गुरद्वारा नानकमत्ता साहब और पूर्णागिरी माता का सफर
04.06.2019
कुछ दिन पहले नानकमत्ता जाना हुआ । घर पर मेहमान आए हुए थे साली शालू, साँढू मिथिलेश और उनका बेटा रिधम । रुद्रपुर से निकले सारे लोग गाड़ी में । पेट्रोल डलवाया, टायरों में हवा चेक करवाई। बेटा वंश और रिधम सीट के पीछे डिग्गी में बैठ गए। मेरी धर्म पत्नी सिमरन, शालू और बेटा रोहन पिछली सीट पर, मैं और मिथिलेश आगे। हम निकले तो अंधेरा हो चुका था। सितारगंज होते हुए हम नानकमत्ता गुरुद्वारा पहुंचे । एक बहुत बड़ा गेट जिससे हम अंदर जाकर देखा दुकानें सजी हुई है ।
वहां पर नानकमत्ता गुरुद्वारा, जंगल में मंगल है। 60 कमरे हैं जिनमें एसी लगे हुए हैं उनका कोई किराया नहीं है। जब भी आप जाएं वहां रह सकते हैं। बिना ऐसी वाले कमरे हैं , एक हॉल है ऐसी श्रद्धा सिर्फ सिखों में ही देखने को मिलती है।
आइए कुछ जानते हैं, सिख समुदाय के बारे में।
नानक देव जी सिखों के पहले गुरू हैं। उन्होंने लंगर की प्रथा की शुरुआत की। उनके पिता मेहता कालू ने उनको ₹20 दिए और कहा, जाओ सच्चा सौदा करो । वह शहर की तरफ निकले तो उन्होंने कुछ साधु देखें जो के भूखे थे। उन्होंने उन को खाना खिलाया और वापस आ गये। पिताजी ने कहा यह कौन सा सच्चा सौदा हुआ? पर तब से लेकर आज तक लंगर की प्रथा चल रही है ।
खालसा एड करके एसोसिएशन ने जो भी पूरे संसार में काम करती है। सीरिया के बीच लड़ाई में उन्होंने जाकर लंगर लगाया , नेपाल में जब भूचाल आया वहां 800 के लगभग टीन के मकान बना कर लोगों को दिए और वहां पर भी लोगों को लंगर खिलाया। जम्मू कश्मीर में , उड़ीसा में, कर्नाटका में जब भी कहीं कोई तूफान या भूचाल आ जाए तो वहां पर बिना किसी के कहे हमारे सिख भाई खुद ही पहुंचकर लोगों की सेवा करते हैं। यही है सिखों का बड़प्पन।
इनका एक और भी रुप है, यह बहुत बहादुर कौम है । पाकिस्तान की लड़ाई में सिख रेजीमेंट ने जंग फतह की थी ।अभी कुछ दिन पहले " केसरी" फिल्म रिलीज हुई है जिसमें एक सच्ची लड़ाई है, कि 21 सिखों से 10 हजार मुसलमानों से युद्ध किया। चाहे वह सारे शहीद हो गए पर वह झुके नहीं। ऐसे ही इसराइल में लड़ाई है यहां पर सिख रेजीमेंट है फतेह किया। महाराजा रंजीत सिंह के समय सिखों का राज्य अफगानिस्तान तक था।
ओशो ने कहा है कि जब कभी , मान लो सारी दुनिया अगर तबाह हो जाए तो अगर एक सिख बचा रहा, तो तुम समझना के तुमने पूरी मनुष्यता को बचा लिया है। शेखर कपूर ने कहा था लड़कियों को कहा जाता है, अगर तुम कहीं मुसीबत में फंस जाओ तो तुम किसी भी सिख के पास पहुंच जाना वह अपनी जान देकर भी तुम्हारी रक्षा करेगा।
गुरु गोविंद सिंह जी के समय पर भाई कन्हैया जी थे जो कि सिखों को मल्हम पट्टी का काम करते थे, पर वो वह मुसलमानों में युद्ध के दौरान मलहम पट्टी कर देते थे ।गुरु गोविंद सिंह जी के पास शिकायत पहुंच भाई कन्हैया मुसलमानों को भी मलमपट्टी कर देते हैं जो हमारे दुश्मन हैं। गुरु गोविंद सिंह जी ने उन्हें बुलाया तो भाई कन्हैया ने कहा, कि मुझे सभी में आप का ही रूप दिखाई देता है , मुझे कोई दुश्मन दिखाई ही नहीं देता। तो गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा तो तुम अपने पास मश्क रखो और सभी को पानी पिलाया करो । भाई कन्हैया जी से अपनी इस काम के लिए हमेशा जाने जाएंगे और हमें अपने बच्चों को इस इतिहास के बारे में बताना चाहिए।
