May. 2017
मई का महीना और दिल्ली जाना, तोबा तोबा। पर हमने ये तोबा करने की ठानी, और निकले दिल्ली को।
हम लोग रुद्रपुर से चले। ट्रेन में बैठने वाली सीटें थी। मैं,मेरी पत्नी सिमरन,दोनों बच्चे रोहन और वंश। मई का महीना था तो गर्मी पूरी जवानी पर थी। पानी की दो बोतलें भी खत्म हो गई। मिनरल वाटर की बोतल खरीदी। एक बार तो बिना पानी के ऐसे हो गए थे, कि क्या कहें? ट्रेन रामपुर, मुरादाबाद, गाजियाबाद होते हुए दिल्ली पहुंची।
वँहा से हमने मेट्रो ट्रेन पकड़ी और राजीव चौक पहुंचे। वहां देखा एक नवविवाहित जोडा था। नवविवाहिता ट्रेन में पहले चढ़ी और ट्रेन चल दी। उसका पति नीचे रह गया। वो ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई प्रेमी प्रेमिका बिछड़ गये हों।
ट्रेन के पीछे शीशे पारदर्शक थे तो लग रहा था कि जैसे औरत कह रही हो कि ट्रेन रुक जाए और मैं अपने पति के साथ मिल लूँ।
स्टेशन पर एक औरत उसके पति को समझा रही थी, कि अगली ट्रेन आ दो मिनट में आ जाएगी , घबराओ मत।
हमने अपनी ट्रेन पकडी और तिलक नगर पहुंचे। वहां पर सबसे पहले नींबू पानी पिया। यह सारा इलाका पंजाबियों का है। घरों में गमले,गली में गुरुद्वारा है, घरों के बाहर बजाज चेतक स्कूटर खड़े हैं पुराने।
चाचा के घर पहुंचे तो खूब सारी बातें हुईं। रात का खाना सब खा कर हम सो गए और सुबह उठे। तैयार होकर निकल लिए, नेशनल रेल म्यूजियम के लिए। हमने ओनलाईन टैक्सी बुक की। टैक्सी वाले से बातचीत होने लगी, तो उसने बताया कि टैक्सी के प्रॉफिट का काफी हिस्सा प्राइवेट कंपनी वाले ले जाते हैं। मैं यह सोच रहा था मैं जितना भी सिस्टम है सब आम आदमी को निचोड़ने के लिए ही शायद बना है क्या?
म्यूजियम वहां पहुंचकर हमने टिकटें खरीदी।
नेशनल रेल म्यूजियम चाणक्यपुरी दिल्ली में है। ये 10 एकड़ जगह में बना हुआ है। इसमें तरह-तरह के इंजन रखे हुए हैं । 1977 में बनकर तैयार हो गया था। सोमवार को छोड़कर बाकी दिन खुला रहता है।
हर रोज लगभग 2.3 करोड़ लोग भारतीय रेल में सफर करते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा चौथा रेलवे का सिस्टम है। नई दिल्ली के रेलवे स्टेशन का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में है, रूट रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम ।
यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज में 4 ट्रेनों को दिया गया नाम दिया गया है दार्जिलिंग ,मुंबई सीएसटी ,नीलगिरी और कालका शिमला को।121,407 भारतीय रेलवे ट्रैक की टोटल लंबाई है। 60.14 बिलियन डालर की कमाई 1 साल की है। 2000 पैसेंजर ट्रेन हर रोज़ चलती हैं।
अंदर वहां एंट्री करते ही महात्मा गांधी जी का बुत बना हुआ है,
वँहा पर लिखा हुआ है,आईँसटाइन का विचार, "आने वाली नस्लों को यकीन करना मुश्किल होगा कि महात्मा गांधी जैसे कोई इंसान इस धरती पर हुआ है।"
हम आगे गए तो देखा कि वहां एक ऐयर कंडिशनर बिल्डिंग थी, अंदर गए तो बड़ी राहत महसूस हुई ।अंदर अलग-अलग तरह की मॉडल की रेल गाडी और इंजन के मॉडल थे। मैं कई जगह एलईडी स्क्रीन लगी हुई थी, जिसमें पुराने समय की रेलवे की ब्लैक एंड वाईट वीडियो चल रही थी। उसमें रेलवे का ट्रैक बदलना, रेलवे का बहुत सारी जानकारी थी। एक मॉडल था जिसमें पहाड़ के बीच में ट्रेन दिखाई गई थी।
