Sunday, September 27, 2020

Cycling and Borders discussion 27.09.2020

आज रविवार है तो साइकिलिंग दोस्त,किस्से, कहानियां। सुबह साईकिल उठाई और निकल लिया। रास्ते में लोगों को देखता हुआ जा रहा था। चाय के अड्डे पर पहुंचा तो वहां पर शिवशांत पहले से मेरा इंतजार कर रहा था। फिर राजेश जी और पंकज भी आ गये।

फिर बातचीत होने लगी क्या मनुष्य में धरती पर आकर हर चीज़ को अपने ढंग से तरोड़- मरोड़ लिया है और पर्यावरण को बिगाड़ दिया है। विज्ञानी कहते हैं इसकी हरकतों को देखकर लगता है कि जैसे ये किसी और  धरती का प्राणी हो।  क्योंकि इसको ना इस धरती से प्यार है,ना ही खुद से। तभी तो इतनी सरहदें और हथियार बनाकर बैठा है। कहते हैं अगर किसी भी कारण आदमी इस धरती से विदा हो जाए तो कुछ साल के अंदर यह पूरा इकोलॉजी सिस्टम है ठीक हो जाएगा , यह चीज़ हमने 1 महीने के कोरोना लाकडाऊन के दौरान देख भी ली है। इस दुनिया में जितनी भी गड़बड़ है वो सिर्फ और सिर्फ आदमी की पैदा की हुई है।
साहिर लुधियानवी का, धूल का फूल फिल्म का  एक गीत है

तू हिंदू बनेगा, ना मुस्लमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा

मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया
हमने उसे हिंदू या मुस्लमान बनाया
कुदरत ने तो बख्शी थी हमें एक ही धरती
हमने कँही भारत कँही ईरान बनाया
जो तोड़ दे हर बंद वो तूफान बनेगा
तू हिंदू बनेगा, ना मुस्लमान बनेगा

ये गीत मैनें छठी कक्षा में आज से 33 साल पहले अपने स्कूल के वार्षिक उत्सव पर गाया था। ये गीत आदमी की कई पर्तों पर रोशनी करता हैं।
गीत का युटिऊब लिंक

https://youtu.be/fgNa41wNxyw

जे क्रिष्नामूर्ति तो यँहा तक कहते हैं, हम जब कहते हैं मैं भारतीय, मैं फलाने धर्म का तो ये भी एक हिंसा है। हम अपने आप को पूरे विश्व का एक मनुष्य कहें। 

यह बातें करते-करते मुझे अपने एक कहानी चींटी की आवाज याद आ गयी, चींटी कहती है कि आदमी ने धरती पर कब्जा कर रखा है हलांकि इस धरती पर आदमी का उतना हक है जितना कि  चींटी का। पर आदमी की सोच लिया है पूरी धरती उसकी निज्जी संपत्ति है। 

डार्विन ने कहा है, Survival of the fittest.  मतलब कि जो पर्यावरण से लड़ सकता है , अपने अंदर की क्षमता है वही जीवित रहेगा बाकी लोग यहां से विदा हो जाएंगे जैसे डायनासोर। पर खुद जीवित रखने के लिए आदमी ने इतने हथियार बना लिए हैं कि क्या कहें? 
कहते हैं जो आदमी खुद डरा हुआ होता है वो ही दूसरों को डराने में उत्सुक होता है। जैसे कहते हैं , चोर को सारी दुनिया चोर ही नज़र आती है। 
ओशो बताते हैं, हमारे खेत खलियानों में एक
 " डरना"  होता है , वो लकडी के डंडो से क्रास बनाकर ऊपर उल्टा घडा रखकर उसे आदमी जैसा बनाया जाता है। उसके कपडे भी होते हैं।
किसी ने उससे पूछा तुझे क्या मिलता है, तो वो कहता है जब मुझे देखकर पंछी डरते हैं तो मुझे उनकी आँखों मे डर देखकर मज़ा आता है। यही हालत है उश देशों की जो हथियार बनाकर बेचते हैं, दो देशों को युद्ध के लिए उकसाते हैं। जब युद्ध होता है तो उनके महंगे -महंगे हथियार बिकते हैं।
उनको मजा आता है दुनिया में युद्ध करवा कर। 

 यह देख कर मुझे एक कहानी याद आई है जो हम  सब ने बचपन में पढी है। दो बिल्लियां को एक रोटी खाने को मिल जाती है। वो उसको आधा आधा करने के लिए झगड़ा करने लगती है। तो उधर से एक बंदर आता है , वो कहता है मैं  तुम्हारा झगड़ा निपटा देता हूं। वो एक तकड़ी लेता है और रोटी के दो हिस्से कर देता है और जानबूझकर एक तरफ ज्यादा और एक तरफ  कम रोटी रखता है। तो जो ज्यादा  रोटी होती है उसमें से  थोड़ी सी खा लेता है।  फिर उस  तरफ कम हो जाती है वो दूसरे तरफ की रोटी खा लेता है। इस तरीके से वह दोनों की पूरी की पूरी रोटी खा जाता है।
इसी तरह दुनिया में हथियार बनाने वाले देश कर रहे है।

इसके बाद बातें होने लगी सरहदों के बारे में। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद युरोपियन देशों ने जान लिया कि दूसरे देशों को डराने के लिए जो सरहदों पर ज्यादा हथियार ही तबाही का कारण बनते हैं।  अगर हम उन देशों की सरहदों को देखें तो वो सारे नामात्र  सैनिकों और हथियारों से जुड़े हुए हैं।

मैं एक किताब, "असीं वी वेखी दुनिया" , जो Major Mangat  ने लिखी है, उसमें वो लिखते हैं जब कनाडा से अमेरिका जाते हैं तो वँहा एक पुल पर कनाडा के बहुत कम सैनिक हैं। वो देश अपने खजाने का बहुत कम बजट हथियारों पर लगाता है। यही कारण है कनाडा में दुनिया भर के लोग रहने जा रहे हैं। वो ज़मीन से टिऊबवैल आदि लगाकर पानी नहीं खींचते बल्कि बारिश के पानी को उपयोग करते हैं और गंदे पानी को साफ करने के उपरांत। कनाडा में हर आदमी के पीछे 8900 पेड़ हैं, जबकि भारत मेएक आदमी के पीछे सिर्फ 7 पेड़ हैं, 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक। कनाडा और युरोप के लोग 80-90 साल की उम्र में भी जोगिंग कर रहे हैं। वँहा हर आदमी के पास पानी की बोतल रहती है, वो फल ज्यादा खाते हैं। और भारत में 50 साल के बाद घुटनों की समस्या आम बात है।
मैं ये नहीं कह रहा कि भारत बुरा है पर हमें अगर अच्छे तरीके से  जीना है तो उन देशों से सीखना होगा। ये बात भी सत्य है कि बुद्ध, महावीर, गुरू नानक देव जी भारत में हुए हैं, पर टैक्नालोजी के बदलाव को स्वीकारना होगा। जैसे कि ओशो ने कहा ज़ोर्बा दी बुद्धा। मतलब ओशो कहते हैं कि उनका सन्यासी पैसा भी कमाए और ध्यान भी करे। क्योकि दो पंखों के बिना कोई उडान नहीं हो सकती। हमें पश्चिम से पैसा कमाना सीखना है और उन्हें ध्यान सीखाना है। 

इस से उलट जब लेखक अमेरिका में जा रहा है तो कई स्थानों पर रात के अंधेरे में, मैट्रो ट्रेन में उसे सावधान रहना पड़ रहा है कि कंही कोई वारदात ना हो जाए क्योंकि वँहा पर बंदूक आम ही मिल जाती है। अब कोई मानसिक रोगी या नफ़रत से भरा आदमी कभी भी कँही भी गोलियाँ चला सकता है। 

 हमारे देश में अस्पतालों की, शिक्षा व्यवस्था की बहुत ही बुरी हालत है क्योकिं हम अपने बजट का बहुत सारा हिस्सा हथियारों पर लगाते हैं।
अभी देश में बहुत सारी समस्याएं हैं जैसे बेरोज़गारी, किसानों की, शिक्षा की, सेहत की पर मीडिया ने पूरे देश को और ही मस्लों में उलझा रखा है और लोग भी दिनरात उसी में उलझे हुए हैं। मूलभूत समस्यायों पर जब तक लोग इक्ट्ठे होकर बात नहीं करते तब तक कोई हल नहीं है।

मुझे अपनी ही कभी कविता याद आ जाती है
बहुत आसान होता है
अपने बैडरूम में  बैठे
चाय का कप पीते हुए 
कह देना कि युद्ध होना चाहिए

कविता का युटिऊब लिंक।

https://youtu.be/X4f93Ualu9k

मैनें कुछ तस्वीरें खींची। एक पत्ता नया - नया उगा था शाख़ पर। उसकी चमक और ताज़गी देखकर लगा कि कुदरत बिना किसी क्रीम , पाऊडर के इसे ये दे रही हैं और कँहा आदमी इतनी सुख सुविधा भोगकर भी दुखी है, दीनहीन है।

मुझे Swami Sarabjeet की एक कविता याद आ गयी
"ये जो धार्मिक स्थलों के बाहर
हाथ जोड़कर खडे लोग हैं
ये भगवान के भग्तनहीं
बल्कि डरे हुए लोग हैं"

तो श्रद्धा से ,धन्यवाद देने जाने वाले, आनंदित लोग ही समाज को बदल सकते हैं, डर से तो सिर्फ युद्ध पैदा होते हैं।
महात्मा बुद्ध के समय मे कुछ व्योपारी जंगल से गुज़र रहे थे तो उनको डाकुओं ने लूट लिया। उनकी हिफाज़त करने के लिए सैनिक नहीं आए। ये बात  जब राजा तक पहुंची, तो राजा ने पूछा सैनिकों ने क्यों नहीं बचाया? तो उन्होंने कहा आपके राज्य के बहुत सारे सैनिक बुद्ध की शरण में चले गए हैं जो हथियार नहीं उठा रहे हैं। तो 
 राजा ने बुद्ध से इसका हल करने को कहा। तो
बुद्ध ने यह नियम बनाया के जो सैनिक हैं उनको भिक्षु नहीं बनाया जाएगा।

समय बीतने लगा। जब बुद्ध के भिक्षुयों को मारा गया तो उन्होनें  आत्म रक्षा के लिए बहुत सारे रास्ते चुनें जैसे मारशल आर्ट,जुडो कराटे इत्यादि।
(ऐसा मेरा सोचना है, मैं इस बात की पुष्टी नहीं कर रहा हूँ) उसी से निकल कर आई है हमने किसी का बुरा नहीं  करना पर स्वयं की रक्षा भी तो करनी है।

