20.03.2019 To 24.03.2019
इस बार होली पर जाना हुआ पंजाब। पिछले कई सालों से उत्तराखंड में हूंँ और हर साल उत्तराखंड में बैठकी होली में जाना होता रहा है।बैठकी होली लोग इकट्ठे बैठकर उत्तराखंड के लोकगीत गाते हैं। हाथों से बने हुए आलू के चिप्स ,आलू के गुटके , भांग की चटनी, घर की बनी हुई गुजिया , यह सब चलता रहता है। एक थाली में अलग-अलग तरीके के गुलाल रखे जाते हैं। आने जाने वालों के गानों के ऊपर गुलाल लगाए जाते हैं और गीत गाए जाते हैं। तो हम निकले फिर पंजाब को । ससुराल डेराबस्सी वहां से गाड़ी में बैठे मैं कपिल मे कपिल की पत्नी चेतना और मेरी पत्नी सिमरन ।पहले पहुंचे अश्विनी के घर पर वहां से गुलाल लगाया। अश्वनी मेरा 20 साल पुराना दोस्त है। हम इकट्ठे पॉलिटेक्निक बठिंडा में पढ़ें हैं। उनके घर जूस पीया, नमकीन खाया , बातें की और फिर वहां से चल दिए। चंडीगढ़ में भी खूब होली मनाई जाती है । मैंने रास्ते में देखा एक सफेद कार, जिस पर होली के कच्चे रंगों से श्रृंगार कर रखा था, जिससे वो कार बहुत ही सुंदर का लग रही थी । एक और ब्लैक कलर की कार देखी जिस पर हाथ के पंजे से कच्चे रंग लगा रखे थे । अब पहुँचे नयागांव, मुन्नी के घर। वो पंजाबी गानों पर अपनी सहेलियों के साथ डांस कर रही थी ।उसने फिर हमें कांजी, जो गाजरों से बनती है । कांजी बनाने की विधि इसके लिए चार लाल गाजर, चार काली गाजरें, चार आंवले, सभी को काट लें। 2 लीटर पानी के अंदर डालते हैं। उसमें 2 चमचे राई, एक चम्मच काला नमक और दो चम्मच सफेद नमक। यह सारा कुछ घड़े में डाल कर रखें। उसके ऊपर उसको कपड़े से बंद कर दें। होली के दिनों में लगभग मार्च में यह दो-तीन दिन में तैयार हो जाती है। पीने में बहुत पौष्टिक होती है।मैंने ये दूसरी बार पी। फिर एक गाना बजाया "जद निकले पटोला बनके मित्रा दी जान ते बनी" पर डांस किया, खाना खाया और फिर वापस आ गए हो चलो अपनी साली शालु के घर। खूब मस्ती की पकोड़े खाए ,चाय पी और फिर वापसी हो गई डेरा बस्सी । उसने छत्त पर बहुत सुंदर फूल लगा रखे हैं। सांढु मिथिलेश आंखों के हस्पताल में हैं। अगले दिन में ट्रेन पकड़ के अमृतसर पहुंचा। रेलवे स्टेशन पर उतरा तो बहुत खूबसूरत नजारा था। यूं तो अमृतसर मशहूर है अपने हरमंदिर साहब के लिए, यहां के पापड़ ,मूंग की दाल की बड़ियाँ , गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी , अमृतसरी कुल्चा, वाघा बॉर्डर पर होती परेड ।यहीं से पाकिस्तान में ननकाना साहिब जाने के लिए ट्रेन है। मैं रेलवे स्टेशन से बाहर निकला तो वही तांबे के बर्तन वाला वही ढाबा दिखाई दिया यहां मैं 2 साल पहले आया था। वहां से ऑटो पकड़ कर नाटशाला पहुंचा । वँहा एक साइकिल की दुकान वालों ने अपने टूलज़ बहुत बढ़िया ढंग से सजा रखे थे। उसकी तस्वीर भी खींची और आपसे शेयर कर रहा हूँ। फिर पहुंचा अपनी सिस्टर के घर यहां मेरे पिताजी और मेरे माता जी उनके साथ ही रह रहे हैं। पिताजी के साथ दोस्ताना संबंध है ,हम दोनों पढ़ने वाले, लिटरेचर की बात करने वाले हैं। जिंदगी के बहुत सारे पहलुओं पर बात हुई ।