भारत का नक्शा था, जिसमें अलग अलग रेलवे स्टेशन के स्विच लगे हुए थे। एक क्विज़ थी, वँहा से आवाज़ आती तो कुछ सेकिंड में भारत के नक्शे पर उस स्टेशन को ढूंढकर स्विच दबाना होता था। हमने वह गेम खेली। फिर बाहर निकले। एक छोटी ट्रेन थी उसमें बैठकर एक लंबा चक्कर लगाया । इसके चलती हुई टवाय ट्रेन से बहुत सारे पुराने असली इंजन रास्ते में देखने को मिले, जो मिऊजियम ने संभाल कर रखे हुए हैं।
फिर हम लोग एक रेस्टोरेंट में गए वँहा भी एक बच्चों की छोटी सी ट्रेन थी, जो कि टेबल के साथ से गुज़र रही थी।
अशोक कुमार का गाया हुआ गाना,
" रेलगाड़ी रेलगाड़ी
छुक छुक करती रेलगाड़ी"
याद आ गया।
हमने वहां कुछ खाया पीया और फिर बाहर निकले। पानी की बोतलें भरी। बहुत से लोग घूमने आए हुए थे। रेलवे के इंजन पास से जाकर देखा, वँहा ऊपर चढ़ना मना था। उस पर स्टिकर लगा हुआ था कि हर बार गल्ती करने पर एक आदमी का ₹500 जुर्माना है। वो भारतीय लोगों को जानते हैं कि कंहु 10 लोग मिलकर 50-50 रूपये इक्ट्ठे करके ये हर्जाना भर सकते हैं। यहां पर यह बताना मैं जरूरी समझूंगा कि मुझे इस म्यूजियम का पता फिल्म, "की एंड का" से लगा ।उस फिल्म में एक गीत की शूटिंग यहां हुई थी। उस फिल्म में भी टॉय ट्रेन है जिसमें की रसोई से जो खाना है डाईनिंग टेबल तक की ट्रेन में ही से ही आता है।
फिर ट्रेन का इक डिब्बा देखा कि जिसमें लोग घूम सकते थे। अंदर जाकर देखा तो महात्मा गांधी का बुत बना हुआ है। उनके साथ जाकर फोटो खिंचवाई । वहां एक लैंडलाइन फोन भी है जिसमें महात्मा गांधी जी का एक संदेश है। हमने वह भी सुना। यह बहुत पुरानी रिकॉर्डिंग है ।सामने दीवार पर एक एलईडी स्क्रीन है इसमें महात्मा गांधी जी के संघर्ष की कहानी दिखाई जा रही थी।
वहां पर एक लड़का पियूष मिला जिसने कि हमें वँहा के बारे में बताया। वो वहीं पर नौकरी करता है । नीचे उतरकर हमने देखा वँहा फीडबैक बुक थी। उसमें कुछ पोस्ट कार्ड रखे हुए थे, साथ अलग अलग रंग के स्कैच पैन थे। हमने उसमें, बहुत बढ़िया लिखा और वो पोस्ट कार्ड डिब्बे में डाल दिया । कुछ साबुन जो आयुर्वेदिक ढंग से बने हुए थे वो भी वँहा सेल के लिए रखे हुए थे। हमन पीयुष से पूछा कि फिल्म की एंड का शूटिंग कहां हुई थी, तो उसने बताया कि वो हरे रंग वाले शेड के नीचे। वो हफ्ते में एक बार ही खुलता है। पर आज वह आज बंद था,शायद हमारी किसमत में नहीं था देखना।
हमने ट्रेन का डिब्बा देखा जिसमें जानवरों को एक जगह से दूसरी लिजाने के लिए बनाया हुआ था, उसमें हवादार खिड़कियां बनी हुई थी। अंदर लकड़ी के जानवर के बुत भी बने हुए थे।
गुलमोहर के पेड़ पर फूल से गर्मी के कारण पूरे खिले हुए थे । लड़के लड़कियां घूम रहे थे,फोटो खींच रहे थे ।
तभी मुझे याद आया मैनें ₹500 टिकटों के लिए दिए थे, पर बकाया वापिस लेना भूल गया हूँ । तो फिर मैं वापस वहां पहुंचा। हमारी टिकट देखकर, अपना कैश चैक करके उन्होने बकाया वापस कर दिया ।
