दिखाई देता है , मुझे कोई दुश्मन दिखाई ही नहीं देता। तो गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा तो तुम अपने पास मश्क रखो और सभी को पानी पिलाया करो । भाई कन्हैया जी से अपनी इस काम के लिए हमेशा जाने जाएंगे और हमें अपने बच्चों को इस इतिहास के बारे में बताना चाहिए।
आईए लौटते हैं अपनी यात्रा की तरफ। देर रात होने के कारण गुरद्वारा साहब के दरवाजे बंद थे हमने बाहर से माथा टेका और लंगर खाने चले गए। सारी संगत लंगर खा रहे थी। छोटे-छोटे बच्चे रोटियां बांटे थे जिसको भी पंजाबी में "प्रशादा" कहा जाता है । रोटी, चावल ,सब्जी , दाल और हल्वा ( हल्वा को पंजाबी में कड़ाह प्रशाद कहा जाता है)। लँगर खाने के बाद हमने ठहरने के लिए कमरे का पता किया वहां कोई भी कमरा खाली नहीं था। हम निकल लिए होटल ढूंढने। पर वहां बहुत छोटे से कमरा मिल रहा था, जो सही नहीं लगा। हम वापस गुरुद्वारा आए और उनको रिक्वेस्ट किया। उन्होंने हमें दो गद्दे दिए और हम जाकर लेट गए दूसरे माले पर खुले आसमान के नीचे । सितारों को देखते हुए अलग अनुभव हो रहा था। सुबह 4:30 का अलार्म लगा कर सो गए । पहले तो हवा चलती रही फिर रात गरम भी हो गई। जब सुबह हुई तो फिर हम नहा धो कर माथा टेकने गए। शब्द लगा हुआ था
"किस नाल कीजे दोस्ती
सब जगह चलनहार"
यह शब्द गुरु नानक देव जी की गुरबाणी से लिए हुए हैं। इसका मतलब है, हे परमात्मा मैं किस से दोस्ती करूँ क्योंकि सारा जग तो एक दुनिया से विदा हो जाएगा। कोई ऐसा दोस्त हो जो सदा मेरे साथ रहे।
गुरुद्वारे के पीछे एक सरोवर हैं वहां बहुत सारी मछलियां है। एक तरफ एक नल का है उसका पानी लोग प्रसाद की तरह लेते हैं। फिर एक पीपल का पेड़ है जो कि बहुत पुराना है इसका भी गुरु नानक देव जी के साथ जुड़ाव है।
फिर हमने वहां से प्रशाद लिया और फिर निकल गया पूर्णागिरि के लिए। पूर्णागिरी माता की यँहा पर बहुत मान्यता है। गर्मियों की छुट्टियां हैं लोग डीजे लगाकर नाचते गाते हुए जा रहे थे ।रास्ते में शारदा नदी देखी जिसका बहाव बहुत तेज है। लोगों के घरों में कटहल, आम और लीची के पेड़ लगे हुए हैं। मिट्टी के घर बने हुए थे। हम सुबह 10:00 बजे पूर्णागिरी की चढ़ाई शुरू की । इर्द गिर्द दुकानें लगी हुई थी। धूप होने के कारण पानी की बोतलें हम साथ लेकर चल रहे थे ।पहाड़ी के शिखर पर ये मंदिर है। वहां पर माथा टेका और फिर वापस हो लिए। रास्ते में खाना खाया। फिर चल दिए मुसाफिर।
