Tuesday, April 7, 2020

Journey to Almora, Jageshwar and Kausani

आदमी मुसाफिर है
आता है जाता है
आते जाते रस्ते में
यादें छोड़ जाता है

यह यात्रा भी है दिसंबर 2016 की। वो भी अल्मोडा , जागेश्वर और कौसानी की। जिसमें हैं अकेलेपन की मस्ती, आमलेट वाला परांठा, सुमित्रानंदपंत के घर की यात्रा, पहाडी भाषा और खाने की मिठास।

 हमारी कंपनी में दिसंबर में शटडाउन होता है, तो चार-पांच दिन की छुट्टी होती है। उन दोनों में ट्रेन धुंध के कारण कई कई घंटे देरी से चलती हैं। तो इसलिए इस बार मैंने प्लान किया मैं कहीं पहाड़ पर घूम कर आओ। रुद्रपुर में अपने दोस्तों से बात की कोई भी तैयार नहीं हुआ तो अपने परिवार से सलाह की पर वो भी तैयार ना हुए तो अकेले ही बैग उठाया और मैं निकल लिया यात्रा पर।

 रुद्रपुर से हल्द्वानी पहुंचा वहां से एक टैक्सी ली और फिर अल्मोड़ा के लिए निकल गया। टैक्सी ड्राइवर से बतियाते हुए, पहाड़ियों को देखते हुए , बादलों पेड़ों दरिया को देखते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में एक जगह रुके भी वहां पर चाय पी। लोगों ने मैग्गी खाई और फिर हम बढ़ गए। ये सफर मैं बस से सफर नहीं करता क्योंकि मेरे एक कुलीग निशांत आर्य ने बताया था कि पहाडी इलाके में डीजल की बदबू से लोगों को उल्टी आने लगती है और तो सारी बस के यात्रियों का मूड भी खराब हो जाता है।


 रास्ते में जाते हुए मुझे एक लड़का मिला वह दिल्ली से आया हुआ था । उसने बताया कि वह अपने घर पर पूजा करने जा रहा है।इस पूजा में वो लोग जंगल में जाते हैं ।वहां पर रात भर आग जलाकर पूजा करते हैं। वहां पर शायद बकरा काटा जाता है। वो बता रहा था कि किसी कि किसी एक आदमी में आत्मा प्रवेश करती है। वो सभी लोग उस आदमी की पूजा करते हैं। वह मुझे कह रहा था कि आज की रात उसके साथ चले। वह जंगल में लेकर जाएगा। मैंने कहा, नहीं भाई मैं ऐसी जगह पर नहीं जाता।

तो जी हम  पहुंच गए हम अल्मोड़ा। वहां पर एक होटल में रुका।
मैं जल्दबाजी में घर से निकला था । मेरे पास गर्म इन्नर और लोअर नहीं थे। फिर मैं होटल के कमरे से निकला। वहां पर अल्मोड़ा के लाल बाजार की तरफ बढ़ गया । मैं देख रहा था कि लोग अपनी मस्ती में घूम रहे थे। परिवार वाले अपने बीवी बच्चों के साथ मस्ती कर रहे थे, बुढ्ढे बीडी और जवां सिग्रेट का धुंआ उडा रहे थे।  एक छोटी सी पगडंडी से लाल बाजार पहुंचा। ये लाल बाजार बहुत मशहूर है।

उत्तराखंड के लोकगीतों में इसका बार बार जिक्र आता है
अल्मोड़ा लाल बाजारो
अल्मोड़ा की बाल मिठाई

 इस लाल बाजार में बाल मिठाई मिलती है जो कि हमारे पंजाब की चाकलेट बर्फी जैसी होती है , उसके ऊपर सफेद गोलियां होती हैं जैसे कि होम्योपैथी में दवाई के तोर पर मिलती है । यह बहुत मीठी और स्वादिष्ट होती है। फिर मैंने एक दुकान से लोअर और इन्नर खरीदा।

 मैं होटल लौट आया।उसी होटल में साल पहले  मेरे कुलीग निशांत ने कमरा बुक करवाया था।  रात को उसी रेस्तरां पर खाना खाने गया यहां पर अपनी फैमिली के साथ साल पहले गया था । ऐसा भी था कि अपने परिवार के साथ गुज़रे वक्त को याद कर रहा था।
 मुझे याद आ रहा है जब मैं साल पहले उसी होटल में आया था तो हम सभी रात को रेस्टोरेंट में खाना खाकर आए तो इस कमरे में सो गए थे। फिर सुबह उठे तो ऐसी रेस्टोरेंट में जाकर ब्रेकफास्ट करके आए थे । मेरे छोटे बेटे वंश ने कहा पापा इस घर में ही रहो। यह बहुत अच्छी जगह है, यहां पर किसी सामान की कोई चिंता नहीं है। कमरा बिल्कुल खाली है, जब भूख लगे तो बाहर जाओ खाना खाओ। हैं। बच्चों के विचार कितने कमाल के होते हैं!😊😊


खाना खाकर अभी थोड़ी देर पहले फिर अपनी बालकनी से रात का नजारा देखा। ठंड बहुत ज्यादा थी, पर सामने पहाड़ियों पर घरों की देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने पहाड़ी पर छोटे-छोटे दिए जला दिए हों।



 फिर मैं सो गया। सुबह उठा फ्रेश होकर खाना खाया और वहां से जागेश्वर के लिए निकल गया। वहां पर कोई बस तो मिल नहीं रही थी एक बोलेरो बड़ी मुश्किल से मिली। उस ड्राईवर से बातें होने लगी। रास्ते में लोगों के घर देखते हुए जा रहा था, लोगों ने घरों पर नक्काशी कर रखी थी। कोई  आदमी गाड़ी में सामान दे रहा था वह किसी ओर जगह छोड़ना था । एक गाड़ी कितना कुछ करती है ये मैं जान रहा था ।
 जागेश्वर के रास्ते में एक मंदिर था। वँहा पर हम लोग रूके। वो शिव जी का प्राचीन मंदिर है। वहां पर मैंने माथा टेका। वहां पर साऊथ से आए हुए कुछ लोग थे,वो फोटोग्राफी कर रहे थे।  मैनें कुछ फोटो खिचवाई । ड्राईवर ने कहा कुछ ओर तस्वीर खिंचवा लो। मेरे पैरों का खून ठंड से जमने को हो रहा था, मैं फटाफट गाडी में आकर बैठ गया। ये मंदिर पहाड़ी के ओट में है ,यँहा पर सूरज की रोशनी बिलकुल नहीं आती इसी के कारण यँहा इतनी ठंड रहती है। वँहा  एक जगह से पानी बह रहा था । वो पानी  हमने पिया। ड्राइवर ने उस पानी से अपनी गाड़ी को साफ किया। उसने बताया यँहा पास ही उसका घर है वँहा मुझे ठहरने का न्योता भी मिला। पर मैनें होटल में चैक आऊट नहीं किया था तो ये प्लान कैंसिल किया।

 फिर हम जागेश्वर पहुंचे।
जागेश्वर का मंदिर 7वीं और 12वीं शताब्दी के बीच में बनाया गया है। यह सोनू का एक समूह आध्यात्मिक तौर पर इस मंदिर की बहुत महत्व है। ये 100 मंदिरों का एक समूह है। ये सारे शिव के मंदिर हैं।
शिव शक्ति का प्रतीक हैं और पार्वती माया का।
 शक्ति और माया के मिलन से ही संसार पैदा होता है। शिव और पार्वती दुनिया की अर्धनारी और अर्धपुरुष की तस्वीर सिर्फ भारत में ही दिखाई देने को मिलती है। इसका मतलब है कि हर मानव आधा स्त्री और आधा पुरुष के मिलन से बना है। भारत में जब शादी होती है तो औरत को हमेशा बाईं तरफ बिठाया जाता है। जब हम सांस लेते हैं तो हमारा दायाँ नथुना सूर्य है और बाँया चंद्रमा। इसीलिए औरत के बाईं तरफ बिठाया जाता है जो कि वो  सूर्य को  चंद्रमा  की ठंडक से बैलेंस रखे।

वहां पर एक तरफ खुला सा मैदान था।आगे बढ़ने पर मंदिर पहुँचे। इस मंदिर के अंदर बहुत सारे मंदिर हैं। इस मंदिर की बहुत मान्यता है। मंदिर में अंदर घुसते ही वहां पर बाएं तरफ से अग्न कुंड में अग्नि जल रही है।




 वो  बहुत सालों से निरंतर जल रही है उसकी राख को  लोग अपने घरों पर भी लेकर  जाते हैं। आगे बढ़ा तो वँहा मुख्य मंदिर है। वहां पर पीले रंग का यह टीका लगाया जाता है। मैंने देखा वहां पुलिस वाले भी थे।वहां पर तो पत्थर इतना ठंडा था कि पूछो मत।  वहां पर माथा टेका। फिर बाहर निकला। बाहर दुकान से शिवलिंग खरीदा। आगे बढ़ने पर एक म्युजिअम देखा। अंदर गया तो देखा वहां पर कई मूर्तियां रखी हुई हैं। अपने भूतकाल से रूबरू हुआ।

फिर चल दिये हम अल्मोडा।अल्मोड़ा आने से पहले चितई मंदिर आता है। यँहा पर हुई लोग अपने मन की मुराद माँगते हैं, वो उसे एक कागज़ पर लिखकर टाँग देते हैं। वँहा पर हजारों पीतल की घंटियाँ बाँधी हुई है। एक छोटी सी घंटी से लेकर बहुत बडी घंटी।

 मैं मंदिर के दर्शन के लिए कतार मे था । पीछे एक औरत थी। उस  से एक बंदर उसका सामान  छीन कर भाग गया। उसके हाथ में ₹50 थे वो भी साथ लेकर चला गया। वहां पर एक पुलिस  और मंदिर वालों ने उसको मिलकर उस बंदर को भगा दिया। मैनें मंदिर में माथा टेका।

 मैं वापिस आकर रात को होटल पर खाना खाकर सो गया।  सुबह टैक्सी स्टैंड वाले कुछ बातें कर रहे थे आमलेट वाला परांठा।
मै वँहा गया तो एक चाय बनाने वाला वो स्पेशल परांठे बना रहा था। मैनें देखा उसने एक परांठा बनाया उस को बीच में से उसने  चाकू से कट लगाकर उसके अंदर अंडे का घोल डालकर फ्राई किया। आमलेट परांठा की तस्वीर शेयर कर रहा हूँ।



मैंने रोटी खाई और चाय पी।

यहां पहाड़ में " ठैरा " शब्द का इस्तेमाल बहुत किया जाता है । ये शब्द उनके मुंह से सुनने में बड़ा अच्छा लगता है। जैसे कि कहते हैं "मैं शहर गया ठैरा", इसका मतलब है अपनी ही बात को पुष्टि कर रहा । वैसे शायद ये हिंदी के शब्द ठहरा  ही है।


फिर टैक्सी लेकर निकल गया कोसानी के लिए। रास्ते में ड्राइवर से बातें करता हुआ जा रहा था। तो मैंने देखा गांव की जिंदगी मे बहुत संघर्ष है। जो लोग पढ़ लिखने घर से निकलते हैं वह दिल्ली ,हरिद्वार या रूद्रपुर में नौकरी करने लगते  हैं और  जो पढ़े लिखे नहीं  वो टैक्सी चला रहे हैं या होटल में काम कर रहे हैं।

 एक जगह किसी औरत  ने गाडी को हाथ देकर रोका। उसने कहीं जाना था। उसने पूछा कि फलाने गाँव तक छोड़ दो। ड्राइवर ने कहा 25क् रुपये लगेंगे। उसने कहा ₹20 । तो ड्राईवर ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी। मैंने कहा कि तुम्हें ₹20 ले लेने चाहिए थे। उसने कहा, जी अगर मैं आज ₹20 देता हूं तो यह रेट भी ऐसे ही रह जाएगा। कल को ये लोग ₹15 कर देंगे तो इस जगह पर हमारा गुजारा ओर भी मुश्किल हो जाएगा।
 वो ड्राइवर स्वाभिमानी था।

 हम शाम को कोसानी पहुंच गया।
 उतर कर एक होटल में कमरा लिया।
 होटल से बाहर निकला तो अंधेरा हो चुका था। वहां पास में ही गांधी आश्रम था ,तो होटल वालों ने कहा वहां पर सुबह चले जाना। फिर मैंने वहां पर एक रेस्टोरेंट का पता किया। पहाड़ी रास्तों से पगडंडियों से गुज़रता हुआ  गलियों में वहां  पर पहुंचा ।वहां पर खाना खाया। बहुत ठंडी हवा चल रही थी।

 मैं अपने होटल में कमरे में सो गया। सुबह फ्रेश होकर फिर उसी होटल पर खाना खाया।
फिर पैदल चल दिया गांधी आश्रम की ओर।चीड़ के पेड़ों के रास्ते से गुज़रकर मैं वँहा पहुंचा। वहां पर गांधी जी के जीवन जुडी तस्वीरें हैं, जिसमें उनके जीवन के बारे में बताया गया है। बिल्कुल उसके बाहर गांधीजी के तीन बंदर हैं।




 बाहर दीवार पर गांधीजी के विचार लिखे हुए हैं। उनमें उन्होंने गांव की जिंदगी, आदमी की वासना के बारे में लिखा हुआ है।  मेरा हॉस्टल में नाम गांधी है।
 वहां पर  बैठने की एक जगह बनी हुई थी और एक जगह पर चबूतरा बना हुआ है। वँहा से हिमालय दर्शन होता है। सूर्य की धूप में बर्फ के के सफेद पहाड़ चमक रहे थे। 10 मिनट वँहा हिमालय पर्वत  श्रंखला  निहारता रहा। पास में ही  बच्चे  क्रिकेट खेल रहे थे।
  फिर मैं वहां से नीचे उतरा इस बार मैं उसी रास्ते से वापस ना होते हुए दूसरे रास्ते से आया क्योंकि मैंने अलफ्रेड नोबेल का एक विचार पढा था, कि दफ्तर  जाने के अलग-अलग रास्ते पर जाओ इससे जिंदगी में बोरियत महसूस नहीं होगी। तो जैसे ही मैं पहाड़ी के नीचे उतर रहा था तो देखा वहां पर एक म्यूजियम था वो  सुमित्रानंदन पंत का घर था,जिसको म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया था। अगर मैं उसी रास्ते से वापिस जाता जिससे आया था तो इस जगह से वंचित रह जाता।

वो प्रकृति के महान कवि थे और  हरिवंश राय बच्चन जी के दोस्त थे। उस मे उनके जीवन की  तस्वीरें और कविताएँ थी।
होटल पर आकर चेक आउट किया और फिर बोलेरो पकड़ी। रास्ते में एक मंदिर पर  माता के गाना मंदिर के पुजारी ने ड्राईवर के टीका लगाया। यँहा के लोगों की मान्यता है कि इस से यात्रा मंगल रहती है।
पहाड़ के रास्ते हल्द्वानी से होते हुए मैं वापिस आ गया।
आज कू लिए विदा लेता हूँ। फिर मिलूँगा एक नयी यात्रा के किस्से के साथ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड

06.04.2020

2 comments:

  1. अकेलेपन की मस्ती वाह ऑमलेट वाला पराठा...वाह बढ़िया दोस्तों परिवार के साथ प्लान नहीं बना तो अकेले ही निकल लिये...आप गए नहीं उस लड़के के साथ पूजा में....लाल बाजार की खासियत क्या है अल्मोड़ा में और आपने अल्मोड़ा में कौनसे होटल में स्टे किया था...एक चीज नोटिस की है कि जब भी आप गाडी से कही जा रहे थे आप ड्राइवर से बाते करने की बात जरूर लिखते है..अल्फ्रेड नोबल का विचार पीछे कौसानी से दीखता त्रिशूल....बढ़िया यादे बढ़िया यात्रा...

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  2. Shukriya Pratik bhai. Isme thida detail me isliye nahi likha gaya kyoki maine kal hi likha. Ab to diary pe impotant pount likhkar yatra likhta hoon. Driver se baat to hui thi par ab yaad nahi aa rahi. Yaad aayi to zaroor update kar doonga

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