यूं तो मैंने ओशो की दीक्षा 1997 में ली थी। उस वक्त इतनी समझ नहीं थी। ओशो कहते हैं जिंदगी में ऊपर उड़ने के लिए दो पंख जरूरी हैं, उसमें से एक पंख ध्यान का है दूसरा पैसे का है । वह कहते हैं संसार से भागना नहीं , बल्कि जागना है। संसार से भाग कर जाओगे भी कहां? जहां हो वही काम करो, क्रोध आएगा काम आएगा, उस में रहोगे हुए तभी तो उस से पार जाने का रास्ता मिलेगा।
ओशो आश्रम अंतरराष्ट्रीय लेवल का है। यहां पर हर एंटरी डिजिटल पास से होती है। पूरा आश्रम ऊंचे ऊंचे पेड़ों से घिरा हुआ है। वहां पर कई सन्यासी रहते हैं जो वहीं आश्रम में ही काम करते हैं। पूरी दुनिया भर के लोग यहां पर आते हैं। यँहा पर फोटो खींचना मना है । मेर फोटो आश्रम के बाहर मेन गेट पर है। बाकी दो गूगल बाबा से ली गई हैं।
मैनें वहां पर एंटरी की । मैरून और सफेद चोला खरीदा। हम लगभग 12 लोग थे, दो न्यूजीलैंड से, बाकी हम भारतीय। उन्होंने हमें आश्रम के नियमों के बारे में बताया और दिन की होने वाली मेडीटेशन की विधियों के बारे में बताया। हमारे बिल्कुल पास ही मोर गुज़रा तो देखता हूंँ ओपन डांस चल रहा है। वहां थोड़ी देर डाँस किया ।
वहां इतना कुदरती माहौल था कि आश्रम के अंदर मोर घूम रहे थे ।जब हम चाय पी रहे थे तो हमारे बिल्कुल पास से मोरत् गुज़रा। हर जगह पर सारे हैं अंदर स्विमिंग पूल है, हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं, ओशो की राल्स रॉयस कार खड़ी है।
उसके बाद में बुद्धा हाल मेडिटेशन करने के लिए गए। ये हाल ब्लैक मार्बल का बना पिरामिड है । इसमें हजार के लगभग लोग एक ही समय मेडीटेशन कर सकते हैं। उसके बाद मैंने खाना पीना खाया और एक मेडिटेशन चक्रा साऊंड की। यह ध्यान करते हुए पूरा शरीर चार्ज सा हो गया था। बिल्कुल अलग किस्म का अनुभव था । हमने फिर कुंडलिनी मेडिटेशन की। थोड़ी देर बाद में शाम की ओशो दर्शन हुआ। उसने सभी लोग सफेद रंग का चोला पहन कर आते हैं । ओशो का प्रवचन सुना। उन्होंने कहा है जीवन में एक ही दुरभाग्य है, खुद को जाने बिना यहां से संसार से विदा हो जाना । ओशो का सपना रहा है वो कम्यून बनाएं यहां पर लोग आजादी से रह सकें। दुनिया भर के आज तक जितने भी बुद्ध पुरुष या बुद्धत्व औरतें हुई हैं, उन पर सब पर उन्होंने अपने प्रवचन दिए हैं । बुद्ध, मीरा, कबीर , जराथुस्तरा , लाओत्से , राबिया, गुरु नानक देव जी पर प्रवचन दिए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा उन्होंने बुद्ध को ही सराहा है। उन्होंने कहा जैसे आसमान में सितारे तो बहुत है पर ध्रुवतारा एक है, ऐसे ही बुद्ध हैं। बुद्ध कभी
आस्तिकता या नास्तिकता की बात नहीं करते। वह कहते हैं तुम स्वयं जानो। " अप्प दीपो भव:।
ओशो का यही संदेश है, उत्सव हमार जाति आनंद अमार गोत्र। उन्होंने कहा ये सब कुछ सूरज, पृथ्वी, चांद , सितारे ,फूल, एटम ,इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन , सब उत्सव में हैं। उन्होंने कहा, अगर जब कभी दुनिया में वर्ल्ड वार मूवी हो गई, अगर कहीं अटम बम गिर भी रहे होंगेततो भी मेरे सन्यासी नीचे जीवन का उत्सव मना रहे होंगे।
ओशो (1931 -1990) का जन्म मध्य प्रदेश, कुचवाड़ा के परिवार में हुआ। उनका बचपन अपने नाना नानी के पास बीता । वह बचपन से ही बहुत शरारती थे। जिस काम के लिए मना करना उसी काम को करना । जबलपुर यूनिवर्सिटी में फिलासफी के प्रोफेसर बने ।
उन्होंने पूरा भारत भ्रमण किया, बहुत सारा लिटरेचर पढ़ा। फिर जब बुद्धत्व को उपलब्ध हुए तो अमेरिका में गए । वहां ओरेगन में 5000 एकड़ में उनके सन्यासियों ने एक बंजर ज़मीन को पूरे पेड़ों की भरी जमीन कर दिया और मेडीटेशन करने लगे । अमेरिका की हथियार बनाने वाली कंपनियों को यह डर हो गया अगर उसके लोग सन्यासी हो गए थे, वो पूरे विश्व में हथियार कैसे बेचेंगे ?
