Friday, April 29, 2022

ਰੁਦਰਪੁਰ ਦਾ ਮੇਲਾ

ਮੇਲੇ ਦੇ ਤਿੰਨ ਕੰਮ ਪੱਕੇ
ਧੂੜ , ਮਿੱਟੀ ਤੇ ਧੱਕੇ।
------
ਮੇਲਾ ਮੇਲੀਆਂ ਦਾ
ਯਾਰਾਂ ਬੇਲੀਆਂ ਦਾ
-------
ਰੁਦਰਪੁਰ ਦੇ ਇੱਕ ਮੇਲੇ ਬਾਰੇ ਦੱਸਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਰੁਦਰਪੁਰ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ।

ਰੁਦਰਪੁਰ ਇਕ ਪਿੰਡਾਂ ਵਰਗਾ ਇੱਕ ਕਸਬਾ ਹੈ। ਇਹ ਉਤੱਰ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਤੋਂ 20 ਕੁ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਅਲੱਗ ਹੋਇਆ ਪ੍ਰਾਂਤ। 
ਇਹ ਤਰਾਈ ਵਾਲਾ ਇਲਾਕਾ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਮਕਾਨ ਦੀਆਂ ਨੀਆਂ ਪੁੱਟਣ ਵੇਲੇ ਪਾਣੀ ਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ। ਫਿਰ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਮੇਹਨਤ ਨਾਲ ਸਫੈਦਾ ਆਦਿ ਦੇ ਬੂਟੇ ਲਾਏ, ਜ਼ਮੀਨ ਨੂੰ ਖੇਤੀ ਲਾਇਕ ਬਣਾਇਆ। ਹੁਣ ਵੀ ਇੱਥੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਵੱਡੇ ਵੱਡੇ ਫਾਰਮ ਹਾਊਸ ਨੇ, ਜੋ ਬਾਹਰ ਖੇਤਾਂ ਚ ਨੇ ਜਿੱਥੇ ਉਹਨਾਂ ਜੀਪਾਂ, ਬੁਲਟ ਮੋਟਰਸਾਇਕਲ ਤਨੇ।  ਬਾਹਰ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਉਹਨਾ ਨੇ ਕਈ ਕਿਸਮਾਂ ਦੇ ਕੁੱਤੇ ਰੱਖੇ ਹੋਏ ਨੇ ਜੋ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਕਰਦੇ ਨੇ।

ਇੱਥੇ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਤੋਂ ਉਜੱਡ਼ ਕੇ ਆਏ ਪੰਜਾਬੀ, ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਆਏ ਪੰਜਾਬੀ , ਉੱਤਰ ਪੂਰਬ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਲੋਕ , ਬੰਗਾਲੀ , ਉਤਰਾਖੰਡ ਦੇ ਪਹਾੜ ਤੋਂ ਆਏ ਲੋਕ ਵਸੇ ਹੋਏ ਨੇ।

