Friday, July 30, 2021

हैड़ाखान यात्रा पार्ट 2

हैड़ाखान यात्रा पार्ट 2

हैड़ाखान में दरिया में बैठ पानी का नज़ारा ले रहे थे। थोड़ी देर में हल्की बूंदाबांदी हुई तो हमने सोचा वापस चलें।

https://youtu.be/3PL2W12Wl-o


 जब वापस मंदिर की और आ रहे थे तो देखा एक आम के पेड़ से पके हुए आम गिरे थे शायद पंछियों ने तो टुकर कर फेंके हुए होंगे। सामने ही सीधी सीढियाँ थी। जब हम चढ़ने लगे। मैनें पंकज को कहा,  कुछ देर रुक रुक कर चलते हैं क्योंकि पहाड़ का उसूल है अगर लगातार चलो तो साँस फूल जाती है। दूसरा नियम है नीचे देख कर चलो। अगर हम आगे कोई  खूबसूरत नज़ारा देखते हुए नीचे ना देखें तो फिसल कर गिर भी सकते  हैं। तीसरी बात शाम का समय है तो हाथ में टॉर्च का होना जरूरी है, क्योकिं इससे रास्ता दिखाई देता है और अगर कोई जानवर है तो वह सोचता है इसके पास आग  है तो वह हमला नहीं करेगा। 
दुकान से हेलमेट लिये और उसका शुक्रिया अदा किया। हमें हर उस चीज का शुक्रिया अदा करना चाहिए क्योंकि जो मिला है अगर उसका शुक्र नहीं है तो और कहां से मिलेगा?

 फिर वहां से निकले आगे जाकर टूटी हुई सड़क आ गयी मैंने पंकज को कहा तुम चलो मैं पैदल आता हूँ। मैं पैदल चलने लगा एक तरफ पहाड़ एक तरफ गहरी खाई । मुझे अचानक याद आया आते हुए पंकज कह रहा था एक जानवर दिखाई दिया है शायद। अब मुझे डर लगने लगा। एकदम से कहानी याद आई । जापान में एक झेन गुरू प्रवचन दे रहे थे तभी भूकंप आया। भूकंप आते ही सारे चेले बाहर भाग गए । पर गुरु  वँही बैठे रहे।जैसे ही भूकंप शांत हुआ तो शिष्य वापिस लौटकर आए और गुरु से पूछा, गुरु जी आप क्यों नहीं भागे। गुरू ने कहा , मैं भी भागा,  तुम बाहर को मै अपने अंदर।

https://youtu.be/prtc_85v_z4

 मैंने अपने अंदर उस डर को देखा और चलने लगा। 
मुझे एक चुटकुला याद आया। एक आदमी रोज़ जंगल में जाता था। दूसरे आदमी ने पूछा, भाई साहब, आप रोज़ जंगल जाते है, अगर कभी शेर आ गया तो क्या करोगे? तो पहले वाले ने जवाब दिया, भाई साहब मैं क्या करुंगा फिर जो करेगा वो तो शेर ही करेगा?😀😀
 मैं पहुंचा  तो देखा पंकज बैठा हुआ था। वह कह रहा 15-20 मिनट में बैठा हूँ। यहां पर किसी को भी पता नहीं लग रहा हैड़ाखान कँहा है? यँहा पर बोर्ड भी नहीं लगा है।
मैनें कहा, यह गांव है शहर नहीं।
फिर मुसाफिर चल दिए। बाद में उसी रास्ते पर वापसी थी। 
हम चल रहे थे तो देखा एक आदमी अकेला , मस्त सड़क के किनारे बैठा था।हम आगे बढ़ गये। मैनें पंकज को कहा मोटरसाइकिल घुमाओ इस आदमी से बात करनी है । मोटरसाइकिल घुमाई और हम उस आदमी के पास रुके।
मैनें नमस्कार की। मैनें कहा,  हमें गांव के बारे में कुछ बताएंँ। यँहा के लोग पलायन कर शहर जा रहे है, पुश्तैनी मकान छोड़कर।
उनका नाम , भोपाल सिँह सम्मल था।
वह बोले,  गांव तो स्वर्ग है। आजकल की पीढ़ी को नहाने वाला बाथरूम में शीशा,साबुन,शैंपू और पता नहीं क्या-क्या चाहिए?
लड़कियाँ सारा सारा दिन आईने में बाल सँवारती रहती हैं।  तो क्या करना है सारा दिन बालों का, सिर ही तो  उस पर बाल हैं। एक बार सँवारों।( उसकी भाषा में ठेठ पहाड़ी टच था तो बात करने में अच्छा लग रहा था)

वह कहने  लगा, पुश्तैनी ज़मीन , मकान सँभालकर रखो। अब हमारे पिता जी ने जायदाद बनाई हम रह रक्हे हैं ना?
मान लो आप सीधे  जा रहे हो कभी तो मोड़ आएगा,चानचक। जैसे समय कभी एक सा नहीं रहता । जीवन ऐसा ही है ,जैसे  जीभ 32 दाँतों के बीच रहती है।
मान लो आदमी बिमार है, पर डाक्टर की तो दुकान है। आप दवाई से कमज़ोर हो जाओगे। पर अगर पहाड़ में आप रजाई में एक हफ्ता बिना दवाई के भी रहोगे तोयँहा की हवा पानी से तंदरूस्त हो जाओगे।

 जरूरी नहीं आप भी वही काम करो जो दूसरा करता है, अपना दिमाग भी लगाओगे कि नहीं?

मैनें कहा, यँहा से आगे पसौली गाँव है।
उसने  कहा, पसौली गाँव तो कश्मीर होता अगर वहां पानी होता। पानी लेने लोगों को 2 किलोमीटर नीचे आना पड़ता है।पर वँहा पर किसी आदमी ने एक घर बनाया तो सिर्फ उसके यँहा पानी निकला।उसकी अच्छी किस्मत थी।

आज अगर सरकार लोगों की मदद करे तो उत्तराखंड बहुत तरक्की कर सकता है।

उसने एक बहुत ही अच्छी बात बताई, अगर पेड़ हैं पहाड़ हैं इनके बिना यह भी एक मैदान होता और यहाँ बिल्डिंगें होती।

मैं हल्द्वानी में सरकारी कर्मचारी हूँ , पर हमने कभी यह नहीं कहा। आज रविवार है तो गाय चरा रहा हूँ। वो सामने मेरी छतरी है।
मैं सोचने लगा,यही अगर शहर होता तो छतरी गायब थी। कितनी तरक्की हम लोगों ने शहर में आकर, चोरी , ठगी सबहै हमारे पास, सिर्फ भोलापन वहीं, मासूमियत नहीं है।
उसने बताया,सामने पहाड़ी पर  रानी बाग अमृतपुर से होते हुए 3 किलोमीटर पैदल एक छोटा कैलाश का मंदिर है। वहाँ हर शिवरात्री को मेला लगता है। 
फिर उसने बताया," लाकडाऊन में जब लोग शहर से परेशान हो गये तो वह अपने गाँव की और आए। जब उन्होनें अपने घर देखें वँहा तो खंडहर भी नहीं बचे थे।  
वह कह रहे थे कँहा गये हमारे घर?"
 यह कहते हुए उसने ऐसा  चेहरा बनाया हमें भी हंसी आ गई।

            पहाड़ आसान नहीं हैं

हमने उनसे विदा ली। आगे देखा उनकी गाय गाँव की और जा रही थी।
आगे चलकर एक गाँव आया, नाम था औखलकुंडा। बहुत ही सुंदर गाँव। ज़न्नत ही था। पर वँहा पर एक शराबी किसी दूसरे से बहस कर रहा था। उसने शराब पी रखी थी।
पर मैं गाँव की खूबसूरती में खो गया। मैंने उसकी वीडियो बनाई जो शेयर कर रहा हूँ। 

https://youtube.com/shorts/dfmRzIhqUUI?feature=share

ऐसे ही गांव होते हैं जिनको स्वर्ग कह सकते हैं। फिर जैसे ही टूरिस्टों की भीड़ आनी शुरू होती है फिर वह जगह पर होटलों की भरमार हो जाती है और वो जगह अपनी असली सुंदरता खो देती है जैसे कि अभी शिमला में हो चुका है।

