Saturday, April 4, 2020

किस्से घुमक्कड़ी बचपन के

रविवार है, पर आज साइकिलिंग नहीं, क्योंकि आज पूरा भारत बंद है। पर साइकिलिंग वाले दोस्तों के लिए, घुमक्कड़ दोस्तों के लिए  लिख रहा हूं क्योंकि रविवार को उनको मेरी पोस्ट का इंतजार रहता है।
 पिछले हफ्ते मैंने लिखा था कि मैंने बचपन में कैसी कैसी घुमक्कड़ हरकतें की।
 कुछ ओर बातें लेकर आया हूं, कि जैसे जब हम मैं छोटा होता था शायद 6ठीं कक्षा में पढ़ता था। तब हमारे गाँव पुरहीरां, (होशियारपुर,पंजाब) में महावीर स्पिनिंग मिल्ल में काम करने वाली मेहनतकश लोग, जो कि  यूपी और बिहार से आए हुए थे हमारे और इर्द गिर्द के गाँव में रहते थे।

  वो लोग शनिवार रात को वीसीआर  लगा कर   पूरी रात  हिंदी फिल्में देखते थे। मैं भी जब रात के 9:00 बजे तक  घर पर नहीं आता था तो मेरे घरवाले पडोसियों से पूछते थे कि आज वीसीआर कहां लगा है? वो पता करके वँहा पहुँचते तो मैं सबसे आगे बैठा होता था।  बस फिर क्या वहां से पिटते  हुए  आता था।
  होशियारपुर से हमारा ननिहाल का गांव, बस्सी गुलाम हुस्सैन जो  होशियारपुर से लगभग 8 किलोमीटर है, पुराने समय में हम होशियारपुर से बस्सी पैदल ही जाते थे । रास्ते में चो आता है (चो वो होता है कि जिस में पहाड़ का पानी आता है और रेता होती है ) उसके इर्द-गिर्द काफी ऊंची ऊंची झाडियाँ  होती थी। हम लोग दोपहर के बाद में चलते और उस चो को पार करते। पार करने पर एक राहत होती कि चलो वहां पेड़ मिलेंगे और पेड़ के नीचे बैठेंगे। रास्ते में लगाठ और किन्नू का बाग था। उनके पेड़ों पर लगाठ लगे होते, तो उन्हें तोड़ने का मन होता, और डरत के मारे नहीं तोड़ते क्योकिं हमें पता था वँहा रखवाली के लिए कुत्ते भी हैं। एक छोटी सी सड़क,  सड़क के दोनों तरफ खेत खलियान।
पैदल चलते चलते प्यास लगती तो  नलका गेड़कर  पानी पी लेते।
 रास्ते में अगर साइकिल वाला मिल जाता तो लिफ्ट मिल जाती थी, अगर भूले भटके स्कूटर वाला मिलता तो हमारी लॉटरी लग जाती।
 ननिहाल में एक बार बहुत ज्यादा बारिश हो रही थी। मुझे बाहर घूमने जाना था । मैंने चप्पल उठाई और बारिश के मारने लगा, मैं उसको धमकी दे रहा था कि तुम बंद होती है या नहीं?
ये बात आज भी  मेरी मामी मुझे सुनाती है तो खूब हंसी आती है।😀😀


आज जनता कर्फिऊ है,मैं घर की बालकानी में बैठा हूँ, सामने पार्क में चिडिया, गलिहरी की आवाज़ से मन को सकून मिल रहा है ।

  कोरोना  के चक्कर में मुझे ओशो की सुनाई एक कहानी याद आ रही है। एक गुरु ने अपने शिष्य को कहा, सब
कुछ परमात्मा है। शिष्य को ये बात बहुत जची।
उसने पूछा,क्या आप मे भी परमात्मा है?
गुरू ने जवाब दिया, हाँ।
उसने पूछा,क्या मुझमें भी परमात्मा है ?
 गुरू ने जवाब दिया, हाँ , बेशक।
शिष्य ने पूछा, इन पेड़, फूल, पंछी, नदिया, पहाड,,,सभी में परमात्मा है?
गुरू ने मुस्कुराकर कहा, हाँ, वत्स।

वो शिष्य बड़ी खुशी खुशी मे गुरू की झोंपडी से बाहर  निकला। जंगल में  एक हाथी मस्त गया था। एक महावत को उसने पटक के नीचे फेंक दिया था । महावत जोर जोर से चिल्ला रहा था, हाथी मस्त है,  इससे बच जाओ। शिष्य ने  सोचा कि सब कुछ परमात्मा ही है।वो उसी तरफ चल दिया। सामने से हाथी आ गया, नीचे फेंक दिया। उसकी हड्डी पसली टूट गई। एक दो महीने  वो शिष्य बिस्तर पर रहा। जैसे ही वो ठीक हुआ जाकर गुरु को पकड़ लिया और बोला तुम तो कह रहे थे सब परमात्मा है, और हाथी ने मेरे को सूंड में पकड़ कर नीचे फैंक  दिया  और मेरी हड्डी टूट गई ।गुरु ने पूरी बात सुनी और फिर मुस्कुरा कर कहा, तुम्हें हाथी में परमात्मा दिखाई दिया पर  महावत में नहीं , जो तुम्हें चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि इससे बच जाओ ।

तो जो डाक्टर को महावत मानें और तंदरूस्त रहें। वो चिल्ला चिल्लाकर कह रहा है, घर पर रहें, परहेज़ करें।

कल ही मेरी अपने एक दोस्त से इटली बात हुई  वो बता रहा था कि हालात ठीक नहीं है। तुम लोग भी पूरा परहेज़ करो।

मुझे, कुलवंत सिंह विर्क जी की लिखी एक बात याद आ रही है, ( पंजाबी के महान लेखक जिनकी दो कहानियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं,
धरती के नीचे का बैल
और दूध का तालाब)

" भविष्य को लेकर मैं  केवल आशावादी नहीं बल्कि चार गुना उत्सुक हूं जिस तरह एक किसान फसल बीजने के समय में होता है। मेरी पत्नी कहती है, भविष्य की सोच  को लेकर तुम,  मेले में जाने वाले बच्चे की तरह बिगड़ जाते हो। मुझे हर वक्त यह ख्याल आता है कि बहुत कुछ होने वाला है । मुझे नये बमों के साथ दुनिया खत्म होने का कोई डर नहीं लगता। भारत में दुनिया को हाईड्रोजन बम से बचाने के लिएओर  देशों से ज्यादा बातें होती है। ये सब  बूढ़े लोगों की बातें हैं जो केवल खतरा बताकर अपनी बात मनवाना जानते हैं  लाखों-करोड़ों लोग मौत के किनारे जीवन बिताते हैं, पर फिर भी  जिंदा रहते हैं।" 

गुरबाणी भी कहती है
 चिंता ताके कीजिए
 जो अनहोनी होए।

 एक जगह और लिखा है
 हुक्मै अंदर सब कुछ
 हुक्मै बाहर ना कोए

 इसका मतलब है कि चिंता क्यों करनी है, जबकि अनहोनी हो ही नहीं सकती। जो कुछ भी हो वो उस परमात्मा के हुक्म में हो रहा है।

 इसी उम्मीद में कि जल्दी दिन अच्छे होंगे फिर से जिंदगी खुशहाल हो जाएगी। आज के लिए विदा लेता हूँ। फिर एक नया किस्सा लेकर मिलूंगा, तब तक के लिए विदा लेता हूँ।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड
22.03.2020
#rudarpur_cycling_club
#sunday_diaries

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