काफी बातें हुई व्यवस्था को लेकर।
फिर हम लौट आए अपने अपने घौंसलों की तरफ।
फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर।
आपका अपना
रजनीश जस 
रूद्रपुर 
उत्तराखंड 
निवासी पुरहीरां,
जिला होशियारपुर 
पंजाब
27.09.2020
#sundaydiaries
#rudarpur_cycling_club
#rudarpur
#cycling

Saturday, September 19, 2020

Cycling and intersting facts of ant 20.09.2020

 रविवार है तो साइकिलिंग, दोस्त, किस्से कहानियां। सुबह उठा, निकल लिया साइकिलिंग  को। मोड़ पर जाकर याद आया मास्क तो लगाया नहीं। फिर वापस लौटा मास्क लगाया,और चल दिया।  रास्ते में एक लड़का मिला। वो मास्क लगाकर साईकलिंग कर रहा था। मैंने कहा अगर अकेले हो तो मास्क भी नीचे कर सकते हो। वो बोला, उसे मिट्टी से अलर्जी है। मैंने उसको कहा कि वह रूद्रपुर में बिसाखा सिंह चेरीटेबल हॉस्पिटल में  चला जाए वँहा पर डा जिबनेश दास हैं, उनसे कह देना रजनीश ने भेजा है।  फिर मैंने उससे पूछा, कि वो तुलसी खाता है? उसने कहा हाँ। वह लड़का 17 साल का था और पंतनगर यूनिवर्सिटी  से  से ट्यूशन पढ़ने आता है। जो कि रूद्रपुर से 14 किलोमीटर है।

चाय के अड्डे पर पहुँचा तो शिवशांत के साथ वँहा और मित्र भी मौजूद थे। वहां पर बैठे हो बातें होने लगी अभी देशभर में किसान विरोध कर रहे हैं। बातें हो रही थी पूंजीवाद जब चरम सीमा पर पहुंचता है और मजदूरों का बहुत शोषण होता है। फिर वो मज़दूर जब उसका विरोध करते हैं, फिर तख्त पलटी होता है  और समाजवाद का उदय होता है। पर फिर जो लोग सत्ता में आते हैं फिर भी उन लोगों का शोषण करते हैं क्योंकि वह भी पूंजीवाद शिकार हो जाते हैं।

तब तक संजीव,पंकज और राजेश सर भी आ गये।हम निकल लिए सैर करने।  रास्ते में जब हम जा रहे थे तो तितलियाँ उड़ रही थीं, पेड़ से पत्ते गिर रहे थे, पंछियों की चहचहाट हो रही थी। कोरोना काल ने हमारे जीवन पर क्या क्या असर किया है उसका क्या फर्क पडा है,उस विषय पर लंबी बातचीत हुई।
           चाय के अड्डे पर धूप की लकीर
हमारा जीवन ऐसा हो गया है कि हम लोन लेकर जीवन गुज़ार रहे हैं। राजेश सर ने अच्छी बात सुनाई कि लोन मतलब "लो ना"। लोन नहीं लेना चाहिए।
संजीव जी ने चींटी के बारे में दिलचस्प बातें बताईं।  वो आई आईटी रूड़की से पासड आऊट हैं और उन्होनें इस पर अपने थीसस में लिखा भी है।
उन्होंने कहा कि यदि सबसे समझदार जानवर देखा जाए तो वो चींटी को माना गया है, और दिलचस्प बात ये उसे दिखाई नहीं देता। इन पर रिसर्च की गई जिसको  Swarm Intelligence स्वार्म इंटेलिजेंस कहा जाता है।इसका मतलब है वो सारी चींटियाँ अपना अपना काम पूरी इमानदारी और पारदर्शिता से करती हैं,उन्हें किसी हांकने या कमांड देने वाले की ज़रूरत नहीं होती।  उन्हें खाना लेकर अपने घर तक लौटने में सबसे कम रास्ता तैय करना आता है। 
उन पर एक विज्ञानी ने खोज की। उसने बाइनरी ब्रिज सिस्टम बनाया। मतलब दो पुल बनाए। बीच में खाई रखी और दूसरी तरफ उनका खाना।
उसमें एक पुल की दूरी ज्यादा थी और एक की कम।
   चींटियों ने पुल पार किया। जब चींटीयां चलती हैं तो वो एक स्त्राव छोड़ती हैं, जिसको फेरोमोनज़ (Pheromones) छोड़ती हैं। 

अब जब वो खाना की खुशबू से खाना ढूंढने निकली तो उन्होने दोनों पुल का उपयोग किया। जब वो खाना लेकर वापिस लौट रही थीं तो थोडी देर को उस जगह रूकी यँहा से रास्ते अलग अलग होते थे। उन्होनें अपने फैरोमोनज़ को सूंघा।
अब छोटे रास्ते से ज्यादा फैरोमोनज़ थे। वो छोटे रास्ते से वापिस आ गईं। इसको आप्टीमाईजेशन कहा जाता है, जिसका उपयोग दुनिया भर की व्यवस्थायों में किया जा रहा है।

 फिर उसके बाद में एक समस्या आई, जिसको टैक्नीकल भाषा में ट्रैवलिंग सेल्ज़मैन प्राबलम कहा गया।  एक था सेल्ज़मैन और उसे 8 शहरों में जाना था जो सारे शहर एक दूसरे से  जुड़े हुए थे । तो उस सेल्ज़मैन को सारे शहरों में जाना था पर उसकी समस्या यह थी कि वह चाहता था कि सारे शहरों में जाए और  उसको कम से कम
समय लगे कि उसको यात्रा कम तय करनी पड़े।बहुत सारे विज्ञानी बैठे। उन्होने बहुत सिरखपाई की। फिर एक ने चींटियाँ इक्टठी की और उसी तरह का माडल बनाया 8 शहरों जैसा। उन 8 शहर के माडल में चींटियाँ खाना लेने गयी। ये प्रक्रिया 15 से 20 बार दोहराई गयी। इससे सबसे छोटा रास्ता मिला।

 संजीव जी ने कहा कि जैसे हम 5 लोग जो अभी बैठे हैं, अगर हमें कोई खेत जोतना हो तो सभी को पूरी तन्मयता और पारदर्शिता रखनी होगी। पर हमारे ऊपर  बॉस बिठा दिया जाएगा तो सब  मिटटी  जाएगा। जैसे कि हम देख रहे हैं नेताओं ने क्या कर रखा है? अगर सभी लोग अपनी ईमानदारी से काम करें नेताओं के पास कोई क्यों जाएगा? जो पैसा भारत में नेताओं की सुरक्षा के लिए लगाया जा रहा है अगर वही पैसा देश की शिक्षा, सेहत, सड़क, रोज़गार व्यवस्था और सुविधायों के ऊपर खर्चा जाए तो यह देश कितना आगे जा सकता है ?
इसके लिए हमें भी भारत स्वार्म इंटेलिजेंस पैदा होगी कि हम अपना कारण पूरी कार्यकुशलता से करें।
 संजीव जी बता रहे थे कि पहले हमारे गाँव में लोग होते थे तो स्वार्म इंटेलिजेंस था। वो लोग बाहर  किसी की मदद नहीं लेते थे। अगर कोई  बारात आती तो पँचायत घर या लोगों के घर ठहराते। उनके लिए बिस्तर गाँव वाले दे देते। फिर धीरे धीरे शहर में जाकर शादी का चलन शुरू हुआ। लोगों ने मैरिज पैलेस बुक करने शुरू किए और  बिस्तर किराए पर लेने। 
 भारत बाहर के देशों से धन लेता है वो अपनी शर्ते लागू करते हैं और आम आदमी पिसता है। एक बहुत बड़ा कॉर्पोरेट सिस्टम काम करता है बैठ कर डिसाइड करता है कि क्या होना चाहिए? कौन से देश से विश्व सुंदरी चुनी जाए जो उसके प्रोडक्ट की ऐड करेगी और उनका सामान बिकेगा।

 पुराने समय में एक ही डाक्टर कुछ सरिंजों को उबालकर पूरे गांव का इलाज करता था। मल्टीनेशनल कंपनियों बिमारियां फैला कर डिस्पोजेबल का धंधा फैलाया ,उसके लिए पहले लोगों में डर पैदा किया गया।

लाकडाऊन में बहुत लोगों के कामकाज ठप्प हो गये है। हमारे से जुडे लोग जैसे घरों में सफाई करने वाली बाई या और लोग हैं उन्हें पूरा मेहनतनामा दे, उनका दुख सुख पूछे जो कि समाज में अच्छाई फैल सके। हम सारा संसार नहीं बदल सकते पर उन लोगों की मदद कर सकते हैं जो हमारे इर्द गिर्द हैं।

आज बड़े दिनों के बाद महफिल जुड़ी, अच्छा लगा।
आज के लिए इतना ही।  फिर मिलेंगे एक नया किस्सा लेकर ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां
जिला होशियारपुर
पंजाब
20.09.2020
#sunday_diaries
#rudarpur_cycling_club
#cycling

Friday, September 18, 2020

Stress Free Life Part 1(Hindi)

समाज में एक शब्द बहुत तेजी से फैल रहा है वह है स्टरेस।  स्टरेस को निकालने के लिए आदमी शराब, सिगरेट पीता है, मंदिर जाता है, बच्चों और पत्नी को पीटता है।
अभी कॉल ट्रेंड चल गया है कि लोग मोटिवेशनल गुरु के पास जाते हैं या किसी बाबा के पास।मोटिवेशनल गुरु उसको कुछ टिप्स देता है, बाबा उनकी जेब काट लेता है। कई बाबा तो इतने अमीर हैं कि वो करोड़पति बन गये हैं, उनके पास उदयोगपति और नेता लाईन में लगकर स्ट्रेस निकालते हैं। एक और काम भी कर रहे हैं लोग, वो स्विटज़रलैंड जाते हैं, क्रूज़ में सफ़र करते हैं , लाखों की गाडियों में घूमते हैं। पर उनका दिल जानता है कि उनका स्ट्रेस कम नहीं हुआ, अंदर से वो दुखी ही रहते हैं।
पंजाबी में एक कहावत है, 
वड्डियां सिरां दीआं वड्डीयां पीडां