 रास्ते में हमारे मज़दूर भाई सड़क की मुरम्मत कर रहे थे। मैं सोच रहा था अभी बरसात में सड़कें टूट जाएंगी तो फिर मरम्मत की जाएगी।इसके लिए इनका शुक्रिया। जो सड़क बनी है जिस पर हम मोटयसाईकल चला रहे थे वह भी इन्ही की मेहनत का नतीजा थी।
 रास्ते में ऐसा जानवर दिखाई दिया जो बिल्कुल काला और सफेद था। वह गिलहरी की तरह कूद रहा था। मौका नहीं मिला नहीं तो उसकी तस्वीर खींचते। देखते ही देखते वह जंगल में उतर गया।
हम  काठगोदाम पहुँचें। वँहा उड्डीपीवाला के स्वादिष्ट डोसा खाया। टाडा जंगल से होते हुए वापस पहुंचे रुद्रपुर।आज का सफर बहुत ही रोमांचक रहा।


फिर मिलूंगा एक नयी यात्रा के साथ कुछ रोमांचक किस्से लेकर।

आपका अपना 
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
25.07.2021
#journey_to_hedakhan
#hedakhan
#rajneesh_jass

हैड़ाखान की यात्रा पार्ट 1, जुलाई 2021

आज दिन में गर्मी बहुत थी। पंकज बोला, आज रूद्रपुर, कमरे में रहना मुशकिल है,चलो पहाड़ पर चलते हैं। मैंने कहा चलो चलते हैं
वैसे भी दो हफ्ते से वो कह रहा था तो मैं जा नहीं पा रहा था। 
आज सोचा अलग रुट पर चलते हैं क्योंकि हमारे ज्यादातर टूर नैनीताल रोड पर ही लगते हैं। अलग अलग दिशाओं में सफर अलग अनुभव देता है।
किसी ने कहा है अगर रूटीन से अलग रिज़ल्ट चाहते हो तो रूटीन से हटके काम करो।

निकलते निकलते हमें 11:00 बज गए । टाडा जंगल से होते हुए हल्द्वानी पहुंचे। काठगोदाम आते ही सामने पहाड़ दिखाई देने लग जाते हैं। पहाड़ों के ऊपर बादल उड़ते चलते हो जैसे मालूम होता है  परियों का देश मे आ गये हैं और हम हवा में उड़ रहे हैं।
काठगोदाम के रेल्वे स्टेशन से आगे बाँई तरफ एक
सड़क मुड़ती है । उसमें आगे जाकर बाँई तरफ पहाड़ पर एक सड़क जाती है हम उस पर हो लिए।
पिछले साल 2 अक्तूबर 2020 को  हम इसी रोड पर आए थे हैड़ाखान जाने के लिए पर तब यह सड़क बन रही थी तो हम कैंची धाम चले गये थे।
सड़क के एक तरफ सफेद पट्टी थी जो बहुत खूबसूरत लग रही थी बलखाती हुई। तीखी चढाई थी, हम पेडों के बीच में से गुज़रते हुए आगे बढ़ रहे थे। एक जगह से पूरा हल्द्वानी दिखाई दे रहा था। मैं  देख रहा था इतने घर, अब हर घर में कुछ आदमी और हर आदमी की अपनी ही एक कहानी।
मुझे परमिंदर सोढी (जापान मे बसे पंजाब प्रसिद्ध कवि और लेखक), वह लिखते हैं, दुनिया मे 4 अरब लोग हैं, मतलब, 4 अरब कहानियाँ किस्से। आप घर से निकलो और उनसे मिलो।
काठगोदाम का रेलवे स्टेशन , स्टेडियम, नदी दिखाई दे रही थी।

हम ठहरे मुसाफिर,आगे बढ़ गये।
आगे पसौली गाँव आ गया। हरे भरे खेत खलियान।  एक पहाड़ी पर छोटा सा मंदिर बना हुआ था। बहुत ही सुंदर गाँव।

https://youtu.be/Nk_rk_k_EJ0

12:30 बज चुके थे लगी हल्की भूख लग गयी थी। एक टीन के नीचे एक ढाबे पर रूके। हमने पूछा खाने को कुछ है?
ढाबे वाले ने कहा, काले चने और सिलवट्टे की चटनी।
                  सिलवट्टे की चटनी
मेरे मुँह में पानी आ गया। 
हमने काले चने,चावल और चटनी खाई। अदरक , हरी मिर्च , वाह मज़ा आ गया। 
पहाड़ के पानी के बने काले चने और चावल


हलांकि हम सोच रहे थे हम  हैड़ाखान जाकर कुछ खा लेंगे।
फिर आगे को चल दिये। 
 सड़क पर बीच में कई जगह पर पानी बह रहा था, वँही पर सिमेंट की रोड थी। कई बार तो दूर दूर तक कोई आदमी दिखाई नहीं दे रहा था। 

 वहां मोबाइल के सिग्नल नहीं थे। घरों की छत्त सलेट की बनी हुई थीऔर ऊपर डिश टीवी के एंटीना लगे हुए थे। लोगों ने घरों के बाहर फूल लगाकर सुंदर बना दिया था रास्ता।
एक जगह पहुंचे तो सड़क बंद। वँहा प्पू कार्की जो उत्तराखंड के लोक गायक थे उनकी सड़क गिरने से देहवासन हो गया था। उनकी वँहा यादगार बनी हुई थी।
फिर वँहा से रास्ता पूछकर हम दूसरे रोड पर गये।
वँहा सड़क नहीं बनी थी। पत्थर ही पत्थर थे। मोटरसाईकिल दोनों बैठकर आगे नहीं बढ़ रही थी।
मैं उतर गया। सामने से बुलेट पर एक लड़का था, वह मुझसे बोला , धक्का मारो।
फिर मैनें धक्का लगाया। पंकज आगे चला गया।
फिर टूटी फूटी सड़क पर पंचर होने के डर से हमने कच्ची सड़क पर ऐसे रहे और सही होने पर दोनों बैठे।
हैड़ाखान पहुंचते-पहुंचते 2:00 बज गए थे। वँहा एक दुकान पर होम स्टे था।  मने वँहा हेल्मेट रख हनुमान आश्रम पर गये। सुंदर मंदिर से होते सीढियों से हम नीचे दरिया तक पहुंचे। 

वँहा पानी में पैर डालकर बैठे। पानी साफ था,बोतल मे भरा। वँहा पर कुछ लोग और थे। हम देख रहे थे पहाड़ पर बादल अठखेलियाँ कर रहे थे।

हल्की हल्की बूंदाबांदी होने लग गई । हमें लगा कँही नैनीताल की तरह रूकना ना पड़ जाए, उस दिन स्नो फाल हो गयी थी। हम वापिस चल दिये।

चलता।

आपका अपना 
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
25.07.2021

Sunday, July 25, 2021

साईकिलिंग और कुदरत

रविवार है तो फुर्सत, साइकिलिंग, दोस्त किस्से, कहानियाँ। आज बहुत दिनों के बाद साइकिलिंग के लिए निकला।चय के अड्डे पर पहुंचा। वहां पर पंकज और शिवशांत आए।
वँहा लेमन टी पी। 
 कुछ देर वँहा बैठने के बाद हम सैर को निकले। पंकज साईकिल चलाने निकल गया। मैं और शिवशांत बातें करते चलते रहे। गर्मी के कारण पंछियों की चहचहाट कम थी, पर तितलियां दिखाई दे यहीं थी। बारिश का महीना सावन है तो हर तरफ हरियाली थी ,पर मौसम मे हुम्मस थी। 
       युं लगता है पानी मे मगरमच्छ है

