रविवार है तो दोस्तों के साथ बातचीत करने का मन हुआ क्योकिं लाकडाऊन के चलते साईकलिंग नही हो रही। आज सुबह ही बादल घिर आए और अब बारिश शुरु हो गई है।
संजीव जी ऑनलाइन हुए ।
उन से बातचीत हुई तो मैनें पूछा, बच्चे क्या कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा कि उनका छोटा बेटा ड्राइंग करता है। ड्राइंग करने में भी उन्होंने एक दिलचस्प बात बताई कि इससे आदमी का सोचने की शक्ति बढ़ती होती है और कल्पना जगत भी फैलता है, कि जैसे कि बच्चा जो सीधी लाइन लगाता है तो उसको पता होता है अगर वो लाइन को टेढा करेगा तो इससे क्या बनने वाला है? वह बता रहे थे कि जितनी भी वह ए 4 शीटें लेकर आते हैं उनका बेटा उस पर अपनी ड्राइंग करने लगता है। अच्छी बात है अपनी कल्पना जगत को बढ़ाना।
मेरे घर के आगे जो गुलमोहर का पेड़ है, वो 4 से 25 April तक कितना हर भरा हो गया है और अब तो लाल रंग के फूल भी आ गये हैं, उसकी तीनों तसवीर शेयर कर रहा हूँ, पर बाएँ से दाएँ देखें।
अभी मैं सोच रहा था अपने हॉस्टल के दिनों की डायरी के बारे में लिखने के लिए। तो मेरे दोस्त ने बहुत अच्छी बात कही, एक तो डायरी बहुत लंबी हो जाएगी और जो लोग उसका हिस्सा नहीं है उनको बोर करेगी। दूसरा हो सकता है उनमें से अगर आप वही नाम ले तो सामने वाले को आप से नफरत भी होने लगे, क्योंकि हॉस्टल के दिनों में जिनके नाम उल्टे सीधे थे आज वो बहुत अच्छी पोस्ट पर है, कोई बिज़नेसमैन है ।
संजीव जी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि इसको संस्मरण कहते हैं। उन्होंने भी पंतनगर यूनिवर्सिटी में रहते हुए अपने दोस्तों के साथ जो खुशनुमा पल बिताए हैं उनके ऊपर होने दो बार संस्मरण भी लिखे हैं, पर इन संस्मरण में वह उसका पूरा नाम ना लेकर उसके शहर का नाम ले लेते हैं। इससे पढ़ने वाले को मजा भी आता है और जिसकी यह बात होती है उसको बुरा भी नहीं लगता। अब उन्होंने कई उनके कई साथी अच्छी-अच्छी पोस्ट करें क्योंकि उन्होंने आईआईटी रुड़की से पास आउट किया है कोई यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में सिविल डिपार्टमेंट का एच ओ डी है और कोई एनटीपीसी में।
बाकी दोस्त शायद व्यस्त हैं तो हो हमें जवायन नहीं कर पाए पर वो यह पोस्ट पढ़ कर इसको ही पूरा मजा ले सकते हैं।
इसी लॉक डाउन के दौरान बहुत सारे अच्छे काम भी हो रहे हैं । जैसे कि हमारे एक दोस्त है राजू विश्वकर्मा उन्होंने अपने घर में अपनी माता और पत्नी के से 50 फेस मास्क बनाए और लोगों को मुफ्त में बांटें हैं। यह सराहनीय काम है।
ऐसे ही संजीव जी ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर लगभग डेढ़ लाख रुपये इक्ट्ठा करके दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल में 300 पी पी ई दिए हैं, जिसमें पूरी ड्रेस होती है जो के डॉक्टर पहनकर जाता है कोविड-19 मरीजों का इलाज करने के लिए। उन्होनें अपने यहां पर पंतनगर यूनिवर्सिटी में काम करने वाले लोगों के लिए भी 25 ऐसे पीपी ई ड्रेस मंगवाए हैं। ऐसे बहुत से लोग लगे हुए हैं जो कि पूरी दुनिया का भला मांग रहे हैं इन सभी को बहुत सलाम।
आज मुझे" दो आंखें बारह हाथ" फिल्म याद आ रही है। वी शांताराम की एक बहुत ही क्लासिक फिल्म है एक जेलर जो कि 6 कैदियों को सुधारता है।उसमें एक खिलौने वाली होती है वो एक बहुत ही अच्छा गाना गाती है
आओ आओ होनहार ओ प्यारे बच्चे
प्यारे बच्चे, उम्र के कच्चे ,बात के सच्चे
जीवन की इक बात सुनाऊं
जीवन की एक बात सुनाऊं
मुसीबतों से डरो नहीं
बुज़दिल बनके मरो नहीं
रोते रोते क्या है जीना
नाचो दुख में तान के सीना
रात अंधियारी हो
घिरी घटाएं कारी हो
रास्ता सुनसान हो
आंधी और तूफान हो
मंजिल तेरी दूर हो
पाँव तेरे मजबूर हो
तो क्या करोगे ?
