Sunday, January 30, 2022

ਸੈਲਫ ਹਿਪਨੋਟਿਜ਼ਮ

ਮੇਰੇ ਇਕ ਮਿੱਤਰ ਰਾਕੇਸ਼ ਰਾਣਾ ਨੇ, ਉਹ ਅਕਸਰ ਕਹਿੰਦੇ ਮੰਨ ਲਓ ਇਕ ਬੰਦਾ ਨੂਡਲ ਲਈ ਪਾਗਲ ਹੈ। ਉਹ ਦਿਨ ਰਾਤ ਨੂਡਲ ਹੀ ਨੂਡਲ ਖਾਂਦਾ ਹੈ, ਨੂਡਲ ਦੇ ਹੀ ਸੁਪਨੇ ਵੇਖਦਾ। ਉਸਦੀਆਂ ਹੀ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦਾ।ਨੂਡਲ ਦਾ ਨਾਮ ਸੁਣਕੇ ਉਸ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਚ ਚਮਕ ਆ ਜਾਂਦੀ, ਗੱਲਾਂ ਲਾਲ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਤੇ ਮੂਹ ਚ ਪਾਣੀ ਆ ਜਾਂਦਾ। 
ਹੁਣ ਓਹੀ ਬੰਦਾ ਜਦ ਕਿਸੇ ਐਸੇ ਬੰਦੇ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਸਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਨੂਡਲ ਨਹੀਂ ਖਾਦੇ ਹੁੰਦੇ ਤਾਂ ਦੂਜਾ ਬੰਦਾ ਜਿਸਨੇ ਕਦੇ ਨੂਡਲ ਨਹੀਂ ਖਾਧੇ ਉਹ ਸਮਝੇਗਾ ਪਹਿਲਾ ਆਦਮੀ ਪਾਗਲ ਹੈ।  
ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਕਿਸਮ ਦੇ ਸੇਲ੍ਫ਼ ਹਿਪਨੋਟੀਜ਼ਮ ਦੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹਾਂ। ਕੋਈ ਆਦਮੀ ਧਨ ਲਈ  ਕੋਈ ਜੀਭ ਦੇ ਸੁਆਦ ਲਈ  ਪਾਗਲ ਹੈ। । ਇਹ ਸਭ ਇੰਦਰੀਆਂ ਦੇ ਸੁਖ ਨੇ। 
ਇਹ ਲੈਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਨੇ ਪਰ ਇਥੇ ਰੁਕਣਾ ਨਹੀਂ ਇਸ ਤੋਂ ਪਾਰ ਵੀ ਤਾਂ ਜਾਣਾ ਹੈ ਜਿਸਨੂੰ ਜੇ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨਾਮੂਰਤੀ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ, ਦੈਟ  ਵਿਚ ਇਜ਼ ਮਤਲਬ ਜੋ ਅਸਲ ਚ ਹੈ।
ਬੁੱਧ ਕਹਿੰਦੇ ਧਿਆਨ ਚ ਬੈਠਕੇ ਵੇਖੋ, ਕੌਣ ਸਾਹ ਲੈਂਦਾ, ਕੌਣ ਵੇਖ ਰਿਹਾ?
ਇਸ ਤੋਂ ਪਾਰ ਦੀ ਅਨੁਭੂਤੀ ਕਦੇ ਕਦੇ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਚਾਣਚੱਕ...... ਜਦ ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਫੁੱਲ ਨੂੰ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ, ਬੱਦਲਾਂ ਦੇ ਬਹਾਵ ਨੂੰ, ਕੋਈ ਨਦੀ ਕਿਸੇ ਬੱਚੇ ਦੀ ਮੁਸਕਾਨ ਕਦੇ ਕਦੇ ਕੋਈ ਭਜਨ ਸੁਣਦੇ ਹੋਏ। 

ਅਸੀਂ ਇਕ ਅਸੀਮ ਭਾਵਨਾ ਤੋਂ ਰੁਬਰੂ ਹੁੰਦੇ ਹਾਂ। ਇਹ ਸਭ ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਆਸ਼ੀਰਵਾਦ ਨਾਲ ਹੀ ਘਟਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। 
ਕਦੇ ਕਦੇ ਉਸਤਾਦ ਨੁਸਰਤ ਫਤਿਹ ਅਲੀ ਖਾਂ ਦੀਆਂ ਕਵਾਲੀਆਂ ਸੁਣਦੇ ਸੁਣਦੇ ਜਦ ਕਦੇ ਨੱਚਦੇ ਰਹੋ ਤਾਂ ਲੱਗਦਾ, ਸਿਰਫ ਨੱਚਣਾ ਰਹਿ ਗਿਆ ਨੱਚਣ ਵਾਲਾ ਕਿਤੇ ਗੁਆਚ ਗਿਆ। ਇਹੀ ਅਵਸਥਾ ਕਮਾਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। 
ਉਦੇ ਕਦੇ ਕਬੀਰ ਨੂੰ ਸੁਣਦੇ - ਸੁਣਦੇ ਅੱਖਾਂ ਭਰ ਆਉਂਦੀਆਂ ਨੇ।

ਜਿੱਥੇ ਕਬੀਰ ਕਹਿੰਦੇ 
"ਪ੍ਰੇਮ ਗਾਲੀ ਅਤੀ ਸਾੰਕਰੀ ਜਾ ਮੈਂ ਦੋ ਨਾ ਸਮਾਏ 
ਜਬ ਮੈਂ ਥਾਂ ਤਬ ਹਰਿ ਨਾਹੀਂ, ਅਬ ਹਰੀ ਹੈ ਮੈਂ ਨਾਹੀਂ " 

ਇਸ ਰਾਹ ਦਾ ਕੋਈ ਪੱਕਾ ਮਾਰਗ ਨਹੀਂ ਹੈ।
ਕਵਿ ਗੋਪਾਲਦਾਸ ਨੀਰਜ ਲਿਖਦੇ ਨੇ 

"ਹਮ ਤੇਰੀ ਚਾਹ ਮੇਂ ਆਏ ਯਾਰ ਵਹਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚੇ 
ਹਮੇਂ ਖੁਦ ਖ਼ਬਰ ਨਹੀਂ ਹਮ ਕਹਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚੇ 
ਨਾ ਵੋ ਗਿਆਨੀ, ਨਾ ਵੋ ਧਿਆਨੀ, ਨਾ ਹੀ ਵਿਰਹ ਮਨ 
ਵੋ ਕੋਈ ਔਰ ਹੀ ਥੇ ਜੋ ਤੇਰੇ ਮਕਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚੇ "
------