 मैं कुदरत को देख रहा था, और महसूस कर रहा था वह हमें कितना कुछ दे रही है, जीने के लिए मुफ्त सांसें, बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हम कोई कीमत अदा नहीं करते। हमेशा मिल रहा है लगातार ने बिना कुछ किए,  खाने के लिए खाना, फल। देखने के लिए आसमान, दरिया , बर्फीले पहाड़.....   कितना कुछ है।
              कुदरत के तोहफे

पर आदमी ने समाछ की सरंचना ऐसी कर दी है कि जिसमें प्रतिसपर्धा, क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या, है जो कि प्रेम, करुणा और आज़ादी की ओर अग्रसर होनी चाहिए। 
 एक अकेला इस शहर में, रात मे और दोपहर मे
आशियाना ढूँढता है , इक आबो दाना ढूँढता है 



किसी ने कहा है , फोटोग्राफर हमें फोटो खींचकर बताता है , कि दुनिया इस नज़रिये से देखनी चाहिए। ऐसी ही महान लोग हमे जीवन जी कर बताते हैं, कि जीवन ऐसे जीना चाहिए। 

इंडोर स्टेडियम, रूद्रपुर। यँहा से क ई ह़साल पहले साईकिलिंग की शुरुआत हुई थी


फिर  मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।

आपका अपना 
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
25.07.2021
#rudarpur_cycling_club


Saturday, July 10, 2021

Cycling and Rudarpur magnetic field 11.07.2021

रविवार है तो फुर्सत, दोस्त, किस्से, कहानियाँ।   साइकिल आज नहीं चलाई, उसके आगे मोटर लग गई तो वह मोटरसाइकिल बन गयी 😃😃
क्योंकि हल्की बारिश हो रही थी तो पंकज को कहा तो वह मुझे साथ लेकर गया। हम चाय के अड्डे पर पहुँचे । वँहा कुछ लड़के बैठे चाय पी रहे थे, हमने दो कुर्सियाँ उठाई तो उन्होनें कहा अखबार भी ले लो पढ़ने के लिए। 
मैनें कहा दोस्त के साथ गप्पें मारनी हैं तो अखबार तो फिज़ूल  है।
पेड़ के नीचे बैठे और लेमन टी पी।  कुछ देर गप्पे मारी और फिर सैर को निकल लिये। स्टेडियम के अंदर गए तो वँहा लिखा हुआ था कि कोविड के कारण स्टेडियम बंद है। 
सैर की स्पीड बढाई और जैसे ही मंडी वालों की कॉलोनी के आगे पहुंचे तो बहुत तेज़ बारिश होने लगी। हम तो चाय के खोखे जिसकी छत्त लकडी से बनी हुई थी उसके नीचे खड़े हो गये। वहां पर एक ट्रक ड्राइवर और उसके साथी भी थे। वह ट्रक सड़क के बीचो बीच खडा था । उन्होंने पाईप उतारने थे। कारें आईं तो  ट्रक ड्राइवर साईड से निकलवा रहा था। 
 पंकज का कुछ दिन पहले फोन आया, वह दो महीने से दिल्ली अपने घर वर्क फ्रोम होम कर रहा था। 

मैनें आवाज़ सुनकर कहा, आ गये रूद्रपुर?
उसने कहा हाँ, पर आपको कैसे पता चला?
मैनें कहा, तुम्हारी आवाज़ में जो खुशी छलक रही है उससे पता चला। उसने बताया वह जब से यँहा आया है उसका दिल बहुत लग रहा है। वह बता रहा था कि उसकी बात बात हुई परविंदर से।
पंकज ने कहा जोब चेंज करनी चाहिए!
परविंदर ने कहा,  यहां का मैग्नेटिक फील्ड बहुत है ज़बरदस्त  है । जो एक बार रुद्रपुर आ जाता हैवह फिर यँही का होकर ही रह जाता है।
हर तरफ इतनी हरियाली है, पंतनगर यूनिवर्सिटी है , अब तो एमबीबीस का मेडिकल कॉलेज खुल गया है।
 मेरे पिता जी एक दोस्त बलदेव किशोर जो आजकल ऑस्ट्रेलिया से आए हैं उनसे  बात चल रही थी। मैनें कहा आदमी का जीवन ऐसा है, जैसे कोई कहानी। आदमी पढ़ता है, फिर पैसे कमाता है,  फिर सामाजिक असमानता देखते उसमें बदलाव लाने के लिए कामरेड बन जाता है, फिर वह धार्मिक जाता है। फिर कुछ और बदलाव आता है एक दिन वह सब कुछ छोड़ छाड़ कर पेड़ लगाता है,किताबें पढ़ता है , साईकिल चलाता है। वह कुदरत से जुड़कर  सहज हो जाता है।
उन्होनें कहा,  उन्होंने कहा कि यहां पर माली पहले से ही होता है वँहा हम बहुत देर में,  बहुत सारा घूमकर पहुँचते हैं।

 मुझे दो शे'र याद आ गये

सोचते थे इल्म से कुछ जानेंगे
जाना तो ये कि ना जाना कुछ भी

फितूर होता है हर उम्र में जुदा-जुदा
खिलौने, किताबें ,माशूक, फिर खुदा 

 बचपन की जवान होने की तीव्र तमन्ना, 
फिर जब तक हम जवान होती है यह कभी सोचते हैं कि मेरे पास दुनिया भर की सहूलियात होंगी 
यह कार होगी, वह होगा। सपने भी जरूरी है परंतु इतनी के निरंतर यह मन बना रहे किस सब चीजें आती है और चली जाती है। संसार में कोई भी चीज स्थिर नहीं है। फिर बुढ्ढे होने से बचने की कोशिश करते हैं।  जैसे हम बाल काले करने लगते हैं , अब तो मैं भी कर रहा हूँ।😀😀
 पंकज बताने लगा,उसने  गोदन जो मुंशी प्रेमचंद के नावल पर नाटक की सीरीज़ है उसे  यूट्यूब पर पूरा देखा है। यह भी एक वेब सीरीज़ है। उसमें पंकज कपूर की एक्टिंग बहुत कमाल की है। वह पूरा गाँव की पूरी सभ्यता है। 

पंकज  ने बताया, दिल्ली में उसके पिता जी ने अपने घर की छत्त पर  बहुत  सारे गमले रखे हैं। उन्होनें मिट्टी का घडा जो आधा टूटा हुआ है ,उसमें अच्छा साफ पानी रखा हुआ है और साथ में बाजरा भी। उनकी छत्त पर बहुत सारे कबूतर आते हैं। उतने किसी और की छत्त पर नहीं,। पंछी भी प्यार के भूखे होते हैं, यँहा मिला उसी छत्त पर उतर गये।

मैं छत्त पर पानी रखता हूँ। एक दिन बाल्कोनी में एक चिड़िया  मेरी तरफ देख रही थी। मुझे लगा कि वह मुझे कह रही है , यँहा पानी रखो  मेरे पीने के लिए। मैनें तुरंत बाल्कोनी में पानी रखा। अब घर में  बहुत सारी चिड़ियाँ और पंछी आने लगे हैं। 

 हम हर रोज़ अपनी छत्त गमलों में लगे पौधों में शाम पानी डालते हैं। एक दिन मैं किसी काम से मुझे देर हो गई। 
 जब मैं सोने लगा तुम मुझे ऐसे लगा कि वह पौधें  मुझे कह रहे हैं कि आज तुम्हें पानी नहीं डाला। मैं छत्त पर पानी डाला तो मुझे महसूस हुआ वह पौधें खुश हो गये और से  मस्ती में झूमने लगें। 

