Wednesday, March 10, 2021

बच्चों का कैरीयर और चूहा दौड़

आजकल बच्चों की परीक्षा चल रही है। बहुत सारी चिंताएँ है मां-बाप को कि उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा?
इसी  विषय पर आज बातचीत हुई  गिरीश जी से । वह नैनीताल से आर्ट के विषय से रिटायर्ड हैं। उनसे मुलाकात साल पहले लीकासल होटल में एक आर्ट एग्जीबिशन में हुई थी जो क्रिएटिव उत्तराखंड के सौजन्य से हुई थी।

उनसे  बात करने का मन हुआ तो मैंने आज उनको फोन किया। 

उन्होंने बताया कि हर इंसान कुछ समय लेकर धरती पर आया है पर यह जरूरी तो नहीं वह  साइंस या हिसाब के विषय  में अव्वल आए। कुछ लोगों के खून में कलाकारी होती है, उनका हृदय आम आदमी से ज्यादा किसी चीज़ को महसूस करता है , वह कोई पेंटिंग, गीत या कविता, अच्छा डांस कर सकता है। पर इसको हमारे समाज में कम आंका जा रहा है।
 पहले पहल आपके काम की बहुत इज्जत का था, जिस समय में अजंता एलोरा की गुफाएं बनाई गई सारा काम हाथ की नक्काशी ही है। अब इतने  साल बाद हमारी संस्कृति की धरोहर है। जैसे जैसे समय में बदलाव आया लोगों के पास पैसा इकट्ठा हुआ वह धनी हुए। उन्होंने हाथ के कारीगरों की कला का मोल लगाना शुरू कर दिया । कारीगर वहां नौकर हो गए। धनी लोगों  को दुआ सलाम मिलने लगी। तो जो लोगों की जो सोच  इस तरह हो गई कि हमें सेठ ही  बनना चाहिए। फिर 1929 में अमेरिका में उदयोगिक क्रांति आयी। पूरे विश्व भर में मशीनों का विस्तार हो गया । धीरे-धीरे हाथ के कारीगरों की कीमत कम होने लगी।

पर  पिछले 10 या 15 साल में बच्चों की रुचि की तरफ ध्यान दिया जाने लगा है। 
वह बता रहे थे उनका एक विधार्थी था।  उसके पिता इंजीनियर थे । वह उसे भी फिर भी इंजीनियर  बनाना चाहते थे। पर उसका बेटा आर्ट पसंद करता था । उसने कहा, आप मुझे हर रोज़ समझाते हैं तो एक बार मेरे पिताजी को भी समझाओ । वह अपने पिताजी के साथ लेकर  गिरीश मिलवाने कॉलेज लाया। जब वह आए तो वह पूरा दिन वही पर रहे। उन्होनें बाकी विद्यार्थियों का कार्य देखा। डॉ गिरीश से बात हुई। डॉ गिरीश ने कहा मान लो यह लड़का इंजीनियर
बन भी गया तो क्या होगा?
अगर यह अपने शौक के क्षेत्र में  गया तो पैसा तो कमा लेगा पर खुश ना रहा तो क्या आप खुश होंगे?
मैनें कहा, थ्री इंडियटस फिल्म  में यही बात करते हैं कि  जिस कार्य से आपको मोहब्बत है आप उसी क्षेत्र को नौकरी के लिए चुनें।  

उसके पिता ने यह बात समझी। वह लड़का दिल्ली में आर्ट कॉलेज गया। पर वँहा उसका मन  नहीं लगा। वह  गिरीश जी से दोबारा मिला। उन्होने कहा  वहां के टीचर और इर्द गिर्द की तस्वीर  बनाओ। तो उसने ऐसा ही किया। उसकी पेंटिंग के सभी दीवाने हो गये। तो पहले जो लड़का बिल्कुल संकुचित रहता था अब वँहा के अध्यापकों की चाहत बन गया। 
एक्टिंग उसका जुनून थी। उसने एक्टिंग क्लास लगाकर अपने आप को निखारा। फिर उसने मुंबई के प्रिथ्वी के दिल में भी नाटक किया। वह हमेशा गिरीश जी के  संपर्क में रहा। उन्होनें उसे कहा , तू कभी एक्टिंग मत छोड़ना।  फिर उस लड़के  की मुलाकात हुई जो कथक डांसर थी। लड़के को उससे प्यार हो गया। उनकी शादी हो गई है। 