फिर शारदा नदी में बहाव बहुत तेज था ।बस पानी में पैर डाले । पानी ठंडा था और फिर वहां से हम निकल लिए सिद्ध बाबा मंदिर नेपाल की तरफ। हमें बता दिया गया था कि पैसे पहले ही निकलवा कर लेना ।तो आ एटीएम से पैसे निकलवा लिए । टनकपुर से बिल्कुल साथ में ही हो जगह है वहां पर अपनी गाड़ी पार्क की और वहां से टुकटुक लेकर डैम तक पहुंचे। यह डैम से थोड़ी दूर तक पैदल जाना पड़ता है। फिर वहां पर मोटरसाइकिल पर दोनों सवारीयाँ ले जा कर कुछ दूरी तक छोड़ देते हैं। वहां से फिर सिद्ध बाबा का का मंदिर है। आर्मी वाले वहां पर दोनों तरफ लोगों का सामान चेक करते हैं ।हमें मंदिर में माथा टेका । वहां एक के पीछे एक करके तीन मंदिर हैं। एक पुजारी ने कहा है यह सिद्ध बाबा का मंदिर है यहां पर जो मांगना है मांग लो। मैंने कहा उसने तो बहुत कुछ दे रखा है तो शुक्र करने आए हैं। मेरी तरफ देख रहा था ।
यहां पर पीले रंग के कपड़े के ताबीज की तरह बाँध रखे हैं, जिसकी तस्वीरें खीँची जो कि बहुत ही सुंदर लग रहे थे । पूर्णागिरि में यह लाल धागे होते हैं ,इनको देख कर अलग सी खुशी भी महसूस होती है।
जब हम वापस आने लगे तो वहां पर बादल हो गए। जब हम पैदल डैम तक पहुंचे बारिश होने लगी । हम पुलिस पोस्ट पर रुक गए। भयंकर बारिश हुई और ओले पड़ने लगे । इक टीन की छत्त के नीचे खड़े हो गए पर हम पूरे भीग गए। बच्चों को बहुत डर लगने लगा ,पुलिस वालों को रिक्वेस्ट करके हमने बच्चों को छत के नीचे पुलिस फोर्स वालों के पास भेज दिया। पुलिस वालों ने हमारी बहुत मदद की। हमें बारिश रुकने तक के लिए उन्होंने आगे जाने से मना किया, हम रुक गए। फिर उन्होंने टुकटुक वाले को फोन करके बुलाया और हम वापस आ गए।
आते हुए हमने उन पुलिस वालों का धन्यवाद किया। फिर हम निकल गए वहां से टनकपुर। हम नानकमत्ता जाने की सोचने लगे पर रास्ते में बहुत सारे पेड़ टूटे हुए थे, बिजली गुल थी। फिर बनबसा में एक होटल में हम रुके। भीगे कपड़े बदले। खाना खाया और फिर सो गए। फिर सुबह हम निकलिए रुद्रपुर के लिए।
फिर मिलेंगे एक नयी यात्रा में।
आपका अपना
रजनीश जस
Sunday, June 2, 2019
बेल का शरबत
26.04.2019
आइए आज आपको बेल का शरबत पिलाते हैं। बेल एशियन देशों में पाए जाने वाला 10 से 13 मीटर ऊंचा पेड़ है। इसके पत्तों की से शिवजी की पूजा की जाती है । माना जाता है इसमें शिव का वास है। आमतौर पर बेल का पेड़ मंदिरों में लगाया जाता है । इस पर कांटे भी होते हैं।
आइए आज आपको बेल का शरबत पिलाते हैं। बेल एशियन देशों में पाए जाने वाला 10 से 13 मीटर ऊंचा पेड़ है। इसके पत्तों की से शिवजी की पूजा की जाती है । माना जाता है इसमें शिव का वास है। आमतौर पर बेल का पेड़ मंदिरों में लगाया जाता है । इस पर कांटे भी होते हैं।
नेपाल में इसका फल लड़कियों को दिया जाता है और यह वहां पर यह मान्यता है कि इसका फल अगर नहीं टूटता, उतने दिन तक वह लड़की सुहागिन रहती है।
आईए मुड़ते हैं बेल के शरबत पर। यह पेट की बीमारियों, बवासीर, अल्सर, भूख ना लगने जैसी बीमारियों पर खाया जा सकता है।