आप भी ऐसे ही मस्ती में झूमते रहें।
फिर  मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।

आपका अपना 
रजनीश जस
रुद्रपुर ,उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर,
पंजाब
11.07.2021
#rudarpur_cycling_club

Wednesday, July 7, 2021

ਮੇਰਾ ਪੁਰਹੀਰਾਂ ਪਿੰਡ ( ਖੇਡ ਮੈਦਾਨ, ਗੁਰਦੁਆਰਾ, ਕਿਤਾਬਾਂ, ਸ਼ਿਵਜਿੰਦਰ ਕੇਦਾਰ ਤੇ ਜਸਬੀਰ ਬੇਗ਼ਮਪੁਰੀ)

ਇਸ ਬਾਰ ਆਪਣੇ ਜੱਦੀ ਪਿੰਡ ਪੁਰਹੀਰਾਂ (ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ, ਪੰਜਾਬ) ਗਿਆ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਬਦਲਾਅ ਵੇਖੇ। ਜੋ ਜੁਆਕ ਸੀ  ਵੱਡੇ ਹੋ ਗਏ, ਜੁਆਨ ਬੁੱਢੇ ਤੇ ਕਈ ਬਜ਼ੁਰਗ ........। ਵਕ਼ਤ ਦਾ ਚੱਕਰ ਚੱਲੀ ਜਾ ਰਿਹਾ ਆ।

ਘਰ ਦੇ ਕੋਲ ਇਕ ਪਾਰਕ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਦੋ ਬਾਸਕਟਬਾਲ ਦੀਆਂ ਗਰਾਊਡਾਂ ਆ ਜਿੱਥੇ ਮੁੰਡੇ ਕੁੜੀਆਂ ਖੇਲ ਰਹੇ ਆ। ਉੱਥੇ ਹੀ ਸਾਰੇ ਸਰੀਰ ਦੀ ਵਰਜਿਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਆ। ਇੱਕ ਪੰਜਾਬ ਪੁਲਿਸ ਅਧਿਕਾਰੀ ਹੈ ਜੋ ਇਹ ਸਭ ਦੀ ਦੇਖ ਰੇਖ ਕਰ ਰਿਹਾ। ਜਿੱਥੇ ਕਿ ਪੁਲਿਸ ਦਾ ਮਹਿਕਮਾ ਇੰਨਾ ਬਦਨਾਮ ਹੈ ਉੱਥੇ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਖੇਡਾਂ ਨੂੰ ਸਮਰਪਿਤ ਬੰਦੇ ਵੀ ਨੇ, ਸਲਾਮ ਇਸ ਸ਼ਖਸ਼ੀਅਤ ਨੂੰ।
ਜਿੱਥੇ ਪੰਜਾਬ ਨਸ਼ਿਆਂ ਲਈ ਬਦਨਾਮ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਹੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਉਪਰਾਲਿਆਂ ਦੀ।
ਸੋ ਜੋ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਚ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡਾਂ ਚ ਗਰਾਊਡਾਂ ਬਣਵਾਉਣ, ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀਆਂ ਖੁਲਵਾਉਣ,ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲ ਪੱਕੇ ਕਰਵਾਉਣ। ਸਿਰਫ ਨਿੰਦਾ ਕਰਕੇ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਹੋਣਾ।

ਪਾਰਕ ਚ ਚਾਚੀ ਸਪੋਰਟ ਸ਼ੂ ਪਾਕੇ  ਸੈਰ ਕਰਦੀ ਮਿਲੀ।
ਮੋਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਵਾਜ਼ ਆ ਰਹੀ ਸੀ। ਮੋਰ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਿੰਡ ਚ ਬਹੁਤ ਬਜ਼ੁਰਗ ਦਰਖ਼ਤ ਨੇ ਜੋ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਾਂਭੀ ਬੈਠੇ ਨੇ।
ਇਹ ਵੀ ਇੱਕ ਵਿਰਾਸਤ ਦੇ ਗਵਾਹ ਨੇ,  ਕ ਈ ਮੌਸਮ ਵੇਖੇ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਨੇ। ਜੇ ਕਦੇ ਕੋਈ ਟੈਕਨੋਲੋਜੀ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਇਹਨਾਂ ਨਾਲ ਗਗਲ ਕਰਕੇ ਅਸੀਂ ਕਈ ਕਹਾਣੀਆਂ ,ਕਿੱਸੇ ਸੁਣ ਸਕਦੇ ਹਾਂ, ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਸਿੱਖ ਸਕਦੈ ਹਾਂ। 

ਉੱਥੇ ਪਾਰਕ ਚ ਕੁਝ ਹੋਰ ਚਿਹਰੇ ਵੀ ਮਿਲੇ।
ਇਕ ਦੀ ਪਤਨੀ ਸਵਰਗ ਸਿਧਾਰ ਗਈ ਤੇ ਉਸਨੇ ਵਿਆਹ ਕੀਤਾ ਬੱਚਿਆਂ ਲਈ। ਬੱਚੇ ਬਾਹਰ ਆਸਟ੍ਰੇਲੀਆ ਭੇਜੇ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ। ਦੂਜਾ ਇਕ ਅਧਿਆਪਕ ਉਹ ਵੀ ਤਿਆਰੀ ਚ ਹੈ ਬੱਚੇ ਆਸਟ੍ਰੇਲੀਆ ਭੇਜਣ  ਦੀ। 
ਫਿਰ ਬਾਪੂ ਤੇ ਨੇੜੇ ਮੇਰੇ ਮਿੱਤਰ ਸ਼ਿਵਜਿੰਦਰ ਕੇਦਾਰ  ਹੋਰਾਂ ਨੇ ਘਰ ਇੱਕ ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀ ਦੇਣੀ ਸੀ ਤਾਂ ਇਕ ਕਿਤਾਬ ਪ੍ਰੇਮੀ ਸੱਜਣ  Jasvir Begampuri  ਹੋਰ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਘਰ ਗਿਆ। ਉਹਨਾਂ ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਮਿਤਰ ਵੀ ਸੀ।
ਮੈਂ ਵੀ ਕੁਝ ਕਿਤਾਬਾਂ ਲਈਆਂ।
ਜਦ ਸ਼ੇਰਗਡ਼ ਪਿੰਡ ਪੁੱਜੇ ਤਾਂ  Gurdeep Singh  ਹੋਰ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਫੋਨ ਕੀਤਾ। ਇੱਥੇ ਇਹ ਦੱਸਣਾ ਜਰੂਰੀ ਹੈ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਗਜ਼ਲ ਅੱਜ ਤੋਂ 30 ਕੁ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਬਹੁਤ ਮਕਬੂਲ ਹੋਈ ਸੀ
"ਇਸ਼ਕ ਆਖਦਾ ਏ ਤੇਰਾ ਕੱਖ ਰਹਿਣ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦੇਣਾ
ਕੁਝ ਕਹਿਣ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦੇਣਾ ਤੇ ਚੁੱਪ ਰਹਿਣ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦੇਣਾ"

ਗੀਤ ਦਾ ਆਨੰਦ ਮਾਣੋ
https://youtu.be/mL7yMJ5qSJw

ਫਿਰ ਬਾਪੂ ਹੋਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਤਸਵੀਰ ਫੇਸਬੁੱਕ ਤੇ ਵੇਖਕੇ ਇਕਵਿੰਦਰ ਢੱਟ ਹੋਰ੍ਹਾਂ ਕੁਝ ਲਿਖਿਆ ਤਾਂ ਮਸੈਂਜਰ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਗੱਲ ਕੀਤੀ। ਉਹ ਅਮਰੀਕਾ ਨੇ।

ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਮਸ਼ਹੂਰ ਸ਼ੇ'ਅਰ ਹੈ
ਅੰਬ ਚੂਪਣ ਆਵੀਂ ਦੁਸਹਿਰੀ ਪਿੰਡ ਪੁਰਹੀਰਾਂ
ਇਕਵਿੰਦਰ ਘਰ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਏ ਬਰਸਾਤਾਂ ਵਿੱਚ

ਫਿਰ ਆਉਂਦੇ ਹੋਏ ਢੋਲਣਵਾਲ ਦੇ ਮੋੜ ਤੇ ਇੱਕ ਸੇਵਾ ਘਰ ਬਣਿਆ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਲੱਗਭਗ 15 ਬਲੈਰੋ ਜੀਪਾਂ ਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਅਲੱਗ ਅਲੱਗ ਹਸਪਤਾਲਾਂ ਚ ਲੰਗਰ ਭੇਜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਆ ਉਹ ਵੀ ਬਿਨਾਂ ਨਾਗਾ। ਆਟਾ ਗੁੰਨਣ ਵਾਲੀ ਆਟੋਮੈਟਿਕ ਮਸ਼ੀਨ ਰੋਟੀਆਂ ਸੇਕਣ ਵਾਲੀ ਕਨਵੇਅਰ। ਇਹ ਸਾਡੇ ਹੀ ਪਿੰਡ ਦੇ ਇੱਕ ਬੰਦੇ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਆ ਜੋ ਅੱਜਕਲ ਕਨੇਡਾ ਚ ਨੇ।
ਬਿਸਕੁਟ ਤੇ ਪੀਜਾ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਵੀ ਨੇ।
ਅਸੀਂ ਉਥੇ ਲੰਗਰ ਖਾਧਾ।
ਇਕ ਸਰਦਾਰ ਜੀ ਮਿਲੇ ਤਾਂ ਓਹਨਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲ ਹੋਈ ਕਿ ਬੱਚੇ ਪੰਜਾਬ ਛੱਡਕੇ ਬਾਹਰਲੇ ਮੁਲਕਾਂ ਚ ਜਾ ਰਹੇ ਨੇ। 

ਉਹਨਾਂ ਦੱਸਿਆ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਬੰਦਾ ਜਾਣਦਾ ਹੈ ਉਸਦੇ ਬੱਚੇ ਅਮਰੀਕਾ ਚ ਸੀ। ਉਸਨੇ ਵੇਖਿਆ ਕਿ ਬੱਚਿਆਂ ਚ  ਚੰਗੇ ਸੰਸਕਾਰ ਨਹੀਂ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਹੇ ਉਹ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਲੈਕੇ ਭਾਰਤ ਆ ਗਿਆ ਬਾਹਰਵੀਂ ਕਲਾਸ ਤਕ ਇਥੇ ਪੜ੍ਹਾਇਆ। 
ਫਿਰ ਉਹਨਾਂ  ਨੂੰ ਦੁਬਾਰਾ ਅਮਰੀਕਾ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ। 
ਇਸ ਨਾਲ ਇੱਕ ਪੰਜਾਬ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋ ਗਿਆ।
ਹੁਣ ਉਸ ਤੇ ਬਾਹਰਲੀ ਪੱਤ ਇੰਨਾ ਅਸਰ ਨਹੀਂ ਕਰੂਂਗੀ।
 
ਫਿਰ ਉਹਨਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲ ਹੋਈ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਇੰਨਾ  ਮਾੜਾ ਹਾਲ ਕਿਉਂ ਹੋਇਆ?
ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਸਹੀ ਉੱਤਰ ਨਹੀਂ ਮਿਲਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਕਹਿੰਦੇ ਅੱਜ ਤੋਂ 30 ਕੁ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਪੰਜਾਬੀ ਲੋਕ ਦੂਜਿਆਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀਆਂ ਦਿੰਦੇ ਸੀ ਪਰ ਉਹ ਨਿਕੰਮੇ ਹੋ ਗਏ ਹਰ ਕੰਮ ਲਈ ਬਿਹਾਰ ਦੇ ਬੰਦੇ ਰੱਖ ਲਏ ਤੇ ਆਪ ਬਾਹਰ ਲੰਘ ਗਏ। ਹੁਣ ਖੇਤੀ ਕੋਈ  ਨਹੀਂ ਕਰ ਰਿਹਾ।
ਨਸ਼ੇ ਖਾ ਗਏ ਨੇ ਕੌਮ ਨੂੰ। 
ਹੋਰ ਵੀ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕਾਰਨ ਨੇ ਕਿ ਸਰਕਾਰਾਂ ਨੇ ਫੈਕਟਰੀਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰੋਹਤਸਾਹਣ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਫੈਕਟਰੀਆਂ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਲਾ ਲਈਆਂ, ਜਿਵੇਂ ਗੁਜਰਾਤ, ਹਿਮਾਚਲ ਚ।
ਮੈਂ ਨਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਕਪੂਰ ਹੋਰਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣ ਰਿਹਾ ਸੀ 
ਉਹਨਾਂ ਕਿਹਾ ਮਹਾਂਰਾਸ਼ਟਰ ਤੇ  ਗੁਜਰਾਤ ਚ ਵੱਡੀਆਂ ਫੈਕਟਰੀਆਂ ਨੇ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਸਮੁੰਦਰ ਲਾਗੇ ਨੇ। ਉਹ ਅਸਾਨੀ ਨਾਲ ਆਪਣਾ ਸਮਾਨ ਬਾਹਰਲੇ ਮੁਲਕਾਂ ਨੂੰ ਭੇਜ ਸਕਦੇ ਨੇ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਨੇ। ਪੰਜਾਂਬ ਚ ਖੇਤੀ ਦੇ ਨਾਲ ਅਜਿਹੇ ਉਦਯੋਗ ਹੋਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਨੇ ਤਾਂ ਕਿ ਪੰਜਾਬੀ ਅਮੀਰ ਹੋ ਸਕਣ ਤੇ ਬਾਹਰਲੇ ਮੁਲਕਾਂ ਵੱਲ ਘੱਟ ਜਾਣ।  
ਉਹ ਬੰਦੇ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ ਤੂੰ ਰੰਗਾਂ ਦੀ ਗਾਗਰ ਕਿਤਾਬ ਪੜ੍ਹੀ ਆ?
 ਮੈਂ ਕਿਹਾ,  ਜੀ ਹਾਂਜੀ ਸਰਦਾਰਾ ਸਿੰਘ ਜੋਹਲ ਹੋਰਾਂ ਦੀ। 
ਉਹ ਕਹਿੰਦੇ ਹਾਂਜੀ। 
ਫਿਰ ਹੋਰ ਕਈ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਤੇ ਓਹਨਾ ਨਾਲ ਗੱਲਬਾਤ ਹੋਈ।
ਅਸੀਂ ਘਰ ਮੁੜ ਆਏ।
ਫਿਰ ਇਕ ਦਿਨ ਬਾਪੂ ਜੀ ਦੇ ਮਿੱਤਰ Subjinder Kedar ਆਏ ਆਉਣ ਵੇਲੇ ਜਾਮੁਨਾ ਲੈ ਆਏ।
ਓਹਨਾਂ ਨੇ ਦੋ ਕਹਾਣੀਆਂ ਸੁਣਾਈਆਂ।

ਫਿਰ ਅੰਕਲ ਨੇ ਕਿਹਾ ਇਹ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਸਿਰ ਤੇ ਹੱਥ ਫੇਰਦੇ ਤੇ ਪੁੱਛਦੇ ਅੱਜ ਓਹਨਾ ਸਕੂਲ ਚ ਕੀ ਕੀਤਾ?  ਜਿਸ ਨਾਲ ਇਕ ਦੋਸਤੀ ਕਾਇਮ ਹੋਈ।
 
