हैड़ाखान यात्रा पार्ट 2
हैड़ाखान में दरिया में बैठ पानी का नज़ारा ले रहे थे। थोड़ी देर में हल्की बूंदाबांदी हुई तो हमने सोचा वापस चलें।
https://youtu.be/3PL2W12Wl-o
जब वापस मंदिर की और आ रहे थे तो देखा एक आम के पेड़ से पके हुए आम गिरे थे शायद पंछियों ने तो टुकर कर फेंके हुए होंगे। सामने ही सीधी सीढियाँ थी। जब हम चढ़ने लगे। मैनें पंकज को कहा, कुछ देर रुक रुक कर चलते हैं क्योंकि पहाड़ का उसूल है अगर लगातार चलो तो साँस फूल जाती है। दूसरा नियम है नीचे देख कर चलो। अगर हम आगे कोई खूबसूरत नज़ारा देखते हुए नीचे ना देखें तो फिसल कर गिर भी सकते हैं। तीसरी बात शाम का समय है तो हाथ में टॉर्च का होना जरूरी है, क्योकिं इससे रास्ता दिखाई देता है और अगर कोई जानवर है तो वह सोचता है इसके पास आग है तो वह हमला नहीं करेगा।
दुकान से हेलमेट लिये और उसका शुक्रिया अदा किया। हमें हर उस चीज का शुक्रिया अदा करना चाहिए क्योंकि जो मिला है अगर उसका शुक्र नहीं है तो और कहां से मिलेगा?
फिर वहां से निकले आगे जाकर टूटी हुई सड़क आ गयी मैंने पंकज को कहा तुम चलो मैं पैदल आता हूँ। मैं पैदल चलने लगा एक तरफ पहाड़ एक तरफ गहरी खाई । मुझे अचानक याद आया आते हुए पंकज कह रहा था एक जानवर दिखाई दिया है शायद। अब मुझे डर लगने लगा। एकदम से कहानी याद आई । जापान में एक झेन गुरू प्रवचन दे रहे थे तभी भूकंप आया। भूकंप आते ही सारे चेले बाहर भाग गए । पर गुरु वँही बैठे रहे।जैसे ही भूकंप शांत हुआ तो शिष्य वापिस लौटकर आए और गुरु से पूछा, गुरु जी आप क्यों नहीं भागे। गुरू ने कहा , मैं भी भागा, तुम बाहर को मै अपने अंदर।
https://youtu.be/prtc_85v_z4
मैंने अपने अंदर उस डर को देखा और चलने लगा।
मुझे एक चुटकुला याद आया। एक आदमी रोज़ जंगल में जाता था। दूसरे आदमी ने पूछा, भाई साहब, आप रोज़ जंगल जाते है, अगर कभी शेर आ गया तो क्या करोगे? तो पहले वाले ने जवाब दिया, भाई साहब मैं क्या करुंगा फिर जो करेगा वो तो शेर ही करेगा?😀😀
मैं पहुंचा तो देखा पंकज बैठा हुआ था। वह कह रहा 15-20 मिनट में बैठा हूँ। यहां पर किसी को भी पता नहीं लग रहा हैड़ाखान कँहा है? यँहा पर बोर्ड भी नहीं लगा है।
मैनें कहा, यह गांव है शहर नहीं।
फिर मुसाफिर चल दिए। बाद में उसी रास्ते पर वापसी थी।
हम चल रहे थे तो देखा एक आदमी अकेला , मस्त सड़क के किनारे बैठा था।हम आगे बढ़ गये। मैनें पंकज को कहा मोटरसाइकिल घुमाओ इस आदमी से बात करनी है । मोटरसाइकिल घुमाई और हम उस आदमी के पास रुके।
मैनें नमस्कार की। मैनें कहा, हमें गांव के बारे में कुछ बताएंँ। यँहा के लोग पलायन कर शहर जा रहे है, पुश्तैनी मकान छोड़कर।
उनका नाम , भोपाल सिँह सम्मल था।
वह बोले, गांव तो स्वर्ग है। आजकल की पीढ़ी को नहाने वाला बाथरूम में शीशा,साबुन,शैंपू और पता नहीं क्या-क्या चाहिए?
लड़कियाँ सारा सारा दिन आईने में बाल सँवारती रहती हैं। तो क्या करना है सारा दिन बालों का, सिर ही तो उस पर बाल हैं। एक बार सँवारों।( उसकी भाषा में ठेठ पहाड़ी टच था तो बात करने में अच्छा लग रहा था)
वह कहने लगा, पुश्तैनी ज़मीन , मकान सँभालकर रखो। अब हमारे पिता जी ने जायदाद बनाई हम रह रक्हे हैं ना?