शरबत बनाने के लिए इसके फल की सख्त खोल को तोड़ कर उसे से गुद्दा निकाला जाता है। उसके चीनी का पानी डालकर उसे घुमाया जाता है , उसे छननी से छानकर बीज अलग किए जाते हैं। ऐसे मीठा शरबत तैयार होता है। इसमें विटामिन ए और विटामिन सी बहुत मात्रा में पाया जाता है।
रुद्रपुर में यह आमतौर पर किस जगह से हिल जाता है । गर्मियों की इस चिलचिलाती धूप में एक बार में एक बार रुके, बेल का शरबत पीएँ।
रुद्रपुर में यह आमतौर पर किस जगह से हिल जाता है । गर्मियों की इस चिलचिलाती धूप में एक बार में एक बार रुके, बेल का शरबत पीएँ।
तस्वीर में इस भाई साहब का नाम किशन लाल है। यह पीलीभीत यूपी से हैं और यहां पर बेल का शरबत , नींबू पानी, सोडा पानी, जलजीरा एक ही रेहड़ी पर इतनी वैरायटी रखे हुए हैं । यह सिडकुल से को आवास विकास की तरफ आते हुए रास्ते में है।
दूसरी एक रेहड़ी भगत सिंह चौक पर भी है । यह वह लोग हैं जिनका नाम कभी कहीं नहीं आता, पर हमारे यह लोग मेहनत करके एक स्वाद पैदा करते हैं तो चलिए इनका भी शुक्र करते हैं।
मैं इन लोगों को के बारे में इसलिए भी लिखता हूँ कि वह लोग हैं यू कोल्ड ड्रिंक के इस दौर में हमारे भारत का स्वाद जिंदा रखे हुए हैं। वर्ना कोल्ड ड्रिंक कंपनियों और पिज्जा के मालिक वे लोग हैं अगर इनका बस चले तो सुबह से लेकर शाम तक की उपयोग होने वाले पानी , घर की बनी रोटी, दाल, हवा सब कुछ हमें डिब्बों में पैक करके बेचें और करोड़ों रुपया कमाएँ।
आज के लिए अलविदा , फिर मिलूंगा एक नए किस्से के साथ।
रजनीश जस
#rajneesh_jass
Rudrarpur
Uttrakhand
रजनीश जस
#rajneesh_jass
Rudrarpur
Uttrakhand
ਐਲਡਸ ਹਕਸਲੇ ਦਾ ਨਾਵਲ ਨਵਾਂ ਤਕੜਾ ਸੰਸਾਰ ਤੇ ਮੌਜੂਦਾ ਜੀਵਨ
ਗਲੀ ਵਿਚ ਇਹ ਤੌਲੀਏ ਬਿਕਣ ਆਏ 80 ਰੁਪਏ ਕਹਿ ਰਿਹਾ ਸੀ ਤੇ 50 ਦੇ ਵੇਚ ਗਿਆ। ਹੱਥ ਨਾਲ ਬਣੇ ਇਹ ਜੇ ਕੀਤੇ ਸ਼ੋਰੂਮ ਤੇ ਹੋਣ ਤਾਂ ਕਿੰਨੇ ਮਹਿੰਗੇ ਵਿਕ ਜਾਣ? ਕਈ ਲੋਕਾਂ ਨੇ 30 ਰੁਪਏ ਵਿਚ ਵੀ ਖਰੀਦੇ।
ਉਹ ਦੱਸ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕੇ ਇਹ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਜ਼ਨਾਨੀਆਂ
ਬਣਾਉਂਦੀਆਂ ਨੇ ਤੇ ਉਹ ਸ਼ਹਿਰ ਆਕੇ ਇਹ ਵੇਚਦੇ ਨੇ।
ਇਹ ਸਭ ਵੇਖਕੇ ਮੈਨੂੰ " ਮ੍ਹਟਰੂ ਬਿਜਲੀ ਕਾ ਮੰਡੋਲਾ "ਫਿਲਮ ਦਾ ਡਾਇਲਾਗ ਯਾਦ ਆ ਗਿਆ
ਖਾਲੀ ਜਗ੍ਹਾ ਵੇਖਕੇ ਇਕ ਮੰਤਰੀ ਕਿਸੇ ਇੰਡਸਟਰੀ ਵਾਲੇ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰਦਾ ਹੈ ਇਥੇ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀਆਂ ਫੈਕ੍ਟਰੀਆਂ ਲੱਗ ਸਕਦੀਆਂ ਨੇ। ਦੂਜਾ ਕਹਿੰਦਾ ਫਿਰ ਉਸ ਵਿਚ ਲੋਕ ਕੰਮ ਕਰਕੇ ਅਮੀਰ ਹੋ ਜਾਣਗੇ । ਤਾਂ ਪਹਿਲਾ ਹੱਸਕੇ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਨਹੀਂ ਅਜਿਹਾ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ਅਸੀਂ ਲਾਗੇ ਇਕ ਬਿਗ ਬਾਜ਼ਾਰ ਬਣਾਵਾਂਗੇ ਉਥੇ ਅਜਿਹਾ ਸਮਨ ਵੇਚਾਂਗੇ ਜੋ ਕੇ ਪੈਸੇ ਘੁੱਮ ਫਿਰ ਕੇ ਸਾਡੀ ਝੋਲੀ ਵਿਚ ਹੀ ਆ ਜਾਏਗਾ ।
