Saturday, January 30, 2021

Journey Ramgarh and Kainchidham

पैरों में उसके सर को धरें, इल्तिजा* करें 
एक इल्तिजा, जिसका ना सर हो ना पैर हो
#उमैर नज्मी
*इल्तिजा -प्रार्थना

दोस्तों के साथ घूमना, बेसिर पैर की बातें करना, हंसी मज़ाक..... दिल को हल्का कर जाता है। हमें दो दिन की छुट्टी थी। पंकज ने मुझसे पूछा क्या करोगे? मैंने कहा कैंची धाम तक जाऊंगा। उसने कहा, इकट्ठे चलते हैं और जगविंदर को भी हम ने साथ ले लिया। दोपहर को 1:00 बजे रूद्रपुर से निकले और हल्द्वानी पहुंचे । हल्द्वानी से काठगोदाम। काठगोदाम में उडीपीवाला से मसाला डोसा खाया।  उनके मसाला डोसा का स्वाद ही अलग है। वहां से हम फिर भीमताल ।  रामगढ़ से पहले खाने पीने का सामान लिया।   आलू गोभी की सब्जी, और पीली दाल।
मैं घर से चाय बना कर ले गया था। वहां पर हमने चाय के लिए डिसपोज़ेबल गिला। खरीदे। फिर हमने चाय पी। चाय का एक कप नीचे गिर गया पर दूसरा मैनें संभाल कर रख लिया  क्योंकि वहां पर कचरा नहीं करना था। मैंने घुमक्कडी दिल से ग्रुप में देखा था कुछ लोग अपना सारा कचरा अपने साथ ही समेट कर रखते हैं । 
वहां से फिर हम शाम को रामगढ़ पहुंचे। वहां पर हरीश नाम का केयर टेकर था। उसको सारा सामान दिया । 
ठंड बहुत ज्यादा थी फिर हमने थोड़ा पहाड़ पर चक्कर लगाया । बैठकर गप्पे मारने लगे। जगविंदर ने खूब रौनक लगाई। दोबारा थर्मस से फिर चाय निकाली और पी।  हरीश को   कहा कि वह आग जला दे। हरीश बाहर से लकड़ियां लेकर आया और उसने आग जला दी।
मैनें देखा उसके पैर में केवल चप्पलें थी। मैनें पूछा ठंड नहीं लगती? वह मुस्कुरा दिया। पर उसकी मुस्कुराहट में जो दर्द छिपा था, मुझे जगजीत सिंह की गाई गज़ल याद आ गयी

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिसकै छुपा रहे हो?
आँखों में नमीं हँसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो?
क्या ग़म है जिसकै छुपा रहे हो?

कमरे में गर्मी हो गई थी। हम गप्पे मारने लगे और फिर रात का खाना बना खाना खाकर सोए।
खाना खाकर फिर टहलने निकले और मोबाईल की लाईट जला ली, क्योंकि मुझे किसी ने बताया था ,पहाड़ मे चलने के तीन ऊसूल हैं, एक तो हाथ में टार्च हो जो कि पहाड़ में जानवर समझता है आग है तो वह हमला नहीं करता।
दूसरा आप देखें आप पाँव कँहा रख रहे है, क्योंकि अगर फिसलन हुई तो आप गिर सकते है। तीसरा अगर चढाई है तो लगातार ना चढें , आप थक सकते हैं तो रास्ते में रूक कर , आराम करके चलें।
सुबह उठे तो हरीश को कहा कि पानी टंकी में भर दो तो उसने टुल्लू पंप चलाकर पानी भर दिया। उसने बताया यह पानी किसी स्त्रोत से खींचा जाता है। पानी तो उसने पानी भर दिया ।

फिर बेदी साब का फोन आया। वो बता रहे थे कि 1993 में होशियारपुर से चिंतपूर्णी तक जाते थे तो हर तरफ पेड़ होते थे पर पिछले साल जब वो उसी रूट से गये तो देखा सड़क के इर्द गिर्द सिर्फ होटल ही होटल हैं इसको तरक्की तो नहीं कह सकते। इन्हीं होटलों के कारण केदारनाथ में बाढ़ आई थी। 

सुबह हमने देखा सामने पहाड़ी पर हिमालय की पहाड़ियां बर्फ से ढकी हुई थी उनको देखने का लगे। बाहर निकले तो मैंने देखा तो फूलों की फोटो खींचे जो कि जिन की पंखुड़ियां जुड़ी हुई थी।

