Wednesday, April 17, 2019

Journey to Delhi Nizzamuddin and Osho Ashram Pune Part -2


 यूं तो मैंने ओशो की दीक्षा 1997 में ली थी। उस वक्त इतनी समझ नहीं थी। ओशो कहते हैं जिंदगी में ऊपर उड़ने के लिए  दो पंख जरूरी हैं, उसमें से एक पंख ध्यान का है दूसरा पैसे का है । वह कहते हैं  संसार से भागना नहीं , बल्कि जागना है। संसार से भाग कर जाओगे भी कहां?  जहां हो वही काम करो, क्रोध आएगा काम आएगा, उस में रहोगे हुए  तभी तो उस से पार जाने का रास्ता मिलेगा।

 ओशो आश्रम अंतरराष्ट्रीय लेवल का है। यहां पर हर एंटरी डिजिटल  पास से होती है। पूरा आश्रम ऊंचे ऊंचे पेड़ों से घिरा हुआ है। वहां पर कई सन्यासी रहते हैं जो वहीं आश्रम में ही काम करते हैं। पूरी दुनिया भर के लोग यहां पर आते हैं। यँहा पर फोटो खींचना मना है । मेर फोटो आश्रम के बाहर मेन गेट पर है।  बाकी दो  गूगल बाबा से ली गई हैं।

 मैनें वहां पर एंटरी की । मैरून और सफेद चोला खरीदा। हम लगभग 12 लोग थे, दो न्यूजीलैंड से,  बाकी हम भारतीय। उन्होंने हमें आश्रम के नियमों के बारे में बताया और दिन की होने वाली मेडीटेशन की विधियों के बारे में बताया। हमारे बिल्कुल पास ही मोर गुज़रा तो देखता हूंँ ओपन डांस चल रहा है। वहां थोड़ी देर डाँस किया ।
 वहां इतना कुदरती माहौल था कि आश्रम के अंदर मोर घूम रहे थे ।जब हम चाय पी रहे थे तो हमारे बिल्कुल पास से मोरत् गुज़रा। हर जगह पर सारे हैं अंदर स्विमिंग पूल है, हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं, ओशो की राल्स रॉयस कार खड़ी है।





उसके बाद में बुद्धा हाल मेडिटेशन करने के लिए  गए। ये हाल ब्लैक मार्बल का बना पिरामिड है । इसमें हजार के लगभग लोग एक ही समय मेडीटेशन कर  सकते हैं। उसके बाद मैंने खाना पीना खाया और  एक मेडिटेशन  चक्रा साऊंड की। यह ध्यान  करते हुए  पूरा शरीर चार्ज  सा हो गया था। बिल्कुल अलग किस्म का अनुभव था । हमने फिर कुंडलिनी मेडिटेशन की। थोड़ी देर बाद में शाम की ओशो दर्शन हुआ। उसने सभी लोग सफेद रंग का चोला पहन कर आते हैं । ओशो का प्रवचन सुना।  उन्होंने कहा है जीवन में एक ही दुरभाग्य है,  खुद को जाने बिना यहां से संसार से विदा हो जाना । ओशो का सपना रहा है वो कम्यून बनाएं यहां पर लोग आजादी से रह सकें। दुनिया भर के आज तक जितने भी बुद्ध पुरुष  या बुद्धत्व औरतें हुई हैं,  उन पर सब पर उन्होंने अपने प्रवचन दिए हैं । बुद्ध, मीरा,  कबीर ,  जराथुस्तरा , लाओत्से , राबिया, गुरु नानक देव जी पर प्रवचन दिए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा उन्होंने बुद्ध को ही सराहा है। उन्होंने कहा जैसे आसमान में सितारे तो बहुत है पर ध्रुवतारा एक है, ऐसे ही बुद्ध हैं।  बुद्ध कभी
आस्तिकता या नास्तिकता की बात नहीं करते। वह कहते हैं तुम स्वयं जानो।  " अप्प दीपो भव:।
 ओशो का यही संदेश है, उत्सव हमार जाति आनंद अमार गोत्र। उन्होंने कहा  ये सब कुछ सूरज,  पृथ्वी, चांद , सितारे ,फूल, एटम ,इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन , सब उत्सव में हैं। उन्होंने कहा, अगर जब कभी दुनिया में वर्ल्ड वार मूवी हो गई, अगर कहीं अटम बम गिर भी रहे होंगेततो भी मेरे सन्यासी नीचे जीवन का उत्सव मना रहे होंगे।