ਇਹੀ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਅੱਜਕਲ ਟੈਕਸੀ ਅਸੀਂ ਮੋਬਾਈਲ ਤੇ ਬੁਕ ਕਰਦੇ ਹਾਂ , ਹੁਣ ਆਨਲਾਈਨ ਖਾਣਾ ਬੁੱਕ ਕਰਕੇ ਘਰ ਮੰਗਵਾ ਲੈਂਦੇਹਹਾਂ। ਹਰ ਚੀਜ਼ ਬੈਠ ਬਿਠਾਏ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਈ ਹੈ ।
ਹੌਲੀ ਹੌਲੀ ਅਸੀਂ ਮਸ਼ੀਨ ਨਾਲ ਇੰਨੇ ਘਿਰ ਗਏ ਹਾਂ ਕੇ ਇਸ ਬਿਨਾ ਜੀਉਣਾ ਬਹੁਤ ਔਖਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ।
ਮੈਨੂੰ ਯਾਦ ਆਆਉਂਦਾ ਹੈ ਮੈਂ ਦਸਵੀ ਕਲਾਸ ਚ ਅਲਡੈਸ ਹਕਸਲੇ ਦਾ ਨਾਵਲ "ਨਵਾਂ ਤਕਡ਼ ਸੰਸਾਰ ਪੜ੍ਹਿਆਂ ਸੀ । ਮੈਂ ਇੰਨਾ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ ਕੇ ਕਈ ਦਿਨ ਤਕ ਇਕ ਅਜੀਬ ਸੋਚ ਵਿਚ ਡੁੱਬਾ ਰਿਹਾ ।
ਇਹ ਨਾਵਲ ਅੱਜਕਲ ਸਾਰਥਕ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਸ ਨਾਵਲ ਵਿਚ ਬੱਚੇ ਟੈਸਟ ਟਿਊਬ ਵਿਚ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਕ ਬੰਦਾ ਇਹ ਸਭ ਵੇਖਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਲੋਕ ਖੁਸ਼ ਹੋਣ ਲਈ ਸੋਮਾ ਨਾਮ ਦੀ ਦਵਾਈ ਖਾਂਦੇ ਨੇ। ਇਕ ਮਜ਼ਦੂਰ ਕਲਾਸ ਹੈ , ਇਕ ਮੈਨੇਜਰ। ਜੇ ਮੈਨੇਜਰ ਕਿਸੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਦੇ ਥੱਪੜ ਵੀ ਮਾਰ ਦੇਵੇ ਤਾ ਉਹ ਵਿਰੋਧ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
ਉਹ ਬੰਦਾ ਕਹਿੰਦਾ ਇਹ ਤਾ ਸਹੀ ਨਹੀਂ ਤਾ ਉਹ ਡਾਕਟਰ ਕਹਿੰਦਾ ਇਸ ਨਾਲ ਸ਼ਹਿਰ ਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣੀ ਰਹੇਗੀ ।ਉਹ ਸਭ ਡਾਕਟਰ ਨਾਲ ਬਹਿਸ ਕਰਦਾ ਹੈ।
ਆਖਿਰ ਵਿਚ ਉਹ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਗੋਲੀ ਮਾਰਕੇ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਇਹ ਨਾਵਲ ਲਗਭਗ 1910 ਚ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ਪਰ ਅੱਜ ਵੀ ਇਹ ਓ ਹੀ ਸਾਰਥਕ ਹੈ ।
ਮੈਂ ਨਿਰਾਸ਼ ਨਹੀਂ ਹਾਂ ਬੱਸ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ਜਦ ਵੀ ਹੇਠ ਦੇ ਕਾਰੀਗਰ ਸਮਾਂ ਵੇਚਣ ਤਾ ਓਹਨਾ ਨੂੰ ਵਾਜਿਬ ਦਾਮ ਦਿਓ ।
ਅਸੀਂ ਬਿਗ ਬਾਜ਼ਾਰ ਜਾਕੇ ਬਰਾਂਡਿਡ ਸਾਮਾਨ ਖਰੀਦ ਦੇ ਹਾਂ ਜਿਸ ਨਾਲ ਪੈਸੇ ਕੁਝ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਹੋਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ ਹੈ ।
ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖਦਾ ਹਾਂ, ਪਤੀ ਪਤਨੀ ਦੋਵੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰ ਰਹੇ ਨੇ। ਪੈਸੇ ਜੋੜਣ ਲਈ
20 ਸਾਲ ਮਕਾਨ ਦੀਆਂ ਕਿਸ਼ਤਾਂ, ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦੇ ਚੱਕਰਵਿਊ ਚ ਫਸਿਆ ਮੱਧ ਵਰਗੀ ਪਰਿਵਾਰ।
ਪੈਸੇ ਆਉਂਦਾ ਤਾ ਹੈ ਪਰ ਘੁੱਮ ਫਿਰਕੇ ਫਿਰ ਸਰਮਾਏਦਾਰ ਦ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਚਲਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਫਿਰ ਵੀ ਮੈਂ ਚੰਗੇ ਭਵਿੱਖ ਦੀ ਕਾਮਨਾ ਕਰਦਾ ਹਾਂ।
ਰਾਵਿੰਦਰਨਾਥ ਟੈਗੋਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ,
"ਹਰ ਨਵਾਂ ਜੰਮਦਾ ਬੱਚਾ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਕ ਹੈ ਕਿ ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਨਿਰਾਸ਼ ਨਹੀਂ ਹੈ।"
ਸੋ ਅਸੀਂ ਵੀ ਉਮੀਦ ਰੱਖਿਏ ਚੰਗੇ ਵਰਤਮਾਨ ਦੀ, ਵਰਤਮਾਨ ਦੀ ਕੁੱਖ ਚ ਜੰਮ ਰਹੇ ਭਵਿੱਖ ਦੀ ।