फिर हम घूमने निकल गया । आकर खाना खाया जब हम दोबारा निकले तो सूरज काफी ऊपर आ चुका था । मैंने  बाहर आकर देखा वही दो फूल देखे तो उनकी पंखुड़ियां खिल गई थी।
हरीश जी में खड़ा था मैंने उसको पूछा वह कहां से ? उसने बताया करो नेपाल से है और उसकी बीवी बच्चे मुंबई में रहते हैं। मैंने कहा यह उसने बताया कि उसकी लव मैरिज हुई। मैंने यह तो बहुत ही अच्छा। उसने बताया कि वह हर साल छुट्टी में दिसंबर में मुंबई जाता है पर इस साल कोरोना के चक्कर में नहीं जा सका । 
हमने यहां पर रामगढ़ हम ठहरे थे वहां देखा तो दिल्ली वालों ने बहुत सारे फ्लैट बना रखे हैं। हमने उसको पूछा कि यहां पर कोई है परमानेंट भी रहता है? तो हरीश ने बताया, कोई नहीं रहता बस लोग आते हैं  और चले जाते हैं।  
हम  पहाड़ घूमने जाते हैं पर पहाड़ का दर्द अलग ही है। वहां पर रहने वाले लोगों ने अपनी ज़मीनें बेच रहे हैं और दिल्ली के लोग वहां पर जगह खरीदकर, लाखों रूपये लगाकर अपनी रेस्ट हाउस बना लेते हैं। वहां पर नेपाल से या वँही से 
कई लोगों को नौकर रख लेते हैं। ज़मीन बेचकर वहां के लोकल लोग यहां पर रुद्रपुर, हल्द्वानी दिल्ली और बाकी जगहों का नौकरी करने आ गए है और वँहा के मकान बंद हो गये हैं। बंद मकान देखकर अपने गाँव पुरहीराँ, होशियारपुर,पंजाब का बंद मकान याद आ गया।

फिर हम ऊपर पहाड़ी पर निकले । वहां पर बहुत सारे बंदर थे। हमने अपने मोबाइल जेब में ही रखे क्योंकि अगर उनकी तस्वीर खींचने को निकालते तो हो सकता है वह उसे लेकर भाग जाते।  

फिर हम वापिस लौट आए।
हरीश ने बताया कि आप 10 साल पहले  ढाई से तीन फीट तक बर्फ गिर जाती थी  जो कि आप सिर्फ 6 इंची  गिरती है। और वो भी इस साल बिल्कुल नहीं गिरी वो भी  मौसम में बदलाव के कारण।
हरीश को अच्छे खाने के लिए उसका शुक्रिया अदा किया और फिर हम निकले। फिर भवानी के रास्ते हुए हम ज्योलीकोट को निकल गए। वँहा से भुट्टा लिया। उसने पूछा निंबू लगाना है या मिर्च की चटनी?
हमने कहा, मिर्च की चटनी दे दो। हमने मिर्च खा तो ली पर होंठ जल गये। वँहा पर एक लड़का था, बत्ता ने कहा, यार ग्राहक से पहले बता दिया करो कि मिर्च इतनी तेज़ है?
वह शराब में टुन्न था। वह बोला, साहब ऐसी तेज़ मिर्च खाने से पति पत्नी में झगडा हो तो सुलह हो जाती है। 
बत्ता जी बोले, दोस्त हम तीन दोस्त हैं, बीवी किसी की साथनहीं है और हमारा कोई झगडा भी नहीं है अपनी बीवी से।😀😀

हम कैंची धाम को चल दिए। वहां पर माथा टेका बैठे और कुछ देर बैठे।कोरोना के चक्कर चलते हुए वहां पर काफी सख्ताई है , फिर भी कई लोग वहां पर बिना मास्क के  बिना आ रहे थे। तो पुलिस वालों ने उनके मास्क लगवाएं। बाहर निकलकर  सामने ही पहाड़ी नींबू और माल्टे की शिकंजी पी। पास में एक दुकान थी यँहा कई किस्म के शर्बत थे। वँहा सिलवट्टे पर पिसा एक नमक था जिसको के वहां पर पहाड़ी नून कहते हैं वह खरीदा। फिर गाड़ी से हम वापस निकल लिए। यह नए रास्ते से वापस जा रहे थे। एक रास्ता ज्योलीकोट आते जाते हुए रास्ते में पायलट बाबा के मंदिर में रुके। वहां से फिर हमारी निकले दो गांव।
हमने चाय पी। हम  देख रहे थे सामने दो औरतें पहाड़ से घास लेकर वापिस आ रही थी। सिर पर बहुत सारा घास उठा रखा था उत्तराखंड में औरतें बहुत मेहनत करती हैं। वँहा के ज्यादातर मर्द तो शहरों में नौकरी कर रहे हैं। क ई जो गाँव में हैं वो उस भुट्टेवाले की तरह दारू पीकर टुन्न रहते हैं।
अक्सर खबर आती है, औरतें जंगल में गाय भैंस के लिए चारा लेने गयी तो चीते से सामना हो जाता है। अभी कुछ महीने पहले की ख़बर थी , जंगल में घास लेने गयी सास बहु को चीते ने हमला किया तो सास ने दातुरी से चीते पर पलटवार किया तो चीता ज़ख्मी हो गया।

काठगोदाम से होते हुए हम हल्द्वानी पहुँचे।वँहा बत्ता देखा  वँहा पर बाईकर्ज़ गैंग के लोग खडे थे। बत्ता जी ने कार रोकी और मुझे कहा , जाओ मिल आओ। 
मैं कर से नीचे उतरा। उनसे बातचीत हुई। उन्होनें बताया वह हल्द्वानी से ही हैं। मैनें उन्हें बताया, ,यही हल्द्वानी से ही चिराग़ मेहता हैं जो हर साल अपने रायल एन्फील्ड पर लेह लद्दाख जाते हैं फिर मैनें उनके साथ तस्वीर खिचवाई और बत्ता जी के बारे में बताया कि वह बजाज मोटरसाईकिल कंपनी में ही काम करते हैं। उन्होनें बताया वह हल्द्वानी से सुबह नानकमत्ता गए थे और अभी लौटे हैं।
 फिर हम निकल दिए रुद्रपुर को।
फिर मिलूंगा एक नयी यात्रा के किस्से के साथ। 
आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
26.01.2021
#journey_ramgarh_and_kainchidham

