Sunday, April 26, 2020

Sunday diaries 26.04.2020

रविवार है तो दोस्तों के साथ बातचीत करने का मन हुआ क्योकिं लाकडाऊन के चलते साईकलिंग नही हो रही। आज सुबह ही बादल घिर आए और अब बारिश शुरु हो गई है।

 संजीव जी ऑनलाइन हुए ।
उन से बातचीत हुई तो मैनें पूछा,  बच्चे क्या कर रहे हैं?  तो उन्होंने कहा कि उनका छोटा बेटा ड्राइंग करता है। ड्राइंग करने में भी उन्होंने एक दिलचस्प बात बताई कि इससे आदमी का सोचने की शक्ति बढ़ती होती है और कल्पना जगत भी फैलता है, कि जैसे कि  बच्चा जो  सीधी लाइन लगाता है तो उसको पता होता है अगर वो लाइन को टेढा करेगा तो इससे क्या बनने वाला है? वह बता रहे थे कि जितनी भी वह ए 4 शीटें लेकर आते हैं उनका बेटा उस पर अपनी ड्राइंग करने लगता है। अच्छी बात है अपनी कल्पना जगत को बढ़ाना।
मेरे घर के आगे जो गुलमोहर का पेड़ है, वो 4 से 25 April तक कितना हर भरा हो गया है और अब तो लाल रंग के फूल भी आ गये हैं, उसकी तीनों तसवीर शेयर कर रहा हूँ, पर बाएँ से दाएँ देखें।


 अभी मैं सोच रहा था अपने हॉस्टल के दिनों की डायरी के बारे में लिखने के लिए। तो  मेरे दोस्त ने बहुत अच्छी बात कही, एक तो  डायरी बहुत लंबी हो जाएगी और जो लोग उसका हिस्सा नहीं है उनको बोर करेगी। दूसरा हो सकता है उनमें से अगर आप वही नाम ले तो सामने वाले को आप से नफरत भी होने लगे, क्योंकि हॉस्टल के दिनों में जिनके नाम उल्टे सीधे थे आज वो बहुत अच्छी पोस्ट पर है, कोई बिज़नेसमैन है ।
संजीव जी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि इसको संस्मरण कहते हैं। उन्होंने भी पंतनगर यूनिवर्सिटी में रहते हुए अपने दोस्तों के साथ जो खुशनुमा पल बिताए हैं उनके ऊपर होने दो बार संस्मरण भी लिखे हैं, पर इन संस्मरण में वह उसका पूरा नाम ना लेकर उसके शहर का नाम ले लेते हैं। इससे पढ़ने वाले को मजा भी आता है और जिसकी यह बात होती है उसको बुरा भी नहीं लगता। अब उन्होंने कई उनके कई साथी अच्छी-अच्छी पोस्ट करें क्योंकि उन्होंने आईआईटी रुड़की से पास आउट किया है कोई यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में सिविल डिपार्टमेंट का  एच ओ डी  है और कोई एनटीपीसी में।

 बाकी दोस्त  शायद व्यस्त हैं तो हो हमें जवायन नहीं कर पाए पर वो यह पोस्ट पढ़ कर इसको ही पूरा मजा ले सकते हैं।

 इसी लॉक डाउन के दौरान बहुत सारे अच्छे काम भी हो रहे हैं । जैसे कि हमारे एक दोस्त है राजू विश्वकर्मा उन्होंने अपने घर में अपनी माता और पत्नी के से 50 फेस मास्क बनाए और लोगों को मुफ्त में बांटें  हैं। यह सराहनीय काम है।
 ऐसे ही संजीव जी ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर लगभग डेढ़ लाख रुपये इक्ट्ठा करके दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल में 300 पी पी ई दिए हैं, जिसमें पूरी ड्रेस होती है जो के डॉक्टर पहनकर जाता है कोविड-19 मरीजों का इलाज करने के लिए। उन्होनें अपने यहां पर पंतनगर यूनिवर्सिटी में काम करने वाले लोगों के लिए भी 25 ऐसे पीपी ई ड्रेस मंगवाए हैं। ऐसे बहुत से लोग लगे हुए हैं जो कि पूरी दुनिया का भला मांग रहे हैं इन सभी  को बहुत सलाम।


 आज मुझे" दो आंखें बारह हाथ"  फिल्म याद आ रही है। वी शांताराम की एक बहुत ही क्लासिक फिल्म है एक जेलर जो कि 6 कैदियों को सुधारता है।उसमें एक खिलौने वाली होती है वो एक बहुत ही अच्छा गाना गाती है

आओ आओ होनहार ओ प्यारे बच्चे
प्यारे बच्चे, उम्र के कच्चे ,बात के सच्चे
जीवन की इक बात सुनाऊं
जीवन की एक बात सुनाऊं
 मुसीबतों से डरो नहीं
बुज़दिल बनके मरो नहीं
 रोते रोते क्या है जीना
 नाचो दुख में तान के सीना

 रात अंधियारी हो
 घिरी घटाएं कारी हो
 रास्ता सुनसान हो
आंधी और तूफान हो
मंजिल तेरी दूर हो
पाँव तेरे मजबूर हो
तो क्या करोगे ?
रुक जाओगे
तका तका धुम धुम
तका तका धुम धुम

देश में बिपता भारी हो
जनता दुखियारी हो
भुखमरी अकाल हो
आंधी और तूफान हो
मुल्क में हाहाकार हो
चारों तरफ पुकार हो
तो क्या करोगे
चुप बैठोगे?
नहीं
तका तका धुम धुम