 ओशो (1931 -1990) का जन्म मध्य प्रदेश, कुचवाड़ा के  परिवार में  हुआ। उनका बचपन अपने नाना नानी के पास बीता । वह बचपन से ही बहुत शरारती थे। जिस काम के लिए मना करना उसी काम को करना ।  जबलपुर यूनिवर्सिटी में फिलासफी के प्रोफेसर बने ।
 उन्होंने पूरा भारत भ्रमण किया, बहुत सारा लिटरेचर पढ़ा। फिर जब बुद्धत्व को उपलब्ध हुए तो अमेरिका में गए । वहां ओरेगन  में 5000 एकड़ में उनके सन्यासियों ने एक बंजर ज़मीन को पूरे पेड़ों की भरी जमीन कर दिया और मेडीटेशन करने लगे । अमेरिका  की हथियार बनाने वाली कंपनियों  को यह डर हो गया  अगर उसके लोग सन्यासी हो गए थे, वो पूरे विश्व में हथियार कैसे बेचेंगे ?

ओशो का बोलना ऐसा था कि कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाता था ।  ओशो को शुक्रवार रात को गिरफ्तार कर लिया। पूरा मीडिया इसके लिए उनके पीछे हो गया । शनिवार को कोर्ट बंद थी और रविवार को भी। इसी दौरान उन्होंने ओशो को थेलियम नाम का जहर दिया। उसके बाद अमेरिका  छोड़ दिया और पूरी दुनिया भर में घूमे। अमेरिका में जिन जिन देशों को कर्जा ले रखा था उनको धमकियां दी कि कोई शरण ना दे । फिर ओशो भारत आ गए और मुंबई में प्रवचन देने शुरू किए । फिर उसके बाद में पूना आ गए। पूणे में फिर यह कोरेगांव पार्क में ओशो का आश्रम बनाया। उसने ओशो ने  ओशो कम्युन का नाम दिया। 

उनका बचपन का नाम चंद्र मोहन जैन  था । फिर उन्होंने नाम रजनीश रखा । उसके बाद में ओशो कर दिया। उन्हें लगभग 600 किताबें लिखी । सदी के सबसे बड़े फ्राइड और जुंग को लेकर ध्यान की नई नई विधियाँ बनाईं। इसमें आधुनिक मनुष्य को सहज और सरल होने की मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

कुछ दोस्त मिले वहां पर उसे मोबाइल नंबर आदान प्रदान किया। रात को 9:30 बजे वहां पर एक सेलिब्रेशन थी जो कि रात के 11:15 तक चलनी  थी।  मैंने वह नहीं की । फिर मेरा दोस्त बलविंदर आ गया उसके साथ पुणे के गुरुद्वारे में गए,  वहां माथा टेका और लंगर खाया । ये गुरुद्वारा मिलिट्री एरिया में बना हुआ है । तो इसको हॉलीवुड स्टाइल कहते हैं,  बहुत ही बढ़िया बिल्डिंग बनी हुई है। फिर रात को सो गया। सुबह कंपनी के काम बाजाज पहुंचा। एसवी राजू सर से मुलाकात हुई उनको एक मैगजीन अहा जिंदगी मैंने गिफ्ट की । गपशप हुई।  किस्से कहानियां सुनाए। उन्हें एक बात बहुत पसंद आई  जो उनको सुनाई थी,  "हम सब गटर में गिरे हुए लोग हैं और कुछ लोगों की आंखें सितारों पर है।"
 महाराष्ट्र में चाय को "चहा" कहा जाता है । मैंने  एक रेहड़ी से  चाय पी, नहीं नही 😊, " चहा " पी।
 फिल्म "तीसरी कसम" में राज कपूर साहब चाय को चहा ही  बोलते हैं। इस फिल्म में वो बैलगाड़ी वाले बने  हैंऔर वहीदा रहमान की डांसर है। जिस बिहारी अंदाज़ से वो "चहा"  बोलते हैं तो मज़ा आ जाता है।  यह फिल्म अपने गीतों के लिए बहुत मशहूर हुई थी  जैसे,  पान खाए सैयां हमार, सांवली सुरतिया होठ लाल लाल ,सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है , चलत मुसाफिर मोह लिया रे पिंजरे वाली मुनिया।

वहां पर एक आदमी से मुलाकात भी हुई  वो नेहरू टाइप टोपी पहन कर बैठे थे। जब मैंने फोटो खींची तो वो मूछों को ताव देने लगे । महाराष्ट्र में  बड़ा  पाव,  सांभर बड़ा, इडली डोसा इत्यादि  बहुत मिलता है । सुबह का नाश्ता लोग इसी से करते हैं जो कि ये जल्दी पच जाता है, सस्ता भी है और आसानी से मिल भी जाता है।