Tuesday, January 19, 2021

बच्चों में कोचिंग सैंटर से डिप्रेशन

आज मैं एक बहुत ही नाज़ुक विषय पर बात कर रहा हूँ वह है बच्चों की कोचिंग जो बडे बडे शहरों  में होती है।  शहरों में सैंकडों कोचिंग इंस्टिट्यूट हैं जो आई आई टी और एम बी बी एस की तैयारी करवाते हैं जिसमे 1.5  से 5 लाख रूपये पर सालाना लिये जाते हैं।  इसमें 10 वीं  के बाद में बच्चों को भेज दिया जाता है।
बच्चों की जो किशोरावस्था है उसमें 15 साल की उम्र में ये भावनाएं बहुत उग्र होती हैं तब ऐसे ही शहर में बच्चों को भेज देना यहां नशा है, एक अंधी दौड़ है, मैं माफी चाहता हूं मैं मां बाप को यहां पर जल्लाद लिख रहा हूं क्योंकि यह मां-बाप यह भी नहीं सोचते कि नाजुक से बच्चे जो भी के स्कूल से निकले हैं उनको एक ऐसे कोचिंग क्लास में भेज रहे हैं यहां पर पैसे के लालची भेड़िए बैठे हुए हैं, जिनको आपके बच्चों से कुछ नहीं लेना देना नहीं है  उनको अपने पैसे से मतलब है। आपका बच्चा उनके लिए  सिर्फ पैसे की एक मशीन है। वह खुद अंधी दौड़ में भागे हुए लोग हैं उनको अपनी कारें बड़ी करनी है, मकान बड़े करने हैं। वह आपके बच्चों को क्या शिक्षा देंगे? अगर वह कोई शिक्षा दे भी देते हैं तो आपके बच्चे क्या बनने वाले  है? यह कभी सोचा है?

वह भी वैसे ही बनने वाले हैं जैसे वो कोचिंग सैंटर वाले हैं। कोटा में रहने वाले बच्चों में नींद कम हो रही है, वँहा बच्चों में आत्महत्या की गिनती बढ़ती जा रही है। आप यह अख़बारों में देख सकते हैं।
मेरा मक़सद आप में डर नहीं बल्कि समझ पैदा करना है। 

यहां पर पूरे भारत से भारत के छोटे शहरों से बड़े शहरों से बच्चे आ रहे हैं।
आखिरी क्या देश को सिर्फ आईआईटी और एमबीबीएस ही चला रहे हैं? बाकी लोग कुछ नहीं है क्या?
एक किसान, एक नाई, एक सब्जी वाला, एक कुक?  क्या इनके स्किल की कोई वैल्यू नहीं है ?

मुझे एक किस्सा याद आ रहा है तेहरान से एक टेलर बिज़ाद पाकज़ाद अमेरिका के शहर में गया। वहां पर उसने बहुत ही शहर में अपना एक शोरूम खोला । जिसमें उसने कोट सिलना शुरू किया। उसकी सिलाई बहुत ज्यादा थी।  लोगों ने बोला तेरे पास कोई नहीं आएगा। पर 2 साल में वहां कोट की सिलाई के लिए इतना मशहूर हो गया कि वहां पर हॉलीवुड के सारे एक्टर, रूस के राष्ट्रपति पुतिन तक उस से कोट सिलवाने आने लगे। उस आदमी के पास पैसा देखकर आप हैरान हो जाएंगे उसके घर के बाहर पीले रंग की दुनिया की हर बेहतरीन गाड़ी खड़ी हैं। यँहा तक एक गाड़ी पीले रंग की रोल्स रॉयस कार भी खड़ी है । उस बंदे ने क्या किया? उस बंदे ने अपने शौक  को अपना जुनून बनाया।
मेरे दोस्त मेजर मांगट ने अपनी किताब "असीं वी वेखी दुनिया" में यह लिखा है। यही करण है कि भारत में नशा बढ़ गया है, जो कवि बनना 
चाहते हैं तो मां बाप पीट पीटकर उन्हें डाक्टर या इंजीनियर बना रहे हैं।
भारत का यह दुख है कि यँहा सिर्फ दो ही प्रोफेशन माने जाते हैं, पहला डाक्टर और दूजा इंजिनियरिंग।
अब हिटलर ,पेंटर बनना चाहता था,माँ  बाप ने कहा, क्या करोगे पेंटर बनके?
उसने दूसरे विश्व युद्ध में हिटलर ने 10 लाख से ज्यादा लोग मारे।
ओशो कहते है, अगर हिटलर पेंटर बन जाता तो दुनिया का सबसे बेहतर पेंटर बनता।

 मैं सरदारा सिंह जौहल जो कि पंजाबी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर हुए हैं उनकी आत्मकथा पढ़ रहा था, "रंगों की गागर "
 उनको दो साल तक पढाई छोड़कर खेती करनी पडी ,पर वो बाद में वाइस चांसलर बने। उन्होनें चावल की नयी नयी किस्में भारत को दी वो भी दुनिया में घूम घूमकर।

