Saturday, January 30, 2021

Journey Ramgarh and Kainchidham

पैरों में उसके सर को धरें, इल्तिजा* करें 
एक इल्तिजा, जिसका ना सर हो ना पैर हो
#उमैर नज्मी
*इल्तिजा -प्रार्थना

दोस्तों के साथ घूमना, बेसिर पैर की बातें करना, हंसी मज़ाक..... दिल को हल्का कर जाता है। हमें दो दिन की छुट्टी थी। पंकज ने मुझसे पूछा क्या करोगे? मैंने कहा कैंची धाम तक जाऊंगा। उसने कहा, इकट्ठे चलते हैं और जगविंदर को भी हम ने साथ ले लिया। दोपहर को 1:00 बजे रूद्रपुर से निकले और हल्द्वानी पहुंचे । हल्द्वानी से काठगोदाम। काठगोदाम में उडीपीवाला से मसाला डोसा खाया।  उनके मसाला डोसा का स्वाद ही अलग है। वहां से हम फिर भीमताल ।  रामगढ़ से पहले खाने पीने का सामान लिया।   आलू गोभी की सब्जी, और पीली दाल।
मैं घर से चाय बना कर ले गया था। वहां पर हमने चाय के लिए डिसपोज़ेबल गिला। खरीदे। फिर हमने चाय पी। चाय का एक कप नीचे गिर गया पर दूसरा मैनें संभाल कर रख लिया  क्योंकि वहां पर कचरा नहीं करना था। मैंने घुमक्कडी दिल से ग्रुप में देखा था कुछ लोग अपना सारा कचरा अपने साथ ही समेट कर रखते हैं । 
वहां से फिर हम शाम को रामगढ़ पहुंचे। वहां पर हरीश नाम का केयर टेकर था। उसको सारा सामान दिया । 
ठंड बहुत ज्यादा थी फिर हमने थोड़ा पहाड़ पर चक्कर लगाया । बैठकर गप्पे मारने लगे। जगविंदर ने खूब रौनक लगाई। दोबारा थर्मस से फिर चाय निकाली और पी।  हरीश को   कहा कि वह आग जला दे। हरीश बाहर से लकड़ियां लेकर आया और उसने आग जला दी।
मैनें देखा उसके पैर में केवल चप्पलें थी। मैनें पूछा ठंड नहीं लगती? वह मुस्कुरा दिया। पर उसकी मुस्कुराहट में जो दर्द छिपा था, मुझे जगजीत सिंह की गाई गज़ल याद आ गयी

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिसकै छुपा रहे हो?
आँखों में नमीं हँसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो?
क्या ग़म है जिसकै छुपा रहे हो?

कमरे में गर्मी हो गई थी। हम गप्पे मारने लगे और फिर रात का खाना बना खाना खाकर सोए।
खाना खाकर फिर टहलने निकले और मोबाईल की लाईट जला ली, क्योंकि मुझे किसी ने बताया था ,पहाड़ मे चलने के तीन ऊसूल हैं, एक तो हाथ में टार्च हो जो कि पहाड़ में जानवर समझता है आग है तो वह हमला नहीं करता।
दूसरा आप देखें आप पाँव कँहा रख रहे है, क्योंकि अगर फिसलन हुई तो आप गिर सकते है। तीसरा अगर चढाई है तो लगातार ना चढें , आप थक सकते हैं तो रास्ते में रूक कर , आराम करके चलें।
सुबह उठे तो हरीश को कहा कि पानी टंकी में भर दो तो उसने टुल्लू पंप चलाकर पानी भर दिया। उसने बताया यह पानी किसी स्त्रोत से खींचा जाता है। पानी तो उसने पानी भर दिया ।

फिर बेदी साब का फोन आया। वो बता रहे थे कि 1993 में होशियारपुर से चिंतपूर्णी तक जाते थे तो हर तरफ पेड़ होते थे पर पिछले साल जब वो उसी रूट से गये तो देखा सड़क के इर्द गिर्द सिर्फ होटल ही होटल हैं इसको तरक्की तो नहीं कह सकते। इन्हीं होटलों के कारण केदारनाथ में बाढ़ आई थी। 

सुबह हमने देखा सामने पहाड़ी पर हिमालय की पहाड़ियां बर्फ से ढकी हुई थी उनको देखने का लगे। बाहर निकले तो मैंने देखा तो फूलों की फोटो खींचे जो कि जिन की पंखुड़ियां जुड़ी हुई थी।

फिर हम घूमने निकल गया । आकर खाना खाया जब हम दोबारा निकले तो सूरज काफी ऊपर आ चुका था । मैंने  बाहर आकर देखा वही दो फूल देखे तो उनकी पंखुड़ियां खिल गई थी।
हरीश जी में खड़ा था मैंने उसको पूछा वह कहां से ? उसने बताया करो नेपाल से है और उसकी बीवी बच्चे मुंबई में रहते हैं। मैंने कहा यह उसने बताया कि उसकी लव मैरिज हुई। मैंने यह तो बहुत ही अच्छा। उसने बताया कि वह हर साल छुट्टी में दिसंबर में मुंबई जाता है पर इस साल कोरोना के चक्कर में नहीं जा सका । 
हमने यहां पर रामगढ़ हम ठहरे थे वहां देखा तो दिल्ली वालों ने बहुत सारे फ्लैट बना रखे हैं। हमने उसको पूछा कि यहां पर कोई है परमानेंट भी रहता है? तो हरीश ने बताया, कोई नहीं रहता बस लोग आते हैं  और चले जाते हैं।  
हम  पहाड़ घूमने जाते हैं पर पहाड़ का दर्द अलग ही है। वहां पर रहने वाले लोगों ने अपनी ज़मीनें बेच रहे हैं और दिल्ली के लोग वहां पर जगह खरीदकर, लाखों रूपये लगाकर अपनी रेस्ट हाउस बना लेते हैं। वहां पर नेपाल से या वँही से 
कई लोगों को नौकर रख लेते हैं। ज़मीन बेचकर वहां के लोकल लोग यहां पर रुद्रपुर, हल्द्वानी दिल्ली और बाकी जगहों का नौकरी करने आ गए है और वँहा के मकान बंद हो गये हैं। बंद मकान देखकर अपने गाँव पुरहीराँ, होशियारपुर,पंजाब का बंद मकान याद आ गया।