ਆਪਦਾ ਆਪਣਾ
ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ, ਉੱਤਰਾਖੰਡ 
(ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰਹੀਰਾਂ 
ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ,
ਪੰਜਾਬ )

Saturday, January 22, 2022

दिल्ली जैसा मैनें देखा 23.01.2018

#दिल्ली_जैसा_मैंने_देखा 
#Delhi 
#the_last_leaf_by_o _henry 
 ताज़ा हवा दे रहा हूँ पुरानी यादों को

दिल्ली, कहते हैं दिलवालों की है। बहुत दिनों पहले दिलवालों की दिल्ली गया। रात को होटल में रूके।  मेरे साथ अंकुर भी था जो मेरे लिए साथ ही मेरी कंपनी में काम करता है। सुबह रेहड़ी पर आमलेट खाया। रेहड़ी वाले से पूछा कि सुबह सुबह बढ़िया लगा। उसने अलग अलग कागज की पुडिया में कोई किस्म के मसाले रखे हुए थे।  मैंने कहा ये तो कमाल है। उसने कहा वो रात को जागता है,  अब तो घर जाने का समय है। वो जो बता रहा था मैं सुनकर हैरान रह गया कि वो घर जाकर नहा धोकर खाना खाकर लगभग दो तीन घंटे सो जाएगा फिर रात की तैयारी में लग जाएगा।  मैंने पूछा नींद तो पूरी ना होती होगी।  वो बोला हफ्ते में दो दिन छुट्टी भी करता है,  तो दिन रात सोकर नींद पूरी करता है। 
मैंने कहा शहर में जिंदगी बहुत कठिन है।  वो हँसने लगा,  नहीं जनाब बना रखी है,  मुश्किल तो ना है।
फिर आटो पकड़ा कि प्रगति मैदान में बुक फेयर देखकर आएँ। आटो वाले ने बताया कि वो एक जगह चाय पीता है, जो बहुत स्वाद होती है। मैंने कहा वंहा जरूर चलो। रास्ते में एक जगह रूके। एक बिल्ली आग के पास बैठी थी,  ठंड थी।  फिर वंहा चाय की चुस्की भरी। वाकई वो चाय मजेदार थी।  दुकानदार का शुक्रिया करके आगे बढ़े।  वो बताने लगा,  ऐसे ही एक चाय वाला था।  वो किसी वजह से मर गया,  तो वंहा जिस पेड़ के नीचे वो चाय बनाता था वो भी कुछ दिनों बाद गिर गया।  मुझे ओ हेनरी की कहानी,  द लास्ट लीफ याद आ गई। 
मैंने उसे वो कहानी सुनाई। 
दो सहेलियाँ एक बिल्डिंग में रहती थी।  वंहा एक शराबी पेंटर भी रहता था।  जो कि आते जाते उन्हें दिखाई देता। उनमें से एक लड़की बिमार हो गई।  जो बिमार हुई थी उसे वो पेंटर बिल्कुल भी पसंद नहीं था।  उसकी खिड़की के बाहर एक बेल थी। वह बिमार लड़की उसे देखती रहती।  उसके पत्ते झड़ रहे थे। उस लड़की को वहम हो गया कि जब ये सारे पत्ते झड़ जाएंगे तो वो मर जाएगी। 
एक रात खूब बारिश हुई,  उस लड़की को लगा आज जो आखिरी पत्ता झड़ जाएगा तो वो मर जाएगी। सुबह हुई तो देखा शाखा पर एक नई पत्ता नया आया है।  वो उसे देखकर खुश हो गई और बैड श्री उठकर चलने लगी। उसकी सहेली भी हैरान हो गई। 
जब वो बाहर निकली तो देखा वो पत्ता एक पेंटिंग है। कुल रात वो शराबी पेंटर रात भर वो पत्ता बनाता रहा क्योंकि उस पेंटर ने सुन ली थी वो बात कि आखिरी पत्ते के साथ वो भी मर जाएगी। 
आटो वाला भी ध्यान से सुन रहा था,  जैसे आप पढ़ रहे हो।
फिर प्रगति मैदान में गए तो पता चला बुक फेयर तो खत्म हो गया है।  हम फिर National Handicraft and Handloom museum में चले गए।  वंहा टिकट खरीद कर घूमे तो देखा अलग अलग राज्य में लोग कैसे कैसे घरों में रहते हैं? वंहा वैसे ही घर थे मिट्टी,  लकड़ी से बने हुए। 
फिर हैंडलूम मिउज़ियम देखा,  पुराने राजा महाराजाओं के कपड़े,  कढाई किए हुए कपड़े,, बहुत ही सहजता और कारीगरी का काम। 
एक औरत नारियल के छिलके से हाथी घोड़े बना रही थी।  
तीन लड़कियाँ डांस कर रही थी। 
एक बहुत बड़ा बर्तन था, पता चला कि ये खाना बनाने के काम आता है। 
लकड़ी के बने दीवार पर लगाने वाले शो पीस।  

ये देखकर लगता है हम सांस्कृतिक तौर पर कितने अमीर हैं।
फिर ट्रेन का समय हो रहा था। तो हम वापस निकल पड़े। 
#rajneesh_jass
23.01.2018

Thursday, January 13, 2022

लोहड़ी

लोहड़ी मांगना एक परंपरा है। बहुत कम लोगों को पता है कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है? अकबर के समय में दुल्ला भट्टी  नाम का एक डाकू था। वह आम लोगों की मदद करता था।  एक गरीब माँ बाप की बेटी जिसके साथ एक अमीर शादी करना चाहता था। वह लड़की इस के लिए सहमत नहीं थी। 
तो दुल्ला भट्टी ने उसकी पसंद वाले लड़के से उस लड़की की शादी करवा दी।

उसने अकबर के खिलाफ विद्रोह किया ,पकड़ा गया और उसे फाँसी की सज़ा दी गयी।
 जंगल में आग लगाकर शादी करवाने से लोहड़ी की परंपरा शुरू हुई।