 इससे दो बातें सीखने को मिलती है कि जब भी हमारा बच्चा कभी फेल हो जाए तो मां-बाप को उसको स्वीकारना चाहिए। आजकल क्या है कि मां-बाप का सिंबल स्टेटस है मेरे बच्चे के नंबर  95% है। उस चक्कर में बच्चा अंदर से अंदर हीन भावना का शिकार होता है कई बार तो वह  गलत  रास्ते अख्तियार करता है। जिंदगी में हमेशा पास होना ही जरूरी नहीं होता, तो वह फेल  भी हो सकता है। उसको बताना चाहिए उसको स्वीकार करना चाहिए, जो वह आगे बढ़ कर उसको कुछ और कमी को पूरा कर सके। दूसरी बात से यह सीखने को मिलती है कि जो लोग इतना जुनून पूरा करते हो कहीं ना कहीं जरूर पहुंचते हैं।

 ऐसी अनगिनत उदाहरनें है जैसे कि पंडित जसराज । जब वह पढ़ने जाते थे रास्ते में वह क्लासिकल संगीत सुनने लगे।  वह पढ़े नहीं, बाद में पूरा मैंने साल जब बीत गया तो उनके घर पर पता चला। पंडित जसराज जी ने संगीत में वह ऊंचाई हासिल की है हम इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके नाम पर नासा ने एक उपग्रह का नाम दिया है।


मैंने अपने दोस्त से बात की थी तो उसने बताया कि भारत में हालात इतने खराब है कि एक लड़का बाल काटता था। तो उसको लड़की वाले देखने आए तो लड़की वालों ने रिश्ता देने से मना कर दिया और कहा ,लड़का बाल काटता है? उसे मजबूरन उस बंदे को वह अपने प्रोफेशन चेंज करके कुछ ओर करना पड़ा तब जाकर उसकी शादी हुई।

क्या हम अपने बच्चों को सिर्फ और सिर्फ पैसे कमाने वाले रोबोट बनाना चाहते हैं?
हम जानते हैं कि रोबोट में भावना नहीं होती।
क्या हम सिर्फ भावना विहीन जगत बनाना चाहते हैं?
हम अपने बच्चों को क्यों नहीं सिखाते कि मन की शांति सबसे ऊपर है?
हम क्यों सोचते हैं कि वह जितना ज्यादा पैसा कमाएंगे उतना ही हम सुखी होंगे ?
ऐसे पैसे का क्या फायदा जिससे सुकून ही ना आए। 
पर ऐसा बिल्कुल नहीं है। अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में जहां सबसे अमीर लोग रहते हैं वहां पर तीसरा आदमी डिप्रेशन का शिकार है।

रतन टाटा कहते हैं कि बच्चों को सिखाओ कि खुश रहना ही सबसे उत्तम है।
अब अगर रतन टाटा कह रहे हैं तो हमें उसके बारे में एक बार सोचना तो चाहिए!

चूहा दौड़ आखिर क्या करवा रही है?
हमारे युवा कहीं खो गया मोबाइल की चैटिंग में। आपके बच्चों का कोई मित्र सुबह गुड मॉर्निंग का मैसेज व्यटस अप्स पर  हर रोज़ भेजता है तो उसको लगता है कि वह उसका सच्चा दोस्त है। पर क्या अपने दिल पर हाथ रख कर बता सकता है कि उसके अब वह अपने मन का दुख उससे शेयर कर सकता है ? अपने दोस्त से बेसिर पैर की बातों पर मन खोल कर सकता है,  हस सकता है, नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।

तो यह  बातें मां-बाप को देखनी होगी लड़का और लड़की दोनों को रसोई में खाना बनाना आना चाहिए, प्याज काटना, तड़का लगाना, चावल बनाना भी।
 आप सोच रहे हो इससे क्या? क्योंकि जो आपके हाथ से काम करके आपको आत्म संतुष्टि मिलती है वह कहीं भी नहीं मिलती ।
घर के गमले में पौधों को पानी देना, उन्हें बढ़ते हुए देखना, सुबह साइकिलिंग करने जाना, तितलियां देखना,  पंछियों की चहचहाट को सुनना, पेड़ के पत्तों पर गिरी ओस की बूंदों को देखना , इससे आपके अंदर की भावना उत्पन्न होगी कि जो पौधा है वह धीरे धीरे बढ़ता है।

 जैसे कबीर कहते हैं 
धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय 


बच्चों में डिप्रेशन का एक और कारण भी है।  कुछ मां बाप अपने बच्चों को एक साल में दो क्लास करवाते हैं, इससे बच्चों पर मानसिक दबाव बढ़ता है। कई बच्चे मां बाप को बता नहीं पाते और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। यह बहुत ही खतरनाक है। जब वह बच्चे बड़े होंगे अपने मां-बाप को या तो वृद्ध आश्रम में छोड़ देंगे या कोई अपराध करेंगे ।
पर इसकी जिम्मेदारी  हम देश या व्यवस्था को देकर अपने गुनाहों से मुक्त नहीं हो सकते।
हमें अपने बच्चों के दोस्त बनना होगा कि 
वह हमको अपना दुख बता सकें।
 हम उनको को इतना परिपक्व करें कि उनके साथ कुछ गलत हो या  उनसे कोई गलती हो जाए तो वो हमको बिना किसी झिजक के बोल सकें। 