आईए लौटते हैं अपनी यात्रा की तरफ। देर रात होने के कारण गुरद्वारा साहब के दरवाजे बंद थे हमने बाहर से माथा टेका और लंगर खाने चले गए। सारी संगत लंगर खा रहे थी। छोटे-छोटे बच्चे रोटियां बांटे थे जिसको भी पंजाबी में "प्रशादा" कहा जाता है । रोटी, चावल ,सब्जी , दाल और हल्वा ( हल्वा को पंजाबी में कड़ाह प्रशाद कहा जाता है)। लँगर खाने के बाद हमने ठहरने के लिए कमरे का पता किया वहां कोई भी कमरा खाली नहीं था। हम निकल लिए होटल ढूंढने। पर वहां बहुत छोटे से कमरा मिल रहा था, जो सही नहीं लगा। हम वापस गुरुद्वारा आए और उनको रिक्वेस्ट किया। उन्होंने हमें दो गद्दे दिए और हम जाकर लेट गए दूसरे माले पर खुले आसमान के नीचे । सितारों को देखते हुए अलग अनुभव हो रहा था। सुबह 4:30 का अलार्म लगा कर सो गए । पहले तो हवा चलती रही फिर रात गरम भी हो गई। जब सुबह हुई तो फिर हम नहा धो कर माथा टेकने गए। शब्द लगा हुआ था
"किस नाल कीजे दोस्ती
सब जगह चलनहार"
यह शब्द गुरु नानक देव जी की गुरबाणी से लिए हुए हैं। इसका मतलब है, हे परमात्मा मैं किस से दोस्ती करूँ क्योंकि सारा जग तो एक दुनिया से विदा हो जाएगा। कोई ऐसा दोस्त हो जो सदा मेरे साथ रहे।
गुरुद्वारे के पीछे एक सरोवर हैं वहां बहुत सारी मछलियां है। एक तरफ एक नल का है उसका पानी लोग प्रसाद की तरह लेते हैं। फिर एक पीपल का पेड़ है जो कि बहुत पुराना है इसका भी गुरु नानक देव जी के साथ जुड़ाव है।
फिर हमने वहां से प्रशाद लिया और फिर निकल गया पूर्णागिरि के लिए। पूर्णागिरी माता की यँहा पर बहुत मान्यता है। गर्मियों की छुट्टियां हैं लोग डीजे लगाकर नाचते गाते हुए जा रहे थे ।रास्ते में शारदा नदी देखी जिसका बहाव बहुत तेज है। लोगों के घरों में कटहल, आम और लीची के पेड़ लगे हुए हैं। मिट्टी के घर बने हुए थे। हम सुबह 10:00 बजे पूर्णागिरी की चढ़ाई शुरू की । इर्द गिर्द दुकानें लगी हुई थी। धूप होने के कारण पानी की बोतलें हम साथ लेकर चल रहे थे ।पहाड़ी के शिखर पर ये मंदिर है। वहां पर माथा टेका और फिर वापस हो लिए। रास्ते में खाना खाया। फिर चल दिए मुसाफिर।
फिर शारदा नदी में बहाव बहुत तेज था ।बस पानी में पैर डाले । पानी ठंडा था और फिर वहां से हम निकल लिए सिद्ध बाबा मंदिर नेपाल की तरफ। हमें बता दिया गया था कि पैसे पहले ही निकलवा कर लेना ।तो आ एटीएम से पैसे निकलवा लिए । टनकपुर से बिल्कुल साथ में ही हो जगह है वहां पर अपनी गाड़ी पार्क की और वहां से टुकटुक लेकर डैम तक पहुंचे। यह डैम से थोड़ी दूर तक पैदल जाना पड़ता है। फिर वहां पर मोटरसाइकिल पर दोनों सवारीयाँ ले जा कर कुछ दूरी तक छोड़ देते हैं। वहां से फिर सिद्ध बाबा का का मंदिर है। आर्मी वाले वहां पर दोनों तरफ लोगों का सामान चेक करते हैं ।हमें मंदिर में माथा टेका । वहां एक के पीछे एक करके तीन मंदिर हैं। एक पुजारी ने कहा है यह सिद्ध बाबा का मंदिर है यहां पर जो मांगना है मांग लो। मैंने कहा उसने तो बहुत कुछ दे रखा है तो शुक्र करने आए हैं। मेरी तरफ देख रहा था ।