मतलब जो जितना अमीर होगा, उसकी सिर खपाई भी उतनी ही होगी।
 मोटिवेशनल गुरु पश्चिमी के लेखकों पढ़कर बातें करते हैं  आजकल भारत में काफी लेखक पढ़े जा रहे हैं, जैसे रांडा बर्न, राबिन शर्मा, डॉक्टर जोसेफ़ मर्फी। उनकी सारी बातों की डोर भारत में महात्मा बुद्ध से जुडी है। 
 बुध कहते हैं जैसा आप सोचते हो वैसे आप बन जाते हैं, आपकी सोच आपकानिर्माण करती है।

 वह बुद्ध की बातों को ही घुमा फिराकर लिखते हैं और हमें उसको पढ़ कर खुश होते हैं। हमें महात्मा बुद्ध को सीधा पढ़ना चाहिए।
मैं ये नहीं कह रहा कि इनको ना पढो, मैनें भी ये सारे पढे हैं।
बुद्ध की बातों को  पचाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि वह हमें हमारे सामने ही नंगा कर देता है। वह परमात्मा की मौजूदगी को नकारता है। वह कहता है अप्प दीपो भव:, मतलब अपने दीपक स्वयं बनो । पर हम ठहरे गुलाम मानसिकता के लोग,  हमें हर वक्त कोई ना कोई सहारा चाहिए ।जैसे ओशो कहते हैं कि जब भी आप अंधेरे में चल रहे हो तो आप कुछ गीत गुनगुनाने लगते हो क्यों?  क्योंकि आपको अपनी ही आवाज सुनकर लगता है कि कोई ना कोई साथ है, मैं अकेला नहीं हूंँ।
बुद्ध ने यह कहा है कि जो 
आदमी अकेला रह सकता है ,
 सोच सकता है,
 इंतजार कर सकता है, 
वही आदमी सत्य के मार्ग पर चल सकता है।

 बुद्ध ने तीन आर्य सत्य कहे
 जीवन दुख है ,
दुख की कारण इच्छा है,
और इस कारणों से पार जाया जा सकता है।
 पर आम इंसान पहले सत्य पर ही रुक जाता है कि जीवन दुख है। वह शराब पीता है, जुआ खेलता है और जीवन को नर्क कहकर इस संसार से विदा हो जाता है। उसकी खोज दूसरे और तीसरे सत्य पर जाती ही नहीं।

 मैं अभी-अभी एक आदमी के पास रहता था उसकी तनख्वाह  ₹90,000 के लगभग होगी।
 पर उसका चेहरा ऐसा था जैसे उसको किसी ने मारा पीटा हो। वह कह रहा था कि  इतनी स्ट्रेस है कि दिन भर काम, रात को भी काम के ही सपने आते हैं । तो मैंने पूछा क्या आप मन की शांति के लिए कोई किताब पढ़ते हो, कोई ध्यान करते हो, या कोई शौक है या कोई संगीत सुनते हो ?
उसने जवाब दिया, नहीं।
 मैंने कहा जब तुम बिमारी की ही जिक्र करते रहोगे , उसके हल के बारे में नहीं सोच सकते तो इस निकलोगे कैसे इस जंजाल से?
 महात्मा बुद्ध कहते हैं बार-बार बीमारी  की बात करने की बजाय उसके इलाज ढूंढने की बात करो।संसार इसलिए दुख ज्यादा है कि सारे लोग कवि, लेखक सब यही कहते रहते हैं जीवन दुख है , जीवन दुख है।
पर इस दुख से पार कौन लेकर जाएगा, उसकी बात कोई करता ही नहीं। वैसे भी बुद्ध ने कहा है जो आप सोचते हो वैसे बन जाते हो। तो दुख की बात करने से वो ओर सघन होता जाता है।


 इसके कुछ और कारण हैं
 पहला कारण है कि हम अपने आप को पूरा स्वीकार ही नहीं करते ,जैसे हम हैं। फिर हम अपने आप को प्यार कैसे करेंगे और जब तक हम खुद को प्यार नहीं करते तो दूसरे को प्यार कैसे करेंगे?
  तो जीवन की तकलीफ यही से शुरू हो जाती है। तो पहली बात यह है कि अपने आपको अपनी कमियों के साथ स्वीकार करो और  प्यार करो। ओशो की एक मेडिटेशन है कि अपने आप को प्यार करना ।
 एक बार  मैं ये मेडिटेशन कर रहा था तो मेरी आंखें भर आईं। आप भी अपनी आंखें बंद करके अपने आप को देखें कि आपने अपने आप को कितनी बार प्यार किया है?
पर हम अपने आपको इतनी नफरत करते हैं कि हमारा बस चले तो हम अपने कितने टुकड़े ही कर लें।
 पर हमको तो परमात्मा ने ही ऐसा बनाया है गुणों और अवगुणों के साथ। पर जब हम अपने आप को स्वीकार करने लग जाएंगे तभी अपने आप को प्यार करने लग जाएंगे।
 तो ही हम दूसरे को प्यार करेंगे, तब ही दुनिया में प्यार फैलेगा।
 मैंने एक जगह पढा था,
Love is not to find perfect, it is an art to see impetfect perfectly.
 प्यार किसी संपूर्णता की तलाश नहीं,  बस यह तो किसी की अपूर्णता को पूर्ण मानना ही प्यार 
है ।
मैंने कई बार इस कविता का हाइकु कविता का जिक्र किया है (हाईकु कविता तीन लाइनों की होती है जो जापान में जाती है)
परमिंद्र सोढी जी की एक कविता है
 
आइए अपने ही होने का
जश्न मनाए
कितना खूबसूरत है हमारा होना

 ओशो की सारी भर यही कहते रहे कि 
उत्सव अमार जाति
आनंद अमार गोत्र
उत्सव मनाना ही हमारी जाति है और आनंद ही हमारा गोत्र है ।

एक और शे'र है कि
 
आओ सजा ले आज को
कल की ख़बर  नहीं
कल की क्या कहें
यँहा पल की ख़बर नहीं

जो आदमी जीवन की क्षणभंगुरता  को स्वीकार करता है वह कभी दुखी नहीं होता। 
 बुद्ध कहते हैं यँहा कुछ भी स्थिर नहीं है हर चीज़ गति में है।
 जो हमें आज दुख है कल वो सुख में परिवर्तित हो जाएगा , तो फिर दुख काहे का?

एक वाक्या और याद आ रहा है , किसी ने पूछा
सहजता और तनाव में क्या फर्क है?
जवाब मिला, जो तुम हो उसे स्वीकार करना सहजता है, जो तुम होना चाहते हो वही तनाव है।

 आज के लिए इतना ही।
 फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर।
 आपका अपना
 रजनीश जस 
 रुद्रपुर 
उत्तराखंड 
निवासी पुरहीरां
 होशियापुर , पंजाब

रेहड़ी वाले के सपने

 रेहड़ी लगाना है मेहनत का काम है । 




 कई ज़िन्दादिल इंसान भी मिल जाते हैं रेहड़ी वाले। आईए ऐसे ही एक इंसान से मिलते हैं।


मैं अपने बेटे के साथ घूम रहा था तो उसने कहा पापा अन्नानास खरीद लो। मैं वँहा पर एक रेहड़ी वाले के पास गया उसे भाव पूछा और उसको कहा कि एक अनानास दे दो। वो किलो से थोड़ा सा ज्यादा था। वो पॉलिथीन के दस्ताने पहनकर अनानास छीलने लग गया। मैं उससे बातचीत करने लगा।

 मैंने पूछा कैसा चल रहा है कारोबार ?

उसने कहा, ठीक ।

मैंनें कहा, मुझे वो लोग  बहुत बुरे लगते हैं जो सिर्फ देश के सिस्टम को गाली देते हैं पर मेहनत करके पैसा नहीं कमाना चाहते।

 वह बोला, वो लोग  गद्दार है कि जिस देश का नमक खाते हैं उसी को गाली देते हैं।


 मैंने उससे पूछा , तुम्हारा नाम क्या है?

 उसे बताया,सचिन राय ।

पास ही एक सकिओरिटी वाला खडा था,  उसका नाम सुनकर मुस्करा कर बोला , सचिन तेंदुलकर।


 मैंनें कहा, ये भी अपनी फील्ड का तेंदुलकर ही है।

 उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।


 सचिन : भाई, साहब। मैं पिछले 15 साल से यही काम कर रहा हूं, अन्नानास बेचने का। पहले 12 साल दिल्ली में रहा, अब 3 साल से यंही  रूद्द्पुर में हूं।


  जब दस क्लास पास की तो पिता जी ने कहा कि आगे पढ़ कर क्या करोगे? अपना बिज़नेस करो।  मैंने कहा बिज़नेस के लिए भी तो पैसे चाहिए?

 जब कोई  हल ना निकला तो खेती करने के इंस्टीचिऊट गया , वँहा से खेती करने के नये ढंग सीखे। फिर पट्टे पर जगह ली और खेती करनी शुरू की। जल्द ही फूलों और सब्जियों की अच्छी पैदावार हुई।

पर जब ज़मीन के मालिक ने यह सब देखा तो उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा उसकी ज़मीन पर कोई गैर पैसे कमा रहा है।

उसने अगले साल का ठेका देना मना कर दिया। मुझे फिर यह रेहड़ी लगाने का काम शुरू करना पडा।  इस काम के लिए वो दिल्ली चला गया।

( वो मुझसे बातें किए जा रहा था साथ साथ में  

अन्नानास के कांटे भी निकाल रहा था।  उसका फोन बजा पर उसने साइलेंट कर दिया शायद इतनी शिद्दत से सुनने वाला पहली बार मिला था)


सचिन ने बताया  जब वह दिल्ली गया उसकी सेहत बहुत  अच्छी थी पर वँहा के  गंदे पानी प्रदूषित वातावरण में वो सब खो गया। दिल्ली में रेहड़ी लगाना गैरकानूनी है। वो पुलिस को पैसे देकर रेहड़ी लगाता रहा । वो कह रहा था , हम ही लोग रिश्वत देते हैं , फिर कहते हैं ये रिश्वत देश की व्यवस्था को बिगाड़ रही है।उसकी जेब में उसका फोन लगातार बज रहा था पर उसनेअपना काम करना और बात करना जारी रखा।


 उसने बताया कि वो 1000 रूपये दिल्ली में हर रोज़ कमाता, फिर सारे खर्च  निकाल कर 350  रुपए बचाता।