 एक बार एक लड़की मुझे मिली। वह बहुत ही ज्यादा परेशान थी। उसका तलाक हो गया था।  मैंने उससे पूछा कि तूने कभी गमलों को पानी दिया,  उसने कहा नहीं , मेरी मां देती है।
मैंने उसको  पूछा क्या तुमने कभी अपनी माता के  सिर में सरसों का तेल लगाया?
उसने कहा नहीं।
तो मैनें कहा,  जब तुम अपने मां बाप को प्यार ही नहीं करते, तुम  अपने घर के गमलों को पानी ही नहीं देते,  तुम कैसे कह सकते हो तुम सुखी हो जाओगे।
 तो तुम क्या सोचते हो कि तुम्हारे पास एप्पल का फोन आ जाएगा और तुम सुखी हो जाओगे?
नहीं, बिल्कुल नहीं।

सुविधाओं को इकट्ठा करना और उसको भोगना जीवन नहीं है,  ना ही सुविधाओं का त्याग करना जीवन है । जीवन इससे बहुत ही ऊपर की चीज़ है। 

मुझे एक चुटकुला याद आ गया।  एक बार एक लड़का अख़बार बेच रहा था। वह ऊँची ऊँची आवाज़ में  कह रहा था आज की ताज़ा खबर आज की ताज़ा खबर, एक आदमी  ने 99 लोगों को बेवकूफ बनाया।  एक आदमी ने एक अख़बार खरीदा। तुरंत वह लड़का कहने लगा,  आज की ताज़ा खबर, एक आदमी ने 100 आदमियों को बेवकूफ बनाया।😀😀

तो इन कोचिंग सैंटर के चक्करों में ना पडें, बल्कि अपने बच्चों को वो बनाएं जो वो बनना चाहते हैं।

 मेरा इतना ही कहना है अपने जीवन में समझदार बनें। हो सकता है मैं नहीं जितनी बातें लिखी वह सारी झूठ हो,  पर  एक बार अपने मन को टटोलें,  अपने दिल पर हाथ रख कर देखिए क्या यह बातें सच है? एक बार परख करें। 
दोबारा फिर कभी एक विषय पर बात होगी आज के लिए इतना ही।
आपका अपना
रजनीश जस
रुद्रपुर,
उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, होशियारपुर
पंजाब
20.01.2021

Sunday, January 17, 2021

Cycling and Discussion on consumerism

रविवार तो फुर्सत, दोस्त, किस्से,कहानियाँ। ठंड बहुत ज्यादा बढ़ गई है, जैकेट डालकर घर से निकला। संजीव जी अपने छोटेबेटे के साथ और शिवशांत पहले से चाय के अड्डे पर बैठे थे। भीम दा ने अपनी मूछें बढ़ा ली है।  थोड़ी देर में हरिनंदन आ गया, फिर राजेश जी ।

बातें होने लगी खफ्तवादी समाज की। 
मुझे ओशो की सुनाई एक कहानी याद आई।
एक सीधा साधा आदमी अपनी पत्नी के साथ झोंपडी में रहता था। उसके घर पर एक एक संत ठहरे। उन पति पत्नी ने उनकी बहुत सेवा की। वह संत बहुत खुश हुए। तो संत ने कहा मेरे पास एक शंख है, तुम उसमें फूंक मारो। जो भी मांगोगे वह इच्छा तुरंत पूरी हो जाएगी। इतना कहकर वह संत चले गये। उस आदमी ने शंख में फूंक मारी और कुछ रुपये मांगे और एक पक्का मकान। वहां पर रहने लग गया।
 अब कुछ समय बाद उसके घर पर एक साधु आकर ठहरे। दोनों पति पत्नी ने उनकी दिल से सेवा की और खाना खिलाया। फिर उन्होनें पूछा  कि आपकी क्या इच्छा है?  उस साधु ने कहा कि मुझे यह फल चाहिए। तुरंत वह आदमी साथ वाले कमरे में गया। शंख में फूंक मारी, वह फल लाया। उस साधु को खिला दिया।  तो वह साधु हैरान क्योंकि इन दिनों में यह फल तो मिलता नहीं था।उस साधु ने पूछा तुमने यह कैसे लेकर आए?
उस आदमी ने बताया, देखो जी, अब आपसे क्या छिपाना। ऐसी बात है कि  मेरे पास एक  बहुत पहुंचे हुए संत आए थे, उनकी सेवा की तो उन्होनें ने हमें एक शंख  दिया। उसमें फूंक मारो, और जो इच्छा करो वह तुरंत पूरी होगी।
साधु ने  कहा मेरे पास ऐसा ही महांशंख है, तुम एक मांगो तो वह दो देगा।

उस गरीब आदमी के मन में लालच आ गया। तो उसने कहा आप तो साधु हैं ,आप मुझे वह महां शंख दे दीजिए।
वह साधु बोला जैसे हरि इच्छा। हम तो ठहरे सन्यासी, हमको माया से क्या?
उनका यह ठीक है आप महांशंख ले लो और मुझे अपना शंख दे दो।
वह संत उसका शंख लेकर तुरंत भाग गया।

