आज मैं एक बहुत ही नाज़ुक विषय पर बात कर रहा हूँ वह है बच्चों की कोचिंग जो बडे बडे शहरों में होती है। शहरों में सैंकडों कोचिंग इंस्टिट्यूट हैं जो आई आई टी और एम बी बी एस की तैयारी करवाते हैं जिसमे 1.5 से 5 लाख रूपये पर सालाना लिये जाते हैं। इसमें 10 वीं के बाद में बच्चों को भेज दिया जाता है।
बच्चों की जो किशोरावस्था है उसमें 15 साल की उम्र में ये भावनाएं बहुत उग्र होती हैं तब ऐसे ही शहर में बच्चों को भेज देना यहां नशा है, एक अंधी दौड़ है, मैं माफी चाहता हूं मैं मां बाप को यहां पर जल्लाद लिख रहा हूं क्योंकि यह मां-बाप यह भी नहीं सोचते कि नाजुक से बच्चे जो भी के स्कूल से निकले हैं उनको एक ऐसे कोचिंग क्लास में भेज रहे हैं यहां पर पैसे के लालची भेड़िए बैठे हुए हैं, जिनको आपके बच्चों से कुछ नहीं लेना देना नहीं है उनको अपने पैसे से मतलब है। आपका बच्चा उनके लिए सिर्फ पैसे की एक मशीन है। वह खुद अंधी दौड़ में भागे हुए लोग हैं उनको अपनी कारें बड़ी करनी है, मकान बड़े करने हैं। वह आपके बच्चों को क्या शिक्षा देंगे? अगर वह कोई शिक्षा दे भी देते हैं तो आपके बच्चे क्या बनने वाले है? यह कभी सोचा है?
वह भी वैसे ही बनने वाले हैं जैसे वो कोचिंग सैंटर वाले हैं। कोटा में रहने वाले बच्चों में नींद कम हो रही है, वँहा बच्चों में आत्महत्या की गिनती बढ़ती जा रही है। आप यह अख़बारों में देख सकते हैं।
मेरा मक़सद आप में डर नहीं बल्कि समझ पैदा करना है।
यहां पर पूरे भारत से भारत के छोटे शहरों से बड़े शहरों से बच्चे आ रहे हैं।
आखिरी क्या देश को सिर्फ आईआईटी और एमबीबीएस ही चला रहे हैं? बाकी लोग कुछ नहीं है क्या?
एक किसान, एक नाई, एक सब्जी वाला, एक कुक? क्या इनके स्किल की कोई वैल्यू नहीं है ?
मुझे एक किस्सा याद आ रहा है तेहरान से एक टेलर बिज़ाद पाकज़ाद अमेरिका के शहर में गया। वहां पर उसने बहुत ही शहर में अपना एक शोरूम खोला । जिसमें उसने कोट सिलना शुरू किया। उसकी सिलाई बहुत ज्यादा थी। लोगों ने बोला तेरे पास कोई नहीं आएगा। पर 2 साल में वहां कोट की सिलाई के लिए इतना मशहूर हो गया कि वहां पर हॉलीवुड के सारे एक्टर, रूस के राष्ट्रपति पुतिन तक उस से कोट सिलवाने आने लगे। उस आदमी के पास पैसा देखकर आप हैरान हो जाएंगे उसके घर के बाहर पीले रंग की दुनिया की हर बेहतरीन गाड़ी खड़ी हैं। यँहा तक एक गाड़ी पीले रंग की रोल्स रॉयस कार भी खड़ी है । उस बंदे ने क्या किया? उस बंदे ने अपने शौक को अपना जुनून बनाया।
मेरे दोस्त मेजर मांगट ने अपनी किताब "असीं वी वेखी दुनिया" में यह लिखा है। यही करण है कि भारत में नशा बढ़ गया है, जो कवि बनना
चाहते हैं तो मां बाप पीट पीटकर उन्हें डाक्टर या इंजीनियर बना रहे हैं।
भारत का यह दुख है कि यँहा सिर्फ दो ही प्रोफेशन माने जाते हैं, पहला डाक्टर और दूजा इंजिनियरिंग।
अब हिटलर ,पेंटर बनना चाहता था,माँ बाप ने कहा, क्या करोगे पेंटर बनके?