हम मैं छोटा था तो हम तीन दोस्त मिलकर थैला लेकर निकल जाते  और अपने गाँव पुरहीरा, होशियारपुर में घर घर जाकर लोहड़ी माँगते। 
मूँगफली, रेवड़ी मिलती हम थैले में डालते जाते। 
एक दिन में जो पैसे इकट्ठे होते तो एक जगह बिखराकर उसके तीन हिस्से करते। तब पाँच,दस पैसे मिलते। मान लो 3 बराबर हिस्से हो गये और 20 पैसे बच गये तो उसके लिए झगड़ा होता। 

मान लो किसी ने लोहड़ी नहीं दी तो हम ज़ोर ज़ोर से कहते, 
हुक्का भई हुक्का
इह घर भुक्खा।

और भाग लेते। उस घर के लोग हमारे पीछे पीछे भागते। 

अब मैं बड़ा हो गया हूँ तो सोचा यह परंपरा लुप्त होती जा रही है। हमने सोचा हम लोहड़ी मांगने जाएं। तो सुरजीत सर के यहां चलते हैं।
उनसे दिन में बात की और कहा करोना है,  लोहड़ी माँगने आना है, पर अगर बैंक में ट्रांसफर कर दें। वह बोले , माँगने आओ तो देखते हैं?

शाम को मैं ,संजीव, हरिनंदन और प्रेम उनके घर जा पहुंचे। बातचीत का दौर शुरू और मूँगफली, रेवड़ी खाने लगे। फिर चाय, मिठाई का दौर। 
फिर हमें पैकट में मूँगफली, रेवड़ी, गच्चक मिली।
फिर हमने लोहड़ी गाई और पैसे मिले।
मैनें वह अपने सिर पर लगाए क्योकिं यह एक सम्मान है। 
मेरी माँ जब मेरी कामिनी भुआ जो कि करोड़पति हैं जब कुछ रूपये देती तै वह सिर पर रखती, कहती, बेटी का घर चाहे जितना मर्ज़ी भरा हो , पर मायके से हमेशा आशा बनी रहती है।

संजीव जी ने कहा उन्होनें पहली बार लोहड़ी माँगी है और सुरजीत सर ने कहा उन्होनें भी पहली बार ऐसी लोहड़ी दी है।

यह एक यादगार लोहड़ी रही।
हम इसलिए कल लोहड़ी मांगने गए थे क्योंकि हम चाहते हैं कि यह परंपरा और आगे बढ़े हम करेंगे तो हमें देखकर बच्चे भी वही करेंगे। और लोहड़ी मांगने की परंपरा आगे बढ़गी।

अब मैं पंजाब छोड़कर यँहा उत्तराखंड में रह रहा हूँ तो यँहा अपनी परंपरा और सभ्यता को साथ रखना भी जरूरी है। 
सभ्यता के आदान प्रदान से एक दूसरे को समझने की शक्ति आती है।



धन्यवाद।
रजनीश जस
13.01.2022

Tuesday, January 11, 2022

साईकिलिंग और पर्वतारोही (14 पीकस फिल्म)

रविवार है तो साइकिलिंग, दोस्त ,किस्से कहानियाँ। कल रात से बारिश हो रही थी तो साईकिलिंग पर नहीं गया, पर आपको एक दिलचस्प और हैरान कर देने वाली यात्रा पर लेकर चलता हूँ।

पूरी दुनिया में 14 पर्वत ऐसे हैं जो  8000 मीटर से ज्यादा ऊँचाई के हैं। एक पर्वतारोही रेनहोल्ड मैसनर हैं जिन्होनें यह सारी 14 चोटियाँ 16 साल में फतह की थी, वो भी बिना आक्सीजन सिलेंडर का प्रयोग किये। पर उन्हीं 14 चोटियों को 6 महीने और 6 में नेपाल के पर्वतारोही ने  फतेह किया और एक वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। उस पर एक डॉक्यूमेंट्री है जिसका नाम  है, "14 पीकज़" ,यह नेटफलिक्स पर है। 
कँहा हम ज़रा सी ठंड होने पर रजाई में चले जाते हैं और कँहा यह लोग हैं जो जमा देने वाली बर्फ , बर्फीले तूफानों में, चोटियाँ फतेह करते हैं। वो अपने जुनून के लिए जीते है और इतिहास रचते हैं। 

चोटियों के नाम और उँचाई

Everest - 8848m / 29028ft
K2-  8611m / 28250ft
Kanchenjanga- 8586m / 28169ft
Lhotse- 8516m / 27940ft
Makalu- 8463m / 27766ft
Cho oyu- 8201m / 26906ft
Dhaulagiri- 8167m / 26795ft
Manaslu-8163m / 26781ft
Nanga parvat-8125m / 26660ft
Annapurna 1- 8091m / 26545ft Gasheburam 1- 8068m / 26469ft
Broad Peak- 8047m / 26400ft
Gasheburam 2- 8035m / 26362ft
Shishapangma -8012m / 26285ft

एक ऐसा नेपाली फौजी, निर्मल पुर्जा जो फौज की नौकरी छोड़कर इंग्लैंड की स्पेशल फोर्सज़ में चला गया। पर फिर वहां भी नौकरी छोड़ दी उसके उसने यह "मिशन  पासिबल" का नाम दिया था।
चोटियों को 6 महीने में  फतेह करना था। उसके पास पैसे नहीं थे, कोई सपांसरशिप नहीं थी फिर अपना घर गिरवी रखा और निकल लिया अपने मिशन पर।
यह सारी चोटियाँ नेपाल, पाकिस्तान और तिब्बत में हैं। 
इंग्लैंड में जब वह अपने प्रैक्टिस करता था को रात को 2:00 बजे उठकर पीठ पर 70 पाउंड लादकर 20 किलोमीटर तक का चक्कर लगाता था। दिन में अपनी नौकरी और फिर रात को जिम। उसने अपने शरीर को मजबूत और लचकदार  बना लिया था। कि उसने एक-एक करके 12 चोटिया फतेह की। चीन में उसने जाना था तो चीन की सरकार ने मना कर दिया। पर फिर उसने सोशल मीडिया के ज़रिए और उनका सरकार को चिट्ठी लिखी है। नेपाल के मिनिस्टरों से मिला। दुनिया भर के लोगों ने जब उसका साथ दिया तो चाइना गवर्नमेंट इजाज़त देनी पड़ी। 