 कंपनी के काम बाजाज में पूरे दिन रहा। वहां पर अमित महाजन से मुलाकात हुई उसके साथ पंजाबी में बातें की तो बहुत खुश हुआ। शाम को फिर वापसी हो गई।  फिर अपने होटल में आ
गए । अगले दिन सुबह 5:15 बजे ट्रेन थी पुणे से दिल्ली । फिर निकले मुसाफिर ट्रेन में दिल्ली के लिए। मेरे साथ ट्रेन में एक जैनी और एक फौजी था।  बाकी सीटों पर  3 लड़के थे। एक तो सिर्फ लैपटॉप से चिपका हुआ, बाकी दो  मोबाइल से । मैंने फौजी को बताया कि मैं एक कवि हूं। तो वह बातचीत करने लग गया। फौजी ने बताया कि उसने लद्दाख में नौकरी की है। यँहा पर "थ्री इडियट " फिल्म की शूटिंग हुई है। आखरी वाले सीन पर करीना कपूर एक स्कूटर पर आती है, ये वही जगह है । एक लड़का वहां करीना कपूर वाले स्कूटर पर सेल्फी खींचने के 50 से 100 रुपये  लेता है। तो वहां पर एक झील है , जो कि 86 किलोमीटर में फैली हुई है । इसका कुछ हिस्सा भारत में है और बाकी हिस्सा चीन में। वो झील दिन भर में कई बार रंग बदलती है ।मोबाइल की तस्वीरें दिखाई। फिर आपको हम सो गए । आधी रात को फौजी भाई के  बाएं फेफड़े के नीचे  और  बाईं बाजू में दर्द हो गया। मुझे लगा ये दिल का दर्द ना हो। मैंने अक्युप्रैशर से ठीक करने की कोशिश की पर बात बनी नहीं  तो मैंने पेरासिटामोल दी। फिर उससे भी बात नहीं बनी तो मैंने  इनो दी। उससे  उसे तुरंत आराम आ गया।  सुबह दिल्ली निजामुद्दीन ट्रेन पहुंची। तो आटो से मैं पुरानी दिल्ली के लिए  निकला। रास्ते में पार्क आता है जिसमें दुनिया के सात अजूबे हैं। ये पार्क कूड़े करकट से बना हुआ है ,इसको अंदर जाने के लिए एक टिकट है। दिल्ली पहुंच कर ट्रेन पकड़ी। ट्रेन पहुंचकर रामपुर, रामपुर से फिर मुसाफिर अपने रुद्रपुर घर वापस आ गए।

Journey to Delhi Nizzamuddin and Osho Ashram Pune Part-1

Journey to Nizamudin, Osho Ashram Pune Part -1

आइए ले चलता हूँ आपको एक ऐसी यात्रा पर, जिसमें दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह,  कव्वालियां, नुसरत फतेह अली खान, कव्वाली की मस्ती ,ओशो आश्रम पुणे में मेडीटेशन का अनुभव।

पिछली यात्रा में एक बात बताना भूल गया था कि होली वाले दिन मेरे दो दोस्त विवेक पाठक और  जगमीत सिंह जग्गी ने मुझे निमंत्रण दिया था, जिसने होली के लिए पर मैं वहां नहीं जा पाया उसने मेरी पकौड़े बनाकर रखे हुए हैं।  यह पकौड़े  फिर कभी जरूर खा जाएंगे क्योंकि यह मेरे पर उधार हैं।


पूना यात्रा, दिल्ली रेलवे स्टेशन

 मैं निजामुद्दीन में कई बार आया था इस बार सोचा कि दरगाह पर जाकर आऊंगा।
 यहां पर दो दरगाह है, एक निजामुद्दीन और एक अमीर खुसरो की। दोनों के बारे में कुछ जानकारी नीचे है

 हज़रत निजामुद्दीन (1235-1325) एक सूफी संत थे। उनका जन्म बदायूं,  यूपी में हुआ। वो बाबा फरीद जी के चेले बने। उन्होंने आध्यात्मिक ऊंँचाइयां हासिल की। ग्यासपुर दिल्ली के पास उन्होंने एक जगह  " खंकाह"  बनाई, यहां पर सभी को खाना खिलाया जाता था ।

