Monday, May 16, 2022

गोपालदास नीरज जी की किताब , काव्यांजलि

आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य
मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य
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ऐसी पंक्तियाँ लिखने वाले गीतकार गोपालदास नीरज जी की किताब लेकर आया हूँ," काव्यांजलि।"  यह किताब मंजुल पब्लिकेशन ने छापी है।

जैसे आजकल कोरोना की महामारी चल रही है, हमारा मन कई बार निराशा से भर जाता है तो ये किताब का पहला गीत हमें आशा की एक सुबह की तरफ लेकर जाता है

छुप छुप अश्रु बहाने वालो
मोती व्यर्थ लुटाने वालो
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है 

लाखों बार गगरिया फूटी
शिकन ना आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबी 
चहल पहल तो वो ही है तट पर
तम की उम्र बढ़ाने वालो
लौ की उम्र घटाने वालो
 लाख करे पतझर कोशिश उपवन नहीं मरा करता है
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जब आम इंसा के दर्द की बात होती है 
तो वो लिखते हैं

आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा
यहां प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जाएगा

मान पत्र मैं नहीं लिख सका
राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक रहा जन्म से
सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये
केवल इस गलती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला 
मुझको शाप दिया जाएगा
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सुख के साथी मिले हजारों 
लेकिन दुख में साथ निभाने वाला नहीं मिला
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ऐसी क्या बात है चलता  हूँ अभी चलता हूँ
गीत ज़रा एक और झूमकर गा लूं तो चलूं

 बाद मेरे जो यहां और हैं गानेवाले 
स्वर की थपकी  से पहाड़ों को सुलाने वाले
उजाड़ बागो- बियाबान- सुनसानों में
छंद की गंध से फूलों को खिलानेवाले 
उनके पांव के फफोले न कहीं फूट पड़ें
उनकी राहों के ज़रा शूल हटा लूं तो चलूँ

सूनी सूनी साँस की सितार पर
गीले गीले आंसुओं के तार पर 
एक गीत सुन रही है जिंदगी
एक गीत गा रही है जिंदगी 
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एक बहुत ही विद्रोही रचना 

जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना
उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है
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 तब मानव कवि बन जाता है 
जब उसको संसार रूलाता 
वह अपनों के समीप आता,
पर वो भी जब ठुकरा देते 
वह निज के मन में सम्मुख आता
पर  उसकी दुर्बलता पर जब मन भी उसका मुस्काता है 
तब मानव कवि बन जाता है 

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राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं

 कोई जाने नहीं वो किसकी है
 वो न तेरे न मेरे बस की है
 राजसत्ता तो एक वेष्या है
 आज इसकी तो कल उसकी है

 सबसे ज्यादा उनको जो पहचान मिली 
वह इसी गीत से मिली 

कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे
स्वप्न झरे फूल से
मीत चुभे शूल से 
लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे

 उनकी और बहुत सारी मशहूर रचनाएँ  है वो इस   किताब में नहीं है पर उनके जिक्र के बगैर बात पूरी नहीं होती ।
अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए 

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हम तो मस्त फकीर 
कोई ना हमारा ठिकाना रे
जैसा अपना प्यारे , वैसा अपना जाना रे

 आज से लगभग 12 साल पहले जब उनको चंडीगढ़ में सुना तुम्हें मंत्रमुग्ध हो गया ।उनको अपनी सारी रचनाएं मुंह जुबानी याद थी। कई बार कोई लेखक कवि होता है हम उसको सिर्फ पढ़ते हैं, कई बार उसको पढ़ने के साथ सुन भी लेते हैं, कई बार उनके साथ हम मिल भी लेते हैं।
मैनें इनको पढा , सुना है और मिला हूँ।
ये मेरे जीवन की सबसे बडी उप्लब्धी है।
 उनसे मिलना है बहुत सुखद अनुभव रहा। रुद्रपुर से सुबह 5:00 बजे निकला उसके पास लगभग 11:30 बजे पहुंचा । फिर थोड़ी देर के लिए मिला। उन्होंने पूछा किस काम से आए हो? मैंनें कहा, आप हमारे समय के  सबसे बड़े कवि हो तो हमारा फर्ज बनता है कि हम आपसे जरूर मिले। बस आपके  साथ एक तस्वीर चाहता हूं 
। तो उन्होंने कहा कि चलो खींचवाते हैं । तुम कैमेरे की तरफ देखो, मैं तुम्हारी तरफ देखता हूँ।  90 साल की उम्र में ऐसी जिंदादिली  मैं तो धन्य हो गया ।
अभी तो वोत् हमारे दरमियां शारीरिक रूप। में बेशक नहीं हैं पर वो हमेशा अपने गीतों और गज़लों के जरिए हमें  रोशनी देते रहेंगे।

उन्होनें बहुत सारे फिल्मी गीत भी लिखे जो बहुत मशहूर हुए। जैसे प्रेम पुजारी के गीत

शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलाई जाए थोड़ी सी शराब 
होगा जो नशा वो तैयार
वो प्यार है

पद्मश्री पद्म विभूषण दोनों ही आवार्ड उनको मिले। इसके बाद भी उनमे बहुत सरलता थी।
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