जब वह एवरेस्ट की चोटी पर था तो लगभग 300 पर्वतारोही एक साथ कतार में दिखाई दे रहे थे तो उसने एक फोटो खींच कर इंस्टाग्राम पर डाल दीजिए, ट्रैफिक जाम होने तस्वीर पूरे वर्ल्ड में वायरल हुई।

उसे कई जगह पर उसको बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जैसे की चोटी K2 जिसको भी उसके दोस्त लगभग छोड़ चुके थे क्योंकि उनके मन में डर  बैठ गया था।  वह अकेला आगे बढ़ा और रस्सियाँ बिछाईं और फिर उसके पीछे 14 पर्वतारोही चढ़े।

एक पर्वत से उतरते वक्त उसको एक आदमी मिला उसका आक्सीजन का सिलेंडर खत्म हो गया था। फिर उसने अपना ऑक्सीजन उसको दे दिया। पर दोनों की हालत बहुत खराब हो गयी थी। 
वह अपनी माँ को बहुत प्यार करता है, जब भी कोई मिशन पूरा करता हर बार अपनी माँ से मिलने आता। 

निमस्दई है उनका नाम। 
उनका इंस्टाग्राम अकाऊंट लिंक
https://instagram.com/nimsdai?utm_medium=copy_link

उनकी कुछ बातें जो बुझते हुए मन में भी प्राण फूँक दें
"हम में से बहुत सारे लोग यह भूल जाते हैं कि हमारे जन्म के साथ मौत का सफर शुरू हो गया था।
 ज़िंदगी  एक खाली किताब है लेकिन आप इसे ख्यालों से भर सकते हैं, जोश से भर सकते हैं,  खुशियों से भर सकते हैं।
जब आप पहाड़ पर होते हैं तो आपको पता चलता है कि आप कौन है?  एक छोटी सी गल्ती मौत की वजह बन सकती है और जब जान खतरे में होती है तो हम बचने की कोशिश करते हैं। हम जीना चाहते हैं।
 मैं एक क्लाइमर हूं कि जिंदगी के हर पल को जीना चाहता हूँ। क्लाइमिंग और मेडिटेशन एक जैसा लगता है। जब तकलीफ है आपको नीचे गिरा रही हो और आप उठते चले जाएं तो आप समझ लीजिए आप कुछ भी कर सकते हैं। "

उसने कहा ,अगर यही काम कोई युरोपियन करता तो यह खबर का प्रचार 10 गुना ज्यादा होता।
दुनिया के पर्वतारोही जब माऊंट ऐवरेस्ट फतेह करते हैं तो शेरपा का नाम नहीं लिया जाता, हलांकि वह उसको भी सम्मान मिलना चाहिए। "

फिर  मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।

आपका अपना 
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
09.01.2022
#rudarpur_cycling_club

सारी तस्वीरें निमसदई के इंस्टाग्राम अकाऊँटसे ली गयी हैं

Sunday, January 2, 2022

ਮੈਟਾਫੋਰਸਿਸ , ਕਾਫਕਾ ਦਾ ਨਾਵਲ

ਕਲ ਅਕਾਸ਼ਦੀਪ ਦੀ "ਮੋਹ" ਕਿਤਾਬ ਪੜ੍ਹਦਿਆਂ ਇਕ ਨਾਵਲ ਮੇਟਾਮੋਰਫੋਸਿਸ ( ਕਾਇਆਪਲਟ ਜੋ ਕਾਫਕਾ ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਹੈ) ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਆਇਆ ਤਾਂ ਉਤਸੁਕਤਾ ਹੋਈ ਕੇ ਇਹ ਪੜ੍ਹੀ ਜਾਵੇ। 

ਮੈਂ ਉਂਝ ਕਿਤਾਬ ਬਾਰੇ ਵੀਡੀਓ ਦੇ ਪੱਖ ਚ ਨਹੀਂ 
ਪਰ ਇਹ ਵੀਡੀਓ ਪਾ ਰਿਹਾ ਕੇ ਉਤਸੁਕਤਾ ਪੈਦਾ ਹੋਵੇ ਕਾਫਕਾ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨ ਦੀ, ਸਮਝਣ ਦੀ।

https://youtu.be/cD3KIA2iQcw

ਮੇਟਾਮੋਰਫੋਸਿਸ ਕਿਤਾਬ ਹਿੰਦੀ ਚ ਵੀ ਹੈ।
 
ਹਰਪਾਲ ਸਿੰਘ ਪੰਨੂ ਜੀ ਦਾ ਤਹਿ ਦਿਲੋਂ ਧੰਨਵਾਦੀ ਹਾਂ ਕਿ ਮੈਂ ਫਰਾਂਜ਼ ਕਾਫਕਾ ਬਾਰੇ ਪਹਿਲੀ ਬਾਰੇ  ਉਹਨਾਂ ਦਾ  ਲਿਖਿਆ ਹੋਇਆ ਕਮਾਲ ਦਾ ਲੇਖ ਪੜ੍ਹਿਆ।
ਉਸ ਚ ਪੰਨੂ ਜੀ ਲਿਖਦੇ ਨੇ, ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਾਇੰਸ ਬਦਲੀ ਆਈਨਸਟਾਈਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਸਾਹਿਤ ਬਦਲਇਆ ਕਾਫਕਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ।
ਕਾਫਕਾ ਨੇ ਆਮ ਆਦਮੀ ਦੇ ਦਰਦ ਨੂੰ ਸਮਝਿਆ ਤੇ ਲਿਖਿਆ।
ਉਸਦੇ ਮਨ ਚ ਡਰ ਤੇ ਦੁੱਖ ਦੋਹਾਂ ਤੈਹਾਂ ਸਨ ਜਿਵੇਂ ਉਹ ਛੋਟਾ ਹੁੰਦਾ ਜਦ ਸਕੂਲ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨ ਜਾਂਦਾ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਨੌਕਰਾਣੀ ਉਸਨੂੰ ਡਰਾਉਂਦੀ ਕੇ ਜੇ ਉਸਨੇ ਕੋਈ ਸ਼ਰਾਰਤ ਕੀਤੀ ਤਾਂ ਉਹ ਉਸਦੀ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਲਾ ਦੇਵੇਗੀ 