ਇਕ ਗੀਤ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਸਤਰਾਂ ਯਾਦ ਆਉਂਦੀਆਂ ਨੇ
ਇਨ ਕਾਲੀ ਸਦਿਯੋੰ ਕੇ ਸਰ ਸੇ
ਜਬ ਰਾਤ ਕਾ ਆਂਚਲ ਢਲਕੇਗਾ
ਜਬ ਅੰਬਰ ਝੂਮ ਕੇ ਨਾਚੇਗਾ
ਜਬ ਧਰਤੀ ਨਗ਼ਮੇ ਗਾਏਗੀ
ਵੋ ਸੁਬਹ ਕਭੀ ਤੋਂ ਆਏਗੀ
ਵੋ ਸੁਬਹ ਕਭੀ ਤੋਂ ਆਏਗੀ
#ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ
ਉਤਰਾਖੰਡ
#rajneesh_jass
ਉਹ ਦੱਸ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕੇ ਇਹ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਜ਼ਨਾਨੀਆਂ
ਬਣਾਉਂਦੀਆਂ ਨੇ ਤੇ ਉਹ ਸ਼ਹਿਰ ਆਕੇ ਇਹ ਵੇਚਦੇ ਨੇ।
ਇਹ ਸਭ ਵੇਖਕੇ ਮੈਨੂੰ " ਮ੍ਹਟਰੂ ਬਿਜਲੀ ਕਾ ਮੰਡੋਲਾ "ਫਿਲਮ ਦਾ ਡਾਇਲਾਗ ਯਾਦ ਆ ਗਿਆ
ਖਾਲੀ ਜਗ੍ਹਾ ਵੇਖਕੇ ਇਕ ਮੰਤਰੀ ਕਿਸੇ ਇੰਡਸਟਰੀ ਵਾਲੇ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰਦਾ ਹੈ ਇਥੇ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀਆਂ ਫੈਕ੍ਟਰੀਆਂ ਲੱਗ ਸਕਦੀਆਂ ਨੇ। ਦੂਜਾ ਕਹਿੰਦਾ ਫਿਰ ਉਸ ਵਿਚ ਲੋਕ ਕੰਮ ਕਰਕੇ ਅਮੀਰ ਹੋ ਜਾਣਗੇ । ਤਾਂ ਪਹਿਲਾ ਹੱਸਕੇ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਨਹੀਂ ਅਜਿਹਾ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ਅਸੀਂ ਲਾਗੇ ਇਕ ਬਿਗ ਬਾਜ਼ਾਰ ਬਣਾਵਾਂਗੇ ਉਥੇ ਅਜਿਹਾ ਸਮਨ ਵੇਚਾਂਗੇ ਜੋ ਕੇ ਪੈਸੇ ਘੁੱਮ ਫਿਰ ਕੇ ਸਾਡੀ ਝੋਲੀ ਵਿਚ ਹੀ ਆ ਜਾਏਗਾ ।
ਇਹੀ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਅੱਜਕਲ ਟੈਕਸੀ ਅਸੀਂ ਮੋਬਾਈਲ ਤੇ ਬੁਕ ਕਰਦੇ ਹਾਂ , ਹੁਣ ਆਨਲਾਈਨ ਖਾਣਾ ਬੁੱਕ ਕਰਕੇ ਘਰ ਮੰਗਵਾ ਲੈਂਦੇਹਹਾਂ। ਹਰ ਚੀਜ਼ ਬੈਠ ਬਿਠਾਏ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਈ ਹੈ ।
ਹੌਲੀ ਹੌਲੀ ਅਸੀਂ ਮਸ਼ੀਨ ਨਾਲ ਇੰਨੇ ਘਿਰ ਗਏ ਹਾਂ ਕੇ ਇਸ ਬਿਨਾ ਜੀਉਣਾ ਬਹੁਤ ਔਖਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ।
ਮੈਨੂੰ ਯਾਦ ਆਆਉਂਦਾ ਹੈ ਮੈਂ ਦਸਵੀ ਕਲਾਸ ਚ ਅਲਡੈਸ ਹਕਸਲੇ ਦਾ ਨਾਵਲ "ਨਵਾਂ ਤਕਡ਼ ਸੰਸਾਰ ਪੜ੍ਹਿਆਂ ਸੀ । ਮੈਂ ਇੰਨਾ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ ਕੇ ਕਈ ਦਿਨ ਤਕ ਇਕ ਅਜੀਬ ਸੋਚ ਵਿਚ ਡੁੱਬਾ ਰਿਹਾ ।
ਇਹ ਨਾਵਲ ਅੱਜਕਲ ਸਾਰਥਕ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਸ ਨਾਵਲ ਵਿਚ ਬੱਚੇ ਟੈਸਟ ਟਿਊਬ ਵਿਚ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਕ ਬੰਦਾ ਇਹ ਸਭ ਵੇਖਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਲੋਕ ਖੁਸ਼ ਹੋਣ ਲਈ ਸੋਮਾ ਨਾਮ ਦੀ ਦਵਾਈ ਖਾਂਦੇ ਨੇ। ਇਕ ਮਜ਼ਦੂਰ ਕਲਾਸ ਹੈ , ਇਕ ਮੈਨੇਜਰ। ਜੇ ਮੈਨੇਜਰ ਕਿਸੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਦੇ ਥੱਪੜ ਵੀ ਮਾਰ ਦੇਵੇ ਤਾ ਉਹ ਵਿਰੋਧ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
ਉਹ ਬੰਦਾ ਕਹਿੰਦਾ ਇਹ ਤਾ ਸਹੀ ਨਹੀਂ ਤਾ ਉਹ ਡਾਕਟਰ ਕਹਿੰਦਾ ਇਸ ਨਾਲ ਸ਼ਹਿਰ ਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣੀ ਰਹੇਗੀ ।ਉਹ ਸਭ ਡਾਕਟਰ ਨਾਲ ਬਹਿਸ ਕਰਦਾ ਹੈ।
ਆਖਿਰ ਵਿਚ ਉਹ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਗੋਲੀ ਮਾਰਕੇ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਇਹ ਨਾਵਲ ਲਗਭਗ 1910 ਚ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ਪਰ ਅੱਜ ਵੀ ਇਹ ਓ ਹੀ ਸਾਰਥਕ ਹੈ ।