उसने दूसरे विश्व युद्ध में हिटलर ने 10 लाख से ज्यादा लोग मारे।
ओशो कहते है, अगर हिटलर पेंटर बन जाता तो दुनिया का सबसे बेहतर पेंटर बनता।
मैं सरदारा सिंह जौहल जो कि पंजाबी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर हुए हैं उनकी आत्मकथा पढ़ रहा था, "रंगों की गागर "
उनको दो साल तक पढाई छोड़कर खेती करनी पडी ,पर वो बाद में वाइस चांसलर बने। उन्होनें चावल की नयी नयी किस्में भारत को दी वो भी दुनिया में घूम घूमकर।
इससे दो बातें सीखने को मिलती है कि जब भी हमारा बच्चा कभी फेल हो जाए तो मां-बाप को उसको स्वीकारना चाहिए। आजकल क्या है कि मां-बाप का सिंबल स्टेटस है मेरे बच्चे के नंबर 95% है। उस चक्कर में बच्चा अंदर से अंदर हीन भावना का शिकार होता है कई बार तो वह गलत रास्ते अख्तियार करता है। जिंदगी में हमेशा पास होना ही जरूरी नहीं होता, तो वह फेल भी हो सकता है। उसको बताना चाहिए उसको स्वीकार करना चाहिए, जो वह आगे बढ़ कर उसको कुछ और कमी को पूरा कर सके। दूसरी बात से यह सीखने को मिलती है कि जो लोग इतना जुनून पूरा करते हो कहीं ना कहीं जरूर पहुंचते हैं।
ऐसी अनगिनत उदाहरनें है जैसे कि पंडित जसराज । जब वह पढ़ने जाते थे रास्ते में वह क्लासिकल संगीत सुनने लगे। वह पढ़े नहीं, बाद में पूरा मैंने साल जब बीत गया तो उनके घर पर पता चला। पंडित जसराज जी ने संगीत में वह ऊंचाई हासिल की है हम इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके नाम पर नासा ने एक उपग्रह का नाम दिया है।
मैंने अपने दोस्त से बात की थी तो उसने बताया कि भारत में हालात इतने खराब है कि एक लड़का बाल काटता था। तो उसको लड़की वाले देखने आए तो लड़की वालों ने रिश्ता देने से मना कर दिया और कहा ,लड़का बाल काटता है? उसे मजबूरन उस बंदे को वह अपने प्रोफेशन चेंज करके कुछ ओर करना पड़ा तब जाकर उसकी शादी हुई।
क्या हम अपने बच्चों को सिर्फ और सिर्फ पैसे कमाने वाले रोबोट बनाना चाहते हैं?
हम जानते हैं कि रोबोट में भावना नहीं होती।
क्या हम सिर्फ भावना विहीन जगत बनाना चाहते हैं?
हम अपने बच्चों को क्यों नहीं सिखाते कि मन की शांति सबसे ऊपर है?
हम क्यों सोचते हैं कि वह जितना ज्यादा पैसा कमाएंगे उतना ही हम सुखी होंगे ?
ऐसे पैसे का क्या फायदा जिससे सुकून ही ना आए।
पर ऐसा बिल्कुल नहीं है। अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में जहां सबसे अमीर लोग रहते हैं वहां पर तीसरा आदमी डिप्रेशन का शिकार है।
रतन टाटा कहते हैं कि बच्चों को सिखाओ कि खुश रहना ही सबसे उत्तम है।
अब अगर रतन टाटा कह रहे हैं तो हमें उसके बारे में एक बार सोचना तो चाहिए!
चूहा दौड़ आखिर क्या करवा रही है?