ਓਸ਼ੋ ਵੀ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ, ਅੱਜ ਤੱਕ ਜਿਨਾੰ ਵੀ ਜੁਲਮ ਹੋਇਆ, ਉਸ ਵਿਚ  ਔਰਤ ਤੋਂ ਵੀ ਵੱਧ ਜੁਲਮ ਅਸੀਂ ਬੱਚਿਆਂ ਤੇ ਕੀਤਾ ਹੈ। 

ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਚ ਕਾਫਕਾ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਚੋ ਵਿਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਪਰ ਜੋ ਕੰਮ ਉਸਨੇ ਕੀਤਾ ਉਹ ਰਹਿੰਦੀ ਦੁਨੀਆਂ ਤਕ ਯਾਦ ਰੱਖਿਆ ਜਾਵੇਗਾ।

ਮਹਾਤਮਾ ਬੁੱਧ ਨੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਤਿੰਨ ਸੱਚ ਕਹੇ 
ਪਹਿਲਾ  ਸੱਚ, "ਜੀਵਨ ਦੁੱਖ ਹੈ"

ਇਸ ਦੁੱਖ ਨੂੰ ਕਾਮੂ, ਕਾਫਕਾ ਨੇ ਕਮਾਲ ਨਾਲ ਬਿਆਨ ਕੀਤਾ।
ਪਾਰ ਦੂਜਾ ਸੱਚ ਹੈ ਕਿ 
"ਇਸ ਦੁੱਖ ਦੇ ਕਾਰਣ ਨੇ"

ਤੀਜਾ ਸੱਚ ਹੈ 
"ਇਸ ਦੁੱਖ ਤੋਂ ਪਾਰ ਜਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ"

ਪਰ ਆਮ ਇਨਸਾਨ ਪਹਿਲੇ ਸੱਚ ਨੂੰ ਅਖਿਰ ਮੰਨਕੇ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਂਦਾ ਹੈ, ਜੂਆ ਖੇਲਦਾ ਹੈ, ਯੁੱਧ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਸੈਕਸ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਸੰਸਾਰ ਚੋ ਵਿਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਬੁੱਧ ਇਕ ਗੱਲ ਹੋਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ 
"ਚਰੇਵਤੀ ਚਰੇਵਤੀ"
ਮਤਲਬ "ਚਲਦੇ ਰਹੋ ,ਚਲਦੇ ਰਹੋ" 

ਸੋ ਚਲਦੇ ਰਹੋ 
ਕਿਤਾਬਾਂ ਪੜ੍ਹਦੇ ਰਹੋ।

ਅਕਾਸ਼ਦੀਪ ਦੀ ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਮੋਹ 
ਬਹੁਤ ਹੌਲੀ ਹੌਲੀ , ਕਰਕੇ ਪੜ੍ਹਨ ਵਾਲੀ ਹੈ 
ਜਿਵੇਂ ਚਾਹ ਪੀਂਦੇ ਹਾਂ ਘੁੱਟ ਘੁੱਟ ਕਰਕੇ। 

#books_i_have_loved

ਆਪਦਾ ਆਪਣਾ
ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ, ਉੱਤਰਾਖੰਡ 
(ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰਹੀਰਾਂ 
ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ,
ਪੰਜਾਬ )

ਚਾਹਨਾਮਾ ਕਿਤਾਬ, ਹਰਪਾਲ ਸਿੰਘ ਪਨੂੰ

ਕਿਤਾਬ ਲਿਖਣਾ ਇਕ ਸਾਧਨਾ ਹੈ ਇਹ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ ਜਦ ਅਸੀਂ ਹਰਪਾਲ ਸਿੰਘ ਪੰਨੂ ਹੋਰਾਂ ਦੀ ਅਨੁਵਾਦ ਕੀਤੀ ਕਿਤਾਬ "ਚਾਹਨਾਮਾ" ਪੜ੍ਹਦੇ ਹਾਂ ਜੋ ਕੇ ਕਾਕੁਜ਼ੋ ਓਕਾਕੋਰਾ ਦੀ ਜਪਾਨੀ ਭਾਸ਼ਾ ਚ ਲਿਖੀ ਹੋਈ ਹੈ। 

ਉਹਨਾਂ ਇਸ ਕਿਤਾਬ ਦੀ ਭਾਲ ਚ  ਜਪਾਨ ਚ ਮੇਲ ਕੀਤੀ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਕੀਤਾ। ਉਥੇ ਵੱਸਦੇ ਪੰਜਾਬੀ ਲੇਖਕ ਦੋਸਤਾਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ। ਫਿਰ ਕਿਤੇ ਬਹੁਤ ਲੰਬੇ ਸਮੇ ਬਾਅਦ ਕਿਤਾਬ ਹੱਥ ਆਈ ਤਾਂ ਉਸਦਾ ਅਨੁਵਾਦ ਵਧੀਆ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਫਿਰ ਉਹਨਾ ਨੇ ਅਨੁਵਾਦ ਕੀਤਾ।
 
ਇਹ ਆਮ ਕਿਤਾਬਾਂ ਵਰਗੀ ਕਿਤਾਬ ਨਹੀਂ ਕਿ ਅਸੀਂ ਇਕ ਬਾਰ ਪੜ੍ਹੀਏ ਤਾਂ ਇਕ ਕੋਨੇ ਚ ਰੱਖ ਦਈਏ। ਇਹ ਬਾਰ ਬਾਰ ਪੜ੍ਹਨ ਵਾਲੀ ਕਿਤਾਬ ਹੈ।
ਇਸਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨਾ ਵੀ ਇਕ ਤਪੱਸਿਆ ਹੈ ਜੋ ਬਾਰ ਬਾਰ ਇਕ ਬੋਧੀ ਭਿਕਸ਼ੂ ਵਿਪਸਨਾ ਧਿਆਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਜੀਵਨ ਦੇ ਗੂੜ੍ਹ ਸੱਚ ਨੂੰ ਸਮਝ ਸਕੇ। 

ਕਿਤਾਬ ਵਿਚ ਚਾਹ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਤੋਂ ਲੈਕੇ ਉਸਦੀ ਪ੍ਰੰਪਰਾ ਤੋਂ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਤਾਓਵਾਦ ਦਾ ਰੰਗ ਚੜ੍ਹਦੇ ਵਿਖਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ। 
ਜ਼ੇਨ ਕਹਾਣੀਆਂ ਨਾਲ ਵਧੀਆ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸਮਝਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ।
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ਕਿਤਾਬ ਵਿਚੋਂ 