फिर वो रुद्रपुर आ गया है क्योंकि यही उसका मकान है। जितने पैसे वो दिल्ली में कमा रहा था अब उतने ही यँहा कमा रहा है।

मैनें कहा भारत में लोग बच्चे  पैदा कर तो लेते हैं पर वो उन्हें पढ़ाई लिखाई करवाने में सक्षम नहीं क्होते।  इस संसार में उतने ही बच्चे पैदा करो जिन को अच्छी परवरिश कर सकें  नहीं तो उनकी आबादी बढ़ जाएगी और कुछ लोग उसको हमेशा  लूटते रहेंगे।


  सचिन ने जवाब दिया कि उसके दो ही बच्चे हैं जिनको पढ़ा लिखा रहा है। उसको भी लोगों ने कहा कि एक ओर बच्चा पैदा कर । पर उसने ऐसा करने से मना कर दिया।


 मुझे उससे बातें करके लग रहा था कि ऐसे ही दुनिया भर में कितने ही सचिन होंगे जो  हर रोज़ घर से रेहड़ी लगाने घर से  निकलते हैं और सोचते हैं कि उनके बच्चे पढ़ लिखकर अच्छी जिंदगी जिए।


 उसने अनन्नास पैक कर दिया था।


मुझे हरिवँशराय बच्चन की लिखी पक्तियाँ याद आ गयी

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।


आईए अब अनानास के बारे में जान ले। 

गूगल बाबा के सहयोग से।

अनन्नास (अंग्रेज़ी:पाइनऍप्पल, वैज्ञा:Ananas comosus) एक खाद्य उष्णकटिबन्धीय पौधे एवं उसके फल का सामान्य नाम है ।यह मूलतः पैराग्वे एवं दक्षिणी ब्राज़ील का फल है। अनन्नास को ताजा काट कर भी खाया जाता है और शीरे में संरक्षित कर या रस निकाल कर भी सेवन किया जाता है। इसे खाने के उपरांत मीठे के रूप में सलाद के रूप में एवं फ्रूट-कॉकटेल में मांसाहार के विकल्प के रूप में प्रयोग भी किया जाता है। मिष्टान्न रूप में ये उच्च स्तर के अम्लीय स्वभाव (संभवतः मैलिक या साइट्रिक अम्ल) का होता है। अनन्नास कृषि किया गया ब्रोमेल्याकेऐ एकमात्र फल है।


अनन्नास के औषधीय गुण भी बहुत होते हैं। ये शरीर के भीतरी विषों को बाहर निकलता है। इसमें क्लोरीन की भरपूर मात्रा होती है। साथ ही पित्त विकारों में विशेष रूप से और पीलीया यानि पांडु रोगों में लाभकारी है। ये गलेएवं मूत्र के रोगों में लाभदायक है। इसके अलावा ये हड्डियों को मजबूत बनाता है। अनन्नास में प्रचुर मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है। यह शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का काम करता है। एक प्याला अनन्नास के रस-सेवन से दिन भर के लिए आवश्यक मैग्नीशियम के ७५% की पूर्ति होती है। साथ ही ये कई रोगों में उपयोगी होता है। इस फल में पाया जाने वाला ब्रोमिलेन सर्दी और खांसी, सूजन, गले में खराश और गठिया में लाभदायक होता है। यह पाचन में भी उपयोगी होता है। अनन्नास अपने गुणों के कारण नेत्र-ज्योति के लिए भी उपयोगी होता है। दिन में तीन बार इस फल को खाने से बढ़ती उम्र के साथ आंखों की रोशनी कम हो जाने का खतरा कम हो जाता है। आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों के शोधों के अनुसार यह कैंसर के खतरे को भी कम करता है। ये उच्च एंटीआक्सीडेंट का स्रोत है व इसमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और साधारण ठंड से भी सुरक्षा मिलती है। इससे सर्दी समेत कई अन्य संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।



मैंने उस को अलविदा कहा था घर की तरफ चल दिया।

फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर।

आपका अपना 


रजनीश जस

रूद्रपुर

उत्तराखंड 

निवासी पुरहीरां

 होशियारपुर

 पंजाब

18.09.2020


Monday, September 14, 2020

#journey_to_chail_himachal_pardesh

#journey_to_chail_himachal_pardesh

रविवार है तो साईकलिंग, दोस्त, किस्से, कहानियाँ। आज साईकलिंग पर नहीं गया पर आपको एक यात्रा पर लेकर चलता हूँ, यात्रा है कुफरी और चायल जो शिमला के पास हिमाचल प्रदेश मे है। 

रुद्रपुर से रामपुर पहुँचा। रामपुर से ट्रेन पकड़ी। ट्रेन में साइड वाला अप्पर बर्थ मिला। 

एक आदमी अपनी सीट ढूँढ रहा था, वो अपनी टिकट की फोटो खींचकर लाया था, जिस पर नंबर साफ नहीं दिखाई दे रहा था।मेरे सामने वाली सीट पर एक आदमी था उसका मोबाईल लेकर उसकी मदद कर रहा था।
  किसी कारण वो डिब्बा नहीं था जो उस तस्वीर में दिखाई दे रहा था। उसकी जगह उसकी सीट दूसरे डिब्बे में शिफ्ट हो गयी थी। मुशकिल से उसे सीट मिली। वो उस आदमी का शुक्रिया अदा करके चला गया।
मैं ये सब देख रहा था तो मैंने उस मदद करने वाले से  बात की। उसका नाम शेरखान था और उसका कलकत्ता में ट्रांसपोर्ट का काम था।
 फिर मैं सो गया।  फिर अंबाला आ गया। अंबाला से मैंने दो नंबर प्लेटफार्म से पुराने वाली दुकान से ब्रेड पकौडा खाया। फिर अपने ससुराल डेराबस्सी सुबह 4 बजे पहुँचा। वँहा जाकर आराम किया  नहाया धोया और निकल लिया चंडीगढ़ की तरफ। मेरा एक दोस्त बाहर से आया हुआ था हम हर साल Get Together करते हैं। जिसमें दो रात  होटल में रहते हैं, पुरानी कालेज की बातें करते है, खूब हँसते हैं, मस्ती करते हैं।
हम सभी 1993 - 96 में सरकारी पालीटैक्निक कालेज बठिंडा में इक्ट्ठे पढे हैं।
उनहोने  मुझे 10:30 बजे गोपाल स्वीटस पर मिलने को कहा।  तब तक मैं भी पंजाब युनीवर्सिटी चंडीगढ़ चला गया क्योंकि मेरी पहली पंजाबी कहानियों की किताब " अन्जान टापू" रिलीज होनी थी। उस किताब के इस समारोह में में  मुझे देरी हो गई, उधर से विवेक पाठक के फोन पर फोन आ रहे थे। ये किताब पंजाबी के जाने माने लेखक जंग बहादुर गोयल जी के हाथों हुआ।
मैनें अपने बाहर से आए दोस्त के लिए एक किताब खरीदी और अपने लिए कुछ किताबें भी।
 दोस्तों के बाद फोन आए, मैं गोयल जी के साथ ही वँहा से निकला। मैं जैसे ही वापस आया  मेरा दोस्त जो बाहरले मुल्क से आया हुआ था उसे ज़रूरी काम आ गया के वहीं से लौट गया। हमारा दिल उदास हो गया। अब हम कुछ दोस्त विवेक पाठक, जगमीत, जगविंदर, प्रशांत शर्मा  निकल लिए शिमला की तरफ। रास्ते में  थोड़ी भूख लग गई। तो प्रशांत शर्मा  अपने घर से मक्की की रोटी, सरसों का साग और आम का अचार लाया हुआ था। हमने वही सड़क पर एक तरफ गाड़ियां लगाई और वहां खाना शुरु कर दिया। फिर वहां से पिंजोर पहुंचे। पिंजोर से एक तरफ को बाईपास निकलता है क्योंकि कालका जी ने सड़क बहुत टाइट होने के कारण जाम लग जा रहा था तभी  सरकार ने  बाईपास बना दिया था। वहां से शिमला की तरफ रूख कर लिया। रास्ते में खाते पीते गए । कभी छोले भटूरे, कभी संतरे। हमने एक दुकान में चाय पी, वो दो सिख भाईयों की थी। उन्होनें बहुत बडा कुत्ता पाला हुआ था।

 रास्ते में सोलन आया वहां पर" सोलन नंबर वन" के मशहूर स्काच व्हिस्की बनाई जाती है। इसे अंग्रेजी राज में 1842 मे एडवर्ड अब्राहम डायर ने बनाया था। वो जलियांवाला बाग में 1913 के गोली चलाने वाले जनरल अडवायर के पिता थे। ये ब्रांड बहुत मशहूर है। अब ये फैक्ट्री मोहन मेकन के नाम से चल रही है।

हम पहाड़ियों का नजारा लेते हुए चैल की तरफ बढ़ रहे थे। धीरे धीरे सूरज महाराज नीचे आने लगे और अंधेरा बढ़ने लगा। हम रास्ते में एक खाई में गाडियां लेकर उतरे,  वहां पर पानी बह रहा था। पानी में लकड़ी की कुर्सियाँ टेबल  लगे हुए थे।  सामने लकडी और स्लेट की हट बनी हुई थी। हमने वहां पर पकौडे बनवाकर खाए। और आगे बढ़  दिये। अंधेरा बहुत हो चुका था । हमने होटल वालों को फोन कर दिया। हमारा बाहर वाला दोस्त नहीं आया था तो प्रोग्राम में कुछ चेंज हो गया था । 

 चायल के बारे में एक और दिलचस्प जानकारी है कि वहां पर दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान है, ये महाराजा पटियाला ने बनाया था। यहां पर उनका एक महल भी है जिसको अजायबघर में तब्दील कर दिया गया है इसको लोग टिकट खरीद कर देखने जाते हैं।

जैसे ही हम वँहा चायल होटल पहुँचे हमारा स्वागत किया गया। पहाड़ी टोपी डाली, गले में हार डाले गये। वँहा पर ढोल वाला आया हुआ था,उसने ढोल बजाया और हमने डाँस किया। 
 हमने अपने एक दोस्त को कह दिया कि तुम कहना मैं बाहरले देश से  आया हुआ हूँ,बस फिर क्या जो वहां पहुंचे जैसे ही कोई वेटर आया करे वह 100 और 500 का नोट निकाल कर उसको टिप दे देता।