फिर हम ऊपर पहाड़ी पर निकले । वहां पर बहुत सारे बंदर थे। हमने अपने मोबाइल जेब में ही रखे क्योंकि अगर उनकी तस्वीर खींचने को निकालते तो हो सकता है वह उसे लेकर भाग जाते।  

फिर हम वापिस लौट आए।
हरीश ने बताया कि आप 10 साल पहले  ढाई से तीन फीट तक बर्फ गिर जाती थी  जो कि आप सिर्फ 6 इंची  गिरती है। और वो भी इस साल बिल्कुल नहीं गिरी वो भी  मौसम में बदलाव के कारण।
हरीश को अच्छे खाने के लिए उसका शुक्रिया अदा किया और फिर हम निकले। फिर भवानी के रास्ते हुए हम ज्योलीकोट को निकल गए। वँहा से भुट्टा लिया। उसने पूछा निंबू लगाना है या मिर्च की चटनी?
हमने कहा, मिर्च की चटनी दे दो। हमने मिर्च खा तो ली पर होंठ जल गये। वँहा पर एक लड़का था, बत्ता ने कहा, यार ग्राहक से पहले बता दिया करो कि मिर्च इतनी तेज़ है?
वह शराब में टुन्न था। वह बोला, साहब ऐसी तेज़ मिर्च खाने से पति पत्नी में झगडा हो तो सुलह हो जाती है। 
बत्ता जी बोले, दोस्त हम तीन दोस्त हैं, बीवी किसी की साथनहीं है और हमारा कोई झगडा भी नहीं है अपनी बीवी से।😀😀

हम कैंची धाम को चल दिए। वहां पर माथा टेका बैठे और कुछ देर बैठे।कोरोना के चक्कर चलते हुए वहां पर काफी सख्ताई है , फिर भी कई लोग वहां पर बिना मास्क के  बिना आ रहे थे। तो पुलिस वालों ने उनके मास्क लगवाएं। बाहर निकलकर  सामने ही पहाड़ी नींबू और माल्टे की शिकंजी पी। पास में एक दुकान थी यँहा कई किस्म के शर्बत थे। वँहा सिलवट्टे पर पिसा एक नमक था जिसको के वहां पर पहाड़ी नून कहते हैं वह खरीदा। फिर गाड़ी से हम वापस निकल लिए। यह नए रास्ते से वापस जा रहे थे। एक रास्ता ज्योलीकोट आते जाते हुए रास्ते में पायलट बाबा के मंदिर में रुके। वहां से फिर हमारी निकले दो गांव।
हमने चाय पी। हम  देख रहे थे सामने दो औरतें पहाड़ से घास लेकर वापिस आ रही थी। सिर पर बहुत सारा घास उठा रखा था उत्तराखंड में औरतें बहुत मेहनत करती हैं। वँहा के ज्यादातर मर्द तो शहरों में नौकरी कर रहे हैं। क ई जो गाँव में हैं वो उस भुट्टेवाले की तरह दारू पीकर टुन्न रहते हैं।
अक्सर खबर आती है, औरतें जंगल में गाय भैंस के लिए चारा लेने गयी तो चीते से सामना हो जाता है। अभी कुछ महीने पहले की ख़बर थी , जंगल में घास लेने गयी सास बहु को चीते ने हमला किया तो सास ने दातुरी से चीते पर पलटवार किया तो चीता ज़ख्मी हो गया।

काठगोदाम से होते हुए हम हल्द्वानी पहुँचे।वँहा बत्ता देखा  वँहा पर बाईकर्ज़ गैंग के लोग खडे थे। बत्ता जी ने कार रोकी और मुझे कहा , जाओ मिल आओ। 
मैं कर से नीचे उतरा। उनसे बातचीत हुई। उन्होनें बताया वह हल्द्वानी से ही हैं। मैनें उन्हें बताया, ,यही हल्द्वानी से ही चिराग़ मेहता हैं जो हर साल अपने रायल एन्फील्ड पर लेह लद्दाख जाते हैं फिर मैनें उनके साथ तस्वीर खिचवाई और बत्ता जी के बारे में बताया कि वह बजाज मोटरसाईकिल कंपनी में ही काम करते हैं। उन्होनें बताया वह हल्द्वानी से सुबह नानकमत्ता गए थे और अभी लौटे हैं।
 फिर हम निकल दिए रुद्रपुर को।
फिर मिलूंगा एक नयी यात्रा के किस्से के साथ। 
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
26.01.2021
#journey_ramgarh_and_kainchidham

No comments:

Post a Comment