ਜਿਸਨੂੰ ਭਾਰਤੀ ਧਰਮ , ਧਿਆਨ ਆਖਦੇ ਹਨ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਰਹੱਸ ਅਨੁਭਵ ਓਹੀ ਜਾਪਾਨੀ ਜ਼ੇਨ ਹੈ।
 
ਇਕ ਕਹਾਣੀ 

ਸਾਧੂ: ਕੇਹੀਆਂ ਅਵਾਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭਂਤੇ?
ਭਿੱਖੂ: ਜੰਗਲੀ ਹੰਸ ਉੱਡ ਰਹੇ ਨੇ ਹਜ਼ੂਰ। 
ਸਾਧੂ :ਕਿਧਰ ਨੂੰ ਗਏ ਹਨ ਉੱਡਕੇ? 
ਭਿੱਖੂ: ਉੱਡ ਚੁੱਕੇ ਨੇ ਜਨਾਬ!!

ਇਹ ਚਾਰ ਪੰਕਤੀਆਂ ਪੂਰਨ ਜ਼ੇਨ ਰਹੱਸ ਹੈ 

ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਨਸੁੰਗ ਨੇ ਬੋਧੀ ਸਾਧੂ ਇਉਤਾਈ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ : ਬੋਧ ਗਿਆਨ ਕਿਥੇ ਹੈ?
ਭਿੱਖੂ: ਜਿਸ ਥਾਂ ਤੋਂ ਇਹ ਸਵਾਲ ਆਇਆ ਹੈ ਉਥੇ ਨੇੜੇ ਹੀ ਹੈ।
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ਕਿਤਾਬ ਬਾਰ ਬਾਰ ਹਾਜ਼ਰ ਵਾਰ ਪੜ੍ਹਨ ਵਾਲੀ ਹੈ। 
ਹਰ ਬਾਰ ਇਹ ਪੜ੍ਹਦਿਆਂ ਲੱਗਦਾ ਇਹ ਜੇ ਪਹਿਲਾਂ ਪੜ੍ਹ ਚੁੱਕਿਆ ਹਾਂ ਤਾ ਸਮਝ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਆਇਆ? 
ਸ਼ਾਇਦ ਹਰ ਬਾਰ ਸਾਡੀ ਸਮਝ ਵਧਦੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ
ਇਹ ਪੜ੍ਹਕੇ।
ਯਾਦ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਗੂੰਗੇ ਕੇਰੀ ਸਰਕਰਾ ਖਾਏ ਔਰ ਮੁਸਕਾਏ। 
ਮੈਂ ਮੁਸਕੁਰਾ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ਤੇ ਬਾਬੇ ਪੰਨੂ ਨੂੰ ਲੱਖ ਲੱਖ ਸਲਾਮ ਦੁਆਵਾਂ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਓਹਨਾ ਇੰਨੀ ਮੇਹਨਤ ਕਰਕੇ ਸਾਡੀ ਝੋਲੀ ਚ  ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਪਾਈ।
ਚਾਹ ਨੂੰ ਸਡੁੱਕੇ ਮਾਰ ਮਾਰ ਪੀ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ਤੇ ਬਾਰ ਬਾਰ ਮੁਸਕੁਰਾ ਕੇ ਅਸਮਾਨ ਵੱਲ ਵੇਖ ਰਿਹਾ। 

ਕਿਤਾਬ ਮੰਗਵਾਉਣ ਲਈ 

ਪਬਲਿਸ਼ਰ : ਲਾਹੌਰ ਬੁਕ ਸ਼ਾਪ,
2 ਲਾਜਪਤਰਾਏ ਮਾਰਕਿਟ,
ਨਜ਼ਦੀਕ ਸੁਸਾਇਟੀਸਿਨੇਮਾ,
ਲੁਧਿਆਣਾ,
141008
ਫੋਨ 0161 2740738

ਕਿਤਾਬ ਦੇ ਸਫੇ: 112
ਕੀਮਤ: 150 ਰੁਪਏ

ਵੈਸੇ ਮੈਂ ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਜਸਬੀਰ ਬੇਗਮਪੁਰੀ ਹੋਰਾਂ ਕੋਲੋਂ ਮੰਗਵਾਈ ਹੈ। ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਕਿਤਾਬਾਂ ਨਾਲ ਇਸ਼ਕ ਵੀ ਕਮਾਲ ਹੈ। 
ਵੈਸੇ ਉਹ ਛੋਟ ਵੀ ਦਿੰਦੇ ਨੇ। 

ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ, ਊਧਮ ਸਿੰਘ ਨਗਰ,
ਉੱਤਰਾਖੰਡ

ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰਹੀਰਾਂ, ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ, ਪੰਜਾਬ
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ਰਕਸ਼ਪਾਲ ਅੰਕਲ ਦੀਆਂ ਯਾਦਾਂ

ਉਹਨਾਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਉਂਝ ਜੀਵਿਆ ਜਿਵੇਂ ਉਹ ਜੀਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ।
ਜੇ ਸ਼ਰਾਬ ਤਾਂ ਗ਼ਾਲਿਬ ਵਾਂਙ ਰੱਜ ਕੇ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਤੀ, ਫਿਰ ਛੱਡੀ ਤਾਂ ਸਤਿਆ ਨਾਰਾਇਣ ਗੋਇੰਕਾ ਦਾ 23 ਦਿਨਾਂ ਦਾ ਵਿਪਸਨਾ ਕੈਂਪ ਲਾਇਆ ਉਹ ਵੀ ਧਰਮਸ਼ਾਲਾ, ਹਿਮਾਚਲ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਚ ਜਾਕੇ। 
ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀ ਚ ਜ਼ਫ਼ਰਨਾਮਾ ਤੋ ਲੈਕੇ ਦ ਬ੍ਰੀਫ ਹਿਸਟਰੀ ਆਫ ਟਾਈਮ ਕਿਤਾਬਾਂ ਸਨ। 
ਮੈਂ ਜਦ  ਚ ਸਰਕਾਰੀ ਕਾਲਜ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਚ ਪੜ੍ਹਦਾ ਸੀ ਤਾਂ ਮੈਂ ਸ਼ਰਮਾਕਲ ਜਿਹਾ ਮੁੰਡਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਉੱਥੇ ਕੁੜੀਆਂ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਛੇੜਨਾ ਤਾਂ ਮੈਂ ਉਹਨਾਂ ਕੋਲ ਜਾਣਾ ਤੇ ਕਿਹਾ, ਕੁੜੀਆਂ ਮੈਨੂੰ ਛੇੜਦੀਆਂ ਨੇ ।
ਉਹਨਾਂ ਹੱਸਕੇ ਕਿਹਾ," ਤੂੰ ਜਵਾਨ ਹੈ ਤਾਂ ਤੈਂਨੂੰ ਹੀ ਛੇਡ਼ਣਗੀਆਂ, ਮੈਨੂੰ ਬੁੱਢੇ ਨੂੰ ਤਾਂ ਨਹੀਂ।"😄😄