फिर हमने होटल में चैक इन किया। हमने बाहर ही उसको बोन फायर और संगीत लाने को कहा। बाहर तापमान 2 डिग्री था । सामने पहाड़ियों पर घर जुगनू की तरह चमक रहे थे। फरवरी में वैसे भी उत्तर भारत में बहुत ठंड होती है। खुले आकाश का अलग ही नजारा था। हमने वहां पर खाना खाया फिर हम सो गए। फिर हम सुबह उठे और सुबह का नाश्ता खाया और गाड़ियों से निकल गए हम कुफरी की तरफ। रास्ते में पहाड़ियों पर बर्फ गिरी हुई थी, हम उसका आनंद लेते हुए जा रहे थे।
 मुझे रोजा फिल्म का गाना याद आ गया

 ये हसीं वादियां
 ये खुला आसमा
 आ गए हम कहां

हम कुफरी पहुँच गये। वँहा कपडा  मार्केट में रूके। वँहा पर बर्फ ही बर्फ जमी हुई थी। चलने पर फिसल रहे थे। हमने वँहा चाय पी। कुछ दोस्तों ने एक दूसरे पर बर्फ डालकर शरारतें कीं। साथ में चिड़ियाघर था। हमने टिकटें खरीदी और अंदर चले गए । वँहा पेडों पर बर्फ ही बर्फ थी और नीचे भी। चलते हुए कई बार हमारे पैर बर्फ में घुस गए। अंदर बहुत सारे जानवर थे  जैसे हिरण, बारहसिंघा और चीता। रास्ते में बर्फ हटाकर रास्ता साफ करते हुए हमें मज़दूर भाई बहन मिलें। मैंने उनसे बातें की और उनकी फोटोग्राफ खींची। मैंने उनका शुक्रिया अदा भी किया क्योंकि वह बर्फ को बेलचे से एक तरफ हटाकर हमें फिसलने से बचाने का काम कर रहे थे।  हम आगे गए तो एक पिंजरे में एक चीता दिखाई दिया। पता चला कि वह काफी साल पहले यँहा लाया गया था जब वो छोटा सा बच्चा था। जानवरों को पिंजरे में देखकर मुझे ये महसूस हो रहा था कि हम अपनी मनोरंजन  की खातिर कितने सारे जानवरों को पकड़कर उनकी आजादी खत्म कर दे रहे हैं। अगर इससे उल्ट हो, कि अगर हम पिंजरे में हों और वो जानवर बाहर हो तो जैसे कि कोरोना काल में हमने देखा ही है।
वँहा से वापिस निकले हम चायल के लिए। 

चायल का भी अपना एक इतिहास है। महाराजा पटियाला ने बनवाया हुआ ये कस्बा है क्योंकि शिमला के माल रोड पर अंग्रेजों ने  लिखकर लगा रखा था, भारतीय लोग इस पर नहीं आ सकते। ये बात उन्हें खल गयी और इस जगह को बसाया गया।

 कुफरी से आते हुए हम होटल नहीं बल्कि पहाड़ की चोटी पर बना काली माता का मंदिर माथा टेकने गये। यह मंदिर सफेद  संगमरमर  से बना हुआ है। वह फर्श इतना ठंडा था कि नंगे पैर ठंड से जमने को हो रहे थे। हमने वहां पर माथा टेका वापिस होटल आ गये।

 हमारा होटल पहाड़ी के ढलान पर था। उसमें खिड़की की जगह पूरा शीशा लगा हुआ था, सामने बहुत खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा था।
हमने सुबह का उगता सूरज देखा, रात को पहाड़ पर लाईटें। हमारे देश में बहुत सारी जगह अच्छी जगह है वँहा घूमने के बजाए हम  बाहर के देशों को भागते हैं।

 हमने फिर रात को खाना खाया और देर रात तक खूब गप्पे मारी। होस्टल के दिनों के पुराने नाम लेकर खूब को याद किया।
 सुबह 4 बजे हम निकलें।
गूगल मैप से रास्ता देखने लगे, पर हम गल्त रास्ते पर आ गये। वँहा बिल्कुल अंधेरा था। फिर एक जगह बस वाले से रास्ता पूछा। जब हम राह पर आ रहे थे तो रास्ते में तीतर और कई खूबसूरत पंछी दिखाई दिए। राह में एक पैदल मुसाफिर मिला। हमने उस से रास्ता पूछा और उसे कार में लिफ्ट लेने को कहा पर उसने मना कर दिया। वो अपनी मस्ती में चल रहा था।
रास्ते में सूखे पेड़ दिखाई दे रहे थे। ये सेब के पेड़ थे, ये मुझे रामगढ़, उत्तराखंड जाते हुए बातूनी ड्राईवर ने बताया था।

सेब के बारे में दिलचस्प जानकारी

करीब 111 साल पहले 1905 में अमेरिका से एक युवक हिमाचल आया। सैम्युल इवांस स्टोक्स ने शिमला के लोगों को बीमारी और रोजी-रोटी से जूझते देखा तो यहीं बसकर उनकी सेवा करने का निर्णय लिया। वे स्थानीय युवती से शादी कर आर्य समाजी बन गए।

अपना नाम सत्यानंद स्टोक्स रख लिया। इस क्षेत्र में नकदी फसलें नहीं होने से लोग काफी गरीब थे। इसी बीच, इस युवक ने साल 1916 में अमेरिका से पौध लाकर कोटगढ़ की थानाधार पंचायत के बारूबाग में सेब का पहला बगीचा तैयार किया।
लोगों को सेब उगाकर दिखाया और उन्हें भी प्रेरित किया। सौ साल बाद आज हिमाचल एप्पल स्टेट बन चुका है। यहां के बागवान करोड़पति बन चुके हैं। प्रदेश के लाखों परिवार दूसरा काम धंधा छोड़कर सेब बागवानी से मोटी कमाई कर रहे हैं।

शिमला, कुल्लू, किन्नौर, मंडी समेत 12 में से 8-9 जिलों में सेब उत्पादन हो रहा है। आज उनकी लगाई रॉयल वैरायटी का सेब विदेशी किस्मों को भी मात दे रहा है। मौजूदा समय में हिमाचल में सेब का सालाना 3 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है।

गौरतलब है कि सत्यानंद स्टोक्स ने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ भी रहे। वे खादी पहनते थे। उनकी बहू विद्या स्टोक्स मौजूदा समय में हिमाचल सरकार में बागवानी मंत्री हैं। 

कुल बागवानी क्षेत्र : 2,28,000 हेक्टेयर
सेब के तहत क्षेत्र : 1,09,553 हेक्टेयर
सालाना पैदावार : पांच से आठ लाख मीट्रिक टन
बागवानों की संख्या : करीब 9 लाख।
फलों से प्रति व्यक्ति आय (2014-2015) : 5525 रुपये

प्रदेश में प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्र
शिमला जिले के कोटगढ़, कोटखाई, रोहडू़, चौपाल, कुल्लू जिला, किन्नौर जिला, लाहौल स्पीति, चंबा, मंडी जिले के कुछ इलाके, सिरमौर जिले के नौहराधार, हरिपुरधार क्षेत्र, कांगड़ा के बड़ा भंगाल, छोटा भंगाल क्षेत्र। 40 डिग्री तापमान में उगने वाला सेब बिलासपुर जैसे कुछ अन्य जिलों में उगाया जा रहा है।

 यहां पहली बार सेब पौधे लाए थे। आज अगर हिमाचल सेब राज्य है तो पहला पौधा उनका ही लगाया हुआ है। 
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 रास्ते में हमने एक जगह कभी मैगी खाई। पहाड़ी रास्तों से मैगी खाने का लगी मजा ही कुछ और होता है। उसके बाद एक दुकान पर रुक कर बाँस का आचार खरीदा  और फिर हम चंडीगढ़ आ गए।
आज के लिए इतना ही। फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां 
होशियारपुर
पंजाब
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#himachal_pardesh
#kufri
Feb.2020

Sunday, September 13, 2020

Sunday Diaries 13.09.2020

रविवार है तो साइकिलिंग, दोस्त, किस्से कहानियाँ। सुबह उठा, सेब खाया और निकल लिया साईकलिंग पर। चाय की अड्डे के आगे से निकला था तो वँहा खूब रौनक थी। स्टेडियम के आगे से होता हुआ एक बड़ा गोल चक्कर घूम कर साइकिल चलाते हुए पार किया। वहां पर लड़के लड़कियां एक्सरसाईज़ कर रहे थे और  सेल्फी खींच रहे थे, छोटे बच्चे साइकिल चला रहे थे। मैनें फोटोग्राफी की और वापस चाय के अड्डे पर आ गया। 


वहां पर डॉ प्रदीप जायसवाल मिले अपने एक ओर डाक्टर के साथ। हम बातें करने लगे।  एक लड़का ओर आ गया वह एक आर्ट टीचर है।  महात्मा बुद्ध के बारे में बातें हुई तो प्रदीप जी ने बताया कि यहां पर महात्मा बुद्ध ने आखिरी सांस ली थी कुशीनगर में  वो उनके घर के पास है।

 मैं सुना रहा था कि महात्मा बुद्ध को किसी गरीब आदमी ने अपने घर पर खाने के लिए बुलाया। कुछ और ना मिला तो वो जंगल से  कुकरमुत्ता (मशरूम) तोड़ कर लाया और खाना बुद्ध को परोसा। जैसे ही बुद्ध ने भोजन चखा उनको पता चला है यह ज़हरीला है। पर वह आदमी इतनी प्यार और श्रद्धा से खाना खिला रहा था कि बुद्ध में वह खाना खा लिया। उनके शरीर में जहर फैलने लगा। वो अपने आश्रम में आए और उन्होंने कहा कि आज से 3 दिन बाद मैं  ये शरीर त्याग दूंगा।  मेरे लिए वह दोनों लोग पूजनीय है जिसने मुझे पहला खाना खिलाया और इसमें मुझे अंतिम। क्योंकि वह जानते थे कि जब उनके भिक्षुओं को पता चलेगा इस आदमी ने ज़हरीला  कुकरमुत्ता खिलाया है तो  भिक्षु उसको पीट-पीटकर मार देंगे । इसलिए बुद्ध ने कहा कि जिसने मुझे अंतिम खाना खिलाया है वह भी मेरे लिए पूजनीय है।