रात को सो गया और अगले दिन सुबह खाना खाने के बाद के साथ बहुत बढ़िया है मन्चप्रीत मेरे जीजाजी एक डायरेक्टर है, एक एक्टिंग स्कूल भी है जो लोगों को एक्टिंग करने सिखाते हैं। उनके सिखाए हुए बच्चे मुंबई में बहुत नाम कमा रहे हैं। फिर मैं निकल गया खालसा कॉलेज अमृतसर देखने अंदर जाने के लिए परमिशन ली । गेट से ही फुलवारी शुरू हो जाती है यह कॉलेज 1892 में चीफ ख़ालसा दीवान और सिख मूवमैंट ने बनवाया था । कॉलेज की बिल्डिंग का नक्शा भाई राम सिंह ने डिजाइन किया है ।यह कॉलेज ब्रिटिश मुगल और सिख इतिहास की बिल्डिंग के मद्देनजर रखते हुए बनाया गया है। महाराजा, नवाबों और लोगों से चंदा इक्ट्ठा किया गया। एक महल की तरह है पर है यह कॉलेज कमरों की ऊंचाई इतनी है कि कहते हैं कि सर्दियों में यह कमरे कर्म होते और गर्मियों में ठंडा। फोटो खींचने की मनाही थी तो कोई फोटोग्राफ नहीं खींची। पीछे एक गुरुद्वारा बना हुआ है और उसके साथ सिख इतिहास की बड़ी लाइब्रेरी है ।घूमता हुआ पहली वाली बिल्डिंग में आया वहां पर प्रिंसिपल सर का ऑफिस है। उसके साथ में इस कॉलेज से जुड़े लेखक, कवि, एकटर सबकी तस्वीरें लगी हुई हैं। यह 300 एकड़ में फैला हुआ है। अंदर ही खेती होती है ।4 अप्रैल को यूथ फेस्टिवल है यहां पर मैंने देखा और कुछ लड़के भांगड़े की तैयारी कर रहे थे ।गेट से सीधे जाते बाई तरफ वहां पर एक बहुत ही बड़ा बरगद का पेड़ है शायद 100 साल पुराना होगा। हमारे पंजाब के लड़के बहुत ही सुंदर पगड़ी बांधते हैं ,लड़कियां पंजाबी सूट पहनती हैं उन्हें देखकर अपने कॉलेज के दिन याद आ गए। बिल्डिंग ऊपर प्लसतर नहीं है, पर लाल और सफेद कलर की सफेदी ऐसे हैं कि क्या कहें? अमृतसर खालसा कॉलेज के सामने अमृतसर लाहौर रोड पर पंजाब नाटशाला है । अमेरिका के इंडस्ट्रीज ने बना रखी है जिन्होंने अपनी फैक्ट्री को ये रूप दिया है ।उन्होंने इसमें रिवाल्विंग स्टेज वाला ,लगभग डेढ़ सौ सीटों वाला एक थिएटर बना रखा है जिसमें हर शनिवार और रविवार को नाटक होते हैं। इस नाटक की हर सीट की एक टिकट है । लाखों रुपए की लाइट एंड साउंड सिस्टम बहुत ही उम्दा बना है। पिछली बार यहां गया था अमृतसर नाटकों के लिए बहुत ही मशहूर है । पंजाब में नुक्कड़ नाटक खेलने वाले भाई मन्ना सिंह के नाम से मशहूर गुरशरन सिंह यहीं से थे। उनके लगाए हुए पौधे मतलब उनके शिष्य आज पूरे पंजाब में और मुंबई में ओं में नाटक खेल रहे हैं। वहां से फिर मैं अपनी बहन कविता के साथ शहीदों के गुरुद्वारे गया एक गुरुद्वारा बाबा दीप सिंह । गुरुद्वारे में एंट्री करते ही सबसे पहले अपने जूते जमा करवाएं , हाथ धोए, सिर पर रुमाल बांधा और फिर अंदर चले गए ।वहां पर माथा टेका, लंगर खाया । बाबा दीप सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ते हुए उनकी गर्दन अलग हो गई थी तो उन्होंने अपनी ही गर्दन हाथ में उठाकर लड़ते रहे। इस बात को देखकर मुगलों की फौजी घबरा कर भाग गई और उन्होंने फिर अपना शीश हरमंदिर साहिब में चढ़ा दिया ।