अमीर खुसरो (1262-1324),  निजामुद्दीन के शागिर्द थे। अमीर खुसरो का पूरा नाम अब्दुल हसन यमीनुद्दीन अमीर खुसरो था ।
 एक कवि ,शायर ,गायक, संगीतकार थे। उन्होंने कव्वाली की शुरुआत की। कव्वाली के बारे में यह कहा जाता है कि वह परमात्मा को अपनी प्रेयसी मानते हैं और उसको दूर होने की वजह से उसकी जुदाई को अलग-अलग हिस्सों में वर्णन करते हैं।



 कव्वाली भारतीय उपमहाद्वीप में  सूफीवाद और सूफी परंपरा के अंतर्गत भक्ति की एक धारा के रूप में उभर कर आई। इसका इतिहास 700 साल से भी ज्यादा पुराना है। वर्तमान में यह भारत  , पाकिस्तान  एवं बंगलादेश सहित बहुत से अन्य देशों में संगीत की एक लोकप्रिय विधा है। क़व्वाली को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलवाने का श्रेय उस्ताद नुसरत फतेह अली ख़ान को जाता है।

 कव्वाली का जिक्र हुआ है तो नुसरत फतेह अली खान (1948-1997) के नाम के बगैर अधूरा है। मात्र 48 साल इस धरती पर रहने के बाद कव्वाली को पूरी दुनिया तक पहुंचा दिया। उनकी कव्वाली पर वे लोग भी नाचते थे जो कि कव्वाली की भाषा को नहीं समझते थे। वो इस तरह गाते थे के सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता था। उनको
 "शहंशाह ए कव्वाली" के नाम से भी जाना जाता है।

 कव्वाली में मिलने, बिछुड़ने का अद्भुत संगम है। उसमें अरबी ,फारसी हिंदी, उर्दू , शब्दों का इस्तेमाल होता है । उसकी अपनी ही सुर ताल होती है, जो कि तालियों से की जाती है।
मिर्ज़ा गालिब, अमीर खुसरो इतने दीवाने थे तो उन्होंने लिखा

"गालिब मेरे कलम में क्यों कर मजा ना हो
पीता हूं धोकर खुसरो ए शरीन के पांव में "

अमीर खुसरो ने खड़ी बोली की शुरुआत की जिसको बृज भाषा या खड़ी बोली भी कहते हैं।

 अमीर खुसरो के कुछ दोहे यहां पेश कर रहा हूं

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग॥

खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार॥

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 ट्रेन आने में अभी 3 घंटे थे। मैनें आटो पकड़ा निजामुद्दीन दरगाह  के लिए। दरगाह की उस गली के बाहर तक फूलों की महक आ रही थी।  मुझे एक पंजाबी लोक बोली की याद आ गई,
"जित्थे इतरां दी बसे खुशबो
 उत्थे मेरा यार वसदा"

 इस का मतलब यह है कि, यहां पर इत्र की खुशबू रहती है वहां मेरा यार, मेरा महबूब रहता है।

 वहां से प्रसाद, फूल और अगरबत्ती खरीदी। अपना सामान छोड़कर मैं दरग़ाह की तरफ निकल गया । गली में आगे से आगे बढ़ता गया, सब बोलते रहे,भाई जान आगे और आगे।  निजामुद्दीन औलिया की दरगाह यहां पर रॉकस्टार फिल्म की कव्वाली "फाया कू " की शूटिंग हुई है। (ये कव्वाली मेरे दिल के बेहद करीब है)
 फिल्म "दिल्ली 6" की कव्वाली "अरजि़याँ"  की शूटिंग भी यही हुई है।
यँहा हर शुक्रवार को कव्वाली होती है
दूसरी दरगाह अमीर खुसरो की भी है जिन्होंने कव्वाली की शुरुआत की थी। कव्वाली तो मैं बहुत सुनता हूँ। कव्वाली सुनने से अलग सा  नशा आ जाता है । अंदर जो दरगाह है दोनों पर माथा टेका अगरबत्ती या लगाएं और फिर वापसी हो गई। निजामुद्दीन से लिए  ट्रेन भी पकड़ ली थी।