 इसका जिक्र मैं इसलिए कर रहा हूं क्योंकि आज देश को उन लोगों की ज़रूरत है जो अपने सुख को त्याग कर  दूसरों की सेवा करने में लगें।

इस फिल्म में 6 कैदी हैं जो कि बहुत ही खूंखार होते हैं, कई कैदियों ने कत्ल भी किया होता है।  उनके मन को बदलना बहुत ही मुश्किल काम था, एक जेलर अलग अलग तरीके से कैसे उनको बदलता है , वो फिल्म देखने पर ही पता चलता है। वो बंजर ज़मीन को खेती के लायक बनाते हैं , फिर खेती करते हैं। शैतान लोग उनके खेत में जंगली जानवर छोड़ देते हैं और फसल तबाह कर देते हैं। तो उसी जंगली जानवर के सीन फिल्माते  हुए वी शांताराम के बहुत गहरी चोट लगी थी, यह बात उन्होंने अपनी अगली फिल्म नवरंग के शुरुआत में बताई। इसमें जेलर का रोल वी शांताराम ने खुद निभाया है।
 फिल्म के आखिर में एक गीत गाया जाता है जो कि हम लोगों में छोटे होते हैं अपने मॉर्निंग प्रेयर में भी गाया है।
ऐ मालिक तेरे बंदे हम
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चलें
और बदी से टलें
ता कि हसते हुए निकले दम

  डॉक्टर, पुलिस, सफाई कर्मी, बैंक वाले सब लगे हुए हैं वह भी अपनी जान पर खेलकर हमारे लिए सारा काम कर रहे हैं । तो हम सब मिलकर यह प्रार्थना करें कि वो भी सुरक्षित रहें अपने परिवार के साथ। कहते हैं दवा से ज्यादा असर दुआ में  होता है।

 तो फिर मिलेंगे एक नए किस्से के साथ।
 अभी के लिए विदा लेता हूंँ।
आपका अपना
रजनीश जस
 रूद्रपुर
 उत्तराखंड
26.04.2020
#rudarpur_cycling_club
#sunday_diaries

Sunday, April 19, 2020

Sunday Diaries 19.04.2020

 रविवार है तो साइकिलिंग तो नहीं हो रही लाकडाऊन के कारण। मेरे मन में सुबह एक विचार आया कि वीडियो कॉल के ज़रिए अपने साईकलिंग वाले दोस्तों से गपशप की जाए।  फोन पर बात हुई और समय फाइनल हो गया 11:00 बजे का। पहले व्हाट्सएप पर कॉलिंग की हम लोग ज्यादा थे तो फोन जूम एप्प लोड किया। माइक से आवाज़ नहीं आ रही थी तो फिर बडे बेटे को बुलाया । उसने माईक आन किया।

राजेश जी से बात हुई । राजेश सर अपने गांव में कुरुक्षेत्र में हुए हैं। उनके चेहरे से खुशी साफ झलक रही थी, गाँव में रहने का अलग ही आनंद होता है। वो बता रहे थे कि जो पुराने दोस्त है, या गाँव के छोटे बच्चे होते थे अभी बहुत बड़े हो गए हैं। उनसे बात होती  है तो पता चल रहा है कि वो  कौन कौन हैं? बच्चों को खेत में ले जाकर उनको दिखा रहे हैं कि की गेहूं कैसे कटती है? वो शाम को बच्चों से खिद्दो खेलते हैं, जिसमें मिट्टी की ठीकरियों को गेंद से मारा जाता है।
 फिर सुमन जी से बात हुई, उन्होनें  हमें एक बहुत ही अच्छी कहानी सुनाई। एक आदमी जंगल में खो गया। दो-तीन दिन तक कुछ न हीं खाया। वो भूख के कारण  बड़ी मुश्किल मे आ गया। उसको एक सेब का पेड़ दिखाई दिया। जैसे ही उसने सेब का पेड़ देखा उसकी जान में जान आई। फिर उसने जैसे ही पहला सेब खाया तो उसने परमात्मा का बहुत शुक्रिया अदा किया और सेब का भी। फिर  दूसरा, फिर  तीसरा, फिर चौथा सेब खाकर उसका पेट भर गया। फिर उसने सेब में नुक्स निकालने शुरू कर दिए,  कुछ गंदे लगने लगे। फिर उसने सेब इधर-उधर फेंकने शुरू कर दिए । तो यही शायद आदमी की कहानी थी, उसने भरा पेट होने के कारण धरती की  संसाधनों को नष्ट कर दिया था और हर तरफ त्राहि-त्राहि मच गई थी। अब धरती अपना ईलाज खुद कर रही है।
सुरजीत सर जी से बात हुई तो उन्होंने बताया कि लंबार्डी , इटली में किसी से बात हुई थी तो पता चला कि पुलिस ने सड़कों पर घूमते लोगों पर सख्ती नहीं की। तभी इटली में इतना ज्यादा कोरोना का कहर फैला।  1665 में पलेग महामारी दुनियाभर में फैली। इन्ही दिनों निऊटन  7 दिन तक अपने ही कमरे में रहे तो उन्होंने फोर्स ऑफ ग्रेविटी खोज ली वो भी लाकडाऊन में।
तो हर बुराई के पीछे अच्छाई भी छुपी होती है।

 किसी ओर  देश की ही खबर है कि उन्होंने कहा कि लॉकडाऊन खोला जाए क्योंकि पति पत्नी साथ रहे हैं दोनों में थोड़ा सा मनमुटाव से तलाक के केस बढ़ रहे हैं। इससे ये भी सिद्ध होता है कि पश्चिम में भी सहनशीलता बहुत कम है।