ਮੈਂ ਨਿਰਾਸ਼ ਨਹੀਂ ਹਾਂ ਬੱਸ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ਜਦ ਵੀ ਹੇਠ ਦੇ ਕਾਰੀਗਰ ਸਮਾਂ ਵੇਚਣ ਤਾ ਓਹਨਾ ਨੂੰ ਵਾਜਿਬ ਦਾਮ ਦਿਓ ।
ਅਸੀਂ ਬਿਗ ਬਾਜ਼ਾਰ ਜਾਕੇ ਬਰਾਂਡਿਡ ਸਾਮਾਨ ਖਰੀਦ ਦੇ ਹਾਂ ਜਿਸ ਨਾਲ ਪੈਸੇ ਕੁਝ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਹੋਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ ਹੈ ।
ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖਦਾ ਹਾਂ, ਪਤੀ ਪਤਨੀ ਦੋਵੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰ ਰਹੇ ਨੇ। ਪੈਸੇ ਜੋੜਣ ਲਈ
20 ਸਾਲ ਮਕਾਨ ਦੀਆਂ ਕਿਸ਼ਤਾਂ, ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦੇ ਚੱਕਰਵਿਊ ਚ ਫਸਿਆ ਮੱਧ ਵਰਗੀ ਪਰਿਵਾਰ।
ਪੈਸੇ ਆਉਂਦਾ ਤਾ ਹੈ ਪਰ ਘੁੱਮ ਫਿਰਕੇ ਫਿਰ ਸਰਮਾਏਦਾਰ ਦ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਚਲਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਫਿਰ ਵੀ ਮੈਂ ਚੰਗੇ ਭਵਿੱਖ ਦੀ ਕਾਮਨਾ ਕਰਦਾ ਹਾਂ।
ਰਾਵਿੰਦਰਨਾਥ ਟੈਗੋਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ,
"ਹਰ ਨਵਾਂ ਜੰਮਦਾ ਬੱਚਾ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਕ ਹੈ ਕਿ ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਨਿਰਾਸ਼ ਨਹੀਂ ਹੈ।"
ਸੋ ਅਸੀਂ ਵੀ ਉਮੀਦ ਰੱਖਿਏ ਚੰਗੇ ਵਰਤਮਾਨ ਦੀ, ਵਰਤਮਾਨ ਦੀ ਕੁੱਖ ਚ ਜੰਮ ਰਹੇ ਭਵਿੱਖ ਦੀ ।
ਇਕ ਗੀਤ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਸਤਰਾਂ ਯਾਦ ਆਉਂਦੀਆਂ ਨੇ
ਇਨ ਕਾਲੀ ਸਦਿਯੋੰ ਕੇ ਸਰ ਸੇ
ਜਬ ਰਾਤ ਕਾ ਆਂਚਲ ਢਲਕੇਗਾ
ਜਬ ਅੰਬਰ ਝੂਮ ਕੇ ਨਾਚੇਗਾ
ਜਬ ਧਰਤੀ ਨਗ਼ਮੇ ਗਾਏਗੀ
ਵੋ ਸੁਬਹ ਕਭੀ ਤੋਂ ਆਏਗੀ
ਵੋ ਸੁਬਹ ਕਭੀ ਤੋਂ ਆਏਗੀ
#ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ
ਉਤਰਾਖੰਡ
#rajneesh_jass
Wednesday, April 17, 2019
Journey to Delhi Nizzamuddin and Osho Ashram Pune Part -2
यूं तो मैंने ओशो की दीक्षा 1997 में ली थी। उस वक्त इतनी समझ नहीं थी। ओशो कहते हैं जिंदगी में ऊपर उड़ने के लिए दो पंख जरूरी हैं, उसमें से एक पंख ध्यान का है दूसरा पैसे का है । वह कहते हैं संसार से भागना नहीं , बल्कि जागना है। संसार से भाग कर जाओगे भी कहां? जहां हो वही काम करो, क्रोध आएगा काम आएगा, उस में रहोगे हुए तभी तो उस से पार जाने का रास्ता मिलेगा।
ओशो आश्रम अंतरराष्ट्रीय लेवल का है। यहां पर हर एंटरी डिजिटल पास से होती है। पूरा आश्रम ऊंचे ऊंचे पेड़ों से घिरा हुआ है। वहां पर कई सन्यासी रहते हैं जो वहीं आश्रम में ही काम करते हैं। पूरी दुनिया भर के लोग यहां पर आते हैं। यँहा पर फोटो खींचना मना है । मेर फोटो आश्रम के बाहर मेन गेट पर है। बाकी दो गूगल बाबा से ली गई हैं।
मैनें वहां पर एंटरी की । मैरून और सफेद चोला खरीदा। हम लगभग 12 लोग थे, दो न्यूजीलैंड से, बाकी हम भारतीय। उन्होंने हमें आश्रम के नियमों के बारे में बताया और दिन की होने वाली मेडीटेशन की विधियों के बारे में बताया। हमारे बिल्कुल पास ही मोर गुज़रा तो देखता हूंँ ओपन डांस चल रहा है। वहां थोड़ी देर डाँस किया ।
