4.12.2018 to 8.12.2018
रेल एक चलते -फिरते मकान की तरह होती है: जिसमें लोग चढ़ते हैं, बैठते हैं ,बातें करते हैं, दोस्त बनते हैं , किस्से बनते हैं, सफर करते हैं।
रेल से पुणे दोबारा जाना हुआ मुझे मेरा। इस बार मेरे साथ मेरी फैक्टरी से नेमचंद भी थे।
पुण, महाराष्ट्र पहुँच कर हम विक्की के आटो में शनिवारवाड़ा देखने गए। विक्की बहुत दिलचस्प इंसान है जिसके बारे में मैं पिछली बार बता चुका हूँ।
किला मराठों ने अंग्रेजो के खिलाफ 1740 में बनाया गया था । बाहर बहुत बड़ा गेट है और अंदर घुसते ही एक पुरानी तोप पड़ी है । बड़े-बड़े पत्थरों को काटकर चबूतरानुमा बनाया गया है । ऊँची ऊँची दीवारें हैं ,उनमें बहुत छोटे छोटे झरोखें हैं, जो कि सिपाहियों के लिए थे शायद। किले के बाहर , छत्रपति शिवाजी महाराज की एक बहुत ऊँची प्रतिमा है ,जिसमें वो घोड़े पर सवार हैं।
फिर हमने श्रीमंत दगडुशेठ गणेश मंदिर देखा, उसमें गणेश की बहुत सुंदर प्रतिमा है। कहते हैं कि मंदिर में सोने और चांदी की नक्काशी है। बाहर दीवारों पर हाथी की खूबसूरत नक्काशी है । मंदिर में चढावे के लिए खूबसूरत फूल मिलते हैं ।
फिर आगा खान पैलेस देखा।महात्मा गांधी जी को यंहा बन्धक बना कर रखा गया था। महल को अब संग्रहालय में बदल दिया गया है। महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी की बहुत सारी प्रतिमाएं हैं और बहुत सारी पुरानी तस्वीर में जिसमें वह बहुत सारे लोगों से मिल हैं, जैसे रविन्द्र नाथ टैगोर , आइँसटाईन के साथ । महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी की समाधि भी यँही है । हालांकि महात्मा गांधी जी की समाधि राजघाट दिल्ली में है । यहां पर बरगद के बहुत सारे पुराने पेड़ हैं, जो कि बहुत पुराने हैं।
कुछ लोग मिले जो कि गुरु नानक देव जी के जपुजी साहब की पहली पौड़ी इक ओंकार सतनाम आप सुन रहे थे पर वह मराठे थे (जो रंग दे बसंती फिल्म से है) मैंने पूछा हूं आपको ये समझ में आता है ? तो उन्होंने कहा बहुत कम आता है, पर बहुत अच्छा लगता है। मुझे भी लगा कि परमात्मा का नाम किसी भी भाषा में लिया जाए जिसके मन में श्रद्धा हो गई उसको समझ आ जाता है चाहे उसे वह भाषण ना आती हो । फिर मैंने उनको उसका मतलब समझाया।
एसवी राजु सर मिले। उन से मंत्रों और मुद्रा के बारे में बात हुई। पहले साईंस ने खोजा सार कुछ ठोस है , तरल है और गैस है। फिर बात आई कि सब कुछ ऊर्जा है। अब खोजा गया कि सब कुछ तरंग
(wave) है। जो हमें स्थूल नज़र आता है, वह भी एक जगह तरंगों का इक्ट्ठा हो जाना है।
हमें खास मुद्रा में बैठकर किसी खास मंत्र का उच्चारण करते हैं तो उसका हमारे शरीर पर प्रभाव होता है ।
ऑफिशियल काम हमने निपटाया। फिर अगले दिन सुबह ओशो आश्रम पहुंचा । वहां पर बुक स्टॉल पर माँ प्रतिभा (ओशो ने अपने सन्यासियों में औरत को माँ कहा और आदमी को स्वामी ) से मुलाकात हुई जो कि 1984 से वंही रह यही हैं और वंही आश्रम में काम कर रही हैं। उनको ज़ुकाम था। मैंने उसमें से परमिशन लेकर उनका अक्युप्रैशर किया। ओशो की किताबें खरीदी, पलटू वाणी और बुक्स आई हैव लवड।
एक स्कूटर जो 1965 का माडल का था ,उस पर तस्वीर खींची। विक्की के आटो में भी। वो हमेशा की तरह बिंदास था। इस बार उसकी लुक पूरी बदली हुई थी ।
फिर वापस ट्रेन पकड़ कर वापस निकला।लोनावला होते हुए गुजरात से दिल्ली आए ।लोनावला बहुत ही खूबसूरत है ,पहाड़ों से निकलती हुई ट्रेन। शायद इधर खंडाला भी है, यंहा बहुत सारी हिन्दी फिल्मों की शूटिंग होती है। बहुत ही मनमोहक दृश्य थे। इसके लिए किसी दिन लग से घूमने आना होगा ।