ਰਕਸ਼ਪਾਲ ਸ਼ਰਮਾ, ਫੌਜ ਚੋ ਰਿਟਾਇਰ ਇਕ ਵਿਦਵਾਨ ਜਿਸਨੇ ਆਪਣੀ ਸੋਚ ਬਚਾ ਕੇ ਰੱਖੀ ਤੇ ਆਪਣੀ ਵਿਦਵਤਾ ਨਾਲ ਹੋਰ ਦੀਵੇ ਵੀ ਜਗਾਏ। 
ਸ਼ੇਕਸਪੀਅਰ , ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ,ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਸਮੋਇਆ ਸੀ ਉਹਨਾਂ ਕੋਲ।

ਉਹਨਾਂ, ਹਿਜ਼ ਪ੍ਰਿੰਟਿੰਗ ਪ੍ਰੈਸ ਖੋਲੀ। ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਭਾਰਤੀ, ਮੇਰੇ ਬਾਪੂ ,ਵਿਕਾਸ ਤੇ ਹੋਰ ਮਿੱਤਰਾਂ ਦੀ ਮਹਿਫ਼ਿਲ ਲੱਗਦੀ।
"ਧੂਮਕੇਤੂ," ਨਾਮ ਦੀ ਕਿਤਾਬ ਛਾਪੀ ਜੋ ਬ੍ਰਹਿਮੰਡ ਸਾਇੰਸ ਸਾਹਿਤ ਨੂੰ ਮਿਲਾਉਂਦੀ ਸੀ। ਫਿਰ ਬੱਸੀ ਗ਼ੁਲਾਮ ਹੁਸੈਨ ਦੇ ਰਸਤੇ ਚ ਵਿਕਾਸ ਹੋਰਾਂ ਦੇ ਫਾਰਮ ਹਾਊਸ ਤੇ  ਰਹੇ। ਉਹਨਾਂ ਇਕ ਖੋਪੜੀ ਰੱਖ ਲਈ ਤਾਓ ਫ਼ਕੀਰਾਂ ਵਾਂਙ। 

ਉਹਨਾਂ ਇਹ ਗੱਲ ਸੱਚ ਕੀਤੀ,ਆਦਮੀ ਉਦੋਂ ਬੁੱਢਾ, ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਜਦ ਉਹਦੇ ਬਾਲ ਚਿੱਟੇ ਹੋ ਜਾਣ, ਸਗੋਂ ਉਹ ਉਦੋਂ ਬੁੱਢਾ ਹੁੰਦਾ ਜਦ ਉਹ ਮਹਾਨ ਸੁਫਨੇ ਵੇਖਣੇ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। 

ਮੈਂ ਓਹਨਾ ਕੋਲ ਘੰਟਿਆਂ ਬੱਧੀ ਬੈਠਾ ਰਹਿੰਦਾ ਗੱਲਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੀਆਂ ਬੁੱਧ ਦੀਆਂ, ਸਮੇਂ ਦਾ ਪਤਾ ਨਾ ਲੱਗਣਾ।
ਮੈਂ ਛੁੱਟੀ ਆਉਣਾ, ਮਾਂ ਨੇ ਕਹਿਣਾ ਤੂੰ ਫਲਾਣੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰ ਕੋਲ ਜਾ ਆ।
ਬਾਪੂ ਜੀ ਨੇ ਕਹਿਣਾ, ਜੇ ਤੂੰ ਰਕਸ਼ਪਾਲ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਜਾ ਰਿਹਾ ਤਾਂ ਜਾ ਮੈਂ ਆਪ ਹੀ ਜਾ ਆਉ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਦੇ। (ਹਾਲਾਂਕਿ ਉਹ ਵੀ ਨਾ ਜਾਂਦੇ ਇਹੀ ਕਾਰਨ ਆ, ਬਾਪੂ ਵਾਂਗ ਮੇਰੇ ਵੀ ਬਹੁਤ ਦੋਸਤ ਨੇ)
ਮੇਰੀ ਕਿਤਾਬ , ਅਣਜਾਣ ਟਾਪੂ ਦੇ ਟਾਇਟਲ ਪੇਜ ਤੇ ਵੀ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਜਿਕਰ ਹੈ। 
ਫਿਰ ਜਦ ਓਹਨਾ ਕੋਲ ਬੈਠੀਆਂ ਘੰਟੇ ਬੀਤ ਜਾਣੇ  ਤਾਂ ਬਾਪੂ ਜੀ ਦਾ ਫੋਨ ਆਉਣਾ, ਆ ਜਾ ਹਨੇਰਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ।
ਕੁਝ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਭਾਰਤੀ ਹੋਰਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲ ਹੋਈ ਤਾਂ ਉਹ ਕਹਿੰਦੇ," ਰਜਨੀਸ਼ ਤੇਰੇ ਪਿਤਾ ਤੋਂ ਕੁਝ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਰਕਸ਼ਪਾਲ ਹੋਰੀਂ ਵੀ ਜੰਨਤ ਨਸ਼ੀਨ ਹੋ ਗਏ। ਇਹ ਅਲੱਗ ਹੀ ਰੂਹਾਂ ਸਨ ਜੋ ਲੱਗਦਾ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਹੀ ਦੁਨੀਆਂ ਤੋਂ ਆਏ ਸਨ ਅੱਜਕਲ ਅਜਿਹੇ ਬੰਦੇ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੇ।" 