दिल्ली से मैंने ट्रेन पकड़ी  पुणे के लिए। उससे पहले दो मैगजीन "अहा जिंदगी "और "ओशो टाइम्स" खरीदे। यात्रा शुरू हो गई दिल्ली से पुणे की । पास बैठी फैमिली उनके साथ बातें होने लगी । हर कोई अपनी अपनी जिंदगी के किस्से सुनाने लगा। बातें होती पर राजनीति पर कोई बात आती है मैं विषय को बदल देता , क्योकिं राजनीति बहुत ही घटिया विचारों में लिप्त हो चुकी है।  इससे अच्छा है आपको जिंदगी में कोई  प्रकृति,  संगीत, कहानी, कविता के बारे में बात करें। अगले दिन सुबह मैं  पुणे पहुंच गया। वहां जाते  नैशनल  होटल पहुंच गया। मैनें देखा कि लड़के सुबह 7:00 बजे चाय पी रहे थे। उन्होंने मुझे चाय पीने को दी।  हम तो वैसे ही चाय के शौकीन। आदमी होटल बुक किया और निकल लिए ओशो आश्रम ।

Sunday, April 14, 2019

अष्टमी पर लड़कियों की पूजा और पढ़ाई

कल अष्टमी थी तो कंजको को को घर पर बुलाकर उनकी पूजा की।
यहां पर यह बताना जरूरी है कि उत्तर भारत और भारत के कई देशों में नवरात्रों का त्यौहार मनाया जाता है, जिसमें की मां दुर्गा की पूजा होती है, व्रत रखे जाते हैं। व्रत में लहसुन ,प्याज , गेंहु का आटा आदि का सेवन नहीं किया जाता।
गुजरात में बहुत बड़े पैमाने पे लिए मनाया जाता है ।वहां पर रातों को डांडिया खेला जाता है, कोलकाता में मां दुर्गा की बहुत बड़ी पूजा होती है । जिसमें मां की मूर्तियां बनाई जाती है मिट्टी से रात रात भर को पूजा होती है।
औरत पूजनीय है ,क्योंकि वह जननी है,  माँ है और हमेशा वह पूजनीय ही रहेगी।
मैंने उन लड़कियों से पूछा, कि वो पढ़ती है या नहीं ? उनमें से सिर्फ एक ही बच्ची पढ़ती थी। 7 लड़के और एक लड़की में से सिर्फ एक बच्ची । मुझे खुद पर गुस्सा आया कि मैं उस समाज का हिस्सा हूँ जिसमें लड़कियों की पूजा तो होती है,  पर उन्हें पढाया लिखाया नहीं  जाता।  साल में उनको एक बार पूजना यह काफी नहीं है, हमें इनको को  पढ़ाना चाहिए क्योंकि लड़कियां पढेंगी तो अपने पैरों में खड़ी होंगी।
    हमारे होशियारपुर, पंजाब  में एक  "मानवता  मंदिर "  है उसके बाहर यह लिखा हुआ है दुनिया में हर बच्चा जो आ रहा है हमारी नैतिक जिम्मेवारी है।
ओशो कहते हैं बच्चा पैदा होता  कुछ संभावनाएं लेकर पैदा होता है , वो हिटलर भी बना सकता है और महात्मा बुद्ध भी।  
लड़कियों को पढ़ाना इसलिए भी जरूरी है घर को चलाने में कुछ आर्थिक सहयोग भी कर सकती हैं। इससे उनका मनोबल भी बढ़ता है । बहुत बार देखा गया है कि पति अगर निकम्मा हो, या शराबी हो तो औरत पूरी जिंदगी उसके कदमों में काट देती है क्योंकि उसके पास पैसा कमाने का कोई जरिया नहीं होता कि उसने पढ़ाई नहीं की होती। हमारे भारत के गरीब होने का ये भी एक कारण है। गरीबी के कारण ही आबादी की समस्या है।  क्योंकि हर गरीब आदमी सोचता है कितने जब बच्चा पैदा होगा तो दो हाथ कमाने वाले आएंगे, पर वो ये भूल जाते हैं कि हर पैदा होने वाला बच्चा एक पेट भी लेकर पैदा होता है।
गोपाल दास नीरज गरीबी के बारे में यह कहते हैं भूख आदमी को गद्दार बना देती है।
मैंने उन बच्चियों को पढ़ने के लिए घर  आने को कहा क्योंकि मेरी पत्नी बच्चों को पढा़ती है । जो बच्चे गरीब होते हैं उनसे  नामात्र पैसे ही ले लेती है। पर वो बच्चे बहुत दूर से आए थे,  वह यहां हर रोज नहीं आ सकते थे। तो मैंने उनको कहा , तुम अपने घर के आस-पास में आंगनवाड़ी में पढ़ो ।अगर जरूरत है तो कभी हमारे घर भी आ जाया करो।
यह सब देख कर भी मैं परेशान नहीं हो रहा, क्योंकि मेरे से जो हो सकेगा वह मैं करूंगा और कर भी रहा हूँ। किसी बच्चे को कुछ किताबें नहीं होती तो किताबें, आर्थिक रूप से उनकी मदद करता रहता हूँ। मैं सपने देखता रहता हूँ, सपने बुनता रहता हूँ, क्योंकि सपने देखना हमें जीवन जीने की ललक पैदा करता है, हमें जवान रखता है।
बहुत पुराने गीत की कुछ लाइनें याद आ गई
वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से
जब रात का आंचल ढलकेगा
जब अंबर झूम के नाचेगा
जब धरती नग्में गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
#rajneesh_jass
13.04.2019
Rudrarpur
Uttrakhand
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Friday, April 12, 2019