ਫਿਰ ਮੈਂ ਆਪਣੀ ਗੁਰੂ ਮਾਂ, ਰਾਣੀ ਆਂਟੀ ਕੋਲ ਗਿਆ। ਉਹ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਭਗਤ ਨੇ। ਓਹਨਾਂ ਨੇ ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਤੇ ਸਾਰੀ ਡੋਰ ਛੱਡੀ ਹੋਈ ਹੈ।  ਇੱਕ ਵਾਰ ਮੈਂ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਸਿਰ ਚ ਬਹੁਤ ਪੀੜ ਤੇ ਓਹਨਾ ਦਾ ਬੇਟਾ ਕੋਲ ਬੈਠਾ ਪਾਠ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ।
ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਕੋਈ ਦਵਾਈ ਲਈ? ਤਾਂ ਉਹ ਕਹਿੰਦੇ ਇਹੀ ਰਾਮ ਨਾਮ ਹੀ ਦਵਾ ਹੈ।
ਮੇਰਾ ਮਨ ਕਦੇ ਸੰਸ਼ਾ ਚ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹਾਂ । ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਕੰਨ ਚ ਪੈਂਦੇ ਹੀ ਮਨ ਸ਼ਾਂਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ 

 
ਸਾਡੇ ਘਰ ਲਾਗੇ ਪੀਜ਼ੇ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਖੁੱਲ ਗਈ ਹੈ।

ਸੁਣਿਆ ਪਿੰਡ ਚ ਇਕ ਬੈਡਮਿੰਟਨ ਦਾ ਕੋਰਟ ਬਣ ਗਿਆ। ਇਕ ਕਬੱਡੀ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਵੀ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਮੁੰਡੇ ਜ਼ੋਰ ਅਜ਼ਮਾਉਂਦੇ ਨੇ। 
ਇਹ ਸਭ ਗੱਲਾਂ ਰਮਨ ਹੋਰਾਂ ਨੇ ਦੱਸੀਆਂ ਉਹ ਵੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਭਗਤ ਨੇ। ਮੈਂ ਓਹਨਾ ਨਾਲ ਹੀ ਇੱਕ ਵਾਰ ਵ੍ਰਿੰਦਾਵਨ ਗਿਆ ਸੀ।
ਕਿਆ ਮਸਤੀ ਸੀ ਉੱਥੇ! ਸਾਨੂੰ ਇਕ ਸੰਤਾਂ ਨੇ ਲਹਸੁਨ ਪਿਆਜ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਅਲੂਆਂ ਦੀ ਸਬਜ਼ੀ ਖਿਲਾਈ ਸੀ ਕਿ ਅੱਜ ਵੀ ਸੁਆਦ ਯਾਦ ਹੈ।  ਫਿਰ  ਉਹਨਾਂ ਖੀਰ ਵੀ ਖੁਆਈ ਸੀ। 

ਹੁਣ ਪਿੰਡ ਚ ਸੜਕ ਚੌੜੀ ਹੋ ਗਈ ਹੈ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ ਕਾਰਾਂ ਚੱਲ ਰਹੀਆਂ ਨੇ, ਸਭ ਭੱਜੇ ਹੋਏ ਨੇ। 
ਫਿਰ ਇਕ ਮਿੱਤਰ ਜੋ ਇਟਲੀ ਤੋਂ ਆਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ਉਸ ਨਾਲ ਪੁਰਾਣੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ਤਾਜ਼ੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ। ਉਹ 12 ਸਾਲ ਤੋਂ ਉਥੇ ਹੀ ਹੈ।
ਅਸੀਂ ਪੁਰਾਣੇ ਦਿਨ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਕੇ ਕਿੰਨੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੇ ਸੀ ਰਮੇਸ਼ ਹਲਵਾਈ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਤੇ ਖੜ ਕੇ। ਹੁਣ ਵੀ ਰਮੇਸ਼ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਤੇ ਗਏ ਤਾਂ ਉਹ ਵੀ ਮੁਸਕੁਰਾ ਦਿੰਦਾ ਉਸਦੀ ਮੁਸਕੁਰਾਹਟ ਵੀ ਮੋਨਾਲੀਜ਼ਾ ਵਾਂਗ ਇੱਕ ਰਹੱਸ ਭਰੀ ਹੈ।

Ricky Ajnoha  ਨਾਲ ਫੇਸਬੁੱਕ ਤੇ ਮੁਲਾਕਾਤ ਹੋਈ। ਉਸਦੇ ਨਾਨਕੇ ਸਾਡੇ ਪਿੰਡ ਨੇ। ਉਹ ਵੀ ਦੱਸਦਾ ਹੁੱਦਾ ਹੈ ਕਿ ਛੋਟੇ ਹੁੰਦਿਆਂ ਉਹ ਪੁਰਹੀਰਾਂ ਆਕੇ ਬਹੁਤ ਖੇਲਦੇ ਸੀ।
ਬਿੱਟੂ ਜੋ ਅੱਜਕੱਲ ਕਨੇਡਾ ਹੈ, ਉਹ ਵੀ ਪਿੰਡ ਬਾਰੇ ਪੁੱਛਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। 

ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਪੁਰਹੀਰਾਂ, ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ 
ਪੰਜਾਬ

Saturday, July 3, 2021

ਮੇਰੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ( ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ)

ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਚ ਜਨਮ ਹੋਇਆ 
ਘੁੰਮਦੇ ਰਹੇ ਜਵਾਲਾ ਜੀ, ਚਮੁੰਡਾ ਦੇਵੀ, ਕਾਂਗੜਾ, ਬੈਜਨਾਥ  
ਪਾਲਮਪੁਰ, ਅੰਧਰੇਟਾ ਦੀ ਮੁਕਾਈ ਕਈ ਵੇਰਾਂ ਵਾਟ
ਸਾਇਕਲ ਤੇ ਮੰਗੂਵਾਲ, ਮੈਹੰਗਰੋਵਾਲ, ਆਸ਼ਾ ਦੇਵੀ ਦੇ ਮੰਦਰ ਜਾਂਦੇ
ਰਾਹ ਚ ਬਾਂਬੇ ਪਿਕਨਿਕ ਸਪਾਟ ਦੇ ਸਮੋਸੇ ਵੀ ਖਾਂਦੇ
ਚਿੰਤਪੁਰਨੀ ਦਾ ਸਫਰ ਇੱਕ ਵਾਰ ਪੈਦਲ ਸੀ ਮੁਕਾਇਆ
ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਚੌਹਾਲ ਡੈਮ ਕਈ ਵਾਰੀ ਸਾਇਕਲ ਤੇ ਗਾਹਿਆ


ਹਿਮਾਚਲ ਚ ਪਾਲਮਪੁਰ ਲਾਗੇ ਅੰਦਰੇਟਾ ਕਈ ਕੁਝ ਸਮੋਈ ਬੈਠਾ ਆ
ਨੌਰਾ ਰਿਚਰਡ, ਪੰਜਾਬੀ ਨਾਟਕ ਦੀ ਲੱਕਡ਼ਦਾਦੀ ਛੁਪਾਈ ਬੈਠਾ ਆ
ਸੋਭਾ ਸਿੰਘ ਹੋਰਾਂ ਦੀ ਆਰਟ ਗੈਲਰੀ ਚ  ਪੰਜਾਬੀ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਆ
ਕੋਲ ਹੀ ਸਰਦਾਰ ਜੀ ਦੀ ਪੈਟਰੀ ਵਰਕ ਦੀ ਵਰਕਸ਼ਾਪ ਤਿਆਰ ਆ

ਧਰਮਸ਼ਾਲਾ, ਨੱਢੀ, ਮਕਲੋਡਗੰਜ ਦਾ ਆਪਣਾ ਹੀ ਰੰਗ ਆ
ਦਲਾਈ ਲਾਮਾ ਦਾ ਘਰ, ਕਰਮਾਪਾ ਦਾ ਰਹੱਸਮਈ ਸੰਗ ਆ