वहां इतना कुदरती माहौल था कि आश्रम के अंदर मोर घूम रहे थे ।जब हम चाय पी रहे थे तो हमारे बिल्कुल पास से मोरत् गुज़रा। हर जगह पर सारे हैं अंदर स्विमिंग पूल है, हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं, ओशो की राल्स रॉयस कार खड़ी है।
उसके बाद में बुद्धा हाल मेडिटेशन करने के लिए गए। ये हाल ब्लैक मार्बल का बना पिरामिड है । इसमें हजार के लगभग लोग एक ही समय मेडीटेशन कर सकते हैं। उसके बाद मैंने खाना पीना खाया और एक मेडिटेशन चक्रा साऊंड की। यह ध्यान करते हुए पूरा शरीर चार्ज सा हो गया था। बिल्कुल अलग किस्म का अनुभव था । हमने फिर कुंडलिनी मेडिटेशन की। थोड़ी देर बाद में शाम की ओशो दर्शन हुआ। उसने सभी लोग सफेद रंग का चोला पहन कर आते हैं । ओशो का प्रवचन सुना। उन्होंने कहा है जीवन में एक ही दुरभाग्य है, खुद को जाने बिना यहां से संसार से विदा हो जाना । ओशो का सपना रहा है वो कम्यून बनाएं यहां पर लोग आजादी से रह सकें। दुनिया भर के आज तक जितने भी बुद्ध पुरुष या बुद्धत्व औरतें हुई हैं, उन पर सब पर उन्होंने अपने प्रवचन दिए हैं । बुद्ध, मीरा, कबीर , जराथुस्तरा , लाओत्से , राबिया, गुरु नानक देव जी पर प्रवचन दिए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा उन्होंने बुद्ध को ही सराहा है। उन्होंने कहा जैसे आसमान में सितारे तो बहुत है पर ध्रुवतारा एक है, ऐसे ही बुद्ध हैं। बुद्ध कभी
आस्तिकता या नास्तिकता की बात नहीं करते। वह कहते हैं तुम स्वयं जानो। " अप्प दीपो भव:।
ओशो का यही संदेश है, उत्सव हमार जाति आनंद अमार गोत्र। उन्होंने कहा ये सब कुछ सूरज, पृथ्वी, चांद , सितारे ,फूल, एटम ,इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन , सब उत्सव में हैं। उन्होंने कहा, अगर जब कभी दुनिया में वर्ल्ड वार मूवी हो गई, अगर कहीं अटम बम गिर भी रहे होंगेततो भी मेरे सन्यासी नीचे जीवन का उत्सव मना रहे होंगे।
ओशो (1931 -1990) का जन्म मध्य प्रदेश, कुचवाड़ा के परिवार में हुआ। उनका बचपन अपने नाना नानी के पास बीता । वह बचपन से ही बहुत शरारती थे। जिस काम के लिए मना करना उसी काम को करना । जबलपुर यूनिवर्सिटी में फिलासफी के प्रोफेसर बने ।
उन्होंने पूरा भारत भ्रमण किया, बहुत सारा लिटरेचर पढ़ा। फिर जब बुद्धत्व को उपलब्ध हुए तो अमेरिका में गए । वहां ओरेगन में 5000 एकड़ में उनके सन्यासियों ने एक बंजर ज़मीन को पूरे पेड़ों की भरी जमीन कर दिया और मेडीटेशन करने लगे । अमेरिका की हथियार बनाने वाली कंपनियों को यह डर हो गया अगर उसके लोग सन्यासी हो गए थे, वो पूरे विश्व में हथियार कैसे बेचेंगे ?
