Sunday, March 7, 2021

रविवार की साईकलिंग और किताबों पर बातचीत

रविवार है तो साइकिलिंग, दोस्ती, किस्से कहानियां।
आज वह साईकिलिंग के लिए निकला। ठंड बहुत कम हो गई है, पेड़ों के पत्ते झड़ चुके हैं, नई कौंपलें आ रही हैं,  फूल खिले हुए हैं , पंछियों की चहचहाट से मौसम में आनंद हो रहा है।
चाय का अड्डा बंद था।
साईकिल पर एक चक्कर लगाया। एक नई जगह पर दुकान पर आकर बैठा हूं। 
 हवा में एक भीनी भीनी खुशबू है, सफेदे के पेड़ के जो बीज होते हैं जब वह सड़क पर गिर जाते हैं और आम के पेड़ बौर आ गया है तो इन दोनों की खुश्बू हवा में महक घोल दे रही है।

              आम के पेड़ पर बौर

 नई जगह पर बैठा तो थोड़ी देर में हरिनंदन आ गया फिर बातें होने लगी। तो थोड़ी देर में शिव शांत भी आ गया।
आज बातें हुई किताबों पर। किताबें हमारे समाज को रोटी की तरह जरूरी है। शिव शांत बता रहा था कि अगर किसी शहर को देखना है तो उसमें जाकर उसके लाइब्रेरी और उसके संग्रहालय को देखो तभी उस शहर के बारे में पता चलेगा।

 किताबों के बाद में बारे में बातें हो रही थी तो देखा कि अभी सारा कुछ ऑनलाइन हो रहा है। किताबें जब छपती हैं तो कोई ऐसा विचार होता है जो भीड़ का हिस्सा नहीं होता, जो कुछ अलग सोच से उत्पन होता  है उसी की किताब छपती है। भीड़ को कतई पसंद नहीं है कि कोई उसके खिलाफ बात करें और उससे भी बड़ी बात है कि जो समाज के ठेकेदार हैं उनको भी किताबें हरगिज पसंद नहीं है।
 इसी में  रे ब्रेडबरी का एक नॉवेल है फारनहीट 451
 भविष्य की बात है कि एक आदमी है जो  फायरमैन है जिसका काम ही किताबें जलाने का। यँहा भी किताबें हैं वह उन्हें जलाने की नौकरी करता है। यह सरकार की तरफ से निर्देष हैं। एक बार उसको एक औरत मिलती है जिसके पास बहुत सारी किताबें होती हैं। वह उस औरत को कहता है पीछे हट जाओ यह किताबें मुझे जलानी हैं।  वह बोली, मैं पीछे नहीं हट सकती। तो वह आदमी किताबों को जला देता है। वह औरत भी किताबों के साथ ही जल जाती है। उसको  उसको इस बात का बिल्कुल रंज नहीं होता कि उसने एक बेगुनाह औरत को जला दिया। उसको लगता है कि उसने अपनी ड्यूटी पूरी की है।
पर जब काम से लौट रहा होता तो उसको एक लड़की मिलती है। वह उसके बाद में उसके जीवन में एक ऐसा प्रश्न खड़ा हो जाता है कि आखिर वह औरत किताबों के साथ क्यों जल गई?
 हमारे भारत में भी नालंदा विश्वविद्यालय जला दी गयी।कहते हैं  वह आग कई साल तक जलती रही।
 शिवशांत बता रहा था  किसी कबीले के लोगों ने अपने बच्चों को शहर में पढ़ने भेजा क्योंकि वहां पर कारपोरेट सैक्टर के मालिक उनके जंगल को काटकर वहां से खनिज पदार्थ निकलना चाह रहे थे। पर जब उनके बच्चे पढ़ कर शहर से वापस आए तो उन्होंने कहा  कॉरपोरेट सैक्टर सही सही कह रहा है  हमें यह जंगल छोड़कर शहर में चले जाना चाहिए।

    पेड़ पर लिपटी बेल ,यह इश्क नहीं तो क्या है


 बच्चों को पढ़ाया इसीलिए गया था कि वह शहर में जाकर अपने हकों की बात करें पर वह उल्टा ज्ञान लेकर लौटे।
किताबें विवेक पैदा करती हैं।
 बुद्धि और विवेक में एक फर्क है। दुनिया में बुद्धिमान लोग तो बहुत है पर विवेकशील कम हैं। जैसे की बुद्धि हमें बताती है आग कैसे जलानी है। पर उस आग से किसी का घर जलाना है या उस आग से अपना खाना बनाना है यह हमें विवेक बताता है।