वहां पर ओर घूमे और फिर वापस आने के लिए टैक्सी की। फिर वापस घर को आ गए। रात का खाना खाया फिर हम सो गए।
फिर वापसी के लिए दिल्ली से रुद्रपुर की ट्रेन पकड़ी। रास्ते में हमें एक लड़का मिला जो कि ट्रेन में पढ़ रहा था। मेरे बड़े बेटे का पेपर थे। उस लड़के से खाली दो पेज लिए और कुछ सवाल हल किए। लड़का सीए की तैयारी कर रहा था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था तो उसने मेरी वाइफ से बात की। वो मैथ की टीचर है तो उसमें उसको कुछ टिप्स बताएं। मेरी छोटी बेटे को बहुत भूख लगी थी, तो उसने कहा मुझे भूख लगी है । तो लड़कों ने बताया कि एक सब्जी रोटी लाए हुए हैं। तो उन्होंने आलू की सब्जी बनाई हुई थी, उन्होंने रोटी सब्जी मेरे बेटे को दी। मेरे बेटे ने रोटी खाई। उसका पेट भर गया। फिर भी मेरे कान में कहा, पापा इनका धन्यवाद करो। मैंने वही शब्द दोहरा दिए। वही शब्द अपनी मम्मी के कान में जाकर दोहराए कि उन लड़कों का धन्यवाद करें। आज मुझे अपने गांव का लंगर याद आ गया, कि गुरुद्वारे में जब हम भूखे को खाना खिलाते हैं तो वह कैसी दुआएं देते होंगे ?
उस लड़की ने बताया वो वैब डिजायनिंग का काम करता है।दिल्ली से नोएडा जाता है ।एक मकान के पाँचवे मारले पर एक कमरे में वो 3 लोग रहते हैं जो कि गर्मी में बहुत ज्यादा तप जाता है। मैंने उसके कहा कि बोरी को गीली करके खिड़की पर टांग लिया करो। उसने कहा ऐसा करने से मकान मालिक घर से बाहर निकाल देगा।
वो सुबह 6 से 10 पढ़ने जाता है और 11:00 से 4:00 नौकरी करता है।
पूरे 1 साल बाद अपने घर बिहार जा रहा था। मैंने उससे पूछा कि बिहार में सबसे ज्यादा आईएएस ऑफिसर हैं। तो उसने कहा कि हाँ। पर वहां पर जातिवाद बहुत है, जिसके कारण बिहार बहुत पिछड़ा हुआ है।
मैं देख रहा था वो लड़का एक कली की भांति है, और वो पूरी तरह खिलने की तैयारी कर रहा है। रोटी की तलाश उसको घर से कितनी दूर ले आई है, जैसे कि मैं भी अपने घर से दूर पंजाब के दूर रूद्रपुर में हूँ। मेरे गांव के दोस्त इटली और कनाडा जाकर जिंदगी का संघर्ष कर रहे हैं।
उसने बताया कि उसके घर वाले इसको आगे नहीं पढ़ा रहे थे तो कह थे कि पंजाब में जाकर कोई काम करो। घर वालों से लड़कर वो दिल्ली भाग आया था। मैंने देखा ऐसे कितने ही लोग हैं, जो घरों से पलायन करते हैं बड़े शहरों में जाकर रहते करते हैं, उनमें से चुनिंदा लोग बहुत कामयाब हो जाते हैं, फिर सुर्खियों में आ जाते हैं। बाकी लोग ऐसे ही जीवन बिता देते हैं।
आज मुझे दूरदर्शन पर 28 साल पहले आने वाला एक धारावाहिक याद आ गया,
A tryst with People of India के डायरेक्टर सईद मिर्जा का डायलॉग याद आ गया, जिसमें वो कहते हैं, देश को चलाने वाले नेता नहीं होते,बल्कि देश को चलाने वाले वो लोग हैं जो सुबह घर से निकलते हैं, बसों में ,साइकिल पर फैक्ट्रियों के लिए, काम करते हैं, उनका जिक्र इतिहास के पन्नों पर कहीं भी नहीं आता।
ये सीरियल यूट्यूब पर देखने को मिल सकता है।
आज इतना ही।
फिर मिलेंगे इक किस्से के साथ।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड