Sunday, April 5, 2020

Sunday Diaries 05.04.2020

आज रविवार है साइकिलिंग तो हो नहीं रही। लाकडाऊन  के कारण स्टेडियम और  चाय का अड्डा बंद हो गया है। वो सब हमें याद कर रहे होंगे , इसीलिए  हम भी उन्हें याद कर लेते हैं ।

चलो कुछ किस्से कहानियां सुनते हैं । एक कहानी  मैंने एक मैग्जीन में पढी थी।
एक जंगल में एक गाँव था। लोग बड़े आराम से वँहा जीवन व्यतीत कर रहे थे। उस गांव में शहर से एक आदमी आता है। वो चेहरे पर लगाने वाले मास्क बेचने आया हुआ था। वो पूछता है, आप ये मास्क खरीद लें। लोग पूछते हैं, ये मास्क किस काम आते हैं ?
उसने कहा,  हवा में ज़हरीले कीटाणु हो सकते हैं, तो ये मास्क लगाने से आपको शुद्ध हवा मिलेगी और आप तंदरुस्त रह सकते हैं।
 लोगों ने कहा,  यहां तो शुद्ध हवा है। यहां कुछ भी नहीं है। तुम्हारे मास्क की कोई भी ज़रूरत 
 नहीं है। वह आदमी वापिस वहर  लौट जाता है ।
फिर एक आदमी शहर से ओर आता है, वो सूटड बूटड होता है। वो गाँव वालों को कहता है, हमें कुछ ज़मीन चाहिए क्योकिं हम एक फैक्ट्री लगाना चाहते है। इससे लोगों को रोज़गार मिलेगा। आपको मुँह मांगे पैसे मिलेंगे ।

 लोगों ने उनको जगह दे दी। वहां भी एक फैक्ट्री बननी शुरू हो गई । कुछ दिन में फैक्ट्री बनकर तैयार हो गई। फिर फैक्ट्री में काम शुरू हो गया।शहर से लोग बस में आते और काम करके चले जाते थे। वो गांव वालों से कोई बात नहीं करते थे। कुछ दिन बाद उस फैक्ट्री से बहुत धुआं निकलने लगा। लोगों को साँस लेने में दिक्कत होने लगी।

 तो पहले वाला आदमी शहर से दोबारा आया। उसने कहा मास्क खरीद ले। लोगों ने तुरंत सारे मास्क खरीद लिए।तब धंधा फलने फूलने लगा। बहुत समय  बात सामने आई कि वो फैक्ट्री ही मास्क बनाने वाली थी। 😀😀😀

दुनिया में बहुत सारे धंधे ऐसे ही चल रहे हैं। पहले कोई बिमारी पैदा की जाती है फिर उसका हल ढूंढा जाता है। ऐसे ही कुछ बीमारियां कुदरत पैदा करती है, कुछ आदमी पैदा करता है।

 ऐसे ही एक ओर कहानी याद आ गई । एक आदमी की जंगल में कार से जा रहा था। कार पंचर हो गई । वँहा दूर दूर तक कोई आबादी नहीं थी। वो बहुत परेशान हो गया। पर उसने देखा कि वहां पर एक दुकान है, वहां पर चाय भी है ,खाने पीने का सामान भी है। और तो और , उसने पंचर लगाने का सामान भी रखा है। वह बहुत भूखा प्यासा था ।उसने पहले खाना खाया। फिर उसको बोला कि कार  के टायर का पंचर लगा दो। दुकानदार ने पंचर ठीक कर  दिया । तो उसने पूछा, इतने जंगल बियाबान में तूने दुकान खोल रखी है तो ये चलती कैसे हैं? उस आदमी ने कहा कि छोड़िए, आप क्या करेंगे जानकर। मुसाफिर ने कहा, नहीं बताओ तो सही। अगर कुछ है तो मैं तुम्हें पैसे देता हूँ।
 वो दुकानदार उस मुसाफिर की बातों में आ गया , वो बोला साहब पहलू कहो कि गुस्सा नहीं करोगे।
कुछ नहीं, मैंने अपनी दुकान से पहले सड़क में लोहे की कीलें फैंक रखी है। वहां पर जो भी गाड़ी वाला आता है उसकी गाड़ी पंचर हो जाती है। वो  यँहां से पंचर लगवाता है, दुकान से खाता है पीता है।  इस तरीके से हमारा धंधा चल रहा है।
😀😀😀

इस धंधे का नाम ही खप्तवादी समाज है । जिन चीजों की जरूरत नहीं भी है ,उन चीजों की जरूरत को पैदा किया जाता है, आपके ऊपर थोपा जाता है,  बेचा जाता है। ये काम पहले समुद्यरी लुटेरे करते थे, पर उसमें जान का रिस्क रहता था। अब वो बैठकर ये धंधा करते हैं, तो समझदार रहें।

 आजकल लोग  सिर्फ ज़रूरत के सामान खरीद रहे हैं और जिंदगी जी रहे हैं, पर जैसे ही लाकडाऊन हटेगा आदमी का पागलपन दोबारा शुरू हो जाएगा।

 लाकडाऊन के चलते हुए 14 दिन हो गए हैं। घर पर ही बैठे हैं। पर सारा समय कुछ ना कुछ करने में निकल जाता है। सुबह उठकर ओशो की डायनेमिक मेडिटेशन करना, उसके बाद अपना खाना पीना खाकर किताबें पढ़ने बैठ जाना। सामने पार्क में सूर्य उदय से  पहले वँहा कोयल आ जाती है और पंछी भी।





 कोयल की कुहू- कुहू और पंछियों की चहचहाट सुनकर मन खुश हो जाता है । पर जैसे ही सूरज चढ़ता है तो  कोयल की आवाज़ नहीं आती, फिर गिलहरियों की आवाज शुरू हो जाती है। सामने अमलतास के पेड़ पर नये नये हरे पत्ते आ गए हैं ।14 दिन पहले बहुत छोटे थे पर अब थोडे बड़े हो गए हैं।

 फेसबुक पर लगातार फोटो आ रही है कि सड़कों पर बस और ट्रक ना चलने की वजह से आसमान इतना साफ हो गया है कि जालंधर से 200 किलोमीटर दूर बर्फीले पहाड़ दिखाई देने लग गए हैं। मैं खबर पढ़ रहा था कि धरती के ऊपर ओजोन लेयर जो पतली हो गई थी वह वह भी धीरे-धीरे थोड़ी सी ठीक होने लग गई है। ओजोन लेयर धरती को सूर्य की अल्ट्रा वायलेट को धरती पर नहीं पहुंचने देती देती। टीवी, फ्रिज, माइक्रोवेव, फैक्ट्रियों , कार, बस के धुएँ  से जो प्रदूषण हो रहा है जिसके कारण वह पतली हो रही थी । कुदरत ने समय मांगा था पर आदमी ने नहीं दिया तो उसने अपने ढंग से ले लिया है।
 जो इंसान जानवरों के चिड़ियाघर में बंद करके खुश  होता  था आज वो  अपने ही घर में कैद है वो खुद को कितना लाचार समझ रहा है।
होम्योपैथी और आयुर्वेदिक से प्रिंस चार्ल्स ठीक हो गई वह भी कोरोना से ग्रस्त हो गए थे।
 मैं आज इंसान को देख रहा हूं वो  कितना ताकतवर था उसने ऐसे एटम बम बनाए जो कि कुछ ही क्षणों में जापान की 2 शहरों में लाखों लोगों को तबाह कर गए । पर वही लोग आज एक ना दिखाई देने वाले बिल्कुल छोटे से वायरस से डरकर अपने घरों में छुपे बैठे हैं
 धीरे-धीरे हालात ठीक भी हो जाएंगे पर पता नहीं इससे आदमी कुछ सीखेगा या नहीं ?
 अब इतने दिन में कोई काम नहीं हो रहा पर फिर भी लोग जी रहे हैं। यहां उन लोगों के लिए बहुत ज्यादा दिक्कत है जो कि रोज कमाकर रोज खाते थे , उनको सरकार और एनजीओ मिलकर खाना दे तो रही है।

डॉक्टर अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों का इलाज कर रहे हैं। उन सबके लिए दुआएं मांगें।

आज के लिए विदा लेता हूँ। फिर मिलूंगा एक नए किस्से के साथ।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड
#sunday_diaries

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