यहां पर पीले रंग के कपड़े के ताबीज की तरह बाँध रखे हैं, जिसकी तस्वीरें खीँची जो कि बहुत ही सुंदर लग रहे थे । पूर्णागिरि में यह लाल धागे होते हैं ,इनको देख कर अलग सी खुशी भी महसूस होती है।
जब हम वापस आने लगे तो वहां पर बादल हो गए। जब हम पैदल डैम तक पहुंचे बारिश होने लगी । हम पुलिस पोस्ट पर रुक गए। भयंकर बारिश हुई और ओले पड़ने लगे । इक टीन की छत्त के नीचे खड़े हो गए पर हम पूरे भीग गए। बच्चों को बहुत डर लगने लगा ,पुलिस वालों को रिक्वेस्ट करके हमने बच्चों को छत के नीचे पुलिस फोर्स वालों के पास भेज दिया। पुलिस वालों ने हमारी बहुत मदद की। हमें बारिश रुकने तक के लिए उन्होंने आगे जाने से मना किया, हम रुक गए। फिर उन्होंने टुकटुक वाले को फोन करके बुलाया और हम वापस आ गए।
आते हुए हमने उन पुलिस वालों का धन्यवाद किया। फिर हम निकल गए वहां से टनकपुर। हम नानकमत्ता जाने की सोचने लगे पर रास्ते में बहुत सारे पेड़ टूटे हुए थे, बिजली गुल थी। फिर बनबसा में एक होटल में हम रुके। भीगे कपड़े बदले। खाना खाया और फिर सो गए। फिर सुबह हम निकलिए रुद्रपुर के लिए।
फिर मिलेंगे एक नयी यात्रा में।
आपका अपना
रजनीश जस
04.06.2019
कुछ दिन पहले नानकमत्ता जाना हुआ । घर पर मेहमान आए हुए थे साली शालू, साँढू मिथिलेश और उनका बेटा रिधम । रुद्रपुर से निकले सारे लोग गाड़ी में । पेट्रोल डलवाया, टायरों में हवा चेक करवाई। बेटा वंश और रिधम सीट के पीछे डिग्गी में बैठ गए। मेरी धर्म पत्नी सिमरन, शालू और बेटा रोहन पिछली सीट पर, मैं और मिथिलेश आगे। हम निकले तो अंधेरा हो चुका था। सितारगंज होते हुए हम नानकमत्ता गुरुद्वारा पहुंचे । एक बहुत बड़ा गेट जिससे हम अंदर जाकर देखा दुकानें सजी हुई है ।
वहां पर नानकमत्ता गुरुद्वारा, जंगल में मंगल है। 60 कमरे हैं जिनमें एसी लगे हुए हैं उनका कोई किराया नहीं है। जब भी आप जाएं वहां रह सकते हैं। बिना ऐसी वाले कमरे हैं , एक हॉल है ऐसी श्रद्धा सिर्फ सिखों में ही देखने को मिलती है।
आइए कुछ जानते हैं, सिख समुदाय के बारे में।
नानक देव जी सिखों के पहले गुरू हैं। उन्होंने लंगर की प्रथा की शुरुआत की। उनके पिता मेहता कालू ने उनको ₹20 दिए और कहा, जाओ सच्चा सौदा करो । वह शहर की तरफ निकले तो उन्होंने कुछ साधु देखें जो के भूखे थे। उन्होंने उन को खाना खिलाया और वापस आ गये। पिताजी ने कहा यह कौन सा सच्चा सौदा हुआ? पर तब से लेकर आज तक लंगर की प्रथा चल रही है ।
खालसा एड करके एसोसिएशन ने जो भी पूरे संसार में काम करती है। सीरिया के बीच लड़ाई में उन्होंने जाकर लंगर लगाया , नेपाल में जब भूचाल आया वहां 800 के लगभग टीन के मकान बना कर लोगों को दिए और वहां पर भी लोगों को लंगर खिलाया। जम्मू कश्मीर में , उड़ीसा में, कर्नाटका में जब भी कहीं कोई तूफान या भूचाल आ जाए तो वहां पर बिना किसी के कहे हमारे सिख भाई खुद ही पहुंचकर लोगों की सेवा करते हैं। यही है सिखों का बड़प्पन।