 प्रेम से बात हुई थी उसने बताया कि काम की भागदौड़ से वह बहुत तंग हो गया था पर अब उसको बहुत ज्यादा राहत मिली है।
उसे अब समय मिल रहा है वह रसोई में जाकर प्याज काटता है। प्याज काटते हुए एक सोच थी कि जब आप उसका छिलका अपने पैर के तले दबा लेते हैं तो आपकी आंख से पानी नहीं निकलता। आप अगर चाकू को पानी लगा लेते हैं तो भी आंखों से पानी नहीं निकलता ।

सुरजीत सर बहुत ही दिलचस्प  बात बताई कि एक डॉक्टर है रूद्रपुर में, जिसके पास रमपुरा और जगतपुरा के लोग ही आते हैं, वो बहुत गरीब लोग हैं। उसने बताया कि उसके बाद आज तक कभी कोई दिल की बिमारी का एक भी मरीज़ नहीं आया। यँहा से ये निष्कर्श निकला कि जो दिल की बीमारी होती है जैसे अमीरों को ही होती है।
फिर भी यह भारत में उतनी तेजी से नहीं फैला, इसका पहला सबसे बडा कारण लाकडाऊन है, बाकी इसके दो कारण भारत के लोगों का इम्यून सिस्टम मज़बूत है और उनके बर्दाश्त करने की बहुत ज्यादा  शक्ति है।

 मेरे लिए बहुत अलग किस्म का अनुभव था कि हम 6 लोग अलग-अलग जगह पर बैठे हुए हैं, मैं सबको देख सकता था और सुन सकता था।

 मेरे  घर के आगे जो पेड़ है उसका तस्वीर शेयर कर रहा हूँ कि वो  5 अप्रैल से लेकर 19 अप्रैल तक कितना ज्यादा पत्तों से भर गया है। ऐसे ही कुदरत  निरंतर हमारे लिए रोज कितने सारे रंग भरती  है पर  हम अपने काम में इतने व्यस्त है कि हमारे पास उसको देखने का वक्त ही नहीं है। अभी कुदरत ने हमें अभी हमें अपने अंदर झांकने का, अपने आप को समझने का मौका दिया है तो इस मौके का सदुपयोग करें।
ऐसे ही एक नई किस्से के साथ मिलूंगा तब तक के लिए विदा लेता हूँ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्दरपुर
ऊधम सिंह नगर
उत्तराखंड
#rudarpur_cycling_club
#sunday_diaries
19.042.020




Tuesday, April 7, 2020

Journey to Almora, Jageshwar and Kausani

आदमी मुसाफिर है
आता है जाता है
आते जाते रस्ते में
यादें छोड़ जाता है

यह यात्रा भी है दिसंबर 2016 की। वो भी अल्मोडा , जागेश्वर और कौसानी की। जिसमें हैं अकेलेपन की मस्ती, आमलेट वाला परांठा, सुमित्रानंदपंत के घर की यात्रा, पहाडी भाषा और खाने की मिठास।

 हमारी कंपनी में दिसंबर में शटडाउन होता है, तो चार-पांच दिन की छुट्टी होती है। उन दोनों में ट्रेन धुंध के कारण कई कई घंटे देरी से चलती हैं। तो इसलिए इस बार मैंने प्लान किया मैं कहीं पहाड़ पर घूम कर आओ। रुद्रपुर में अपने दोस्तों से बात की कोई भी तैयार नहीं हुआ तो अपने परिवार से सलाह की पर वो भी तैयार ना हुए तो अकेले ही बैग उठाया और मैं निकल लिया यात्रा पर।

 रुद्रपुर से हल्द्वानी पहुंचा वहां से एक टैक्सी ली और फिर अल्मोड़ा के लिए निकल गया। टैक्सी ड्राइवर से बतियाते हुए, पहाड़ियों को देखते हुए , बादलों पेड़ों दरिया को देखते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में एक जगह रुके भी वहां पर चाय पी। लोगों ने मैग्गी खाई और फिर हम बढ़ गए। ये सफर मैं बस से सफर नहीं करता क्योंकि मेरे एक कुलीग निशांत आर्य ने बताया था कि पहाडी इलाके में डीजल की बदबू से लोगों को उल्टी आने लगती है और तो सारी बस के यात्रियों का मूड भी खराब हो जाता है।


 रास्ते में जाते हुए मुझे एक लड़का मिला वह दिल्ली से आया हुआ था । उसने बताया कि वह अपने घर पर पूजा करने जा रहा है।इस पूजा में वो लोग जंगल में जाते हैं ।वहां पर रात भर आग जलाकर पूजा करते हैं। वहां पर शायद बकरा काटा जाता है। वो बता रहा था कि किसी कि किसी एक आदमी में आत्मा प्रवेश करती है। वो सभी लोग उस आदमी की पूजा करते हैं। वह मुझे कह रहा था कि आज की रात उसके साथ चले। वह जंगल में लेकर जाएगा। मैंने कहा, नहीं भाई मैं ऐसी जगह पर नहीं जाता।

तो जी हम  पहुंच गए हम अल्मोड़ा। वहां पर एक होटल में रुका।
मैं जल्दबाजी में घर से निकला था । मेरे पास गर्म इन्नर और लोअर नहीं थे। फिर मैं होटल के कमरे से निकला। वहां पर अल्मोड़ा के लाल बाजार की तरफ बढ़ गया । मैं देख रहा था कि लोग अपनी मस्ती में घूम रहे थे। परिवार वाले अपने बीवी बच्चों के साथ मस्ती कर रहे थे, बुढ्ढे बीडी और जवां सिग्रेट का धुंआ उडा रहे थे।  एक छोटी सी पगडंडी से लाल बाजार पहुंचा। ये लाल बाजार बहुत मशहूर है।