ऐसे ही बहादुरी की मिसाल इतिहास में और कहीं देखने को नहीं मिलती । सिख कौम जितनी बहादुर है ,उतनी ही दयावान भी है । इन्होने सीरिया में जाके लंगर लगाए, यहां पर लोग जाने से डरते थे । खालसा नाम की एक संस्था है जो पूरे विश्व में कहीं पर भी कोई त्रासदी हो तो वहां पहुंचकर लंगर लगाती है ,घर बनाती है, कपड़े बांटती है । ऐसा ही नेपाल में किया था जब वहां भूचाल आया था, भुज में, उड़ीसा मे, कर्नाटका में यहां जब जम्मू कश्मीर में बाढ़ आई थी, तो यह चीज है हमें अपने बच्चों को बतानी चाहिए, उनको सिखानी चाहिए । मैं भी अपने बच्चों को जब गुरुद्वारे लेकर जाता हूं तो पूछते हैं पापा यहां मुफ्त में रोटी क्यों खिलाई जाती है? तो मैंने उनको बताया उसको रोटी नहीं लंगर कहते हैं । तो मेरे दोनों बेटे वहां कई बार लंगर भी बांटते हैं। घर पहुंचा पिताजी से खूब सारी फिर बातें हुई माताजी से भी और फिर खूब हंसी मजाक चला ।मेरा भतीजा आगाज़ बहुत शरारती है। अपने नाना जी की छड़ी फेंक देता है, रेडियो की आवाज ऊंची कर देता और नाचने लगता है । रात हो गई और सुबह उठा। फिर मैं चल दिया दिल्ली की तरफ यह यात्रा यह समाप्त होती है। अगली यात्रा में आप को लेकर चलता हूं ।
इस बार होली पर जाना हुआ पंजाब। पिछले कई सालों से उत्तराखंड में हूंँ और हर साल उत्तराखंड में बैठकी होली में जाना होता रहा है।बैठकी होली लोग इकट्ठे बैठकर उत्तराखंड के लोकगीत गाते हैं। हाथों से बने हुए आलू के चिप्स ,आलू के गुटके , भांग की चटनी, घर की बनी हुई गुजिया , यह सब चलता रहता है। एक थाली में अलग-अलग तरीके के गुलाल रखे जाते हैं। आने जाने वालों के गानों के ऊपर गुलाल लगाए जाते हैं और गीत गाए जाते हैं। तो हम निकले फिर पंजाब को । ससुराल डेराबस्सी वहां से गाड़ी में बैठे मैं कपिल मे कपिल की पत्नी चेतना और मेरी पत्नी सिमरन ।पहले पहुंचे अश्विनी के घर पर वहां से गुलाल लगाया। अश्वनी मेरा 20 साल पुराना दोस्त है। हम इकट्ठे पॉलिटेक्निक बठिंडा में पढ़ें हैं। उनके घर जूस पीया, नमकीन खाया , बातें की और फिर वहां से चल दिए। चंडीगढ़ में भी खूब होली मनाई जाती है । मैंने रास्ते में देखा एक सफेद कार, जिस पर होली के कच्चे रंगों से श्रृंगार कर रखा था, जिससे वो कार बहुत ही सुंदर का लग रही थी । एक और ब्लैक कलर की कार देखी जिस पर हाथ के पंजे से कच्चे रंग लगा रखे थे । अब पहुँचे नयागांव, मुन्नी के घर। वो पंजाबी गानों पर अपनी सहेलियों के साथ डांस कर रही थी ।उसने फिर हमें कांजी, जो गाजरों से बनती है । कांजी बनाने की विधि इसके लिए चार लाल गाजर, चार काली गाजरें, चार आंवले, सभी को काट लें। 2 लीटर पानी के अंदर डालते हैं। उसमें 2 चमचे राई, एक चम्मच काला नमक और दो चम्मच सफेद नमक। यह सारा कुछ घड़े में डाल कर रखें। उसके ऊपर उसको कपड़े से बंद कर दें। होली के दिनों में लगभग मार्च में यह दो-तीन दिन में तैयार हो जाती है। पीने में बहुत पौष्टिक होती है।