ਸੁਪਨਾ ਤਾਂ ਸੀ ਤੂੰ ਤੇ ਮੈਂ
ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਬਾਅਦ
ਇਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਘਰ ਬਣਾਵਾਂਗੇ
ਪਹਾੜਾਂ ਤੇ ਘੁੰਮਣ ਜਾਵਾਂਗੇ 
ਇੱਕ ਥਾਂ ਟੈਂਟ  ਅਸੀਂ ਲਾਵਾਂਗੇ 

ਫਿਰ ਸੰਸਾਰ ਚ ਗੁਆਚ ਗਏ 
ਕੰਮ ਧੰਦਿਆਂ ਚ ਰੁੱਝ ਗਏ 

ਇੱਕ ਦਿਨ ਅਸੀਂ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਕੀਤਾ ਖਿਆਲ
ਨਾਲ ਲੈ ਲਿਆ ਰੋਟੀ ਪਾਣੀ ਦਾ ਸਾਮਾਨ  
ਮੋਟਰਸਾਈਕਲ ਤੇ ਤੁਰ ਪਏ 
ਅਸੀਂ ਲੈ ਕੇ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਜਹਾਨ 
ਸਵਾਗਤ ਕੀਤਾ ਮੀਂਹ ਨੇ ਸਾਡਾ  
ਮੌਸਮ ਵੀ ਸੀ ਖ਼ਰਾਬ ਡਾਢਾ
ਵਰ੍ਹਦੇ ਮੀਂਹ ਚ ਹੱਥ ਫੜ੍ਹ ਕੇ ਖੜ੍ਹੇ ਰਹੇ 
ਬੱਦਲ ਤੇ ਅਸੀਂ ਦੋਵੇਂ ਜਿੱਦ ਤੇ ਅੜ੍ਹੇ ਰਹੇ
ਫਿਰ ਚਰਾਂਦਾਂ ਵੇਖੀਆਂ 
ਲਿਆ ਡੱਲ ਝੀਲ ਦਾ ਨਜ਼ਾਰਾ 
 
ਕੇਸਰ ਦੀ ਖੇਤੀ
ਲੱਕੜੀ ਦੇ ਬੈਟ ਬੱਲੇ 
ਰੇਸ਼ਮ ਦੇ ਧਾਗਿਆਂ ਨਾਲ 
ਹੋ ਗਈ ਬੱਲੇ  ਬੱਲੇ

ਲਾਲ- ਲਾਲ ਕਸ਼ਮੀਰੀ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ 
ਜਿਵੇਂ ਸੇਬ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ਹੋਵੇ ਬਰਫ ਚ ਇਕੱਲਾ  
ਸਾਹਮਣੇ ਬਰਫ਼ ਦੇ ਪਹਾੜ ਹੇਠ ਦਰਿਆ ਸੀ ਵਗਦਾ  ਬਰਫ਼ ਵਾਲੇ ਗਲਾਸ ਬਾਹਰ ਜਿਵੇਂ ਪਾਣੀ ਹੋਵੇ 
ਜੰਮਦਾ
ਤੈਨੂੰ ਵੀ ਠੰਢ ਲੱਗੀ ਮੇਰੀ ਹਿੱਕ ਨਾਲ ਤੂੰ ਲੱਗ ਗਈ
ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਲੱਗਾ ਫਿਰ ਠੰਢ ਕਿੱਥੇ ਵੱਗ ਗਈ  
ਅੱਜ ਵੀ ਤੇਰਾ ਚਿਹਰਾ ਬੱਦਲਾਂ ਚ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦਾ ਹੈ 
ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਵਾਦੀ ਚ ਤੇਰਾ ਹਾਸਾ ਸੁਣਾਈ ਦਿੰਦਾ ਹੈ  
ਝਰਨਿਆਂ ਦੇ ਪਾਣੀ ਨਾਲ ਮੈਗੀ ਤੇ ਖਾਣਾ ਅਸੀਂ ਬਣਾਇਆ
ਜਦ ਸ਼ਹਿਰ ਆਏ ਤਾਂ ਉਹ ਸਵਾਦ ਮੁਡ਼ਕੇ ਨਹੀਂ ਆਇਆ  

ਸ਼ਹਿਰ ਚ ਏਸੀ ਕੂਲਰ ਬਿਨਾਂ ਨੀਂਦ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦੀ
ਉੱਥੇ ਟੈਂਟ ਵਿੱਚ ਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਯਾਦ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਆਉਂਦੀ  ਮੋਟਰਸਾਇਕਲ ਪੰਚਰ ਹੋ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਖੁਦ ਹੀ ਦੋਵਾਂ ਨੇ ਲਾਉਣਾ 
ਜਦ ਕਿਤੇ ਮੁਸੀਬਤ ਵਿੱਚ ਫਸ ਜਾਣਾ ,ਇੱਕ ਨੇ ਦੇਖਣਾ
ਫਿਰ ਦੋਹਾਂ ਨੇ ਮੁਸਕਾਉਣਾ

ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਦਾ ਸੁਫਨਾ ਆਇਆ ਸੀ ਮੈਨੂੰ
ਦੋਵੇਂ ਹੱਸੇ ਰੱਜ ਜਦ ਸੁਣਾਇਆ ਸੀ ਤੈਨੂੰ

ਘੁੰਮਕਡ਼ ਤੇ ਸੈਲਾਨੀ ਹੋਣ ਚ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਫਰਕ ਆ
ਜਿੰਦਗੀ ਲਈ ਸਭ ਦਾ ਵੇਖੋ ਆਪਣਾ ਆਪਣਾ ਤਰਕ ਆ
ਕਿਤੇ ਵੀ ਜਾਣਾ ,ਟੈਂਟ ਲਾ ਕੇ ਰਹਿਣਾ
ਹਰ ਥਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਜਿੰਦ ਜਾਣ ਕਹਿਣਾ
ਸੈਲਾਨੀ ਪੱਕੀ ਸਡ਼ਕੇ ਜਾਂਦਾ ਤੇ ਹੋਟਲ ਚ ਰਹਿਕੇ ਵਾਪਸ ਹੈ ਆਉਂਦਾ
ਉੱਥੇ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਤੇ ਸਭਿਆਚਾਰ ਨੂੰ ਉਹ ਕਿੱਥੇ ਜਾਣ ਪਾਉਂਦਾ?