उत्तराखंड के लोकगीतों में इसका बार बार जिक्र आता है
अल्मोड़ा लाल बाजारो
अल्मोड़ा की बाल मिठाई

 इस लाल बाजार में बाल मिठाई मिलती है जो कि हमारे पंजाब की चाकलेट बर्फी जैसी होती है , उसके ऊपर सफेद गोलियां होती हैं जैसे कि होम्योपैथी में दवाई के तोर पर मिलती है । यह बहुत मीठी और स्वादिष्ट होती है। फिर मैंने एक दुकान से लोअर और इन्नर खरीदा।

 मैं होटल लौट आया।उसी होटल में साल पहले  मेरे कुलीग निशांत ने कमरा बुक करवाया था।  रात को उसी रेस्तरां पर खाना खाने गया यहां पर अपनी फैमिली के साथ साल पहले गया था । ऐसा भी था कि अपने परिवार के साथ गुज़रे वक्त को याद कर रहा था।
 मुझे याद आ रहा है जब मैं साल पहले उसी होटल में आया था तो हम सभी रात को रेस्टोरेंट में खाना खाकर आए तो इस कमरे में सो गए थे। फिर सुबह उठे तो ऐसी रेस्टोरेंट में जाकर ब्रेकफास्ट करके आए थे । मेरे छोटे बेटे वंश ने कहा पापा इस घर में ही रहो। यह बहुत अच्छी जगह है, यहां पर किसी सामान की कोई चिंता नहीं है। कमरा बिल्कुल खाली है, जब भूख लगे तो बाहर जाओ खाना खाओ। हैं। बच्चों के विचार कितने कमाल के होते हैं!😊😊


खाना खाकर अभी थोड़ी देर पहले फिर अपनी बालकनी से रात का नजारा देखा। ठंड बहुत ज्यादा थी, पर सामने पहाड़ियों पर घरों की देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने पहाड़ी पर छोटे-छोटे दिए जला दिए हों।



 फिर मैं सो गया। सुबह उठा फ्रेश होकर खाना खाया और वहां से जागेश्वर के लिए निकल गया। वहां पर कोई बस तो मिल नहीं रही थी एक बोलेरो बड़ी मुश्किल से मिली। उस ड्राईवर से बातें होने लगी। रास्ते में लोगों के घर देखते हुए जा रहा था, लोगों ने घरों पर नक्काशी कर रखी थी। कोई  आदमी गाड़ी में सामान दे रहा था वह किसी ओर जगह छोड़ना था । एक गाड़ी कितना कुछ करती है ये मैं जान रहा था ।
 जागेश्वर के रास्ते में एक मंदिर था। वँहा पर हम लोग रूके। वो शिव जी का प्राचीन मंदिर है। वहां पर मैंने माथा टेका। वहां पर साऊथ से आए हुए कुछ लोग थे,वो फोटोग्राफी कर रहे थे।  मैनें कुछ फोटो खिचवाई । ड्राईवर ने कहा कुछ ओर तस्वीर खिंचवा लो। मेरे पैरों का खून ठंड से जमने को हो रहा था, मैं फटाफट गाडी में आकर बैठ गया। ये मंदिर पहाड़ी के ओट में है ,यँहा पर सूरज की रोशनी बिलकुल नहीं आती इसी के कारण यँहा इतनी ठंड रहती है। वँहा  एक जगह से पानी बह रहा था । वो पानी  हमने पिया। ड्राइवर ने उस पानी से अपनी गाड़ी को साफ किया। उसने बताया यँहा पास ही उसका घर है वँहा मुझे ठहरने का न्योता भी मिला। पर मैनें होटल में चैक आऊट नहीं किया था तो ये प्लान कैंसिल किया।

 फिर हम जागेश्वर पहुंचे।
जागेश्वर का मंदिर 7वीं और 12वीं शताब्दी के बीच में बनाया गया है। यह सोनू का एक समूह आध्यात्मिक तौर पर इस मंदिर की बहुत महत्व है। ये 100 मंदिरों का एक समूह है। ये सारे शिव के मंदिर हैं।
शिव शक्ति का प्रतीक हैं और पार्वती माया का।
 शक्ति और माया के मिलन से ही संसार पैदा होता है। शिव और पार्वती दुनिया की अर्धनारी और अर्धपुरुष की तस्वीर सिर्फ भारत में ही दिखाई देने को मिलती है। इसका मतलब है कि हर मानव आधा स्त्री और आधा पुरुष के मिलन से बना है। भारत में जब शादी होती है तो औरत को हमेशा बाईं तरफ बिठाया जाता है। जब हम सांस लेते हैं तो हमारा दायाँ नथुना सूर्य है और बाँया चंद्रमा। इसीलिए औरत के बाईं तरफ बिठाया जाता है जो कि वो  सूर्य को  चंद्रमा  की ठंडक से बैलेंस रखे।

वहां पर एक तरफ खुला सा मैदान था।आगे बढ़ने पर मंदिर पहुँचे। इस मंदिर के अंदर बहुत सारे मंदिर हैं। इस मंदिर की बहुत मान्यता है। मंदिर में अंदर घुसते ही वहां पर बाएं तरफ से अग्न कुंड में अग्नि जल रही है।




 वो  बहुत सालों से निरंतर जल रही है उसकी राख को  लोग अपने घरों पर भी लेकर  जाते हैं। आगे बढ़ा तो वँहा मुख्य मंदिर है। वहां पर पीले रंग का यह टीका लगाया जाता है। मैंने देखा वहां पुलिस वाले भी थे।वहां पर तो पत्थर इतना ठंडा था कि पूछो मत।  वहां पर माथा टेका। फिर बाहर निकला। बाहर दुकान से शिवलिंग खरीदा। आगे बढ़ने पर एक म्युजिअम देखा। अंदर गया तो देखा वहां पर कई मूर्तियां रखी हुई हैं। अपने भूतकाल से रूबरू हुआ।