ओशो का बोलना ऐसा था कि कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाता था । ओशो को शुक्रवार रात को गिरफ्तार कर लिया। पूरा मीडिया इसके लिए उनके पीछे हो गया । शनिवार को कोर्ट बंद थी और रविवार को भी। इसी दौरान उन्होंने ओशो को थेलियम नाम का जहर दिया। उसके बाद अमेरिका छोड़ दिया और पूरी दुनिया भर में घूमे। अमेरिका में जिन जिन देशों को कर्जा ले रखा था उनको धमकियां दी कि कोई शरण ना दे । फिर ओशो भारत आ गए और मुंबई में प्रवचन देने शुरू किए । फिर उसके बाद में पूना आ गए। पूणे में फिर यह कोरेगांव पार्क में ओशो का आश्रम बनाया। उसने ओशो ने ओशो कम्युन का नाम दिया।
उनका बचपन का नाम चंद्र मोहन जैन था । फिर उन्होंने नाम रजनीश रखा । उसके बाद में ओशो कर दिया। उन्हें लगभग 600 किताबें लिखी । सदी के सबसे बड़े फ्राइड और जुंग को लेकर ध्यान की नई नई विधियाँ बनाईं। इसमें आधुनिक मनुष्य को सहज और सरल होने की मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
कुछ दोस्त मिले वहां पर उसे मोबाइल नंबर आदान प्रदान किया। रात को 9:30 बजे वहां पर एक सेलिब्रेशन थी जो कि रात के 11:15 तक चलनी थी। मैंने वह नहीं की । फिर मेरा दोस्त बलविंदर आ गया उसके साथ पुणे के गुरुद्वारे में गए, वहां माथा टेका और लंगर खाया । ये गुरुद्वारा मिलिट्री एरिया में बना हुआ है । तो इसको हॉलीवुड स्टाइल कहते हैं, बहुत ही बढ़िया बिल्डिंग बनी हुई है। फिर रात को सो गया। सुबह कंपनी के काम बाजाज पहुंचा। एसवी राजू सर से मुलाकात हुई उनको एक मैगजीन अहा जिंदगी मैंने गिफ्ट की । गपशप हुई। किस्से कहानियां सुनाए। उन्हें एक बात बहुत पसंद आई जो उनको सुनाई थी, "हम सब गटर में गिरे हुए लोग हैं और कुछ लोगों की आंखें सितारों पर है।"
महाराष्ट्र में चाय को "चहा" कहा जाता है । मैंने एक रेहड़ी से चाय पी, नहीं नही 😊, " चहा " पी।
फिल्म "तीसरी कसम" में राज कपूर साहब चाय को चहा ही बोलते हैं। इस फिल्म में वो बैलगाड़ी वाले बने हैंऔर वहीदा रहमान की डांसर है। जिस बिहारी अंदाज़ से वो "चहा" बोलते हैं तो मज़ा आ जाता है। यह फिल्म अपने गीतों के लिए बहुत मशहूर हुई थी जैसे, पान खाए सैयां हमार, सांवली सुरतिया होठ लाल लाल ,सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है , चलत मुसाफिर मोह लिया रे पिंजरे वाली मुनिया।
वहां पर एक आदमी से मुलाकात भी हुई वो नेहरू टाइप टोपी पहन कर बैठे थे। जब मैंने फोटो खींची तो वो मूछों को ताव देने लगे । महाराष्ट्र में बड़ा पाव, सांभर बड़ा, इडली डोसा इत्यादि बहुत मिलता है । सुबह का नाश्ता लोग इसी से करते हैं जो कि ये जल्दी पच जाता है, सस्ता भी है और आसानी से मिल भी जाता है।
कंपनी के काम बाजाज में पूरे दिन रहा। वहां पर अमित महाजन से मुलाकात हुई उसके साथ पंजाबी में बातें की तो बहुत खुश हुआ। शाम को फिर वापसी हो गई। फिर अपने होटल में आ
गए । अगले दिन सुबह 5:15 बजे ट्रेन थी पुणे से दिल्ली । फिर निकले मुसाफिर ट्रेन में दिल्ली के लिए। मेरे साथ ट्रेन में एक जैनी और एक फौजी था। बाकी सीटों पर 3 लड़के थे। एक तो सिर्फ लैपटॉप से चिपका हुआ, बाकी दो मोबाइल से । मैंने फौजी को बताया कि मैं एक कवि हूं। तो वह बातचीत करने लग गया। फौजी ने बताया कि उसने लद्दाख में नौकरी की है। यँहा पर "थ्री इडियट " फिल्म की शूटिंग हुई है। आखरी वाले सीन पर करीना कपूर एक स्कूटर पर आती है, ये वही जगह है । एक लड़का वहां करीना कपूर वाले स्कूटर पर सेल्फी खींचने के 50 से 100 रुपये लेता है। तो वहां पर एक झील है , जो कि 86 किलोमीटर में फैली हुई है । इसका कुछ हिस्सा भारत में है और बाकी हिस्सा चीन में। वो झील दिन भर में कई बार रंग बदलती है ।मोबाइल की तस्वीरें दिखाई। फिर आपको हम सो गए । आधी रात को फौजी भाई के बाएं फेफड़े के नीचे और बाईं बाजू में दर्द हो गया। मुझे लगा ये दिल का दर्द ना हो। मैंने अक्युप्रैशर से ठीक करने की कोशिश की पर बात बनी नहीं तो मैंने पेरासिटामोल दी। फिर उससे भी बात नहीं बनी तो मैंने इनो दी। उससे उसे तुरंत आराम आ गया। सुबह दिल्ली निजामुद्दीन ट्रेन पहुंची। तो आटो से मैं पुरानी दिल्ली के लिए निकला। रास्ते में पार्क आता है जिसमें दुनिया के सात अजूबे हैं। ये पार्क कूड़े करकट से बना हुआ है ,इसको अंदर जाने के लिए एक टिकट है। दिल्ली पहुंच कर ट्रेन पकड़ी। ट्रेन पहुंचकर रामपुर, रामपुर से फिर मुसाफिर अपने रुद्रपुर घर वापस आ गए।
Subscribe to:
Posts (Atom)