इनका एक और भी रुप है, यह बहुत बहादुर कौम है । पाकिस्तान की लड़ाई में सिख रेजीमेंट ने जंग फतह की थी ।अभी कुछ दिन पहले " केसरी" फिल्म रिलीज हुई है जिसमें एक सच्ची लड़ाई है, कि 21 सिखों से 10 हजार मुसलमानों से युद्ध किया। चाहे वह सारे शहीद हो गए पर वह झुके नहीं। ऐसे ही इसराइल में लड़ाई है यहां पर सिख रेजीमेंट है फतेह किया। महाराजा रंजीत सिंह के समय सिखों का राज्य अफगानिस्तान तक था।
ओशो ने कहा है कि जब कभी , मान लो सारी दुनिया अगर तबाह हो जाए तो अगर एक सिख बचा रहा, तो तुम समझना के तुमने पूरी मनुष्यता को बचा लिया है। शेखर कपूर ने कहा था लड़कियों को कहा जाता है, अगर तुम कहीं मुसीबत में फंस जाओ तो तुम किसी भी सिख के पास पहुंच जाना वह अपनी जान देकर भी तुम्हारी रक्षा करेगा।
गुरु गोविंद सिंह जी के समय पर भाई कन्हैया जी थे जो कि सिखों को मल्हम पट्टी का काम करते थे, पर वो वह मुसलमानों में युद्ध के दौरान मलहम पट्टी कर देते थे ।गुरु गोविंद सिंह जी के पास शिकायत पहुंच भाई कन्हैया मुसलमानों को भी मलमपट्टी कर देते हैं जो हमारे दुश्मन हैं। गुरु गोविंद सिंह जी ने उन्हें बुलाया तो भाई कन्हैया ने कहा, कि मुझे सभी में आप का ही रूप दिखाई देता है , मुझे कोई दुश्मन दिखाई ही नहीं देता। तो गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा तो तुम अपने पास मश्क रखो और सभी को पानी पिलाया करो । भाई कन्हैया जी से अपनी इस काम के लिए हमेशा जाने जाएंगे और हमें अपने बच्चों को इस इतिहास के बारे में बताना चाहिए।
आईए लौटते हैं अपनी यात्रा की तरफ। देर रात होने के कारण गुरद्वारा साहब के दरवाजे बंद थे हमने बाहर से माथा टेका और लंगर खाने चले गए। सारी संगत लंगर खा रहे थी। छोटे-छोटे बच्चे रोटियां बांटे थे जिसको भी पंजाबी में "प्रशादा" कहा जाता है । रोटी, चावल ,सब्जी , दाल और हल्वा ( हल्वा को पंजाबी में कड़ाह प्रशाद कहा जाता है)। लँगर खाने के बाद हमने ठहरने के लिए कमरे का पता किया वहां कोई भी कमरा खाली नहीं था। हम निकल लिए होटल ढूंढने। पर वहां बहुत छोटे से कमरा मिल रहा था, जो सही नहीं लगा। हम वापस गुरुद्वारा आए और उनको रिक्वेस्ट किया। उन्होंने हमें दो गद्दे दिए और हम जाकर लेट गए दूसरे माले पर खुले आसमान के नीचे । सितारों को देखते हुए अलग अनुभव हो रहा था। सुबह 4:30 का अलार्म लगा कर सो गए । पहले तो हवा चलती रही फिर रात गरम भी हो गई। जब सुबह हुई तो फिर हम नहा धो कर माथा टेकने गए। शब्द लगा हुआ था
"किस नाल कीजे दोस्ती
सब जगह चलनहार"
यह शब्द गुरु नानक देव जी की गुरबाणी से लिए हुए हैं। इसका मतलब है, हे परमात्मा मैं किस से दोस्ती करूँ क्योंकि सारा जग तो एक दुनिया से विदा हो जाएगा। कोई ऐसा दोस्त हो जो सदा मेरे साथ रहे।