वाल्टर कोनफ्राईल का विचार है, 
" लाइब्रेरी कायम करना और कायम रखना चाहे जितना खर्चीला हो ये उस कीमत से कहीं कम है जो किसी देश को अज्ञानी होने पर चुकानी पड़ती है।"

 किताबों की बात हुई तो सफ़दर हाशमी की बात होनी जरूरी है। उनकी एक बहुत अच्छी कविता है
 

किताबें करती हैं बातें
बीते जमानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की कल की
एक-एक पल की।
खुशियों की, गमों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की।
सुनोगे नहीं क्या
किताबों की बातें?
किताबें, कुछ तो कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
किताबों में चिड़िया दीखे चहचहाती,
कि इनमें मिलें खेतियाँ लहलहाती।
किताबों में झरने मिलें गुनगुनाते,
बड़े खूब परियों के किस्से सुनाते।
किताबों में साईंस की आवाज़ है,
किताबों में रॉकेट का राज़ है।
हर इक इल्म की इनमें भरमार है,
किताबों का अपना ही संसार है।
क्या तुम इसमें जाना नहीं चाहोगे?
जो इनमें है, पाना नहीं चाहोगे?
किताबें कुछ तो कहना चाहती हैं,
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं!

मुझे एक बात याद आ गयी ओशो  जो प्रवचन देते थे तो उसे रिकार्ड करवाते थे। एक बार किसी ने कोई सवाल पूछा तो वहां पर टेप रिकार्डर  खराब था तो ओशो ने कहा पहले टेप रिकॉर्डर ठीक करो तो मैं उत्तर देता हूं। 
दूसरे व्यक्ति ने कहा, आप बोलिए मैं लिख लूंगा।
ओशो ने कहा, हरगिज़ नहीं बोलूंगा क्योंकि जो मैं बोलूंगा तुम क्या लिखोगे क्या पता? आगे लोगों को क्या बताओगे वो भी नहीं पता।

 जैसे कि परमात्मा है और हम हैं और बीच में जो पुरोहित है वो हमें जो बताते हैं वह इतना गलत बताते हैं यही सुन पूरे समाज की संरचना को युद्ध की तरफले जाता है। वह पाप को पुण्य और पुण्य को पाप बनाकर पेश कर देते हैं। इसीलिए तो समाज में विद्रोह नहीं हो पाता जो करते हैं वह सुकरात, मीरा और जीसस की तरह मार दिए जाते हैं।

 

शिवशांत बता रहा था  पूरे विश्व में दो किताबों में बड़ी बहस चल रही है, एक है दास कैपिटल और एक किताब है महान किताब।
अभी हम देख रहे हैं कि इन दिनों  फेसबुक इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप की इतनी ज्यादा होड़ लगी हुई है कि लोग वँही सारा ज्ञान वहीं से प्राप्त करना चाह रहे हैं हालांकि यह जितना भी सारा सिस्टम है यह पूरा ऐसे हाथों में है जो आपको नहीं कहता कि आप एक नया विचार सोचो। वह चाहता है कि जो वो कह रहा है आप उसी के बारे में सोचो।

तो कुछ समय के लिए रहे किताबें पढें, आसमान को देखे, पंछियों की आवाज़ सुनें ताकि आप इंसान होने का, संवेदनशील होने का सबूत दें

अभी नई पीढ़ी में बहुत लोग हैं जो नई किताबें पढ़ रहे हैं उसके ऊपर मैं फेसबुक पर ढेर सारी बातें करते हैं जैसे कि Akash Deep , Nikhil Chandan

अच्छे पाठक हैं Jasvir Begampuri , Gulshan P Dayal , Jagtar Singh ,
Inder Deol , Sonia Sharma

लेखकों में Jung Bahadur Goyal , Harpal Singh Pannu, Subhash Parihar , Sodhi Parminder


किताबें पढ़नी चाहिए अच्छा साहित्य पढ़ना चाहिए जो कि हमारी सोच को बुद्धि नहीं बल्कि विवेक भी दे।

 चाय पी और फिर हम घर को वापस आ गये।
फिर मिलूंगा एक नये किस्से के साथ।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुर हीरां
होशियापुर, पंजाब
07.03.2021
# rudarpur_cycling_club

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