रविवार है तो साइकिलिंग, फुर्सत, दोस्त, किस्से कहानियां। साइकिलिंग के लिए निकला तो भीम दा का चाय अड्डा बंद था। स्टेडियम के आगे से होता हुआ जब निकला तो दिखा कुछ बच्चे पेड़ के ऊपर चढ़े हुए थे । उन्हें देखकर मुझे अपना बचपन याद आ गया।
मुकेश जी गाया गीत, भी याद आया
"आया है मुझे फिर याद वो
ज़ालिम गुज़रा ज़माना बचपन का"
मैं दोबारा मुड़ा और उनसे बातें की। फिर साईकिलिंग करने आगे निकल गया। फिर जब मैं वापस आया तो देखा पेड़ पर ही थे।
मेरे मन में आया कि मैं भी पेड़ पर इनके साथ चढ़कर बातें करूँ। तभी एक लड़का बोला कि आप भी आएंगे , पेड़ पर? मैंने कहा हां ।
मैं हैरान था , बच्चों ने कैसे मेरा मन पढ़ लिया?
पेड़ से एक बच्चा उतर आया और फिर मैं पेड़ पर चढ़ गया। फिर से खूब बातें हुई। मैंने कहा यह बचपन के दिन दोबारा लौट कर नहीं आते। आप सिर्फ खेल रहे होते हो, खेलने के लिए । अगर कुछ पूछने लगे, खेल से क्या मिलेगा, तो फिर सारा मामला फुस्स। मैंने कुछ अपनी बातें सुनाई। फिर बच्चों को बोला अपनी सुनाओ। एक बच्चे ने भूत की कहानी सुनाई। दूसरे बच्चों ने बताया यह जो भूतों की कहानियां बहुत देखता है और डरता भी है। मैंने उनको मालगुडी डेज़ के बारे में बताया। पहले मैंने पूछा तुम यूट्यूब देखते हो, पर फिर मैंने कहा नहीं मेरे पास किताब है मैं तुम्हें वह किताब दे दूंगा, और साथ में कुछ और किताबें भी हैं, तुम वो पढ़ना। उन्होनें बताया उनके एक भाई का मेडिकल स्टोर है आप वँहा वह किताब दे देना।
मैनें कहा यह बचपन के दिन दोबारा ना आएंगे, जब हम बडे हो जाते हैं तो यही भोलापन ढूंढने शराबखाने, मंदिर, मस्जिद जाते हैं, पैसे से नयी नयी चीज़ें खरीदते है, पर यह बचपन नहीं लौटता।
उनमें जो सबसे छोटा बच्चा था उसने बड़ी कमाल की बात की, "जब हम बड़े होते हैं तो ज़िम्मेदारियां बढ़ जाती है जिसके कारण के हम खेल नहीं पाते। पर बच्चों की कोई ज़िम्मेवारी होती तो वो बस खेलते हैं। "
मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा, बच्चे तूने अपनी उम्र से बहुत बड़ी बात कह दी । बस यह जिम्मेवारीयों का टोकरा लिए हम इधर उधर घूमते रहते हैं।
मुझे ओशो का सुनाया हुआ एक किस्सा याद आ गया। गांव का एक आदमी ट्रेन में सफर कर रहा है, पर उसने अपने सिर के ऊपर अपना ट्रंक रखकर खड़ा है। दूसरा आदमी उसे कहता है, भाई साहब आप बोझ को नीचे रख दीजिए।
पहला बोला, नहीं भाई साहब मैं अपना बोझ अपने सर पर खुद ही उठाता हूं , क्योकिं मैं स्वालंबी हूँ।
अब इस भले मानुष को कोई यह बताएं कि जब ट्रेन ने तेरे साथ तेरे ट्रंक का भार भी साथ लेकर चल रही है, अब तूं खामखाह अपने सिर पर बोझ लेकर खड़ा है।
हम भी कई बार ऐसे ही परेशान हो जाते हैं जब यह सारी सृष्टि चल ही रही है उसने हमारा सारा बोझ उठा रखा है तो फिर हम अपने सिर पर किस चीज़ का बोझ लेकर घूमते हैं?
मैं कुछ दिन पहले किसी चीज़ से परेशान था इन बच्चों से मिलकर मुझे उस बात का हल मिल गया।
उन्होनें मुझे एक खेल, लबादार के बारे में बताया। एक बच्चा अपनी टांग के नीचे से लकड़ी का एक गुल्ला एक जगह पर फैंकता है। बाकी बच्चे पेड़ पर चढ़ जाते हैं। फिर वह लड़का उस गल्ले को एक गोले में रखता है और पेड़ पर चढ़कर बच्चों को छूता है। जिस बच्चे को सबसे पहले छूता है उसकी फिर अगली बारी आती है।
मुझे जीसस का एक प्रसिद्ध वचन याद आ गया। किसी ने पूछा कि परमात्मा के राज्य में कौन प्रवेश पा सकता है ?
जीसस ने एक बच्चे को अपनी गोदी में उठाया और कहा जो इस बच्चे जैसा हो जाएगा,वो ही
परमात्मा के राज्य में प्रवेश पा सकता है। "
यह सारा ध्यान , साधना, सब फिर से उसी बच्चे की भांति हो जाना ही है।
मुझे निदा फाज़ली के कुछ शेर याद आ गये
इनके नन्हें हाथों को चांद सितारे छूने दो
दो चार किताबें पढ़कर यह हम जैसे हो जाएंगे
एक और ग़ज़ल है
अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए
घर से मस्जिद बहुत दूर है चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
तो आज मैं अपने ही अंदर के बच्चे को हंसाने के लिए बच्चों के साथ मिला। मैं उन सब दोस्तों का शुक्रिया करता हूं जो आज साईकिलिंग करने नहीं आए क्योंकि अगर वह आते ही तो शायद मैं इनसे नहीं मिल पाता।
इनके नाम हैं, वँश, विक्की, राजा, रोहित।
जिंदगी कोई बहुत दूर कहीं रखी हुई कोई चीज़ नहीं है, यह हर पल हमारे साथ घटित हो रही है, हमें बस इसको देखना है, महसूस करना है, इसके रंगों में रंग जाना है।
फिर मिलूंगा एक नया किस्सा लेकर। तब तक के लिए विदा लेता हूँ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां,
होशियारपुर , पंजाब
15.05.2022
#rudrapur_cycling_club
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