 इसके बाद जैसवाल जी ने बताया उनकी सारी परवरिश बेंगलुरु में ही हुई है। एलकेजी से लेकर डेंटिस्ट बनने तक का सफर उन्होनें  वहीं पर किया । फिर उनके भाई की नौकरी रुद्रपुर लग गई ।  वह लोग  2007 में यहां आ गए । यहां आने के बाद उन्होंने देखा कि यँहा हल्द्वानी से पहाड़ शुरू हो जाते हैं और उत्तराखंड बहुत खूबसूरत और हरा भरा है। उनको लगा कि यँही रह जाऊं तब से यहीं रुक गए। जब कभी कुछ कमी महसूस होती है तो वो हल्द्वानी के पास हेड़ा खान चले जाते हैं। मैं कभी गया तो नहीं पर उसकी जगह के बारे में बहुत सुना है। नदी के किनारे लोग पत्थर से चुल्हा बनाकर  चावल बना लेते हैं , कुछ लोग चिकन लेकर जाते हैं कुछ लोग ड्रिंक लेकर जाते हैं और वहां पर पिकनिक मनाने मनाते हैं ।
वो बता रहे थे जब वहां गए तो बहुत सारे ड्रिंक पीने को मिले जैसे जिंजर ड्रिंक, लेमन ड्रिंक वो भी  कुनकुना पानी में।
  मैंने उनको भी दिखाया जिसकी तस्वीर में शेयर भी कर रहा हूं मैंने कहा एक पत्ता ऐसा है जैसे कि कुदरत है नाक्काशी की है,  एक पत्ता सूख गया है वह बूढ़ा हो गया है और वह दोनों मिट्टी पर बैठे हैं। मतलब की मिट्टी से पैदा हुए हैं और से और फिर मिट्टी में ही मिल जाएंगे । ऐसा ही आदमी का एक सफर है वो 5 तत्व से बनता है, बच्चा बनकर पैदा होता है,जवान होता है, जीवन के सुख दुख की धूप छाया  भोगता है, बुढ्ढा होता है, फिर 5 तत्व  में लीन हो जाता है। सारी चीजें वर्तुल में घूमती हैं।

 हम वहां बैठे थे तो हम में से एक का मोबाइल नीचे गिर गया था , वहीं पर दर्द का तेल बेचने वाले ने बता दिया।
वँहा पर  एक पागल आदमी भी घूम रहा था।  चाय वाले उसको चाय पीने को दी। यह दोनों बातें  इंसानियत है। मैं ये सोच रहा था कि दुनिया में पागल है, भुखमरी है तो कहीं ना कहीं हम सब भी इसके जिम्मेवार हैं। भारत का जब 1947 में बटवारा हुआ था तो लगभग 50 करोड़ की आबादी थी जो कि 70 साल में 130 करोड़ हो चुकी है। इतनी आबादी है जिसके कारण देश में में देश में भुखमरी, बेरोजगारी इत्यादी बढ़ रहे हैं।

 हम जब कुछ सोचते हैं तो वो  हमारे शरीर से वाइब्रेशन बनकर निकलती हैं जब वो वाइब्रेशन के दूसरे वाले में से मिलती है तो वोआपकी तरफ खिंचा चला आता है। जैसे आप बस में बैठे हैं , कँही सफर कर रहे हैं तो आपके शौक वाला आदमी अचानक आपके पास आ जाता है और सफर सुखद हो जाता है।
 और बहुत सारी बातें हुई  जैसे कि रविंद्र नाथ टैगोर और आइंस्टाइन का  पत्र व्यवहार चलता था। वह आपस में मिलते भी थे। इसमें क्या है कि जब साइंस और कला जब  मिलती है तो ही समाज का उत्थान होता है। अगर अकेली साइंस तरक्की करती रहेगी तो वो बम बना कर दुनिया को तबाह कर देगी। पर  अगर वहीं  कला के साथ मिल जाती है तू कोमल हो जाती है।
 यह यँही हो रहा था अभी डेंटिस्ट मेरे जैसा ही कवि,पंकज जैसा इंजीनियर और वो आर्ट टीचर।
हम सबका मिलना  सुखद हो, यही दुआ है।

 आइए छोटे बच्चों को परवरिश  बात करते हैं। हमारे बच्चे जब साथ में आठवीं कक्षा में हो जाते हैं तो उनके अंदर एक ऊर्जा का विस्फोट होता है। उस ऊर्जा को अगर सही दिशा में लगा दिया जाए कमाल हो सकता है। जैसे कि बच्चे टीनेजर उसमें कक्षा तक पहुंचे तो उन्हें चाय बनाना, चावल बनाना, सब्जी काटना आना चाहिए, घर में झाड़ू पोछा करना भी।  इससे क्या रहेगा, जब भी वह कहीं आगे कॉलेज में हॉस्टल में जिंदगी जीने के लिए जाएंगे  तो परेशान नहीं होंगे।अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो क्या हो गया हो सकता है  उसका भी पता कर लेते हैं। जब भी कभी मां बीमार होगी तो बच्चे भूखे रहेंगे या होटल से खाना मंगवा लेंगे।

 आखिर में जेन कहानी स्टोरी । एक बार  दो फकीर पहाड़ी के रास्ते चले जा रहे थे। बहुत ज्यादा बारिश थी। एक लड़की ने कहा वो कीचड़ वाला रास्ता  पार नहीं कर सकती। तो एक भिक्षु ने उसे बाहों में उठा लिया और वह जगह पार करा दिया। कीचड़ पार करवाने के बाद भिक्षु ने उसे वहां पर उतार दिया और वो दोनों भिक्षु अपनी राह पर चल दिए। आगे चलकर दूसरे ने पहले भिक्षु कहा,  तुम्हें पता है कि लड़की को हम भिक्षु छू नहीं सकते तुमने लड़की गोदी में क्यों उठाया? पहले भिक्षु ने जवाब दिया मैंने तो उसको कीचड़ पार करके वंही उतार दिया था पर तुम  मानसिक तौर पर उसको अभी भी ढो रहे हो।

जिंदगी में जो पीछे बीत चुका है उसका रोना रोने से अच्छा है जो अभी हो रहा है उसको जिए।

आज के लिए इतना ही। फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर। 
आपका अपना 
रजनीश जस
रूद्रपुर
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13.09.2020
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Thursday, September 10, 2020

Journey to Rock Garden Chadigarh

रविवार है तो साईकलिंग, दोस्त, किस्से कहानियाँ। सुबह उठा भूख लग रही थी तो एक से  सेब खाया और निकल या साइकिलिंग को।
सेब एक अच्छा फल है, मैं जब भी सफर पर जाउँ तो सेब ओर अमरूद साथ रखता हूँ।

 आज धुंध थी, सूरज देवता भी बादलों के पीछे छिपे थे। मैं देख रहा था आज साइकिलिंग करने  बहुत सारे लोग आए हुए थे। कुछ लोग व्यायम कर रहे थे । मैनें कुछ फोटोग्राफ खींचें।
 आज चाय के अड्डे पर भीड़  थी । भीम सिंह  बिष्ट , हमारे चाय के अड्डे के कर्ता धर्ता हैं। लोग उन्हें प्यार से "भीम दा" कहते हैं। जहां पहाड़ में बड़ों के नाम के साथ "दा" लगाया जाता है। बंगाली में बड़े भाई भाई को "ददा" कहा जाता है।

 मैं देख रहा था कि वहां पर ब्रेड के पॉलिथीन पड़े हुए थे । मुझे याद आ गया था कि इस कूडे कर्कट से, कबाड़ से चंडीगढ़ में रॉक गार्डन बना है। रॉक गार्डन चंडीगढ़ में नेक चंद जी द्वारा भी बनाया गया है। मैं कई बार वँहा गया हूँ।
 इसकी भी एक बहुत दिलचस्प कहानी है। नेक चंद जी का जन्म बाडियाँ कलां में हुआ जो कि अब पाकिस्तान में है । 1947 के बटवारे के बाद वो भारत आ गये। फिर पढ़ लिखकर PWD में  रोड इंस्पेक्टर बने। इसके बाद जब चंडीगढ़ बनना शुरू हुआ उनकी  नौकरी चंडीगढ़ लग गई। सुखना लेक के पास उनको सड़क बनाने का कार्य सौंपा गया। वह नौकरी करते रहे। फिर शहर बस गया। 

लोगों ने कबाड़ जंगल में फैंकना शुरू किया। नौकरी करते करते वो अपने कल्पना जगत में रहने लगे। नौकरी करने के बाद फिर शाम को जंगल में चले जाते वहां पर शहर का जो कूड़ा करकट था उससे उन्होंने नगर की स्थापना की।
इसी दौरान उनका एक बेटा जो ढाई साल का था वो एक बार बिमार हो गया, डाक्टर के पास पहुंचते पहुंचते ही उसकी मौत हो गयी। 

 वो फिर निराश ना होकर अपनी सारी ऊर्जा को उस राक गार्डन को बनाने में जुट गये। लगभग 15 साल तक  वो ये कार्य अकेले ही जंगल में करते रहे। ये बात उनके घर वालों को भी नहीं पता थी।
 रात को साइकिल के टायर को जलाकर वो जंगल में रोशनी करते और मच्छरों  बचने के लिए एक बोरी को सिर पर बाँध लेते। पास ही बहती हुई नदी अलग अलग तरह के नायाब पत्थर ढूंढ कर लाते थे जिस पर कोई ना कोई बुत होता।
फिर किसी अधिकारी ने देखा तो इस जगह को आम लोगों के खोल दिया गया और नाम रखा गया राक गार्डन। तब ये 12 एकड़ मे बना हुआ शहर था, अब 40 एकड़ में फैल चुका है।
टिकट खरीद कर जब हम अंदर जाते हैं तो  दरवाजे इस तरह बनाये गये हैं कि आपको झुक कर जाना पड़ता है, ये राजा का सम्मान है। नेक चंद जी ने इसे देवी देवताओं की नगरी का नाम दिया ।
 रानियों का महल के नहाने का हमाम बनाया गया है जो कि उँचाई पर है, वहाँ से रानियाँ नीचे बने दीवाने आम को देख सकती थीं पर उनको कोई नहीं। उँचाई पर राजा का महल है, वँहा एक झरना है।

  दूसरे फेस में  आम लोग बनाए गये है, उनका जन जीवन। कुँआ , यँहा से औरतें  पानी भरती थी। पहाड़ पर आम लोगों के छोटे छोटे मकान बने हैं , जिनकी छत्तें टूटे हुए घडों से बनी हुई है।
 फिर तीसरा फेज। बना है जिसमें डॉल गार्डन है , झूले बने है, फिश अक्येरम है,  ऐसे शीशे हैं कि उनमें देखने से हमारा चेहरा लंबा दिखाई देता है जिसे देखकर हँसी आती है।  सूखे हुए सीमेंट की बोरियों से उँची ऊँची दीवारें बनी हुई हैं।

इसमें  टूटे हुए चीनी के बर्तन, टूटी हुई चूडियाँ इत्यादि का इस्तेमाल किया गया है। इसी के लिए 1984 में पद्मश्री से नवाजा गया और दुनिया भर में लोगों को कूडे से ऐसी कलाक्रतियाँ बनाने के लिए भी गये। 

 सारी यदि दुनिया भर में बहुत सारा कूड़ा पैदा हो रहा है इसका सदुपयोग करने के लिए बहुत सारे साधन भी किए जा रहे हैं, पर यह बहुत तेजी से किए जाने चाहिए । अगर  कूड़ा ही ऐसा पैदा हो कि वो धरती मे अपने आप जज़ब हो जाए तो क्या कहने! 