रुक जाओगे
तका तका धुम धुम
तका तका धुम धुम
देश में बिपता भारी हो
जनता दुखियारी हो
भुखमरी अकाल हो
आंधी और तूफान हो
मुल्क में हाहाकार हो
चारों तरफ पुकार हो
तो क्या करोगे
चुप बैठोगे?
नहीं
तका तका धुम धुम
इसका जिक्र मैं इसलिए कर रहा हूं क्योंकि आज देश को उन लोगों की ज़रूरत है जो अपने सुख को त्याग कर दूसरों की सेवा करने में लगें।
इस फिल्म में 6 कैदी हैं जो कि बहुत ही खूंखार होते हैं, कई कैदियों ने कत्ल भी किया होता है। उनके मन को बदलना बहुत ही मुश्किल काम था, एक जेलर अलग अलग तरीके से कैसे उनको बदलता है , वो फिल्म देखने पर ही पता चलता है। वो बंजर ज़मीन को खेती के लायक बनाते हैं , फिर खेती करते हैं। शैतान लोग उनके खेत में जंगली जानवर छोड़ देते हैं और फसल तबाह कर देते हैं। तो उसी जंगली जानवर के सीन फिल्माते हुए वी शांताराम के बहुत गहरी चोट लगी थी, यह बात उन्होंने अपनी अगली फिल्म नवरंग के शुरुआत में बताई। इसमें जेलर का रोल वी शांताराम ने खुद निभाया है।
फिल्म के आखिर में एक गीत गाया जाता है जो कि हम लोगों में छोटे होते हैं अपने मॉर्निंग प्रेयर में भी गाया है।
ऐ मालिक तेरे बंदे हम
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चलें
और बदी से टलें
ता कि हसते हुए निकले दम
डॉक्टर, पुलिस, सफाई कर्मी, बैंक वाले सब लगे हुए हैं वह भी अपनी जान पर खेलकर हमारे लिए सारा काम कर रहे हैं । तो हम सब मिलकर यह प्रार्थना करें कि वो भी सुरक्षित रहें अपने परिवार के साथ। कहते हैं दवा से ज्यादा असर दुआ में होता है।
तो फिर मिलेंगे एक नए किस्से के साथ।
अभी के लिए विदा लेता हूंँ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
26.04.2020
#rudarpur_cycling_club
#sunday_diaries
संजीव जी ऑनलाइन हुए ।
उन से बातचीत हुई तो मैनें पूछा, बच्चे क्या कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा कि उनका छोटा बेटा ड्राइंग करता है। ड्राइंग करने में भी उन्होंने एक दिलचस्प बात बताई कि इससे आदमी का सोचने की शक्ति बढ़ती होती है और कल्पना जगत भी फैलता है, कि जैसे कि बच्चा जो सीधी लाइन लगाता है तो उसको पता होता है अगर वो लाइन को टेढा करेगा तो इससे क्या बनने वाला है? वह बता रहे थे कि जितनी भी वह ए 4 शीटें लेकर आते हैं उनका बेटा उस पर अपनी ड्राइंग करने लगता है। अच्छी बात है अपनी कल्पना जगत को बढ़ाना।
मेरे घर के आगे जो गुलमोहर का पेड़ है, वो 4 से 25 April तक कितना हर भरा हो गया है और अब तो लाल रंग के फूल भी आ गये हैं, उसकी तीनों तसवीर शेयर कर रहा हूँ, पर बाएँ से दाएँ देखें।
अभी मैं सोच रहा था अपने हॉस्टल के दिनों की डायरी के बारे में लिखने के लिए। तो मेरे दोस्त ने बहुत अच्छी बात कही, एक तो डायरी बहुत लंबी हो जाएगी और जो लोग उसका हिस्सा नहीं है उनको बोर करेगी। दूसरा हो सकता है उनमें से अगर आप वही नाम ले तो सामने वाले को आप से नफरत भी होने लगे, क्योंकि हॉस्टल के दिनों में जिनके नाम उल्टे सीधे थे आज वो बहुत अच्छी पोस्ट पर है, कोई बिज़नेसमैन है ।
संजीव जी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि इसको संस्मरण कहते हैं। उन्होंने भी पंतनगर यूनिवर्सिटी में रहते हुए अपने दोस्तों के साथ जो खुशनुमा पल बिताए हैं उनके ऊपर होने दो बार संस्मरण भी लिखे हैं, पर इन संस्मरण में वह उसका पूरा नाम ना लेकर उसके शहर का नाम ले लेते हैं। इससे पढ़ने वाले को मजा भी आता है और जिसकी यह बात होती है उसको बुरा भी नहीं लगता। अब उन्होंने कई उनके कई साथी अच्छी-अच्छी पोस्ट करें क्योंकि उन्होंने आईआईटी रुड़की से पास आउट किया है कोई यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में सिविल डिपार्टमेंट का एच ओ डी है और कोई एनटीपीसी में।