  
ਰੁਦਰਪੁਰ ਆਇਆ ਤਾਂ ਵੀ ਘੁੰਮਣ ਦਾ ਸਿਲਸਿਲਾ ਜਾਰੀ 
ਸਫ਼ਰ ਤੇ ਜਾਣ ਦੀ ਹਮੇਸ਼ਾ ਰਹਿੰਦੀ ਤਿਆਰੀ
ਰੁਦਰਪੁਰ ਤੋਂ ਚੱਲ ਕੇ ਹਲਦਵਾਨੀ  ਫਿਰ ਕਾਠਗੋਦਾਮ 
ਦੋਗਾਂਵ ਪਿੰਡ ਤੋਂ  ਛੱਲੀ ਖਾਣੀ, ਹਰੀ ਮਿਰਚ ਤੇ ਲਹੁਸਣ ਦੀ ਚਟਣੀ ਨਾਲ  
ਕੈਂਚੀ ਧਾਮ ਜਾ ਕੇ ਮੂੰਗੀ ਦੀ ਦਾਲ ਦੇ ਪਕੌੜੇ ਤੇ ਬੋਤਲ ਸੋਡੇ  ਵਾਲੀ  
ਮੰਦਰ ਅੰਦਰ ਜਾ ਕੇ ਰੂਹ ਨੂੰ ਚੈਨ ਜਿਹੀ ਆ ਜਾਣੀ 
ਰਾਮਗੜ੍ਹ ਤੋਂ ਮੁਕਤੇਸ਼ਵਰ 
ਝੋਲੀ ਕੀ ਝਾਲੀ ਤੋਂ ਡੁੱਬਦੇ ਸੂਰਜ ਦਾ ਤੱਕਣਾ ਨਜਾਰਾ ਘੌੜਾਖਾਲ ਦਾ ਸੈਨਿਕ ਸਕੂਲ , ਗੋਲੂ ਦੇਵਤਾ ਦਾ ਮੰਦਰ
ਵੇਖਣਾ ਅਸੀਂ ਸਾਰਾ
ਕੋਈ ਮੁਰਾਦ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਕਾਗਜ਼ ਤੇ ਲਿਖਕੇ ਗੋਲੂ ਦੇਵਤਾ ਦੇ ਮੰਦਰ ਟੰਗਦੇ 
ਨਿੱਕੀ ਜਿਹੀ ਉਂਗਲ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਇੱਕ ਫੁੱਟ ਚੌੜੀ ਘੰਟੀ ਲੋਕ ਉੱਥੇ ਚੜਾਉਂਦੇ 
ਇੱਕ ਲੱਖ ਦੇ ਲੱਗਭਗ ਘੰਟੀਆਂ ਨੇ ਉੱਥੇ
ਫੋਟੋਆਂ ਖਿਚਾ ਕੇ ਅਸੀਂ ਜ਼ਰਾ ਵੀ ਨਾ ਰੱਜੇ
ਅਲਮੋੜਾ ਦਾ ਲਾਲ ਬਜ਼ਾਰ 
ਤੇ ਡਾਕਖਾਨੇ ਦੇ ਬਾਹਰ ਬੋਗਨਵੀਲੀਆ ਫੁੱਲਾਂ ਦੀ ਬਹਾਰ  

ਕੋਸਾਨੀ ਦਾ ਗਾਂਧੀ ਆਸ਼ਰਮ
ਉਥੋਂ ਹਿਮਾਲੇ ਦਾ ਨਜ਼ਾਰਾ 
ਘਰ ਸੁਮਿਤਰਾਨੰਦਨ ਪੰਤ ਦਾ
ਕੁਦਰਤ ਦਾ ਸਭ ਪਸਾਰਾ  

ਨੈਨੀਤਾਲ, ਭੀਮਤਾਲ , ਸਭ ਮਿਲਕੇ ਨੌਂ ਤਾਲ ਨੇ
ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਖੂਬਸੂਰਤੀ ਦੇ ਹਰ ਪਾਸੇ ਕੀਤੇ ਕਮਾਲ ਨੇ

ਰਿਸ਼ੀਕੇਸ਼ ਚ ਰਿਵਰ ਰਾਫਟਿੰਗ ਦਾ ਮਾਣਿਆ ਅਸੀਂ ਆਨੰਦ
18 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਦਾ ਢਾਈ ਘੰਟਿਆਂ ਚ ਮੁਕਾਇਆ ਪੰਧ

ਸਾਲ ਚ ਦੋ ਟੂਰ ਲਾਉਣ ਦਾ ਕਰੋ ਪਲਾਨ
ਇੱਕ ਪਰਿਵਾਰ ਤੇ ਇੱਕ ਦੋਸਤਾਂ ਦੇ ਨਾਲ

ਰੁਦਰਪੁਰ ਤੋਂ ਕਈ ਵਾਰੀ ਪੂਨੇ ਕੰਪਨੀ ਦੇ ਕੰਮ ਗਿਆ
ਰੇਲ ਵਿੱਚ ਹਰ ਬਾਰ ਨਵਾਂ ਹੀ ਅਨੁਭਵ ਰਿਹਾ
ਓਸ਼ੋ ਆਸ਼ਰਮ ਪੂਨੇ ਚ ਇੱਕ ਦਿਨ ਮੈਡੀਟੇਸ਼ਨ ਲਈ ਬਿਤਾਇਆ
ਕੀ ਦੱਸਾਂ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਮੈਂ ਅਦਭੁਤ ਸੰਸਾਰ ਪਾਇਆ਼

ਛੋਟੇ ਹੁੰਦਿਆਂ ਕੁੱਲੂ ਮਨਾਲੀ, ਭੁੰਤਰ , ਸ਼ਮਸ਼ੀ, ਮਣੀਕਰਣ ਬੇਬੇ ਬਾਪੂ ਨੇ ਘੁਮਾਇਆ
ਖੱਟੇ ਮਿੱਠੇ ਹਰੇ ਸੇਬਾਂ ਖਾਧੇ, ਰੋਹਤਾਂਗ ਪਾਸ  ਤੋਂ ਬਿਆਸ ਕੁੰਡ ਵੀ ਵਿਖਾਇਆ
ਕਿਵੇਂ ਮਣੀਕਰਨ ਚ ਪਾਣੀ ਚ ਚੌਲ ਉੱਬਲ ਜਾਂਦੇ
ਵੇਖੋ ਬਾਬੇ ਨਾਨਕ ਦੇ ਲੰਗਰ ਕਿੱਥੇ ਲੱਗਦੇ ਜਾਂਦੇ

ਰਾਜਸਥਾਨ ਚ ਜੈਪੁਰ ਦਾ ਤਿੱਖਾ ਜਿਹਾ ਰੰਗ
ਹਵਾ ਮਹਿਲ, ਜੰਤਰ ਮੰਤਰ, ਚਿਡਿਆਘਰ  
ਅਜਮੇਰ ਸ਼ਰੀਫ਼ ਦਾ ਵੱਖਰਾ ਜਿਹਾ ਢੰਗ

ਘੁੰਮ ਘੁੰਮ ਕੇ ਪੈਰਾਂ ਨੂੰ ਰਾਹਾਂ ਲੱਗ ਗਈਆਂ ਨੇ 
ਹੱਥਾਂ ਦੀਆਂ ਹਥੇਲੀਆਂ ਤੇ ਨਕਸ਼ਿਆਂ ਦੀਆਂ ਲਕੀਰਾਂ ਛਪ ਗਈਆਂ ਨੇ
ਰਾਹ ਚ ਟੋਇਆ ਹੋਏ ਤਾਂ ਸੜਕ ਇਸ਼ਾਰਾ ਕਰ ਦਿੰਦੀ ਏ 
ਜਦ ਸਪੀਡ ਚ ਹੋਈਏ ਹਰ ਗੱਡੀ ਸਾਈਡ ਦਿੰਦੀ ਏ  ਢਾਬੇ ਵਾਲਿਆਂ ਨਾਲ ਆੜੀ ਸੱਟੀ ਹੋ ਗਈ ਆ 
ਬੂਟਿਆਂ ਤੇ ਦਰਖਤਾਂ  ਨਾਲ ਯਾਰੀ ਪੱਕੀ ਹੋ ਗਈ ਆ  

ਇਨ੍ਹਾਂ ਘੁੰਮ ਕੇ ਸਿੱਟਾ ਕੱਢਿਆ 
ਜਿਊਣ ਲਈ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਸਾਮਾਨ ਚਾਹੀਦਾ 
ਪਰ ਬਹੁਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਜਹਾਨ ਚਾਹੀਦਾ 
ਸੰਸਾਰ ਘੁੰਮਣ ਆਏ ਹਾਂ ਤੇ ਘੁੰਮ ਕੇ ਚਲੇ ਜਾਣਾ ਹੈ 
ਪਰ ਘੁੰਮਿਏ ਰੂਹ ਨਾਲ ਇਹ ਅਸਲੀ ਖ਼ਜ਼ਾਨਾ ਹੈ

ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ
ਉਤਰਾਖੰਡ
ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰਹੀਰਾਂ, ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ
ਪੰਜਾਬ
1.07.2021