यादें बठिंडा पालिटैक्निक की

सब कुछ वैसे का वैसा ही है
मेरा हॉस्टल वैसा ही है
बस उनमें रहने वाले
सारे के सारे बदल गए हैं
"चल यार बंक मार"
ये कहने वाले बदल गए हैं
बेदी सर की क्लास में
शायरी ही सुनाते थे
तीन पीरियड होते थे
पर एक ही निपटा जाते थे
इक सर तो दारू में डूबे रहते थे
इक लंच टाइम में कपड़े बदल
कार से साईकिल पे होते थे
इक होते थे वर्कशाप में फौजी
इक होते थे हर जगह मनमौजी
हर वक्त बेपरवाही में रहना
अब उसे "लापरवाही" कहने लग गए हैं

वह नाका का था प्रोडक्शन वाला
कोई और बैठे तो बने भूत का साला
बंक लगा के नदी में नहाते
बस ना मिलती तो बैलगाड़ी पर आते
बिना टिकट सफर करने वाले
सारे के सारे बदल गए हैं

हॉस्टल वाली मैस वो परांठे याद है
अमूल की टिक्की के साथ दूध गलास याद है डीडीएलजी के सात-सात शो
हॉस्टल के आखिरी दिन दारु पीके दिए थे रो
वह देर रात तक जागकर बातें करनी
बेसिर पैर की वह सौगातें  करनी
अब 10 बजे सुबह अलार्म लगा कर
सब के सब बदल गए हैं

कभी मुज़ाहरे, कभी लाठीचार्ज
सब कुछ सब तो आता है याद
बठिंडे वाला किला भी नहीं भूले
लाल सूट वाली के थे सौ सौ ठुमके
सिनेमा में सीटी बजाने वाले
अब कोक लेकर टहल रहे हैं

बेदी, सत्तू अमरीका बैठे
नवतेज बैठा आस्ट्रेलिया
हुन कोई बोली ना सुनावे
"क्यों उदास बैठा है बेलिया की होया जे वर्ल्ड कप हार गया ऑस्ट्रेलिया"
उल्टे सीधे हाई-फाई शेर बनाने वाले
अब तो सारे बदल गए हैं

फिर भी साल में एक बार मिलते हैं
पुराने सारे यार मिलते हैं
हाथ में जब लाल परी होती है
तो यारों के यार मिलते हैं
अंदर से वही हरकतें हैं
बाहर से चाहे बदल गए हैं