हमारे युवा कहीं खो गया मोबाइल की चैटिंग में। आपके बच्चों का कोई मित्र सुबह गुड मॉर्निंग का मैसेज व्यटस अप्स पर हर रोज़ भेजता है तो उसको लगता है कि वह उसका सच्चा दोस्त है। पर क्या अपने दिल पर हाथ रख कर बता सकता है कि उसके अब वह अपने मन का दुख उससे शेयर कर सकता है ? अपने दोस्त से बेसिर पैर की बातों पर मन खोल कर सकता है, हस सकता है, नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
तो यह बातें मां-बाप को देखनी होगी लड़का और लड़की दोनों को रसोई में खाना बनाना आना चाहिए, प्याज काटना, तड़का लगाना, चावल बनाना भी।
आप सोच रहे हो इससे क्या? क्योंकि जो आपके हाथ से काम करके आपको आत्म संतुष्टि मिलती है वह कहीं भी नहीं मिलती ।
घर के गमले में पौधों को पानी देना, उन्हें बढ़ते हुए देखना, सुबह साइकिलिंग करने जाना, तितलियां देखना, पंछियों की चहचहाट को सुनना, पेड़ के पत्तों पर गिरी ओस की बूंदों को देखना , इससे आपके अंदर की भावना उत्पन्न होगी कि जो पौधा है वह धीरे धीरे बढ़ता है।
जैसे कबीर कहते हैं
धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय
बच्चों में डिप्रेशन का एक और कारण भी है। कुछ मां बाप अपने बच्चों को एक साल में दो क्लास करवाते हैं, इससे बच्चों पर मानसिक दबाव बढ़ता है। कई बच्चे मां बाप को बता नहीं पाते और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। यह बहुत ही खतरनाक है। जब वह बच्चे बड़े होंगे अपने मां-बाप को या तो वृद्ध आश्रम में छोड़ देंगे या कोई अपराध करेंगे ।
पर इसकी जिम्मेदारी हम देश या व्यवस्था को देकर अपने गुनाहों से मुक्त नहीं हो सकते।
हमें अपने बच्चों के दोस्त बनना होगा कि
वह हमको अपना दुख बता सकें।
हम उनको को इतना परिपक्व करें कि उनके साथ कुछ गलत हो या उनसे कोई गलती हो जाए तो वो हमको बिना किसी झिजक के बोल सकें।
एक बार एक लड़की मुझे मिली। वह बहुत ही ज्यादा परेशान थी। उसका तलाक हो गया था। मैंने उससे पूछा कि तूने कभी गमलों को पानी दिया, उसने कहा नहीं , मेरी मां देती है।
मैंने उसको पूछा क्या तुमने कभी अपनी माता के सिर में सरसों का तेल लगाया?
उसने कहा नहीं।
तो मैनें कहा, जब तुम अपने मां बाप को प्यार ही नहीं करते, तुम अपने घर के गमलों को पानी ही नहीं देते, तुम कैसे कह सकते हो तुम सुखी हो जाओगे।
तो तुम क्या सोचते हो कि तुम्हारे पास एप्पल का फोन आ जाएगा और तुम सुखी हो जाओगे?
नहीं, बिल्कुल नहीं।
सुविधाओं को इकट्ठा करना और उसको भोगना जीवन नहीं है, ना ही सुविधाओं का त्याग करना जीवन है । जीवन इससे बहुत ही ऊपर की चीज़ है।
मुझे एक चुटकुला याद आ गया। एक बार एक लड़का अख़बार बेच रहा था। वह ऊँची ऊँची आवाज़ में कह रहा था आज की ताज़ा खबर आज की ताज़ा खबर, एक आदमी ने 99 लोगों को बेवकूफ बनाया। एक आदमी ने एक अख़बार खरीदा। तुरंत वह लड़का कहने लगा, आज की ताज़ा खबर, एक आदमी ने 100 आदमियों को बेवकूफ बनाया।😀😀
तो इन कोचिंग सैंटर के चक्करों में ना पडें, बल्कि अपने बच्चों को वो बनाएं जो वो बनना चाहते हैं।
मेरा इतना ही कहना है अपने जीवन में समझदार बनें। हो सकता है मैं नहीं जितनी बातें लिखी वह सारी झूठ हो, पर एक बार अपने मन को टटोलें, अपने दिल पर हाथ रख कर देखिए क्या यह बातें सच है? एक बार परख करें।
दोबारा फिर कभी एक विषय पर बात होगी आज के लिए इतना ही।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर,
उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
20.01.2021
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