#दिल्ली_जैसा_मैंने_देखा
#Delhi
#the_last_leaf_by_o _henry
ताज़ा हवा दे रहा हूँ पुरानी यादों को
दिल्ली, कहते हैं दिलवालों की है। बहुत दिनों पहले दिलवालों की दिल्ली गया। रात को होटल में रूके। मेरे साथ अंकुर भी था जो मेरे लिए साथ ही मेरी कंपनी में काम करता है। सुबह रेहड़ी पर आमलेट खाया। रेहड़ी वाले से पूछा कि सुबह सुबह बढ़िया लगा। उसने अलग अलग कागज की पुडिया में कोई किस्म के मसाले रखे हुए थे। मैंने कहा ये तो कमाल है। उसने कहा वो रात को जागता है, अब तो घर जाने का समय है। वो जो बता रहा था मैं सुनकर हैरान रह गया कि वो घर जाकर नहा धोकर खाना खाकर लगभग दो तीन घंटे सो जाएगा फिर रात की तैयारी में लग जाएगा। मैंने पूछा नींद तो पूरी ना होती होगी। वो बोला हफ्ते में दो दिन छुट्टी भी करता है, तो दिन रात सोकर नींद पूरी करता है।
मैंने कहा शहर में जिंदगी बहुत कठिन है। वो हँसने लगा, नहीं जनाब बना रखी है, मुश्किल तो ना है।
फिर आटो पकड़ा कि प्रगति मैदान में बुक फेयर देखकर आएँ। आटो वाले ने बताया कि वो एक जगह चाय पीता है, जो बहुत स्वाद होती है। मैंने कहा वंहा जरूर चलो। रास्ते में एक जगह रूके। एक बिल्ली आग के पास बैठी थी, ठंड थी। फिर वंहा चाय की चुस्की भरी। वाकई वो चाय मजेदार थी। दुकानदार का शुक्रिया करके आगे बढ़े। वो बताने लगा, ऐसे ही एक चाय वाला था। वो किसी वजह से मर गया, तो वंहा जिस पेड़ के नीचे वो चाय बनाता था वो भी कुछ दिनों बाद गिर गया। मुझे ओ हेनरी की कहानी, द लास्ट लीफ याद आ गई।
मैंने उसे वो कहानी सुनाई।
दो सहेलियाँ एक बिल्डिंग में रहती थी। वंहा एक शराबी पेंटर भी रहता था। जो कि आते जाते उन्हें दिखाई देता। उनमें से एक लड़की बिमार हो गई। जो बिमार हुई थी उसे वो पेंटर बिल्कुल भी पसंद नहीं था। उसकी खिड़की के बाहर एक बेल थी। वह बिमार लड़की उसे देखती रहती। उसके पत्ते झड़ रहे थे। उस लड़की को वहम हो गया कि जब ये सारे पत्ते झड़ जाएंगे तो वो मर जाएगी।
एक रात खूब बारिश हुई, उस लड़की को लगा आज जो आखिरी पत्ता झड़ जाएगा तो वो मर जाएगी। सुबह हुई तो देखा शाखा पर एक नई पत्ता नया आया है। वो उसे देखकर खुश हो गई और बैड श्री उठकर चलने लगी। उसकी सहेली भी हैरान हो गई।
जब वो बाहर निकली तो देखा वो पत्ता एक पेंटिंग है। कुल रात वो शराबी पेंटर रात भर वो पत्ता बनाता रहा क्योंकि उस पेंटर ने सुन ली थी वो बात कि आखिरी पत्ते के साथ वो भी मर जाएगी।
आटो वाला भी ध्यान से सुन रहा था, जैसे आप पढ़ रहे हो।
फिर प्रगति मैदान में गए तो पता चला बुक फेयर तो खत्म हो गया है। हम फिर National Handicraft and Handloom museum में चले गए। वंहा टिकट खरीद कर घूमे तो देखा अलग अलग राज्य में लोग कैसे कैसे घरों में रहते हैं? वंहा वैसे ही घर थे मिट्टी, लकड़ी से बने हुए।
फिर हैंडलूम मिउज़ियम देखा, पुराने राजा महाराजाओं के कपड़े, कढाई किए हुए कपड़े,, बहुत ही सहजता और कारीगरी का काम।
एक औरत नारियल के छिलके से हाथी घोड़े बना रही थी।
तीन लड़कियाँ डांस कर रही थी।
एक बहुत बड़ा बर्तन था, पता चला कि ये खाना बनाने के काम आता है।
लकड़ी के बने दीवार पर लगाने वाले शो पीस।
ये देखकर लगता है हम सांस्कृतिक तौर पर कितने अमीर हैं।
फिर ट्रेन का समय हो रहा था। तो हम वापस निकल पड़े।
#rajneesh_jass
23.01.2018
No comments:
Post a Comment