सुबह दिल्ली पहुंचे। तो दिल्ली से ट्रेन पकडी।
सामने सीट पर एक बुजुर्ग आदमी का गाने सुन रहा था
दिल का खिलौना हाय टूट गया
कोई लुटेरा के लूट गया
-------
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
-------
तू चीज़ बड़ी है
मस्त मस्त
----
मैंने कहा आप बहुत खूबसूरत गाने सुन रहे हैं जवानी के समय में आप बहुत रोमांटिक रहे होंगे? उन्होंने कहा ,नहीं ऐसा नहीं है। मेरी पत्नी मुझे छोड़ कर चली गई एक ऐसी जगह जहां से कोई वापस नहीं आता।
एक बेटी थी, उसकी शादी हो गई, अब बिल्कुल अकेला हूँ तो ये गीत सुनता रहता हूँ। ऐसे लोगों से मिलकर लगता है, ज़िंदगी बहुत कुछ सिखा देती है।
उनका नाम दिनेश था ,उम्र 63 साल। वो मुझे अपना मोबाइल दिखाने लगे।
एक शेर याद आ गया
ना दोस्त के लिए
ना दुश्मनी के लिए
वक्त रुकता नहीं
किसी के लिए
# कवि नामालूम
एक चीज का फर्क मैंने देखा हमारे इधर नॉर्थ में रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिल काफी है उसके मुकाबले पुणे में हमें एक ही दिखाई दिया ।लोग वहां साइकिल चलाते हैं । कई बुजुर्गों को मैंने साइकिल चलाते हुए देखा । पेड़ों से बहुत प्यार है ।उनको जो पेड सड़क के किनारे पर हैं उन पर रेडियम के रिफ्लेक्टर लगा रखे हैं जो के आने जाने वाले उनसे ना टकराएँ।
हम जब लोनावला थे वहां पर कोई प्रदूषण नहीं था, पर जैसे ही गाड़ी के मुंबई के बाहर आई तो पॉलिथीन का ढेर , ऊंची ऊंची बिल्डिंग दिखाई देने लगीं। बस यही फर्क है परमात्मा की बनाई दुनिया और आदमी के बनाए संसार में।
इस बार के सफर में चार लोगों को एक्यूप्रेशर सिखाया।
इस बार इतना ही।
फिर मिलेंगे एक नए किस्से के साथ।
तब तक के लिए आज्ञा दीजिए।
आपका अपना।
रजनीश जस
रूद्रपर
उत्तराखंड
रेल एक चलते -फिरते मकान की तरह होती है: जिसमें लोग चढ़ते हैं, बैठते हैं ,बातें करते हैं, दोस्त बनते हैं , किस्से बनते हैं, सफर करते हैं।
रेल से पुणे दोबारा जाना हुआ मुझे मेरा। इस बार मेरे साथ मेरी फैक्टरी से नेमचंद भी थे।
पुण, महाराष्ट्र पहुँच कर हम विक्की के आटो में शनिवारवाड़ा देखने गए। विक्की बहुत दिलचस्प इंसान है जिसके बारे में मैं पिछली बार बता चुका हूँ।
किला मराठों ने अंग्रेजो के खिलाफ 1740 में बनाया गया था । बाहर बहुत बड़ा गेट है और अंदर घुसते ही एक पुरानी तोप पड़ी है । बड़े-बड़े पत्थरों को काटकर चबूतरानुमा बनाया गया है । ऊँची ऊँची दीवारें हैं ,उनमें बहुत छोटे छोटे झरोखें हैं, जो कि सिपाहियों के लिए थे शायद। किले के बाहर , छत्रपति शिवाजी महाराज की एक बहुत ऊँची प्रतिमा है ,जिसमें वो घोड़े पर सवार हैं।
फिर हमने श्रीमंत दगडुशेठ गणेश मंदिर देखा, उसमें गणेश की बहुत सुंदर प्रतिमा है। कहते हैं कि मंदिर में सोने और चांदी की नक्काशी है। बाहर दीवारों पर हाथी की खूबसूरत नक्काशी है । मंदिर में चढावे के लिए खूबसूरत फूल मिलते हैं ।
फिर आगा खान पैलेस देखा।महात्मा गांधी जी को यंहा बन्धक बना कर रखा गया था। महल को अब संग्रहालय में बदल दिया गया है। महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी की बहुत सारी प्रतिमाएं हैं और बहुत सारी पुरानी तस्वीर में जिसमें वह बहुत सारे लोगों से मिल हैं, जैसे रविन्द्र नाथ टैगोर , आइँसटाईन के साथ । महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी की समाधि भी यँही है । हालांकि महात्मा गांधी जी की समाधि राजघाट दिल्ली में है । यहां पर बरगद के बहुत सारे पुराने पेड़ हैं, जो कि बहुत पुराने हैं।