जैसे ही शंख उस आदमी के हाथ आया  वह कमरे में गया। उसमें फूंक मारी और कहा एक हज़ार, तो अवाज़ आई दो हज़ार लो। पर आया कुछ नहीं। उस आदमी ने कहा कहाँ हैं दो हज़ार?  पर फिर भी कुछ नही आया।
लह आदमी बोला, कब मिलेगा?
उस शंख से आवाज़ आई, मिलेगा तुम्हें कुछ नहीं पर तुम जो भी  बोलोगे तुम्हें मैं  दुगना करके सिर्फ सुनाउंगा। इस पर उस आदमी ने अपना माथा पीट लिया। 
इसी तरह मल्टीनैशनल कंपनी हमारी लूट करती हैं, दिखावा देकर लूट लेती हैं।

  इसी विषय पर ओर बहुत सारी बातें हुई।  संजीव जी ने एक फिल्म की कहानी सुनाई जो उन्होनें 10 साल पहले देखी थी। एक बंद जगह पर एक कुछ लड़के लड़कियां रह रहे हैं। हर रोज़ एक स्क्रीन दिखाई जाती है उस में दिखाया जाता है वहां पर पहाड़ है, झरना है। उसमें का कभी किसी की लॉटरी लगेगी तो उसको वँहा भेज देंगे। कुछ दिन बाद एक लड़की की  लॉटरी निकली। तो पता चला कि उसको मार दिया गया। एक लड़का जो उसे प्यार करता था, उसने वह उसकी जब खोजबीन शुरू की तो उसको पता चला कि कुछ गड़बड़है। वहां से निकल के भागा और उसके पीछे स्कुयरिटी लग गयी। उस ने देखा कि यह जो लड़के लड़कियां हैं किसी अमीर आदमियों का कोलोन हैं। जब भी उस अमीर आदमी का कोई अंग खराब होता है तो उसके कोलोन को  कहा जाता है तुम्हारी लाटरी निकली है। फिर उसे उस टापू का लालच देकर वँहा से निकाला जाता है। फिर उनका अंग निकालकर उस में डाल दिया जाता है।

 मुझे मटरू की बिजली का मंडोला फिल्म का एक सीन याद आ गया। मीलों तक फैली खाली ज़मीन देखकर एक नेता और इंडस्ट्री वाला बात कर रहे हैं। इंडस्ट्री वाला कहता है कि यहां पर हम  बहुत बड़ी इंडस्ट्री लगा सकते हैं। नेता बोला फिर तो लोग वँहा कखम करके पैसे कमाकर अमीर हो जाएंगे और हमारे बराबर पहुंच जाएंगे। तो इस पर वह इंडस्ट्री वाला मुस्कुरा कर बोला, नहीं ऐसा नहीं होगा।  हम साथ में शराब खाने और जुए की दुकान खोल देंगे। वह जितना भी पैसा कमाएंगे वह सारा हमारे पास ही पहुंचने वाला है। कुल मिलाकर वह हमारे सिर्फ नौकर होंगे "

 जब भी बिग बाजार से निकलते  लोगों को देखता हूं तो  अब यह शापिंग करके कितने खुश हो रहे हैं पर कार्पोरेट सैक्टर के मालिक कितनी सफाई से हमारी जेब काट लेते हैं  पर हमें पता भी नहीं चलता।

 मुझे एलडस हक्सले  याद आ गया जो जर्मन का एक राइटर था,  वह अमेरिका का में जाकर बस गया था।  जब पहली बार सिनेमा की खोज हुई तो उसने कहा कि आदमी की सोच को खत्म करने वाला पहला यंत्र पैदा हो गया है। फिर उसके बाद में रेडियो आया तब भी उसने यही कहा, फिर जब उसके बाद टीवी आया तब भी उसने कहा।
 चाय आती रही और चाय हम पीते रहे ब्रेड भी पकोड़े खाए।
 संजीव जी बहुत अच्छी बात बताई थी कि जैसे अभी व्हाट्सएप फेसबुक की खरीद ले उसकी प्राइवेसी पॉलिसी चेंज हो रही है। तो वह कह रहे थे कि अगर व्हाट्सएप फ्री में है तो वह फ्री नहीं है। क्योंकि कहते  है, 
If the product is free , then you are the product.
इस द प्रोडक्ट इस फ्री देने यू आर द प्रोडक्ट ।इसका मतलब यह है कि जब हम फेसबुक चला रहे हैं उसके दौरान जो ऐड होती है आप उसको देखते हो  तो उस से जो शॉपिंग होती है तो फेसबुक वालों को पता चल जाता है कि कौन सा बंदा कितनी बार क्या चीज देखता है?

 एक बार एक राजा के एक संगीतज्ञ बड़े गुण गाता है । राजा कहता है तुम्हें 100 अशर्फियाँ ईनाम। वह ओर गुण गाता है तो राजा 500 सोने की मुद्राएँ घोषित करता है। उसके बाद संगीतज्ञ अपना संगीत खत्म करके घर आता है। वह  अपनी पत्नी को बताता है कि आज मेरे को राजा ने 500 सोने की मुद्राएँ ईनाम में देने की घोषणा की है। उसके बाद कई दिन तक जब कुछ नहीं आया तो फिर वह राजा के पास गया। उसने सोचा राजा भूल गये होंगे।  उसने कहा आपने 500 सोने की मुद्राएँ इनाम में घोषित की थी पर मिलीं नहीं। तो राजा ने कहा जैसे तुमने मेरे कानों को  खुश किया था तो मैंने भी अपनी बातों से तुम्हें तुम्हारे कानों को खुश कर दिया।😀😀