ओशो का बोलना ऐसा था कि कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाता था । ओशो को शुक्रवार रात को गिरफ्तार कर लिया। पूरा मीडिया इसके लिए उनके पीछे हो गया । शनिवार को कोर्ट बंद थी और रविवार को भी। इसी दौरान उन्होंने ओशो को थेलियम नाम का जहर दिया। उसके बाद अमेरिका छोड़ दिया और पूरी दुनिया भर में घूमे। अमेरिका में जिन जिन देशों को कर्जा ले रखा था उनको धमकियां दी कि कोई शरण ना दे । फिर ओशो भारत आ गए और मुंबई में प्रवचन देने शुरू किए । फिर उसके बाद में पूना आ गए। पूणे में फिर यह कोरेगांव पार्क में ओशो का आश्रम बनाया। उसने ओशो ने ओशो कम्युन का नाम दिया।
उनका बचपन का नाम चंद्र मोहन जैन था । फिर उन्होंने नाम रजनीश रखा । उसके बाद में ओशो कर दिया। उन्हें लगभग 600 किताबें लिखी । सदी के सबसे बड़े फ्राइड और जुंग को लेकर ध्यान की नई नई विधियाँ बनाईं। इसमें आधुनिक मनुष्य को सहज और सरल होने की मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
कुछ दोस्त मिले वहां पर उसे मोबाइल नंबर आदान प्रदान किया। रात को 9:30 बजे वहां पर एक सेलिब्रेशन थी जो कि रात के 11:15 तक चलनी थी। मैंने वह नहीं की । फिर मेरा दोस्त बलविंदर आ गया उसके साथ पुणे के गुरुद्वारे में गए, वहां माथा टेका और लंगर खाया । ये गुरुद्वारा मिलिट्री एरिया में बना हुआ है । तो इसको हॉलीवुड स्टाइल कहते हैं, बहुत ही बढ़िया बिल्डिंग बनी हुई है। फिर रात को सो गया। सुबह कंपनी के काम बाजाज पहुंचा। एसवी राजू सर से मुलाकात हुई उनको एक मैगजीन अहा जिंदगी मैंने गिफ्ट की । गपशप हुई। किस्से कहानियां सुनाए। उन्हें एक बात बहुत पसंद आई जो उनको सुनाई थी, "हम सब गटर में गिरे हुए लोग हैं और कुछ लोगों की आंखें सितारों पर है।"
महाराष्ट्र में चाय को "चहा" कहा जाता है । मैंने एक रेहड़ी से चाय पी, नहीं नही 😊, " चहा " पी।
फिल्म "तीसरी कसम" में राज कपूर साहब चाय को चहा ही बोलते हैं। इस फिल्म में वो बैलगाड़ी वाले बने हैंऔर वहीदा रहमान की डांसर है। जिस बिहारी अंदाज़ से वो "चहा" बोलते हैं तो मज़ा आ जाता है। यह फिल्म अपने गीतों के लिए बहुत मशहूर हुई थी जैसे, पान खाए सैयां हमार, सांवली सुरतिया होठ लाल लाल ,सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है , चलत मुसाफिर मोह लिया रे पिंजरे वाली मुनिया।
वहां पर एक आदमी से मुलाकात भी हुई वो नेहरू टाइप टोपी पहन कर बैठे थे। जब मैंने फोटो खींची तो वो मूछों को ताव देने लगे । महाराष्ट्र में बड़ा पाव, सांभर बड़ा, इडली डोसा इत्यादि बहुत मिलता है । सुबह का नाश्ता लोग इसी से करते हैं जो कि ये जल्दी पच जाता है, सस्ता भी है और आसानी से मिल भी जाता है।
कंपनी के काम बाजाज में पूरे दिन रहा। वहां पर अमित महाजन से मुलाकात हुई उसके साथ पंजाबी में बातें की तो बहुत खुश हुआ। शाम को फिर वापसी हो गई। फिर अपने होटल में आ
गए । अगले दिन सुबह 5:15 बजे ट्रेन थी पुणे से दिल्ली । फिर निकले मुसाफिर ट्रेन में दिल्ली के लिए। मेरे साथ ट्रेन में एक जैनी और एक फौजी था। बाकी सीटों पर 3 लड़के थे। एक तो सिर्फ लैपटॉप से चिपका हुआ, बाकी दो मोबाइल से । मैंने फौजी को बताया कि मैं एक कवि हूं। तो वह बातचीत करने लग गया। फौजी ने बताया कि उसने लद्दाख में नौकरी की है। यँहा पर "थ्री इडियट " फिल्म की शूटिंग हुई है। आखरी वाले सीन पर करीना कपूर एक स्कूटर पर आती है, ये वही जगह है । एक लड़का वहां करीना कपूर वाले स्कूटर पर सेल्फी खींचने के 50 से 100 रुपये लेता है। तो वहां पर एक झील है , जो कि 86 किलोमीटर में फैली हुई है । इसका कुछ हिस्सा भारत में है और बाकी हिस्सा चीन में। वो झील दिन भर में कई बार रंग बदलती है ।मोबाइल की तस्वीरें दिखाई। फिर आपको हम सो गए । आधी रात को फौजी भाई के बाएं फेफड़े के नीचे और बाईं बाजू में दर्द हो गया। मुझे लगा ये दिल का दर्द ना हो। मैंने अक्युप्रैशर से ठीक करने की कोशिश की पर बात बनी नहीं तो मैंने पेरासिटामोल दी। फिर उससे भी बात नहीं बनी तो मैंने इनो दी। उससे उसे तुरंत आराम आ गया। सुबह दिल्ली निजामुद्दीन ट्रेन पहुंची। तो आटो से मैं पुरानी दिल्ली के लिए निकला। रास्ते में पार्क आता है जिसमें दुनिया के सात अजूबे हैं। ये पार्क कूड़े करकट से बना हुआ है ,इसको अंदर जाने के लिए एक टिकट है। दिल्ली पहुंच कर ट्रेन पकड़ी। ट्रेन पहुंचकर रामपुर, रामपुर से फिर मुसाफिर अपने रुद्रपुर घर वापस आ गए।