 ख़लील ज़िब्रान अपनी किताब पैगंबर में बच्चों के बारे में कहते हैं,
" हमारे बच्चे हमारे द्वारा संसार में आए हैं पर वह हमारी नहीं परमात्मा की औलाद हैं। आपने हमने उनके लिए घौंसले बनना है  जिसमें पलेंगे ,बढ़ेंगे और एक दिन अपनी मंज़िल की ओर उड़ जाएंगे। हमने उनके लिए तीर कमान बनना है वे तीर बनेंगे। उनकी मंजिल कहीं और है। हमने उनके पालक बनना है मालिक नहीं ।"

गिरीश  जी ने भी इस बात में सहमति जताई।
वह बता रहे थे, पढ़ाई का काम हमें रोज़गार दिलवाने तक का है । अगर वह रोज़गार हमारे पसंद और रूचि  वाला भी हो तो और भी चार चांद लग जाते हैं।

  मैंने उनको एक किस्सा सुनाया जो मेजर मांगट 
( घुमक्कड़ और लेखक,कनाडा ) ने अपनी पंजाबी की किताब ,असीं वी वेखी दुनिया ( हमने भी देखी दुनिया)  में बताया है ईरान से एक टेलर बिज़ाद के पाकज़ाद अमेरिका के व्यापार करने आया। उसने बैवरले हिल्लज़ में कोट सिलने की दुकान खोली। वह  बहुत ही अच्छी कटिंग करता  था।  लोगों ने कहा यहां पर तेरे पास कौन आएगा यहां पर बहुत ज्यादा दुकान का किराया है? तू किराया भी नहीं निकाल पाएगा। पर वह दो-तीन साल में इतना मशहूर हो गया कि वॉलीवुड  के बहुत सारे एक्टर, रूस के राष्ट्रपति पुतिन तक उसके पास कोट  सिलवाने आने लगे। उसने अपने जुनून को अपना रोज़गार बनाया। लेखक उसके घर के बाहर से गुजरा तो उसने वँहा की तस्वीरें खींची। उसके पास पीले रंग की बहुत सुंदर बहुत राल्स रायस कार और  बहुत बेहतरीन कार थी।
लेखक आगे लिखता  हैं भारत में सिर्फ डॉक्टर और इंजीनियर को ही एकमात्र रोज़गार का साधन समझा जाता है। यही वजह से बहुत सारे बच्चे नशे में डूब जाते हैं या निराश हो जाते हैं या भारत से छोड़कर कर दूसरे देशों में बस जाते हैं। क्योंकि वहां पर उनको इज्जत से देखा जाता है। यह  बात मैंने अपने यहां एक कुलीग गुरुदत्त सिंह से की। वो कहने लगे यह बात सच है। उनके गांव में एक लड़का है जो कि बार्बर (बाल काटने वाला) था। उसकी शादी की बात चल रही थी। तो दो  लड़की वालों ने उसे रिजेक्ट कर दिया कि वह बार्बर  है फिर उसको अपना बार्बर वाला काम छोड़कर कोई नौकरी की तो उसकी शादी हुई।

डा गिरीश बोले, शुक्र है पिकासो भारत मे नहीं पैदा हुआ वर्ना वह किसी वर्कशाप में ही जीवन गुज़ार देता।
 डिमांड ज्यादा है तो मशीनें ज्यादा उत्पादन कर रही हैं।
 ऐसा भी नहीं है कि भारत की स्थिति खराब है यहां के राजनीतिक व्यवस्था की वजह से लोग बाहर जाते हैं।  अगर यँहा पर सभी क्षेत्रों के लोगों की इज्जत होगी और अच्छी तन्खाह होगी तो कौन आदमी अपना मुल्क छोड़कर जाएगा।