राजेश, संजीव और हरिनंदन चले गये। मैनें और शिवशांत ने साइकिल पर एक चक्कर लगाया।

जितना खप्त वादी समाज है यह आप को बहलाता है खुश करने का वादा करता है पर आप समझदार बने रहें अपनी ज़रूरतों और ख्वाहिशों के बीच जो इतनी बड़ी महीन से लकीर होती हैं उसको देखते रहें।

फिर मिलेंगे एक नए किस्से के साथ।
आपका अपना 
रजनीश जस 
रुद्ररपुर, उत्तराखंड 
निवासी पुरहीरां,  जिला होशियारपुर 
पंजाब
17.01.2021
#rudarpur_cycling_club

Saturday, January 9, 2021

साईकलिंग और पारिवारिक जीवन

रविवार है तो साइकिलिंग फुर्सत, दोस्त, किस्से कहानियाँ। ठंड अपनी पूरी जवानी पर है । मैं 8:00 बजे के बाद में घर से निकला। संजीव जी मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मोड़ पर पहुंचे संजीव जी ने बताया कि उनकी साइकिल की हवा निकल गई है तो मैं उनके साथ पैदल ही पहुंचा चाय के अड्डे पर।
आज दो जगह महफिल लगी हुई थी। आग जला रखी थी। भीम दा बीडी सुलगा रखी थी।
 हम भी बैठ गए और फिर बातें होने लग गई कि बच्चों के बारे में।
 जब वह 14 साल के होते हैं तो उनमें बहुत सारे बदलाव आते हैं। जैसे चेहरे पर मुहांसे होना, गुस्सा बढ़ जाना इत्यादि। जो लड़कियां होती हैं उनको उनकी माँ समझ सकती हैं और जो लड़के हैं उनको उनके पिता ।
ओशो कहते है कि हर 7 साल में हमारा शरीर पूरा बदल जाता है ,तो 14 साल बाद दो शरीर बदल चुके होते हैं ।
 अब तो लाकडाऊन के कारण बच्चे घर पर ही बैठे हैं। उनका शारीरिक व्यायाम कम हो गया है और मेंटल स्ट्रेस बढ़ गई है। जिसके कारण बच्चे डिप्रेशन में जाने शुरू हो गए हैं।  तो उन बच्चों को हमें कहना चाहिए कि वह पार्क में जाएं खेलने। कविताएं, किस्से कहानियां सुनानी चाहिए।

तब तक पंकज भी आ गया।

घर में जब दो बच्चे बड़े होते हैं तो कई बार एक  को ज्यादा प्यार मिलता है और एक को कम । जिन को कम प्यार मिलता है तो वह निराशा की ओर जाने लगते हैं। दोनों बच्चों को एक समान रखना है वाकई मुश्किल होता है।

किशोर अवस्था आते आते ऊर्जा का एक नया संचार होता है पर बच्चों को पता नहीं चलता कि वह किशोरावस्था में ऊर्जा का करना क्या है? और उस ऊर्जा को सकारात्मक मनाने के लिए हमें उन्हें समझना होगा। अपनी उम्र को भूल जाएँ और  बच्चों को दिन में एक बार गले से ज़रूर लगाएं। इस तरह से भी उन्हें समझा जा सकता है।

हम जैसे कि एक परिवार था उसमें दो बेटे थे। तो दोनों में से पिता एक को इतना ज्यादा प्यार करता था एक को कम। जिसको कम प्यार करता था उसने अपनी मां को शिकायत लगाई कि पिता जी हर वक्त मुझे डाँटते रहते हैं। यह बात जब पत्नी ने अपने पति को समझाई तो पिता को भी एहसास हुआ । वह  अपने बेटे को  घुमाने लेकर गया उसको जूस पिलाया। उसके साथ कुछ समय व्यतीत  किया। फिर उसका बेटा उसका दोस्त बन गया।
 इसके बाद में बातें होने लगे पत्नियों के बारे में। बात हुई कि आदमी नौकरी से शाम को घर लौटता है उसके बाद में उसकी पत्नी, बच्चों और माँ बाप की अपेक्षाएं  कैसे पूरी हो? आदमी के अपने लिए बिल्कुल भी समय नहीं रह जाता। इसके लिए कुछ बातें हुईं।
दो लडकों की नई-नई शादी हुई। एक लड़के ने तो शादी के समय पर अपनी पत्नी को हीरे की अंगूठी बनाई और बहुत सारा खर्चा किया। उसके दूसरे भाई ने साधारण कपड़े खरीदें । अब शादी के 15 साल बाद अब यह हालात है जिसने साधारण कपड़े खरीदे थे वह अब अच्छा जीवन व्यतीत कर रहा है । पर जिसने पहले फिज़ूल खर्च किया था उसके पास अब घर का खर्च करने को पैसे नहीं है।