ਪੰਤਨਗਰ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਜੋ ਕਿ ਏਸ਼ੀਆ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਮੰਨੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਉਸਨੇ ਸਿਡਕੁਲ ਇੰਡਸਟ੍ਰੀਲ ਏਰੀਆ ਨੂੰ ਜਗ੍ਹਾ ਦਿੱਤੀ ਜਿੱਥੇ
 ਛੋਟੀਆਂ ਵੱਡੀਆਂ ਮਿਲਾ ਕੇ  400 ਫੈਕਟਰੀਆਂ ਨੇ।
ਜਿਸ ਚ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਹੈ ਟਾਟਾ ਦਾ ਛੋਟਾ ਹਾਥੀ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੀ ਫੈਕਟਰੀ, ਅਸ਼ੋਕਾ ਲੇਲੇਂਡ ਦੇ ਟਰੱਕ, ਬਜਾਜ ਆਟੋ ਦਾ ਮੋਟਰਸਾਇਕਲ ਜਿਸ ਚ ਪਲਸਰ, ਪਲੇ਼ਟੀਨਾ ਮਾਡਲ ਬਣਦੇ ਨੇ, ਨੈਸਲੇ ਦਾ ਪਲਾੰਟ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਮੈਗੀ, ਚਾਕਲੇਟ ਬਣਦੀਆਂ ਨੇ, ਟਾਇਟਨ ਦਾ ਘੜੀਆਂ,  ਮਹਿੰਦਰਾ ਦਾ ਟ੍ਰੈਕਟਰ, ਪਾਰਲੇ ਜੀ ਦੇ ਬਿਸਕੁਟ,
ਆਦਿ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਹੈ। 
 ਇੰਡਸਟ੍ਰੀ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਇਥੇ ਲੱਗਭਗ ਹਰ ਪ੍ਰਾਂਤ ਤੋਂ ਲੋਕ ਨੇ ਇਹ ਇਕ ਗੁਲਦਸਤਾ  ਹੈ। 
ਇਥੇ ਇਕ ਅਟਰੀਆਂ ਮਾਤਾ ਦਾ ਮੰਦਿਰ ਹੈ ਇੱਥੇ ਹਰ ਸਾਲ ਅਪ੍ਰੈਲ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਇਕ ਮੇਲਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ 500 ਦੇ ਲੱਗਭਗ ਦੁਕਾਨਾਂ ਲੱਗਦੀਆਂ ਨੇ। ਜਿਹਨਾਂ ਵਿਚ ਕੱਪੜੇ, ਘੜੀਆਂ ਸਿੰਦੂਰ, ਔਰਤਾਂ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਕੱਪੜੇ,  ਜਾਦੂਗਰ, ਮੌਤ ਦਾ ਖੂਹ, ਭੂਤਾਂ ਦਾ ਘਰ, ਪੰਘੂੜੇ  ਗੰਨੇ ਦਾ ਰਸ, ਨਿੰਬੂ ਪਾਣੀ, ਜਲ ਜੀਰਾ, ਦੋ  ਫੁੱਟ ਚੌੜੀ ਮੈਦੇ ਦੀ ਪੂਰੀ,  ਜੋ ਹਲਵੇ ਨਾਲ ਖਾਧੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ,ਲੋਹੇ ਦੀਆਂ ਪਤੀਲੀਆਂ ਤੇ ਖੌਂਚੇ ,ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਹਾਰ ਸ਼ਿੰਗਾਰ ਤੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਹੈ।

                       ਸਿੰਦੂਰ
ਤਾਂਬੇ ਦੀ ਥਾਲੀ ਦੀ ਇੰਨੀ ਚਮਕ ਕਿ ਉੱਪਰ ਟੰਗੇ ਗਹਿਣੇ ਵਿਖਾਈ ਦੇ ਰਹੇ ਨੇ
                  ਡੌਰੇਮੌਨ ਵਾਲੀ ਗੁਲੱਕ
            ਲੋਹੇ ਦੀ ਪਤੀਲੀ, ਸਾਡੀ ਵਿਰਾਸਤ
               ਲੋਹੇ ਦੇ ਹੋਰ ਬਰਤਨ

ਮਕਾਨ ਬਣਨ ਕਰਕੇ ਹਰਸਾਲ ਦੁਕਾਨਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਘਟ ਰਹੀ ਹੈ। 
ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਇਸ ਮੇਲੇ ਚ ਲੋਕ ਦੂਰੋਂ ਦੂਰੋਂ ਆਉਂਦੇ ਨੇ 
ਇਸ ਮੰਦਿਰ ਦੀ ਬਹੁਤ ਮਾਣਤਾ ਹੈ।
ਰਾਤ ਦੇ ਬਾਰ੍ਹਾਂ ਵਜੇ ਤਕ ਦੁਕਾਨਾਂ ਖੁੱਲੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਨੇ।  ਜੋ ਲੋਕ ਨੌਕਰੀ ਪੇਸ਼ਾ ਨੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਮੇਲਾ ਵੇਖਣ ਆਉਂਦੇ ਨੇ।
ਇਹਨਾਂ ਮੇਲਿਆਂ ਨਾਲ ਰੌਣਕ ਹੈ, ਇਹ ਆਮ ਆਦਮੀ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਪੂਰੀਆਂ ਕਰਦਾ ਹੈ ਇਹ ਮੇਲਾ। ਇਹੋ ਜਿਹੇ ਮੇਲੇ ਕਰਕੇ ਅਸੀਂ  ਵਿਰਾਸਤ ਨਾਲ ਜੁੜਦੇ ਹਾਂ। 

