कभी तो निकालो इतनी फुर्सत
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कभी तो निकालो इतनी फुर्सत
कभी तो
कबूतरों की गुटरगूं सुनो
वो भी अपने ही घर के
बरामदे पर बने
उनके घौंसलों से
कभी तो चींटियों के अंडों को
गौर से देखो
यह भी देखो
कैसे चलती हैं वो
एक ही कतार में
अनुशासित सेना की तरह
कभी घर के गमलों में लगे
तुलसी की मीठी और
करी पत्ते तीखी सुगंध को सूँघें
कभी अपने आप को
निहारें आईने में
खुद को ही आँख मारें
फ्लाइंग किस्स भेजें
खुद से इश्क करें
अपने ही हाथ का चुंबन करें
बारिश में कभी कहीं
घर की बालकनी में
खड़े होकर देखें
बारिश की
एक एक बूँद कैसे
परनाले को भर देती है
बारिश की छोटी छोटी बूंदें
बना देती हैं
कलाकृति गुलाब की पंखुडियों पर
कभी अपनी पत्नी को
एक कप चाय बनाकर पिलाएँ
वो भी तब
जब वह मार रही हो गप्पें
अपनी ही सहेली से
वो भी अपनी ही बैठक में
कभी कहो अपनी अर्धांगिनी को कि
मैं बच्चों की देखभाल करता हूं
तुम भी जाओ
अपनी सहेलियों के साथ
मनाली टूर पर
कभी-कभी बादलों में पूर्णिमा
के चाँद को
आँखें बंद कर देखें
अपने भीतर उठते
ज्वार भाटे को
कभी अपने भीतर ढूंढो
वह बच्चा जो हँसता था
बिना किसी वजह के
कभी अपने दोस्त को
बुलाओ
वो भी बिना किसी काम के
एक एक कप चाय पिएँ
वो भी सड़क के पास
चाय की टपरी से
कभी भी अकेले बाहर जाएं
पहाड़ पर
दोस्त बनाओ वो भी
सड़क, पेड़, फूल, पत्ते
जंगल, अजनबियों को
कभी शिक्षक, किसान,
मोची का धन्यवाद करें
जिन्होनें आपके व्यक्तित्व
बनाने में मदद की
कभी अपने विचारों को देखो
चलन फिरते अचानक स्टैचु
बन जाओ बच्चों की तरह बनो
फिर देखो रुके हुए मन को
कभी बुद्ध की मूर्ति को निहारें
और मन को तपस्वी होने दो
कभी मीरा के भजन सुनकर रो लें
कभी नाचें
उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान की
कव्वालियों को सुनकर
कभी तो छोड़ दो समझ का पल्ला
कभी तो हो जाएँ मस्त
कभी तो हो जाएँ नासमझ
कभी तो हो जाएँ नासमझ
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रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
Beautiful
ReplyDeleteShukriya ji
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