 आइए अभी तो जाना तेरे चलते हैं एक जेन कथा की तरफ। मार्शल आर्ट सीखने के लिए एक लड़का गुरू के पास जाता है । वो वँहा के गुरू से पूछता है कि मार्शल आर्ट सीखने में उसे
कितने साल लगेंगे? 
गुरु ने उसको ऊपर से नीचे तक गौर से देखा और कहा,10 साल ।
लड़के ने फिर पूछा, कि मैं और तेजी से सीखूँ तो कितने साल लगेंगे?
गुरु ने कहा कि 20 साल ।
कबीर जी का दोहा है
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय 

आज के लिए इतना ही।
 फिर मिलेंगे ।
तब तक हंसते रहे मुस्कुराते रहे, आपका अपना रजनीश जस
रूद्रपुर, उत्तराखंड
 निवासी पुरहीरां
 जिला होशियारपुर, पंजाब
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06.09.2020

Stress free life (Punjabi)

 ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਇਕ ਸ਼ਬਦ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਫੈਲ ਰਿਹਾ ਹੈ ਉਹ ਹੈ ਸਟਰੈੱਸ ਮਤਲਬ ਤਨਾਵ।

 ਆਮ ਆਦਮੀ ਸ਼ਰਾਬ ਸਿਗਰੇਟ ਪੀਕੇ, ਮੰਦਿਰ ਜਾਕੇ ਬੱਚਿਆਂ ਤੇ ਘਰਵਾਲੀ ਤੇ ਗੁੱਸਾ ਕੱਢਕੇ ਸਟਰੈਸ ਕੱਢਦਾ  ਹੈ। ਇੱਕ ਵਰਗ ਸਵਿਟਜ਼ਰਲੈੰਡ ਜਾਕੇ , ਵੱਡੀ ਕਾਰ ਲੈਕੇ , ਵੱਡਾ ਘਰ ਖਰੀਦ ਕੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਧੋਖਾ ਦੇਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸਨੇ ਸਟਰੈੱਸ ਕੱਢ ਲਈ ਤੇ ਉਹ ਖੁਸ਼ ਹੈ ਪਰ ਅੰਦਰ ਖਾਤੇ ਉਹ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਹ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਦੁਖੀ ਹੈ।

ਜਿਵੇਂ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  

"ਵੱਡਿਆਂ ਸਿਰਾਂ ਦੀਆਂ ਵੱਡੀਆਂ ਪੀੜਾਂ।"

 

ਹੁਣ ਇਕ ਹੋਰ ਰੀਤ ਚਲ ਗਈ ਹੈ ਕੇ ਮੋਟਿਵੇਸ਼ਨਲ ਗੁਰੂ ਕੋਲ ਜਾਓ , ਉਸਦੇ ਲੈਕਚਰ ਸੁਣੋ।

ਕਈ ਤਾਂ ਬਾਬਿਆਂ ਦੇ ਚੱਕਰ ਚ ਫਸ ਜਾਂਦੇ ਨੇ। ਕੁਝ 

ਬਾਬੇ ਇੰਨੇ ਅਮੀਰ ਹੋ ਗਏ ਨੇ ਉਹ ਲੱਖਾਂ ਰੁਪਏ ਦੀਆਂ ਗੱਡੀਆਂ ਚ ਘੁੰਮ ਰਹੇ ਨੇ ਨੇਤਾ ਵੀ ਓਹਨਾ ਦੇ ਪੈਰੀਂ ਹੱਥ ਲਾਉਂਦੇ ਨੇ।

ਹੁਣ ਗੱਲ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਮੋਟਿਵੇਸ਼ਨਲ ਗੁਰੂਆਂ ਦੀ। ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਪੱਛਮ ਦੇ ਕਈ ਲੇਖਕ ਪੂਰੇ ਵਿਸ਼ਵ ਚ ਪੜ੍ਹੇ ਜਾ ਰਹੇ ਨੇ ਜਿਵੇ ਰੋਬਿਨ ਸ਼ਰਮਾ, ਰਾੰਡਾ ਬਰਨ , ਜੋਸੇਫ ਮਰਫੀ।

ਇਹਨਾਂ ਸਭ ਦੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦਾ ਮੂਲ ਬੁੱਧ ਹੀ ਨੇ।

 ਬੁੱਧ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਤੁਸੀਂ ਜਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੋਚਦੇ ਹੋ ਉਹ ਹੀ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹੋ। ਇਸਲਈ ਸੋਚ ਨੂੰ ਕੋਈ ਘੱਟ ਤਾਕਤਵਰ ਨਾ ਸਮਝੋ ਇਹ ਸਥੂਲ ਹੈ। 

ਮੇਰਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਨਹੀਂ ਕਿ ਇਹ ਲੇਖਕ ਨਾ ਪੜ੍ਹੋ ਮੈਂ ਵੀ ਇਹ ਤਿੰਨ  ਪੜ੍ਹੇ  ਨੇ ਤੇ ਬੁੱਧ ਨੂੰ ਵੀ ਪਡਿਆ ਹੈ।

ਜੋ ਗੱਲ ਇਹ ਲੇਖਕ ਲਿਖ ਰਹੇ ਨੇ ਸਾਨੂ ਉਹ ਖੁਸ਼ੀ ਦਿੰਦੇ ਨੇ ਪਰ ਸਿੱਧੇ ਬੁੱਧ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹੋ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਪਚਾਉਣਾ ਔਖਾ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਸਾਨੂੰ ਸਾਡੇ ਸਾਹਮਣੇ ਨੰਗਾ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਗੱਲ ਬੁੱਧ ਦੀ ਕਿ ਉਹ ਰੱਬ ਦੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਨਕਾਰਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਕੇ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਔਖੀ ਗੱਲ ਹੈ। ਇਹੀ ਕਰਨ ਕਰਕੇ ਬੁੱਧ ਦੇ ਭਿਕਸ਼ੂਆਂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਮਾਰ ਕੇ ਭਾਰਤ ਤੋਂ ਭਜਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਪਰ ਉਹ ਜਿੱਥੇ ਵੀ ਗਏ ਅੱਜ ਉਹ ਮੁਲਕ ਸਾਡੇ ਤੋਂ ਕੀਤੇ ਅੱਗੇ ਨੇ ਜਿਵੇ ਜਪਾਨ। 

ਬੁੱਧ ਕਹਿੰਦੇ  ਨੇ ਅੱਪ ਦੀਪੋ ਭਵ। ਮਤਲਬ ਆਪਣੇ ਦੀਪਕ ਆਪ ਬਣੋ। ਪਰ ਅਸੀਂ ਠਹਿਰੇ ਗ਼ੁਲਾਮ ਮਾਨਸਿਕਤਾ ਦੇ ਲੋਕ, ਸਾਨੂ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਸਹਾਰਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਜਿਵੇ ਓਸ਼ੋ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਤੁਸੀਂ ਹਨੇਰੇ ਚ ਚਾਲ ਰਹੇ ਹੋਵੋ ਤਾਂ ਡਰ ਦੇ ਮਾਰੇ ਗੀਤ ਗੁਣਗੁਣਾਉਣ ਲੱਗ ਪੈਂਦੇ ਹੋ। ਆਪਣੀ ਹੀ ਆਵਾਜ਼ ਸੁਣਕੇ ਸਾਨੂੰ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਕੋਈ ਹੈ।

ਬੁੱਧ ਨੇ ਇਹ ਵੀ ਕਿਹਾ ਕੇ ਓਹੀ ਆਦਮੀ ਸੱਚ ਨੂੰ ਉਪਲਬਧ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਜੋ ਇਹ ਤਿੰਨ ਸ਼ਰਤਾਂ ਪੂਰੀਆਂ ਕਰ ਸਕੇ 

ਜੋ ਆਦਮੀ ਇਕਲਾ ਰਹਿ ਸਕੇ,

ਜੋ ਸੋਚ ਸਕੇ ਤੇ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਕਰ ਸਕੇ।

 

ਬੁੱਧ ਨੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਤਿੰਨ ਸੱਚ ਦੱਸੇ ਨੇ,

ਜੀਵਨ ਦੁੱਖ ਹੈ,

ਦੁੱਖ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੈ ਇੱਛਾ ਤੇ

 ਤੀਜਾ ਸੱਚ ਹੈ ਇਸ ਦੁੱਖ ਤੋਂ ਪਾਰ ਜਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।



ਪਰ ਹਰ ਇਨਸਾਨ ਪਹਿਲੇ ਦੁੱਖ ਨੂੰ ਹੀ ਅਸਲੀ ਸੱਚ ਮੰਨਕੇ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਂਦਾ ਹੈ, ਜੁਆ ਖੇਲਦਾ ਹੈ ਤੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਨਰਕ ਕਹਿਕੇ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਚੋਂ ਵਿਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਉਹ ਦੂਸਰੇ ਤੇ ਤੀਜੇ ਸੱਚ ਬਾਰੇ ਕਦੇ ਕੋਈ ਯਤਨ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ। 

ਮੈਂ ਹੁਣੇ ਇੱਕ ਆਦਮੀ ਕੋਲ ਬੈਠਾ ਸੀ। ਉਸਦੀ ਤਨਖਾਹ 80  ਜਾਂ 90 ਹਾਜ਼ਰ ਹੋਵੇਗੀ ਉਸਦਾ ਚੇਹਰੇ ਇੰਝ ਸੀ ਜਿਵੇਂ ਮਾਰ ਕੁੱਟ ਕੇ ਸੁੱਟਿਆ ਹੋਵੇ। ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ ਸਟਰੈੱਸ ਬਹੁਤ ਹੈ ਕਿ ਪਹਿਲਾਂ ਦਿਨੇ ਕੰਮ, ਫਿਰ ਰਾਤ ਨੂੰ ਸੌਣ ਵੇਲੇ ਵੀ ਕੰਮ ਦੀ ਚਿੰਤਾ।

 ਮੈਂ ਪੁੱਛਿਆ ਤੁਸੀਂ ਸ਼ਾਂਤ ਰਹਿਣ ਲਈ ਕੋਈ ਕਿਤਾਬ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹੋ,  ਧਿਆਨ ਕਰਦੇ ਹੋ , ਕੋਈ ਸ਼ੌਂਕ ਜਿਵੇ ਗੀਤ ਗਾਉਣਾ , ਬਾਗ਼ਬਾਨੀ ਕਰਨੀ?