मान लो आप सीधे जा रहे हो कभी तो मोड़ आएगा,चानचक। जैसे समय कभी एक सा नहीं रहता । जीवन ऐसा ही है ,जैसे जीभ 32 दाँतों के बीच रहती है।
मान लो आदमी बिमार है, पर डाक्टर की तो दुकान है। आप दवाई से कमज़ोर हो जाओगे। पर अगर पहाड़ में आप रजाई में एक हफ्ता बिना दवाई के भी रहोगे तोयँहा की हवा पानी से तंदरूस्त हो जाओगे।
जरूरी नहीं आप भी वही काम करो जो दूसरा करता है, अपना दिमाग भी लगाओगे कि नहीं?
मैनें कहा, यँहा से आगे पसौली गाँव है।
उसने कहा, पसौली गाँव तो कश्मीर होता अगर वहां पानी होता। पानी लेने लोगों को 2 किलोमीटर नीचे आना पड़ता है।पर वँहा पर किसी आदमी ने एक घर बनाया तो सिर्फ उसके यँहा पानी निकला।उसकी अच्छी किस्मत थी।
आज अगर सरकार लोगों की मदद करे तो उत्तराखंड बहुत तरक्की कर सकता है।
उसने एक बहुत ही अच्छी बात बताई, अगर पेड़ हैं पहाड़ हैं इनके बिना यह भी एक मैदान होता और यहाँ बिल्डिंगें होती।
मैं हल्द्वानी में सरकारी कर्मचारी हूँ , पर हमने कभी यह नहीं कहा। आज रविवार है तो गाय चरा रहा हूँ। वो सामने मेरी छतरी है।
मैं सोचने लगा,यही अगर शहर होता तो छतरी गायब थी। कितनी तरक्की हम लोगों ने शहर में आकर, चोरी , ठगी सबहै हमारे पास, सिर्फ भोलापन वहीं, मासूमियत नहीं है।
उसने बताया,सामने पहाड़ी पर रानी बाग अमृतपुर से होते हुए 3 किलोमीटर पैदल एक छोटा कैलाश का मंदिर है। वहाँ हर शिवरात्री को मेला लगता है।
फिर उसने बताया," लाकडाऊन में जब लोग शहर से परेशान हो गये तो वह अपने गाँव की और आए। जब उन्होनें अपने घर देखें वँहा तो खंडहर भी नहीं बचे थे।
वह कह रहे थे कँहा गये हमारे घर?"
यह कहते हुए उसने ऐसा चेहरा बनाया हमें भी हंसी आ गई।
हमने उनसे विदा ली। आगे देखा उनकी गाय गाँव की और जा रही थी।
आगे चलकर एक गाँव आया, नाम था औखलकुंडा। बहुत ही सुंदर गाँव। ज़न्नत ही था। पर वँहा पर एक शराबी किसी दूसरे से बहस कर रहा था। उसने शराब पी रखी थी।
पर मैं गाँव की खूबसूरती में खो गया। मैंने उसकी वीडियो बनाई जो शेयर कर रहा हूँ।
https://youtube.com/shorts/dfmRzIhqUUI?feature=share
ऐसे ही गांव होते हैं जिनको स्वर्ग कह सकते हैं। फिर जैसे ही टूरिस्टों की भीड़ आनी शुरू होती है फिर वह जगह पर होटलों की भरमार हो जाती है और वो जगह अपनी असली सुंदरता खो देती है जैसे कि अभी शिमला में हो चुका है।
रास्ते में हमारे मज़दूर भाई सड़क की मुरम्मत कर रहे थे। मैं सोच रहा था अभी बरसात में सड़कें टूट जाएंगी तो फिर मरम्मत की जाएगी।इसके लिए इनका शुक्रिया। जो सड़क बनी है जिस पर हम मोटयसाईकल चला रहे थे वह भी इन्ही की मेहनत का नतीजा थी।
रास्ते में ऐसा जानवर दिखाई दिया जो बिल्कुल काला और सफेद था। वह गिलहरी की तरह कूद रहा था। मौका नहीं मिला नहीं तो उसकी तस्वीर खींचते। देखते ही देखते वह जंगल में उतर गया।
हम काठगोदाम पहुँचें। वँहा उड्डीपीवाला के स्वादिष्ट डोसा खाया। टाडा जंगल से होते हुए वापस पहुंचे रुद्रपुर।आज का सफर बहुत ही रोमांचक रहा।
फिर मिलूंगा एक नयी यात्रा के साथ कुछ रोमांचक किस्से लेकर।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
25.07.2021
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