# रजनीश जस
रूद्रपर
उत्तराखंड
12.04.2019
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Wednesday, April 3, 2019

Holi in Chandigarh and Journey to Amritsar

20.03.2019 To 24.03.2019
इस बार होली पर जाना हुआ पंजाब। पिछले कई सालों से उत्तराखंड में हूंँ और हर साल उत्तराखंड में बैठकी होली में जाना होता रहा है।बैठकी होली लोग इकट्ठे बैठकर उत्तराखंड के लोकगीत गाते हैं। हाथों से बने हुए आलू के चिप्स ,आलू के गुटके , भांग की चटनी, घर की बनी हुई गुजिया , यह सब चलता रहता है। एक थाली में अलग-अलग तरीके के गुलाल रखे जाते हैं। आने जाने वालों के गानों के ऊपर गुलाल लगाए जाते हैं और गीत गाए जाते हैं। तो हम निकले फिर पंजाब को । ससुराल डेराबस्सी वहां से गाड़ी में बैठे मैं कपिल मे कपिल की पत्नी चेतना और मेरी पत्नी सिमरन ।पहले पहुंचे अश्विनी के घर पर वहां से गुलाल लगाया। अश्वनी मेरा 20 साल पुराना दोस्त है। हम इकट्ठे पॉलिटेक्निक बठिंडा में पढ़ें हैं। उनके घर जूस पीया, नमकीन खाया , बातें की और फिर वहां से चल दिए। चंडीगढ़ में भी खूब होली मनाई जाती है । मैंने रास्ते में देखा एक सफेद कार, जिस पर होली के कच्चे रंगों से श्रृंगार कर रखा था, जिससे वो कार बहुत ही सुंदर का लग रही थी । एक और ब्लैक कलर की कार देखी जिस पर हाथ के पंजे से कच्चे रंग लगा रखे थे । अब पहुँचे नयागांव, मुन्नी के घर। वो पंजाबी गानों पर अपनी सहेलियों के साथ डांस कर रही थी ।उसने फिर हमें कांजी, जो गाजरों से बनती है । कांजी बनाने की विधि इसके लिए चार लाल गाजर, चार काली गाजरें, चार आंवले, सभी को काट लें। 2 लीटर पानी के अंदर डालते हैं। उसमें 2 चमचे राई, एक चम्मच काला नमक और दो चम्मच सफेद नमक। यह सारा कुछ घड़े में डाल कर रखें। उसके ऊपर उसको कपड़े से बंद कर दें। होली के दिनों में लगभग मार्च में यह दो-तीन दिन में तैयार हो जाती है। पीने में बहुत पौष्टिक होती है।मैंने ये दूसरी बार पी। फिर एक गाना बजाया "जद निकले पटोला बनके मित्रा दी जान ते बनी" पर डांस किया, खाना खाया और फिर वापस आ गए हो चलो अपनी साली शालु के घर। खूब मस्ती की पकोड़े खाए ,चाय पी और फिर वापसी हो गई डेरा बस्सी । उसने छत्त पर बहुत सुंदर फूल लगा रखे हैं। सांढु मिथिलेश आंखों के हस्पताल में हैं। अगले दिन में ट्रेन पकड़ के अमृतसर पहुंचा। रेलवे स्टेशन पर उतरा तो बहुत खूबसूरत नजारा था। यूं तो अमृतसर मशहूर है अपने हरमंदिर साहब के लिए, यहां के पापड़ ,मूंग की दाल की बड़ियाँ , गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी , अमृतसरी कुल्चा, वाघा बॉर्डर पर होती परेड ।यहीं से पाकिस्तान में ननकाना साहिब जाने के लिए ट्रेन है। मैं रेलवे स्टेशन से बाहर निकला तो वही तांबे के बर्तन वाला वही ढाबा दिखाई दिया यहां मैं 2 साल पहले आया था। वहां से ऑटो पकड़ कर नाटशाला पहुंचा । वँहा एक साइकिल की दुकान वालों ने अपने टूलज़ बहुत बढ़िया ढंग से सजा रखे थे। उसकी तस्वीर भी खींची और आपसे शेयर कर रहा हूँ। फिर पहुंचा अपनी सिस्टर के घर यहां मेरे पिताजी और मेरे माता जी उनके साथ ही रह रहे हैं। पिताजी के साथ दोस्ताना संबंध है ,हम दोनों पढ़ने वाले, लिटरेचर की बात करने वाले हैं। जिंदगी के बहुत सारे पहलुओं पर बात हुई ।रात को सो गया और अगले दिन सुबह खाना खाने के बाद के साथ बहुत बढ़िया है मन्चप्रीत मेरे जीजाजी एक डायरेक्टर है, एक एक्टिंग स्कूल भी है जो लोगों को एक्टिंग करने सिखाते हैं। उनके सिखाए हुए बच्चे मुंबई में बहुत नाम कमा रहे हैं। फिर मैं निकल गया खालसा कॉलेज अमृतसर देखने अंदर जाने के लिए परमिशन ली । गेट से ही फुलवारी शुरू हो जाती है यह कॉलेज 1892 में चीफ ख़ालसा दीवान और सिख मूवमैंट ने बनवाया था । कॉलेज की बिल्डिंग का नक्शा भाई राम सिंह ने डिजाइन किया है ।