Tuesday, December 7, 2021

मोह

किसी ने पूछा मोह क्या है?
मैंने कुछ दिन पहले अपने मित्र अकाश की पोस्ट पढ़ी थी और कई दिन तक उसका मंथन करता रहा।
फिर कुछ ऐसा हुआ कि मुझे मोह के बारे में कुछ कुछ पता चला।
मैंने एक प्रतियोग्यता में हिस्सा लिया और उसमें दूसरा स्थान प्राप्त किया एक सर्टिफिकेट और एक बड़ा सा पैकेट मिला जिसमें कोई गिफ्ट था।गिफ्ट का साइज़ बड़ा था वो मेरे स्कूटर पर नहीं आ सकता था। मेरा एक कुलीग कार लेकर आया था, मैंने उसको कहा  इसको कार में लेकर मेरे घर आ जाना क्योंकि वह मेरे घर के पास ही रहता था। मैं घर आ गया । उसे उसे बहुत देर हो गई। मैंने उसको फोन किया। उसने कहा  वह किसी काम में फस गया है गिफ्ट कल दे देगा।

अब गिफ्ट पाने की चाहत मेरे मन में बढ़ गई। तुरंत फिर मैंने सोचा कि जब तक यह गिफ्ट मुझे नहीं मिला था तो वो एक दुकान पर था तब तक मेरे मन में इसके प्रति कोई इच्छा जाग्रित नहीं हुई थी। जैसे ही यह मेरे हाथ में आया तो मैं मैं उसके कब्जे की भावना आ गई , तो यह हुआ" मोह!"

मोह  जरूरी भी बहुत है जो कि मां अपने बेटे से करती है । तभी तो वो उसका लालन पोषण करती  है अगर वो यह ना करें तो वह उसकी परवरिश मुश्किल हो जाएगी और सृष्टि नहीं चलेगी।

गोपियों का कृष्ण के साथ मोह ही तो था जिसके कारण वह हमेशा उनको मिलने की इच्छा रहती थी इसके कारण आनंद और वैराग्य की अति में झूलती रहती हैं।

किसी को अगर शराब, जुआ और वेश्यावृत्ति का मोह हो जाए तो उसका पत्न हो जाता है। 

शिष्य का गुरु के साथ मोह रहता है तो उसी से सीखता है।

प्रेमी का अपनी प्रेमिका के प्रति मोह ही होता है जिसके कारण वो उसकी याद में आंसू बहाता है, गलियों में मारा मारा फिरता है वर्ना दुनिया उसके इर्द-गिर्द और कितनी खूबसूरत लड़कियां होती हैं।

सभी तरफ मोह का ही फैलाव है इसी तरह संसार चलता रहता है और ऐसे ही चलता रहेगा।

जैसे हम अलफ नंगे ही पैदा हुए थे। फिर कुछ ना कुछ मिलता जाता है तो हमारे में उसको कभी ना छोड़ने की भावना आ जाती है तो उसे छोड़ने का मन नहीं करता और  इसी तरह जीवन बीतता जाता है।

संसार में बहुत सारी सहूलतें  हैं जो हम भोगते हैं, पर उनके मिलने का हमारि बहुत खुश हो जाना और उनके खो जाने के उदास हो जाना, यह सब मोह का जाल है।

 कहते हैं मोह के बंधन से मुक्त हो जाओ पर कोई हो नहीं पाता।

मेरे पिता जी कहते हैं,  रजनीश यह बेटे बेटियां सब मीठे कीड़े जो मां बाप को काटते हैं और उनको बुरे नहीं लगते क्योंकि वह उनके अपने होते हैं।

 मुझे यह क्या बात बहुत देर तक समझ नहीं आई। पर अब मैं समझ सकता हूं यह सब मोह ही तो है।

 एक शे'र है
 "फितूर होता है हर उम्र में जुदा-जुदा 
खिलौने ,माशूक, दौलत फिर खुदा"

आखिर में जो बुढ़ापे में परमात्मा का मोह भी छूट जाता है तभी हमें असली सच्चाई का पता चलता है वर्ना हम मोह का चश्मा लगाए सारी उम्र घूमते रहते हैं। जो असल में सत्य है वह हमें दिखाई ही नहीं देता जिसको जे कृष्णमूर्ति कहते हैं , That which is, जो असल में है । 

कहते हैं बुद्ध ने  8 साल तक कठिन तपस्या की। उनके सारे गुरु हार गए और कहने लगे अब तुम कुछ और देखो। वह व्रत कर कर इतना सूख गये कि उनका पेट पीठ से जुड़ गया। फिर बोधगया, बिहार में एक नदी के किनारे पानी पीने उतरे तो उन नदी के बहाव में बहने लगे क्योंकि उनको बहुत कमजोरी आ चुकी थी। वह एक झाड़  को पकड़कर मुश्किल से बचे। जब वह बाहर निकले उन्होंने कहा, " परमात्मा अब तेरी भी कोई तलाश नहीं रही देख।  मैंने तेरी तलाश में अपनी देह को कितना कष्ट दिया है।"

कहते हैं जैसे ही उन्होंने यह शब्द कहे वह तुरंत सत्य को उपलब्ध हो गए। पर इस कहने के पीछे उनकी 8 साल की कठिन तपस्या भी थी।

यह मोह का बंधन जरूरी भी है कि  मैं मोबाइल पर लिख रहा हूं इसके रीचार्ज के लिए पैसे चाहिएँ और उसके लिए नौकरी जरूरी है। यह सब सहूलतें हैं पर हमें समझ होनी जरूरी है कि इन सहूलतों के लिए अपने जीवन को खो देना यह सही नहीं है।
पोस्ट के अंत में मैं अपना नाम लिखता हूं यह भी मेरा मेरे साथ मोह ही तो है।

सन्यास के लिए भी मोह जरूरी है उसके बिना संसार नहीं। पर जो असल उसमें उसको ढूंढना चाहते हैं उससे आगे जाते हैं।

कहते हैं 
"हद  टप्पे सो औलिया
बेहद टप्पे सो पीर
हद बेहद के पार जो
वही सच्चा फ़कीर"


 भाई गुरदास जी लिखते हैं 

" अक्खीं वेख ना रज्जीयां
बहु रंग तमाशे
रज्ज ना कोई जीविया
पूरे भरवासे"

यह संसार का मोह कुछ ऐसा है कि हमारी आंखें देख देख इसको थकती नहीं।  संसार में कोई भी आदमी ऐसा नहीं है जो कि मैंने अभी भरपूर जी लिया अब मैं जाना चाहता हूँ।

फिर  मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।

आपका अपना 
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड

निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब

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