ਮੇਲੇ ਦੀ ਵੀਡੀਓ ਦਾ ਲਿੰਕ

https://youtu.be/44SyNcBYCwE

ਫਿਰ ਮਿਲਾਂਗਾ, ਇੱਕ ਹੋਰ ਕਿੱਸਾ ਲੈਕੇ। 
ਰਜਨੀਸ਼ ਜੱਸ
ਰੁਦਰਪੁਰ, ਉਤਰਾਖੰਡ
ਨਿਵਾਸੀ ਪੁਰਹੀਰਾਂ, 
ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ
ਪੰਜਾਬ
28.04.2022

फिल्म गंगूबाई

प्रेम ना बारी उपजे 
प्रेम न हाट बिकाए
राजा प्रजा जो रूचे
सीस देखे जाए

कबीर जी का यह दोहा बताता है, प्रेम किसी खेत में नहीं उगता है , ना ही किसी दुकान पर बिकता है। जिसे प्रेम चाहिए वह अपना अभिमान गिरा दे तो मिल जाएगा, चाहे वह राजा हो या प्रजा।

बहुत सारे इंसानों के अंदर प्रेम के अभाव के कारण एक वहशीपन होता है, या वो समाज के दुरकारे होते हैं, वह लोग औरत के शरीर से खेलते है, हलांकि प्रेम तो रूह का मिलन है। 
प्रेम तो देह के आकर्षण से शुरू होकर दिल तक पहुंचता है ,फिर रूह तक जाता है। 
सैक्स पर कोई बात नहीं करना चाहता। हम जिस समाज में रह रहे हैं, वँहा सैक्स दबाकर रखा जाता है जिस कारण बलात्कार होते हैं, कत्ल होते हैं। बलात्कार ना हो इसके लिए वेश्यालय खोल दिए हैं पर लोगों को प्रेम से वँचित कर दिया गया है।
ओशो ने प्रवचनमाला बोली , "संभोग से समाधि की और", लोगों ने  इसे बिना पढ़े विरोध किया। मैनें वह किताब पढ़ी है, यह सैक्स को समझने के लिए बहुत जरूरी है। 

आम आदमी देह तक रुक जाता है, वेश्याओं के साथ बैठकर शराब पीता है, सिगरेट पीता है और जितने भी उल्टे सीधे काम करता है पर वह अपने घर पर शरीफ बन कर रहता है। दोगले शरीफ लोगों की असलियत इन कोठों पता चलती है।

"गंगूबाई ", संजय लीला भंसाली की फिल्म है। 
यह फिल्म सच्ची कहानी है, एक वेश्या जो वेश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा दिलवाने के लिए जवाहरलाल नेहरू से मिली। एक ऐसी कहानी है जो हमारे समाज का वह वाला आईना पेश करती है जिसे कि हम रात के अंधेरे में  बंद कमरों में ही रखना चाहते हैं।

आलिया भट्ट और अजय देवगन की कमाल की एक्टिंग। संजय लीला भंसाली ने हमेशा की तरह बेमिसाल सैट लगाया, जिसमें ईस्टमैन कलर का रंग है।
 एक किताब आई है ,"माफिया क्वीनज़ ऑफ मुंबई",  इसमें गंगूबाई का जिक्र भी है। यह हुस्सैन ज़ाईदी की लिखी हुई है।
यूं तो फिल्में मनोरंजन का साधन है पर कुछ फिल्में समाज का पर्दाफाश करती हैं। हमेशा मनोरंजन नहीं बल्कि सच के साथ रूबरू होना भी ज़रूरी है। 
गंगूबाई ने वेश्याओं के बच्चों को पढ़ने का हक दिलवाने का कार्य किया।
उसमें यह सवाल भी उठाया गया, कि समाज के शरीफ़ कहलाने वाले लोग रात के अंधेरे में उनके कोठे पर तो आ सकते हैं, पर उन वेश्याओं को बैंक में खाता खोलना, समाज में पढ़ने का हक, ... जो आम आदमी के हक हैं वो उनके पास नहीझ है, उन सब हकों के लिए लड़ने का काम गंगूबाई ने किया। 