फिर चल दिये हम अल्मोडा।अल्मोड़ा आने से पहले चितई मंदिर आता है। यँहा पर हुई लोग अपने मन की मुराद माँगते हैं, वो उसे एक कागज़ पर लिखकर टाँग देते हैं। वँहा पर हजारों पीतल की घंटियाँ बाँधी हुई है। एक छोटी सी घंटी से लेकर बहुत बडी घंटी।

 मैं मंदिर के दर्शन के लिए कतार मे था । पीछे एक औरत थी। उस  से एक बंदर उसका सामान  छीन कर भाग गया। उसके हाथ में ₹50 थे वो भी साथ लेकर चला गया। वहां पर एक पुलिस  और मंदिर वालों ने उसको मिलकर उस बंदर को भगा दिया। मैनें मंदिर में माथा टेका।

 मैं वापिस आकर रात को होटल पर खाना खाकर सो गया।  सुबह टैक्सी स्टैंड वाले कुछ बातें कर रहे थे आमलेट वाला परांठा।
मै वँहा गया तो एक चाय बनाने वाला वो स्पेशल परांठे बना रहा था। मैनें देखा उसने एक परांठा बनाया उस को बीच में से उसने  चाकू से कट लगाकर उसके अंदर अंडे का घोल डालकर फ्राई किया। आमलेट परांठा की तस्वीर शेयर कर रहा हूँ।



मैंने रोटी खाई और चाय पी।

यहां पहाड़ में " ठैरा " शब्द का इस्तेमाल बहुत किया जाता है । ये शब्द उनके मुंह से सुनने में बड़ा अच्छा लगता है। जैसे कि कहते हैं "मैं शहर गया ठैरा", इसका मतलब है अपनी ही बात को पुष्टि कर रहा । वैसे शायद ये हिंदी के शब्द ठहरा  ही है।


फिर टैक्सी लेकर निकल गया कोसानी के लिए। रास्ते में ड्राइवर से बातें करता हुआ जा रहा था। तो मैंने देखा गांव की जिंदगी मे बहुत संघर्ष है। जो लोग पढ़ लिखने घर से निकलते हैं वह दिल्ली ,हरिद्वार या रूद्रपुर में नौकरी करने लगते  हैं और  जो पढ़े लिखे नहीं  वो टैक्सी चला रहे हैं या होटल में काम कर रहे हैं।

 एक जगह किसी औरत  ने गाडी को हाथ देकर रोका। उसने कहीं जाना था। उसने पूछा कि फलाने गाँव तक छोड़ दो। ड्राइवर ने कहा 25क् रुपये लगेंगे। उसने कहा ₹20 । तो ड्राईवर ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी। मैंने कहा कि तुम्हें ₹20 ले लेने चाहिए थे। उसने कहा, जी अगर मैं आज ₹20 देता हूं तो यह रेट भी ऐसे ही रह जाएगा। कल को ये लोग ₹15 कर देंगे तो इस जगह पर हमारा गुजारा ओर भी मुश्किल हो जाएगा।
 वो ड्राइवर स्वाभिमानी था।

 हम शाम को कोसानी पहुंच गया।
 उतर कर एक होटल में कमरा लिया।
 होटल से बाहर निकला तो अंधेरा हो चुका था। वहां पास में ही गांधी आश्रम था ,तो होटल वालों ने कहा वहां पर सुबह चले जाना। फिर मैंने वहां पर एक रेस्टोरेंट का पता किया। पहाड़ी रास्तों से पगडंडियों से गुज़रता हुआ  गलियों में वहां  पर पहुंचा ।वहां पर खाना खाया। बहुत ठंडी हवा चल रही थी।

 मैं अपने होटल में कमरे में सो गया। सुबह फ्रेश होकर फिर उसी होटल पर खाना खाया।
फिर पैदल चल दिया गांधी आश्रम की ओर।चीड़ के पेड़ों के रास्ते से गुज़रकर मैं वँहा पहुंचा। वहां पर गांधी जी के जीवन जुडी तस्वीरें हैं, जिसमें उनके जीवन के बारे में बताया गया है। बिल्कुल उसके बाहर गांधीजी के तीन बंदर हैं।




 बाहर दीवार पर गांधीजी के विचार लिखे हुए हैं। उनमें उन्होंने गांव की जिंदगी, आदमी की वासना के बारे में लिखा हुआ है।  मेरा हॉस्टल में नाम गांधी है।
 वहां पर  बैठने की एक जगह बनी हुई थी और एक जगह पर चबूतरा बना हुआ है। वँहा से हिमालय दर्शन होता है। सूर्य की धूप में बर्फ के के सफेद पहाड़ चमक रहे थे। 10 मिनट वँहा हिमालय पर्वत  श्रंखला  निहारता रहा। पास में ही  बच्चे  क्रिकेट खेल रहे थे।
  फिर मैं वहां से नीचे उतरा इस बार मैं उसी रास्ते से वापस ना होते हुए दूसरे रास्ते से आया क्योंकि मैंने अलफ्रेड नोबेल का एक विचार पढा था, कि दफ्तर  जाने के अलग-अलग रास्ते पर जाओ इससे जिंदगी में बोरियत महसूस नहीं होगी। तो जैसे ही मैं पहाड़ी के नीचे उतर रहा था तो देखा वहां पर एक म्यूजियम था वो  सुमित्रानंदन पंत का घर था,जिसको म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया था। अगर मैं उसी रास्ते से वापिस जाता जिससे आया था तो इस जगह से वंचित रह जाता।

