Sunday, April 14, 2019

अष्टमी पर लड़कियों की पूजा और पढ़ाई

कल अष्टमी थी तो कंजको को को घर पर बुलाकर उनकी पूजा की।
यहां पर यह बताना जरूरी है कि उत्तर भारत और भारत के कई देशों में नवरात्रों का त्यौहार मनाया जाता है, जिसमें की मां दुर्गा की पूजा होती है, व्रत रखे जाते हैं। व्रत में लहसुन ,प्याज , गेंहु का आटा आदि का सेवन नहीं किया जाता।
गुजरात में बहुत बड़े पैमाने पे लिए मनाया जाता है ।वहां पर रातों को डांडिया खेला जाता है, कोलकाता में मां दुर्गा की बहुत बड़ी पूजा होती है । जिसमें मां की मूर्तियां बनाई जाती है मिट्टी से रात रात भर को पूजा होती है।
औरत पूजनीय है ,क्योंकि वह जननी है,  माँ है और हमेशा वह पूजनीय ही रहेगी।
मैंने उन लड़कियों से पूछा, कि वो पढ़ती है या नहीं ? उनमें से सिर्फ एक ही बच्ची पढ़ती थी। 7 लड़के और एक लड़की में से सिर्फ एक बच्ची । मुझे खुद पर गुस्सा आया कि मैं उस समाज का हिस्सा हूँ जिसमें लड़कियों की पूजा तो होती है,  पर उन्हें पढाया लिखाया नहीं  जाता।  साल में उनको एक बार पूजना यह काफी नहीं है, हमें इनको को  पढ़ाना चाहिए क्योंकि लड़कियां पढेंगी तो अपने पैरों में खड़ी होंगी।
    हमारे होशियारपुर, पंजाब  में एक  "मानवता  मंदिर "  है उसके बाहर यह लिखा हुआ है दुनिया में हर बच्चा जो आ रहा है हमारी नैतिक जिम्मेवारी है।
ओशो कहते हैं बच्चा पैदा होता  कुछ संभावनाएं लेकर पैदा होता है , वो हिटलर भी बना सकता है और महात्मा बुद्ध भी।  
लड़कियों को पढ़ाना इसलिए भी जरूरी है घर को चलाने में कुछ आर्थिक सहयोग भी कर सकती हैं। इससे उनका मनोबल भी बढ़ता है । बहुत बार देखा गया है कि पति अगर निकम्मा हो, या शराबी हो तो औरत पूरी जिंदगी उसके कदमों में काट देती है क्योंकि उसके पास पैसा कमाने का कोई जरिया नहीं होता कि उसने पढ़ाई नहीं की होती। हमारे भारत के गरीब होने का ये भी एक कारण है। गरीबी के कारण ही आबादी की समस्या है।  क्योंकि हर गरीब आदमी सोचता है कितने जब बच्चा पैदा होगा तो दो हाथ कमाने वाले आएंगे, पर वो ये भूल जाते हैं कि हर पैदा होने वाला बच्चा एक पेट भी लेकर पैदा होता है।
गोपाल दास नीरज गरीबी के बारे में यह कहते हैं भूख आदमी को गद्दार बना देती है।
मैंने उन बच्चियों को पढ़ने के लिए घर  आने को कहा क्योंकि मेरी पत्नी बच्चों को पढा़ती है । जो बच्चे गरीब होते हैं उनसे  नामात्र पैसे ही ले लेती है। पर वो बच्चे बहुत दूर से आए थे,  वह यहां हर रोज नहीं आ सकते थे। तो मैंने उनको कहा , तुम अपने घर के आस-पास में आंगनवाड़ी में पढ़ो ।अगर जरूरत है तो कभी हमारे घर भी आ जाया करो।
यह सब देख कर भी मैं परेशान नहीं हो रहा, क्योंकि मेरे से जो हो सकेगा वह मैं करूंगा और कर भी रहा हूँ। किसी बच्चे को कुछ किताबें नहीं होती तो किताबें, आर्थिक रूप से उनकी मदद करता रहता हूँ। मैं सपने देखता रहता हूँ, सपने बुनता रहता हूँ, क्योंकि सपने देखना हमें जीवन जीने की ललक पैदा करता है, हमें जवान रखता है।
बहुत पुराने गीत की कुछ लाइनें याद आ गई
वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से
जब रात का आंचल ढलकेगा
जब अंबर झूम के नाचेगा
जब धरती नग्में गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
#rajneesh_jass
13.04.2019
Rudrarpur
Uttrakhand
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