रविवार है तो साइकिलिंग, दोस्त, किस्से, कहानियां। पर आज साइकिल से पर गया नहीं पर फिर भी किस्से कहानियां तो हो सकते हैं।
पूर्णमाशी की शाम यँहा रूद्रपुर में कीर्तन दरबार करवाया जाता है। जो रूह की खुराक लेना चाहते हैं वो वँहा आते हैं ।
कल शाम कीर्तन के बाद वँहा बातें चल रही थी तो किसी ने कहा कि कुछ गुरबाणी शब्द ऐसे हैं कि वह सुनकर रो देते हैं ।
वह शब्द है
गलीएं चिक्ड्ड दूर घर
नाल प्यारे नेहूं
चलां ता भीजै कंबली
रहां तां तुट्टै नेहूं
भीजो सीजो कंबली
अल्लै बरसो मेहो
जाए मिलां तिनाह सज्जना
तुट्टो नाहीं नेहों
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बहुत जन्म बिछडे माधो
एहो जन्म तुम्हारे लेखे
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पहले शब्द का अर्थ है,
इस संसार रूपी गली में माया ( काम, क्रोध लोभ, मोह,अहंकार) का कीचड़ है और मुझे परमात्मा से मिलने जाना है, बारिश हो रही है। अब परमात्मा को मिलने जाना है तो कंबल, मतलब यह कंबल बारिश (माया) में भीग जाएगा, अगर नहीं जाता तो यह गल्त है।
फिर वो कहते हैं चाहे जितनी मर्ज़ी बारिश हो, मैं तो परमात्मा से मिलने ज़रुर जाऊंगा।
दूसरा शब्द भगत रविदास का है। इसमें वो कहते हैं हे परमात्मा तुमसे बिछडे बहुत जन्म हो गये हैं, अब यह जन्म तुम्हारी भक्ती में गुज़र जाए तो अच्छा।
कल का कीर्तन दरबार रविदास जयंति
पर था।
एक आदमी ने कहा था कि यह शब्द सुनकर रो देता है तो वँहा पर एक सज्जन ने सुधार किया, इसे "रोना" नहीं इसे "वैराग्य" कहना बेहतर होगा।
कबीर जी के भजन बहुत वैराग्य पैदा करते हैं।
अब दोस्तों की बात करते हैं।
कल गुरबानी में ही एक शब्द है जिसमें कृष्ण जी जब अपने मित्र सुदामा से मिलने आते हैं तो अपना सिंहासन छोड़कर सब कुछ भूलकर सुदामा , सुदामा पुकारने लगते हैं। इसी दोस्ती की मिसाल अक्सर दी जाती है कि एक सम्राट होने के बावजूद वो अपने बचपन के दोस्त को नहीं भूलें।
आज सुबह मेरे एक दोस्त ने ऑस्ट्रेलिया के समुद्र के किनारे की वीडियो भेजी। मुझे बहुत अच्छी लगी। उसी वक्त तस्वीरें यहां भी सूर्य का उदय हो रहा था तो मैंने अपने घर के आगे से हुए वीडियो बनाकर भेजी। उस दोस्त ने कहा कि कभी आस्ट्रेलिया अपने परिवार के साथ मेरे पास में छुट्टियां में जरूर आना। उसको भी रूद्रपुर में चाय वाले अड्डा बहुत पसंद है उसने कहा कि वह भी यहां पर छुट्टियां काटने जरूर आएगा।
अपने परिवार के साथ विदेशों में चाहे हम रह रहे हैं पर वहां पर रहकर भी अपने मुल्क में मिट्टी की याद आती है। मेरे बहुत सारे दोस्त हैं विदेश में रह रहे हैं, जब उनका फोन आता है तो घंटो बतिआते हैं।
वही पुरानी सरकारी बहुतकनीकी बठिंडा हॉस्टल की बातें। कई बार बेसिर पैर की इन बातों से मन हल्का हो जाता है।
मैं अपने दोस्त नवतेज से ऑस्ट्रेलिया में बात कर रहा था तो मैंने फोन में सुना कि झींगुर की आवाज़ आ रही थी। मैंने उसको पूछा उसने कहा यहां बहुत ही झींगुर हैं पर वो दिखाई नहीं देतें पर उनकी आवाज़ बहुत आती है।
दोस्तों के साथ खिलखिला कर हंसना हमारे मन के बहुत सारे बोधनों को खोल देता है और बहुत सारी बीमारियों से बचा देता है।
नहीं तो आप अपने इर्द गिर्द देखो जो बहुत कम हँसते हैं वह डाक्टरों के यँहा बैठे रहते हैं।
कल शाम कीर्तन दरबार में मुझे चन्ना जी मिलें वो रूद्रपुर में "जिंदगी जिंदाबाद" नाम से ग्रुप चला रहे हैं जिसमें वो अपनी टीम के साथ रुद्रपुर में 12:00 से 2:00 लेबर चौक में हर रोज़ लंगर लगाते हैं।
जब कोरोना शुरू हुआ तो तो तब उन्होंने में मुफ्त में मास्क भी बाँटें थे। श्री गुरु नानक देव जी की चलाई हुई लंगर की प्रथा आज दुनिया भर में चल रही है।
उनका कहना है दसों उंगलियों से कर्म करो, नाम जपो (भगवान का नाम) लो, वंड छको (मिलबाँटकर खाओ)
श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं अपनी कमाई का दसवां हिस्सा हमने दान करना चाहिए, जिसे दसवंध कहते हैं।
इसी में धर्म का सार है।
फिर मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
28.02.2021
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