"अमर प्रेम" , फिल्म का गीत है
कुछ तो लोग कहेंगे 
लोगों का काम है कहना 

हमको जो ताने देते हैं 
हम खोए हैं इन रंग रलियों में ,
हमने उनको भी चुप चुप के
आते देखा है गलियों में,
यह सच है झूठी बात नहीं
तुम बोलो यह सच है ना
 

फिल्म में साहिर लुधियानवी की नज़्म है,
"जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां है"


ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के 
ये लुटते हुए कारवां ज़िन्दगी के 
कहां हैं, कहां है, मुहाफ़िज़ ख़ुदी के 
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं 

ये पुरपेच गलियां, ये बदनाम बाज़ार 
ये ग़ुमनाम राही, ये सिक्कों की झन्कार 
ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार 
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

ये सदियों से बेख्वाब, सहमी सी गलियां
ये मसली हुई अधखिली ज़र्द कलियां
ये बिकती हुई खोखली रंग-रलियां
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

वो उजले दरीचों में पायल की छन-छन
थकी-हारी सांसों पे तबले की धन-धन
ये बेरूह कमरों में खांसी की ठन-ठन
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

ये फूलों के गजरे, ये पीकों के छींटे
ये बेबाक नज़रें, ये गुस्ताख फ़िकरे
ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

यहां पीर भी आ चुके हैं, जवां भी
तनोमंद बेटे भी, अब्बा, मियां भी
ये बीवी भी है और बहन भी है, मां भी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी
यशोदा की हमजिंस, राधा की बेटी
पयम्बर की उम्मत, ज़ुलेयखाँ की बेटी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

ज़रा मुल्क के रहबरों को बुलाओ
ये कुचे, ये गलियां, ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको लाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं



जब आदमी के जीवन में प्रेम का आ जाएगा ,यह वेश्यालय धरती से विदा हो जाएंगे और युद्ध भी, क्योकिं क्रोध और सैक्स के दमन से ही युद्ध होते हैं। 

फिर मिलूंगा एक नयी फिल्म लेकर।
आपका अपना।
रजनीश जस
रूद्रपुर, उत्तराखंड
निवासी पुरहीरां,
होशियारपुर, पंजाब
29.04.2022



 

Tuesday, April 26, 2022

बेल का शर्बत

आइए आज आपको बेल का शरबत पिलाते हैं। बेल एशियन देशों में पाए जाने वाला 10 से 13 मीटर ऊंचा पेड़ है। इसके पत्तों की से शिवजी की पूजा की जाती है । माना जाता है इसमें शिव का वास है। आमतौर पर बेल का पेड़ मंदिरों में लगाया जाता है । इस पर कांटे भी होते हैं।

 नेपाल में इसका फल लड़कियों को दिया जाता है और यह वहां पर यह मान्यता है कि इसका फल अगर नहीं टूटता, उतने दिन तक वह लड़की सुहागिन रहती है। 

आईए मुड़ते हैं  बेल के शरबत पर। यह पेट की बीमारियों, बवासीर, अल्सर, भूख ना लगने जैसी बीमारियों पर खाया जा सकता है।

शरबत बनाने के लिए इसके फल की सख्त खोल को तोड़ कर उसे से गुद्दा निकाला जाता है।  उसके चीनी का पानी डालकर उसे घुमाया जाता है , उसे छननी से छानकर बीज अलग किए जाते हैं। ऐसे मीठा शरबत तैयार होता है।  इसमें विटामिन ए और विटामिन सी बहुत मात्रा में पाया जाता है।
 रुद्रपुर में यह आमतौर पर किस जगह से हिल जाता है ।  गर्मियों की इस चिलचिलाती धूप में  एक बार में एक बार रुके, बेल का शरबत पीएँ।  