वो प्रकृति के महान कवि थे और  हरिवंश राय बच्चन जी के दोस्त थे। उस मे उनके जीवन की  तस्वीरें और कविताएँ थी।
होटल पर आकर चेक आउट किया और फिर बोलेरो पकड़ी। रास्ते में एक मंदिर पर  माता के गाना मंदिर के पुजारी ने ड्राईवर के टीका लगाया। यँहा के लोगों की मान्यता है कि इस से यात्रा मंगल रहती है।
पहाड़ के रास्ते हल्द्वानी से होते हुए मैं वापिस आ गया।
आज कू लिए विदा लेता हूँ। फिर मिलूँगा एक नयी यात्रा के किस्से के साथ।
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड

06.04.2020

Sunday, April 5, 2020

Sunday Diaries 05.04.2020

आज रविवार है साइकिलिंग तो हो नहीं रही। लाकडाऊन  के कारण स्टेडियम और  चाय का अड्डा बंद हो गया है। वो सब हमें याद कर रहे होंगे , इसीलिए  हम भी उन्हें याद कर लेते हैं ।

चलो कुछ किस्से कहानियां सुनते हैं । एक कहानी  मैंने एक मैग्जीन में पढी थी।
एक जंगल में एक गाँव था। लोग बड़े आराम से वँहा जीवन व्यतीत कर रहे थे। उस गांव में शहर से एक आदमी आता है। वो चेहरे पर लगाने वाले मास्क बेचने आया हुआ था। वो पूछता है, आप ये मास्क खरीद लें। लोग पूछते हैं, ये मास्क किस काम आते हैं ?
उसने कहा,  हवा में ज़हरीले कीटाणु हो सकते हैं, तो ये मास्क लगाने से आपको शुद्ध हवा मिलेगी और आप तंदरुस्त रह सकते हैं।
 लोगों ने कहा,  यहां तो शुद्ध हवा है। यहां कुछ भी नहीं है। तुम्हारे मास्क की कोई भी ज़रूरत 
 नहीं है। वह आदमी वापिस वहर  लौट जाता है ।
फिर एक आदमी शहर से ओर आता है, वो सूटड बूटड होता है। वो गाँव वालों को कहता है, हमें कुछ ज़मीन चाहिए क्योकिं हम एक फैक्ट्री लगाना चाहते है। इससे लोगों को रोज़गार मिलेगा। आपको मुँह मांगे पैसे मिलेंगे ।

 लोगों ने उनको जगह दे दी। वहां भी एक फैक्ट्री बननी शुरू हो गई । कुछ दिन में फैक्ट्री बनकर तैयार हो गई। फिर फैक्ट्री में काम शुरू हो गया।शहर से लोग बस में आते और काम करके चले जाते थे। वो गांव वालों से कोई बात नहीं करते थे। कुछ दिन बाद उस फैक्ट्री से बहुत धुआं निकलने लगा। लोगों को साँस लेने में दिक्कत होने लगी।

 तो पहले वाला आदमी शहर से दोबारा आया। उसने कहा मास्क खरीद ले। लोगों ने तुरंत सारे मास्क खरीद लिए।तब धंधा फलने फूलने लगा। बहुत समय  बात सामने आई कि वो फैक्ट्री ही मास्क बनाने वाली थी। 😀😀😀

दुनिया में बहुत सारे धंधे ऐसे ही चल रहे हैं। पहले कोई बिमारी पैदा की जाती है फिर उसका हल ढूंढा जाता है। ऐसे ही कुछ बीमारियां कुदरत पैदा करती है, कुछ आदमी पैदा करता है।

 ऐसे ही एक ओर कहानी याद आ गई । एक आदमी की जंगल में कार से जा रहा था। कार पंचर हो गई । वँहा दूर दूर तक कोई आबादी नहीं थी। वो बहुत परेशान हो गया। पर उसने देखा कि वहां पर एक दुकान है, वहां पर चाय भी है ,खाने पीने का सामान भी है। और तो और , उसने पंचर लगाने का सामान भी रखा है। वह बहुत भूखा प्यासा था ।उसने पहले खाना खाया। फिर उसको बोला कि कार  के टायर का पंचर लगा दो। दुकानदार ने पंचर ठीक कर  दिया । तो उसने पूछा, इतने जंगल बियाबान में तूने दुकान खोल रखी है तो ये चलती कैसे हैं? उस आदमी ने कहा कि छोड़िए, आप क्या करेंगे जानकर। मुसाफिर ने कहा, नहीं बताओ तो सही। अगर कुछ है तो मैं तुम्हें पैसे देता हूँ।
 वो दुकानदार उस मुसाफिर की बातों में आ गया , वो बोला साहब पहलू कहो कि गुस्सा नहीं करोगे।
कुछ नहीं, मैंने अपनी दुकान से पहले सड़क में लोहे की कीलें फैंक रखी है। वहां पर जो भी गाड़ी वाला आता है उसकी गाड़ी पंचर हो जाती है। वो  यँहां से पंचर लगवाता है, दुकान से खाता है पीता है।  इस तरीके से हमारा धंधा चल रहा है।
😀😀😀

इस धंधे का नाम ही खप्तवादी समाज है । जिन चीजों की जरूरत नहीं भी है ,उन चीजों की जरूरत को पैदा किया जाता है, आपके ऊपर थोपा जाता है,  बेचा जाता है। ये काम पहले समुद्यरी लुटेरे करते थे, पर उसमें जान का रिस्क रहता था। अब वो बैठकर ये धंधा करते हैं, तो समझदार रहें।