मैंने ये दूसरी बार पी। फिर एक गाना बजाया "जद निकले पटोला बनके मित्रा दी जान ते बनी" पर डांस किया, खाना खाया और फिर वापस आ गए हो चलो अपनी साली शालु के घर। खूब मस्ती की पकोड़े खाए ,चाय पी और फिर वापसी हो गई डेरा बस्सी । उसने छत्त पर बहुत सुंदर फूल लगा रखे हैं। सांढु मिथिलेश आंखों के हस्पताल में हैं। अगले दिन में ट्रेन पकड़ के अमृतसर पहुंचा। रेलवे स्टेशन पर उतरा तो बहुत खूबसूरत नजारा था। यूं तो अमृतसर मशहूर है अपने हरमंदिर साहब के लिए, यहां के पापड़ ,मूंग की दाल की बड़ियाँ , गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी , अमृतसरी कुल्चा, वाघा बॉर्डर पर होती परेड ।यहीं से पाकिस्तान में ननकाना साहिब जाने के लिए ट्रेन है। मैं रेलवे स्टेशन से बाहर निकला तो वही तांबे के बर्तन वाला वही ढाबा दिखाई दिया यहां मैं 2 साल पहले आया था। वहां से ऑटो पकड़ कर नाटशाला पहुंचा । वँहा एक साइकिल की दुकान वालों ने अपने टूलज़ बहुत बढ़िया ढंग से सजा रखे थे। उसकी तस्वीर भी खींची और आपसे शेयर कर रहा हूँ। फिर पहुंचा अपनी सिस्टर के घर यहां मेरे पिताजी और मेरे माता जी उनके साथ ही रह रहे हैं। पिताजी के साथ दोस्ताना संबंध है ,हम दोनों पढ़ने वाले, लिटरेचर की बात करने वाले हैं। जिंदगी के बहुत सारे पहलुओं पर बात हुई ।रात को सो गया और अगले दिन सुबह खाना खाने के बाद के साथ बहुत बढ़िया है मन्चप्रीत मेरे जीजाजी एक डायरेक्टर है, एक एक्टिंग स्कूल भी है जो लोगों को एक्टिंग करने सिखाते हैं। उनके सिखाए हुए बच्चे मुंबई में बहुत नाम कमा रहे हैं। फिर मैं निकल गया खालसा कॉलेज अमृतसर देखने अंदर जाने के लिए परमिशन ली । गेट से ही फुलवारी शुरू हो जाती है यह कॉलेज 1892 में चीफ ख़ालसा दीवान और सिख मूवमैंट ने बनवाया था । कॉलेज की बिल्डिंग का नक्शा भाई राम सिंह ने डिजाइन किया है ।यह कॉलेज ब्रिटिश मुगल और सिख इतिहास की बिल्डिंग के मद्देनजर रखते हुए बनाया गया है। महाराजा, नवाबों और लोगों से चंदा इक्ट्ठा किया गया। एक महल की तरह है पर है यह कॉलेज कमरों की ऊंचाई इतनी है कि कहते हैं कि सर्दियों में यह कमरे कर्म होते और गर्मियों में ठंडा। फोटो खींचने की मनाही थी तो कोई फोटोग्राफ नहीं खींची। पीछे एक गुरुद्वारा बना हुआ है और उसके साथ सिख इतिहास की बड़ी लाइब्रेरी है ।घूमता हुआ पहली वाली बिल्डिंग में आया वहां पर प्रिंसिपल सर का ऑफिस है। उसके साथ में इस कॉलेज से जुड़े लेखक, कवि, एकटर सबकी तस्वीरें लगी हुई हैं। यह 300 एकड़ में फैला हुआ है। अंदर ही खेती होती है ।4 अप्रैल को यूथ फेस्टिवल है यहां पर मैंने देखा और कुछ लड़के भांगड़े की तैयारी कर रहे थे ।गेट से सीधे जाते बाई तरफ वहां पर एक बहुत ही बड़ा बरगद का पेड़ है शायद 100 साल पुराना होगा। हमारे पंजाब के लड़के बहुत ही सुंदर पगड़ी बांधते हैं ,लड़कियां पंजाबी सूट पहनती हैं उन्हें देखकर अपने कॉलेज के दिन याद आ गए। बिल्डिंग ऊपर प्लसतर नहीं है, पर लाल और सफेद कलर की सफेदी ऐसे हैं कि क्या कहें? अमृतसर खालसा कॉलेज के सामने अमृतसर लाहौर रोड पर पंजाब नाटशाला है । अमेरिका के इंडस्ट्रीज ने बना रखी है जिन्होंने अपनी फैक्ट्री को ये रूप दिया है ।