ਮੈਨੂੰ ਵੀ ਯਾਦ ਆਇਆ ਇਕ ਵੇਰਾਂ ਇਹ ਸਾਡੇ ਘਰ ਆਏ ਰੋਟੀ ਖਾ ਲਈ ਤੇ ਹੱਥ ਨਾਲ ਹੀ ਸਬਜ਼ੀ ਖਾਣ ਲੱਗ ਪਏ। ਮੈਂ ਕਿਹਾ, "ਅੰਕਲ ਜੀ ਚਮਚਾ ਲੈ ਲਓ।"
ਉਹ ਕਹਿੰਦੇ, "ਰੱਬ ਨੇ ਪੰਜ ਉਂਗਲਾਂ ਦਾ  ਇਹ ਚਮਚਾ ਬਣਾਇਆ ਹੈ ਇਸਦਾ ਕੋਈ ਜਵਾਬ ਨਹੀਂ।" 

ਉਹਨਾਂ ਸਾਈਕਲ ਤੇ ਹੀ ਰੌੜੀਆਂ ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਚਲੇ ਜਾਣਾ 
ਫਿਰ ਪੁਲਿਸ ਲਾਈਨ ਚ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਗੱਲਬਾਤ ਕਰਨ ਦੀ ਟ੍ਰੇਨਿੰਗ ਵੀ ਦਿੱਤੀ।
ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਇੰਗਲਿਸ਼ ਵਿਸ਼ੇ ਤੇ ਬਹੁਤ ਪਕਡ਼ ਸੀ।
 ਮੈਂ ਉਹਨਾਂ ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਚੁਬਾਰੇ ਤੇ ਬੈਠੇ ਹੋਣਾ ਮੇਰੇ ਲਈ ਚਾਹ ਬਨਵਾਉਣੀ, ਖੂਬ ਗੱਲਾਂ ਕਰਨੀਆਂ। ਜਦ ਕਿਤੇ ਗੱਲ ਹੋਣੀ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦਾ ਬਹੁਤ ਨਿਘਾਰ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਕਹਿਣਾ," ਰਜਨੀਸ਼ ਅੱਖਾਂ ਬੰਦ ਕਰ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਸ਼ਾਂਤੀ ਲੱਭ ਬਾਹਰ ਤਾਂ ਰੌਲਾ ਹੀ ਹੈ। ਹੋ ਸਕਦਾ ਤੇਰੀ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਚ ਕੁਝ ਤਣਾਅ ਘਟ ਜਾਏ। "
ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਛੱਤ ਤੇ ਅਕਸਰ ਮੋਰ ਦਿਖ ਜਾਂਦੇ। ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਪਿੰਡ ਬਹੁਤ ਮੋਰ ਸਨ। ਸਾਡੇ ਪਿੰਡ ਪੁਰਹੀਰਾਂ ਤੋਂ 4 ਕੁ ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਹੈ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਪਿੰਡ, ਰੌੜੀਆਂ।

ਉਹ ਟਾਈਮਜ਼ ਆਫ ਇੰਡੀਆ ਚ ਸੁਡੋਕੂ ਖੇਲਦੇ ਕਹਿੰਦੇ ਇਹ ਦਿਮਾਗ ਨੂੰ ਜਵਾਨ ਰੱਖਣ ਲਈ ਸਹਾਇਕ ਹੈ। 

ਓਸ਼ੋ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ, ਤੁਸੀਂ ਮੇਰੇ ਮਰੇ ਤੇ ਮੈਨੂੰ ਚੰਗਾ ਬੰਦਾ ਕਹੋਗੇ ਮੇਰੇ ਸਾਰੇ ਗੁਨਾਹ ਮਾਫ ਕਰ ਦਿਓਗੇ। ਪਰ ਜੇ ਇਹ ਸਭ ਮੇਰੇ ਜਿਉਂਦੇ ਜੀ ਕਰ ਦਿਓ ਤਾਂ ਵਧੀਆ ਕਿਉਕਿਂ ਮੇਰੇ ਮਰੇ ਤੇ ਤਾਂ ਮੈਨੂੰ ਇਹਨਾਂ ਗੱਲਾਂ ਦਾ ਪਤਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਲੱਗਣਾ।"

ਸੋ ਸਾਡੇ ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਕਿੰਨੇ ਹੀ ਅਜਿਹੇ ਵਿਦਵਾਨ ਤੇ ਸਹਿਜ ਲੋਕ ਨੇ ਜਿਹਨਾਂ ਕੋਲ ਬੈਠਕੇ ਸਾਨੂੰ ਸਹਿਜਤਾ ਮਹਿਸੂਸ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਸੋ ਉਹਨਾਂ ਕੋਲ ਬੈਠਕੇ ਸਮਾਂ ਬਿਤਾਉਣਾ ਸਾਡੇ ਪਲਾਂ ਨੂੰ ਹਸੀਨ ਬਣਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ।
 ਜੀਵਨ ਦੀ ਕੋਈ ਮੰਜ਼ਿਲ ਨਹੀਂ ਇਹ ਤਾਂ ਇੱਕ ਅਨੰਤ ਦਾ ਸਫ਼ਰ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਪੰਜ ਤੱਤ ਮਿਲਦੇ, ਮਨ ਆਉਂਦਾ ਤਾਂ ਮਨੁੱਖ ਬਣਦਾ ਫਿਰ ਉਹ ਜੀਵਨ ਜਿਉਂਦਾ ਤੇ ਫਿਰ ਦੁਬਾਰਾ ਉਹੀ ਪੰਜ ਤੱਤਾਂ ਚ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਤੇ ਛੱਡ ਜਾਂਦਾ ਪਿੱਛੇ ਹਸੀਨ ਯਾਦਾਂ, ਅੱਖਾਂ ਚ ਹੰਝੂ ਤੇ ਬੁੱਲਾਂ ਤੇ ਮੁਸਕੁਰਾਹਟ।
ਅਲਵਿਦਾ ਰਾਕਸ਼ਪਾਲ ਜੀ।

ਤਸਵੀਰ ਚ ਬਾਪੂ ਗੁਰਬਖਸ਼ ਜੱਸ ਹੋਰਾਂ ਨਾਲ, ਰਕਸ਼ਪਾਲ ਸ਼ਰਮਾ।
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