यह कॉलेज ब्रिटिश मुगल और सिख इतिहास की बिल्डिंग के मद्देनजर रखते हुए बनाया गया है। महाराजा, नवाबों और लोगों से चंदा इक्ट्ठा किया गया। एक महल की तरह है पर है यह कॉलेज कमरों की ऊंचाई इतनी है कि कहते हैं कि सर्दियों में यह कमरे कर्म होते और गर्मियों में ठंडा। फोटो खींचने की मनाही थी तो कोई फोटोग्राफ नहीं खींची। पीछे एक गुरुद्वारा बना हुआ है और उसके साथ सिख इतिहास की बड़ी लाइब्रेरी है ।घूमता हुआ पहली वाली बिल्डिंग में आया वहां पर प्रिंसिपल सर का ऑफिस है। उसके साथ में इस कॉलेज से जुड़े लेखक, कवि, एकटर सबकी तस्वीरें लगी हुई हैं। यह 300 एकड़ में फैला हुआ है। अंदर ही खेती होती है ।4 अप्रैल को यूथ फेस्टिवल है यहां पर मैंने देखा और कुछ लड़के भांगड़े की तैयारी कर रहे थे ।गेट से सीधे जाते बाई तरफ वहां पर एक बहुत ही बड़ा बरगद का पेड़ है शायद 100 साल पुराना होगा। हमारे पंजाब के लड़के बहुत ही सुंदर पगड़ी बांधते हैं ,लड़कियां पंजाबी सूट पहनती हैं उन्हें देखकर अपने कॉलेज के दिन याद आ गए। बिल्डिंग ऊपर प्लसतर नहीं है, पर लाल और सफेद कलर की सफेदी ऐसे हैं कि क्या कहें? अमृतसर खालसा कॉलेज के सामने अमृतसर लाहौर रोड पर पंजाब नाटशाला है । अमेरिका के इंडस्ट्रीज ने बना रखी है जिन्होंने अपनी फैक्ट्री को ये रूप दिया है ।उन्होंने इसमें रिवाल्विंग स्टेज वाला ,लगभग डेढ़ सौ सीटों वाला एक थिएटर बना रखा है जिसमें हर शनिवार और रविवार को नाटक होते हैं। इस नाटक की हर सीट की एक टिकट है । लाखों रुपए की लाइट एंड साउंड सिस्टम बहुत ही उम्दा बना है। पिछली बार यहां गया था अमृतसर नाटकों के लिए बहुत ही मशहूर है । पंजाब में नुक्कड़ नाटक खेलने वाले भाई मन्ना सिंह के नाम से मशहूर गुरशरन सिंह यहीं से थे। उनके लगाए हुए पौधे मतलब उनके शिष्य आज पूरे पंजाब में और मुंबई में ओं में नाटक खेल रहे हैं। वहां से फिर मैं अपनी बहन कविता के साथ शहीदों के गुरुद्वारे गया एक गुरुद्वारा बाबा दीप सिंह । गुरुद्वारे में एंट्री करते ही सबसे पहले अपने जूते जमा करवाएं , हाथ धोए, सिर पर रुमाल बांधा और फिर अंदर चले गए ।वहां पर माथा टेका, लंगर खाया । बाबा दीप सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ते हुए उनकी गर्दन अलग हो गई थी तो उन्होंने अपनी ही गर्दन हाथ में उठाकर लड़ते रहे। इस बात को देखकर मुगलों की फौजी घबरा कर भाग गई और उन्होंने फिर अपना शीश हरमंदिर साहिब में चढ़ा दिया ।ऐसे ही बहादुरी की मिसाल इतिहास में और कहीं देखने को नहीं मिलती । सिख कौम जितनी बहादुर है ,उतनी ही दयावान भी है । इन्होने सीरिया में जाके लंगर लगाए, यहां पर लोग जाने से डरते थे । खालसा नाम की एक संस्था है जो पूरे विश्व में कहीं पर भी कोई त्रासदी हो तो वहां पहुंचकर लंगर लगाती है ,घर बनाती है, कपड़े बांटती है । ऐसा ही नेपाल में किया था जब वहां भूचाल आया था, भुज में, उड़ीसा मे, कर्नाटका में यहां जब जम्मू कश्मीर में बाढ़ आई थी, तो यह चीज है हमें अपने बच्चों को बतानी चाहिए, उनको सिखानी चाहिए । मैं भी अपने बच्चों को जब गुरुद्वारे लेकर जाता हूं तो पूछते हैं पापा यहां मुफ्त में रोटी क्यों खिलाई जाती है? तो मैंने उनको बताया उसको रोटी नहीं लंगर कहते हैं । तो मेरे दोनों बेटे वहां कई बार लंगर भी बांटते हैं। घर पहुंचा पिताजी से खूब सारी फिर बातें हुई माताजी से भी और फिर खूब हंसी मजाक चला ।मेरा भतीजा आगाज़ बहुत शरारती है। अपने नाना जी की छड़ी फेंक देता है, रेडियो की आवाज ऊंची कर देता और नाचने लगता है । रात हो गई और सुबह उठा। फिर मैं चल दिया दिल्ली की तरफ यह यात्रा यह समाप्त होती है। अगली यात्रा में आप को लेकर चलता हूं ।