 पर कुछ लोग अब्दुल कलाम जैसे भी हैं जो भारत में रहते हैं । गुलज़ार  जी के गीतकार,फिल्म निर्माता  हैं जिन्होनें गीत लिखा
 दिल ढूंढता है
 फिर वही फुर्सत के रात दिन

अगर  गुलज़ार साहब कहीं डॉक्टर बन जाते तो,  आज  हम कितने गीतों से महरूम रह जाते। इतनी अच्छी शायरी हमें कौन देता?

किसी ने ओशो से पूछा ,मैं अपने बच्चों को नैतिक शिक्षा देना चाहता हूं , क्या करुं?
 तो  ओशो ने उसे डांटा। तुम क्या करोगे नैतिक शिक्षा देकर? तुम खुद ही बासी फूल हो, वह  परमात्मा के चर से आए ताज़ा फूल हैं। तुम्हें तो उनसे सीखना चाहिए। वह परमात्मा की खबर लाए हैं।
इसीलिए तो विलियम वर्डज़वर्थ ने कहा है,
चाईल्ड इज़ अ फादर आफ मैन।

 तो हमें अपने बच्चों को उनके शौक के मुताबिक उसी दिशा में भेजना चाहिए जिनमें उनकी रूची हो।

डा शिवेंद्र कश्यप ( डीन, पंतनगर युनीवर्सिटी) अपनी  कविता " रोटी की कोई तलाश नहीं होती"  में समझाते हैं कि रोटी तो हमसब कमा ही लेते हैं।  पर सिर्फ रोटी ही हम सब की तलाश नहीं है , असली तलाश है हमने जीवन की तलाश की, उसे जीया या नहीं?

 मुझे एक और बात याद आई जब कैलाश खेर यहां पर पंतनगर यूनिवर्सिटी में स्वामी विवेकानंद जयंती पर आए। वह शिवेंद्र कश्यप जी के बहुत बड़े  फैन हैं। उन्होने कश्यप जी के बारे में लिखा है, मैनें बहुत लोग यह कहते हुए सुना है अगर हमें देश को बदलना है तो देश के युवा को बदलना होगा। पर वह ऐसा करते नहीं। अगर आपको यह बात साक्षात देखनी है तो आप पंतनगर युनीवर्सिटी में आएँ। यँहा पर विवेकानंद स्वाध्य मंडल के कार्य को देखें, यँहा योगा,स्वामी विवेकानंद जी की सोच का प्रसार देखने को मिलेगा।"

 एक एंकर ने वँहा यह भी कहा था वह बोलने में बहुत झिझकता था परजब वह शिवेंद्र कश्यप जी की क्लास में ज्वायन किया तो अब वह एंकरिंग करने लगा। जो बच्चों के अंदर के टैलेंट को तराशने का काम करते हैं वह हैं कश्यप जी।

कोई कैरम बोर्ड खेलता है तो अगर वह शिवेंद्र कश्यप जी के विवेकानंद स्वाध्य मंडल में आता है तो उसको सबसे अच्छा खेलने वाला बना देंगे।
बच्चों में असीम संभावनाएं हैं, बस ज़रूरत है उसे पहचान कर तराशने की।

यँहा पर यह बताना जरूरी है, विवेकानंद स्वाध्य मंडल हर सार 12 जनवरी को विवेकानंद जयंति मनाते हैं जिसमें देश भर से शिक्षा में उत्क्रष्ठ कार्य करने वाले लोग आते हैं।

फिर मिलूंगा।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
9.03.2021

2 comments:

  1. ਬਹੁਤ ਵਦੀਆ ਜੱਸ ਜੀ

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    1. ਸ਼ੁਕਰੀਆ ਜੀ। ਆਪਣਾ ਨਾਂ ਵੀ ਦੱਸ ਦਿਓ

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