कुछ लोग मिले जो कि गुरु नानक देव जी के जपुजी साहब की पहली पौड़ी इक ओंकार सतनाम आप सुन रहे थे पर वह मराठे थे (जो रंग दे बसंती फिल्म से है) मैंने पूछा हूं आपको ये समझ में आता है ? तो उन्होंने कहा बहुत कम आता है, पर बहुत अच्छा लगता है। मुझे भी लगा कि परमात्मा का नाम किसी भी भाषा में लिया जाए जिसके मन में श्रद्धा हो गई उसको समझ आ जाता है चाहे उसे वह भाषण ना आती हो । फिर मैंने उनको उसका मतलब समझाया।
एसवी राजु सर मिले। उन से मंत्रों और मुद्रा के बारे में बात हुई। पहले साईंस ने खोजा सार कुछ ठोस है , तरल है और गैस है। फिर बात आई कि सब कुछ ऊर्जा है। अब खोजा गया कि सब कुछ तरंग
(wave) है। जो हमें स्थूल नज़र आता है, वह भी एक जगह तरंगों का इक्ट्ठा हो जाना है।
हमें खास मुद्रा में बैठकर किसी खास मंत्र का उच्चारण करते हैं तो उसका हमारे शरीर पर प्रभाव होता है ।
ऑफिशियल काम हमने निपटाया। फिर अगले दिन सुबह ओशो आश्रम पहुंचा । वहां पर बुक स्टॉल पर माँ प्रतिभा (ओशो ने अपने सन्यासियों में औरत को माँ कहा और आदमी को स्वामी ) से मुलाकात हुई जो कि 1984 से वंही रह यही हैं और वंही आश्रम में काम कर रही हैं। उनको ज़ुकाम था। मैंने उसमें से परमिशन लेकर उनका अक्युप्रैशर किया। ओशो की किताबें खरीदी, पलटू वाणी और बुक्स आई हैव लवड।
एक स्कूटर जो 1965 का माडल का था ,उस पर तस्वीर खींची। विक्की के आटो में भी। वो हमेशा की तरह बिंदास था। इस बार उसकी लुक पूरी बदली हुई थी ।
फिर वापस ट्रेन पकड़ कर वापस निकला।लोनावला होते हुए गुजरात से दिल्ली आए ।लोनावला बहुत ही खूबसूरत है ,पहाड़ों से निकलती हुई ट्रेन। शायद इधर खंडाला भी है, यंहा बहुत सारी हिन्दी फिल्मों की शूटिंग होती है। बहुत ही मनमोहक दृश्य थे। इसके लिए किसी दिन लग से घूमने आना होगा ।
सुबह दिल्ली पहुंचे। तो दिल्ली से ट्रेन पकडी।
सामने सीट पर एक बुजुर्ग आदमी का गाने सुन रहा था
दिल का खिलौना हाय टूट गया
कोई लुटेरा के लूट गया
-------
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
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तू चीज़ बड़ी है
मस्त मस्त
----
मैंने कहा आप बहुत खूबसूरत गाने सुन रहे हैं जवानी के समय में आप बहुत रोमांटिक रहे होंगे? उन्होंने कहा ,नहीं ऐसा नहीं है। मेरी पत्नी मुझे छोड़ कर चली गई एक ऐसी जगह जहां से कोई वापस नहीं आता।
एक बेटी थी, उसकी शादी हो गई, अब बिल्कुल अकेला हूँ तो ये गीत सुनता रहता हूँ। ऐसे लोगों से मिलकर लगता है, ज़िंदगी बहुत कुछ सिखा देती है।
उनका नाम दिनेश था ,उम्र 63 साल। वो मुझे अपना मोबाइल दिखाने लगे।
एक शेर याद आ गया
ना दोस्त के लिए
ना दुश्मनी के लिए
वक्त रुकता नहीं
किसी के लिए
# कवि नामालूम
एक चीज का फर्क मैंने देखा हमारे इधर नॉर्थ में रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिल काफी है उसके मुकाबले पुणे में हमें एक ही दिखाई दिया ।लोग वहां साइकिल चलाते हैं । कई बुजुर्गों को मैंने साइकिल चलाते हुए देखा । पेड़ों से बहुत प्यार है ।उनको जो पेड सड़क के किनारे पर हैं उन पर रेडियम के रिफ्लेक्टर लगा रखे हैं जो के आने जाने वाले उनसे ना टकराएँ।
हम जब लोनावला थे वहां पर कोई प्रदूषण नहीं था, पर जैसे ही गाड़ी के मुंबई के बाहर आई तो पॉलिथीन का ढेर , ऊंची ऊंची बिल्डिंग दिखाई देने लगीं। बस यही फर्क है परमात्मा की बनाई दुनिया और आदमी के बनाए संसार में।
इस बार के सफर में चार लोगों को एक्यूप्रेशर सिखाया।
इस बार इतना ही।
फिर मिलेंगे एक नए किस्से के साथ।
तब तक के लिए आज्ञा दीजिए।
आपका अपना।
रजनीश जस
रूद्रपर
उत्तराखंड