 तस्वीर में इस भाई साहब का नाम किशन लाल है। यह पीलीभीत यूपी से हैं और यहां पर बेल का शरबत , नींबू पानी, सोडा पानी, जलजीरा एक ही रेहड़ी पर इतनी वैरायटी रखे हुए हैं । यह सिडकुल से को आवास विकास  की तरफ आते हुए रास्ते में है। दूसरी एक रेहड़ी भगत सिंह चौक पर भी है । यह वह लोग हैं जिनका नाम कभी कहीं नहीं आता,  पर हमारे यह लोग मेहनत करके एक स्वाद पैदा करते हैं तो चलिए इनका भी शुक्र करते हैं।

 मैं इन लोगों को के बारे में इसलिए भी लिखता हूँ कि वह लोग हैं यू कोल्ड ड्रिंक के इस दौर में हमारे भारत का स्वाद जिंदा रखे हुए हैं। वर्ना कोल्ड ड्रिंक कंपनियों और पिज्जा के मालिक वे लोग हैं अगर इनका बस चले तो सुबह से लेकर शाम तक की उपयोग होने वाले पानी , घर की बनी रोटी,  दाल, हवा सब कुछ हमें डिब्बों में पैक करके बेचें और करोड़ों रुपया कमाएँ। 

 आज के लिए अलविदा , फिर मिलूंगा एक नए किस्से के साथ।
रजनीश जस 
#rajneesh_jass
Rudrarpur 
Uttrakhand
26.04.2019

Thursday, April 14, 2022

मैं, मेरी पत्नी और किताबें

मैं, मेरी पत्नी और किताबें 
--------
जब शादी हुई थी हमारी 
तुम्हें शौक नहीं था 
किताबें पढ़ने का ,
जो कि फुर्सत ही नहीं थी
टिऊशन से तुम्हें 

फिर जब तुम रात का खाना बनाती 
मैं रसोई में कुर्सी पर बैठ कर 
किताबें पढ़ता 
तुम्हें सुनाता कविताएँ 
गज़लें, विश्व प्रसिद्ध गाथाएं 
हमारी रसोई को पर लगा जाते 
और हम उड़ जाते 
पूरी धरती का चक्कर 
लगा आते 

पर जब कभी मैं 
लिविंग रूम में बैठ जाता 
तुम रसोई से आवाज़ देती 
क्या मोबाइल पर टिक
टिक कर रहे हो ?
आओ बैठो 
ये कुर्सी उदास है 
कुछ किताबें सुनाओ ।

अब तुम भी तो जान गई हो 
ओशो की किताब, बुक्स आई हैव लवड, 
हरमन हैस के सिद्धार्थ को, 
लिओ टालस्टाय की अन्ना केरेनिना को,
राहुल संकरतायण की किताब वोल्गा से गंगा, 
राम सरूप अन्खी की सुत्ता नाग ( सोया नाग), 
जंग बहादुर गोयल  की विश्व प्रसिद्ध शाहकार नावल, 
अनुराधा बेनीवाल की आज़ादी मेरा ब्रांड को

यूं ही एक दिन सूझा 
चलो आज तीनों पहर मैं खाना बनाता हूं 
और तुम कुर्सी पर बैठ कर किताबें पढ़ो 
बहुत मुश्किल लगा 
दो वक्त बैठ कर किताबें पढ़ना 
पत्नी हो ना, देख नहीं पाई 
रोटी बेलते प्याज काटते 
आँसू बहाते पति को 
सुबह और दोपहर का खाना ही बना पाया

पर वो दिन यादगार बन गया मेरे लिए 
अब तो तुम्हारे थक जाने से 
पहले लग जाता हूँ रसोई में
प्याज काटने, 
तेरे आँसू अपनी आँखों से बहाने के लिए 

और तुम भी मुस्कुराकर बैठ जाती हो 
एक नई किताब लेकर 
और उड़ जाते हम
किसी नए लेखक के देस 
#Rajneesh_jass 
04.04.2017 
Rudrapur
Picture by my son Rohan Jass
( In pic, Rajneesh Jass & Simran Jass)