 आजकल लोग  सिर्फ ज़रूरत के सामान खरीद रहे हैं और जिंदगी जी रहे हैं, पर जैसे ही लाकडाऊन हटेगा आदमी का पागलपन दोबारा शुरू हो जाएगा।

 लाकडाऊन के चलते हुए 14 दिन हो गए हैं। घर पर ही बैठे हैं। पर सारा समय कुछ ना कुछ करने में निकल जाता है। सुबह उठकर ओशो की डायनेमिक मेडिटेशन करना, उसके बाद अपना खाना पीना खाकर किताबें पढ़ने बैठ जाना। सामने पार्क में सूर्य उदय से  पहले वँहा कोयल आ जाती है और पंछी भी।





 कोयल की कुहू- कुहू और पंछियों की चहचहाट सुनकर मन खुश हो जाता है । पर जैसे ही सूरज चढ़ता है तो  कोयल की आवाज़ नहीं आती, फिर गिलहरियों की आवाज शुरू हो जाती है। सामने अमलतास के पेड़ पर नये नये हरे पत्ते आ गए हैं ।14 दिन पहले बहुत छोटे थे पर अब थोडे बड़े हो गए हैं।

 फेसबुक पर लगातार फोटो आ रही है कि सड़कों पर बस और ट्रक ना चलने की वजह से आसमान इतना साफ हो गया है कि जालंधर से 200 किलोमीटर दूर बर्फीले पहाड़ दिखाई देने लग गए हैं। मैं खबर पढ़ रहा था कि धरती के ऊपर ओजोन लेयर जो पतली हो गई थी वह वह भी धीरे-धीरे थोड़ी सी ठीक होने लग गई है। ओजोन लेयर धरती को सूर्य की अल्ट्रा वायलेट को धरती पर नहीं पहुंचने देती देती। टीवी, फ्रिज, माइक्रोवेव, फैक्ट्रियों , कार, बस के धुएँ  से जो प्रदूषण हो रहा है जिसके कारण वह पतली हो रही थी । कुदरत ने समय मांगा था पर आदमी ने नहीं दिया तो उसने अपने ढंग से ले लिया है।
 जो इंसान जानवरों के चिड़ियाघर में बंद करके खुश  होता  था आज वो  अपने ही घर में कैद है वो खुद को कितना लाचार समझ रहा है।
होम्योपैथी और आयुर्वेदिक से प्रिंस चार्ल्स ठीक हो गई वह भी कोरोना से ग्रस्त हो गए थे।
 मैं आज इंसान को देख रहा हूं वो  कितना ताकतवर था उसने ऐसे एटम बम बनाए जो कि कुछ ही क्षणों में जापान की 2 शहरों में लाखों लोगों को तबाह कर गए । पर वही लोग आज एक ना दिखाई देने वाले बिल्कुल छोटे से वायरस से डरकर अपने घरों में छुपे बैठे हैं
 धीरे-धीरे हालात ठीक भी हो जाएंगे पर पता नहीं इससे आदमी कुछ सीखेगा या नहीं ?
 अब इतने दिन में कोई काम नहीं हो रहा पर फिर भी लोग जी रहे हैं। यहां उन लोगों के लिए बहुत ज्यादा दिक्कत है जो कि रोज कमाकर रोज खाते थे , उनको सरकार और एनजीओ मिलकर खाना दे तो रही है।

डॉक्टर अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों का इलाज कर रहे हैं। उन सबके लिए दुआएं मांगें।

आज के लिए विदा लेता हूँ। फिर मिलूंगा एक नए किस्से के साथ।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड
#sunday_diaries

Saturday, April 4, 2020

किस्से घुमक्कड़ी बचपन के

रविवार है, पर आज साइकिलिंग नहीं, क्योंकि आज पूरा भारत बंद है। पर साइकिलिंग वाले दोस्तों के लिए, घुमक्कड़ दोस्तों के लिए  लिख रहा हूं क्योंकि रविवार को उनको मेरी पोस्ट का इंतजार रहता है।
 पिछले हफ्ते मैंने लिखा था कि मैंने बचपन में कैसी कैसी घुमक्कड़ हरकतें की।
 कुछ ओर बातें लेकर आया हूं, कि जैसे जब हम मैं छोटा होता था शायद 6ठीं कक्षा में पढ़ता था। तब हमारे गाँव पुरहीरां, (होशियारपुर,पंजाब) में महावीर स्पिनिंग मिल्ल में काम करने वाली मेहनतकश लोग, जो कि  यूपी और बिहार से आए हुए थे हमारे और इर्द गिर्द के गाँव में रहते थे।