 ਉਸਨੇ ਕਿਹਾ ਅਜਿਹਾ ਕੁਝ ਨਹੀਂ।

 ਫਿਰ ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਕੇ ਜੇ ਬਿਮਾਰੀ ਦੇ ਗੁਣ ਗਾਉਂਦੇ ਰਹੋਗੇ ਤਾਂ ਬਿਮਾਰੀ ਹੀ ਫੈਲਦੀ ਜਾਵੇਗੀ।


ਬੁੱਧ ਨੇ ਇਹ ਕਿਹਾ ਕੇ ਬਿਮਾਰੀ ਨੂੰ ਹਰ ਵੇਲੇ ਵਿਸ਼ਾ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਉਸਦੇ ਹੱਲ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰੋ।


 ਪਰ ਅਸੀਂ  ਕਰਨੀ  ਹੀ ਨਹੀਂ।


ਚਲੋ ਅੱਗੇ ਵਧਦੇ ਹਾਂ।

ਅਸੀਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਵੀਕਾਰਦੇ,  ਤਾਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਕਿਵੇਂ ਕਰਾਂਗੇ।

 ਸਾਡਾ ਵੱਸ ਚੱਲੇ ਤੇ ਆਪਾਂ ਆਪਣੇ ਕਈ ਟੋਟੇ ਕਰ ਦਈਏ। ਕਿਉਕਿਂ ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਆਦਤਾਂ ਪਸੰਦ ਨਹੀਂ।

ਫਿਰ ਗੱਲ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਕਾਰਨ ਦੀ।

 ਜੇ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਆਪਣੀਆਂ ਕਮੀਆਂ ਸਮੇਤ ਸਵੀਕਾਰ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਤਾਂ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਾਂਗੇ?

 

ਮੈਂ ਇਕ ਵਾਰ ਓਸ਼ੋ ਦੇ ਮੇਡੀਟੇਸ਼ਨ ਕੈਂਪ ਚ ਇਕ ਧਿਆਨ ਦੀ ਵਿਧੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਕਰੋ। ਉਹ ਕਰਦੇ ਕਰਦੇ ਮੇਰਾ ਮਨ ਕਰੁਣਾ ਨਾਲ ਭਰ ਗਿਆ , ਮੈਨੂੰ ਲੱਗਾ ਮੈਂ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਅਜਿਹਾ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹਾਂ। ਤੁਸੀਂ ਅੱਖਾਂ ਬੰਦ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਪੁੱਛੋ , ਤੁਸੀਂ ਕਿੰਨੀ ਵਾਰ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਕੀਤਾ ਹੈ? ਮੈਂ ਜਾਣਦਾ ਹਾਂ ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨਾਲ ਅੱਖ ਨਹੀਂ ਮਿਲਾ ਪਾਓਗੇ।


ਹੁਣ ਗੱਲ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਪਿਆਰ ਦੀ।

" ਪਿਆਰ ਕਿਸੇ ਸੰਪੂਰਨਤਾ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਇਹ ਅਪੂਰਨਤਾ ਨੂੰ ਪੂਰਨ ਦੇਖਣ ਦੀ ਕਲਾ ਹੈ। "

Love is not to find perfect, it is an art to see imperfect perfectly.


Sodhi Parminder ਜੀ ਦੀ ਇਕ ਕਵਿਤਾ ਹੈ,  ਇਹ ਤਿੰਨ ਸਤਰਾਂ ਦੀ ਹਾਇਕੂ ਕਵਿਤਾ ਮੈਂ ਬਹੁਤ ਵਾਰ ਦੁਹਰਾਉਂਦਾ ਹਾਂ 

ਆਓ ਆਪਣੇ ਹੀ ਹੋਣ ਦਾ

ਜਸ਼ਨ ਮਨਾਈਏ 

ਕਿੰਨਾ ਖੂਬਸੂਰਤ ਹੈ ਸਾਡਾ ਹੋਣਾ 


ਓਸ਼ੋ ਸਾਰੀ ਉਮਰ ਇਹ ਕਹਿੰਦੇ ਰਹੇ

ਉਤਸਵ ਅਮਾਰ ਜਾਤੀ 

ਆਨੰਦ ਅਮਾਰ ਗੋਤਰ 


ਕਿਸੇ ਨੇ ਕਿਹਾ ਹੈ 

ਆਓ ਸਜਾ ਲੇਂ ਆਜ ਕੋ 

ਕਲ ਕਿ ਖ਼ਬਰ ਨਹੀਂ

ਕਲ ਕੀ ਕਿਆ ਕਹੇਂ

ਯਹਾਂ ਪਲ ਕਿ ਖ਼ਬਰ ਨਹੀਂ 


ਜੀਵਨ ਚ ਜਿਸਨੇ ਇਹ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਕਿ

ਜੀਵਨ ਇਕ ਹੀ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਇਥੇ ਕੁਝ ਵੀ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਹੀਂ, ਉਹ ਸਟਰੈੱਸ ਮੁਕਤ ਹੋਣ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਤੇ ਨਿਕਲ ਪਿਆ ਹੈ।


ਸਮੇਂ ਦੀ ਚੱਕੀ ਚ ਸਭ ਕੁਝ  ਪਿਸ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਸਭ ਕੁਝ ਬਦਲ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜੋ ਇਹ ਜਾਣਦਾ ਹੈ ਅਜਿਹਾ ਆਦਮੀ ਕਦੇ ਸਟਰੈਸ ਚ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦਾ ਉਹ ਹਰ ਪਲ ਦੀ ਖੁਸ਼ੀ ਮਨਾਉਂਦਾ ਹੈ ਉਸਨੂੰ ਪਤਾ ਹੈ ਇਥੇ ਕੁਝ ਵੀ ਸਥਿਰ ਨਹੀਂ ਤਾ ਮੈਂ ਕਿਸੇ ਦੁੱਖ ਕਿਉਂ ਮਨਾਵਾਂ? 

ਜਿਵੇ ਇਕ ਵਾਰ ਦੋ ਜੇਨ ਫ਼ਕੀਰ ਪਿੰਡ ਚੋ ਭਿਕਸ਼ਾ ਮੰਗ ਕੇ ਆਏ। ਓਹਨਾਂ ਨੇ ਵੇਖਿਆ ਕਿ ਓਹਨਾਂ ਦੇ ਛੱਪਰ ਦੀ ਅੱਧੀ ਛੱਤ ਬਰਸਾਤ ਤੇ ਹਨੇਰੀ ਨਾਲ ਉੱਡ ਗਈ ਹੈ।

ਪਹਿਲੇ ਫ਼ਕੀਰ ਨੇ ਆਸਮਾਨ ਵੱਲ ਮੂੰਹ ਕਰਕੇ ਰੱਬ ਨੂੰ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕੀਤੀ "ਹੇ ਰੱਬਾ ਅਸੀਂ ਤੇਰੇ ਬੰਦੇ ਹਾਂ। ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਜਪਦੇ ਹਾਂ, ਤੂੰ ਸਾਡੇ ਨਾਲ ਅਜਿਹਾ ਮਾੜਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ। ਦੁਨੀਆਂ ਚ ਕਿੰਨੇ ਪਾਪੀ ਲੋਕ ਨੇ ਓਹਨਾਂ ਦੇ ਘਰ ਦੀ ਛੱਤ ਉਡਾ ਦਿੰਦਾ।" 

ਦੂਜਾ ਫ਼ਕੀਰ ਉਸ ਵੇਲੇ ਰੱਬ ਨੂੰ ਹੇਠ ਜੋੜਕੇ ਪ੍ਰਾਰਥਨਾ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ " ਹੇ ਰੱਬਾ ਤੂੰ ਕਿੰਨਾ ਦਿਆਲੂ ਹੈ, ਅੱਜ ਪੂਰਨਮਾਸ਼ੀ ਦੀ ਰਾਤ ਹੈ ਮੈਂ ਪੂਰਾ ਚੰਦਰਮਾ ਦੇਖ ਸਕਾਂ ਇਸ ਲਈ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਘਰ ਦੇ ਅੱਧੀ ਛੱਤ ਉਡਾ ਦਿੱਤੀ। ਮੈਨੂੰ ਤੇਰੀ ਹਸੀਨ ਕਾਇਨਾਤ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਹੋ ਸਕਣ, ਧੰਨ ਹੈ ਤੂੰ ।

ਸੋ ਸਾਡੀ ਸੋਚ ਕਿ ਹੈ , ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਪਰਿਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਉਹ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਚ ਖੁਸ਼ੀ ਜਾਂ ਗ਼ਮੀ ਬਣਦੀ ਹੈ।


ਕਿਸੇ ਨੇ ਪੁੱਛਿਆ ਖੁਸ਼ੀ ਤੇ ਤਨਾਅ ਕੀ ਹੈ?

ਜਵਾਬ ਮਿਲਿਆ ਜੋ ਤੁਸੀਂ ਹੋ ਉਹ ਖੁਸ਼ੀ ਹੈ, ਜੋ ਤੁਸੀਂ ਹੋਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋ ਉਹ ਤਨਾਵ ਹੈ। 


ਅੱਜ ਲਈ ਇੰਨਾ ਹੀ। 

ਫਿਰ ਮਿਲਾਂਗੇ। 

ਆਪਦਾ ਆਪਣਾ 

ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ

ਰੁਦਰਪੁਰ

 ਉਤਰਾਖੰਡ

ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰ ਹੀਰਾਂ 

ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ 

ਪੰਜਾਬ 

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