 मेरा एक दोस्त  है जसविंदर भंबरा, वह हमेशा कहता है कि आपने जब आपकी शादी हो अपनी को पत्नी को दोस्त समझो। उसको पहले ही दिन उस जगह लेकर जाओ जो आप उसे सारी उम्र लेजा सकते हो।  कँही ऐसा ना हो पहले दिन तो फाईव स्टार होटल ले जाओ और बाद में  रेहडी पर ही खिलाने ले जाओ।
 शादी के बाद पत्नी की हमेशा इच्छा होती कि उसका पति उसे कोई न कोई गिफ्ट दे।
 मुझे याद आ रहा है मैं एक बार किसी के साथ चंडीगढ़ सैक्टर 17 की मार्केट घूमने गया। वह  म उम्र में मुझसे बड़ा था। जब मैं मार्केट में गया था मैं लड़कियों के गले में डालने वाले हार देखने लगा। तो उसने अपनी पत्नी के लिए हार खरीद लिया। जब मैं घर आया तो उसकी पत्नी ने बताया उनकी शादी को 20 साल हो चुके हैं पर उसके पति उसके लिए पहली बार कोई गिफ्ट लेकर आए हैं, कि मह तो कमाल हो गया। 

मेरा एक मित्र दोस्तो के साथ घूमने का शौक था।उसने कहा उसकी पत्नी उसको अकेला छोड़ती ही नहीं। मैंने कहा कि तुम एक बात बताओ कि जब तुम्हारा सर दर्द होता है  त9 कौन सिर को दबाता है?
उसने उत्तर दिया, उसकी पत्नी।
 मैंने पूछा जब तुम्हारी पत्नी का सिरदर्द होता है तो तुमने कभी दबाया?
 उसने जवाब दिया नहीं।
 तो मैंने कहा जब तुम्हें उसको उसकी स्पेस (जगह) नहीं दे  रहे हो तो वह तुम्हें तुम्हारी स्पेस  कैसे देगी?
ओशो कहते हैं जब आप किसी से प्रेम करते हैं तो वह ऐसा होता है कि जैसे फूल को प्रेम करते हैं तो आप उस पेड़ को पानी देते हो ना ? ऐसा तो नहीं कि फूल को तोड़ कर अपनी जेब में डाल लेते हो? शादी के बाद अक्सर ऐसा ही होता है अच्छी भली लिखने वाली लड़कियां या लड़के , शादी के बाद बिल्कुल ही बदल जाते हैं। उनका चुलबुला पर खो जाता है।  एक दूसरे पर कब्जे की भावना से यह सारा संबंध विशाक्त हो जाता है।
शादी के 15 साल बाद बहुत कम पतिहोंगे जो खाना स्वाद बनने पर अपनी पत्नी के हाथों की प्रशंसा की हो या उसके नये सूट पहनने पर कहा हो, कितनी सुंदर लगती हो ? नहीं, क्योंकि आदमी सोचता है पत्नी तो घर में बाकी वस्तुओं की तरह ही एक वस्तु है।


 अभी कुछ समय पहले एक लड़का मिला उसने कहा अपनी पत्नी को  कहा कि जब तुम अपने कालेज जाओ तो अपने बॉयफ्रेंड के साथ चाय पी सकती हो। ऐसी आज़ादी देने के लिए जिगरा चाहिए । ऐसी आज़ादी अगर आप किसी को देते हो तो वह भी आप हो उतनी ही आज़ादी देता है।

 मैंने बताया कि मानलो आपकी पत्नी ने हर रोज़ यह कह रही है कि उसे लाल रंग का सूट चाहिए आपने एक दिन समय निकाला आप उसे मार्केट लेकर गये।  
 अब लाल कलर का सूट दिलवा दिया। वह  घर आकर कहे , नहीं वह पीले वाला ज़्यादा अच्छा था ना?
अब अगर आपके आदमी वाले मन ने  कहा कि तुमने मुझे इतनी देर से तंग कर रखा था अब तुम य। कह रही हो!  तो सारा मामला बिगड़ जाएगा। आप कहो, हाँ  तुम ठीक कह रही हो।  औरत को समझने के लिए और थोड़ी सी औरत अपने में हमेशा रखो।

बाकी जो हमने लिखा है कि इसके बाद कारल  गुस्ताख जुंग का एक विचार है, There is only one golden rule in life there is only one golden rule.
 जिंदगी जीने के लिए कोई भी परिपक्व रास्ता नहीं होता जैसा आप चलते जाते हैं वैसे रास्ता बनता जाता है।

 मुझे फिर पैगंबर किताब के खलील जिब्रान की बात याद आती है, "प्रेमी प्रेमिका मंदिर के दो सतंभ होते हैं अगर लह बहुत करीब आ जाएंगे तो भी मंदिर नहीं बन पाएगा और वह बहुत  दूर होंगे तो भी छत्त गिर जाएगी।"

पति पत्नी को प्रेमी प्रेमिका की तरह रहना चाहिए हालांकि यह बहुत मुश्किल लगता है। पर अपनी ही पत्नी को अपनी प्रेमिका समझना पर यह भी आपको नया अनुभव देता है।
अपने अंदर हमेशा एक लड़का जिंदा रखें, उम्र के बहुत ज्यादा संजीदगी ना बढ़ जाए उसके अंदर हमेशा एक बच्चा और चुलबुलापन ज़िंदा रहना चाहिए, जो चुटकुले सुनाने वाला हो,हँसने हँसाने वालाहो। 

बातों के साथ साथ चाय पी ब्रेड पकौडा खाया।
फिर लौट आए घर को।
फिर मिलेंगे एक नये किस्से के साथ।
आपका अपना रजनीश जस
रूद्दपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां, 
होशियारपुर, पंजाब
10.01.2021
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