  वो लोग शनिवार रात को वीसीआर  लगा कर   पूरी रात  हिंदी फिल्में देखते थे। मैं भी जब रात के 9:00 बजे तक  घर पर नहीं आता था तो मेरे घरवाले पडोसियों से पूछते थे कि आज वीसीआर कहां लगा है? वो पता करके वँहा पहुँचते तो मैं सबसे आगे बैठा होता था।  बस फिर क्या वहां से पिटते  हुए  आता था।
  होशियारपुर से हमारा ननिहाल का गांव, बस्सी गुलाम हुस्सैन जो  होशियारपुर से लगभग 8 किलोमीटर है, पुराने समय में हम होशियारपुर से बस्सी पैदल ही जाते थे । रास्ते में चो आता है (चो वो होता है कि जिस में पहाड़ का पानी आता है और रेता होती है ) उसके इर्द-गिर्द काफी ऊंची ऊंची झाडियाँ  होती थी। हम लोग दोपहर के बाद में चलते और उस चो को पार करते। पार करने पर एक राहत होती कि चलो वहां पेड़ मिलेंगे और पेड़ के नीचे बैठेंगे। रास्ते में लगाठ और किन्नू का बाग था। उनके पेड़ों पर लगाठ लगे होते, तो उन्हें तोड़ने का मन होता, और डरत के मारे नहीं तोड़ते क्योकिं हमें पता था वँहा रखवाली के लिए कुत्ते भी हैं। एक छोटी सी सड़क,  सड़क के दोनों तरफ खेत खलियान।
पैदल चलते चलते प्यास लगती तो  नलका गेड़कर  पानी पी लेते।
 रास्ते में अगर साइकिल वाला मिल जाता तो लिफ्ट मिल जाती थी, अगर भूले भटके स्कूटर वाला मिलता तो हमारी लॉटरी लग जाती।
 ननिहाल में एक बार बहुत ज्यादा बारिश हो रही थी। मुझे बाहर घूमने जाना था । मैंने चप्पल उठाई और बारिश के मारने लगा, मैं उसको धमकी दे रहा था कि तुम बंद होती है या नहीं?
ये बात आज भी  मेरी मामी मुझे सुनाती है तो खूब हंसी आती है।😀😀


आज जनता कर्फिऊ है,मैं घर की बालकानी में बैठा हूँ, सामने पार्क में चिडिया, गलिहरी की आवाज़ से मन को सकून मिल रहा है ।

  कोरोना  के चक्कर में मुझे ओशो की सुनाई एक कहानी याद आ रही है। एक गुरु ने अपने शिष्य को कहा, सब
कुछ परमात्मा है। शिष्य को ये बात बहुत जची।
उसने पूछा,क्या आप मे भी परमात्मा है?
गुरू ने जवाब दिया, हाँ।
उसने पूछा,क्या मुझमें भी परमात्मा है ?
 गुरू ने जवाब दिया, हाँ , बेशक।
शिष्य ने पूछा, इन पेड़, फूल, पंछी, नदिया, पहाड,,,सभी में परमात्मा है?
गुरू ने मुस्कुराकर कहा, हाँ, वत्स।

वो शिष्य बड़ी खुशी खुशी मे गुरू की झोंपडी से बाहर  निकला। जंगल में  एक हाथी मस्त गया था। एक महावत को उसने पटक के नीचे फेंक दिया था । महावत जोर जोर से चिल्ला रहा था, हाथी मस्त है,  इससे बच जाओ। शिष्य ने  सोचा कि सब कुछ परमात्मा ही है।वो उसी तरफ चल दिया। सामने से हाथी आ गया, नीचे फेंक दिया। उसकी हड्डी पसली टूट गई। एक दो महीने  वो शिष्य बिस्तर पर रहा। जैसे ही वो ठीक हुआ जाकर गुरु को पकड़ लिया और बोला तुम तो कह रहे थे सब परमात्मा है, और हाथी ने मेरे को सूंड में पकड़ कर नीचे फैंक  दिया  और मेरी हड्डी टूट गई ।गुरु ने पूरी बात सुनी और फिर मुस्कुरा कर कहा, तुम्हें हाथी में परमात्मा दिखाई दिया पर  महावत में नहीं , जो तुम्हें चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि इससे बच जाओ ।

तो जो डाक्टर को महावत मानें और तंदरूस्त रहें। वो चिल्ला चिल्लाकर कह रहा है, घर पर रहें, परहेज़ करें।

कल ही मेरी अपने एक दोस्त से इटली बात हुई  वो बता रहा था कि हालात ठीक नहीं है। तुम लोग भी पूरा परहेज़ करो।

मुझे, कुलवंत सिंह विर्क जी की लिखी एक बात याद आ रही है, ( पंजाबी के महान लेखक जिनकी दो कहानियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं,
धरती के नीचे का बैल
और दूध का तालाब)

" भविष्य को लेकर मैं  केवल आशावादी नहीं बल्कि चार गुना उत्सुक हूं जिस तरह एक किसान फसल बीजने के समय में होता है। मेरी पत्नी कहती है, भविष्य की सोच  को लेकर तुम,  मेले में जाने वाले बच्चे की तरह बिगड़ जाते हो। मुझे हर वक्त यह ख्याल आता है कि बहुत कुछ होने वाला है । मुझे नये बमों के साथ दुनिया खत्म होने का कोई डर नहीं लगता। भारत में दुनिया को हाईड्रोजन बम से बचाने के लिएओर  देशों से ज्यादा बातें होती है। ये सब  बूढ़े लोगों की बातें हैं जो केवल खतरा बताकर अपनी बात मनवाना जानते हैं  लाखों-करोड़ों लोग मौत के किनारे जीवन बिताते हैं, पर फिर भी  जिंदा रहते हैं।" 

गुरबाणी भी कहती है
 चिंता ताके कीजिए
 जो अनहोनी होए।

 एक जगह और लिखा है
 हुक्मै अंदर सब कुछ
 हुक्मै बाहर ना कोए

 इसका मतलब है कि चिंता क्यों करनी है, जबकि अनहोनी हो ही नहीं सकती। जो कुछ भी हो वो उस परमात्मा के हुक्म में हो रहा है।

 इसी उम्मीद में कि जल्दी दिन अच्छे होंगे फिर से जिंदगी खुशहाल हो जाएगी। आज के लिए विदा लेता हूँ। फिर एक नया किस्सा लेकर मिलूंगा, तब तक के लिए विदा लेता हूँ।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड
22.03.2020
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