Friday, July 30, 2021

हैड़ाखान की यात्रा पार्ट 1, जुलाई 2021

आज दिन में गर्मी बहुत थी। पंकज बोला, आज रूद्रपुर, कमरे में रहना मुशकिल है,चलो पहाड़ पर चलते हैं। मैंने कहा चलो चलते हैं
वैसे भी दो हफ्ते से वो कह रहा था तो मैं जा नहीं पा रहा था। 
आज सोचा अलग रुट पर चलते हैं क्योंकि हमारे ज्यादातर टूर नैनीताल रोड पर ही लगते हैं। अलग अलग दिशाओं में सफर अलग अनुभव देता है।
किसी ने कहा है अगर रूटीन से अलग रिज़ल्ट चाहते हो तो रूटीन से हटके काम करो।

निकलते निकलते हमें 11:00 बज गए । टाडा जंगल से होते हुए हल्द्वानी पहुंचे। काठगोदाम आते ही सामने पहाड़ दिखाई देने लग जाते हैं। पहाड़ों के ऊपर बादल उड़ते चलते हो जैसे मालूम होता है  परियों का देश मे आ गये हैं और हम हवा में उड़ रहे हैं।
काठगोदाम के रेल्वे स्टेशन से आगे बाँई तरफ एक
सड़क मुड़ती है । उसमें आगे जाकर बाँई तरफ पहाड़ पर एक सड़क जाती है हम उस पर हो लिए।
पिछले साल 2 अक्तूबर 2020 को  हम इसी रोड पर आए थे हैड़ाखान जाने के लिए पर तब यह सड़क बन रही थी तो हम कैंची धाम चले गये थे।
सड़क के एक तरफ सफेद पट्टी थी जो बहुत खूबसूरत लग रही थी बलखाती हुई। तीखी चढाई थी, हम पेडों के बीच में से गुज़रते हुए आगे बढ़ रहे थे। एक जगह से पूरा हल्द्वानी दिखाई दे रहा था। मैं  देख रहा था इतने घर, अब हर घर में कुछ आदमी और हर आदमी की अपनी ही एक कहानी।
मुझे परमिंदर सोढी (जापान मे बसे पंजाब प्रसिद्ध कवि और लेखक), वह लिखते हैं, दुनिया मे 4 अरब लोग हैं, मतलब, 4 अरब कहानियाँ किस्से। आप घर से निकलो और उनसे मिलो।
काठगोदाम का रेलवे स्टेशन , स्टेडियम, नदी दिखाई दे रही थी।

हम ठहरे मुसाफिर,आगे बढ़ गये।
आगे पसौली गाँव आ गया। हरे भरे खेत खलियान।  एक पहाड़ी पर छोटा सा मंदिर बना हुआ था। बहुत ही सुंदर गाँव।

https://youtu.be/Nk_rk_k_EJ0

12:30 बज चुके थे लगी हल्की भूख लग गयी थी। एक टीन के नीचे एक ढाबे पर रूके। हमने पूछा खाने को कुछ है?
ढाबे वाले ने कहा, काले चने और सिलवट्टे की चटनी।
                  सिलवट्टे की चटनी
मेरे मुँह में पानी आ गया। 
हमने काले चने,चावल और चटनी खाई। अदरक , हरी मिर्च , वाह मज़ा आ गया। 
पहाड़ के पानी के बने काले चने और चावल


हलांकि हम सोच रहे थे हम  हैड़ाखान जाकर कुछ खा लेंगे।
फिर आगे को चल दिये। 
 सड़क पर बीच में कई जगह पर पानी बह रहा था, वँही पर सिमेंट की रोड थी। कई बार तो दूर दूर तक कोई आदमी दिखाई नहीं दे रहा था। 

 वहां मोबाइल के सिग्नल नहीं थे। घरों की छत्त सलेट की बनी हुई थीऔर ऊपर डिश टीवी के एंटीना लगे हुए थे। लोगों ने घरों के बाहर फूल लगाकर सुंदर बना दिया था रास्ता।
एक जगह पहुंचे तो सड़क बंद। वँहा प्पू कार्की जो उत्तराखंड के लोक गायक थे उनकी सड़क गिरने से देहवासन हो गया था। उनकी वँहा यादगार बनी हुई थी।
फिर वँहा से रास्ता पूछकर हम दूसरे रोड पर गये।
वँहा सड़क नहीं बनी थी। पत्थर ही पत्थर थे। मोटरसाईकिल दोनों बैठकर आगे नहीं बढ़ रही थी।
मैं उतर गया। सामने से बुलेट पर एक लड़का था, वह मुझसे बोला , धक्का मारो।
फिर मैनें धक्का लगाया। पंकज आगे चला गया।
फिर टूटी फूटी सड़क पर पंचर होने के डर से हमने कच्ची सड़क पर ऐसे रहे और सही होने पर दोनों बैठे।
हैड़ाखान पहुंचते-पहुंचते 2:00 बज गए थे। वँहा एक दुकान पर होम स्टे था।  मने वँहा हेल्मेट रख हनुमान आश्रम पर गये। सुंदर मंदिर से होते सीढियों से हम नीचे दरिया तक पहुंचे। 

वँहा पानी में पैर डालकर बैठे। पानी साफ था,बोतल मे भरा। वँहा पर कुछ लोग और थे। हम देख रहे थे पहाड़ पर बादल अठखेलियाँ कर रहे थे।

हल्की हल्की बूंदाबांदी होने लग गई । हमें लगा कँही नैनीताल की तरह रूकना ना पड़ जाए, उस दिन स्नो फाल हो गयी थी। हम वापिस चल दिये।

चलता।

आपका अपना 
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
25.07.2021

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