गुरुद्वारे के पीछे एक सरोवर हैं वहां बहुत सारी मछलियां है। एक तरफ एक नल का है उसका पानी लोग प्रसाद की तरह लेते हैं। फिर एक पीपल का पेड़ है जो कि बहुत पुराना है इसका भी गुरु नानक देव जी के साथ जुड़ाव है।
फिर हमने वहां से प्रशाद लिया और फिर निकल गया पूर्णागिरि के लिए। पूर्णागिरी माता की यँहा पर बहुत मान्यता है। गर्मियों की छुट्टियां हैं लोग डीजे लगाकर नाचते गाते हुए जा रहे थे ।रास्ते में शारदा नदी देखी जिसका बहाव बहुत तेज है। लोगों के घरों में कटहल, आम और लीची के पेड़ लगे हुए हैं। मिट्टी के घर बने हुए थे। हम सुबह 10:00 बजे पूर्णागिरी की चढ़ाई शुरू की । इर्द गिर्द दुकानें लगी हुई थी। धूप होने के कारण पानी की बोतलें हम साथ लेकर चल रहे थे ।पहाड़ी के शिखर पर ये मंदिर है। वहां पर माथा टेका और फिर वापस हो लिए। रास्ते में खाना खाया। फिर चल दिए मुसाफिर।
फिर शारदा नदी में बहाव बहुत तेज था ।बस पानी में पैर डाले । पानी ठंडा था और फिर वहां से हम निकल लिए सिद्ध बाबा मंदिर नेपाल की तरफ। हमें बता दिया गया था कि पैसे पहले ही निकलवा कर लेना ।तो आ एटीएम से पैसे निकलवा लिए । टनकपुर से बिल्कुल साथ में ही हो जगह है वहां पर अपनी गाड़ी पार्क की और वहां से टुकटुक लेकर डैम तक पहुंचे। यह डैम से थोड़ी दूर तक पैदल जाना पड़ता है। फिर वहां पर मोटरसाइकिल पर दोनों सवारीयाँ ले जा कर कुछ दूरी तक छोड़ देते हैं। वहां से फिर सिद्ध बाबा का का मंदिर है। आर्मी वाले वहां पर दोनों तरफ लोगों का सामान चेक करते हैं ।हमें मंदिर में माथा टेका । वहां एक के पीछे एक करके तीन मंदिर हैं। एक पुजारी ने कहा है यह सिद्ध बाबा का मंदिर है यहां पर जो मांगना है मांग लो। मैंने कहा उसने तो बहुत कुछ दे रखा है तो शुक्र करने आए हैं। मेरी तरफ देख रहा था ।
यहां पर पीले रंग के कपड़े के ताबीज की तरह बाँध रखे हैं, जिसकी तस्वीरें खीँची जो कि बहुत ही सुंदर लग रहे थे । पूर्णागिरि में यह लाल धागे होते हैं ,इनको देख कर अलग सी खुशी भी महसूस होती है।
जब हम वापस आने लगे तो वहां पर बादल हो गए। जब हम पैदल डैम तक पहुंचे बारिश होने लगी । हम पुलिस पोस्ट पर रुक गए। भयंकर बारिश हुई और ओले पड़ने लगे । इक टीन की छत्त के नीचे खड़े हो गए पर हम पूरे भीग गए। बच्चों को बहुत डर लगने लगा ,पुलिस वालों को रिक्वेस्ट करके हमने बच्चों को छत के नीचे पुलिस फोर्स वालों के पास भेज दिया। पुलिस वालों ने हमारी बहुत मदद की। हमें बारिश रुकने तक के लिए उन्होंने आगे जाने से मना किया, हम रुक गए। फिर उन्होंने टुकटुक वाले को फोन करके बुलाया और हम वापस आ गए।
आते हुए हमने उन पुलिस वालों का धन्यवाद किया। फिर हम निकल गए वहां से टनकपुर। हम नानकमत्ता जाने की सोचने लगे पर रास्ते में बहुत सारे पेड़ टूटे हुए थे, बिजली गुल थी। फिर बनबसा में एक होटल में हम रुके। भीगे कपड़े बदले। खाना खाया और फिर सो गए। फिर सुबह हम निकलिए रुद्रपुर के लिए।
फिर मिलेंगे एक नयी यात्रा में।
आपका अपना
रजनीश जस
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