उन्होंने इसमें रिवाल्विंग स्टेज वाला ,लगभग डेढ़ सौ सीटों वाला एक थिएटर बना रखा है जिसमें हर शनिवार और रविवार को नाटक होते हैं। इस नाटक की हर सीट की एक टिकट है । लाखों रुपए की लाइट एंड साउंड सिस्टम बहुत ही उम्दा बना है। पिछली बार यहां गया था अमृतसर नाटकों के लिए बहुत ही मशहूर है । पंजाब में नुक्कड़ नाटक खेलने वाले भाई मन्ना सिंह के नाम से मशहूर गुरशरन सिंह यहीं से थे। उनके लगाए हुए पौधे मतलब उनके शिष्य आज पूरे पंजाब में और मुंबई में ओं में नाटक खेल रहे हैं। वहां से फिर मैं अपनी बहन कविता के साथ शहीदों के गुरुद्वारे गया एक गुरुद्वारा बाबा दीप सिंह । गुरुद्वारे में एंट्री करते ही सबसे पहले अपने जूते जमा करवाएं , हाथ धोए, सिर पर रुमाल बांधा और फिर अंदर चले गए ।वहां पर माथा टेका, लंगर खाया । बाबा दीप सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ते हुए उनकी गर्दन अलग हो गई थी तो उन्होंने अपनी ही गर्दन हाथ में उठाकर लड़ते रहे। इस बात को देखकर मुगलों की फौजी घबरा कर भाग गई और उन्होंने फिर अपना शीश हरमंदिर साहिब में चढ़ा दिया ।ऐसे ही बहादुरी की मिसाल इतिहास में और कहीं देखने को नहीं मिलती । सिख कौम जितनी बहादुर है ,उतनी ही दयावान भी है । इन्होने सीरिया में जाके लंगर लगाए, यहां पर लोग जाने से डरते थे । खालसा नाम की एक संस्था है जो पूरे विश्व में कहीं पर भी कोई त्रासदी हो तो वहां पहुंचकर लंगर लगाती है ,घर बनाती है, कपड़े बांटती है । ऐसा ही नेपाल में किया था जब वहां भूचाल आया था, भुज में, उड़ीसा मे, कर्नाटका में यहां जब जम्मू कश्मीर में बाढ़ आई थी, तो यह चीज है हमें अपने बच्चों को बतानी चाहिए, उनको सिखानी चाहिए । मैं भी अपने बच्चों को जब गुरुद्वारे लेकर जाता हूं तो पूछते हैं पापा यहां मुफ्त में रोटी क्यों खिलाई जाती है? तो मैंने उनको बताया उसको रोटी नहीं लंगर कहते हैं । तो मेरे दोनों बेटे वहां कई बार लंगर भी बांटते हैं। घर पहुंचा पिताजी से खूब सारी फिर बातें हुई माताजी से भी और फिर खूब हंसी मजाक चला ।मेरा भतीजा आगाज़ बहुत शरारती है। अपने नाना जी की छड़ी फेंक देता है, रेडियो की आवाज ऊंची कर देता और नाचने लगता है । रात हो गई और सुबह उठा। फिर मैं चल दिया दिल्ली की तरफ यह यात्रा यह समाप्त होती है। अगली यात्रा में आप को लेकर चलता हूं ।
बैठकी होली बढ़िया जानकारी.....वाह भाई बहुत बढ़िया होली...दोस्तो के साथ रिश्तेदारों साली के साथ जीजाजी की नाटक मंडली और wagaah बॉर्डर अमृतसर का खाना सब बहुत बढ़िया...बढ़िया होली भाई....
ReplyDeleteशुक्रिया प्रतीक भाई । आपके घुमक्कड़ी ग्रुप ने बहुत कुछ सिखाया है मुझे।
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