बाकी दोस्त शायद व्यस्त हैं तो हो हमें जवायन नहीं कर पाए पर वो यह पोस्ट पढ़ कर इसको ही पूरा मजा ले सकते हैं।
इसी लॉक डाउन के दौरान बहुत सारे अच्छे काम भी हो रहे हैं । जैसे कि हमारे एक दोस्त है राजू विश्वकर्मा उन्होंने अपने घर में अपनी माता और पत्नी के से 50 फेस मास्क बनाए और लोगों को मुफ्त में बांटें हैं। यह सराहनीय काम है।
ऐसे ही संजीव जी ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर लगभग डेढ़ लाख रुपये इक्ट्ठा करके दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल में 300 पी पी ई दिए हैं, जिसमें पूरी ड्रेस होती है जो के डॉक्टर पहनकर जाता है कोविड-19 मरीजों का इलाज करने के लिए। उन्होनें अपने यहां पर पंतनगर यूनिवर्सिटी में काम करने वाले लोगों के लिए भी 25 ऐसे पीपी ई ड्रेस मंगवाए हैं। ऐसे बहुत से लोग लगे हुए हैं जो कि पूरी दुनिया का भला मांग रहे हैं इन सभी को बहुत सलाम।
आज मुझे" दो आंखें बारह हाथ" फिल्म याद आ रही है। वी शांताराम की एक बहुत ही क्लासिक फिल्म है एक जेलर जो कि 6 कैदियों को सुधारता है।उसमें एक खिलौने वाली होती है वो एक बहुत ही अच्छा गाना गाती है
आओ आओ होनहार ओ प्यारे बच्चे
प्यारे बच्चे, उम्र के कच्चे ,बात के सच्चे
जीवन की इक बात सुनाऊं
जीवन की एक बात सुनाऊं
मुसीबतों से डरो नहीं
बुज़दिल बनके मरो नहीं
रोते रोते क्या है जीना
नाचो दुख में तान के सीना
रात अंधियारी हो
घिरी घटाएं कारी हो
रास्ता सुनसान हो
आंधी और तूफान हो
मंजिल तेरी दूर हो
पाँव तेरे मजबूर हो
तो क्या करोगे ?
रुक जाओगे
तका तका धुम धुम
तका तका धुम धुम
देश में बिपता भारी हो
जनता दुखियारी हो
भुखमरी अकाल हो
आंधी और तूफान हो
मुल्क में हाहाकार हो
चारों तरफ पुकार हो
तो क्या करोगे
चुप बैठोगे?
नहीं
तका तका धुम धुम
इसका जिक्र मैं इसलिए कर रहा हूं क्योंकि आज देश को उन लोगों की ज़रूरत है जो अपने सुख को त्याग कर दूसरों की सेवा करने में लगें।
इस फिल्म में 6 कैदी हैं जो कि बहुत ही खूंखार होते हैं, कई कैदियों ने कत्ल भी किया होता है। उनके मन को बदलना बहुत ही मुश्किल काम था, एक जेलर अलग अलग तरीके से कैसे उनको बदलता है , वो फिल्म देखने पर ही पता चलता है। वो बंजर ज़मीन को खेती के लायक बनाते हैं , फिर खेती करते हैं। शैतान लोग उनके खेत में जंगली जानवर छोड़ देते हैं और फसल तबाह कर देते हैं। तो उसी जंगली जानवर के सीन फिल्माते हुए वी शांताराम के बहुत गहरी चोट लगी थी, यह बात उन्होंने अपनी अगली फिल्म नवरंग के शुरुआत में बताई। इसमें जेलर का रोल वी शांताराम ने खुद निभाया है।
फिल्म के आखिर में एक गीत गाया जाता है जो कि हम लोगों में छोटे होते हैं अपने मॉर्निंग प्रेयर में भी गाया है।
ऐ मालिक तेरे बंदे हम
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चलें
और बदी से टलें
ता कि हसते हुए निकले दम
डॉक्टर, पुलिस, सफाई कर्मी, बैंक वाले सब लगे हुए हैं वह भी अपनी जान पर खेलकर हमारे लिए सारा काम कर रहे हैं । तो हम सब मिलकर यह प्रार्थना करें कि वो भी सुरक्षित रहें अपने परिवार के साथ। कहते हैं दवा से ज्यादा असर दुआ में होता है।
तो फिर मिलेंगे एक नए किस्से के साथ।
अभी के लिए विदा लेता हूंँ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
26.04.2020
#rudarpur_cycling_club
#sunday_diaries
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